11 मई 2010

पति को पूर्ण संतुष्ट करने वाली सुकन्या

प्रायः इस बात को लेकर काफ़ी विवाद रहा है कि रजनीश osho आखिर हैं क्या ? और उनका ग्यान किस हद तक ठीक है ? और ये मुद्दा आज भी उतना ही अनुत्तरित है । जितना रजनीश के समय में था ।
लेकिन मेरी खुद की धारणा इस मामले में एकदम क्लियर है कि ओशो को आत्मग्यान निश्चय ही था । लेकिन एक प्रश्न जिसका उत्तर खोजने की मैंने काफ़ी कोशिश की । और नहीं मिला । वो ये कि ओशो के गुरु कौन थे ?
ये अजीब सी बात है कि रजनीश ने अक्सर इसका जिक्र नहीं किया । बहुत लोगों ने मुझे इसका उत्तर यों दिया कि ओशो का कोई गुरु ही नहीं था । ये असंभव बात है । गुरु के बिना आत्मग्यान तो बहुत दूर की बात है । अन्य निचले स्तर के योगसिद्धि आदि ग्यान भी नहीं हो सकते । देखें तुलसीदास क्या कहते हैं ।
जो विरंच शंकर सम होई । गुरु बिनु भव निधि तरय न कोई । राम , कृष्ण से कौन बङ । तिन्हू ने गुरु कीन । तीन लोक के जे धनी । गुरु आग्या आधीन । औरहु जती तपी सन्यासी । यह सब गुरु के परम उपासी ।
आपने बहुत छोटे से ही यह बात पढी होगी कि सूर्य चन्द्र आदि अन्य ग्रह और सकल ब्रह्माण्ड गुरुत्वाकर्षण बल से टिके हुये है । जिसे अंग्रेजी में ग्रेविटी फ़ोर्स कहते है । अगर आप गहन अध्ययन करे । तो एक बात सामने आयेगी कि इससे बङी शक्ति और सत्ता कोई है ही नहीं । और इसका सीधा सा अर्थ है । गुरुतत्व का आकर्षण ।
आज मैं आपको सुकन्या नामक स्वर्णकार लङकी के बारे में बता रहा हूँ । जिसे मात्र थोङा सा ही आत्मग्यान था । जिसके बल पर वह अपनी दुरूह समस्याओं का हल खोज लेती थी ।
कुछ समय पहले की बात है । स्वर्णकार समाज में सुकन्या नाम की एक बहुत सुन्दर और गुणवान युवती थी । जो अलौकिक ग्यान की एक विध्या में निपुण थी । उसके घर के रास्ते से उसी देश का राजकुमार अक्सर गुजरता था ।
सुकन्या राजकुमार पर आसक्त हो गयी । लेकिन अपने प्यार का इजहार किस तरह करे ? इसका कोई रास्ता उसे सूझ न रहा था । तब उस बाला ने एक तरीका निकाला । और राजकुमार के निकलने पर वह अक्सर कहने लगी कि मैं ऐसी लङकी हूँ कि मेरा पति मुझसे कभी क्रोधित नहीं हो सकता । और वो चाहे कैसा भी व्यवहार करे । मुझे कभी क्रोध नहीं आयेगा । उसकी बात सुनते सुनते राजकुमार ने ठान लिया कि इसी लङकी से शादी करेगा । और इसका ये गरूर तोङ कर ही रहेगा कि ये पति को हर बात में संतुष्ट कर सकती है ?
राजभवनों में अपनी बात मनवाने की परम्परा के मुताविक राजकुमार कोपभवन में चला गया । राजा को ग्यात हुआ । राजा ने कोपभवन में आने का कारण पूछा । तो राजकुमार ने स्पष्ट कह दिया कि वो शादी करेगा तो उसी स्वर्णकार की बेटी से । राजा ने तुरन्त निर्णय कर दिया । डोंट वरी । ओ के । आल द बेस्ट । क्योंकि कहीं कोई प्राब्लम ही नहीं थी । सुनार क्या उसके पिताजी भी शादी करते । एक राजा से बचकर कहाँ जा सकते हैं ?
इस शादी का किस्सा बताने की आवश्यकता नहीं है । इसमें कोई उल्लेखनीय बात थी । तो वो बस इतनी ही कि सुनार ने इस अवसर को ढंग से भुनाते हुये थोङी नानुकर के बाद राजा से स्वागत सत्कार के नाम पर काफ़ी धन ले लिया ।
उधर राजकुमार की तो लङकी में कोई दिलचस्पी थी ही नहीं । वो तो उसका गरूर मात्र तोङकर उसे ठुकरा देने के इरादे से ही लाया था । सो वह उसे तरह तरह से परेशान करते हुये नित्य नये नये उपाय सोचने लगा ।
लगभग छह महीने बीतने आये । राजकुमार अक्सर देर तक उसे जगाता । पैर आदि दवाने जैसी सेवा कराता । और अकारण के उलझे हुये काम बताता । पर लङकी के चेहरे पर शिकन तक नहीं आयी । यही नही केवल परेशान 


करने के उद्देश्य से ही । न तो उसने कभी सुकन्या के रसीले अधरों का रसपान किया था  । न ही कभी उसके उन्नत कुचों का भरपूर मर्दन किया था । और न ही उसकी योनि में लिंग प्रवेश कराया था । तथा न ही उसने कभी सुकन्या को अपने किसी अंग पर हाथ रखने दिया । और न ही उसने निर्वस्त्र सुकन्या को कभी कामभाव से स्पर्श किया था । फ़िर सम्भोग आदि करना दूर की बात थी । आप सोच रहें होगे कि आज मैं किस तरह की बात कह रहा हूँ ?  ये बात आगे के प्रकरण से स्पष्ट हो जायेगी । कुमार अपने मित्रों से अक्सर इस बात पर परामर्श करता था कि वो कौन सा तरीका निकाला जाय कि सुकन्या क्रोधित हो उठे । 
और वो उसका गरूर तोडकर घर से निकाल दे । तब मित्रों ने कहा कि तुम परदेश जाने की बात कहो । इससे औरत परेशान हो जाती है । और कहना कि..???
कुमार ने महल में पहुँचकर कहा कि सुकन्या मैं विदेश जा रहा हूँ । और तुम्हें कुछ काम बताये जा रहा हूँ । जो मेरे आने तक पूरा कर लेना । पहला काम तो ये है कि तुम एक आलीशान महल हमारे लिये बनबाना । जो न तो मेरी कमाई का हो । न मेरे पिता की कमाई का हो । तथा जो न तो तेरी कमाई का हो । न तेरे पिता की कमाई का हो । दूसरा काम जब तक मैं लौटूँ । हमारा एक पुत्र हो । जो मेरे और तुम्हारे द्वारा पैदा हो । यदि तुम ऐसा नहीं कर सकी तो..?
सुकन्या ने कहा । आप निश्चिंत होकर जाय स्वामी । आपको ये दोनों कार्य पूर्ण मिलेंगे । लेकिन मेरी एक विनती है ( उसने अपने कान का एक झुमका उतारकर उसे दिया ) आप ये झुमका ले जांय । परदेश में किसी विपत्ति में काम आयेगा ।
कुमार एक दूसरे राज्य में चला गया और अपना असली परिचय न देकर एक अजनवी के रूप में साधारण राज्य कर्मचारी बनकर रहने लगा । सुकन्या द्वारा दिया गया झुमका उसने राजा को अमानत के तौर जमा करा दिया कि जब मैं वापस जाऊं मुझे दे देना । राजा ने वह झुमका अपनी रानी को । और रानी ने राजकुमारी को दे दिया ।
राजकुमारी को जैसे ही वह झुमका मिला । उसने अपने पिता से जिद ठान ली कि इस झुमके का जोङा यानी दूसरा झुमका उसे हर हाल में चाहिये । राजा ने कहा कि ये कोई बङी बात नहीं है । ये मेरा एक कर्मचारी है । उसने दिया है । मैं इसका दूसरा जोङा मंगा लूँगा ।

राजा ने कुमार से बात की । तो कुमार ने हँसकर कहा कि राजन आप पूरी कोशिश कर लें । इसका दूसरा झुमका आपको प्राप्त नहीं होगा । चाहे आप कितनी ही सम्पत्ति क्यों न खर्च कर दें ।
क्योंकि कुमार जानता था कि दूसरा झुमका एक अन्य राजबधू के पास है । जिसे किसी कीमत पर प्राप्त नहीं किया जा सकता । राजा इस अहंकारयुक्त उत्तर से चिढ गया । और बोला कि अगर मैं दूसरा झुमका प्राप्त करने में कामयाब हो गया । तो तुझे फ़ांसी पर चढना होगा ।
और अगर मैं कामयाब नहीं हुआ । तो मैं राजकुमारी का विवाह तुझसे कर दूँगा । राजकुमार ने इस शर्त को सहर्ष मान लिया । उसने सोचा कि बेटा तू झुमका ला ही नहीं पायेगा । राजा ने अपने राज्य की तीन खतरनाक कुटिल कुटनी औरतें । जिन्हें उस वक्त दूती कहा जाता था , को बुलाया । और कहा कि तुम तीनों अपनी अपनी खासियत बताओ ?
एक दूती ने कहा कि मैं आसमान फ़ाङकर थेगली लगाकर सी सकती हूँ । दूसरी ने कहा कि राजन मैं बिछुङे हुये को मिला देती हूँ । तीसरी ने कहा कि मैं मिले हुये मैं विछोह कराने में माहिर हूँ । राजा ने तीनों को काम समझाकर भारी इनाम का वादा करके मिशन ए झुमका पर भेज दिया ।
उधर सुकन्या कुमार के चले जाने पर सावन मास में पिता के घर आ गयी थी । और बाग में झूला झूल रही थी । जब एक दूती अपने टोना टोटका ग्यान से झुमकावाली का पता लगाकर उसके पास पहुँची । लेकिन उसे नहीं पता था कि शेर का मुकाबला सवा शेर से है ।

दूती ने कहा - ओ हो । अरे बेटी । तू इतना बङी हो गयी । मैं तेरी मौसी हूँ. । जब तू छोटी थी । तब खूब आती जाती थी । अब नहीं आ पाती..। तुझे तो शायद मेरी याद भी नहीं होगी..?
सुकन्या ने उसी टोन में जबाब दिया..हाँ मौसी थोङा थोङा याद है..। तुम खूब रसगुल्ले लाती थी...। आज शायद लाना भूल गयी ??
कुछ देर के वार्तालाप के बाद दूती वही चालाक सम्बन्ध जारी रखते हुये असली मुद्दे पर आ गयी कि वह झुमके की तलाश में निकली है
सुकन्या ने झुमके को गौर से देखने का बहाना करते हुये कहा कि ये क्या बङी बात है मौसी मिल जायेगा । लेकिन बीस लाख स्वर्ण मुद्रा इसकी कीमत होगी । और लगभग छह महीने बाद मिलेगा । जिसे दूती ने सहर्ष मान लिया । सुकन्या ने अपने पिता से कहा । ठीक इसी प्रकार का दूसरा नकली झुमका इस तरह का बनाये कि बङे से बङा पारखी धोखा खा जाय । और दूती से प्राप्त धनराशि से उसने जिम्मेवार आदमियों को आलीशान महल बनाने का आदेश दे दिया ।
उधर उस राजा के राज्य में एक महात्मा आकर रहने लगे । और अक्सर राजमहल में घूमने आ जाते थे । कुमार उनसे बेहद प्रभावित हुआ । क्योंकि साधु ने कुमार के जीवन के विषय में काफ़ी बातें बतायीं । कुछ ही दिनों में कुमार उस साधु के पास अधिकाधिक बैठने लगा । क्योंकि उस अनजान देश में वह साधु सर्वाधिक अपनत्व से बात करता था । धीरे धीरे कुमार की उससे दोस्ती हो गयी ।..
और फ़िर एक दिन दूती द्वारा दूसरा झुमका राजा को प्राप्त हो गया । राजा झुमका मिलने से कम । अपनी विजय से ज्यादा हर्षित हुआ । उसने भरी सभा में झुमका कुमार को दिखाया । कुमार ने आश्वर्य से झुमके को देखा और 


गर्दन झुका ली ।  राजा ने उसकी फ़ांसी का दिन तय कर दिया । फ़ांसी से एक दो दिन पहले कुमार ने ज्यादा से ज्यादा समय साधु के पास गुजारा । क्योंकि उसे केवल साधु की बातों से ही शान्ति मिलती थी ।
फ़ांसी के बारे में पूरे राज्य में चर्चा थी । पर साधु ने इस बात का कोई जिक्र नहीं किया । नियत दिन जैसे ही कुमार को लटकाये जाने का आदेश हुआ । साधु प्रकट हो गया और हाथ उठाकर बोला । ठहरो इसे फ़ांसी गलत हो रही है ? राजन आपके हाथ में जो झुमका है । वो नकली है ।
सब लोग चौंक गये । साधु ने एक रसायन के संयोग से दोनों झुमकों को तपाया । तो बाद वाला झुमका काला पङ गया । राजा हैरान हो गया । और वादे के मुताबिक उसे राजकुमारी की शादी अजनवी से करनी पङी
इसके बाद साधु गायब हो गया । कुमार ने बहुत खोजा । पर साधु कहीं न मिला । कुमार अब शाही दामाद होकर नयी रानी से यौनसुख प्राप्त करने लगा । और अपनी जीत पर रसिक मिजाज हो गया ।
उधर कुमार को पान खाने का शौक लग गया । और वह एक जवान तम्बोलन से पान खाने जाने लगा । उस राज्य का दामाद होने के नाते तमोलन उससे जीजा कहती थी । और गहरे मजाक कर लेती थी । कुमार उसके आकर्षण से बच न सका । और दोनों में शारीरिक सम्बन्ध स्थापित हो गये । हालत ये हो गयी कि कुमार अपनी रानी से कम तमोलन से अधिक सम्भोगरत होता था । इसी क्रम में तमोलन ने उससे रखैल की तरह कुछ बहुमूल्य राजकीय चीजें हथिया लीं । अचानक तमोलन गायब हो गयी ??
दो साल बाद कुमार की नयी रानी ने कहा कि आपका कोई घरबार भी होगा । आपने कभी बताया नहीं । मैं अपनी ससुराल जाना चाहती हूँ । तब कुमार मानो सोते से जागा । उसने सब लोगों को अपना वास्तविक परिचय दिया । राजा रानी को इस बात की बेहद खुशी हुयी कि उनका दामाद साधारण न होकर राजपुत्र है  
राजा ने भारी धनधान्य के साथ बेटी को विदा कर दिया । कुमार अपने घर जाते हुये निरंतर यही सोच रहा था कि अब सुकन्या से बात करेगा ? अबकी उसकी हार निश्चित है । वह घर पहुँचा और मिलाभेंटी के बाद उसने सुकन्या से कहा कि मैंने तुम्हें दो काम सोंपे थे ।
सुकन्या ने शालीनता से कहा कि स्वामी मैंने आपके दोनों कार्य पूरे कर दिये है । वो रहा आपका आलीशान महल । और ये हमारा सुन्दर पुत्र खेल रहा है ?
कुमार के दिमाग का मानों फ़्यूज उङ गया । फ़िर अपने आपको संयत करके बोला । महल कैसे बना ?
सुकन्या ने कहा । दूसरे झुमके के एवज में प्राप्त धन से । जो न मेरी कमाई । न मेरे पिता की । न आपकी कमाई । न आपके पिता की । लेकिन मेरे बिना मेरा पुत्र कैसे हो गया ?
सुकन्या ने कुछ निशानियां दिखायीं । और कहा । याद करें कि ये आपने कब और किसको दी थीं ??
ये..ये मैंने एक तमोलन को दी थीं । वह तमोलन मैं ही थी । और वह साधु भी मैं ही थी ।
कुमार ने माथे पर हाथ मारा । ओ हो । इस औरत से जीतना वाकई मुश्किल है । फ़िर उसने सुकन्या को बाहों में भर लिया । क्योंकि अब वह अपनी बेहद गुणवान औरत से वाकई प्यार करने लगा था । जिसको क्रोध दिलाना मुश्किल था । जिससे क्रोधित होना मुश्किल था ।

3 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छा लगा!

बेनामी ने कहा…

आपने शायद ध्यान न दिया हो पर ओशो ने स्वृणिम बचपन में मग्गा बाबा, पागल बाबा और मस्तो तीन नामों का जिक्र किया है और कहा है कि Enlightenment को पहुँचने वाले किसी भी व्यक्ति को तीन enlightened व्यक्ति सहायता करने के लिये मिलते ही मिलते हैं। पर उनकी कई बातों की तरह यह बात भी एक parable हो सकती है। वे ऐसा कभी नहीं कहते कि उन्हे किसी गुरु की वजह से आत्मग्यान मिला।
जे कृष्णमूर्ति भी किसी गुरु की बात नहीं करते।
देखा जाये तो गुरुओं की संगत छोड़ने के बाद ही गौतम को बुद्धत्व मिला।

bhagat ने कहा…

भगवान् से मेरी प्रार्थना है की मुझे भी सुकन्या मिले (किन्तु मेरी शादी हो चुकी है ) . ३२ साल गुजर दिए पता नहीं कितने किताबे पढ़ी लेकिन ये कहानी अब पढ़ी