राजीव जी ! आपने " वैवाहिक जीवन समस्या सहायता : के ब्लाग में एक बार फ़िर छींटाकशी रामकृष्ण जी के काली उपासना पर करके अपनी पंथ दुराग्रहता उजागर कर दी । दादा ! इतना झूठ मत बोलो । रामकृष्ण जी का पूरा वांगमय साहित्य पढो । अपने जीवन के अन्त काल तक वे काली माँ के अनन्य उपासक थे । स्वामी विवेकानन्द जी को माँ काली से मानने को कहा । तब विवेकानन्द जी अपनी पर्सनल बात भूलकर शक्ति भक्ति भटके लोगों को ज्ञान द्वारा सही रास्ते पर लाने का आशीर्वाद माँगा । काली माँ की कृपा से विवेकानन्द जी जगत वन्दनीय बन गये । तोता पुरी जी ने उन्हें वेदान्त ज्ञान दिया था । राजीव जी ! ऐसी बेहूदी छींटाकशी से आप हमारी नजरों से गिर जाओगे । रोमन में लिखा हमारे एक नियमित पाठक का पत्र ।
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इससे पहले कि मैं इस शंका का कोई जबाब दे पाता । आपने आचार्य ( शब्द पर विशेष ध्यान दें । इसके अर्थ पर भी विशेष गौर करें ) श्रीराम शर्मा के बारे में यह ( मगर एकदम झूठी ) जानकारी देकर मुझे बेहद हैरत में डाल दिया । आपसे किसने कहा । ये झूठ ? या उन्होंने खुद किसी पुस्तक में लिखा ऐसा झूठ । महा झूठ । या किसी प्रचार षडयंत्र के तहत फ़ैलाया गया ये झूठ ।
देखिये ये महा झूठ - मेरे गुरुदेव पं.श्रीराम शर्मा जी आगरा के आंवलखेङा के जाये जन्में " Light of india " से नवाजे गये । और उनका अब से पहले तीसरा - जन्म सन्त कबीर । दूसरे में सन्त रामदास जी । और बाद में रामकृष्ण परमहँस के रूप में आये थे । जिन्होंने 3200 पुस्तकें बिज्ञान और अध्यात्म पर लिखी ।
पर क्या आप जानते हैं - कबीर का आज तक कभी जन्म ही नहीं हुआ । यह सचखण्ड की प्रतिनिधि आत्मा हमेशा प्रकट होती है । और कोई 1 खास आत्मा ही इस नाम से नहीं आती । इस उपाधि योग्य कोई भी आत्मा भेजी जा सकती है ।
रामदास और रामकृष्ण इसी 5 भूत के मल मूत्र शरीर के साथ जन्में थे । और बाद में अपने पूर्व जन्मों के पुण्य फ़ल आधार पर आत्म ज्ञान को प्राप्त हुये । इसके बाद इनका भी लिंग योनि संयोगी जन्म होना नियम अनुसार बन्द हो गया । फ़िर कैसे हो सकता है । इनका श्रीराम शर्मा जैसा ? demotion full जन्म ।
युग ऋषि । वेद मूर्ति । तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य । आप खुद देखिये । इस परिचय में कहीं सन्त लिखा है ? आत्म ज्ञानी लिखा है ? और ये स्वीकार करने में मुझे कोई दिक्कत नहीं । ये परिचय एकदम सही लिखा है । अब देखिये । श्री राम शर्मा का एकमात्र ज्ञान आधार ।
- ॐ भूर्भुव स्वः । तत सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात ।
अर्थ - उस प्राण स्वरूप । दुख नाशक । सुख स्वरूप । श्रेष्ठ । तेजस्वी । पाप नाशक । देव स्वरूप ? परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें ? वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे ।
और ये भी देखें - गायत्री वेद माता हैं ( ध्यान दें ) एवं मानव मात्र का पाप नाश करने की शक्ति उनमें है । इससे अधिक पवित्र करने वाला ? और कोई मंत्र स्वर्ग और पृथ्वी पर नहीं है ??
और ये भी - 3 माला गायत्री मंत्र का जप ? आवश्यक माना गया है । शौच स्नान से निवृत्त होकर नियत स्थान । नियत समय पर । सुखासन में बैठकर नित्य गायत्री उपासना की जानी चाहिये ।
अब सुनिये । आपके गुरु श्रीराम शर्मा अपने पूर्व कबीर जन्म में क्या कहते हैं - माला फ़ेरत जुग भया । फ़िरा न मन का फ़ेर । कर का मनका डार दे । मन
का मनका फ़ेर । और भी देखिये - माला तो कर में फ़िरे । जीभ फ़िरे मुख मांहि । मनुआँ तो चहुँ दिस फ़िरे । ये तो सुमिरन नाहिं । फ़िर ऐसा कैसे हो गया कि - ये कबीर ?? कर माला फ़ेरने की बात करने लगे । ये 3
माला तो मैंने सिर्फ़ उदाहरण के लिये लिखी हैं । नीचे का लिंक देखें । पूरी माला सिन्हा ही फ़ेरने की बात कही है । जबकि कबीर ढाई अक्षर ? मुश्किल से जानते थे । वो भी । कहते थे - परमात्मा को मालूम है । मनुष्य बङा आलसी है । ढाई अक्षर ? भी भक्ति के लिये नहीं बोलेगा । तो परमात्मा ने ये आडियो फ़ाइल कन्टीन्यू प्ले आपके स्वांस में कर दी । बस सुन लो भाई ।
गायत्री माला ? की विस्त्रत जानकारी कृपया यहाँ भी देखें । इसी लाइन पर या नीचे लिंक पर क्लिक करें ।
http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80
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अब आईये । इस लेख के बिन्दुओं पर । लेकिन इससे पहले संसार में फ़ैले कुछ और भी झूठ देखें ।
1 झूठ - रामकृष्ण परमहंस के विषय में कहा जाता है कि - वे जिस काली मंदिर के पुजारी थे । वहाँ की काली की मूर्ति साक्षात प्रकट होकर परमहंस के हाथों से भोजन ग्रहण करती थीं । और उनसे बातचीत भी करती थी । इस चमत्कार के पीछे अटूट श्रृद्धा थी ।
सत्य - इस तरह कोई देवी देवता प्रकट नहीं होता । बल्कि वह ध्यान अवस्था होती है । स्थूल रूप से शरीरी प्रकट होना । कुछ विशेष कारणों से होता है । जबकि उस शरीर द्वारा कोई कार्य करते हुये संसार को कोई संदेश देना हो । जैसे नर सिंह अवतार हुआ ।
2 झूठ - दशहरे का पर्व था । गाँव के मंदिर के साधु बृह्म मुहूर्त में ही स्नान करने के लिये घर से निकले । रैदास की झोंपड़ी से गुजरते समय उन्होंने रैदास से पूछा - आज दशहरा है । स्नान करने नहीं चलोगे क्या ? रैदास ने प्रणाम ? करते हुए कहा कि - गंगा स्नान करना शायद मेरी किस्मत में नहीं है ? क्योंकि मुझे आज ही ग्राहक के जूते बनाकर देना है भाई । साधु से प्रार्थना ? करते हुए रैदास बोले कि - महाराज यह सिक्का लेते जाईये । मेरी तरफ से इसे गंगा माँ ?? को भेंट चढ़ा देना ।
सिक्का लेकर साधु चल दिये । पूजा
पाठ और स्नान करके वापस लौटने लगे । भक्ति भाव में ऐसे डूबे कि - यह भूल ही गए कि रैदास ने गंगा के लिये भेंट भेजी थी । साधु तो रैदास की बात भूल कर चल दिये । लेकिन पीछे से स्त्री की सी कोई दिव्य आवाज आई - रुको । पुत्र रैदास ? द्वारा मेरे लिये भेजा गया उपहार तो देते जाओ । और एक दिव्य स्त्री मूर्ति के रूप में गंगा प्रकट हो गईं ।
सत्य - ये गंगा माँ ?? दरअसल देव आदि लोकों में विचरने वाली एक चुलबुली देवताओं ऋषियों का मनोरंजन करने वाली देवी है । जो एक श्राप और और अन्य कारणों वश सिर्फ़ 5000 वर्ष के लिये प्रथ्वी पर आयी थी । और कुछ ही दिनों पहले इसका समय खत्म हो गया । और ये प्रथ्वी से चली गयी । क्योंकि ये आन लगी मान्यता लेकर आयी थी । इसलिये विभिन्न कर्मकाण्डों में इसके बारे में प्रचलित आंशिक बातें सत्य है ।
- रैदास जैसे उच्च स्तरीय सन्त गंगा जमुना से माँ कभी नहीं कहते । और गंगा की तो हिम्मत ही क्या ।
जो उन्हें - पुत्र कहे । लेकिन ये घटना बदले रूप में सत्य है । रैदास ने सिक्का प्रसाद के लिये दिया था । लेकिन स्पेशली उस साधु का अभिमान चूर चूर करने के लिये । उन्होंने कहा था कि - गंगा को बोलना । ये रैदास ने भेजा है । उस साधु ने ऐसा ही किया । तब गंगा की जलधार में गंगा का सिर्फ़ हाथ प्रकट हुआ । उसने प्रसाद को बेहद श्रद्धा से लिया । फ़िर एक दिव्य कंगन उस साधु को देकर बोली - ये मेरी तरफ़ से प्रभु को भेंट देना । ये पूरी जानकारी विस्तार से जानने के लिये मेरा लेख - गंगा का दिव्य कंगन । गूगल में सर्च कर मेरे किसी ब्लाग में पढें । क्योंकि कहाँ पोस्ट है ? याद नहीं । इसी रोचक सत्य घटनाकृम से - मन चंगा तो कठौते में गंगा । कहावत प्रचलित हुयी ।
3 झूठ - हनुमान का लंका मुद्रिका द्वारा जाना - कहते हैं । हनुमान पहली बार लंका जाने हेतु समुद्र पर उङे थे ।
तो उन्होंने राम द्वारा दी अंगूठी मुँह में रख ली । उससे उङ गये ।
सत्य - चलो मान लिया । उसी अंगूठी से उङ गये । फ़िर वापस कैसे आये ? अंगूठी तो सीता को दे आये थे । और अंगूठी से उङकर जा सकते थे । तो फ़िर समुद्र पार करने के लिये जो चिंता युक्त विचार मंथन पूरी टीम में हुआ । उसकी क्या वजह थी ? बाद में भी उनकी फ़्लायट जगह जगह उङती ही रही । वो कैसे उङी ?
उत्तर - ज्ञान की सिद्ध मुद्रिका द्वारा । ये मुद्रिका मुख के अन्दर तालु वाले स्थान पर होती है । और वहाँ निरंतर जीभ लगाने और संबन्धित योग द्वारा सिद्ध होती है । सिर्फ़ हनुमान नहीं । बहुत लोगों को सिद्ध हो जाती है । हुयी है ।
4 झूठ - तुलसी क्या राम के भक्त थे ?
सत्य - तुलसी के पहले गुरु द्वैत मार्गी थे । तब उन्होंने अवतार राम की भक्ति की । पर उन्हें शान्ति नहीं मिली । तब फ़िर उन्हें आत्म ज्ञान के दूसरे सन्त
मिले । और उन्होंने सत्य नाम को जाना । प्रसिद्ध रामचरित मानस । 2 बातें कहता है । 1 अवतार राम की कथा । जो वास्तव में प्रतीक रूप भी है । 2 सत्य नाम महिमा । देखें - बालकाण्ड और उत्तरकाण्ड । खुद अवतार राम ने इसी नाम की चर्चा की है । और शंकर आदि सबने इसी को परम सत्य बताया है ।
5 झूठ - मीरा क्या श्रीकृष्ण की भक्त थी ?
सत्य - मीरा बिलकुल बालपन में माँ के कहने से श्रीकृष्ण को अपना पति मान बैठी थी । लेकिन लगभग 16 वर्ष की ही अवस्था में उन्होंने रैदास से सत्य नाम की हँस दीक्षा ले ली थी । और इसी नाम का सुमरन करती थी ।
6 झूठ - जङ भरत की बलि देते हुये काली प्रकट हो गयी । और उन्हें बचा लिया ।
सत्य - इस अदभुत घटनाकृम में अज्ञानी लोग काली को महिमा मण्डित करने के लिये इतनी ही बात कहकर छोङ देते हैं । काली की चापलूसी का
और भी नमक मिर्च जोङ देते हैं ।
सत्य - ये है कि - राजा के ऐसा करते ही बलि की खास शौकीन काली थर थर कांपने लगी । और उसने बलि से पहले ही हाथ पकङ लिया । और बोली - मूर्ख राजा ! तू ये क्या कर रहा है ? ये महान आत्मा हैं । मैं सीधी रसातल ( सबसे खतरनाक सजा की जगह ) में फ़ेंक दी जाऊँगी । और तेरा तो सोच भी नहीं सकती । क्या अंजाम होगा । ये घटना भी मेरे लेख - मूर्ख राजा ! तू ये क्या कर रहा है ? को गूगल द्वारा सर्च कर मेरे किसी ब्लाग में पढें ।
इस तरह झूठ बहुत से हैं । पर अब आपके मूल बिन्दु पर बात करते हैं । और आपको विवेकानन्द की असलियत बताते हैं । विवेकानन्द ने
रामकृष्ण द्वारा बहुत जल्दी सहज समाधि को सीख लिया था । और वे जान गये कि - ये मूर्ति पूजा आदि ढोंग सब व्यर्थ है । रामकृष्ण का एक और शिष्य कालू मूर्ति पूजक था । विवेकानन्द अभी कच्चे खिलाङी ही थे कि - समाधि पावर का दुरुपयोग करने लगे । विवेकानन्द ने समाधि में संकल्प करते हुये कालू का मूर्ति पूजा से ध्यान हटाया । शक्ति के वशीभूत कालू शालिगराम आदि पत्थरों को नदी में फ़ेंकने लगा । संयोगवश रामकृष्ण उसे ऐसा करते हुये देख रहे थे । उन्होंने सोचा - क्या मामला है । ये तो घोर मूर्ति पूजक है । फ़िर आज विपरीत विरोधी कैसे हो गया ? उन्होंने ध्यान
किया । तो विवेकानन्द की हरकत पता लगी । उन्होंने विवेकानन्द की समाधि उसी दिन से रोक दी । और कहा - अब समाधि तुम्हें जीवन के अन्तिम दिनों में आयेगी । तब तक तुम्हें प्रचारक की भूमिका निभानी होगी ।
अब आपके सबसे खास बिन्दु पर बात करते हैं । दरअसल आपको जो पता है । और लोगों को जो पता है । भले ही वह आधा ही सही । पर खास कारण वश सत्य ही है । क्या है । वह कारण ?
द्वैत भक्ति और देवी देवता और कर्मकाण्ड विभिन्न जाति धर्मों में पैदा होते ही हरेक बच्चे को घुट्टी की तरह पिलाना शुरू हो जाते हैं । जबकि आत्म ज्ञान के जानकार । या परिवार । या संस्कार नगण्य ही होते हैं । इसलिये चाहे वह मीरा हों । रामकृष्ण हों । तुलसी हों । विवेकानन्द हों । इन्होंने लोगों की दृढ आस्था को ध्यान में रखते हुये । उनके भी भावों को महत्व सम्मान दिया । और दूसरा एक महत्वपूर्ण कारण और भी था । उदाहरण - जैसे बंगाल में काली पूजा का
बहुत जोर है । अभी तक है । रामकृष्ण ये बात अच्छी तरह जानते थे । और उनकी शुरूआत ही काली से हुयी थी । तब बाद में यकायक वे ये कहने लगते कि - नहीं । अब मैं सत्य नाम का साधक भक्त हूँ । और काली इस तुलना में कोई महत्व ही नहीं रखती । असली सत्य और मोक्ष दाता सिर्फ़ सतनाम ही है । तो हंगामा ही हो जाता । रामकृष्ण को जबाब देना मुश्किल हो जाता । इसलिये इन सभी लोगों ने बङी चालाकी से काम लिया । घोर द्वैत वालों को द्वैत द्वारा साधते रहे । और योग्य पात्रों को ही ये गूढ ज्ञान बताया । अतः दोनों बातों का प्रचलित होना कुछ गलत भी नहीं है । आत्म ज्ञान वाले आत्म ज्ञान पक्ष को जानते हैं । और द्वैत वाले द्वैत पक्ष को । लेकिन बढा चढा कर भृमित कर देने वाली बातें दोनों ही किस्म के लोगों ने प्रचारित की । क्योंकि बाद के लोग सच्चे नहीं होते । वे सिर्फ़ उस व्यापार ? से धन और ऐशो आराम जुटाते हैं । ठीक यही सिद्धांत सभी के लिये लागू होता है ।
क्या आप जानते हैं - बुद्ध के नाम पर आज जो दुनियाँ भर में बौद्ध धर्म के मानने वाले लोगों को बताया जा रहा है । बुद्ध ने वह सब दूर दूर तक नहीं कहा था । आज इतना ही । साहेब ।
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इससे पहले कि मैं इस शंका का कोई जबाब दे पाता । आपने आचार्य ( शब्द पर विशेष ध्यान दें । इसके अर्थ पर भी विशेष गौर करें ) श्रीराम शर्मा के बारे में यह ( मगर एकदम झूठी ) जानकारी देकर मुझे बेहद हैरत में डाल दिया । आपसे किसने कहा । ये झूठ ? या उन्होंने खुद किसी पुस्तक में लिखा ऐसा झूठ । महा झूठ । या किसी प्रचार षडयंत्र के तहत फ़ैलाया गया ये झूठ ।
देखिये ये महा झूठ - मेरे गुरुदेव पं.श्रीराम शर्मा जी आगरा के आंवलखेङा के जाये जन्में " Light of india " से नवाजे गये । और उनका अब से पहले तीसरा - जन्म सन्त कबीर । दूसरे में सन्त रामदास जी । और बाद में रामकृष्ण परमहँस के रूप में आये थे । जिन्होंने 3200 पुस्तकें बिज्ञान और अध्यात्म पर लिखी ।
पर क्या आप जानते हैं - कबीर का आज तक कभी जन्म ही नहीं हुआ । यह सचखण्ड की प्रतिनिधि आत्मा हमेशा प्रकट होती है । और कोई 1 खास आत्मा ही इस नाम से नहीं आती । इस उपाधि योग्य कोई भी आत्मा भेजी जा सकती है ।
रामदास और रामकृष्ण इसी 5 भूत के मल मूत्र शरीर के साथ जन्में थे । और बाद में अपने पूर्व जन्मों के पुण्य फ़ल आधार पर आत्म ज्ञान को प्राप्त हुये । इसके बाद इनका भी लिंग योनि संयोगी जन्म होना नियम अनुसार बन्द हो गया । फ़िर कैसे हो सकता है । इनका श्रीराम शर्मा जैसा ? demotion full जन्म ।
युग ऋषि । वेद मूर्ति । तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य । आप खुद देखिये । इस परिचय में कहीं सन्त लिखा है ? आत्म ज्ञानी लिखा है ? और ये स्वीकार करने में मुझे कोई दिक्कत नहीं । ये परिचय एकदम सही लिखा है । अब देखिये । श्री राम शर्मा का एकमात्र ज्ञान आधार ।
- ॐ भूर्भुव स्वः । तत सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात ।
अर्थ - उस प्राण स्वरूप । दुख नाशक । सुख स्वरूप । श्रेष्ठ । तेजस्वी । पाप नाशक । देव स्वरूप ? परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें ? वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे ।
और ये भी देखें - गायत्री वेद माता हैं ( ध्यान दें ) एवं मानव मात्र का पाप नाश करने की शक्ति उनमें है । इससे अधिक पवित्र करने वाला ? और कोई मंत्र स्वर्ग और पृथ्वी पर नहीं है ??
और ये भी - 3 माला गायत्री मंत्र का जप ? आवश्यक माना गया है । शौच स्नान से निवृत्त होकर नियत स्थान । नियत समय पर । सुखासन में बैठकर नित्य गायत्री उपासना की जानी चाहिये ।
अब सुनिये । आपके गुरु श्रीराम शर्मा अपने पूर्व कबीर जन्म में क्या कहते हैं - माला फ़ेरत जुग भया । फ़िरा न मन का फ़ेर । कर का मनका डार दे । मन
का मनका फ़ेर । और भी देखिये - माला तो कर में फ़िरे । जीभ फ़िरे मुख मांहि । मनुआँ तो चहुँ दिस फ़िरे । ये तो सुमिरन नाहिं । फ़िर ऐसा कैसे हो गया कि - ये कबीर ?? कर माला फ़ेरने की बात करने लगे । ये 3
माला तो मैंने सिर्फ़ उदाहरण के लिये लिखी हैं । नीचे का लिंक देखें । पूरी माला सिन्हा ही फ़ेरने की बात कही है । जबकि कबीर ढाई अक्षर ? मुश्किल से जानते थे । वो भी । कहते थे - परमात्मा को मालूम है । मनुष्य बङा आलसी है । ढाई अक्षर ? भी भक्ति के लिये नहीं बोलेगा । तो परमात्मा ने ये आडियो फ़ाइल कन्टीन्यू प्ले आपके स्वांस में कर दी । बस सुन लो भाई ।
गायत्री माला ? की विस्त्रत जानकारी कृपया यहाँ भी देखें । इसी लाइन पर या नीचे लिंक पर क्लिक करें ।
http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80
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अब आईये । इस लेख के बिन्दुओं पर । लेकिन इससे पहले संसार में फ़ैले कुछ और भी झूठ देखें ।
1 झूठ - रामकृष्ण परमहंस के विषय में कहा जाता है कि - वे जिस काली मंदिर के पुजारी थे । वहाँ की काली की मूर्ति साक्षात प्रकट होकर परमहंस के हाथों से भोजन ग्रहण करती थीं । और उनसे बातचीत भी करती थी । इस चमत्कार के पीछे अटूट श्रृद्धा थी ।
सत्य - इस तरह कोई देवी देवता प्रकट नहीं होता । बल्कि वह ध्यान अवस्था होती है । स्थूल रूप से शरीरी प्रकट होना । कुछ विशेष कारणों से होता है । जबकि उस शरीर द्वारा कोई कार्य करते हुये संसार को कोई संदेश देना हो । जैसे नर सिंह अवतार हुआ ।
2 झूठ - दशहरे का पर्व था । गाँव के मंदिर के साधु बृह्म मुहूर्त में ही स्नान करने के लिये घर से निकले । रैदास की झोंपड़ी से गुजरते समय उन्होंने रैदास से पूछा - आज दशहरा है । स्नान करने नहीं चलोगे क्या ? रैदास ने प्रणाम ? करते हुए कहा कि - गंगा स्नान करना शायद मेरी किस्मत में नहीं है ? क्योंकि मुझे आज ही ग्राहक के जूते बनाकर देना है भाई । साधु से प्रार्थना ? करते हुए रैदास बोले कि - महाराज यह सिक्का लेते जाईये । मेरी तरफ से इसे गंगा माँ ?? को भेंट चढ़ा देना ।
सिक्का लेकर साधु चल दिये । पूजा
पाठ और स्नान करके वापस लौटने लगे । भक्ति भाव में ऐसे डूबे कि - यह भूल ही गए कि रैदास ने गंगा के लिये भेंट भेजी थी । साधु तो रैदास की बात भूल कर चल दिये । लेकिन पीछे से स्त्री की सी कोई दिव्य आवाज आई - रुको । पुत्र रैदास ? द्वारा मेरे लिये भेजा गया उपहार तो देते जाओ । और एक दिव्य स्त्री मूर्ति के रूप में गंगा प्रकट हो गईं ।
सत्य - ये गंगा माँ ?? दरअसल देव आदि लोकों में विचरने वाली एक चुलबुली देवताओं ऋषियों का मनोरंजन करने वाली देवी है । जो एक श्राप और और अन्य कारणों वश सिर्फ़ 5000 वर्ष के लिये प्रथ्वी पर आयी थी । और कुछ ही दिनों पहले इसका समय खत्म हो गया । और ये प्रथ्वी से चली गयी । क्योंकि ये आन लगी मान्यता लेकर आयी थी । इसलिये विभिन्न कर्मकाण्डों में इसके बारे में प्रचलित आंशिक बातें सत्य है ।
- रैदास जैसे उच्च स्तरीय सन्त गंगा जमुना से माँ कभी नहीं कहते । और गंगा की तो हिम्मत ही क्या ।
जो उन्हें - पुत्र कहे । लेकिन ये घटना बदले रूप में सत्य है । रैदास ने सिक्का प्रसाद के लिये दिया था । लेकिन स्पेशली उस साधु का अभिमान चूर चूर करने के लिये । उन्होंने कहा था कि - गंगा को बोलना । ये रैदास ने भेजा है । उस साधु ने ऐसा ही किया । तब गंगा की जलधार में गंगा का सिर्फ़ हाथ प्रकट हुआ । उसने प्रसाद को बेहद श्रद्धा से लिया । फ़िर एक दिव्य कंगन उस साधु को देकर बोली - ये मेरी तरफ़ से प्रभु को भेंट देना । ये पूरी जानकारी विस्तार से जानने के लिये मेरा लेख - गंगा का दिव्य कंगन । गूगल में सर्च कर मेरे किसी ब्लाग में पढें । क्योंकि कहाँ पोस्ट है ? याद नहीं । इसी रोचक सत्य घटनाकृम से - मन चंगा तो कठौते में गंगा । कहावत प्रचलित हुयी ।
3 झूठ - हनुमान का लंका मुद्रिका द्वारा जाना - कहते हैं । हनुमान पहली बार लंका जाने हेतु समुद्र पर उङे थे ।
तो उन्होंने राम द्वारा दी अंगूठी मुँह में रख ली । उससे उङ गये ।
सत्य - चलो मान लिया । उसी अंगूठी से उङ गये । फ़िर वापस कैसे आये ? अंगूठी तो सीता को दे आये थे । और अंगूठी से उङकर जा सकते थे । तो फ़िर समुद्र पार करने के लिये जो चिंता युक्त विचार मंथन पूरी टीम में हुआ । उसकी क्या वजह थी ? बाद में भी उनकी फ़्लायट जगह जगह उङती ही रही । वो कैसे उङी ?
उत्तर - ज्ञान की सिद्ध मुद्रिका द्वारा । ये मुद्रिका मुख के अन्दर तालु वाले स्थान पर होती है । और वहाँ निरंतर जीभ लगाने और संबन्धित योग द्वारा सिद्ध होती है । सिर्फ़ हनुमान नहीं । बहुत लोगों को सिद्ध हो जाती है । हुयी है ।
4 झूठ - तुलसी क्या राम के भक्त थे ?
सत्य - तुलसी के पहले गुरु द्वैत मार्गी थे । तब उन्होंने अवतार राम की भक्ति की । पर उन्हें शान्ति नहीं मिली । तब फ़िर उन्हें आत्म ज्ञान के दूसरे सन्त
मिले । और उन्होंने सत्य नाम को जाना । प्रसिद्ध रामचरित मानस । 2 बातें कहता है । 1 अवतार राम की कथा । जो वास्तव में प्रतीक रूप भी है । 2 सत्य नाम महिमा । देखें - बालकाण्ड और उत्तरकाण्ड । खुद अवतार राम ने इसी नाम की चर्चा की है । और शंकर आदि सबने इसी को परम सत्य बताया है ।
5 झूठ - मीरा क्या श्रीकृष्ण की भक्त थी ?
सत्य - मीरा बिलकुल बालपन में माँ के कहने से श्रीकृष्ण को अपना पति मान बैठी थी । लेकिन लगभग 16 वर्ष की ही अवस्था में उन्होंने रैदास से सत्य नाम की हँस दीक्षा ले ली थी । और इसी नाम का सुमरन करती थी ।
6 झूठ - जङ भरत की बलि देते हुये काली प्रकट हो गयी । और उन्हें बचा लिया ।
सत्य - इस अदभुत घटनाकृम में अज्ञानी लोग काली को महिमा मण्डित करने के लिये इतनी ही बात कहकर छोङ देते हैं । काली की चापलूसी का
और भी नमक मिर्च जोङ देते हैं ।
सत्य - ये है कि - राजा के ऐसा करते ही बलि की खास शौकीन काली थर थर कांपने लगी । और उसने बलि से पहले ही हाथ पकङ लिया । और बोली - मूर्ख राजा ! तू ये क्या कर रहा है ? ये महान आत्मा हैं । मैं सीधी रसातल ( सबसे खतरनाक सजा की जगह ) में फ़ेंक दी जाऊँगी । और तेरा तो सोच भी नहीं सकती । क्या अंजाम होगा । ये घटना भी मेरे लेख - मूर्ख राजा ! तू ये क्या कर रहा है ? को गूगल द्वारा सर्च कर मेरे किसी ब्लाग में पढें ।
इस तरह झूठ बहुत से हैं । पर अब आपके मूल बिन्दु पर बात करते हैं । और आपको विवेकानन्द की असलियत बताते हैं । विवेकानन्द ने
रामकृष्ण द्वारा बहुत जल्दी सहज समाधि को सीख लिया था । और वे जान गये कि - ये मूर्ति पूजा आदि ढोंग सब व्यर्थ है । रामकृष्ण का एक और शिष्य कालू मूर्ति पूजक था । विवेकानन्द अभी कच्चे खिलाङी ही थे कि - समाधि पावर का दुरुपयोग करने लगे । विवेकानन्द ने समाधि में संकल्प करते हुये कालू का मूर्ति पूजा से ध्यान हटाया । शक्ति के वशीभूत कालू शालिगराम आदि पत्थरों को नदी में फ़ेंकने लगा । संयोगवश रामकृष्ण उसे ऐसा करते हुये देख रहे थे । उन्होंने सोचा - क्या मामला है । ये तो घोर मूर्ति पूजक है । फ़िर आज विपरीत विरोधी कैसे हो गया ? उन्होंने ध्यान
किया । तो विवेकानन्द की हरकत पता लगी । उन्होंने विवेकानन्द की समाधि उसी दिन से रोक दी । और कहा - अब समाधि तुम्हें जीवन के अन्तिम दिनों में आयेगी । तब तक तुम्हें प्रचारक की भूमिका निभानी होगी ।
अब आपके सबसे खास बिन्दु पर बात करते हैं । दरअसल आपको जो पता है । और लोगों को जो पता है । भले ही वह आधा ही सही । पर खास कारण वश सत्य ही है । क्या है । वह कारण ?
द्वैत भक्ति और देवी देवता और कर्मकाण्ड विभिन्न जाति धर्मों में पैदा होते ही हरेक बच्चे को घुट्टी की तरह पिलाना शुरू हो जाते हैं । जबकि आत्म ज्ञान के जानकार । या परिवार । या संस्कार नगण्य ही होते हैं । इसलिये चाहे वह मीरा हों । रामकृष्ण हों । तुलसी हों । विवेकानन्द हों । इन्होंने लोगों की दृढ आस्था को ध्यान में रखते हुये । उनके भी भावों को महत्व सम्मान दिया । और दूसरा एक महत्वपूर्ण कारण और भी था । उदाहरण - जैसे बंगाल में काली पूजा का
बहुत जोर है । अभी तक है । रामकृष्ण ये बात अच्छी तरह जानते थे । और उनकी शुरूआत ही काली से हुयी थी । तब बाद में यकायक वे ये कहने लगते कि - नहीं । अब मैं सत्य नाम का साधक भक्त हूँ । और काली इस तुलना में कोई महत्व ही नहीं रखती । असली सत्य और मोक्ष दाता सिर्फ़ सतनाम ही है । तो हंगामा ही हो जाता । रामकृष्ण को जबाब देना मुश्किल हो जाता । इसलिये इन सभी लोगों ने बङी चालाकी से काम लिया । घोर द्वैत वालों को द्वैत द्वारा साधते रहे । और योग्य पात्रों को ही ये गूढ ज्ञान बताया । अतः दोनों बातों का प्रचलित होना कुछ गलत भी नहीं है । आत्म ज्ञान वाले आत्म ज्ञान पक्ष को जानते हैं । और द्वैत वाले द्वैत पक्ष को । लेकिन बढा चढा कर भृमित कर देने वाली बातें दोनों ही किस्म के लोगों ने प्रचारित की । क्योंकि बाद के लोग सच्चे नहीं होते । वे सिर्फ़ उस व्यापार ? से धन और ऐशो आराम जुटाते हैं । ठीक यही सिद्धांत सभी के लिये लागू होता है ।
क्या आप जानते हैं - बुद्ध के नाम पर आज जो दुनियाँ भर में बौद्ध धर्म के मानने वाले लोगों को बताया जा रहा है । बुद्ध ने वह सब दूर दूर तक नहीं कहा था । आज इतना ही । साहेब ।