31 अगस्त 2013

खायकै मूतै सूतै बाउं कायकौं वैद बसाबै गाउं

लोक कहावतों में स्वास्थय चर्चा - संसार में उसी व्यक्ति को पूर्ण रूप से
सुखी कहा जा सकता है । जो कि शरीर से निरोगी हो । ओर निरोगी रहने के लिए यह आवश्यक है कि बच्चों को उनकी बाल्यावस्था ही से स्वस्थ रखने का ध्यान रखा जाए । उनको संयमी बनाया जाए । उनको ऐसी शिक्षा दी जाए । जिससे कि वे स्वस्थ रहने की ओर अपना विशेष ध्यान दे सकें ।
माना कि समय की तेज रफ्तार के आगे आज शहरी और ग्रामीण समाज का अन्तर धीरे धीरे मिटता जा रहा है । लेकिन इतने पर भी आपको अभी भी गाँवों में बसते उस समाज की झाँकी देखने को मिल सकती है । जो कि युग परम्परा से श्रवण ज्ञान द्वारा अपने स्वास्थय का ख्याल रखता आया है । यह ज्ञान बहुत कुछ उन्हे अपनी लोक कहावतों में मिल जाता है । आप देख सकते हैं कि लोक कहावतों के ज्ञान के कारण ही आज भी अधिकांश ग्रामीण समाज शहरी समाज की अपेक्षा कहीं अधिक स्वस्थ एवं निरोग मिलेगा ।
लोक कहावतों में प्रात:काल से लेकर रात्रि तक की विविध अनुभूतियां मिला करती हैं । कोई भी उनके अनुसार आचरण करके देख ले । उनकी सत्यता की गहरी छाप ह्रदय पर पडकर ही रहेगी । उदाहरणार्थ यहाँ कुछ कहावतें दी जा रही हैं ।

प्रात:काल खटिया से उठकै । पियै तुरन्तै पानी ।
कबहूँ घर मा वैद न अइहै । बात घाघ कै जानि ।
आँखों में त्रिफला । दांतों में नोन । भूखा राखै । चौथा कोन ।
अर्थात - त्रिफला..जो कि नेत्रों हेतु ज्योति वर्द्धक एवं उनकी अन्य विभिन्न प्रकार के रोगों से बचाव हेतु रामबाण औषधि मानी जाती है ।
जो व्यक्ति त्रिफला के जल से आँखों का प्रक्षालन करता है । नमक ( में सरसों का तेल मिलाकर ) से दाँत साफ़ करता है । और सप्ताह में एक बार उपवास रखता है । तो इन तीनों विधियों के अतिरिक्त उसे अन्य चौथा कार्य करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है । सिर्फ इन तीन उपायों से ही वो अपने पूरे शरीर को निरोग रख सकता है ।
मोटी दतुअन जो करै । भूनी हर्र चबाय ।
दूद बयारी जो करै । उन घर वैद न जाय ।
अर्थात - उपरोक्त की ही भांति ही यहाँ भी शरीर रक्षार्थ तीन विधियाँ बताई गई हैं । नीम, कीकर इत्यादि कि मोटी लकडी ( दातुन ) को चबाकर करने से दाँत मजबूत होते हैं । भूनी हुई हर्र ( हरड ) के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है । और कच्चे दूध से नेत्र प्रक्षालन ( नेत्रों को धोना ) करने से नेत्रों की ज्योति बढती है । जो व्यक्ति इन तीन कार्यों को करता है । उसे फिर किसी चिकित्सक की कोई आवश्यकता ही नहीं रहती ।
प्रात:काल करै अस्नाना । रोग दोष एकौ नई आना ।
अर्थात - जो प्रात:काल नित्य कर्म से निवृत होकर स्नान कर लेते हैं । वे सदैव निरोग रहते हैं ।
खाय कै मूतै, सूतै बाउं । काय कौं वैद बसाबै गाउं ।
अर्थात - भोजन करने के पश्चात जो मूत्र त्याग करते हैं । और बायीं करवट लेकर सोते हैं । उनको यह चिन्ता नहीं रहती कि उनके गाँव में वैद्य डाक्टर रहता है । या नहीं ।
वर्ष के बारह महीनों में कब कम भोजन करना हितकर है । क्या क्या खाद्य पदार्थ किस किस मास में वर्जित हैं । यह ज्ञान भी कहावतों में
हैं । यथा -
सावन ब्यारो जब तब कीजे । भादौं बाकौ नाम न लीजे ।
क्वारं मास के दो पखवारे । जतन जतन से काटौ प्यारे ।
अर्थात - श्रावण मास में रात्रि का भोजन कभी कभी ही करना चाहिए । भाद्रपद में रात्रि का भोजन करना ही नहीं चाहिए । आश्विन मास के
दोनों ही पक्ष सतर्कता पूर्वक व्यतीत करने चाहिए । अन्यथा अस्वस्थ हो जाने की आशंका हो ही जाती है ।
क्वार करेला, चेतै गुड । भादौं में जो मूली खाय ।
पैसा खोवै गांठ का । रोग झकोरा खाय ।
अर्थात - अश्विन मास में जो करेला । चैत्र मास में गुड । और भाद्रपद मास में मूली का सेवन करते हैं । वें गाँठ का पैसा गंवाकर उससे रोग ही अपने पास में बुलाते हैं ।
कातिक मास, दिवाली जलाय । जै बार चाबै, तै बार खाय ।
अर्थात - कार्तिक मास में दीपावली की पूजा करने के पश्चात ऐसी ऋतु आ जाती है कि भोजन का परिपाक भली प्रकार से होने लगता है । उन
दिनों इच्छानुसार भोजन जितनी बार चाहें कर लिया करें । सब खाया पिया अच्छी तरह से शरीर को लगेगा । और चेहरे पर कांति रहेगी ।
चैते गुड, वैसाखे तेल । जेठे पंथ, अषाडै बेल ।
साउन साग, भादौं दही । क्वांर करेला, कातिक मही ।
अगहन जीरा, पूसै धना । माघै मिसरी, फागुन चना ।
जो यह बारह देई बचाय । ता घर वैद कभऊं नइं जाए ।
अर्थात - चैत्र मास में गुड का सेवन करना अहितकर है । क्योंकि नया गुड शरीर में कफ कारक होता है । और इस मास में प्रकृति के अनुसार कफ की बहुलता रहती है । वैशाख में गर्मी की प्रखरता रहती है । तेल की प्रकृति गर्म होती है । इसलिए हानिकारक है । ज्येष्ठ मास में लू
लपट का दौर रहता है । अतएव यात्राएं वर्जित हैं । आषाढ मास में बेल का सेवन नहीं करना चाहिए । क्योंकि वह अनुकूल नहीं पडता । पेट
की अग्नि को मंद कर देता है. सावन में वायु का प्रकोप रहता है । साग वायुकारक हैं । अतएव प्रतिकूल रहता हैं । भाद्रपद में वर्षा होती रहती है । और दही पित्त को कुपित करता है । आश्विन में करेला पककर पित्त कारक हो जाता है । अतएव हानिकर सिद्ध होता है ।
कार्तिक मास, जो कि वर्षा और शीत ऋतु का संधि स्थल है । उसमें पित्त का कोप और कफ का संचय होता है । और मही ( मट्ठा ) से शरीर में
कफ बढता है । इसलिए त्याज्य है । अगहन ( मार्गशीष ) में सर्दी अधिक होती है । जीरा की तासीर भी शीतकारक है । इसलिए इससे
बचना चाहिए । पौष मास में धान । माघ में मिसरी । और फाल्गुन में चना । शरीर के लिए प्रतिकूल बैठते हैं । इनको ध्यान में रखकर जो मनुष्य खानपान में सावधानी रखते हैं । वे सदैव निरोग रहते हैं ।
उनको कभी डाक्टर वैद्य की आवश्यकता नहीं पडती ।
साभार चक्रपाणि त्रिपाठी फ़ेसबुक पेज से  
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Because you identify yourself with the body you think the Guru, too, to be some body. You are not the body, nor is the Guru. You are the Self and so is the Guru - Ramana Maharshi
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रूपये का अवमूल्यन और सोना गिरवी रखने के बारे में - 
www.secretsofthefed.com/ending-the-masquerade-the
http://www.amarujala.com/news/samachar/business/personal-finance/banks-buy-gold-from-citizens-to-ease-rupee-crisis/
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मुसलमान जब अल्पसंख्यक होते हैं । तो भाई बनकर रहते हैं । और बहुसंख्यक होते ही ये कसाई बन जाते हैं । इतिहास गवाह है कि जिस भी देश में मुसलमान बहुसंख्यक हो गए । वो देश आतंकवाद, जिहाद, दंगे, और बम धमाकों की भेंट चढ़ गया । पाकिस्तान, बांग्लादेश, सऊदी अरब , इराक, अफगानिस्तान, सीरिया जैसे देश इसका जीता जागता उदहारण हैं । आज इन देशों में हिन्दू, बौद्ध, यहूदी धर्म समाप्त हो चुके हैं । या तो उन्हें मार दिया गया । या जबरन धर्म परिवर्तन करा दिया गया । और महिलाओं को बलात्कार के बाद यातना पूर्वक मार दिया गया ।
और यही स्थिति अगर हिंदुस्तान की रही । तो यहाँ भी वही हालत हो जाएगी । असम , कश्मीर और किश्तवाड़ में हम ये देख भी चुके हैं ।
जागो हिन्दू जागो ।
साभार HINDUTWA UNITES INDIA फ़ेसबुक पेज

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