संभवतः ये पेज बाबा रामदेव के किसी अनुयायी द्वारा लिखा गया है ।
*******
अब समझो । अष्टांग योग - दुनिया का सबसे बड़ा योग । जिन्हें सुखी परिवार चाहिए । वो दोनों दम्पत्ति इसे अवश्य अपनाएं । व कम धन में दिव्य आनंदित जीवन जीते हुए मोक्ष प्राप्त करें । योग का अर्थ है - ईश्वर को पाना । व यह मानव जन्म मात्र ईश्वर को पाने को ही है ।
ईश्वर को पाने के तीन मार्ग हैं - ज्ञान मार्ग - ज्ञान योग । कर्म मार्ग - कर्म योग । भक्ति मार्ग - भक्ति योग ।
अष्टांग योग - एक समय के अति विकसित विज्ञान से उत्पन्न है । यह ज्ञान योग से उत्पन्न है।
यम । नियम । आसन । प्राणायाम । प्रत्याहार । धारणा । ध्यान । समाधि ।
यम - सत्य । अहिंसा । अस्तेय । अपरिग्रह । बृह्मचर्य ।
नियम - शौच । संतोष । तप । स्वाध्याय । ईश्वर प्राणीध्यान ?
यम - नियम एक सुखी जीवन का विज्ञान है । जिसे सुखी जीवन चाहिए । वो इन्हें अवश्य अपनाए । ये चित्त विज्ञान से जुड़े हैं । एक एक नियम चित्त से होते हुए पूरे शरीर की रासायनिक व विद्युत चुम्बकीय प्रणाली से जुडा है । किसी भी नियम से हटने पर रोग दुःख बनने शुरू हो जाते हैं । अष्टांग योग सिद्ध करने हेतु ये बड़े आवश्यक हैं । जिन्हें अष्टांग योग शीघ्र पाना है । वो इसे दृण निश्चय से पालन करें । बाकी लोग दोनों समय मात्र अनुलोम विलोम ही करते जाओ । धीरे धीरे अनुलोम विलोम कुछ वर्षो में अष्टांग योग आप में स्थापित कर देगा ।
इसमें स्वाध्याय + ईश्वर प्राणीध्यान = ज्ञान योग है ।
स्वाध्याय = यानी मैं कौन हूँ ? क्या हूँ ? यहाँ क्या कर रहा हूँ ? मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है ?
ईश्वर प्राणीध्यान = ईश्वर को समझना । ईश्वर को पाना ।
यह ज्ञान योग इस योग का मूल है । व पाना इसे ही मुक्ति। मोक्ष । समाधि है । बाकी सब यम नियम प्राणायाम तो देह चित्त शुद्धि हेतु थे । जीवन को आरोग्य देने हेतु थे । यदि कोई ज्ञान योग से ईश्वर पा ले । तो स्वतः यम
नियम प्रत्याहार धारणा समाधि सक्रिय हो जाते हैं । फिर इन नियमों की ओर नहीं भागना होता । बस मात्र प्राणायाम व्यायाम आदि ही नित्य कर्म रह जाते हैं । ज्ञानमार्गी आँख बंदकर समाधि नहीं लगाते मिलेंगे । हाँ चिन्तन हेतु कर सकते हैं ।
प्रारम्भ में प्राणायाम करते जाओ । व ईश्वर का चिंतन करते जाओ । अपना व ईश्वरीय अध्ययन करते जाओ । फिर अपने आप ध्यान सक्रिय हो । सीधे समाधि में आ जाओगे । यह समाधि सतत मोक्ष है ।
यम नियम की वैज्ञानिकता संक्षेप में ।
यम = सत्य । अहिंसा । अस्तेय । अपरिग्रह । बृह्मचर्य ।
सत्य - सत्य का पालन इतना प्रभावी है कि सत्यवादी जो कह दे । होकर रहता है । यही पूर्व के ऋषियों के श्राप या वरदान का रहस्य था । सत्य से हटने पर आपके रोगी होने । कब्ज होने । पाचन या अन्य बीमारियों की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं । झूठ बोलने से हृदय गति बढने से कुछ अलग विकार जन्म ले सकते हैं । कभी किसी "अत्यधिक हितकर" हो । तो झूठ भी बोल लेना । नहीं तो सच बोलने से जितना आपका रासायनिक संतुलन नहीं बनेगा । उससे ज्यादा उस सच से हुए अनिष्ट से दुःख से जीवन भर रासायनिक संतुलन बिगड़ा रह सकता है । पर यह झूठ अपने लाभ के लिए नहीं । किसी की जान बचाने को ही हो । तब आपको अपराध बोध नही होगा । रासायनिक संतुलन नहीं बिगड़ेगा ।
अहिंसा - सब कुछ ईश्वर है । अतः नितांत आवश्यक होने पर ही मांसाहार करो । व हिंसा 84 प्रकार की है । जहाँ तक हो सके । न करो । फिर भी जो हो जाए । तो मन में पाप बोध न रखो । घर परिवार में भी मन की अंदर भी हिंसा न करो । मन में हिंसा से भी कुछ अति महीन रक्त वाहिकाएं मष्तिष्क में फट जाती हैं । अतः हिंसा का भोग तुरंत व सबसे पहले स्वयं को मिलता है । अत्यावश्यक या निरंतर पाप होने पर हिंसा आगे के जीवन में अहिंसा की प्राप्ति है । अतः तब अवश्य करो । पर शांत होकर ।
अस्तेय - अर्थात चोरी । किसी भी प्रकार की चोरी से आपका पूरा विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र दिन रात बिगड़ा रहता है । व आप रोगोन्मुख हो जाते हो । अतः इसको गहराई से समझो । छोटी छोटी बातों पर चोरी कुटिलता व होने वाली कब्ज व गैस व उससे जन्में अनेको रोगों में इसके सम्बन्ध को समझो ।
अपरिग्रह - इस दुनिया में दो ही चीज हैं - या तो योग । या भोग । जीवन के लिये नितांत आवश्यक वस्तुओं के पीछे भागना भोग नहीं । पर उससे अधिक व कभी कभी आवश्यक न होने पर भी पागलों की तरह पडोसी मित्रों को दिखाने होड़ में शरीर को या परिवार को कष्ट में डालकर चीजों के पीछे भागना । आपकी नींद उडा कर रोग दे देता है । यह अवश्य है कि जिस चीज कि प्राप्ति के पीछे भागोगे । वो मिलेगी ही । पर क्या लाभ ? जब स्वयं ही रोगी बन बैठो । कुछ दिन जीवन का व जीवन के मूल उदेश्य का चिंतन करो । फिर अपरिग्रह का पालन करते हुए आनंद की जिन्दगी बिताओ । अपरिग्रह - अर्थात अनावश्यक वस्तुओं का त्याग । आवश्कता हो । तो हवाई जहाज लो । नहीं तो साइकल या पैदल ही चलो । धन भोग की दौङ में रासायनिक अवस्था हिली रहती ही व संयमित जीवन नहीं मिलता ।
बृह्मचर्य - इसका अर्थ है । बेमतलब अपनी वीर्य तत्व की रसायन उर्जा को व्यय न करो । एक निश्चित अवधि में जल्द विध्या/रोजगार सीख विवाह करो । व तब इन रसायनों का थोडा संयम से आनन्द लो । व संतान बनाओ । यह अपने आप में बड़ी आवश्यक शक्ति है । जिसके गलत व्यय से । अधिक व्यय से । हड्डियों में कमजोरी । तेज का अभाव । रोगी शरीर । संतान न होने की सम्भावना । वैवाहिक जीवन में निराशा व अंदरूनी रासायनिक व्यवस्था में लगातार असंतुलन रहेगा । जो कई रोग दे सकता है । बृह्मचर्य वैधानिक सम्बन्धो को ही कहता है । क्योंकि अवैध सम्बन्ध होने पर शरीर की रासायनिक व्यवस्था लगातार बिगड़ी रहती है । व आज यह अनेकों नर नारियों में अनेकों रोग दे रही है । व्यर्थ में किसी का काम चिंतन न करो । क्यों ? जैसे ही काम चिंतन करोगे । आपकी रासायनिक क्रिया उत्तेजित होकर रसायन व्यय की ओर जाएगी । अतः काम विचार सिर्फ व सिर्फ तब ही उत्पन्न करो । जब वैधानिक साथी साथ हो ।
गर्भ निरोधक से सतीत्व पतिव्रता नष्ट होने में बड़ी सहायता मिली है । पतिव्रता होना अपने में आरोग्य की शक्ति है । पर आज सब भटके हैं । स्टार मूवीज देख कर । एक ओर जिसका पति बिगड़ता है । उस नारी में उसके पति के दिए इस तनाव से थयोरोइड-गांठे-कैंसर-सिस्ट बनते हैं । बच्चे नही होते हैं । जिससे उस नर का ही धन नारी के रोगोपचार में जाता है । व गलत संबंधो में झूठ बोलने से उस नर में भी रासायनिक क्रियायें गडबड होकर तनाव देकर उसे भी रोगी करती हैं । दूसरी ओर वो बाहरी नारी गर्भ निरोधक खा खाकर अनेकों रोग ले रही है । इसीलिए समर्थ हो । तो दो विवाह कर लो ? यह धर्म विज्ञान कहता है ( हालांकि जिस घर में दो तीन नारी हों । उसके परिणाम देखे ही हैं सबने । अतः राम की तरह एक नारी ही धर्म है ) और कुकर्म कर सच बोला । तो तलाक युक्त जीवन का तनाव भरा आनंद जो नशे की ओर ले जाता है ।
बृह्मचर्य का अर्थ है - विवाह तक काम से दूरी । फिर बेमतलब असमय मन में काम विचार उत्पन न करो । रासायनिक साम्य बनाये रखो । विवाहोपरांत संयमित काम हो ।
बृह्मचर्य का अर्थ कुंवारा रहना नहीं है । व योग साधना के लिए कोई भी कुंवारा न रहे । न घर छोड़ कहीं अन्य जगह जाकर रहे । यह मान लो कि घर में रहकर ईश्वर को पाना ही मेरा तप है । अतः यदि जीवन साथी साथ नहीं । तो काम उत्पन ही न करो । व ऐसे दर्शन - कारको से दूर रहो ।
नियम - शौच । संतोष । तप । स्वाध्याय । ईश्वर प्राणीध्यान ?
शौच - इसका अर्थ है । शरीर की अंदर व बाहर से सफाई । वाणी व मन की सफाई । अच्छी भाषा का उपयोग । इस नियम से वाणी में दिव्यता आती है ।
संतोष - यह बड़ा गुणकारी है । व जीवन में आरोग्य में इसका बड़ा योगदान है । यह अपने आप में एक प्राणायाम सा है ? अति संतोषी एक खूब प्राणायाम करने वाले भोगी योग साधक से अधिक स्वस्थ मिलेगा । संतोष न होने पर रोगों के बनने की परमाणु स्तर पर अनुभूति है मुझे । मन अशांत तो पथरी भी बन जाती है ।
तप - अपने जीवन को अपने कर्म को एक तपस्या घोषित कर दो । व फिर जो भी कठिनाई आयें । कैसी भी । उसे इस तपस्या का हिस्सा मानो । इससे स्वास्थ्य में बड़ा लाभ होगा ।
स्वाध्याय - अपना अध्ययन करो - मैं कौन हूँ ? मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है ?
ईश्वर प्रानिध्यान - यानि वो ईश्वर क्या है ? जिसे हम पूजते हैं । इसका चिन्तन करो ।
जिस दिन आप स्वाध्याय व ईश्वर प्रानिध्यान जान जाते हो । आपकी समाधि सक्रिय हो जाती है । यह समाधि खुली आँखों से होती है ? यह ज्ञान योग की समाधी है ।
इस समाधि के सक्रिय होने के बाद योगी यम नियम से पार चला जाता है । वो आँख बंद ध्यान करे । न करे । उसकी समाधि सतत होती है । लोग पूछते हैं - बाबा कहाँ ध्यान धारणा समाधि लगाते दीखते हैं ? इसका कारण ही यह है । जिसकी ज्ञान से समाधि लगी । उसे आँख बंद नही करनी पडती । और जो आँख बंदकर लगाते हैं । व ईश्वर चिन्तन नहीं करते । वो मात्र मष्तिष्क को विद्युत की आपूर्ति रोक आराम देते हैं । उन्हें सत्य नही मिलता । लाभ अवश्य होता है ।
हालाँकि यह बताया जाता है कि - यम नियम करो । फिर आसन प्राणायाम करो । फिर ज्ञान इन्द्रियों से बाहर के भोगों का त्याग कर ( प्रत्याहार ) कर मन को किसी एक उर्जा क्षेत्र पर एकाग्र करो । नासाग्र पर एकाग्र करो । फिर यह एकाग्रता लम्बी होगी । तो यह धारणा है । यानि किसी एक ऊर्जा क्षेत्र पर लम्बी एकाग्रता धारणा है । व यह और लम्बी हुई । तो ध्यान हुआ । व यह ही और लम्बी हुई तो समाधि है ।
आप कोशिश कीजिये । ध्यान इसे बोला जाता है । पर यह ध्यान नहीं है । जो ज्ञान योग था । वह ज्ञान ही ध्यान है ? वह ज्ञान ही प्रत्याहार का कारण स्वतः बनता है । वह ज्ञान ही धारणा बनती है । व वह ज्ञान ही ध्यान बनता है । व वह ज्ञान ही समाधि बन जाता है । बिन उस ज्ञान के चित्त स्थिर नही होता । चित्त की क्लिष्ट ( बार बार दुःख देने वाली वृत्तियाँ - यादें । स्मृतियाँ । अतृप्त इच्छाएं ) वृत्तियों का नाश नहीं होता । जब यह ज्ञान सक्रिय हो जाता है । तब प्रत्याहार । धारणा । ध्यान सब जल्द ही हो जाते हैं ।
अब सब उस ज्ञान को पा नहीं पाते । अतः जान भी नहीं पाते कि ये खेल क्या है ? व प्राणायाम से वापस लौट जाते हैं । व आगे सब गोल गोल जलेबी हो जाती है । असली खेल इस रोज के ज्ञान योग चिंतन से ही शुरु होता है । व इसी से ईश्वर प्राप्ति है । समाधि ईश्वर प्राप्ति है । व यह ही विलीनता है । यह ही मोक्ष है । यह ही पाना था ।
इसके बाद यम नियम प्रत्याहार गुरु सब भूल जाओ । क्योंकि मोक्ष / समाधि में आप ईश्वर हो । रोज व्यायाम आसन प्राणायाम करते हुए । नए जन्म के साथ अलग जीवन का आनंद लो ।
यहाँ तक बाबा ने बताया । सो निशुल्क है । ज्ञान योग - आप स्वयं चिंतन करें । अवश्य पायेंगे । व गीता की मदद लें । ध्यान रहे । आप बृह्म हो । व आपको आपको ही पाना था ।
यह योग दुनिया का सबसे बड़ा विज्ञान है ? यह ज्ञान योग से उत्पन्न है ? व इसमें ज्ञान योग समाहित है ।
ज्ञान योग में - राज योग । ध्यान योग । सांख्य योग समाहित है ?? सारे योगों की उत्पत्ति ज्ञान योग से ही है ? ज्ञान योग का अर्थ है - ईश्वर जो कि विज्ञान है को विज्ञान से पाना ।
ज्ञान योग अर्थात विज्ञान से ईश्वर को जानने के बाद उपलब्ध सारे विज्ञान को स्वास्थ्य की और मोड़ना । जिस युग में प्राणायाम की खोज की गयी । अनुलोम विलोम की खोज की गयी । अरे किसी झोपडी में बैठे योगी को सपना थोड़े ही आएगा कि - इङा पिंगला सुष्मणा तीन नदियाँ , नाड़ियाँ नासा व मष्तिष्क से होती हुई जाती हैं । व अनुलोम विलोम करने से विद्युत सुष्मणा में जायेगा । उस समय इससे भी विकसित विज्ञान था । व इस रहस्य को उस युग के विज्ञान से खोजा गया । व प्राण को चिकित्सक बनाया गया । इस सुष्मना नाडी के द्वारा व अनुलोम विलोम को हर व्यक्ति ने सबसे कारगर फ़ोकट वैध के रूप में अपनाया । उस समय भी विज्ञान था । व दाह संस्कार की मान्यताओं के विपरीत शरीर फाड़ फाड़ कर देखे गये । जो अनेको ऋषियों ने मरणोपरांत अनुसंधान हेतु दान दिए । तब अंदर देखने से नाडी विज्ञान समझ आया । व मष्तिष्क से नीचे जाती तीनों नाड़ियो के खेल व ऊर्जा चक्रों की खोज हुई । फिर महर्षि पतंजलि ने रोगों के अनेको कारकों को एक सूत्र में पिरोया । देखो मान लो । आप प्राणायाम करते हो । तो प्राणायाम से रासायनिक साम्य की प्राप्ति होगी ही । पर दिन भर आपने गाली गलौज । कोसना । ईर्ष्या । द्वेष । लोभ । काम झूठ में बिताये । तो प्राणायाम भी क्या करेगा ? लाभ हुआ - 100 ग्राम । और दिन भर खर्च किया 4 किलो । तो रोग तो बनेंगे ही । अतः पतंजली ने सारे सूत्रों को एक साथ पिरो के प्रस्तुत किया । व हो सकता है । 200 करोड़ वर्ष पुरानी संस्कृति में यह न जाने कब खोज गया हो । व पतंजली ने इसे पुनः जीवित किया हो । जैसे आज बाबा रामदेव ने किया । तप व्यर्थ नहीं जाता । हज़ारों वर्षों बाद भी पतंजलि जीवित हु्ये । एक अवतार सा ही है ।
तो अष्टांग योग अपने जीवन के सत्य को पाने के लिए सबसे वैज्ञानिक तरीका है । यह जीते जी आरोग्य भी देता है । व गिरते पड़ते मोक्ष समझ आ ही जाता है ।
ईश्वर के ज्ञान के बाद प्राण शक्ति से बड़ी कोई शक्ति नहीं । व प्राण धारण होते हैं - हीमोग्लोबिन से । अतः आहार में हीमोग्लोबिन बनाये रखो । महिलाएं विशेष ध्यान दें - हीमोग्लोबिन पर । मासिक में रक्त व्यय से उनके अनेकों रोग इस व मन के बुरे भावो से ही हैं । हो सके । तो छोटा हवन बिन पंडित अवश्य करें ।
सामान्य श्वास लेने में आप 500 मिलीलीटर ऑक्सीजन ही अंदर लेते हो । पर जब भस्त्रिका या अनुलोम विलोम करते हो । तो 4 लीटर से 6 लीटर तक ऑक्सीजन ले लेते हो एक बार में । यह ऑक्सीजन अनेकों प्रकार से रोग नष्ट कर आरोग्य तनाव रहित जीवन अच्छी नींद देती है ।
जब आप सतत लम्बा अनुलोम विलोम करते हो । तो विद्युत आवेश सुषुम्णा नाडी में प्रवाहित होकर शरीर के सारे उर्जा चक्रों को सक्रिय कर वहाँ के रासायनिक असंतुलन को दूर कर आपकी कुण्डलिनी को जाग्रत कर देता है । इसे देर तक लगातार करना इसीलिए आवश्यक है । कुण्डलिनी जागरण में कोई लट्टू या बल्ब नहीं जलते भीतर ? व न इसके जाग्रत होने पर मानव उड़ने लगता है । यह लम्बे अनुलोम विलोम से सभी चक्रों की शुद्धि है । व आरोग्य है । ज्ञान योग से चित्त ईश्वरीय करने पर कुण्डलिनी अति शीघ्र जाग्रत होती है । आप इसे लोगों के बहकावे में आके अन्यथा न लेना । यह मात्र एक भौतिकी व रसायन की एक साम्य अवस्था है ।
योगी को बस अपना योग यहीं रोक देना होता है ( कुण्डलिनी जागरण -आरोग्य - दिव्य कर्म - मोक्ष ) इससे आगे के योग जीवन के उद्देश्य को नष्ट करते हैं ।
तो आदर्श दिनचर्या व अष्टांग योग का समावेश जीवन में पति पत्नी बच्चे सब करो । रोग बढ़ रहे हैं । व आलूपैथी जानलेवा है । धन से भी व धन देकर तन से भी । कलयुग में बिन अष्टांग योग गुजारा नहीं । आयुर्वेद अभी बाबा प्रयास कर तो रहे हैं । पर एक कुशल वैध बनने में वर्षों लगते हैं ।
साभार - https://www.facebook.com/Ashtu18
*******
अब समझो । अष्टांग योग - दुनिया का सबसे बड़ा योग । जिन्हें सुखी परिवार चाहिए । वो दोनों दम्पत्ति इसे अवश्य अपनाएं । व कम धन में दिव्य आनंदित जीवन जीते हुए मोक्ष प्राप्त करें । योग का अर्थ है - ईश्वर को पाना । व यह मानव जन्म मात्र ईश्वर को पाने को ही है ।
ईश्वर को पाने के तीन मार्ग हैं - ज्ञान मार्ग - ज्ञान योग । कर्म मार्ग - कर्म योग । भक्ति मार्ग - भक्ति योग ।
अष्टांग योग - एक समय के अति विकसित विज्ञान से उत्पन्न है । यह ज्ञान योग से उत्पन्न है।
यम । नियम । आसन । प्राणायाम । प्रत्याहार । धारणा । ध्यान । समाधि ।
यम - सत्य । अहिंसा । अस्तेय । अपरिग्रह । बृह्मचर्य ।
नियम - शौच । संतोष । तप । स्वाध्याय । ईश्वर प्राणीध्यान ?
यम - नियम एक सुखी जीवन का विज्ञान है । जिसे सुखी जीवन चाहिए । वो इन्हें अवश्य अपनाए । ये चित्त विज्ञान से जुड़े हैं । एक एक नियम चित्त से होते हुए पूरे शरीर की रासायनिक व विद्युत चुम्बकीय प्रणाली से जुडा है । किसी भी नियम से हटने पर रोग दुःख बनने शुरू हो जाते हैं । अष्टांग योग सिद्ध करने हेतु ये बड़े आवश्यक हैं । जिन्हें अष्टांग योग शीघ्र पाना है । वो इसे दृण निश्चय से पालन करें । बाकी लोग दोनों समय मात्र अनुलोम विलोम ही करते जाओ । धीरे धीरे अनुलोम विलोम कुछ वर्षो में अष्टांग योग आप में स्थापित कर देगा ।
इसमें स्वाध्याय + ईश्वर प्राणीध्यान = ज्ञान योग है ।
स्वाध्याय = यानी मैं कौन हूँ ? क्या हूँ ? यहाँ क्या कर रहा हूँ ? मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है ?
ईश्वर प्राणीध्यान = ईश्वर को समझना । ईश्वर को पाना ।
यह ज्ञान योग इस योग का मूल है । व पाना इसे ही मुक्ति। मोक्ष । समाधि है । बाकी सब यम नियम प्राणायाम तो देह चित्त शुद्धि हेतु थे । जीवन को आरोग्य देने हेतु थे । यदि कोई ज्ञान योग से ईश्वर पा ले । तो स्वतः यम
नियम प्रत्याहार धारणा समाधि सक्रिय हो जाते हैं । फिर इन नियमों की ओर नहीं भागना होता । बस मात्र प्राणायाम व्यायाम आदि ही नित्य कर्म रह जाते हैं । ज्ञानमार्गी आँख बंदकर समाधि नहीं लगाते मिलेंगे । हाँ चिन्तन हेतु कर सकते हैं ।
प्रारम्भ में प्राणायाम करते जाओ । व ईश्वर का चिंतन करते जाओ । अपना व ईश्वरीय अध्ययन करते जाओ । फिर अपने आप ध्यान सक्रिय हो । सीधे समाधि में आ जाओगे । यह समाधि सतत मोक्ष है ।
यम नियम की वैज्ञानिकता संक्षेप में ।
यम = सत्य । अहिंसा । अस्तेय । अपरिग्रह । बृह्मचर्य ।
सत्य - सत्य का पालन इतना प्रभावी है कि सत्यवादी जो कह दे । होकर रहता है । यही पूर्व के ऋषियों के श्राप या वरदान का रहस्य था । सत्य से हटने पर आपके रोगी होने । कब्ज होने । पाचन या अन्य बीमारियों की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं । झूठ बोलने से हृदय गति बढने से कुछ अलग विकार जन्म ले सकते हैं । कभी किसी "अत्यधिक हितकर" हो । तो झूठ भी बोल लेना । नहीं तो सच बोलने से जितना आपका रासायनिक संतुलन नहीं बनेगा । उससे ज्यादा उस सच से हुए अनिष्ट से दुःख से जीवन भर रासायनिक संतुलन बिगड़ा रह सकता है । पर यह झूठ अपने लाभ के लिए नहीं । किसी की जान बचाने को ही हो । तब आपको अपराध बोध नही होगा । रासायनिक संतुलन नहीं बिगड़ेगा ।
अहिंसा - सब कुछ ईश्वर है । अतः नितांत आवश्यक होने पर ही मांसाहार करो । व हिंसा 84 प्रकार की है । जहाँ तक हो सके । न करो । फिर भी जो हो जाए । तो मन में पाप बोध न रखो । घर परिवार में भी मन की अंदर भी हिंसा न करो । मन में हिंसा से भी कुछ अति महीन रक्त वाहिकाएं मष्तिष्क में फट जाती हैं । अतः हिंसा का भोग तुरंत व सबसे पहले स्वयं को मिलता है । अत्यावश्यक या निरंतर पाप होने पर हिंसा आगे के जीवन में अहिंसा की प्राप्ति है । अतः तब अवश्य करो । पर शांत होकर ।
अस्तेय - अर्थात चोरी । किसी भी प्रकार की चोरी से आपका पूरा विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र दिन रात बिगड़ा रहता है । व आप रोगोन्मुख हो जाते हो । अतः इसको गहराई से समझो । छोटी छोटी बातों पर चोरी कुटिलता व होने वाली कब्ज व गैस व उससे जन्में अनेको रोगों में इसके सम्बन्ध को समझो ।
अपरिग्रह - इस दुनिया में दो ही चीज हैं - या तो योग । या भोग । जीवन के लिये नितांत आवश्यक वस्तुओं के पीछे भागना भोग नहीं । पर उससे अधिक व कभी कभी आवश्यक न होने पर भी पागलों की तरह पडोसी मित्रों को दिखाने होड़ में शरीर को या परिवार को कष्ट में डालकर चीजों के पीछे भागना । आपकी नींद उडा कर रोग दे देता है । यह अवश्य है कि जिस चीज कि प्राप्ति के पीछे भागोगे । वो मिलेगी ही । पर क्या लाभ ? जब स्वयं ही रोगी बन बैठो । कुछ दिन जीवन का व जीवन के मूल उदेश्य का चिंतन करो । फिर अपरिग्रह का पालन करते हुए आनंद की जिन्दगी बिताओ । अपरिग्रह - अर्थात अनावश्यक वस्तुओं का त्याग । आवश्कता हो । तो हवाई जहाज लो । नहीं तो साइकल या पैदल ही चलो । धन भोग की दौङ में रासायनिक अवस्था हिली रहती ही व संयमित जीवन नहीं मिलता ।
बृह्मचर्य - इसका अर्थ है । बेमतलब अपनी वीर्य तत्व की रसायन उर्जा को व्यय न करो । एक निश्चित अवधि में जल्द विध्या/रोजगार सीख विवाह करो । व तब इन रसायनों का थोडा संयम से आनन्द लो । व संतान बनाओ । यह अपने आप में बड़ी आवश्यक शक्ति है । जिसके गलत व्यय से । अधिक व्यय से । हड्डियों में कमजोरी । तेज का अभाव । रोगी शरीर । संतान न होने की सम्भावना । वैवाहिक जीवन में निराशा व अंदरूनी रासायनिक व्यवस्था में लगातार असंतुलन रहेगा । जो कई रोग दे सकता है । बृह्मचर्य वैधानिक सम्बन्धो को ही कहता है । क्योंकि अवैध सम्बन्ध होने पर शरीर की रासायनिक व्यवस्था लगातार बिगड़ी रहती है । व आज यह अनेकों नर नारियों में अनेकों रोग दे रही है । व्यर्थ में किसी का काम चिंतन न करो । क्यों ? जैसे ही काम चिंतन करोगे । आपकी रासायनिक क्रिया उत्तेजित होकर रसायन व्यय की ओर जाएगी । अतः काम विचार सिर्फ व सिर्फ तब ही उत्पन्न करो । जब वैधानिक साथी साथ हो ।
गर्भ निरोधक से सतीत्व पतिव्रता नष्ट होने में बड़ी सहायता मिली है । पतिव्रता होना अपने में आरोग्य की शक्ति है । पर आज सब भटके हैं । स्टार मूवीज देख कर । एक ओर जिसका पति बिगड़ता है । उस नारी में उसके पति के दिए इस तनाव से थयोरोइड-गांठे-कैंसर-सिस्ट बनते हैं । बच्चे नही होते हैं । जिससे उस नर का ही धन नारी के रोगोपचार में जाता है । व गलत संबंधो में झूठ बोलने से उस नर में भी रासायनिक क्रियायें गडबड होकर तनाव देकर उसे भी रोगी करती हैं । दूसरी ओर वो बाहरी नारी गर्भ निरोधक खा खाकर अनेकों रोग ले रही है । इसीलिए समर्थ हो । तो दो विवाह कर लो ? यह धर्म विज्ञान कहता है ( हालांकि जिस घर में दो तीन नारी हों । उसके परिणाम देखे ही हैं सबने । अतः राम की तरह एक नारी ही धर्म है ) और कुकर्म कर सच बोला । तो तलाक युक्त जीवन का तनाव भरा आनंद जो नशे की ओर ले जाता है ।
बृह्मचर्य का अर्थ है - विवाह तक काम से दूरी । फिर बेमतलब असमय मन में काम विचार उत्पन न करो । रासायनिक साम्य बनाये रखो । विवाहोपरांत संयमित काम हो ।
बृह्मचर्य का अर्थ कुंवारा रहना नहीं है । व योग साधना के लिए कोई भी कुंवारा न रहे । न घर छोड़ कहीं अन्य जगह जाकर रहे । यह मान लो कि घर में रहकर ईश्वर को पाना ही मेरा तप है । अतः यदि जीवन साथी साथ नहीं । तो काम उत्पन ही न करो । व ऐसे दर्शन - कारको से दूर रहो ।
नियम - शौच । संतोष । तप । स्वाध्याय । ईश्वर प्राणीध्यान ?
शौच - इसका अर्थ है । शरीर की अंदर व बाहर से सफाई । वाणी व मन की सफाई । अच्छी भाषा का उपयोग । इस नियम से वाणी में दिव्यता आती है ।
संतोष - यह बड़ा गुणकारी है । व जीवन में आरोग्य में इसका बड़ा योगदान है । यह अपने आप में एक प्राणायाम सा है ? अति संतोषी एक खूब प्राणायाम करने वाले भोगी योग साधक से अधिक स्वस्थ मिलेगा । संतोष न होने पर रोगों के बनने की परमाणु स्तर पर अनुभूति है मुझे । मन अशांत तो पथरी भी बन जाती है ।
तप - अपने जीवन को अपने कर्म को एक तपस्या घोषित कर दो । व फिर जो भी कठिनाई आयें । कैसी भी । उसे इस तपस्या का हिस्सा मानो । इससे स्वास्थ्य में बड़ा लाभ होगा ।
स्वाध्याय - अपना अध्ययन करो - मैं कौन हूँ ? मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है ?
ईश्वर प्रानिध्यान - यानि वो ईश्वर क्या है ? जिसे हम पूजते हैं । इसका चिन्तन करो ।
जिस दिन आप स्वाध्याय व ईश्वर प्रानिध्यान जान जाते हो । आपकी समाधि सक्रिय हो जाती है । यह समाधि खुली आँखों से होती है ? यह ज्ञान योग की समाधी है ।
इस समाधि के सक्रिय होने के बाद योगी यम नियम से पार चला जाता है । वो आँख बंद ध्यान करे । न करे । उसकी समाधि सतत होती है । लोग पूछते हैं - बाबा कहाँ ध्यान धारणा समाधि लगाते दीखते हैं ? इसका कारण ही यह है । जिसकी ज्ञान से समाधि लगी । उसे आँख बंद नही करनी पडती । और जो आँख बंदकर लगाते हैं । व ईश्वर चिन्तन नहीं करते । वो मात्र मष्तिष्क को विद्युत की आपूर्ति रोक आराम देते हैं । उन्हें सत्य नही मिलता । लाभ अवश्य होता है ।
हालाँकि यह बताया जाता है कि - यम नियम करो । फिर आसन प्राणायाम करो । फिर ज्ञान इन्द्रियों से बाहर के भोगों का त्याग कर ( प्रत्याहार ) कर मन को किसी एक उर्जा क्षेत्र पर एकाग्र करो । नासाग्र पर एकाग्र करो । फिर यह एकाग्रता लम्बी होगी । तो यह धारणा है । यानि किसी एक ऊर्जा क्षेत्र पर लम्बी एकाग्रता धारणा है । व यह और लम्बी हुई । तो ध्यान हुआ । व यह ही और लम्बी हुई तो समाधि है ।
आप कोशिश कीजिये । ध्यान इसे बोला जाता है । पर यह ध्यान नहीं है । जो ज्ञान योग था । वह ज्ञान ही ध्यान है ? वह ज्ञान ही प्रत्याहार का कारण स्वतः बनता है । वह ज्ञान ही धारणा बनती है । व वह ज्ञान ही ध्यान बनता है । व वह ज्ञान ही समाधि बन जाता है । बिन उस ज्ञान के चित्त स्थिर नही होता । चित्त की क्लिष्ट ( बार बार दुःख देने वाली वृत्तियाँ - यादें । स्मृतियाँ । अतृप्त इच्छाएं ) वृत्तियों का नाश नहीं होता । जब यह ज्ञान सक्रिय हो जाता है । तब प्रत्याहार । धारणा । ध्यान सब जल्द ही हो जाते हैं ।
अब सब उस ज्ञान को पा नहीं पाते । अतः जान भी नहीं पाते कि ये खेल क्या है ? व प्राणायाम से वापस लौट जाते हैं । व आगे सब गोल गोल जलेबी हो जाती है । असली खेल इस रोज के ज्ञान योग चिंतन से ही शुरु होता है । व इसी से ईश्वर प्राप्ति है । समाधि ईश्वर प्राप्ति है । व यह ही विलीनता है । यह ही मोक्ष है । यह ही पाना था ।
इसके बाद यम नियम प्रत्याहार गुरु सब भूल जाओ । क्योंकि मोक्ष / समाधि में आप ईश्वर हो । रोज व्यायाम आसन प्राणायाम करते हुए । नए जन्म के साथ अलग जीवन का आनंद लो ।
यहाँ तक बाबा ने बताया । सो निशुल्क है । ज्ञान योग - आप स्वयं चिंतन करें । अवश्य पायेंगे । व गीता की मदद लें । ध्यान रहे । आप बृह्म हो । व आपको आपको ही पाना था ।
यह योग दुनिया का सबसे बड़ा विज्ञान है ? यह ज्ञान योग से उत्पन्न है ? व इसमें ज्ञान योग समाहित है ।
ज्ञान योग में - राज योग । ध्यान योग । सांख्य योग समाहित है ?? सारे योगों की उत्पत्ति ज्ञान योग से ही है ? ज्ञान योग का अर्थ है - ईश्वर जो कि विज्ञान है को विज्ञान से पाना ।
ज्ञान योग अर्थात विज्ञान से ईश्वर को जानने के बाद उपलब्ध सारे विज्ञान को स्वास्थ्य की और मोड़ना । जिस युग में प्राणायाम की खोज की गयी । अनुलोम विलोम की खोज की गयी । अरे किसी झोपडी में बैठे योगी को सपना थोड़े ही आएगा कि - इङा पिंगला सुष्मणा तीन नदियाँ , नाड़ियाँ नासा व मष्तिष्क से होती हुई जाती हैं । व अनुलोम विलोम करने से विद्युत सुष्मणा में जायेगा । उस समय इससे भी विकसित विज्ञान था । व इस रहस्य को उस युग के विज्ञान से खोजा गया । व प्राण को चिकित्सक बनाया गया । इस सुष्मना नाडी के द्वारा व अनुलोम विलोम को हर व्यक्ति ने सबसे कारगर फ़ोकट वैध के रूप में अपनाया । उस समय भी विज्ञान था । व दाह संस्कार की मान्यताओं के विपरीत शरीर फाड़ फाड़ कर देखे गये । जो अनेको ऋषियों ने मरणोपरांत अनुसंधान हेतु दान दिए । तब अंदर देखने से नाडी विज्ञान समझ आया । व मष्तिष्क से नीचे जाती तीनों नाड़ियो के खेल व ऊर्जा चक्रों की खोज हुई । फिर महर्षि पतंजलि ने रोगों के अनेको कारकों को एक सूत्र में पिरोया । देखो मान लो । आप प्राणायाम करते हो । तो प्राणायाम से रासायनिक साम्य की प्राप्ति होगी ही । पर दिन भर आपने गाली गलौज । कोसना । ईर्ष्या । द्वेष । लोभ । काम झूठ में बिताये । तो प्राणायाम भी क्या करेगा ? लाभ हुआ - 100 ग्राम । और दिन भर खर्च किया 4 किलो । तो रोग तो बनेंगे ही । अतः पतंजली ने सारे सूत्रों को एक साथ पिरो के प्रस्तुत किया । व हो सकता है । 200 करोड़ वर्ष पुरानी संस्कृति में यह न जाने कब खोज गया हो । व पतंजली ने इसे पुनः जीवित किया हो । जैसे आज बाबा रामदेव ने किया । तप व्यर्थ नहीं जाता । हज़ारों वर्षों बाद भी पतंजलि जीवित हु्ये । एक अवतार सा ही है ।
तो अष्टांग योग अपने जीवन के सत्य को पाने के लिए सबसे वैज्ञानिक तरीका है । यह जीते जी आरोग्य भी देता है । व गिरते पड़ते मोक्ष समझ आ ही जाता है ।
ईश्वर के ज्ञान के बाद प्राण शक्ति से बड़ी कोई शक्ति नहीं । व प्राण धारण होते हैं - हीमोग्लोबिन से । अतः आहार में हीमोग्लोबिन बनाये रखो । महिलाएं विशेष ध्यान दें - हीमोग्लोबिन पर । मासिक में रक्त व्यय से उनके अनेकों रोग इस व मन के बुरे भावो से ही हैं । हो सके । तो छोटा हवन बिन पंडित अवश्य करें ।
सामान्य श्वास लेने में आप 500 मिलीलीटर ऑक्सीजन ही अंदर लेते हो । पर जब भस्त्रिका या अनुलोम विलोम करते हो । तो 4 लीटर से 6 लीटर तक ऑक्सीजन ले लेते हो एक बार में । यह ऑक्सीजन अनेकों प्रकार से रोग नष्ट कर आरोग्य तनाव रहित जीवन अच्छी नींद देती है ।
जब आप सतत लम्बा अनुलोम विलोम करते हो । तो विद्युत आवेश सुषुम्णा नाडी में प्रवाहित होकर शरीर के सारे उर्जा चक्रों को सक्रिय कर वहाँ के रासायनिक असंतुलन को दूर कर आपकी कुण्डलिनी को जाग्रत कर देता है । इसे देर तक लगातार करना इसीलिए आवश्यक है । कुण्डलिनी जागरण में कोई लट्टू या बल्ब नहीं जलते भीतर ? व न इसके जाग्रत होने पर मानव उड़ने लगता है । यह लम्बे अनुलोम विलोम से सभी चक्रों की शुद्धि है । व आरोग्य है । ज्ञान योग से चित्त ईश्वरीय करने पर कुण्डलिनी अति शीघ्र जाग्रत होती है । आप इसे लोगों के बहकावे में आके अन्यथा न लेना । यह मात्र एक भौतिकी व रसायन की एक साम्य अवस्था है ।
योगी को बस अपना योग यहीं रोक देना होता है ( कुण्डलिनी जागरण -आरोग्य - दिव्य कर्म - मोक्ष ) इससे आगे के योग जीवन के उद्देश्य को नष्ट करते हैं ।
तो आदर्श दिनचर्या व अष्टांग योग का समावेश जीवन में पति पत्नी बच्चे सब करो । रोग बढ़ रहे हैं । व आलूपैथी जानलेवा है । धन से भी व धन देकर तन से भी । कलयुग में बिन अष्टांग योग गुजारा नहीं । आयुर्वेद अभी बाबा प्रयास कर तो रहे हैं । पर एक कुशल वैध बनने में वर्षों लगते हैं ।
साभार - https://www.facebook.com/Ashtu18
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें