25 दिसंबर 2011

क्या पागलपन है स्त्रियों को जलाया

1 सवाल ? खुद पर संदेह करो । मैं अपनी पत्नी का भरोसा नहीं कर पाता हूं । वह मेरी न सुनती है । न मानती है । उसके चरित्र पर भी मुझे संदेह है । इससे चित्त उद्विग्न रहता है । क्या करूं ?
- पत्नी कोई परमात्मा तो है नहीं । जो तुम उस पर भरोसा करो । तुमसे कहा किसने कि - पत्नी पर भरोसा करो ? अरे आस्था करने को तुम्हें कुछ और नहीं मिलता ? श्रद्धा करने का कुछ और नहीं मिलता ? गरीब पत्नी मिली । कुछ श्रद्धा के लिए भी ऊंचाईयां खोजो । लेकिन सिखाया गया है - पत्नियां पतियों पर श्रद्धा करें । पति पत्नियों पर श्रद्धा करें । भरोसा रखें । भरोसा भी रख लोगे । तो क्या होगा ? और जब भी भरोसे की बात उठती है । उसका मतलब ही यह है कि संदेह भीतर खड़ा है । नहीं तो भरोसे का सवाल कहां है ? अगर संदेह है । और संदेह का लीपना है । पोतना है । छिपाना है । और कैसे तुम भरोसा करोगे ? तुम्हें अपने पर भरोसा नहीं है । पत्नी पर कैसे भरोसा करोगे ? सुंदर स्त्री देखकर तुम्हारे मन में क्या होता है ? तो तुम यह कैसे मान सकते हो कि सुंदर पुरुष को देखकर तुम्हारे पत्नी के मन में कुछ भी न होता होगा ? तुम यह कहकर नहीं बच सकते कि मैं मर्द बच्चा, अरे पुरुष की बात और है । गए वे दिन । लद गए वे दिन । किसी की बात और नहीं है । तुम अपने को भलीभांति जानते हो कि जब मैं डांवाडोल होता हूं । तो पत्नी भी कभी न कभी डांवाडोल होती होगी । इसलिए संदेह है ।
संदेह पत्नी पर कम है । संदेह अपने पर ही ज्यादा है । पत्नी पर संदेह प्रश्न के ही बाहर है । पहले तो भरोसा करने की आवश्यकता ही नहीं है । नाहक उद्विग्न हो रहे हो । नाहक परेशान हो रहे हो । मगर बस सिखाई हैं बातें कि पत्नी को पतिव्रता होना चाहिए । 1 पति । बस उस पर ही उसको अपनी नजरें टिका कर रखना चाहिए । फिर वह टिका कर रखती है नजरें । तो भी मुसीबत खड़ी होती है । क्योंकि जब वह पतिव्रता होती है । तो वह तुमको भी चाहती है कि तुम पत्नीव्रता होओ । फिर एक दूसरे के तुम पीछे पड़े हो । जासूसी कर रहे हो । और जिंदगी नरक हो जाती है ।
सरल बनो । सहज बनो । स्वतंत्रता में जीना सीखो । पत्नी के पास अपना बोध है । तुम्हारे पास अपना बोध है । वह अपने जीवन की हकदार है । तुम अपने जीवन के हकदार हो । यह और बात है । वह अपने जीवन की हकदार है । तुम अपने जीवन के हकदार हो । यह और बात कि तुम दोनों ने साथ रहना तय किया । तो ठीक है । लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि तुम एक दूसरे के गुलाम हो । मगर सदियों की गलत शिक्षाओं ने बड़ी झंझट खड़ी कर दी है । 1 से 1 उपद्रव खड़े होते जाते हैं । और उपद्रव खड़े हो जाते हैं । लेकिन हमें दिखाई भी नहीं पड़ते कि उपद्रव के मूल कारण कहां हैं ।
अभी परसों अखबारों में खबर थी कि कुछ गुंडे बंबई में 1 स्त्री को उसके पति और बच्चों से छीनकर ले गये । और धमकी दे गए कि अगर पुलिस को खबर की । तो पत्नी का खात्मा कर देंगे । रात भर पति परेशान रहा । सो नहीं सका । कैसे सोएगा ? प्रतीक्षा करता रहा । सुबह सुबह पत्नी आई । इसके पहले कि पति कुछ बोले । पत्नी ने कहा - मैं स्नान कर लूँ । फिर पूरी कहानी बताऊं । वह बाथरूम में चली गई । वहां उसने कैरोसीन का तेल अपने ऊपर डालकर आग लगा ली । और खत्म हो गई । अब सब तरफ निंदा हो रही है । उन बलात्कारियों की । निंदा होनी चाहिए ।
लेकिन ये लक्षण हैं । ये मूल बीमारियां नहीं हैं । बलात्कारियों की अगर तुम ठीक ठीक खोज करोगे । तो इनके पीछे महात्मागण मिलेंगे । मूल कारण में । और उनकी कोई फिक्र नहीं करता । वही महात्मागण निंदा कर रहे हैं कि पतन हो गया । कलियुग आ गया । धर्मभ्रष्ट हो गया । इन्हीं नासमझों ने यह उपद्रव खड़ा कर दिया है । जब तुम काम को इतना दमित करोगे । तो बलात्कार होंगे । जितना काम दमित होगा । उतने बलात्कार होंगे । अगर काम को थोड़ी सी स्वतंत्रता दो । अगर काम को तुम जीवन की 1 सहज सामान्य साधारण चीज समझो । तो बलात्कार अपने आप बंद हो जाए । क्योंकि न होगा दमन । न होगा बलात्कार ।
अब ऐसा समझो कि तुम्हारी पत्नी अगर किसी पुरुष के साथ ताश खेल रही हो । तो कोई पाप तो नहीं हो गया । बलात्कार तो नहीं हो गया । तुम कोई पुलिस में तो नहीं चले जाओगे एकदम से । और तुमने देख लिया पत्नी को ताश खेलते हुए किसी के साथ । तो पत्नी कोई कैरोसिन डालकर आग जलाकर मर थोड़े ही जाएगी । ताश ही खेल रही थी । पाप क्या हो गया ?
अगर हम काम उर्जा को भी जीवन की सहत सामान्य चीज समझ लें । उसको इतना ऊंचा उठाकर रखा है । इतना सिर पर ढो रहे हैं । उसको इस तरह के ढोंग दे दिये हैं । पवित्रता के और धार्मिकता के ऐसे आभूषण पहना दिये हैं कि मुश्किल खड़ी हो गई है । उसकी वजह से कुछ लोग दमित हैं ।
अब ये जो गुंडे इस स्त्री को उठा ले गये । ये स्वभावतः ऐसे लोग नहीं हो सकते । जिन्होंने जीवन में स्त्री का प्रेम जाना हो । ये ऐसे लोग हैं । जिनको स्त्री का प्रेम नहीं मिला । और शायद इनको स्त्री का प्रेम मिलेगा भी नहीं । स्त्री का प्रेम ये जबरदस्ती छीन रहे हैं । जबरदस्ती छीनने को कोई भी तैयार होता है । जब उसे सहज मिले । जबरदस्ती लिए गये प्रेम का कोई मजा ही नहीं होता । कोई अर्थ ही नहीं होता ।
तो सहज तो प्रेम के लिए सुविधा नहीं जुटाने देते तुम । और अगर सहज प्रेम की सुविधा जुटाओ । तो कहते हो - समाज भ्रष्ट हो रहा है । ये समाज भ्रष्ट हो रहा है । चिल्लाने वाले लोग ही बलात्कारियों को पैदा करते हैं । हर बलात्कारी के पीछे तुम महात्माओं को छिपा पाओगे । तुम्हारे ऋषि मुनियों की संतान हैं ये - बलात्कारी ।
और फिर दूसरी तरफ भी गौर करो । किसी ने भी इस पर गौर नहीं किया । यह स्त्री घर आई । इसने आग लगाकर अपने को मार डाला । इसकी निंदा किसी ने भी नहीं की । बलात्कारियों की निंदा की । जरूर की जानी चाहिए । लेकिन इस स्त्री की निंदा किसी ने भी नहीं की । इस स्त्री ने भी मामले को बहुत भारी समझ लिया । क्योंकि इसको भी समझाया गया है । इसका सब सतीत्व नष्ट हो गया ।
क्या खाक नष्ट हो गया ? सतीत्व आत्मा की बात है । शरीर की बात नहीं । क्या नष्ट हो गया ? जैसे आदमी धूल से भर जाता है । तो स्नान कर लेता है । तो कोई शरीर नष्ट थोड़े ही हो गया कि शरीर गंदा थोड़े ही हो गया ।
यह गलत हुआ । मैं इसके समर्थन में नहीं हूं कि ऐसा होना चाहिए । लेकिन मैं इसके भी विरोध में हूं कि किसी स्त्री को हम इस हालत में खड़ा कर दें कि उसको आग लगाकर मरना पड़े । इसके लिए हम भी जिम्मेवार हैं । बलात्कारी जिम्मेवार हैं । और हम भी जिम्मेवार हैं । क्योंकि अगर यह स्त्री जिंदा रह जाती । तो इसको जीवन भर लांछन सहना पड़ता । जो इसको लांछन सहना पड़ता पड़ता । जो इसको लांछन देते । वे सब इसके पाप में भागीदार हुए । अगर यह स्त्री जिंदा रह जाती । तो इसका पति भी इसको नीची नजर से देखता । इसके बच्चे भी इसको नीची नजर से देखते । इसके पड़ोसी भी कहते कि - अरे यह क्या है । 2 कौड़ी की औरत । हां, अब वे सब कह रहे हैं कि सती हो गई । बड़ा गजब का काम किया । बड़ा महान कार्य किया । अब सती का चौरा बना देंगे । चलो 1 और ढांढन सती हो गई । अब इनकी झांकी सजाएंगे । वही मूढ़ता ।
तुम सब जिम्मेवार हो इस हत्या में । बलात्कार करवाने में जिम्मवार हो । इस स्त्री की हत्या में जिम्मेवार हो । इस स्त्री की भी निंदा होनी चाहिए । इसमें ऐसा क्या मामला हो गया ? इसका कोई कसूर न था । यह कोई स्वेच्छा से उनके साथ गई नहीं थी । इस पर जबरदस्ती की गई थी । अगर कोई जबरदस्ती तुम्हारे बाल काट ले रास्ते में । तो क्या तुम आग लगाकर अपने को मार डालोगे ? कि हमारा सब भ्रष्ट हो गया । हमारा मामला ही खतम हो गया । मगर ऐसे जमाने थे कि अगर रास्तें में कोई मिल जाता । और तुम्हारी मूछ काट लेता - मर गए । इज्जत चली गई । मूंछ कट गई । बात खत्म हो गई ।
अब मूंछ ही कट गई । आजकल तुम खुद ही जाकर रोज सफा करवा रहे हो । और ऐसा नहीं कि कोई नाई की गर्दन काट दो एकदम से कि तूने मेरी मूंछ क्यों काटी । उलटे पैसा देते हो । और नाई न मिले । तो खुद ही सुबह से उठकर रेजर से सफाई करते हो । मगर यह मूंछ कभी बड़ी ऊंची चीज थी । इसकी बड़ी पूछ थी । लोग इस पर ताव दिया करते थे । और जिसकी मूंछ नीची हो गई । उसका सब गया । मूंछ सब गया । मूंछ पर ताव देकर लोग चलते थे । अकड़ का हिस्सा थी । अहंकार का हिस्सा थी ।
यह सतीत्व की धारणा बचकानी है । थोथी है । यह जीवन की सहजता के अनुकूल नहीं है । पहले तो हमें, लोगों के काम जीवन की जितनी मुक्ति दी जा सके । देनी चाहिए । जहां तक बन सके । काम उर्जा को खेल से ज्यादा मत समझो । उसे खेल से ज्यादा गंभीर मत समझो । 1 जैविक खेल । लीला । इससे ज्यादा नहीं । तो क्रांति होगी ।
मगर बहुत गंभीरता से ले रहे हो । तुम कह रहे हो - पत्नी पर मुझे संदेह उठता है । उसके चरित्र पर संदेह उठता है
तुम हो कौन । जिसे पत्नी के चरित्र पर संदेह उठे ? तुम्हें फिक्र करनी है । अपने चरित्र की करो । पत्नी के चरित्र के तुम मालिक हो ? पत्नी की आत्मा के तुम मालिक हो ? पत्नी ने कोई तुम्हारे हाथ अपने को बेचा है ?
नहीं रामेश्वर । संदेह करने को । और बड़ी चीजें हैं । अपने पर संदेह करो । और श्रद्धा करने को । भी और भी बड़ी चीजें हैं । उन पर श्रद्धा करो । कहां छोटी चीजों में उलझते हो । और फिर इन्हीं में दबे दबे मर जाओगे । तो फिर 1 दिन कहोगे कि जिंदगी यूं ही गुजर गई । कुछ अर्थ न पाया । कोई सार्थकता न पाई । पाओगे भी कहां से ?
मनुष्य जाति बहुत सी भ्रांतियों के नीचे दबी जा रही है । मरी जा रही है । सड़ी जा रही है । मगर वे भ्रांतियां इतनी पुरानी हैं । और हम उनको इतना सम्मान देते रहे हैं कि हमें ख्याल में भी नहीं आता कि वे भ्रांतियां हैं । सतियों की अभी भी पूजा चल रही है । गांव गांव सतियों के चौरे हैं । क्या पागलपन है । स्त्रियों को जलाया । जलवाया । जलाने के आयोजन किये । हत्याएं कीं । और सम्मान दे रहे हो ।
और अभी भी यही सिखाया जा रहा है । कुंवारेपन की बड़ी कीमत समझी जाती है कि किसी लड़की का कुंवारा होना एकदम अनिवार्य है । विवाह के पूर्व । क्यों ? बात बिलकुल अवैज्ञानिक है । क्योंकि जिस युवती ने प्रेम का कोई अनुभव नहीं लिया । उसको तुम विवाह कर रहे हो । गैर अनुभवी सूत्री, और अगर दुर्भाग्य से युवक भी भोंदुओं के हाथ में पला हो । तो दोनों गैर अनुभवी । इन दोनों को बांधे दे रहे हो 1 नकेल में । इनकी जिंदगी को तुमने डाल दिया गड्डे में । थोड़े बहुत अनुभव से गुजर जाना उचित है । उपयोगी है ।
अफ्रीका में इस तरह के कबीले हैं । जो इस बात की फिक्र करते हैं कि इस लड़की का कितने लोगों से प्रेम संबंध रहा । जितने ज्यादा लोगों से प्रेम संबंध रहा हो । उतनी ही उसकी कीमत बढ़ जाती है । मैं मानता हूं कि वे ज्यादा मनोवैज्ञानिक हैं । आदिम, मगर ज्यादा कीमती उनका विचार है । क्योंकि जितने लोगों ने इसे प्रेम किया । इसके 2 अर्थ हुए । 1 कि यह स्त्री चाहने योग्य है । इतने लोगों ने चाहा । तो अकारण नहीं चाहा होगा । दूसरी बातः इतने लोगों ने चाहा । तो इसके जीवन में अनुभव है । उस अनुभव के आधार पर इसने कुछ परिपक्वता पाई होगी । कुंवारी लड़की को या कुंवारे लड़के का कोई अनुभव नहीं होता । 2 कुंवारों को बांध देना ऐसा ही है । जैसे 2 सांडों को । जिन्होंने कभी बैलगाड़ी नहीं चलाई । बांध दिया बैलगाड़ी में । तुम भी गिरोगे । सांड भी मुश्किल में पड़ेंगे । और बैलगाड़ी का तो कचूमर निकल जाएगा । दुर्घटना सुनिश्चित है । इसलिए प्रत्येक विवाह दुर्घटना हो जाती है ।
अनुभव से गुजरने दो । और क्यों इतना आग्रह एकाधिपत्य का ? मोनोपोली का ? क्यों तुम संदेह करते हो पत्नी पर ? यह एकाधिपत्य क्यों ? पत्नी कोई वस्तु तो नहीं है कि तुम उसके एकमात्र मालिक हो । अगर पत्नी को रुचिकर लगता हो । किसी और से भी प्रीतिकर संबंध उसके बनते हों । तो तुम क्यों इतने परेशान हुए जा रहे हो ?
नहीं । लेकिन हमारा पुरुष का दंभ बड़ा चोट खा जाता है । तिलमिला जाता है कि मेरे रहते और पत्नी किसी और को सुंदर समझे । और तुम कितनी स्त्रियों को समझ रहे हो । अपनी पत्नी के रहते ? गीता में दबाए बैठे हो हेमामालिनी का चित्र । बातें कर रहे हो कि गीता पढ़ रहे हैं । देख रहे हो हेमामालिनी का चित्र ।
खुद पर संदेह करो - रामेश्वर । पत्नी को खुद सोचने दो । अपने लिए सोचने दो । उसे अपनी जीवन धारा स्वयं नियत करने दो । किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधा न बनो । फिर वह तुम्हारी पत्नी हो । या पति हो । या बेटा हो । या बेटी हो । धार्मिक व्यक्ति का यह लक्षण होना चाहिए कि वह स्वयं की स्वतंत्रता की घोषणा करे । और औरों की स्वतंत्रता का सम्मान करे । इस पृथ्वी पर जितनी स्वतंत्रता बढ़े । उतना शुभ है । हम परमात्मा को उतने ही निकट ला सकेंगे ।
परमात्मा घट सकता है - स्वतंत्रता के 1 वातावरण में ही । इस परतंत्रता में नहीं । इन जंजीरों में नहीं । इन कारागृहों में नहीं । मुक्त होओ । और मुक्त करो ।

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