ये बङा साधारण सा लगने वाला प्रश्न लगता अवश्य है पर है नहीं . आप विचार करे कि मन शब्द का प्रयोग पूरे विश्व में होता है .लेकिन ये कोई नहीं जानता कि मन आखिर है कहाँ किसको मन कहा जाता है .हमारे शरीर में उसकी क्या और कहाँ स्थिति है .अध्यात्म चर्चा में कई बार मेरे साथ यह शीर्षक बहस और विवाद का विषय रहा है .जब मैं यह बात कहता हूँ तो लोग अक्सर सिर की तरफ़ इशारा करते हैं और कोई कोई दिमाग या मस्तिष्क को मन बताते हैं आप ठंडे दिमाग से सोचे तो यह दोंनों ही बात गलत हैं और ये एक आश्चर्यजनक सत्य है
कि वर्तमान मेडीकल सांइस में जितनी खोज हो चुकी है उसके आधार पर कोई भी अभी भी नहीं बता सकता कि मन आखिर है क्या और हैं कहाँ .हांलाकि इस तरह की बात कहना उचित नहीं है फ़िर भी आगामी सौ साल बाद , हजार साल बाद भी ये प्रश्न का उत्तर ज्यों का त्यों ही रहेगा .
आज मान लीजिये कि नासा के प्रोजेक्ट देख कर संसार हैरत में है और नासा का सबसे बङा मिशन है . ऐसे किसी दूसरे ग्रह की तलाश जिस पर किसी भी प्रकार का जीवन हो या फ़िर हमारी तरह की मनुष्य सभ्यता वहाँ निवास करती हो . इस पर अरबों डालर का खर्च आता है .अब जरा आप बहुत लोकप्रिय पुस्तक तुलसी की रामायण का उत्तरकाण्ड खोलकर देंखे तो नासा की तमाम खोज तमाम प्रयास आपको बचकाने लगेगें . या फ़िर आपको तुलसी झूठे लगेगें . इसमें तुलसी ने काकभुसुन्डी के माध्यम से अनेको स्रष्टियों का वर्णन किया है . अगर आप तुलसी को झूठा मानते है तो आपका धर्म आपका पूरा जीवन असत्य हो जाता है . यहाँ एक तर्क दिया जा सकता है कि भाई काकभुसुन्डी ने ही तो देखा अन्य किसी ने नहीं देखा..जरा ठहरिये..आप ने संतमत की पुस्तकें शायद अभीतक नहीं देखी . जो बङी सरलता से कह रही है कि शंकर का तीसरा नेत्र खुल सकता है तो आपका भी खुल सकता है . अर्जुन अगर विराट रूप देख सकता है तो अन्य भी देख सकते हैं अर्जुन में कोई अलग से तो खासियत थी नहीं..वेद कह रहे हैं कि आप उसको ( परमात्मा ) को नहीं जान सकते हैं . संत कह रहे हैं कि परमात्मा को जानने से सरल कोई काम ही नहीं हैं तुमने उसको कठिन बना रखा है..ये भी सत्य है कि बेहद सरल होते हुये भी कोई बिरला ही पहुँच पाता है क्योंकि तुमने खुद को खुद ही कैद कर रखा है..
तो वास्तव में मन है पर वहाँ कहीं नहीं जहाँ तुम समझते हो उसी तरह जैसे हवा है पर कभी उसको देखा नही जा सकता है.. संतमत के जानकार मुझे क्षमा करें क्योंकि वे भलीभांति जानते है हवा को देखना अत्यन्त सरल है लेकिन मेरी ये बात आम लोंगों के लिये है खास लोगों के लिये नहीं .
अगर आपको उपरोक्त लेख उलझा हुआ सा लगा हो तो आप संत मत की किताबें पढें . विशेष तौर पर कबीर को पढें अग्यात और अलौकिक रहस्य आपके सामने खुली किताब की तरह से होंगे . यही नहीं जीवन के रहस्य खुलेंगे सो खुलेंगे ही आप के अपने रहस्य खुलने लगेंगे .
वाल्मीक नारद घट जोनी , निज निज मुखन कही निज होनी .
ज्यों तिल माँही तेल है ज्यों चकमक में आग ,तेरा साईं तुझ में है जाग सके तो जाग
अगर आपको उपरोक्त लेख उलझा हुआ सा लगा हो तो आप संत मत की किताबें पढें . विशेष तौर पर कबीर को पढें अग्यात और अलौकिक रहस्य आपके सामने खुली किताब की तरह से होंगे . यही नहीं जीवन के रहस्य खुलेंगे सो खुलेंगे ही आप के अपने रहस्य खुलने लगेंगे .
वाल्मीक नारद घट जोनी , निज निज मुखन कही निज होनी .
ज्यों तिल माँही तेल है ज्यों चकमक में आग ,तेरा साईं तुझ में है जाग सके तो जाग
ज्यों नैनन में पूतरी यों खालिक घट माँहि ,मूरख लोग न जानहीं बाहर ढूँढन जाँहि
जा कारन जग ढूँढया , सो तो घट ही माँहि ,परदा दिया भरम का ताते सूझे नाहिं
दूध मध्य ज्यों घीव है मिहंदी माँही रंग, जतन बिना निकसे नहीं चरनदास सो ढंग
जो जाने या भेद कूँ और करे परवेस , सो अविनासी होत है छूटे सकल कलेस
जा कारन जग ढूँढया , सो तो घट ही माँहि ,परदा दिया भरम का ताते सूझे नाहिं
दूध मध्य ज्यों घीव है मिहंदी माँही रंग, जतन बिना निकसे नहीं चरनदास सो ढंग
जो जाने या भेद कूँ और करे परवेस , सो अविनासी होत है छूटे सकल कलेस
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