16 अक्टूबर 2011

संन्यास से बढ़कर कोई आत्महत्या नहीं है

मैं आत्महत्या करना चाहता हूँ । - तो पहले संन्यास ले लो । और तुम्हे आत्महत्या करने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी । क्योंकि संन्यास लेने से बढ़कर कोई आत्महत्या नही है । और किसी को आत्महत्या क्यों करनी चाहिए ? मौत तो खुद बखुद आ रही है । तुम इतनी जल्दबाजी में क्यों हो ? मौत आएगी । वो हमेशा आती है । तुम्हारे न चाहते हुए भी वो आती है । तुम्हे उसे जाकर मिलने की ज़रुरत नहीं है । वो अपने आप आ जाती है । पर तुम अपने जीवन को बुरी तरह से याद करोगे । तुम क्रोध या चिंता की वजह से आत्महत्या करना चाहते हो । मैं तुम्हे सही आत्महत्या सिखाऊंगा । 1 सन्यासी बन जाओ । और मामूली आत्महत्या करने से कुछ ख़ास नहीं होने वाला है । आप तुरंत ही किसी और कोख में कहीं और पैदा हो जाओगे । कुछ बेवकूफ लोग कहीं प्यार कर रहे होंगे । याद रखो । तुम फिर फंस जाओगे । तुम इतनी आसानी से नहीं निकल सकते । बहुत सारे बेवकूफ हैं । इस शरीर से निकलने से पहले तुम किसी और जाल में फंस जाओगे । और 1 बार फिर तुम्हें स्कूल कालेज जाना पड़ेगा । जरा उसके बारे में सोचो । उन सभी कष्ट भरे अनुभवों के बारे में सोचो । वो तुम्हे आत्महत्या करने से रोकेगा ।
तुम जानते हो । भारतीय इतनी आसानी से आत्महत्या नहीं करते । क्योंकि वो जानते हैं कि वो फिर पैदा हो जायेंगे । पश्चिम में आत्महत्या और आत्महत्या के तरीके खोज करते हैं । बहुत लोग आत्महत्या करते हैं । और मनसविद कहते हैं कि बहुत कम लोग होते हैं । जो ऐसा करने का नहीं सोचते हैं । दरअसल 1 आदमी ने खोज करके कुछ माहिता इकठ्ठी की थी । और उसका कहना है कि - हर 1 व्यक्ति अपने जीवन में कम से कम 4 बार आत्महत्या करने को सोचता है । पर ये पश्चिम की बात है । पूरब में, चूँकि लोग पुनर्जन्म के बारे में जानते हैं । इसलिए कोई आत्महत्या नहीं करना चाहता है । फायदा क्या है ? तुम 1 दरवाज़े से निकलते हो । और किसी और दरवाजे से फिर अन्दर आ जाते हो । तुम इतनी आसानी से नहीं जा सकते ।
मैं तुम्हे असली आत्महत्या करना सिखाऊंगा । तुम हमेशा के लिए जा सकते हो । इसी का मतलब है - बुद्ध बनना । हमेशा के लिए चले जाना  तुम आत्महत्या क्यों करना चाहते हो ? शायद तुम जैसा चाहते थे । जिन्दगी वैसी नहीं चल रही है ? पर तुम ज़िन्दगी पर अपना तरीका अपनी इच्छा थोपने वाले होते कौन हो ? हो सकता है । तुम्हारी इच्छाएं पूरी न हुई हों ? तो खुद को क्यों ख़तम करते हो । अपनी इच्छाओं को ख़तम करो । हो सकता है । तुम्हारी महत्वाकांक्षा पूरी ना हुई हों । और तुम तनाव महसूस कर रहे हो । जब इंसान तनाव में होता है । तो वो विनाश करना चाहता है । और तब केवल 2 संभावनाएं होती हैं । या तो किसी और को मारो । या खुद को । किसी और को मारना खतरनाक है । इसलिए लोग खुद को मारने का सोचने लगते हैं । लेकिन ये भी तो 1 हत्या है ? तो क्यों ना ज़िन्दगी को ख़तम करने की बजाय उसे बदल दें । ओशो
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मैं तो केवल स्वतंत्रता और बोध दे रहा हूँ । समानता दे रहा हूँ । और जीवन को जबरदस्ती बंधनों में जीने से उचित है कि आदमी स्वतंत्रता से जीए । और बंधन जितने टूट जाएं । उतना अच्छा है । क्योंकि बंधन केवल आत्माओं को मार डालते है । सङा डालते हैं । तुम्हारे जीवन को दूभर कर देते हैं ।
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यह कैसी नींद ? सपने को सच मान लिया । सच को विस्मरण कर दिया । अपने को भूल बैठे हो । औरों के पीछे दौड़ रहे हो । और सब कहीं जाते हो । सिर्फ अपने भीतर नहीं जाते । यह कैसी नींद ? और सब जुटाते हो । ध्यान नहीं जुटाते । वही एकमात्र धन है । उसे ही पाओ । तो धनी हो जाओ । सब जुटा लोगे । मगर दीन रहोगे । दरिद्र रहोगे । खाली हाथ आए । खाली हाथ जाओगे । रोते जीए । रोते आए । रोते मरोगे । हंसते हुए भी जीया जा सकता है ।

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