उन्हीं दिनों की बात है । जिन दिनों डायन लिख रहा था । वैसे डायन और अंगिया वेताल तो मानों आपने पिस्तोल की नोक पर लिखवायी हो । एक अदृश्य दवाव सा बन गया । खैर.जैसे भी और जैसी भी लिख ही गयी । अब कुछ दिन राहत महसूस कर सकता हूँ ।
दरअसल अभी बीच में बहुत कुछ उलझनें सी रही । 15 aug 2011 को 11.30 am पर हमारे परिवार में ही एक लेडी का देहान्त हो गया । अभी उससे निबटे भी नहीं थे कि 20 aug 2011 को 2.15 pm पर हमारी सगी चाची का देहान्त हो गया । मेरे जिन चाचा जी ने - एक भक्त की भगवान से बातचीत .. परमात्मा ब्लाग पर लेख लिखा था । वो उनकी पत्नी थीं ।
तब मैंने 5 को दर्शाने वाले शब्द " पंचकें " को लोगों से बातचीत में सुना था । इसका अर्थ यह होता है कि किसी व्यक्ति को अपने परिचय के लोगों में से किसी के मरने की खबर इन दिनों मिलती हैं । तो उसे निश्चय ही 5 अन्य परिचितों की मृत्यु का समाचार भी कुछ ही दिनों में पंचकें रहने तक मिल जायेगा । जो भी हो । मैंने पंचकों के बारे में सिर्फ़ सुना है ।
खैर..महत्वपूर्ण यह था । जब डायन लिख रहा था । मैंने असल जिन्दगी में डायन को जाना । जिस प्रकार एक ही चीज के अलग अलग जगहों की बोली के अनुसार पचासों नाम हो जाते हैं । उसी प्रकार मेरे वर्तमान निवास के पास एक प्रेत वायु का अजीव सा स्थानीय नाम मैंने सुना था । जो इस वक्त मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा । ये बात एक बूङी औरत और 50 की आयु के लगभग जीवन भर निठल्ले घूमते रहे आदमी ने बङी दिलचस्पी और बङे विस्तार से बतायी । जो बहुत लम्बे समय से यहाँ के निवासी थे ।
उनके अनुसार बहुत पहले ये प्रेत एक बहुत बङी नीलगाय के समान रात को अचानक बस्ती में आता था । और छलाबे की तरह भाग भी जाता था । उन दोनों के अनुसार इसकी एक छलांग 100 फ़ुट की होती थी । उस आदमी ने बताया कि इसी गाँव के एक आदमी ने जो जाति से नाई था । दबंगई के चलते कुँये में कूदकर आत्महत्या कर ली थी । और प्रेत बन गया था । मरने से पहले वह बीङी पीने का शौकीन था । इसलिये रात को उस कुँये के पास से गुजरने वालों से अक्सर बीङी माँगता था । और उस प्रेत ने स्वयँ उस आदमी से कई बार बीङी माँगी थी । लेकिन ये काफ़ी पुरानी बात है । जब इस स्थान पर गाँव के गिने चुने घर थे । और चारों तरफ़ खेत ही खेत थे ।
ये सूखा और अँधा कुँआ मेरे मेन गेट से ठीक 300 फ़ुट दूरी पर था । जिसे अब कूङा आदि डालकर बन्द कर दिया गया है । सच्चाई कुछ भी हो । मैंने ऐसी कोई बात अभी तक महसूस नहीं की ।
इसी जगह का ताजा किस्सा एक प्रसव के दौरान लगभग 8 साल पहले पति से उपेक्षित होकर मरी विवाहिता का था । जो गाँव वालों के अनुसार कोई चुङैल आदि बन गयी थी । क्योंकि " नगर कालका " शब्द से वे दूर दूर तक परिचित नहीं थे । इसका प्रत्यक्ष प्रभाव तो वाकई कई लोगों ने स्पष्ट देखा । जब एक एक कर कई रहस्यमय मौतें हुयी । और लोगों में भय की लहर फ़ैल गयी । लेकिन मेरे यहाँ स्थायी रूप से आने के बाद मुझे नगर कालका के होने का भी कोई अहसास नहीं हुआ । संभवत उसने स्थान त्याग दिया था ।
खैर..अब मुख्य बात पर आते हैं । उस दिन मैं डायन लिख रहा था । जब गाँव का ही एक 60 आयु का आदमी मेरे पास आया । तब माहौल से प्रभावित मैंने जिग्यासावश उससे उसी कुँये के प्रेत के बारे में बात की । वह भी इस गाँव का जन्म से निवासी था ।
तब वह बोला - आपको ये सब किसने बताया ?
फ़िर मेरे द्वारा विवरण बताने पर वह बोला - वो निठल्ला आदमी तो कुछ भी कहे । उसकी बात और गधे की लात एक समान है । यानी उसके पास ऐसी फ़ालतू बातें ही अधिक हैं । और यही उसका काम है । लेकिन मैं आपको उस बूङी औरत के बारे में सच बताता हूँ । जो काकी के नाम से प्रसिद्ध है । वास्तव में जिस प्रेत के बारे में उन दोनों ने बताया । वैसा प्रेत मेरे या अन्य गाँव वालों के अनुभव में एक बार भी नहीं आया । हाँ वह औरत जिन्दा डायन है । ये सब गाँव वाले दबी जवान से कहते थे ।
लेकिन महाराज ! जानत सब सबकी कहे को किन की ( यानी समाज में सभी एक दूसरे की न कहने योग्य बात जानते हैं । लेकिन खुलकर कोई किसी के बारे में नहीं कहता ) ऐसा ही इस समाज का दस्तूर हमेशा से रहा है ।
वो बूङी औरत आज से लगभग 49 साल पहले जब इस गाँव में व्याह कर आयी थी । तब पेट से थी । वो भी कम समय की नहीं । विवाह के सवा महीने बाद ही उसने बच्चे को अकेले ही जन्म दिया । उसने घर का दरबाजा बन्द कर लिया । और अकेले ही नाजायज बच्चे को जन्म देती रही । इसके बाद नाल वगैरह खुद ही हँसिया से काटकर उसने नवजात बच्चे को भुस में दबा दिया ।
इत्तफ़ाकन इसी समय एक पङोसन उसको किसी काम से बारबार दरबाजा खोलने हेतु आवाज देती रही । जिसको वह - मेरे पेट में दर्द हो रहा है । कहकर बारबार मना करती रही । और उसने दरवाजा नहीं खोला । फ़िर उसने रक्त आदि के कपङे वगैरह सब ठीक करके तब दरवाजा खोला । और उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे की तरह उल्टे उस औरत पर ही चङ बैठी । मतलब डाँट दिया ।
लेकिन वह दूसरी औरत भी तेज थी । और काकी तब बहू थी । इसलिये उसने एक जासूस की तरह घर को चेक किया । और भुस में दबा बच्चा बरामद कर लिया । अब आप सोचिये । वह किसी झूठे मूठे प्रेत की बात करती है । जबकि ऐसा काम एक जिन्दा डायन ही कर सकती है ।
मैंने उसके समर्थन में सिर हिलाया । पर अभी भी मेरे सामने कुछ प्रश्न थे । जिनके उत्तर में उसने कहा ।
- हाँ विवाह के समय 9 मायनस सवा महीना पेट काफ़ी उभरा होता है । पर महाराज ! उस समय लङकियों के छोटी उमर में विवाह हो जाते थे । और दूसरे नयी बहुओं को शाल आदि डालकर बङा सा घूँघट निकाल कर रहना पङता था । इस तरह लम्बे चौङे तम्बू जैसे पहनावे के चलन से वह चतुराई से अपना बङा पेट छुपाये रही ।
- उसके घर में सास आदि बङी उमृ की औरतें नहीं थी । और घर की दूसरी लङकियाँ छोटी थी । आदमी बहुत सीधा था । और अन्य पुरुष घर के अन्दर उन हिस्सों में नहीं जाते थे । जहाँ बहुयें बेटियाँ होती थी । इस तरह उसे कोई खास दिक्कत नहीं आयी ।
- सवा महीने बाद बच्चे को जन्म देकर वह खाली हो गयी थी । इसलिये किसी चतुराई से बहाना बनाते हुये इस दौरान या तो उसने पति को सम्भोग करने ही नहीं दिया । और यदि उसने किया भी होगा । तो पहले रात के अँधेरे में पशु व्यवहारित ( यानी जिस तरह आज पति पत्नी विभिन्न क्रीङायें करते हुये आनन्द दायक सम्भोग करते हैं । वैसा न होकर सिर्फ़ जननांगों के व्यवहार की सीमित सम्भोग क्रिया ) सम्भोग होता था । जिसमें वह चतुराई से अपने को बचा गयी होगी । अर्थात पहले अधिकतर स्त्रियाँ पूर्ण रूप से इस समय वस्त्र विहीन नहीं होती थी । और सौ की एक बात मैं कह ही चुका । उसका आदमी बेहद सीधा और वह बहुत चालाक थी ।
- जब उसके बच्चे की पोल खुली होगी । तब ये कोई बङी बात नहीं है । आज भी समाज में बहुत से ऐसे प्रकरण होते रहते हैं । जिनको बदनामी के डर से दबा दिया जाता है ।
कहने का मतलब जब इस अजीव सी घटना पर मैंने अनेक पहलुओं से विचार किया । तो मुझे वह पूरी बात सही लगी । मैंने उस औरत को जो अभी 65 के करीव है । कई बार देखा है । बात की है । मुझे हमेशा ही उसमे एक खासियत सी लगी । वो ये कि उसके पूरे चेहरे पर तो बूङों जैसी झुर्रियाँ है । उसका गहरी लाइनों से भरा चेहरा उसके बूङे होने को साफ़ बताता है । पर उसका वाकी शरीर 40 आयु का लगता है । इस औरत के नाजायज वाले बच्चे के अलावा 10 अन्य बच्चे हुये । जिनमें 1 को छोङकर वाकी सभी लङकियाँ ही थी । वो बीङी भी पीती है ।
पहले मैं सोचता था कि किसानी के कार्य की वजह से वह इस तरह की होगी । जो भी हो । उसके पुरुषों से भी बङकर दिलेरी के किस्से सभी जानते हैं । जिनमें रात के दो दो बजे यमुना पार के खेतों में से काम से वापस आना भी शामिल है । मैं उसको डायन सिद्ध नहीं कर रहा । पर वह तमाम आम औरतों से बहुत हटकर थी ।
यह उस दिन की बात थी । इसके तीसरे ही दिन मेरे एक मित्र का फ़ोन आया । जिसमें उसने अन्य हालचाल के साथ मेरे पुराने शहर की एक बेहद चर्चित घटना का जिक्र किया था । जिसमें एक विवाहित लङके ने सुसाइड कर लिया था । इसका पूरा पिछला घटनाकृम और इसके सभी पात्र मेरे लिये एकदम परिचित थे ।
अतः मेरे मुँह से तुरन्त ही निकला - डायन ! और इसमें मुझे कोई शक भी नहीं था । इसकी बहुत सी बातें मैं पहले से ही जानता था । ऊपर वाली बूङी औरत डायन ( प्रभावित ) थी या नहीं ? इसमें गुँजायश हो सकती है । पर ये निसंदेह डायन थी । और इसकी एक एक बात मेरे सामने हुयी थी ।
पहले वह एक बेहद सुखी परिवार था । उसमें सिर्फ़ एक लङका एक लङकी और मियाँ बीबी थे । पति सरकारी नौकरी से ताजा रिटायर हुआ था । उन्होंने कुछ ही समय पहले बङिया मकान बनवाया था । पति ने रिटायर होने के बाद एक अच्छी दुकान भी खोल ली थी । इसके कुछ ही दिनों बाद उन्होंने अपनी लङकी की एक अच्छे घर वर से शादी कर दी थी । और दोनों पति पत्नी अब एक सुन्दर सजीली अच्छी पुत्रवधू का अरमान लिये बाकी की जिन्दगी सुख चैन से गुजारने के ख्वाहिश मन्द थे । पैसा और शिक्षा सभी सुख देने की ताकत रखता है । ये उनकी प्रबल मान्यता थी । और ये दोनों उस घर में भरपूर थे ।
फ़िर उनका ये बहु प्रतीक्षित अरमान भी पूरा हुआ । और उनके घर में मोहिनी ( काल्पनिक नाम ) के रूप में सुन्दर पुत्रवधू आयी । लगभग एक महीने से भी कम समय में ये लङकी पूरी कालोनी में चर्चित हो गयी । और छोटे से लेकर बूङों तक ने मजे ले लेकर उसे देखा । नयन सुख से चैन पाने वाले लोगों ने उसका नाम चलता फ़िरता ftv और इसी तरह के अन्य नाम भी रखे । इस इकलौती पुत्रवधू को अति आधुनिक समझते हुये उसके घर के सभी फ़ूले न समाते थे । और बहू के आधुनिक विचार होने पर गर्वित होते थे ।
ठीक इसी समय मैंने भी इसे पहली बार देखा था । और जाने क्यों मेरे मुँह से खुद ही निकला था - डायन !
मुझे ये हर तरह से ही अजीव लगती थी । हिन्दू होने पर भी ये विवाह के बाद भी कुर्ता शलवार पहनती थी । और शुरू शुरू में नाममात्र का दुपट्टा ( ओङनी ) कुछ इस तरह डालती थी कि दाँये वक्ष से लटकता हुआ एक सिरा इसके कँधे पर होकर गले में घूमता हुआ फ़िर पीठ पर लटकता था । ये विवाह के सिर्फ़ बीस दिन बाद की बात है । जबकि हिन्दुओं में 6-6 महीनों तक नयी बहू को बाहरी लोग देख भी नही पाते । इसके कुछ ही दिन बाद दुपट्टा जहाँ होना चाहिये । वहाँ न होकर सिर्फ़ गले से लिपटा हुआ दोनों छोरों से पीछे पीठ पर लटकता था । इसके कुछ ही दिन बाद इसने दुपट्टा डालना ही छोङ दिया ।
यहाँ तक होता । फ़िर भी गनीमत थी । इसकी सभी पोशाकों के गले इतने गहरे होते थे कि उस वजह से इसका एक नाम " खुली किताब " ही पङ गया । लाल काले नीले पीले डार्क कलर वाला इसका पहनावा अजीव से फ़ूहङ टायप का था । लेकिन इस पहनाबे की एक खासियत जो मैंने नोट की । ये हजारों की भीङ में अलग ही दिखती थी । इसके केश संवारने के तरीके । जूङा बाँधने का स्टायल । काजल । बिन्दी । लिपस्टिक । बङाये गये लम्बे लम्बे नाखून आदि इसे एक अजीव सा फ़ूहङ लुक प्रदान करते थे ।
ये और बात थी कि ये स्वयँ खुद को और इसके घर वाले इसे अल्ट्रा माडर्न समझते थे ।
अनावश्यक से लगने वाले इस आवश्यक विवरण के बाद इसके डायनी खेल की बात करते हैं । सबसे पहले इसने कुछ ही साल पहले विवाहित अपनी इकलौती ननद के कुछ ही बार मायके आने पर रो रोकर कुछ इस तरह की कलेश मचाई कि उसने तमाम लोगों के सामने कसम खाई कि इसके बाद वह सिर्फ़ अपने माँ बाप की मृत्यु पर ही इस घर में थोङे समय के लिये कदम रखेगी । और जीवन में कभी नहीं आयेगी । इस तरह इसने एक सदस्य का पत्ता हमेशा के लिये साफ़ कर दिया ।
इसके बाद इसने अपनी सास पर निशाना साधा । बहू के हाथों की चाय और गर्म गर्म रोटी खाने की इच्छा वाली इसकी सास का ये अरमान कभी पूरा नहीं हुआ । वह सोचती थी कि बहू घर में रहेगी । काम काज आदि करेगी । और वह सतसंग या सोसायटी में घूम फ़िर कर शेष जीवन का आनन्द लेंगी ।
लेकिन इसका ठीक उल्टा हुआ । सास पर अतिरिक्त काम और बढ गया । क्योंकि काम के वक्त मोहिनी के अक्सर सर में दर्द ( बहानेवाजी ) होता रहता था । लेकिन खाते समय । शाम को घूमते समय । और रात को पति के साथ वह आश्चर्यजनक रूप से ठीक हो जाती थी । सुनने में ये भी आया कि इसका पति उल्टे इसके पैर दवाता था ( बेबकूफ़ इंसान एक बार गला ही दबा देता )
खैर..साहब इसने एक पुत्र को जन्म दिया । और सिर्फ़ जन्म ही दिया । उस नवजात शिशु के सभी कार्य अतिरिक्त रूप से सासु माँ को सौंप दिये । इसके भी अलावा गली मोहल्लों से इसके page3 पर्सन जैसी खबरें आने लगीं । और सास ससुर हाई बी पी घबराहट जैसी बीमारियों के चंगुल में आ गये ।
अब ज्यादा क्या लिखूँ । इसके स्वभाव आदतों से आप खुद ही अन्दाजा लगा लें । इसके शुभ आगमन के करीब 3 साल बाद ही इसकी सासु दुनियाँ को अलविदा कह गयीं । क्योंकि उन्हें जीने से अधिक मरने में सुख नजर आया । इस तरह इसने सास रूपी काँटे को हमेशा के लिये बङी आसानी से खत्म कर दिया । परिचितों में इसकी बेहद थू थू हुयी । पर इसके चेहरे पर शिकन तक नहीं आयी ।
इसके ससुर अपनी पत्नी के मरने पर फ़ूट फ़ूटकर रोये । और बहुत दिन तक गलियों में भी रोते घूमते रहे । और इसके बाद एक दिन चुपचाप घर को लाक कर कहीं गायब हो गये । करीब महीने भर ऐसा रहा । मगर लङका तो उनका अपना था । उसका मोह फ़िर उन्हें खीच लाया । और वे घर आ गये । पीछे इन लोगों ने घर के ताले तोङ दिये । और आराम से रहते रहे ।
बाप बेटे दोनों को इस औरत से नफ़रत थी । पर वे मजबूर थे । और कुछ कर नहीं सकते थे । ये आउट आफ़ कंट्रोल थी । वे दोनों दुकान पर जाते थे । और ये आजादी से जो जी में आये करती थी । ये ऐसा चरित्र थी कि उस कालोनी के ऐसी औरतों से फ़ायदा उठाने की प्रवृति वाले लोग और लङके भी इससे नफ़रत करते थे । और इसके सामने से निकलते ही घृणा से थूककर अपनी नफ़रत का इजहार करते थे ।
लेकिन संसार में सब तरह के लोग हैं । ऐसे ही कुछ लोगों से इसके अनैतिक सम्बन्ध बन ही गये ।
बस इसके बाद मैंने वह शहर छोङ दिया था । और लगभग 3 साल बाद मेरा मित्र फ़ोन पर बता रहा था कि उसने ( उसके पति ने ) आत्महत्या कर ली । और तब वह पूरी रील ही मेरी आँखों के सामने घूम गयी । - क्यों कर ली ? मैंने पूछा ।
उसका पति एक दिन उसे तलाश करता हुआ जब किसी घर में गया । तो वह आपत्तिजनक अवस्था में मिली । और ये कोई खास बात नहीं थी । ये तो वह पहले भी जानता था । देख भी चुका था ।
खास बात ये थी । दोनों ने उसे बहुत मारा । और कहा - तुझे इतनी अक्ल नहीं । गलत समय पर डिस्टर्ब करने आ गया ।
इस तरह उसने पति को भी साफ़ कर दिया । हमारे U.P में ऐसी औरतों के लिये कहा जाता है - डायन एक एक करके सबको खा गयी ।
दरअसल अभी बीच में बहुत कुछ उलझनें सी रही । 15 aug 2011 को 11.30 am पर हमारे परिवार में ही एक लेडी का देहान्त हो गया । अभी उससे निबटे भी नहीं थे कि 20 aug 2011 को 2.15 pm पर हमारी सगी चाची का देहान्त हो गया । मेरे जिन चाचा जी ने - एक भक्त की भगवान से बातचीत .. परमात्मा ब्लाग पर लेख लिखा था । वो उनकी पत्नी थीं ।
तब मैंने 5 को दर्शाने वाले शब्द " पंचकें " को लोगों से बातचीत में सुना था । इसका अर्थ यह होता है कि किसी व्यक्ति को अपने परिचय के लोगों में से किसी के मरने की खबर इन दिनों मिलती हैं । तो उसे निश्चय ही 5 अन्य परिचितों की मृत्यु का समाचार भी कुछ ही दिनों में पंचकें रहने तक मिल जायेगा । जो भी हो । मैंने पंचकों के बारे में सिर्फ़ सुना है ।
खैर..महत्वपूर्ण यह था । जब डायन लिख रहा था । मैंने असल जिन्दगी में डायन को जाना । जिस प्रकार एक ही चीज के अलग अलग जगहों की बोली के अनुसार पचासों नाम हो जाते हैं । उसी प्रकार मेरे वर्तमान निवास के पास एक प्रेत वायु का अजीव सा स्थानीय नाम मैंने सुना था । जो इस वक्त मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा । ये बात एक बूङी औरत और 50 की आयु के लगभग जीवन भर निठल्ले घूमते रहे आदमी ने बङी दिलचस्पी और बङे विस्तार से बतायी । जो बहुत लम्बे समय से यहाँ के निवासी थे ।
उनके अनुसार बहुत पहले ये प्रेत एक बहुत बङी नीलगाय के समान रात को अचानक बस्ती में आता था । और छलाबे की तरह भाग भी जाता था । उन दोनों के अनुसार इसकी एक छलांग 100 फ़ुट की होती थी । उस आदमी ने बताया कि इसी गाँव के एक आदमी ने जो जाति से नाई था । दबंगई के चलते कुँये में कूदकर आत्महत्या कर ली थी । और प्रेत बन गया था । मरने से पहले वह बीङी पीने का शौकीन था । इसलिये रात को उस कुँये के पास से गुजरने वालों से अक्सर बीङी माँगता था । और उस प्रेत ने स्वयँ उस आदमी से कई बार बीङी माँगी थी । लेकिन ये काफ़ी पुरानी बात है । जब इस स्थान पर गाँव के गिने चुने घर थे । और चारों तरफ़ खेत ही खेत थे ।
ये सूखा और अँधा कुँआ मेरे मेन गेट से ठीक 300 फ़ुट दूरी पर था । जिसे अब कूङा आदि डालकर बन्द कर दिया गया है । सच्चाई कुछ भी हो । मैंने ऐसी कोई बात अभी तक महसूस नहीं की ।
इसी जगह का ताजा किस्सा एक प्रसव के दौरान लगभग 8 साल पहले पति से उपेक्षित होकर मरी विवाहिता का था । जो गाँव वालों के अनुसार कोई चुङैल आदि बन गयी थी । क्योंकि " नगर कालका " शब्द से वे दूर दूर तक परिचित नहीं थे । इसका प्रत्यक्ष प्रभाव तो वाकई कई लोगों ने स्पष्ट देखा । जब एक एक कर कई रहस्यमय मौतें हुयी । और लोगों में भय की लहर फ़ैल गयी । लेकिन मेरे यहाँ स्थायी रूप से आने के बाद मुझे नगर कालका के होने का भी कोई अहसास नहीं हुआ । संभवत उसने स्थान त्याग दिया था ।
खैर..अब मुख्य बात पर आते हैं । उस दिन मैं डायन लिख रहा था । जब गाँव का ही एक 60 आयु का आदमी मेरे पास आया । तब माहौल से प्रभावित मैंने जिग्यासावश उससे उसी कुँये के प्रेत के बारे में बात की । वह भी इस गाँव का जन्म से निवासी था ।
तब वह बोला - आपको ये सब किसने बताया ?
फ़िर मेरे द्वारा विवरण बताने पर वह बोला - वो निठल्ला आदमी तो कुछ भी कहे । उसकी बात और गधे की लात एक समान है । यानी उसके पास ऐसी फ़ालतू बातें ही अधिक हैं । और यही उसका काम है । लेकिन मैं आपको उस बूङी औरत के बारे में सच बताता हूँ । जो काकी के नाम से प्रसिद्ध है । वास्तव में जिस प्रेत के बारे में उन दोनों ने बताया । वैसा प्रेत मेरे या अन्य गाँव वालों के अनुभव में एक बार भी नहीं आया । हाँ वह औरत जिन्दा डायन है । ये सब गाँव वाले दबी जवान से कहते थे ।
लेकिन महाराज ! जानत सब सबकी कहे को किन की ( यानी समाज में सभी एक दूसरे की न कहने योग्य बात जानते हैं । लेकिन खुलकर कोई किसी के बारे में नहीं कहता ) ऐसा ही इस समाज का दस्तूर हमेशा से रहा है ।
वो बूङी औरत आज से लगभग 49 साल पहले जब इस गाँव में व्याह कर आयी थी । तब पेट से थी । वो भी कम समय की नहीं । विवाह के सवा महीने बाद ही उसने बच्चे को अकेले ही जन्म दिया । उसने घर का दरबाजा बन्द कर लिया । और अकेले ही नाजायज बच्चे को जन्म देती रही । इसके बाद नाल वगैरह खुद ही हँसिया से काटकर उसने नवजात बच्चे को भुस में दबा दिया ।
इत्तफ़ाकन इसी समय एक पङोसन उसको किसी काम से बारबार दरबाजा खोलने हेतु आवाज देती रही । जिसको वह - मेरे पेट में दर्द हो रहा है । कहकर बारबार मना करती रही । और उसने दरवाजा नहीं खोला । फ़िर उसने रक्त आदि के कपङे वगैरह सब ठीक करके तब दरवाजा खोला । और उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे की तरह उल्टे उस औरत पर ही चङ बैठी । मतलब डाँट दिया ।
लेकिन वह दूसरी औरत भी तेज थी । और काकी तब बहू थी । इसलिये उसने एक जासूस की तरह घर को चेक किया । और भुस में दबा बच्चा बरामद कर लिया । अब आप सोचिये । वह किसी झूठे मूठे प्रेत की बात करती है । जबकि ऐसा काम एक जिन्दा डायन ही कर सकती है ।
मैंने उसके समर्थन में सिर हिलाया । पर अभी भी मेरे सामने कुछ प्रश्न थे । जिनके उत्तर में उसने कहा ।
- हाँ विवाह के समय 9 मायनस सवा महीना पेट काफ़ी उभरा होता है । पर महाराज ! उस समय लङकियों के छोटी उमर में विवाह हो जाते थे । और दूसरे नयी बहुओं को शाल आदि डालकर बङा सा घूँघट निकाल कर रहना पङता था । इस तरह लम्बे चौङे तम्बू जैसे पहनावे के चलन से वह चतुराई से अपना बङा पेट छुपाये रही ।
- उसके घर में सास आदि बङी उमृ की औरतें नहीं थी । और घर की दूसरी लङकियाँ छोटी थी । आदमी बहुत सीधा था । और अन्य पुरुष घर के अन्दर उन हिस्सों में नहीं जाते थे । जहाँ बहुयें बेटियाँ होती थी । इस तरह उसे कोई खास दिक्कत नहीं आयी ।
- सवा महीने बाद बच्चे को जन्म देकर वह खाली हो गयी थी । इसलिये किसी चतुराई से बहाना बनाते हुये इस दौरान या तो उसने पति को सम्भोग करने ही नहीं दिया । और यदि उसने किया भी होगा । तो पहले रात के अँधेरे में पशु व्यवहारित ( यानी जिस तरह आज पति पत्नी विभिन्न क्रीङायें करते हुये आनन्द दायक सम्भोग करते हैं । वैसा न होकर सिर्फ़ जननांगों के व्यवहार की सीमित सम्भोग क्रिया ) सम्भोग होता था । जिसमें वह चतुराई से अपने को बचा गयी होगी । अर्थात पहले अधिकतर स्त्रियाँ पूर्ण रूप से इस समय वस्त्र विहीन नहीं होती थी । और सौ की एक बात मैं कह ही चुका । उसका आदमी बेहद सीधा और वह बहुत चालाक थी ।
- जब उसके बच्चे की पोल खुली होगी । तब ये कोई बङी बात नहीं है । आज भी समाज में बहुत से ऐसे प्रकरण होते रहते हैं । जिनको बदनामी के डर से दबा दिया जाता है ।
कहने का मतलब जब इस अजीव सी घटना पर मैंने अनेक पहलुओं से विचार किया । तो मुझे वह पूरी बात सही लगी । मैंने उस औरत को जो अभी 65 के करीव है । कई बार देखा है । बात की है । मुझे हमेशा ही उसमे एक खासियत सी लगी । वो ये कि उसके पूरे चेहरे पर तो बूङों जैसी झुर्रियाँ है । उसका गहरी लाइनों से भरा चेहरा उसके बूङे होने को साफ़ बताता है । पर उसका वाकी शरीर 40 आयु का लगता है । इस औरत के नाजायज वाले बच्चे के अलावा 10 अन्य बच्चे हुये । जिनमें 1 को छोङकर वाकी सभी लङकियाँ ही थी । वो बीङी भी पीती है ।
पहले मैं सोचता था कि किसानी के कार्य की वजह से वह इस तरह की होगी । जो भी हो । उसके पुरुषों से भी बङकर दिलेरी के किस्से सभी जानते हैं । जिनमें रात के दो दो बजे यमुना पार के खेतों में से काम से वापस आना भी शामिल है । मैं उसको डायन सिद्ध नहीं कर रहा । पर वह तमाम आम औरतों से बहुत हटकर थी ।
यह उस दिन की बात थी । इसके तीसरे ही दिन मेरे एक मित्र का फ़ोन आया । जिसमें उसने अन्य हालचाल के साथ मेरे पुराने शहर की एक बेहद चर्चित घटना का जिक्र किया था । जिसमें एक विवाहित लङके ने सुसाइड कर लिया था । इसका पूरा पिछला घटनाकृम और इसके सभी पात्र मेरे लिये एकदम परिचित थे ।
अतः मेरे मुँह से तुरन्त ही निकला - डायन ! और इसमें मुझे कोई शक भी नहीं था । इसकी बहुत सी बातें मैं पहले से ही जानता था । ऊपर वाली बूङी औरत डायन ( प्रभावित ) थी या नहीं ? इसमें गुँजायश हो सकती है । पर ये निसंदेह डायन थी । और इसकी एक एक बात मेरे सामने हुयी थी ।
पहले वह एक बेहद सुखी परिवार था । उसमें सिर्फ़ एक लङका एक लङकी और मियाँ बीबी थे । पति सरकारी नौकरी से ताजा रिटायर हुआ था । उन्होंने कुछ ही समय पहले बङिया मकान बनवाया था । पति ने रिटायर होने के बाद एक अच्छी दुकान भी खोल ली थी । इसके कुछ ही दिनों बाद उन्होंने अपनी लङकी की एक अच्छे घर वर से शादी कर दी थी । और दोनों पति पत्नी अब एक सुन्दर सजीली अच्छी पुत्रवधू का अरमान लिये बाकी की जिन्दगी सुख चैन से गुजारने के ख्वाहिश मन्द थे । पैसा और शिक्षा सभी सुख देने की ताकत रखता है । ये उनकी प्रबल मान्यता थी । और ये दोनों उस घर में भरपूर थे ।
फ़िर उनका ये बहु प्रतीक्षित अरमान भी पूरा हुआ । और उनके घर में मोहिनी ( काल्पनिक नाम ) के रूप में सुन्दर पुत्रवधू आयी । लगभग एक महीने से भी कम समय में ये लङकी पूरी कालोनी में चर्चित हो गयी । और छोटे से लेकर बूङों तक ने मजे ले लेकर उसे देखा । नयन सुख से चैन पाने वाले लोगों ने उसका नाम चलता फ़िरता ftv और इसी तरह के अन्य नाम भी रखे । इस इकलौती पुत्रवधू को अति आधुनिक समझते हुये उसके घर के सभी फ़ूले न समाते थे । और बहू के आधुनिक विचार होने पर गर्वित होते थे ।
ठीक इसी समय मैंने भी इसे पहली बार देखा था । और जाने क्यों मेरे मुँह से खुद ही निकला था - डायन !
मुझे ये हर तरह से ही अजीव लगती थी । हिन्दू होने पर भी ये विवाह के बाद भी कुर्ता शलवार पहनती थी । और शुरू शुरू में नाममात्र का दुपट्टा ( ओङनी ) कुछ इस तरह डालती थी कि दाँये वक्ष से लटकता हुआ एक सिरा इसके कँधे पर होकर गले में घूमता हुआ फ़िर पीठ पर लटकता था । ये विवाह के सिर्फ़ बीस दिन बाद की बात है । जबकि हिन्दुओं में 6-6 महीनों तक नयी बहू को बाहरी लोग देख भी नही पाते । इसके कुछ ही दिन बाद दुपट्टा जहाँ होना चाहिये । वहाँ न होकर सिर्फ़ गले से लिपटा हुआ दोनों छोरों से पीछे पीठ पर लटकता था । इसके कुछ ही दिन बाद इसने दुपट्टा डालना ही छोङ दिया ।
यहाँ तक होता । फ़िर भी गनीमत थी । इसकी सभी पोशाकों के गले इतने गहरे होते थे कि उस वजह से इसका एक नाम " खुली किताब " ही पङ गया । लाल काले नीले पीले डार्क कलर वाला इसका पहनावा अजीव से फ़ूहङ टायप का था । लेकिन इस पहनाबे की एक खासियत जो मैंने नोट की । ये हजारों की भीङ में अलग ही दिखती थी । इसके केश संवारने के तरीके । जूङा बाँधने का स्टायल । काजल । बिन्दी । लिपस्टिक । बङाये गये लम्बे लम्बे नाखून आदि इसे एक अजीव सा फ़ूहङ लुक प्रदान करते थे ।
ये और बात थी कि ये स्वयँ खुद को और इसके घर वाले इसे अल्ट्रा माडर्न समझते थे ।
अनावश्यक से लगने वाले इस आवश्यक विवरण के बाद इसके डायनी खेल की बात करते हैं । सबसे पहले इसने कुछ ही साल पहले विवाहित अपनी इकलौती ननद के कुछ ही बार मायके आने पर रो रोकर कुछ इस तरह की कलेश मचाई कि उसने तमाम लोगों के सामने कसम खाई कि इसके बाद वह सिर्फ़ अपने माँ बाप की मृत्यु पर ही इस घर में थोङे समय के लिये कदम रखेगी । और जीवन में कभी नहीं आयेगी । इस तरह इसने एक सदस्य का पत्ता हमेशा के लिये साफ़ कर दिया ।
इसके बाद इसने अपनी सास पर निशाना साधा । बहू के हाथों की चाय और गर्म गर्म रोटी खाने की इच्छा वाली इसकी सास का ये अरमान कभी पूरा नहीं हुआ । वह सोचती थी कि बहू घर में रहेगी । काम काज आदि करेगी । और वह सतसंग या सोसायटी में घूम फ़िर कर शेष जीवन का आनन्द लेंगी ।
लेकिन इसका ठीक उल्टा हुआ । सास पर अतिरिक्त काम और बढ गया । क्योंकि काम के वक्त मोहिनी के अक्सर सर में दर्द ( बहानेवाजी ) होता रहता था । लेकिन खाते समय । शाम को घूमते समय । और रात को पति के साथ वह आश्चर्यजनक रूप से ठीक हो जाती थी । सुनने में ये भी आया कि इसका पति उल्टे इसके पैर दवाता था ( बेबकूफ़ इंसान एक बार गला ही दबा देता )
खैर..साहब इसने एक पुत्र को जन्म दिया । और सिर्फ़ जन्म ही दिया । उस नवजात शिशु के सभी कार्य अतिरिक्त रूप से सासु माँ को सौंप दिये । इसके भी अलावा गली मोहल्लों से इसके page3 पर्सन जैसी खबरें आने लगीं । और सास ससुर हाई बी पी घबराहट जैसी बीमारियों के चंगुल में आ गये ।
अब ज्यादा क्या लिखूँ । इसके स्वभाव आदतों से आप खुद ही अन्दाजा लगा लें । इसके शुभ आगमन के करीब 3 साल बाद ही इसकी सासु दुनियाँ को अलविदा कह गयीं । क्योंकि उन्हें जीने से अधिक मरने में सुख नजर आया । इस तरह इसने सास रूपी काँटे को हमेशा के लिये बङी आसानी से खत्म कर दिया । परिचितों में इसकी बेहद थू थू हुयी । पर इसके चेहरे पर शिकन तक नहीं आयी ।
इसके ससुर अपनी पत्नी के मरने पर फ़ूट फ़ूटकर रोये । और बहुत दिन तक गलियों में भी रोते घूमते रहे । और इसके बाद एक दिन चुपचाप घर को लाक कर कहीं गायब हो गये । करीब महीने भर ऐसा रहा । मगर लङका तो उनका अपना था । उसका मोह फ़िर उन्हें खीच लाया । और वे घर आ गये । पीछे इन लोगों ने घर के ताले तोङ दिये । और आराम से रहते रहे ।
बाप बेटे दोनों को इस औरत से नफ़रत थी । पर वे मजबूर थे । और कुछ कर नहीं सकते थे । ये आउट आफ़ कंट्रोल थी । वे दोनों दुकान पर जाते थे । और ये आजादी से जो जी में आये करती थी । ये ऐसा चरित्र थी कि उस कालोनी के ऐसी औरतों से फ़ायदा उठाने की प्रवृति वाले लोग और लङके भी इससे नफ़रत करते थे । और इसके सामने से निकलते ही घृणा से थूककर अपनी नफ़रत का इजहार करते थे ।
लेकिन संसार में सब तरह के लोग हैं । ऐसे ही कुछ लोगों से इसके अनैतिक सम्बन्ध बन ही गये ।
बस इसके बाद मैंने वह शहर छोङ दिया था । और लगभग 3 साल बाद मेरा मित्र फ़ोन पर बता रहा था कि उसने ( उसके पति ने ) आत्महत्या कर ली । और तब वह पूरी रील ही मेरी आँखों के सामने घूम गयी । - क्यों कर ली ? मैंने पूछा ।
उसका पति एक दिन उसे तलाश करता हुआ जब किसी घर में गया । तो वह आपत्तिजनक अवस्था में मिली । और ये कोई खास बात नहीं थी । ये तो वह पहले भी जानता था । देख भी चुका था ।
खास बात ये थी । दोनों ने उसे बहुत मारा । और कहा - तुझे इतनी अक्ल नहीं । गलत समय पर डिस्टर्ब करने आ गया ।
इस तरह उसने पति को भी साफ़ कर दिया । हमारे U.P में ऐसी औरतों के लिये कहा जाता है - डायन एक एक करके सबको खा गयी ।
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