मजे की बात यह देखो कि कई विकसित देशों में जनशक्ति और उसका सत्ता में दखल समलैंगिकता और लिव इन रिलेशनशिप जैसे घोर असामाजिक और घोर अप्राकृतिक चीजें अधिकार के नाम पर दिला देता है । और भारतीय गुलाम मानसिकता अपने साधारण मूल अधिकारों की तरफ़ भी नहीं सोचती । जिसकी वजह से बेहद कष्ट और असुविधा भी हो - राजीव कुलश्रेष्ठ ।
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पूरी पोस्ट नहीं पड़ सकते । तो यहाँ Click करें ।
http://www.youtube.com/watch?v=0fo5tDYfMi8
हिंदुस्तान की न्याय व्यवस्था में काम करने वाले जो एडवोकेट मित्र हैं । उनसे माफ़ी मांगते हुए आप सबसे ये पूछता हूँ कि - क्या आप जानते हैं यह काला कोट पहन के अदालत में क्यों जाते हैं ? क्या काले को छोड़ के दूसरा रंग नहीं है भारत में ? सफ़ेद नहीं है । नीला नहीं है । पीला नहीं है । हरा नहीं है ? और कोई रंग ही नहीं है । काला ही कोट पहनना है । वो भी उस देश की न्यायपालिका में जहाँ तापमान 45 डिग्री हो । तो 45 तापमान जिस देश में रहता हो । वहाँ के वकील काला कोट पहन के बहस करें । तो बहस के समय जो पसीना आता है । वो और गर्मी के कारण जो पसीना आता है वो । तरबतर होते जायें । और उनके कोट पर पसीने से सफ़ेद सफ़ेद दाग पड़ जायें । पीछे कालर पर और कोट को उतारते ही इतनी बदबू आये कि कोई तीन मीटर दूर खिसक जाये । लेकिन फिर भी कोट का रंग नही बदलेंगे । क्योंकि ये अंग्रेजों का दिया हुआ है ।
आपको मालूम है । अंग्रेजो की अदालत में काला कोट पहन के न्यायपालिका के लोग बैठा करते थे । और उनके यहाँ स्वाभाविक है । क्योंकि उनके यहाँ न्यूनतम -40 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान होता है । जो भयंकर ठण्ड है । तो इतनी ठण्ड वाली देश में काला कोट ही पहनना पड़ेगा । क्योंकि वो गर्मी देता है । ऊष्मा का अच्छा अवशोषक है । अन्दर की गर्मी को बाहर नहीं निकलने देता । और बाहर से गर्मी को खींच के अन्दर डालता है । इसीलिए ठण्ड वाले देश के लोग काला कोट पहन के अदालत में बहस करें । तो समझ में आता है । पर हिंदुस्तान के गरम देश के लोग काला कोट पहन के बहस करें । 1947 के पहले होता था । समझ में आता है । पर 1947 के बाद भी चल रहा है ? हमारी बार काउन्सिल को इतनी समझ नहीं है क्या ? कि इस छोटी सी बात को ठीक कर लें । बदल लें । सुप्रीम कोर्ट की बार काउन्सिल है । हाईकोर्ट की बार काउन्सिल है । डिस्ट्रिक्ट कोर्ट की बार काउन्सिल है । सभी बार काउन्सिल मिल के एक मिनट में फैसला कर सकते हैं कि कल से हम ये काला कोर्ट नहीं पहनेंगे ।
वो तो भला हो #हिंदुस्तान में कुछ लोगों का । हमारे देश पहले अंग्रेज न्यायाधीश हुआ करते थे । तो #सर पे टोपा पहन के बैठते थे । उसमें #नकली बाल होते थे । आज़ादी के बाद 40-50 साल तक टोपा लगा कर यहाँ बहुत सारे जज बैठते रहे हैं इस देश की अदालत में । अभी यहाँ क्या विचित्रता है कि काला कोट पहन लिया । ऊपर से काला पेंट पहन लिया । बो लगा लिया । सब एकदम टाइट कर दिया । हवा अन्दर बिलकुल न जाये । फिर मांग करते है कि सभी कोर्ट में एयर कंडीशनर होना चाहिए । ये कोट उतार के फेंक दो न । एयर कंडीशन की जरुरत क्या है ? और उसके ऊपर एक गाउन और लाद लेते हैं । वो नीचे तक लहंगा फैलता हुआ । ऐसी विचित्रताएं इस देश में आज़ादी के 60 साल बाद भी दिखाई दे रहा है ।
अंग्रेजों की गुलामी की एक भी निशानी को आज़ादी के 65 साल में हमने मिटाया नहीं । सबको संभाल के रखा है ।
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हिंदुस्तान की न्याय व्यवस्था में काम करने वाले जो एडवोकेट मित्र हैं । उनसे माफ़ी मांगते हुए आप सबसे ये पूछता हूँ कि - क्या आप जानते हैं यह काला कोट पहन के अदालत में क्यों जाते हैं ? क्या काले को छोड़ के दूसरा रंग नहीं है भारत में ? सफ़ेद नहीं है । नीला नहीं है । पीला नहीं है । हरा नहीं है ? और कोई रंग ही नहीं है । काला ही कोट पहनना है । वो भी उस देश की न्यायपालिका में जहाँ तापमान 45 डिग्री हो । तो 45 तापमान जिस देश में रहता हो । वहाँ के वकील काला कोट पहन के बहस करें । तो बहस के समय जो पसीना आता है । वो और गर्मी के कारण जो पसीना आता है वो । तरबतर होते जायें । और उनके कोट पर पसीने से सफ़ेद सफ़ेद दाग पड़ जायें । पीछे कालर पर और कोट को उतारते ही इतनी बदबू आये कि कोई तीन मीटर दूर खिसक जाये । लेकिन फिर भी कोट का रंग नही बदलेंगे । क्योंकि ये अंग्रेजों का दिया हुआ है ।
आपको मालूम है । अंग्रेजो की अदालत में काला कोट पहन के न्यायपालिका के लोग बैठा करते थे । और उनके यहाँ स्वाभाविक है । क्योंकि उनके यहाँ न्यूनतम -40 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान होता है । जो भयंकर ठण्ड है । तो इतनी ठण्ड वाली देश में काला कोट ही पहनना पड़ेगा । क्योंकि वो गर्मी देता है । ऊष्मा का अच्छा अवशोषक है । अन्दर की गर्मी को बाहर नहीं निकलने देता । और बाहर से गर्मी को खींच के अन्दर डालता है । इसीलिए ठण्ड वाले देश के लोग काला कोट पहन के अदालत में बहस करें । तो समझ में आता है । पर हिंदुस्तान के गरम देश के लोग काला कोट पहन के बहस करें । 1947 के पहले होता था । समझ में आता है । पर 1947 के बाद भी चल रहा है ? हमारी बार काउन्सिल को इतनी समझ नहीं है क्या ? कि इस छोटी सी बात को ठीक कर लें । बदल लें । सुप्रीम कोर्ट की बार काउन्सिल है । हाईकोर्ट की बार काउन्सिल है । डिस्ट्रिक्ट कोर्ट की बार काउन्सिल है । सभी बार काउन्सिल मिल के एक मिनट में फैसला कर सकते हैं कि कल से हम ये काला कोर्ट नहीं पहनेंगे ।
वो तो भला हो #हिंदुस्तान में कुछ लोगों का । हमारे देश पहले अंग्रेज न्यायाधीश हुआ करते थे । तो #सर पे टोपा पहन के बैठते थे । उसमें #नकली बाल होते थे । आज़ादी के बाद 40-50 साल तक टोपा लगा कर यहाँ बहुत सारे जज बैठते रहे हैं इस देश की अदालत में । अभी यहाँ क्या विचित्रता है कि काला कोट पहन लिया । ऊपर से काला पेंट पहन लिया । बो लगा लिया । सब एकदम टाइट कर दिया । हवा अन्दर बिलकुल न जाये । फिर मांग करते है कि सभी कोर्ट में एयर कंडीशनर होना चाहिए । ये कोट उतार के फेंक दो न । एयर कंडीशन की जरुरत क्या है ? और उसके ऊपर एक गाउन और लाद लेते हैं । वो नीचे तक लहंगा फैलता हुआ । ऐसी विचित्रताएं इस देश में आज़ादी के 60 साल बाद भी दिखाई दे रहा है ।
अंग्रेजों की गुलामी की एक भी निशानी को आज़ादी के 65 साल में हमने मिटाया नहीं । सबको संभाल के रखा है ।
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