

ओशो रजनीश पोस्ट कपिल जी मैं वाकई INFLUENCE हो गया । पर ।बढ़िया प्रस्तुति । इसे भी पढ़कर कुछ कहे । ( आपने भी कभी तो जीवन में बनाये होंगे नियम ? )oshotheone.blogspot.com ।
बेनामी पोस्ट कुछ गूढ रहस्य की बातें...? 2 पर Maharaj ji । Pranam ।Main aapse yah jaanna chahta hun ki kya ek kabirpanthi mandir mein ja sakata hai ? kya ek brahaman kabirpanthi ban jane ke baad bhi devtaon ki pooja-archna kar sakta hai ? kya kabir saheb pooja-paath dainik dincharya mein bhagvan ya kisi devi ya devta ki pooja karte the? sansay mein hun. Kripa kar ke jald aur sahi uttar batayein । aapke uttar ki prateeksha mein । rajesh ।
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प्रिय राजेश जी । हमारे पास आने वाले लोगों में से ज्यादातर लोगों के ऐसे ही संशय और ऐसे ही शंका के सवाल होते हैं । सबसे पहले आपको कबीरपंथी का ही मतलब बताता हूं । जिसको कबीरपंथ कहते हैं । वो वास्तव में संत मत sant mat है । और ये सिर्फ़ सतगुरु कबीर साहेब का ही नहीं हैं । रैदास । दादू । पलटू । मीरा । नानक आदि अनेक संत हुये हैं । जिनका यही मत था । अब उल्लेखनीय बात जो में आपको बताता हूं । केवल संत मत sant mat ही परमात्मा की भक्ति और ग्यान और आत्म दर्शन बताता है । बाकी किसी ग्यान की पहुंच परमात्मा तक नहीं है । इसलिये इसको किसी भी पंथ का नाम देना एकदम गलत है । क्योंकि पंथ कहते ही परमात्मा के एक निश्चित दायरे में आने का आभास होता है । जबकि वह दायरे से मुक्त है । असीम है । इसको मत संत मत sant mat कहा जाता है । अन्य भगवान या देवता आदि जिनकी सीमाएं होती हैं । उनके लिये पंथ शब्द का प्रयोग होता है । क्योंकि उनके लिये रास्ता निर्धारित है । नियम निर्धारित हैं । पर परमात्मा जो सबका मालिक है । इन सब बातों से परे है । अन्य मतों में पंथ उचित शब्द है । उसी की देखादेखी लोगों ने सतगुरु कबीर साहेब के साथ पंथ शब्द जोड दिया । अब आईये मन्दिर की बात करते हैं । मन्दिर किसने बनाया । इंसान ने । मूर्ति किसने बनायी इंसान ने । एक पत्थर को लेकर मूर्ति कारीगर ने उसे पांव आदि के नीचे दबाते हुये छेनी हथोडे से खुरचकर कान । आंख । नाक । आदि बना डाले । उसे रंग से पोत पातकर मन्दिर में लगा दिया । अब बडा कौन हुआ । मूर्ति । या मूर्ति बनाने वाला ? एक शेर की मूर्ती शेर वाले कार्य कर सकती है ? मूर्ति पहचान मात्र है । उन लोगों के लिये । जिन्होंने शेर नहीं देखा । जिन्होंने देवता नहीं देखा । कि देखो वो ऐसा है ? और उसके कार्य यह हैं । आपका घर भी ईंट गारे से बना है । आपका मन्दिर भी ईंट गारे से बना है । फ़र्क सिर्फ़ आपके भाव का है । आप एक को घर मान बैठे । दूसरे को मन्दिर मान बैठे । आप अपने मानने से ही सब कुछ तय करते हैं । तो भी आप उससे बडे हुये । 1 ( सबसे बडा आत्मदेव ) 3 ( बृह्मा । विष्णु । महेश ) 33 ( शरीर के 5 तत्व के देवता । 25 प्रकृतियों के देवता । और 3 गुण । इस प्रकार ये तैतीस हुये । ) 33 करोड । शरीर के तैतीस करोड व्यवहार हैं । जिनसे तैतीस करोड आवृतियां बनती हैं । जिनका उनके महत्व के अनुसार छोटा बडा देवता नियुक्त है । इसलिये 33 करोड देवता । यानी एक पूर्ण मनुष्य का व्यवहार । तैतीस करोड आवृतियां पर अधिकार या उन्हें जानने वाला एक पूर्ण मनुष्य । जैसे श्रीकृष्ण दिव्य साधना DIVY SADHNA । लेकिन राम नहीं । 33 करोड देवता की अपेक्षा 33 देवता प्रमुख हैं । क्योंकि नये पैदा हुये बच्चे से प्राण निकलने की सीमा पर पहुंचे व्यक्ति को इनसे हर समय काम होता है । 33 देवता की अपेक्षा 3 ( बृह्मा । विष्णु । महेश ) का महत्व ज्यादा है । लेकिन ये तीन भी तभी हैं जब आप 1 ( सबसे बडा आत्मदेव स्वरूप दर्शन..आत्मस्थिति ) स्वयं हो । तो आप सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो । बशर्ते अपने आपको आत्म दर्शन जान लो तो । और यही जानने के लिये आदमी संत मत sant mat में आता है । महामन्त्र को अनुसंधान करता है । तुलसी के मानस में लिखा है । मन्त्र परम लघु जासु बस विधि हरि हर सुर सर्व । मदमत्त गजराज को अंकुश कर ले खर्ब । पहले लाइन देखे । उस लघु ढाई अक्षर के मंत्र के वश में बृह्मा । विष्णु । महेश और सभी देवता है । अब आईये ब्राह्मण की बात करते हैं । आप ये बात स्वयं जानते होंगे । कि पंडित से ब्राह्मण बडा होता है ? पंडित का वास्तविक अर्थ विद्वान और ब्राह्मण का वास्तविक अर्थ ब्रह्म और अणि यानी ब्रह्म में स्थित ब्रह्म में रहने वाला । ब्रह्म को जानने वाला । ब्रह्मलोक तक जिसकी पहुंच हो । जो ब्रह्म को तात्विक स्तर पर जान गया हो दिव्य साधना DIVY SADHNA । वह असली ब्राह्मण है । इसलिये आप सिर्फ़ जन्म से ब्राह्मण हो । वास्तविक अर्थ में ब्राह्मण नहीं हो । अब बात ये है कि यदि आपने वाकई सच्चे गुरु से ग्यान या नाम उपदेश लिया है । तो संत मत sant mat ब्रह्म से आगे की बात करता है । यह पारब्रह्म को ले जाने वाला है । ध्यान रखें । यदि आपको माला फ़ेरना । और वाणी से मंत्र जपना बताया गया है । यदि नाम आपके अन्दर प्रकट नहीं हुआ । यदि दिव्य प्रकाश उपदेश हो जाने के बाद भी आपने नहीं देखा । तो आपको दीक्षा उपदेश से दीक्षित करने वाला फ़र्जी है । जलते हुये दिये से ही दूसरा दिया जलाया जा सकता है आत्म दर्शन । बुझे हुये से नहीं ? वैसे मैं आपको सुझाव दूंगा । इन सब बातों की खुली पोल आप जानना चाहते हैं । तो मात्र 100 रु मूल्य की पुस्तक । अनुराग सागर । एक बार पढ लें । आपके तमाम संशय का समाधान हो जायेगा । अब मैं आपके प्रश्नों के उत्तर देता हूं । सतगुरु कबीर साहेब जो थे । जिस स्थिति में थे । वहां कोई देवी देवता है ही नहीं । वहां स्त्री पुरुष भी नहीं है । सिर्फ़ आत्मदेव है । सिर्फ़ सबसे परे परमात्मा है । ये सब देवता स्वयं चाहते हैं कि एक बार उन्हें मनुष्य जन्म मिल जाय । फ़िर सदगुरु की प्राप्ति हो जाय । तो वो असली आनन्द अविनाशी स्थिति को पा सकें स्वरूप दर्शन..आत्मस्थिति । बृह्मा । विष्णु । महेश जैसे देवता सच्चे संत के दर्शन हो जाने पर खुद को धन्य समझते हैं । कोटि प्रणाम करते हैं । तो सतगुरु कबीर साहेब भला उनकी पूजा किस आधार पर करेंगे ? अब रही बात आपके मन्दिर जाने या पूजा करने की । तो अभी मैंने ऊपर बताया ही है कि देवता आपके जैसा शरीर और संत मत sant mat का खुद ग्यान पाकर यही सुमरन करना चाहते है । बडे भाग मानुष तन पावा । सुर दुर्लभ सद ग्रन्थन गावा । यानी मानुष तन देवताओं के लिये भी दुर्लभ है ? यानी आप ये पूजा वगैरह करो तो । और न करो तो । ये अर्थहीन है । इनका कोई रिजल्ट नहीं हैं । यदि और भी संतुष्टि पूर्ण जबाब चाहें तो कृपया श्री महाराज जी सतगुरु श्री शिवानन्द जी महाराज...परमहँस से फ़ोन न 0 9639892934 पर बात कर सकते हैं ।