परहित सरस धर्म नहीं भाई । पर पीडा सम नहीं अधिकाई ।
बडे भाग मानुस तन पावा । सुर दुर्लभ सद ग्रन्थन गावा ।
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा । पाय न जेहि परलोक संवारा ।
insaan bhedbhav kyun karta hai.
( कुछ ग्यानियों ने इस दुनियां के सिस्टम को जंगलराज कहा है । )
Kyun woh kisi ko dutkarta hai.
( मामूली आदमी भी गरूर में अन्धे हो रहे हैं । इसीलिये अभी के सच्चे संत कह रहे हैं कि कलियुग समय से पहले ही भन्ना उठा । ( अभी कलियुग के सिर्फ़ 5000 वर्ष हुये हैं और 17000 बाकी है । चारों तरफ़ फ़ैली त्राहि त्राहि से सत्ता ने कलियुग को यहीं समाप्त करने का फ़ैसला लिया है । )
Jaise jahan main kaam karta hun ( CENT.. RAY.. COMPANY
( प्राइवेसी के मद्देनजर मैंने नाम को अस्पष्ट कर दिया गया है । )
wahan hamara jo supervisor hai woh marathi hai
( पर वो भूल गया है । असल में तो वो पहले इंसान है । )
toh woh pahle sabhi marathiyo ko kaam par lagata hai
( शायद इसी को कहा गया है । अंधा बांटे रेवडी फ़िर फ़िर अपने को देय । )
agar jagah bache toh baaki kisi aur ko.
( इस कर्म से उसके लिये कहीं जगह ही नहीं बचेगी । )
nahi toh hame ghar vapas bhej deta hai.
( आगे के समय में भगवान उसको वापस बार बार 84 में भेजेगा बिकाज उसने एक इंसान की तरह व्यवहार न करके पशुओं की तरह व्यवहार किया । )
Kyun koi apni shaqti ka galat istemaal karta hai ?
( हर पावर का भी एक नशा होता है । वह उसी में धुत है । )
kya use ishwar ka bhay nahi lagta ?
( आज का इंसान ईश्वर का भी अपने फ़ायदे के लिये ही इस्तेमाल या याद करता है । )
insaan khud ko sudharta kyun nahi ?
( ये बहुत बडा प्रश्न है । जिसकी तरफ़ बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है । )
woh kyun yeh bhool jata hai ki woh sirf is janam me marathi ya marwadi ya bhaiya.
( बिलकुल सही बात है । और अगले जन्मों में तो 84 में उसे गधा । घोडा । कुत्ता । बिल्ली जैसे पशु आदि बनना होगा । और आप जैसों की हाय अलग से झेलनी होगी । )
Jis bhi cast me paida hua ho sirf isi janam ke liye hai.
( और वो भी बहुत थोडे समय के लिये । मनुष्य के जीवन को इसीलिये क्षणभंगुर या पानी का बुलबुला बताया गया है । )
Parmatma ke yahan toh koi jaat nahi wahan toh sab ek hai
( एक नूर ते सब जग उपज्या । कौन भले कौन मंदे । )
toh kyun insaan sirf aaj ka sochta hai ?
क्योंकि इंसान अग्यात नशे में चूर है ।
झूठे सुख से सुखी है । मानत है मन मोद ।
जगत चबैना काल का । कछू मुख में कछू गोद । )
woh apne aane wale kal ki kyun nahi sochta.?
(कुछ ही लोग सोचते हैं । अगर सभी सोचने लगें तो क्या बात है)
Kyun koi dusaro ko satata hai kyun ?
( लोग सोचते हैं कि रावण कंस आदि राक्षस कोई अलग राक्षस जाति के थे । पर वे इंसानों में ही थे । और स्वभाव से राक्षस थे । )
jawab ki prateeksha rahegi. Jai jai gurudev ki. (ई मेल से)
बडे भाग मानुस तन पावा । सुर दुर्लभ सद ग्रन्थन गावा ।
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा । पाय न जेहि परलोक संवारा ।
insaan bhedbhav kyun karta hai.
( कुछ ग्यानियों ने इस दुनियां के सिस्टम को जंगलराज कहा है । )
Kyun woh kisi ko dutkarta hai.
( मामूली आदमी भी गरूर में अन्धे हो रहे हैं । इसीलिये अभी के सच्चे संत कह रहे हैं कि कलियुग समय से पहले ही भन्ना उठा । ( अभी कलियुग के सिर्फ़ 5000 वर्ष हुये हैं और 17000 बाकी है । चारों तरफ़ फ़ैली त्राहि त्राहि से सत्ता ने कलियुग को यहीं समाप्त करने का फ़ैसला लिया है । )
Jaise jahan main kaam karta hun ( CENT.. RAY.. COMPANY
( प्राइवेसी के मद्देनजर मैंने नाम को अस्पष्ट कर दिया गया है । )
wahan hamara jo supervisor hai woh marathi hai
( पर वो भूल गया है । असल में तो वो पहले इंसान है । )
toh woh pahle sabhi marathiyo ko kaam par lagata hai
( शायद इसी को कहा गया है । अंधा बांटे रेवडी फ़िर फ़िर अपने को देय । )
agar jagah bache toh baaki kisi aur ko.
( इस कर्म से उसके लिये कहीं जगह ही नहीं बचेगी । )
nahi toh hame ghar vapas bhej deta hai.
( आगे के समय में भगवान उसको वापस बार बार 84 में भेजेगा बिकाज उसने एक इंसान की तरह व्यवहार न करके पशुओं की तरह व्यवहार किया । )
Kyun koi apni shaqti ka galat istemaal karta hai ?
( हर पावर का भी एक नशा होता है । वह उसी में धुत है । )
kya use ishwar ka bhay nahi lagta ?
( आज का इंसान ईश्वर का भी अपने फ़ायदे के लिये ही इस्तेमाल या याद करता है । )
insaan khud ko sudharta kyun nahi ?
( ये बहुत बडा प्रश्न है । जिसकी तरफ़ बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है । )
woh kyun yeh bhool jata hai ki woh sirf is janam me marathi ya marwadi ya bhaiya.
( बिलकुल सही बात है । और अगले जन्मों में तो 84 में उसे गधा । घोडा । कुत्ता । बिल्ली जैसे पशु आदि बनना होगा । और आप जैसों की हाय अलग से झेलनी होगी । )
Jis bhi cast me paida hua ho sirf isi janam ke liye hai.
( और वो भी बहुत थोडे समय के लिये । मनुष्य के जीवन को इसीलिये क्षणभंगुर या पानी का बुलबुला बताया गया है । )
Parmatma ke yahan toh koi jaat nahi wahan toh sab ek hai
( एक नूर ते सब जग उपज्या । कौन भले कौन मंदे । )
toh kyun insaan sirf aaj ka sochta hai ?
क्योंकि इंसान अग्यात नशे में चूर है ।
झूठे सुख से सुखी है । मानत है मन मोद ।
जगत चबैना काल का । कछू मुख में कछू गोद । )
woh apne aane wale kal ki kyun nahi sochta.?
(कुछ ही लोग सोचते हैं । अगर सभी सोचने लगें तो क्या बात है)
Kyun koi dusaro ko satata hai kyun ?
( लोग सोचते हैं कि रावण कंस आदि राक्षस कोई अलग राक्षस जाति के थे । पर वे इंसानों में ही थे । और स्वभाव से राक्षस थे । )
jawab ki prateeksha rahegi. Jai jai gurudev ki. (ई मेल से)
इस पूरे ई मेल में मैंने हिंट ( हिंदी में ) दिये हैं पर वो उत्तर नहीं है ।
आगे बात करते हैं । आपके सभी प्रश्नों में कोई ऐसी हाय हाय वाली बात नहीं है । ये जगत व्यवहार है जो हमेशा से ही चला आ रहा है । ( अगर ऐसा नहीं होगा तो या तो जगत समाप्त हो जायेगा या बेहद नीरस हो जायेगा । ) भले ही इसमें अच्छे बुरे का अनुपात कम ज्यादा होता रहा हो ।
बुरा ना मानें आज आप अपनी परिस्थिति की वजह से ऐसा सोच रहे हैं । जैसा कि आप सुपरवाइजर के लिये कह रहें हैं उसकी जगह आप होते तो आप भी वही करते । भले ही अभी आपको लग रहा होगा कि आप नहीं करते ?
आज जो आपका आज है वो आपके बीते कल से निर्मित हुआ है ।
बुरा जो देखन मैं चलया । बुरा ना मिलया कोय ।
जब दिल खोजा आपना । मुझसे बुरा न कोय ।
अगर आपकी बात मान ली जाय तो इससे यह सिद्ध हो जायेगा कि यहां कोई सत्ता ( ईश्वरीय ) नहीं है और अन्याय का बोलबाला है । पर नहीं यहां वो सत्ता है कि
तेरी सत्ता के बिना हिले न पत्ता । खिले न एक हू फ़ूल हे मंगल मूल ।
जलचर जीव बसे जल मांहि । तिनको जल में भोजन देय ।
वनचर जीव बसे वन मांहि । तिनको वन में भोजन देय ।
थलचर जीव बसे थल मांहि । तिनको थल में भोजन देय ।
नभचर जीव बसे नभ मांहि । उनको भी तो भोजन देय ।
ऐसे प्रभु को भोग लगाना । लोगन राम खिलौना जाना ।
और ये परमात्मा की केन्द्र सत्ता है जिसमें भक्ति से भाग्य आदि बनता है । त्रिलोक की सत्ता कर्मफ़ल पर आधारित है यानी जैसा किया वैसा प्राप्त होगा ।
यकीन मानें दोनों ही सत्ताओं का बेहद कडा नियम है कि तौल में चीनी के एक दाने के बराबर हेरफ़ेर नहीं हो सकता । चींटी जैसे तुच्छ जीव का यहां पूरा पूरा हिसाब रहता है । फ़िर आप सोच सकते हैं कि इतना सख्त राज्य है तो खुशहाली होनी चाहिये ?
आप अपना पिछले कर्मफ़ल का प्रारब्ध ( भाग्य ) लेकर आये हैं । आगे का आपको अभी बनाना है । अब जैसा भी आप ले के आये हैं उसको हर हालत में भोगना ही है । इसलिये ये कर्मयोनि है । इसलिये ये कर्मक्षेत्र है ।
इसलिये हे अर्जुन.. युद्ध कर निरन्तर युद्ध कर तभी विजय प्राप्त होगी ।
अब मैं यही सलाह दे सकता हूं कि
कोई ना काहू सुख दुख कर दाता । निज कर कर्म भोग सब भ्राता ।
इसलिये
बीती ताहि विसारि दे । आगे की सुधि लेय ।
भक्ति स्वतंत्र सकल सुख खानी । बिनु सतसंग ना पावहि प्राणी ।
अगर आपके पास भक्ति का असली नाम होता तब तो बात ही कुछ और थी ? लेकिन तब तक आप खाली समय में परमात्मा का चिंतन निरन्तर करे विश्वास रखें वह सिर्फ़ भाव का भूखा है । आप भाव से उससे प्रार्थना करेंगे तो वो हर बात सुनेगा ।
जा पर कृपा राम की होई । तापर कृपा करे सब कोई ।
निज अनुभव तोहे कहहुं खगेशा । बिनु हरि भजन न मिटे कलेशा ।
और अंत में ..जय जय श्री गुरुदेव ।
प्रभु आपकी सुनें और अपनी शरण में लें ।