13 मार्च 2010
राजा जनक को आत्मग्यान की प्राप्ति...3
राजा जनक आत्मज्ञान के लिए अष्टावक्र जी के साथ जंगल की और चल दिए । मार्ग में अष्टावक्र जी ने कहा । राजन तुम मुझसे परमात्म ज्ञान प्राप्त करना चाहते हो । लेकिन इसके बदले में मुझे क्या दोगे ? जनक बोले । महाराज जी मेरा सारा राज्य आपका । अष्टावक्र जी बोले । राज्य तो तुझे भगवान का दिया है । इसमें तेरा क्या है ? जनक बोले । महाराज जी मेरा ये शरीर भी आपका । अष्टावक्र जी बोले । तूने तन तो मुझे दे दिया । लेकिन तेरा मन अपनी चलाएगा । तब जनक बोले । महाराज जी । मेरा ये मन भी आपका हुआ । अष्टावक्र जी बोले । अब ठीक है । अब घोड़े की रकाब में पैर फंसा । और जहाँ मैं कहता हूँ । वहां ध्यान लगा । जनक ने ऐसा ही किया । और उनकी घोड़े पर ही समाधि लग गई । तीन दिन तक समाधि लगी रही । उधर जनक के मंत्री आदि जनक को खोजते हुए जंगल पहुंचे । उन्होंने जनक से कहा । महाराज राज्य में चलिए । जनक ने कहा । राज्य तो अब गुरु महाराज जी का हो गया । तब अष्टावक्र जी ने कहा कि जनक तुम राज्य को मेरा मानकर व्यवस्था करो । इस तरह अष्टावक्र जी ने अपने पिता और सभी कैदियों को रिहा करवा दिया । राजा जनक ने उन्हे गुरु का स्थान दिया । और आत्मज्ञान प्राप्त किया ।
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