चार हजार युगों का एक कल्प होता है । ये ब्रह्मा का एक दिन माना जाता है । कृतयुग यानी सतयुग । त्रेता । द्वापर । कलियुग । ये चार युग होते हैं । सतयुग में धर्म के चार पाद होते हैं । सत्य । दान । तप । दया । सतयुग में मनुष्य़ की आयु चार हजार वर्ष होती होती है । सतयुग के अंत में धर्म पालन की दृष्टि से क्षत्रिय उच्च स्थिति में होते हैं ।
त्रेतायुग में धर्म के तीन पाद रह जाते हैं ।सत्य । दान । दया । यानी तप का लोप हो जाता है । मनुष्य की आयु एक हजार वर्ष की होती है । इस काल के मनुष्य यग्य परायण होते हैं । इस काल में क्षत्रियों द्वारा राक्षसों का संहार होता है ।
द्वापर में धर्म के दो पाद रह जाते हैं । सत्य । दान । दया का लोप हो जाता है । इस युग में लोगों की आयु चार सौ वर्ष होती है । इसी युग में विष्नु ने वेदव्यास के रूप में । एक ही वेद को चार भागों में विभक्त किया । तथा अपने प्रमुख शिष्यों को इनका अध्ययन कराया । ऋग्वेद की शिक्षा । पैल नामक शिष्य को । सामवेद की शिक्षा । जैमिन को । अथर्ववेद की । सुमन्तु को । यजुर्वेद की । महामुनि वैशम्पायन को । दी ।
वेदांगो तथा पुराणों का अध्ययन सूत जी को कराया । ये अठारह प्रमुख पुराण निम्न है । पुराण के पांच लक्षण होते है । सर्ग । प्रतिसर्ग । वंश । मन्वन्तर । वंशानुचरित । ब्रह्म । पदम ।विष्नु । शिव । भागवत । भविष्य । नारद । स्कन्द । लिंग । वराह । मार्कण्डेय । अग्नि । ब्रह्म वैवर्त । कूर्म । मत्स्य । गरुण । वायु । ब्रह्माण्ड पुराण ।ये अठारह पुराण है ।
कलियुग में धर्म का एक ही पैर रह जाता है । मनुष्य में सत रज तम ये तीनों गुण दिखायी देने लगते हैं । काल की प्रेरणा से ये गुण मन में उत्पन्न होते हैं और परिवर्तित होते रहते हैं ।
प्रलय -- चार हजार युगों के बीतने पर ब्रह्मा का नैमत्तिक प्रलयकाल होता है । तब कल्प के अंत में सौ वर्षों तक भयंकर बरसात होती है । आकाश में प्रचंड रूप से तपने वाले सात सूर्य उदय हो जाते हैं । इनकी भयंकर तपन से सम्पूर्ण जलराशि सूख जाती है । भूर्लोक । भुवर्लोक । स्वर्लोक । महर्लोक । जनलोक । तथा पाताल लोक की समस्त चराचर सृष्टि जलकर नष्ट हो जाती है । इसके बाद संवर्तक नाम का मेघ अन्य मेघों के साथ सौ वर्षों तक बरसता है । वायु अत्यन्त तेज गति से सौ वर्ष तक चलती है । ये नैमत्तिक प्रलय होती है ।
प्राकृतिक प्रलय - ब्रह्मा के सौ वर्ष बीत जाने पर । ब्रह्मा और ब्रह्मलोक में स्थिति प्राणी श्री हरि में लीन हो जाते हैं । उस समय बरसात करने वाले सूर्यों से सम्पन्न मेघ होते है । जो सौ बरस तक मूसलाधार बरसते हैं । सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड जल से भर जाता है । और भारी जलराशि के कारण ब्रह्माण्ड फ़ट जाता है । ब्रह्मा की आयु पूर्ण होते ही सब जल में लय हो जाता है । कुछ भी शेष नहीं रहता । जीवों को आधार देने वाली ये प्रथ्वी उस अगाध जलराशि में डूब जाती है । उस समय । जल अग्नि में । अग्नि वायु में । वायु आकाश में । और आकाश महतत्व में प्रविष्ट हो जाता है । महतत्व प्रकृति में । प्रकृति पुरुष में लीन हो जाती है ।
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" जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । "
" सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । "
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