अक्सर जिग्यासु लोग मुझसे प्रश्न करते हैं । तो प्रश्न का आधार वर्तमान जानकारी या तथ्यों पर आधारित होता है । जबकि इसके विपरीत प्रश्न । सतयुग या त्रैता युग का होगा । दूसरे जिस ठोस तरीके से जिग्यासु अपनी बात रखता है । उसके पीछे कोई तार्किक वजह भी नहीं होती । वह किसी सुनी या पढी बात के आधार पर ही अपनी बात को जोर देते हैं । अब उदाहरण के तौर पर कई लोग द्वापर को पाँच हजार
साल पहले का बता देते हैं । हँसी तो तब आती है । बहुत से लोग त्रैता को पाँच हजार साल पहले का समय मानते हैं । दरअसल यह इतना जटिल प्रश्न भी नहीं हैं । आप धर्म शास्त्र के अनुसार ज्योतिष गणना कैसे की जाती है । यह तरीका सीख लें । फ़िर राम कृष्ण या अन्य पुरातन लोग जिनके जन्म का विवरण मिलता है । उस संवत आदि से ज्योतिष के अनुसार ये गणना करें । तो वह समय लाखों वर्ष पूर्व का ही
होगा । फ़िर उसी गणना के आधार पर आज तक का चार्ट बनाते हुयें । गणना करतें चलें आये । तो ग्रह नक्षत्र आदि सभी विवरण सटीक बैठेंगे । इससे सिद्ध हो जायेगा । कि ज्योतिष की गणना सही है । और भले ही कुछ लोगों को ये " हौवा " लगती हो । वास्तव में इसको समझना अधिक कठिन नहीं है ।
तो आज मैं आपको " युगों " की आयु के बारे में बता रहा हूँ ।
सत्रह लाख । अठ्ठाईस हजार वर्ष । का सतयुग होता है । बारह लाख । छियानबे हजार साल का । त्रैता युग होता है । आठ लाख । चौसठ हजार साल । का द्वापर युग होता है । चार लाख । बत्तीस हजार साल । का कलियुग होता है । इन चारों युगों का योग एक " महायुग " कहलाता है ।
इसी तरह आपने " घङी " शब्द का समय के रूप में बहुत इस्तेमाल पढा या सुना होगा । एक घङी विश्राम कर लो । इन्तजार की घङिंया कब समाप्त होगीं । लो वो घङी आ ही गयी । जिसका इंतजार था । लेकिन मुझे सेंट परसेंट पता है । कि 99 % लोग नहीं जानते होंगे । कि एक " घङी " आखिर कितना समय होता है ? तुलसीदास ने लिखा है । " एक घङी आधी घङी । आधी हू पुनि आधि । तुलसी संगत साधु की । हरे कोटि अपराध । तो ये एक घङी आखिर कितनी देर की है ?
बहुत से लोग " पल " का समय एक या दो सेकेंड को मानते हैं । जो कि एकदम गलत है । एक पल में । या पलक झपकते ही । आपने सुना होगा । जरा अनुभव करें । हमारी पलक एक या दो सेकेंड में सामान्य अवस्था में नहीं झपकती । बल्कि ठीक चौबीस सेकेंड बाद झपकती है । इस तरह " चौबीस सेकेंड " का एक पल या " पलक " होता है । " साठ पलक " यानी " चौबीस मिनट " की " एक घङी " होती है । साढे सात घङी का " एक पहर " यानी तीन घन्टे का समय होता है । । आठ पहर का " दिन रात " होता है । यानी चौबीस घन्टे का टायम । तो उम्मीद है । आज आप घङी । पल या पलक झपकने के रहस्य को जान गये होंगे ।।
आपने चौरासी लाख । चौरासी लाख योनियाँ कई बार सुना होगा । आईये चलते चलते आपको चौरासी लाख योनियों के बारे में भी बता दें । चौरासी लाख योनियों में । नौ लाख प्रकार के जल जीव हैं । चौदह लाख प्रकार के पक्षी हैं । सत्ताईस लाख प्रकार के कृमि यानी कीट पतंगे आदि जैसे जीव हैं । तीस लाख प्रकार के वृक्ष और पहाङ आदि है । ( वृक्ष और पहाङ भी चौरासी लाख योनियों के अन्तर्गत आते हैं । इन्हें स्थावर योनि कहते हैं ) चार लाख प्रकार के मनुष्य हैं ।
इसी प्रकार बहुत से लोग इस गलतफ़हमी के शिकार हैं । कि इस सृष्टि को ब्रह्मा ने बनाया हैं । आईये इसको भी जानते हैं । सात दीप । नव खन्ड के । इस राज्य का मालिक । निरंजन यानी ररंकार यानी राम यानी कृष्ण यानी काल पुरुष यानी मन हैं । यह सृष्टि निर्माण के बाद अपने आरीजनल रूप को गुप्त करके हमेशा के लिये अदृष्य हो गया । वास्तव में इसकी पत्नी और इसके तीन बच्चे ब्रह्मा विष्णु शंकर भी इसको अपनी इच्छा से नहीं देख सकते हैं । यह अपनी इच्छा से ही किसी को मिलता है । आपको याद होगा । राम अवतार के समय शंकर ने कहा था । हरि व्यापक सर्वत्र समाना । प्रेम से प्रकट होत मैं जाना ।
तब भी इसकी सिर्फ़ आवाज ही आकाशवाणी के द्वारा सुनाई दी थी । वास्तव में यही राम कृष्ण के रूप में अवतार लेता है । और वेद आदि धर्म ग्रन्थ इसी की प्रेरणा से रचे गये हैं । वेदों को तो इसने स्वंय रचा है । सारे धर्म ग्रन्थों में यह यही संदेश देता है । कि यही यहाँ की सबसे बङी शक्ति है । जो निसंदेह सच भी हैं ।
पर ये कहता है । कि इससे ऊपर या परमात्मा को नेति नेति यानी नहीं जाना जा सकता ये गलत है । इसकी पत्नी यानी सतपुरुष का अंश । अष्टांगी कन्या यानी ।आध्या शक्ति ।यानी सीता । यानी राधा यानी ब्रह्मा विष्णु शंकर की माँ । यानी प्रकृति यानी सृष्टि की पहली औरत है । तो ये सात दीप । नव खन्ड की सृष्टि इस तरह बनी । आध्या शक्ति ने " अंडज " यानी अंडे से उत्पन्न होने वाले जीवों को रचा । इनमें तीन तत्व " जल अग्नि वायु " होते हैं । ब्रह्मा ने " पिंडज " यानी पिंड से यानी शरीर से उत्पन्न होने वाले जीवों की रचना की । इनमें मनुष्य को छोङकर वाकी पिंडज जीवों में चार तत्व यानी " अग्नि जल प्रथ्वी वायु " होते हैं । विष्णु ने " ऊष्मज " यानी कीट पतंगे जीवों की रचना की । इनमें दो तत्व " वायु और अग्नि " होते हैं । शंकर जी ने " स्थावर " योनि जीवों यानी वृक्ष पहाङ की रचना की । जिसमें एक तत्व यानी " जल " होता है । यहाँ एक बात विचारणीय है । वास्तव में सभी योनियों और शरीरों में पाँच तत्व होते हैं । लेकिन ऊपर मैंने एक तत्व या दो तीन तत्व की बात कही है । वास्तव में बताये गये तत्व उनमें प्रमुख और अधिकतम होते हैं । जबकि शेष तत्व ना के समान होते हैं । मनुष्य में पाँचो तत्व समान रूप से मौजूद होते हैं ।
" जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । "
" सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । "
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