राजीव जी ! क्या परमात्मा तीनों कालों को जानता है ? तो क्या इससे यह स्पष्ट नहीं कि सब कुछ पहले से फिक्स है ? फिर जीव का क्या रोल है ? ऐसा एक ही परिस्थिति में सही हो सकता है । अगर सब पहले से फिक्स है । और परमात्मा उसे जानता है । तो जीव जो भी करता है । वो हालांकि उसकी स्वतंत्र इच्छा होती है । पर वास्तव में वो उसकी नहीं । परमात्मा की ही इच्छा होती है । कुछ समझ न आ रहा । वैसे भक्ति प्रार्थना इन सबका या यूँ कहो । पूरे जीवन का महत्व है - जीव के लिए । पर कल का चक्कर समझ न आ रहा ? अगर अल्बर्ट आइंस्टीन की मानें । तो समय 1 पाइंट में इक्कठा हो सकता है । समय एक मेंटल प्रोडक्ट है । और आउट ऑफ़ टाइम आइंस्टीन के हिसाब से सोचें तो । या खुद का कुछ दिमाग उसे करे तो । सब कुछ एक ही समय हो रहा है । बस टाइम के कारण फरमे ऑफ़ रेफेरेंस अलग हो जाता है । और सब कुछ अलग अलग लगता है । आप इस सब पर इतना ध्यान दें । अपने हिसाब से आप मुझे बतायें कि चक्कर क्या सब ? रमन महर्षि कहते हैं - परमात्मा न कुछ जानता है । न ही कुछ करता है ? वो बस है ? और सब चीजों का आधार है ! और वो समय के पार है । फिर प्रार्थनायें कौन सुनता है हमारी ? अगर परमात्मा कुछ न करता तो ? कृपया सब बताने की कृपा करें ।
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आगे बात करने से पहले इनका कुछ समय पहले आया हुआ मेल भी देखें । जो उत्तर सहित प्रकाशित हो चुका है । और जिसका शीर्षक है - योगी घटना होने से पहले कैसे जान लेता है ?
- गुरूजी प्रणाम ! मैं यह जानना चाहता हूँ कि - क्या कोई सिद्ध पुरुष सटीक भविष्यवाणी कर सकता है ? और क्या भविष्य पहले से तय होता है । अगर कोई पहले ही भविष्य बता देता है । मतलब कि भविष्य पहले से तय है । और वैसे भी परमात्मा तो सब जानता ही है । भूत । वर्तमान और भविष्य । तो मैं आपसे जानना चाहता हूँ कि - क्या सब कुछ पहले से ही तय होता है क्या ? और योगी कैसे घटना के होने से पहले जान लेता है ? घटना के बारे में । कृपया मेल पर ही जवाब देने का कष्ट करें । धन्यवाद ।
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आगरा में 29 JUNE 2012 से अब तक तापमान 41 डिग्री सेल्सियस के बिन्दु पर ही अटक कर रह गया है । हालांकि आज 2 JULY 2012 की सुबह से हवाओं में कुछ ठंडक है । उस पर बिजली की आवाजाही का आँख मिचौली खेलना अलग से । गर्मी सर्दी इस प्रथ्वी का ऋतु चक्र है । उसे छोङ कर सतसंग करते हैं ।
- भक्ति में ऐसा बैज्ञानिक दृष्टिकोण लिये बैज्ञानिक तरीके से ही जब कोई प्रश्न करता है । तो मुझे भारी खुशी भी होती है । और फ़िर बहुत हद तक निराशा भी । क्योंकि भक्ति में बैज्ञानिकता पर सत्यकीखोज के चर्चा मंच पर बहुत कोणों से कई बार चर्चा हो चुकी है । हमारे बहुत से भक्ति बैज्ञानिक ( सिर्फ़ इसी नेट से बता रहा हूँ ) निरंतर परमानन्द के मार्ग पर चलते हुये सुरति शब्द साधना में अच्छी रिसर्च कर रहे हैं । स्पष्ट शब्दों में कहा जाये । तो प्राप्ति कर रहे हैं । अतः जब हम स्पष्ट कहते हैं - ये सिर्फ़ बातों का विषय नहीं । इसे क्रियात्मक स्तर पर जानिये । और वह क्रियात्मक सिद्ध बिज्ञान हमारे पास है । और आप सहज उसको पा सकते हो । फ़िर भी चलिये । आपकी जिज्ञासाओं पर बात करते हैं ।
( यहाँ तक 2 JULY 2012 को लिखा गया । फ़िर आज 11 july 2012 को )
क्या परमात्मा तीनों कालों को जानता है ? तीनों काल - भूत भविष्य और वर्तमान । वास्तव में आप थोङा गहरायी से सोचें । बारीकी से देखें । तो ये तीन काल की धारणा सिर्फ़ भृम मात्र है । क्योंकि सूर्य न कभी उदय होता है । और न कभी अस्त होता है । कोई तीन काल हैं ही नहीं । सिर्फ़ वर्तमान ही है । है और उसके द्वारा होना । भूतकाल आपकी क्रियाओं के स्मरण का संचित ( और विचार से बना ) पदार्थ है । वर्तमान आपके चेतन की चेतना का अजस्र प्रस्फ़ुटित होना है । इसी चेतन धारा में विचार ( कल्पनाओं ) से बहुरंगी सृष्टि हो रही है । और भविष्य ? क्योंकि जीव ( मनुष्य ) मन ( माना हुआ ) उपकरण द्वारा कार्य करता है । सुख दुख सही गलत की अवस्थाओं का भोक्ता है । अतः पिछली संचित सुख दुख स्मृतियों ( पदार्थ ) के आधार पर चेतन की वर्तमान धारा से ऊर्जा देता हुआ भविष्य का निर्माण करता है । पर यथार्थ में भूत भविष्य दोनों मिथ्या और भृम मात्र है । वर्तमान ही सत्य है । इसी को सन्त मत में कहते हैं - हो रहा है । आत्म ज्ञान में भूत भविष्य का ये भृम मिट जाता है । फ़िर भी अज्ञान स्थिति में द्वैत को भी सत्य मानना ही होता है । अतः परमात्मा सब कुछ जानता है । क्योंकि यह सब खेल सृष्टि प्रंपच उसी की सत्ता में संचालित है ।
सब कुछ पहले से फिक्स है - एक बङे सत्य के आधार पर तो प्रकृति में निरंतर परिवर्तन हो रहा है । अतः कुछ भी एकदम जङता जैसा निश्चित नहीं है । फ़िर भी पदार्थ की आयु गुण और क्रिया अनुसार कुछ कुछ और कुछ समय के लिये fix जैसा महसूस होता है । जैसे कि आपका शरीर । आपका घर और उसमें रखी वस्तुयें । ये कुछ समय के लिये निश्चित ( सा लगता ) है । अब आप कर्म आधार पर इसमें ( अच्छा बुरा ) बदलाव कर सकते हैं । घर ( और शरीर और जीवात्मा ) को परिवर्तित कर अपनी लगन मेहनत से आलीशान सुखदायी ( मोक्ष प्राप्ति ) भी बना सकते हैं । और बदबूदार ( कष्टदायक 84 लाख योनियां नरक आदि ) कबाङखाना भी । लेकिन यह सब मनुष्य योनि में ही संभव है । क्योंकि एकमात्र यही कर्म योनि है । बाकी सभी भोग योनियाँ हैं । उनमें तो जो प्राप्त हुआ । उसे भोगना ही होगा । अच्छा या बुरा भी ।
फिर जीव का क्या रोल है - अपने लिये शाश्वत और श्रेष्ठ को चुनना । उसकी प्राप्ति हेतु भक्ति या कर्म योग करना । जीव अपनी चेतना से जिस ओर ( भाव द्वारा ) प्रवाहित हो जायेगा । वैसे ही रूप आकार पदार्थ आदि निर्मित होने लगेगें ।
पर वास्तव में वो उसकी नहीं । परमात्मा की ही इच्छा होती है - जिस तरह किसी देश राज्य का अपना संविधान होता है । और निवासी उसी के अनुसार संचालित होते हैं । लेकिन फ़िर भी सही गलत करते हुये दण्ड या पुरस्कार पाते हैं । इसलिये मैं और तू के इस खेल में उसका नियम आदेश सर्वोपरि है । इस नियम का पालन या अवहेलना या अनदेखा करने से ही अनगिनत ऊँच नीच परिणाम बनते हैं । जीवात्मा के स्तर पर सुख दुख रूपी ये जीवन सत्य है । और आत्मा के स्तर पर सिर्फ़ खेल । क्योंकि आत्मा सुख दुख सभी अवस्थाओं से परे है ।
भक्ति प्रार्थना इन सबका या यूँ कहो । पूरे जीवन का महत्व है - भक्ति प्रार्थना को अगर दूसरे शब्दों में जीवन ऊर्जा कहें । तो बात जल्दी समझ में आ सकती है । क्योंकि भक्ति प्रार्थना या योग इन सभी क्रियाओं का मतलब जुङना ही है । चेतन की सनातन चेतना से जुङकर ऊर्जा का संगृहण ( कुण्डलिनी या द्वैत के योग ) निश्चित मात्रा में करना । या फ़िर उस असीम सनातन स्रोत ( आत्मा ) से हमेशा के लिये जुङ ( एक होना ) जाना । और प्रकाश ( ज्ञान ) और ऊर्जा के बिना जीवन की एक क्षण के लिये भी कल्पना नहीं की जा सकती । जीवन के लिये प्रकाश और ऊर्जा का जो महत्व है । वही जीवों के लिये भक्ति प्रार्थना और योग का महत्व है ।
अल्बर्ट आइंस्टीन की मानें । तो समय 1 पाइंट में इकठ्ठा हो सकता है - मुझे इस बारें में कोई प्रमाणिक अधिकारिक जानकारी नहीं है कि आइंस्टीन के इस कथन का भाव क्या है । आधार क्या है ? पर आपके लिखित भाव के अनुसार मनुष्य स्तर पर और मनुष्य बिज्ञान के स्तर पर कभी नहीं । हाँ योग के विभिन्न स्तरों पर स्तर अनुसार ही ऐसा हो जाता है । लेकिन प्रश्न ये है कि यहाँ समय से तात्पर्य क्या है ? क्या प्रथ्वी का समय ? या बृह्माण्ड का समय ? या व्यक्ति का 1 जीवन समय । या अब तक हुये जीवन का समय ? या समय का भी समय ( महाकाल ) । इसको समझें । यदि सामान्य व्यक्ति अपना पूर्ण ( सभी जन्मों का ) समय जानना चाहे । तो वह सभी गतिविधियों सहित एक बहुत ही छोटी बिन्दी में स्टोर है ।
परमात्मा न कुछ जानता है । न ही कुछ करता है - परमात्मा कुछ जानता नहीं । ये बात एकदम गलत है । ओशो ने कहा है - वह चीटीं की भी पग ध्वनि सुनता है । योग शास्त्र में इसको इस तरह कहा गया है - जीव और ईश्वर ये दोनों एक ही वृक्ष की डाली पर दोनों बैठे है । ईश्वर निरंतर जीव को देख रहा है । वास्तव में सबकी एक एक क्षण की बात जानता है । अन्यथा फ़िर उसकी सत्ता में उसके भय से थर थर कांपती हुयी ये महा शक्तियाँ अपना कार्य जिम्मेदारी से कैसे करती । सब कुछ अव्यवस्थित हो जाता ।
फिर प्रार्थनायें कौन सुनता है हमारी - श्रीकृष्ण ( के द्वारा आत्मदेव ) ने गीता में कहा है - तुम भूत प्रेत देवी देवता भगवान किसी की भी पूजा करो । वह ( अप्रत्यक्ष ) मेरी ही पूजा है । लेकिन तुम मुझे जिस भाव से भजते ( पूजा ) हो । उसी भाव से मैं तुम्हें प्राप्त होता हूँ । इसको बिजली ( ऊर्जा ) से समझो । आप बिजली के विभिन्न रूपों में से उसका जिस प्रकार का ऊर्जा रूपातंरित ( पेट्रोल । सूर्य किरणें । पानी से । हवा से । अन्य गति से । अणु परमाणु आदि से ) रूप प्रयोग करते हो । और जिस उपकरण में वह ऊर्जा प्रवाहित करते हो । तब बिजली की मात्रा । प्रकार ( A.C DC ) और उपकरण तथा उपकरण में प्रयुक्त घटक ये सभी मिलकर कार्य की कुशलता के आधार पर परिणाम ( नया पदार्थ ) देते हैं । अतः बात वही है - ज्ञान । आपने कौन से भाव से ? किस ज्ञान से ? किस व्यक्ति ( यहाँ उपाधि ) से प्रार्थना की ।
मान लीजिये । एक अनपढ गरीब ( यहाँ अज्ञानी व्यक्ति ) कानूनी गलतियों में फ़ँस जाता है । तो उसके लिये मामूली हवलदार से मजिस्ट्रेट तक सभी माई बाप भगवान हो जाते हैं । उसे सभी के आगे हाथ पैर जोङने होगे । लेकिन एक पुलिस वाले को कुछ सहूलियत हो जाती है । एक दरोगा को और भी अधिक । और एक मजिस्ट्रेट के लिये तो सब बात मामूली । आप गौर करें । तो सभी बात ज्ञान और उसके द्वारा प्राप्त पहुँच पर ही निर्भर करती है ।
बिजली के उदाहरण के आधार पर प्रार्थना या अन्य किसी भी भाव में विभिन्न घटकों द्वारा मिलकर क्रिया के बाद जो निचोङ निष्कर्ष परिणाम पदार्थ तैयार होता है । वही आपको प्राप्त होगा । और इसकी अनगिनत स्थितियाँ हैं । इसलिये प्रश्न यह नहीं है कि - हमारी प्रार्थनायें कौन सुनता है ? सवाल ये है कि हम अपनी प्रार्थनायें किसको और किस तरीके ( ज्ञान ) से सुना रहे हैं ? यह अति महत्वपूर्ण है ।
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आगे बात करने से पहले इनका कुछ समय पहले आया हुआ मेल भी देखें । जो उत्तर सहित प्रकाशित हो चुका है । और जिसका शीर्षक है - योगी घटना होने से पहले कैसे जान लेता है ?
- गुरूजी प्रणाम ! मैं यह जानना चाहता हूँ कि - क्या कोई सिद्ध पुरुष सटीक भविष्यवाणी कर सकता है ? और क्या भविष्य पहले से तय होता है । अगर कोई पहले ही भविष्य बता देता है । मतलब कि भविष्य पहले से तय है । और वैसे भी परमात्मा तो सब जानता ही है । भूत । वर्तमान और भविष्य । तो मैं आपसे जानना चाहता हूँ कि - क्या सब कुछ पहले से ही तय होता है क्या ? और योगी कैसे घटना के होने से पहले जान लेता है ? घटना के बारे में । कृपया मेल पर ही जवाब देने का कष्ट करें । धन्यवाद ।
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आगरा में 29 JUNE 2012 से अब तक तापमान 41 डिग्री सेल्सियस के बिन्दु पर ही अटक कर रह गया है । हालांकि आज 2 JULY 2012 की सुबह से हवाओं में कुछ ठंडक है । उस पर बिजली की आवाजाही का आँख मिचौली खेलना अलग से । गर्मी सर्दी इस प्रथ्वी का ऋतु चक्र है । उसे छोङ कर सतसंग करते हैं ।
- भक्ति में ऐसा बैज्ञानिक दृष्टिकोण लिये बैज्ञानिक तरीके से ही जब कोई प्रश्न करता है । तो मुझे भारी खुशी भी होती है । और फ़िर बहुत हद तक निराशा भी । क्योंकि भक्ति में बैज्ञानिकता पर सत्यकीखोज के चर्चा मंच पर बहुत कोणों से कई बार चर्चा हो चुकी है । हमारे बहुत से भक्ति बैज्ञानिक ( सिर्फ़ इसी नेट से बता रहा हूँ ) निरंतर परमानन्द के मार्ग पर चलते हुये सुरति शब्द साधना में अच्छी रिसर्च कर रहे हैं । स्पष्ट शब्दों में कहा जाये । तो प्राप्ति कर रहे हैं । अतः जब हम स्पष्ट कहते हैं - ये सिर्फ़ बातों का विषय नहीं । इसे क्रियात्मक स्तर पर जानिये । और वह क्रियात्मक सिद्ध बिज्ञान हमारे पास है । और आप सहज उसको पा सकते हो । फ़िर भी चलिये । आपकी जिज्ञासाओं पर बात करते हैं ।
( यहाँ तक 2 JULY 2012 को लिखा गया । फ़िर आज 11 july 2012 को )
क्या परमात्मा तीनों कालों को जानता है ? तीनों काल - भूत भविष्य और वर्तमान । वास्तव में आप थोङा गहरायी से सोचें । बारीकी से देखें । तो ये तीन काल की धारणा सिर्फ़ भृम मात्र है । क्योंकि सूर्य न कभी उदय होता है । और न कभी अस्त होता है । कोई तीन काल हैं ही नहीं । सिर्फ़ वर्तमान ही है । है और उसके द्वारा होना । भूतकाल आपकी क्रियाओं के स्मरण का संचित ( और विचार से बना ) पदार्थ है । वर्तमान आपके चेतन की चेतना का अजस्र प्रस्फ़ुटित होना है । इसी चेतन धारा में विचार ( कल्पनाओं ) से बहुरंगी सृष्टि हो रही है । और भविष्य ? क्योंकि जीव ( मनुष्य ) मन ( माना हुआ ) उपकरण द्वारा कार्य करता है । सुख दुख सही गलत की अवस्थाओं का भोक्ता है । अतः पिछली संचित सुख दुख स्मृतियों ( पदार्थ ) के आधार पर चेतन की वर्तमान धारा से ऊर्जा देता हुआ भविष्य का निर्माण करता है । पर यथार्थ में भूत भविष्य दोनों मिथ्या और भृम मात्र है । वर्तमान ही सत्य है । इसी को सन्त मत में कहते हैं - हो रहा है । आत्म ज्ञान में भूत भविष्य का ये भृम मिट जाता है । फ़िर भी अज्ञान स्थिति में द्वैत को भी सत्य मानना ही होता है । अतः परमात्मा सब कुछ जानता है । क्योंकि यह सब खेल सृष्टि प्रंपच उसी की सत्ता में संचालित है ।
सब कुछ पहले से फिक्स है - एक बङे सत्य के आधार पर तो प्रकृति में निरंतर परिवर्तन हो रहा है । अतः कुछ भी एकदम जङता जैसा निश्चित नहीं है । फ़िर भी पदार्थ की आयु गुण और क्रिया अनुसार कुछ कुछ और कुछ समय के लिये fix जैसा महसूस होता है । जैसे कि आपका शरीर । आपका घर और उसमें रखी वस्तुयें । ये कुछ समय के लिये निश्चित ( सा लगता ) है । अब आप कर्म आधार पर इसमें ( अच्छा बुरा ) बदलाव कर सकते हैं । घर ( और शरीर और जीवात्मा ) को परिवर्तित कर अपनी लगन मेहनत से आलीशान सुखदायी ( मोक्ष प्राप्ति ) भी बना सकते हैं । और बदबूदार ( कष्टदायक 84 लाख योनियां नरक आदि ) कबाङखाना भी । लेकिन यह सब मनुष्य योनि में ही संभव है । क्योंकि एकमात्र यही कर्म योनि है । बाकी सभी भोग योनियाँ हैं । उनमें तो जो प्राप्त हुआ । उसे भोगना ही होगा । अच्छा या बुरा भी ।
फिर जीव का क्या रोल है - अपने लिये शाश्वत और श्रेष्ठ को चुनना । उसकी प्राप्ति हेतु भक्ति या कर्म योग करना । जीव अपनी चेतना से जिस ओर ( भाव द्वारा ) प्रवाहित हो जायेगा । वैसे ही रूप आकार पदार्थ आदि निर्मित होने लगेगें ।
पर वास्तव में वो उसकी नहीं । परमात्मा की ही इच्छा होती है - जिस तरह किसी देश राज्य का अपना संविधान होता है । और निवासी उसी के अनुसार संचालित होते हैं । लेकिन फ़िर भी सही गलत करते हुये दण्ड या पुरस्कार पाते हैं । इसलिये मैं और तू के इस खेल में उसका नियम आदेश सर्वोपरि है । इस नियम का पालन या अवहेलना या अनदेखा करने से ही अनगिनत ऊँच नीच परिणाम बनते हैं । जीवात्मा के स्तर पर सुख दुख रूपी ये जीवन सत्य है । और आत्मा के स्तर पर सिर्फ़ खेल । क्योंकि आत्मा सुख दुख सभी अवस्थाओं से परे है ।
भक्ति प्रार्थना इन सबका या यूँ कहो । पूरे जीवन का महत्व है - भक्ति प्रार्थना को अगर दूसरे शब्दों में जीवन ऊर्जा कहें । तो बात जल्दी समझ में आ सकती है । क्योंकि भक्ति प्रार्थना या योग इन सभी क्रियाओं का मतलब जुङना ही है । चेतन की सनातन चेतना से जुङकर ऊर्जा का संगृहण ( कुण्डलिनी या द्वैत के योग ) निश्चित मात्रा में करना । या फ़िर उस असीम सनातन स्रोत ( आत्मा ) से हमेशा के लिये जुङ ( एक होना ) जाना । और प्रकाश ( ज्ञान ) और ऊर्जा के बिना जीवन की एक क्षण के लिये भी कल्पना नहीं की जा सकती । जीवन के लिये प्रकाश और ऊर्जा का जो महत्व है । वही जीवों के लिये भक्ति प्रार्थना और योग का महत्व है ।
अल्बर्ट आइंस्टीन की मानें । तो समय 1 पाइंट में इकठ्ठा हो सकता है - मुझे इस बारें में कोई प्रमाणिक अधिकारिक जानकारी नहीं है कि आइंस्टीन के इस कथन का भाव क्या है । आधार क्या है ? पर आपके लिखित भाव के अनुसार मनुष्य स्तर पर और मनुष्य बिज्ञान के स्तर पर कभी नहीं । हाँ योग के विभिन्न स्तरों पर स्तर अनुसार ही ऐसा हो जाता है । लेकिन प्रश्न ये है कि यहाँ समय से तात्पर्य क्या है ? क्या प्रथ्वी का समय ? या बृह्माण्ड का समय ? या व्यक्ति का 1 जीवन समय । या अब तक हुये जीवन का समय ? या समय का भी समय ( महाकाल ) । इसको समझें । यदि सामान्य व्यक्ति अपना पूर्ण ( सभी जन्मों का ) समय जानना चाहे । तो वह सभी गतिविधियों सहित एक बहुत ही छोटी बिन्दी में स्टोर है ।
परमात्मा न कुछ जानता है । न ही कुछ करता है - परमात्मा कुछ जानता नहीं । ये बात एकदम गलत है । ओशो ने कहा है - वह चीटीं की भी पग ध्वनि सुनता है । योग शास्त्र में इसको इस तरह कहा गया है - जीव और ईश्वर ये दोनों एक ही वृक्ष की डाली पर दोनों बैठे है । ईश्वर निरंतर जीव को देख रहा है । वास्तव में सबकी एक एक क्षण की बात जानता है । अन्यथा फ़िर उसकी सत्ता में उसके भय से थर थर कांपती हुयी ये महा शक्तियाँ अपना कार्य जिम्मेदारी से कैसे करती । सब कुछ अव्यवस्थित हो जाता ।
फिर प्रार्थनायें कौन सुनता है हमारी - श्रीकृष्ण ( के द्वारा आत्मदेव ) ने गीता में कहा है - तुम भूत प्रेत देवी देवता भगवान किसी की भी पूजा करो । वह ( अप्रत्यक्ष ) मेरी ही पूजा है । लेकिन तुम मुझे जिस भाव से भजते ( पूजा ) हो । उसी भाव से मैं तुम्हें प्राप्त होता हूँ । इसको बिजली ( ऊर्जा ) से समझो । आप बिजली के विभिन्न रूपों में से उसका जिस प्रकार का ऊर्जा रूपातंरित ( पेट्रोल । सूर्य किरणें । पानी से । हवा से । अन्य गति से । अणु परमाणु आदि से ) रूप प्रयोग करते हो । और जिस उपकरण में वह ऊर्जा प्रवाहित करते हो । तब बिजली की मात्रा । प्रकार ( A.C DC ) और उपकरण तथा उपकरण में प्रयुक्त घटक ये सभी मिलकर कार्य की कुशलता के आधार पर परिणाम ( नया पदार्थ ) देते हैं । अतः बात वही है - ज्ञान । आपने कौन से भाव से ? किस ज्ञान से ? किस व्यक्ति ( यहाँ उपाधि ) से प्रार्थना की ।
मान लीजिये । एक अनपढ गरीब ( यहाँ अज्ञानी व्यक्ति ) कानूनी गलतियों में फ़ँस जाता है । तो उसके लिये मामूली हवलदार से मजिस्ट्रेट तक सभी माई बाप भगवान हो जाते हैं । उसे सभी के आगे हाथ पैर जोङने होगे । लेकिन एक पुलिस वाले को कुछ सहूलियत हो जाती है । एक दरोगा को और भी अधिक । और एक मजिस्ट्रेट के लिये तो सब बात मामूली । आप गौर करें । तो सभी बात ज्ञान और उसके द्वारा प्राप्त पहुँच पर ही निर्भर करती है ।
बिजली के उदाहरण के आधार पर प्रार्थना या अन्य किसी भी भाव में विभिन्न घटकों द्वारा मिलकर क्रिया के बाद जो निचोङ निष्कर्ष परिणाम पदार्थ तैयार होता है । वही आपको प्राप्त होगा । और इसकी अनगिनत स्थितियाँ हैं । इसलिये प्रश्न यह नहीं है कि - हमारी प्रार्थनायें कौन सुनता है ? सवाल ये है कि हम अपनी प्रार्थनायें किसको और किस तरीके ( ज्ञान ) से सुना रहे हैं ? यह अति महत्वपूर्ण है ।
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