
लेकिन पूर्वजन्म के ग्यानी होने की वजह से वो शीघ्र ही जान गये कि हिरण के बच्चे में घोर आसक्ति रखकर उन्होने भारी गलती की है । जो इस योनि में उन्हें आना पङा । अतः ग्यानियों वाला आचरण अपनाते हुये उन्होनें खाना पीना छोङ दिया । क्योंकि अब इस देह से छुटकारा पाने का यही एकमात्र तरीका था । फ़िर प्यास से अत्यन्त व्याकुल होने पर । जब वह निकट के सरोवर में जल पीने गये । तो कमजोरी के कारण वहीं गिर पङे । और उनका देहान्त हो गया । फ़िर इनका जन्म मनुष्य योनि में हुआ । क्योंकि इनको हरदम याद रहा कि मैं एक मनुष्य ही था । दूसरे जन्म में भरत जी एक अच्छे परिवार में पैदा हुये थे । और बेहद हष्टपुष्ट शरीर के मालिक थे । लेकिन संसार के किसी काम में इनकी कोई रुचि नहीं थी । जबकि घरवाले चाहते थे कि ये काम में रुचि लें ।
एक दो बार घरवालों ने जबरन इनका मन संसार के कामों में लगाना चाहा । पर भरत जी से वो कार्य बिगङ ही गया । तब हारकर इनके पिता ने इन्हें खेती की रखवाली पर लगा दिया । भरत जी ने वह कार्य भी ठीक से नहीं किया । और सारी फ़सल चिङियों को चुगा देते थे ।
वे खेत की रखवाली के वजाय कहते । राम की चिरैया । राम का खेत । चुग लो चिरैया । भर भर पेट । तब घरवालों ने ये सोचकर कि इसका सुधरना मुश्किल है । इन्हें मार पीटकर घर से निकाल दिया । भरत जी यों ही रास्ते आदि में मस्ती में पङे रहते थे ।
उन्हीं दिनों की बात हैं । एक दिन राजा रहूगण पालकी में बैठकर काली देवी को मनुष्य की बलि चङाने जा रहा था । तभी रास्ते में अचानक एक कहार की तबियत खराब हो गयी । और वह पालकी उठाने में असमर्थ हो गया ।
तब दूसरे आदमी की तलाश में राजा के कर्मचारियों की नजर भरत जी पर गयी । और उन्हें राजा की पालकी उठाने का आदेश दे दिया गया । भरत जी ने बिना किसी प्रतिवाद के वह बात मान ली । और पालकी उठा के चलने लगे । परन्तु एक तो वह शरीर के मोटे थे । दूसरी बात वो चलते समय चींटियों को बचाकर चल रहे थे । और रास्ते में जहाँ चींटियों का झुन्ड आता था । भरत जी कूद जाते थे । इससे पालकी डगमगा जाती थी । इस पर राजा ने बिगङकर कहा । कौन मूरख है । जो पालकी को ढंग से नहीं चला रहा है ? सेवकों ने तत्काल उत्तर दिया । महाराज ये नया कहार गङबङ कर रहा है । दुबारा फ़िर ऐसा ही हुआ । तो राजा ने पालकी से उतरकर भरत जी के चांटा मार दिया ।
भरत जी ने कहा । राजा तू मुझे कभी चांटा नहीं मार सकता । ये तो तूने मेरे स्थूल शरीर को चांटा मारा है ?? और ये मैं नहीं हूँ ?? राजा ये उत्तर सुनकर चकित रह गया । खैर..किसी तरह पालकी देवी के मन्दिर पहुँची । और होनी की बात वहाँ भी बलि हेतु लाये गये युवक की तबियत बिगङ गयी । और बलि के नियमानुसार अस्वस्थ इंसान की बलि नहीं दी जा सकती थी । तब फ़िर लोगों का ध्यान भरत जी की और गया । और इन्हीं की बलि चङाने का निश्चय हुआ ।
भरत जी ने अब भी कोई प्रतिवाद नहीं किया । और इनको स्नान आदि कराके फ़ूल आदि के हार पहना के बलि स्थल पर लाकर खङा कर दिया गया । लेकिन जैसे ही राजा ने खडग ( कटार ) उठाकर बलि देनी चाही । काली देवी तत्काल प्रकट हो गयी । और बोली । मूर्ख राजा । तू ये क्या करने जा रहा है ?? ये महान शक्ति है । तेरा तो सर्वनाश होगा ही । मैं भी रसातल को चली जाऊँगी । राजा ये दृश्य देखकर थरथर काँपने लगा । और भरत जी के पैरों पर गिरकर रोने लगा ।
चौथे महल पुरुष एक स्वामी । जीव अंश वह अंतरजामी । ईश्वर अंश जीव अविनाशी । चेतन अमल सहज सुखराशी । करम प्रधान विश्व रचि राखा । जो जस करे सो तस फ़ल चाखा । पसु पक्षी सुर नर असुर । जलचर कीट पतंग । सबही उतपति करम की । सहजो नाना रंग । धनवन्ते सब ही दुखी । निर्धन है दुख रूप । साध सुखी सहजो कहे । पायो भेद अनूप ।
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