हम प्रसाद कुमार सेतिया कानपुर से हैं । हम भी आपका ब्लाग शौक से पढते हैं । बहुत खूब लिखते हैं आप । हम भी आपसे कुछ जानना चाहते हैं । कृपया बताने का कष्ट करें ।
Q 1 पहली बात ये निर्गुण सगुण का असली अर्थ क्या होता है ? कोई कहता है । परमात्मा सगुण हैं । पर कोई कहता है । परमात्मा निर्गुण है । कोई यह भी कह देता है । परमात्मा सगुण और निर्गुण दोनों ही है । आप बतायें कि हम किसकी बात पर भरोसा करें ?
ANS - सत रज तम इन तीन गुणों से सृष्टि में सब बना बिगङी या निर्माण विध्वंस हो रहा है । इन तीन गुणों से युक्त को सगुण कहा जाता है । इस तरह लगभग हरेक कोई ही सगुण है । क्योंकि इन तीन गुणों के बिना सृष्टि के एक तुच्छ प्राणी का भी खेल संभव नहीं है । ये तीन गुण माया के हैं । न कि परमात्मा के । परमात्मा से इन गुणों को चेतन रूपी शक्ति मिलती है । वास्तव में परमात्मा निर्गुण है । और उसमें किसी भी तरह की कोई बात नहीं है ।..लेकिन सगुण परमात्मा का भृम इसलिये फ़ैल गया । क्योंकि साधु महात्माओं ऋषि महर्षि आदि ने अपनी किताबों में राम श्रीकृष्ण शंकर आदि को परमात्मा कह दिया । जबकि ये परमात्मा नहीं उपाधि हैं । अब क्योंकि इनमें गुण थे । अतः अग्यानतावश लोग कहने लगे कि परमात्मा सगुण और निर्गुण दोनों ही है । इसको इस तरह कहना तो ठीक है कि ये गुण परमात्मा के होने से हैं । लेकिन परमात्मा में कोई गुण नहीं है । उदाहरण के लिये बिजली पंखा टीवी फ़्रिज आदि चलाती है । और तीनों अलग अलग तरह का कार्य करते हैं । अब आप विचार करिये कि बिजली में कौन सा गुण है ?
पंखा - बिजली हवा देती है क्या ? फ़्रिज - बिजली चीजों को ठंडा करती है क्या ? टीवी - बिजली चित्र दिखाती है क्या ? लेकिन ये सब चल बिजली से ही रहे है । इसी प्रकार अलग अलग गुण परमात्मा के होने से हैं । पर परमात्मा में बिजली की तरह कोई बात नहीं है ।
Q 2 ये जो मैं आपके सामने बैठा हूँ । ये मेरी फ़िजीकल बाडी है । और प्रसाद कुमार सिर्फ़ इस बाडी का नाम है । जिस दिन ये बाडी खत्म हो जायेगी । तब प्रसाद सेतिया भी खत्म । लेकिन इस बाडी के अन्दर जो आत्मा है । वो कहते हैं कि अमर है । और बार बार जन्म लेती है । तो फ़िर मेरी रियल सेल्फ़ real self क्या है ? क्या मैं ही आत्मा हूँ ?? ( ये सेतिया जी ने किसी बाबाजी से सतसंग में पूछा । )
ANS - आत्मा बारबार जन्म नहीं लेती । आत्मा तो न जीता है । न मरता है । आत्मा के साथ जो ये जीव भाव जुङ गया है । यही जन्म लेता और मरता है । आपका रियल सेल्फ़ तो " आत्मा " ही है । और आप भी अभी ?? आत्मा ही हो । ( इस अभी ? में बङा रहस्य है ? ) लेकिन इसको बिना किसी परदे । बिना किसी भाव भावना की स्थिति में जान लो तब । अभी आप प्रसाद कुमार सेतिया जीव यानी जीवात्मा हो । जब तक आप मोक्ष ग्यान द्वारा स्वयँ को क्रियात्मक स्तर पर नहीं जान लेते । तब तक आप मूल आत्मा से जुङे मगर जीव भाव वाले जीवात्मा हो । न कि सिर्फ़ आत्मा । और जब तक आप इसे नहीं जान लेते । जनम मरण के चक्कर से जूझते हुये सिर्फ़ एक जीवात्मा ही हो । आत्मा को जानना ही मोक्ष है । सिर्फ़ मानना ही नहीं । मान लो । अभी आप गरीब हो । और कोई आपको बताये कि आपके पूर्बजों का काफ़ी धन विदेश में जमा है । जिसके आप वारिस भी हो । तो सिर्फ़ बताने से क्या आप रईस बन गये ? जब तक आप सभी कार्यवाही करके उस धन को प्राप्त नहीं कर लेते । आप सौ साल भी गरीब के गरीब ही रहोगे । यही खेल जीवात्मा आत्मा और फ़िर परमात्मा का भी है ।
Q 3 ये आत्मा अनादि है ??
ANS - जी हाँ । ये आत्मा अनादि ही है । क्योंकि इसका कभी जन्म नहीं हुआ । और न ही कभी आत्मा का जन्म हो सकता है । इसको आप इस तरह समझे कि उदाहरण के लिये समुद्र परमात्मा और उसकी एक बूँद आत्मा । यदि समुद्र से एक बूँद । हजार बूँद । लाख । करोङ । अरब । खरब बूँद निकाली जाय । तो ये उसका जन्म हुआ कि अंश हुआ ?? बूँद में और समुद्र जल में एक सी ही समानता होगी । पर समुद्र के रूप में वह बहुत ताकतवर है । जबकि बूँद के रूप में अल्पशक्ति वाला ।
Q 4 मैंने उन बाबाजी से दो सवाल किये । पहले सवाल का उत्तर उन्होंने दे दिया । कृपया आप बतायें । क्या उनका उत्तर बिलकुल सही था ??
( तब बाबाजी ने पहले संस्कृत का एक श्लोक बोला । जो मेरी समझ में तो नहीं आया । फ़िर उन्होंने उस श्लोक का हिन्दी में ट्रान्सलेसन करते हुये कहा कि हाँ ये सही है । असली स्वरूप तो हम सबका आत्मा ही है । ) ( ये बाबाजी ने सेतिया जी को उत्तर दिया । )
ANS - जाहिर है कि बाबाजी ने सही उत्तर ही दिया । लेकिन इसको इतना उलझाकर बताने की क्या आवश्यकता थी ?? ये उत्तर तो छोटी मोटी धर्म पुस्तकों में भी लिखा है । और इसको समझाना अधिक कठिन और देर वाली बात हरगिज नहीं है ।..बाबाजी ने आपका जो दूसरा प्रश्न टाल दिया । वह भी मामूली प्रश्न था । एक सच्चे सन्त का कर्तव्य यही है कि जब जिग्यासु जनता सामने प्रश्न पूछ रही हो । तो उसका तुरन्त समाधान करे । दिन रात के बहाने नहीं बनाये जाते । सतसंग का मौका गृहस्थ इंसान को मुश्किल से ही मिलता है । सारी..सेतिया जी । लेकिन ये सच्चे सन्त की पहचान नहीं है । जैसा व्यवहार उन्होंने किया ।
Q 5 अगर दूसरा सवाल मैं आपसे करता । तो आप क्या उत्तर देते ?
ANS - आपके दूसरे सवाल का उत्तर मैंने दे दिया है ।
( अगर वो दूसरे सवाल का जबाब दे देते । तो मैं उनसे तीसरा सवाल भी करता । वो तीसरा सवाल ये था )
Q 6 कि आत्मा और परमात्मा का आपस मैं क्या सम्बन्ध है ?? सुनने मैं आता है कि " आत्मा सो परमात्मा " इसका क्या अर्थ है ?? और क्या आत्मा परमात्मा की संतान है ?? तो क्या परमात्मा वाले सारे गुण आत्मा में भी हैं ??
ANS - ऊपर मैंने लिखा कि आत्मा परमात्मा का अंश है । यही उसका सम्बन्ध भी है । जब ये आत्मा सबसे परे होकर अपनी मूल और आदि सृष्टि ( शुरूआत ) से पहले की अनादि स्थिति को प्राप्त हो जाता है । तब यही परमात्मा है । संतान इसको प्रतीकात्मक और भाव रूप में समझाने हेतु कह दिया । परमात्मा कभी शादी नहीं करता । जो उसकी संतान होगी । यहाँ आपके प्रश्न अनुसार आत्मा और परमात्मा दो अलग स्थितियाँ हो जाती हैं । आत्मा जब सभी जीव आदि भावों से अलग हो गया । तब वो हुआ आत्मा । लेकिन जब वह एक ही रह गया । और सब जान गया । तब हुआ । परमात्मा । कहने का मतलब वही । अनादि स्थिति का हो जाना । मतलब परमात्मा । परमात्मा में कोई गुण नहीं होते । कुछ भी नहीं होता ।
Q 7 आपने बृह्मकुमारी नाम की संस्था के बारे में सुना होगा । वो लोग कहते हैं कि आत्मा का स्वरूप बिल्कुल एक दिव्य तारे ?? जैसा है । जैसे कोई अति सूक्ष्म दिव्य चाँदी जैसा प्रकाश । कृपया बतायें । क्या ये बात सही है ?? हमें आपकी उचित प्रतिक्रिया का इन्तजार रहेगा ।
ANS - ये दिव्य तारा ?? क्या और कैसा होता है ? इसी ब्लाग पर एक पाठक ने कहा कि बृह्मकुमारी वाले कहते हैं कि आत्मा को कभी देखा नहीं जा सकता । फ़िर उन्हें कैसे पता कि वो लाल है कि पीली है । अति सूक्ष्म ? दिव्य चाँदी ? दिव्य तारा ? ये सब चीजें क्या होती हैं । अति सूक्ष्म ?? पर विचार करते हुये सोचिये । फ़िर उन्होंने कौन से सूक्ष्मदर्शी से इसको देखा ? ये सब पढी और सुनी हुयी बातें हैं । असली बात कुछ अलग ही है ? आप खुद सोचिये । ? वाचक निशान वाली ये सभी बात आपको अजीव नहीं लग रहीं ??
Q 1 पहली बात ये निर्गुण सगुण का असली अर्थ क्या होता है ? कोई कहता है । परमात्मा सगुण हैं । पर कोई कहता है । परमात्मा निर्गुण है । कोई यह भी कह देता है । परमात्मा सगुण और निर्गुण दोनों ही है । आप बतायें कि हम किसकी बात पर भरोसा करें ?
ANS - सत रज तम इन तीन गुणों से सृष्टि में सब बना बिगङी या निर्माण विध्वंस हो रहा है । इन तीन गुणों से युक्त को सगुण कहा जाता है । इस तरह लगभग हरेक कोई ही सगुण है । क्योंकि इन तीन गुणों के बिना सृष्टि के एक तुच्छ प्राणी का भी खेल संभव नहीं है । ये तीन गुण माया के हैं । न कि परमात्मा के । परमात्मा से इन गुणों को चेतन रूपी शक्ति मिलती है । वास्तव में परमात्मा निर्गुण है । और उसमें किसी भी तरह की कोई बात नहीं है ।..लेकिन सगुण परमात्मा का भृम इसलिये फ़ैल गया । क्योंकि साधु महात्माओं ऋषि महर्षि आदि ने अपनी किताबों में राम श्रीकृष्ण शंकर आदि को परमात्मा कह दिया । जबकि ये परमात्मा नहीं उपाधि हैं । अब क्योंकि इनमें गुण थे । अतः अग्यानतावश लोग कहने लगे कि परमात्मा सगुण और निर्गुण दोनों ही है । इसको इस तरह कहना तो ठीक है कि ये गुण परमात्मा के होने से हैं । लेकिन परमात्मा में कोई गुण नहीं है । उदाहरण के लिये बिजली पंखा टीवी फ़्रिज आदि चलाती है । और तीनों अलग अलग तरह का कार्य करते हैं । अब आप विचार करिये कि बिजली में कौन सा गुण है ?
पंखा - बिजली हवा देती है क्या ? फ़्रिज - बिजली चीजों को ठंडा करती है क्या ? टीवी - बिजली चित्र दिखाती है क्या ? लेकिन ये सब चल बिजली से ही रहे है । इसी प्रकार अलग अलग गुण परमात्मा के होने से हैं । पर परमात्मा में बिजली की तरह कोई बात नहीं है ।
Q 2 ये जो मैं आपके सामने बैठा हूँ । ये मेरी फ़िजीकल बाडी है । और प्रसाद कुमार सिर्फ़ इस बाडी का नाम है । जिस दिन ये बाडी खत्म हो जायेगी । तब प्रसाद सेतिया भी खत्म । लेकिन इस बाडी के अन्दर जो आत्मा है । वो कहते हैं कि अमर है । और बार बार जन्म लेती है । तो फ़िर मेरी रियल सेल्फ़ real self क्या है ? क्या मैं ही आत्मा हूँ ?? ( ये सेतिया जी ने किसी बाबाजी से सतसंग में पूछा । )
ANS - आत्मा बारबार जन्म नहीं लेती । आत्मा तो न जीता है । न मरता है । आत्मा के साथ जो ये जीव भाव जुङ गया है । यही जन्म लेता और मरता है । आपका रियल सेल्फ़ तो " आत्मा " ही है । और आप भी अभी ?? आत्मा ही हो । ( इस अभी ? में बङा रहस्य है ? ) लेकिन इसको बिना किसी परदे । बिना किसी भाव भावना की स्थिति में जान लो तब । अभी आप प्रसाद कुमार सेतिया जीव यानी जीवात्मा हो । जब तक आप मोक्ष ग्यान द्वारा स्वयँ को क्रियात्मक स्तर पर नहीं जान लेते । तब तक आप मूल आत्मा से जुङे मगर जीव भाव वाले जीवात्मा हो । न कि सिर्फ़ आत्मा । और जब तक आप इसे नहीं जान लेते । जनम मरण के चक्कर से जूझते हुये सिर्फ़ एक जीवात्मा ही हो । आत्मा को जानना ही मोक्ष है । सिर्फ़ मानना ही नहीं । मान लो । अभी आप गरीब हो । और कोई आपको बताये कि आपके पूर्बजों का काफ़ी धन विदेश में जमा है । जिसके आप वारिस भी हो । तो सिर्फ़ बताने से क्या आप रईस बन गये ? जब तक आप सभी कार्यवाही करके उस धन को प्राप्त नहीं कर लेते । आप सौ साल भी गरीब के गरीब ही रहोगे । यही खेल जीवात्मा आत्मा और फ़िर परमात्मा का भी है ।
Q 3 ये आत्मा अनादि है ??
ANS - जी हाँ । ये आत्मा अनादि ही है । क्योंकि इसका कभी जन्म नहीं हुआ । और न ही कभी आत्मा का जन्म हो सकता है । इसको आप इस तरह समझे कि उदाहरण के लिये समुद्र परमात्मा और उसकी एक बूँद आत्मा । यदि समुद्र से एक बूँद । हजार बूँद । लाख । करोङ । अरब । खरब बूँद निकाली जाय । तो ये उसका जन्म हुआ कि अंश हुआ ?? बूँद में और समुद्र जल में एक सी ही समानता होगी । पर समुद्र के रूप में वह बहुत ताकतवर है । जबकि बूँद के रूप में अल्पशक्ति वाला ।
Q 4 मैंने उन बाबाजी से दो सवाल किये । पहले सवाल का उत्तर उन्होंने दे दिया । कृपया आप बतायें । क्या उनका उत्तर बिलकुल सही था ??
( तब बाबाजी ने पहले संस्कृत का एक श्लोक बोला । जो मेरी समझ में तो नहीं आया । फ़िर उन्होंने उस श्लोक का हिन्दी में ट्रान्सलेसन करते हुये कहा कि हाँ ये सही है । असली स्वरूप तो हम सबका आत्मा ही है । ) ( ये बाबाजी ने सेतिया जी को उत्तर दिया । )
ANS - जाहिर है कि बाबाजी ने सही उत्तर ही दिया । लेकिन इसको इतना उलझाकर बताने की क्या आवश्यकता थी ?? ये उत्तर तो छोटी मोटी धर्म पुस्तकों में भी लिखा है । और इसको समझाना अधिक कठिन और देर वाली बात हरगिज नहीं है ।..बाबाजी ने आपका जो दूसरा प्रश्न टाल दिया । वह भी मामूली प्रश्न था । एक सच्चे सन्त का कर्तव्य यही है कि जब जिग्यासु जनता सामने प्रश्न पूछ रही हो । तो उसका तुरन्त समाधान करे । दिन रात के बहाने नहीं बनाये जाते । सतसंग का मौका गृहस्थ इंसान को मुश्किल से ही मिलता है । सारी..सेतिया जी । लेकिन ये सच्चे सन्त की पहचान नहीं है । जैसा व्यवहार उन्होंने किया ।
Q 5 अगर दूसरा सवाल मैं आपसे करता । तो आप क्या उत्तर देते ?
ANS - आपके दूसरे सवाल का उत्तर मैंने दे दिया है ।
( अगर वो दूसरे सवाल का जबाब दे देते । तो मैं उनसे तीसरा सवाल भी करता । वो तीसरा सवाल ये था )
Q 6 कि आत्मा और परमात्मा का आपस मैं क्या सम्बन्ध है ?? सुनने मैं आता है कि " आत्मा सो परमात्मा " इसका क्या अर्थ है ?? और क्या आत्मा परमात्मा की संतान है ?? तो क्या परमात्मा वाले सारे गुण आत्मा में भी हैं ??
ANS - ऊपर मैंने लिखा कि आत्मा परमात्मा का अंश है । यही उसका सम्बन्ध भी है । जब ये आत्मा सबसे परे होकर अपनी मूल और आदि सृष्टि ( शुरूआत ) से पहले की अनादि स्थिति को प्राप्त हो जाता है । तब यही परमात्मा है । संतान इसको प्रतीकात्मक और भाव रूप में समझाने हेतु कह दिया । परमात्मा कभी शादी नहीं करता । जो उसकी संतान होगी । यहाँ आपके प्रश्न अनुसार आत्मा और परमात्मा दो अलग स्थितियाँ हो जाती हैं । आत्मा जब सभी जीव आदि भावों से अलग हो गया । तब वो हुआ आत्मा । लेकिन जब वह एक ही रह गया । और सब जान गया । तब हुआ । परमात्मा । कहने का मतलब वही । अनादि स्थिति का हो जाना । मतलब परमात्मा । परमात्मा में कोई गुण नहीं होते । कुछ भी नहीं होता ।
Q 7 आपने बृह्मकुमारी नाम की संस्था के बारे में सुना होगा । वो लोग कहते हैं कि आत्मा का स्वरूप बिल्कुल एक दिव्य तारे ?? जैसा है । जैसे कोई अति सूक्ष्म दिव्य चाँदी जैसा प्रकाश । कृपया बतायें । क्या ये बात सही है ?? हमें आपकी उचित प्रतिक्रिया का इन्तजार रहेगा ।
ANS - ये दिव्य तारा ?? क्या और कैसा होता है ? इसी ब्लाग पर एक पाठक ने कहा कि बृह्मकुमारी वाले कहते हैं कि आत्मा को कभी देखा नहीं जा सकता । फ़िर उन्हें कैसे पता कि वो लाल है कि पीली है । अति सूक्ष्म ? दिव्य चाँदी ? दिव्य तारा ? ये सब चीजें क्या होती हैं । अति सूक्ष्म ?? पर विचार करते हुये सोचिये । फ़िर उन्होंने कौन से सूक्ष्मदर्शी से इसको देखा ? ये सब पढी और सुनी हुयी बातें हैं । असली बात कुछ अलग ही है ? आप खुद सोचिये । ? वाचक निशान वाली ये सभी बात आपको अजीव नहीं लग रहीं ??
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