30 जुलाई 2012

क्या december 2012 में प्रलय होगी ?


जय गुरुदेव ! मैंने प्रलय 2012 के आपके ब्लाग पढे हैं । science की छोङो । आप बताओ कि december 2012 में प्रलय होगी । या नहीं । जो होना है । वो तो अटल सत्य है । फ़िर भी मेरी जिज्ञासा का समाधान करें । एक पाठक की टिप्पणी on लेख - काल पुरुष ने आत्मा को 84 लाख योनियों मे कैसे डाला ? पर ।
कृपया ये भी बतायें कि यदि प्रलय होता है । तो 1 धार्मिक व अधार्मिक लोगों की क्या स्थिति होगी ? 
2 अद्वैत व द्वैत की क्या स्थिति होगी ? 3 लोगों को क्या करना चाहिये ? टिप्पणी 2 on लेख - काल पुरुष ने आत्मा को 84 लाख योनियों मे कैसे डाला ? पर ।
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जैसा कि हर प्रश्न के साथ होता है । उसकी चर्चा जैसे मानसिक स्तर के लोगों के बीच होती है । उत्तर का स्तर और उसकी उच्चता स्पष्टता भी वैसी होती है । दुनियाँ में राजनीति । फ़िल्म । पत्रकारिता । बिज्ञान किसी भी क्षेत्र को ले लें । उसमें एक आम इंसान से लेकर सर्वोच्च स्तर के लोगों तक भाव ज्ञान और विषय की स्पष्टता में बहुत अन्तर आ जाता है ।
इसी दृष्टिकोण से यह खण्ड प्रलय कोई छोटी बात या सामान्य सी घटना नहीं है । प्रकृति विभाग के सामने सबसे बङी समस्या ये है कि 7 अरब आवादी को उसे लगभग 2.50 ( ढाई ) अरब पर लाकर समायोजित करना है 


। ध्यान  रहे । इसमें स्त्री । पुरुष । बालक । युवा । वृद्ध । और जीव जन्तु  ( मनुष्यों की गिनती से अलग ) आदि सभी चींजे आते हैं । प्रकृति ( के सत्ता ) विभाग ( की फ़ाइलों ) के अनुसार 11-11-2011 को इस प्रथ्वी और इसके  तमाम जीवों का लेखा जोखा समाप्त हो चुका है ।
इस बात को मानवीय स्तर पर भी आराम से समझा जा सकता है । कैसे ? आप देख सकते हैं । हर तरह का  व्यवस्था तंत्र असफ़ल हो चुका है । और ऐसा होने पर पुरानी व्यवस्था खत्म करके नयी व्यवस्था को नये सिरे से लागू किया जाता है । अब क्योंकि आवादी । जमीन की कमी । प्रदूषण । जीव जन्तुओं का समाप्त हो जाना आदि आदि चरम के स्तर पर है । और इनका कोई इलाज किसी के पास नहीं है ।
चलिये । एक बार को मान लें । जंगल फ़िर से लगा दियें जायें । जीव जन्तु फ़िर से बढा दियें जायें । बिज्ञान से प्रदूषण आदि का हल भी निकल आये । पर जनसंख्या । और जमीन का कम होना । इसका कोई संतोष जनक हल भी किसी के पास नहीं है । तब एक ही हल बचता है - किसी भी उपाय से जनसंख्या कम हो । और प्रथ्वी का कायापलट होने के लिये भूकंप या ज्वालामुखी जैसी स्थितियाँ बने ।

इसलिये इस खण्ड प्रलय का समय वास्तव में DEC 2011 से MARCH 2012 के बीच ही चरम पर था । जब प्रलय का तांडव शुरू होना था । और इसके संकेत कई स्थानों ( समुद्र भूकंप सुनामी ) से उठे भी थे । जब समुद्र अन्दर से गर्म हो उठा । और कई स्थानों पर भूकंप आदि स्थितियाँ बनी । जमीन के अन्दर से पेट्रोलियम पदार्थ सतह पर ही आ गये । और भी कई स्थानों पर छोटी छोटी विलक्षण अमानवीय घटनायें हुयीं ।

तमाम भविष्य दृष्टाओं के अनुसार वास्तव में अभी प्रलय काल ही चल रहा है । और समय ऊपर भी हो गया है । लेकिन बृह्माण्ड में राई के दाने के समान स्थिति वाली ये प्रथ्वी अभी सिर्फ़ उसी तरह स्थिर है । जैसे महावीरों के अमोघ शस्त्रों से क्षार क्षार हुआ अर्जुन का रथ योगेश्वर श्रीकृष्ण और रथ पताका पर विराजे महावीर हनुमान के होने से बचा हुआ था । युद्ध समाप्त होने पर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा - पहले तुम उतरो । उसके उतरने के बाद श्रीकृष्ण उतरे । और उनके उतरते ही वह दिव्य रथ एक भीषण विस्फ़ोट के साथ उङ गया । अर्जुन के आश्चर्य करने पर श्रीकृष्ण ने कहा - ये तो बहुत पहले ही नष्ट हो चुका था । बस सहयोग से ( इसका अस्तित्व ) बचा हुआ था ।
ठीक यही स्थिति इस समय इस प्रथ्वी की है । प्रथ्वी पर इस समय ( अदृश्य आंतरिक रूप से ) धर्म अधर्म का भीषण संग्राम चल रहा है । धर्म और अधर्म दोनों की बेलें ही इस समय बढी हुयी हैं । अगर कोई भी समझदार व्यक्ति विचार करे । तो ( सिर्फ़ पिछले 30 सालों के अन्दर ) प्रथ्वी पर इस समय हर चीज अपने चरम पर है । धार्मिकता । अधार्मिकता । हिंसा । व्यभिचार । बिज्ञान । कामुकता । बेईमानी । भृष्टाचार । प्रदूषण आदि आदि । लेकिन तमाम पाप कर्मों को यकायक चमत्कारिक ढंग से बढी हुयी धार्मिकता संतुलन दे रही है ।
मैं एक अजीव बात आपके सामने रखता हूँ । जो दरअसल काल पुरुष और माया का फ़ैलाया हुआ जाल है । आपने देखा होगा । एकाएक लोगों का बुद्धिमता स्तर । तमाम कलायें । और तमाम तरह की अमानवीय शक्तियाँ सी मनुष्यों के अन्दर से ( चमत्कार की तरह ) प्रकट हो उठी हैं । कैसे ? एक जीता जागता उदाहरण - आपने T.V पर कई तरह के रियल्टी शो देखे होंगे । उसमें कई क्षेत्रों की कला प्रतिभायें देखी होंगी । सवाल ये है कि - सिर्फ़ 30 साल पहले का मनुष्य क्या एकदम बुद्धू था ? आज छोटे छोटे बच्चों में भी ( बङे % पर ) जिस तरह की नृत्य । संगीत । गायन । अभिनय । अन्य बौद्धिक क्षमतायें आदि देखने में आ रही हैं । ऐसा पिछले 2-3 हजार सालों में कभी नहीं था । दरअसल ये ( मानवीय स्तर पर ) चमत्कार है । अलौकिक शक्तियों ने तमाम जीवों को ( सामूहिक रूप से ) आवेशित ( अधिकतर उसी समय ) किया हुआ है । काल पुरुष के विभिन्न स्तर के देवी देवता और गण एक सेना की तरह कार्य कर रहे हैं । और इसके पीछे एक बहुत बङा रहस्य है ? इस 7 अरब की आवादी में से अपने अपने वोट ( र ) बचाये रखना । जिनसे कि उन्हें शक्ति मिलती हैं । जाहिर है । ये कार्यकर्ता बङे स्तर पर तेजी से काम कर रहे हैं ।
लेकिन ? क्योंकि ये एक खेल भी है । परीक्षा काल भी है । अतः धीर गम्भीर सन्त विभूतियाँ अपने कर्तव्य अनुसार जीवात्माओं को धार्मिक बल दे रही हैं । अब महत्वपूर्ण ये है कि - कौन काल और माया से प्रभावित रहता है । और कौन भक्ति को चुनता है । यही  छंटनी 7 अरब की आवादी में से होनी है । इसलिये ये बङा संवेदनशील समय है । जैसा राम रावण युद्ध ( मर्यादित ) और महाभारत युद्ध ( अमर्यादित ) के समय था । युद्ध के परिणाम के बाद नयी व्यवस्था लागू हो जायेगी ।
मैंने राम रावण युद्ध और महाभारत युद्ध का उदाहरण इसीलिये दिया कि - आप गौर करें । इन दोनों युद्धों को रोकने का प्रयास दोनों ही पक्षों से विभिन्न लोगों ने कई बार किया । और अङचनें डालने वाले और बढावा देने वाले भी कई थे । अतः जब भी ऐसा निर्णय काल आता है । ऐसा हमेशा ही होता है । सृष्टि में सभी तरह के लोग हमेशा ही होते हैं ।
प्रलय को लेकर आंतरिक स्तर पर ठीक यही स्थिति है । जब इसे रोकने और होने देने की ( औपचारिकता जैसी ) जद्दोजहद जारी है । लेकिन जब दुर्योधन ( बढी हुयी आवादी ) सुई की नोक बराबर जमीन छोङने को राजी नहीं । और पांडवों को ( कम से कम ) 5 गांव ( आदमी को सामान्य जीवन हेतु जरूरी सुविधायें ) भी नहीं मिल रहे । तब परिणाम क्या होगा ? कोई भी समझ सकता है । यानी आप किसी भी दृष्टिकोण से सोचें । वर्तमान परिस्थितियों में ( सिर्फ़ संतोषजनक ) सुधार हेतु खण्ड प्रलय के अलावा कोई चारा नहीं । प्रलय का तरीका कोई भी हो । बाह्य रूप से ( दृश्य ) धुँआ ही धुँआ नजर आयेगा । चारों तरफ़ दम घोंटू जहरीला धुँआ । लेकिन ( अधिक ) बङी संभावनाओं में कृमशः ही - परमाणु विस्फ़ोट ( वजह कुछ भी । कैसे भी ) 3rd world war ( वजहें अनेक ) भूकंप ( प्रथ्वी की आंतरिक स्थिति इस समय भूकंपों हेतु सर्वश्रेष्ठ है ) ज्वालामुखी विस्फ़ोट ( धरती के कायाकल्प हेतु आवश्यक प्राकृतिक क्रिया ) ये प्रमुख हैं । जिनमें परमाणु बम और भूकंप की संभावना सर्वाधिक है ।
अब जैसा कि मैंने ऊपर स्पष्ट किया । प्रलय का समय निर्धारित से ऊपर ही चल रहा है । अतः कभी भी शुरूआत हो जाये । कोई आश्चर्य नहीं । इसलिये 2012 के सकुशल जाने की संभावना बहुत क्षीण है । लेकिन  खण्ड प्रलय धीरे धीरे व्यवस्था परिवर्तन करती है । इसलिये ये समय मेरी जानकारी के अनुसार 2012 से 2017 तक होगा । 2020 से पूर्ण शान्ति होकर नया दौर । नयी व्यवस्था । और 2050 से 3050 तक अस्थायी सतयुग । इसके बाद फ़िर से कलियुग के शेष बचे लगभग 15000 वर्ष । ध्यान रहे । इसमें थोङा सामयिक हेर फ़ेर हो सकता है । पर बहुत अधिक नहीं ।
1 धार्मिक व अधार्मिक लोगों की क्या स्थिति होगी ? सीधी सी बात है । अधार्मिक नष्ट होते ही हैं । धार्मिक हमेशा ही बचते हैं ।
2 अद्वैत व द्वैत की क्या स्थिति होगी ? संतुलन रहेगा । सात्विकता का जोर होगा । अद्वैत व द्वैत का असली ज्ञान जानने वालों की संख्या में ( प्रलय बाद ) अच्छी वृद्धि होगी ।
3 लोगों को क्या करना चाहिये ? तब पछताये होत का । जब चिङिया चुग गयी खेत । एकदम निर्णय काल में लोग कुछ नहीं कर सकते । सिर्फ़ अंजाम को भुगतने के । जिसका पुण्य पूर्व संचय है । वही काम आयेगा । जो कंगाल है । उसे बुरी मौत मरना ही होगा । ये ठीक वैसा ही है । जैसे मृत्यु के लिये आ पहुँचे यमदूतों से कोई मरने वाला कहे - 20 साल का मौका और दो । अब प्रभु नाम सुमरन ही करूँगा ।
पर ऐसा कभी होता है ?
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God speaks to each of us as He makes us, Then walks with us silently out of the night  These are the words we dimly hear . You, sent out beyond your recall,
Go to the limits of your longing . Embody me . Flare up like a flame
And make big shadows I can move in
Let everything happen to you: beauty and terror .Just keep going. No feeling is final
Don't let yourself lose me . Nearby is the country they call life
You will know it by its seriousness . Give me your hand .. Rilke 
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10, 9, 8, 7, 6.. excitedly count down to the opening of Abercrombie & Fitch flagship store in Hong Kong on August 11 at 11am sharp ( Hong Kong time )
If you happen to be in town, watch out the hottest A&F guys flying all the way from the US the UK France Germany Italy Denmark Spain Japan Belgium and Singapore to Hong Kong to give you, you, you a surprise meet up in the street starting from August 2.
Are you ready, lucky gals ? Don't forget to snap many pictures. Hot gals meet hot guys, who knows where the sparks will lead? Just imagine  For those who are outside Hong Kong, don't be too jealous. I love the gimmick haha 

जबकि 99% हिन्दू कहते हैं कि वो सेकुलर हैं


जय गुरुदेव ! मैंने प्रलय 2012 के आपके ब्लाग पढे हैं । science की छोङो । आप बताओ कि december 2012 में प्रलय होगी । या नहीं । जो होना है । वो तो अटल सत्य है । फ़िर भी मेरी जिज्ञासा का समाधान करें । एक पाठक की टिप्पणी on लेख - काल पुरुष ने आत्मा को 84 लाख योनियों मे कैसे डाला ? पर ।
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जब कभी इस दुनिया की सबसे नपुंसक कौम का इतिहास पढाया जायेगा । जब कभी इस दुनिया में किसी की नामर्दी के चुटकुले सुनाये जायेंगे । तो उसमें सबसे आगे हिन्दू सेकुलरों का नाम होगा । इस दुनिया में 99% मुल्ला चीख चीख कर कहता है कि - वो सेकुलर नाम का कोढ़ी नहीं है । और उसका इस्लाम सबसे महान है । इसी दुनिया के 99% ईसाई डंके की चोट पर कहने को तैयार हैं कि - वो सेकुलर नहीं हैं । और ईसाई ही दुनिया के राजा हैं । पर उसी दुनिया में 99% हिन्दू ये कहते हैं कि - वो सेकुलर हैं । और सब धर्म समान हैं । वाह रे हिन्दू । ये पुण्य है । हमारे पूर्वज राणा प्रताप और शिवाजी का । और ये सतकर्म हैं । हमारे वर्तमान दुर्गा रुपी साध्वी

प्रज्ञा और राम रुपी कर्नल पुरोहित का । वरना अब तक तुम्हारी मूछों की शान मानी जाने वाली तुम्हारे घर की औरतें लश्कर ए तोइबा के अड्डों पर मुजरा कर रही होती । और तुम उसमें तबला बजा रहे होते ।
मैं साबित करता हूँ कि - तुम हि..ड़े कैसे हो ? और अगर मैं गलत हूँ । तो तुम खुद को मर्द । और मुझे हिजड़ा साबित करो ।
1 पूरी दुनिया के सामने TV में Live लोगों की लाशें बिछाता अजमल कसाब जिसके लिए किसी भी सबूत की कोई जरूरत नहीं है । जिसका सबूत देश का हर वो नागरिक है । जिसके घर में TV है । पर वो जेल में बिरयानी खाकर उसके बचे टुकड़े तुम हिन्दुओं के मुँह पर फेंक रहा है । और वही दूसरी तरफ हमारी देवी प्रज्ञा जिसका 4 बार नार्को टेस्ट हुआ । और वो हर बार निर्दोष पायी गयी । इस 


पूरे हिन्दुस्तान में 1 भी गवाह या सबूत नहीं उसके खिलाफ । फिर भी वो आज जेल में अपनी जिंदगी की आखिरी सांस ले रही है । मैं बताता हूँ । ऐसा क्यों । क्योंकि तुम नामर्द हो ।
2 जिस अफज़ल गुरु ने देश के ह्रदय संसद पर हमला किया । और उसको सुप्रीम कोर्ट ने 2 बार फांसी पर चढ़ा देने का आदेश दिया । पर आज तक वो अपनी वो जिंदगी 5 ***** तिहाड़ में बिता रहा । जो उनसे अपनी कमाई पर सोची भी नहीं थी । पर वही दूसरी तरफ हमारे कर्नल पुरोहित जिसको सेना ने भी साफ़ क्लीन चिट दे दी है । उनको जेल में रख कर हर पल मौत दी जा रही है । मैं बताता हु क्यों । क्योंकि तुम नामर्द हो ।
3 कश्मीर में शायद ही कोई दिन हो । जब किसी हिन्दू का सर ना काटा जाता हो । पर उमर अब्दुल्ला या फारुख अब्दुल्ला मुर्दाबाद का नारा तो दूर । कोई हिन्दू उनका नाम भी नहीं जनता होगा । पर गुजरात के नरेन्द्र मोदी मुर्दाबाद का नारा मुस्लिम बच्चों को पेट से सिखा कर पैदा किया जा रहा है । मैं बताता हूँ । ऐसा क्यों । क्योंकि तुम नामर्द हो ।
4 अगर हिन्दू होने के कारण अरविन्द केजरीवाल संसद में बैठे कुछ गिने चुने चोरों की असलियत बताने के कारण गुनहगार हो गए । तो उसी संसद को AK 47 से भून देने वाला अफज़ल गुरु उस देश का सरकारी दामाद क्यों ? जिस देश में 90 करोड़ हिन्दू रहते हैं । मैं बताता हूँ । ऐसा क्यों । क्योंकि तुम नामर्द हो ।
- जो भी हिन्दू अपने आपको मर्द मानता हो । वो आकर इसका जवाब दे । मैं खुली चुनौती दे रहा । भारत के हर हिन्दू को । यहाँ तक की खुद को भी । हे प्रज्ञा ! हे पुरोहित ! हमें माफ़ करना ।
साभार - http://www.facebook.com/photo.php?fbid=266578070121371&set=a.213501212095724.44871.207580332687812&type=1&theater ( क्लिक करें )
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Often we can't feel a sense of the Divine because we don't let ourselves alone . I believe in a spirituality of radical non-self-interference . If we can just let ourselves be then we will find that in that act of acceptance that there is something really subversive . There is nothing as radical and subversive as an act of acceptance... Sometimes when we call off our search and our hunger for God, it is then that we allow ourselves to be found by the Divine...God is not lost from us...It is rather that we are so often lost and exiled from ourselves and when we call a halt to that search then we find that unknown to ourselves we've already been resting in the tender embrace of God's lovely presence .”John O' Donahue "
साभार - http://www.facebook.com/photo.php?fbid=502926229734185&set=a.414831998543609.114567.414764241883718&type=1&theater ( क्लिक करें )

26 जुलाई 2012

शिवलिंग पर पैर रखने वाले का घर जलाया


HJS Effect - Issue of Converted Christian Laxman Johnson insulting Shivlinga raised in Assembly
Read full story at @ http://www.hindujagruti.org/news/14568.html

शिवलिंग पर पैर रखने वाले का घर जलाया । फ़ेस बुक पर डाली थी तस्वीर ।
Assam - Riots between Bangladeshi Muslims & Native Bodo Hindus ; 41 killed, 2 Lakh Bodo Hindus homeless
Spread this news with every Hindu in Bharat and Serve Dharma !
Girl - ये प्यार कैसे होता है ?
Boy - जब टाइम खराब चल रहा हो । शनि की दशा खराब हो ।
आपका मंगल भारी हो । और भगवान मजा लेने के मूड में हो । 
तब प्यार हो जाता है । 
देख अब तेरे इंतज़ार की तो इंतहा हो गयी ।
नज़र जिधर उठी उधर की हो गयी ।
इंतज़ार हो मगर इतना भी किस काम का ।
खुद जागे रात भर और लगे कि तकदीर सो गयी - पवन अम्बा 
Hi, Are you Praful's friend ?
I am massaging from his cell
If you meet him then
Pls tell him to come & take his mobile from me.
He left it on my bed last night - sunny Leone

23 जुलाई 2012

डॉ. जयंत अठावले


अभी पिछले दिनों हमारे एक परिचित ने किन्हीं सदगुरु डॉ. जयंत अठावले के बारे में बताया । नेट से प्राप्त सूत्रों के अनुसार जिनका भगवा संगठन ‘सनातन संस्था’ के नाम से है । डॉ. जयंत अठावले की शिष्या तनुजा ठाकुर के अनुसार डॉ. जयंत अठावले ने कुछ धार्मिक विषयों पर पुस्तकें भी लिखी हैं । जो भी जानकारी प्राप्त हुयी । वह सत्यकीखोज के पाठकों के लिये पेश है । 
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गोवा बम विस्फोट के 6 महीने बाद राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ( N I A ) ने भगवा संगठन ‘सनातन संस्था’ के प्रमुख से पूछताछ की । और आश्रम पर छापा भी मारा । संस्था के प्रमुख जयंत अठावले से N I A ने उनके रामनाथी आश्रम स्थित आवास पर पूछताछ की । संस्था के मुखपत्र ‘सनातन प्रभात’ ने दावा किया है कि - N I A के 1 दल ने सनातन संस्था के संस्थापक डॉ. जयंत अठावले से उनके आवास पर पूछताछ की ।
हालाँकि इस मामले में पुष्टि के लिए N I A का कोई अधिकारी मौजूद नहीं था । लेकिन सूत्रों का कहना है कि इस दल में धनंजय अष्टेकर भी मौजूद था । जो इस मामले के 4 आरोपियों में से 1 है । ( भाषा )
साभार - हिन्दी बेव दुनिया से । लिंक पर क्लिक करें ।
http://hindi.webdunia.com/news/news/regional/1004/12/1100412010_1.htm
डॉक्टर जयंत बालाजी अठावले की शिष्या - तनुजा ठाकुर का लेख  ।
पिछले 1 वर्ष से हमारे कुछ मित्र हमें पुस्तक लिखने के लिए बारबार कह रहे हैं । वस्तुतः पिछले 14 वर्षों से पूर्ण समय आध्यत्मिक जीवन जीने के कारण यदि कुछ लिख भी सकी । तो इसी विषय पर लिखूंगी । परन्तु मेरे श्रीगुरु ने ऐसा कोई विषय छोड़ा ही नहीं है कि - मैं कुछ लिख सकूँ । जैसे कहा जाता है कि महर्षि व्यास के उपरान्त यदि कोई कुछ भी लिखेगा । तो व्यासोच्छिष्टं ही कहलायेगा । उसी प्रकार मैं कुछ भी लिखने का प्रयास करूँ । तो वह मेरे श्रीगुरु का उच्छिष्ट ही होगा । तभी मन में विचार आया कि श्री गुरु ने जो भी कुछ सिखाया । क्यों न उसे ही पहले शब्दों में पिरो कर उनके चरणों में अर्पण करूँ । इस बात का अच्छे से भान है कि लिखने के लिए मेरे मित्रों द्वारा बोलने वाले भी वही हैं । और आगे जो भी लेखन कार्य होगा । वह भी उन्हीं की प्रेरणा से होगा ।


बात जुलाई 1997 की है । जब हमारे 1 परिचित ने बताया कि उनकी मित्र मंडली  शिरडी जा रही है । और वह मुझे जाने के लिए आग्रह करने लगे । परन्तु आश्चर्य । मैंने उन्हें मना  कर दिया । मुझे शिरडी के साईं बाबा के दर्शन करने की इच्छा कुछ दिनों पहले तक थी । और मैंने उन्हें यह बात बताई भी थी ।  परन्तु अचानक ही वहाँ जाने की इच्छा पूर्णतः समाप्त हो चुकी थी । मैंने उन्हें कहा - अब मुझे किसी तीर्थ क्षेत्र जाने की आवश्यकता नहीं । कारण । मुझे मेरे गुरु के दर्शन हो गए हैं । अब मेरे सारे तीर्थ मेरे श्रीगुरु के चरणों में ही है । ( 2 महीने पूर्व ही मुझे परम पूज्य गुरुदेव डॉक्टर जयंत बालाजी अठावले के दर्शन हुए थे ) मैंने जब यह कहा । तब कोई अपराध बोध नहीं था । और एक आत्म तृप्ति  का भाव था । कुछ समय पश्चात मैंने सनातन संस्था के ग्रन्थ ( बाबा की सीख ) में पढ़ा कि - 1 बार बाबा ( परम पूज्य भक्तराज महाराज ) ने  प्रवास के दौरान परम पूज्य गुरुदेव ( डा. जयंत अठावले ) से कहा कि -  सामने 1 शिव का  मंदिर है । वहाँ जाकर बेल पत्र चढ़ा दो । उन्होंने उसे बाबा के ऊपर चढ़ा दिया । और कहा कि - अब आप ही मेरे शिव हैं । कुछ समय पश्चात परम पूज्य गुरुदेव ने बाबा से पूछा कि - क्या उनकी वह  कृति सही थी । बाबा ने मुस्कुराते हुए हामी भरी । सच तो यही है कि 1 बार शिष्य को सदगुरु के दर्शन हो जाये । तो उसे अपने गुरु के चरणों के सिवा कुछ भी दिखाई नहीं देता । और न ही किसी के दर्शन करने की इच्छा शेष रह जाती है । मई 1997 के पश्चात मुझे किसी - देवता । संत । गुरु । तीर्थ क्षेत्र के दर्शन करने की तीवृ इच्छा नहीं हुई । दर्शन शब्द के तृप्ति का बोध हुआ ।
तनुजा ठाकुर के लेख का लिंक - क्लिक करें ।
http://www.facebook.com/notes/tanuja-thakur/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A4%A3-%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97-%E0%A5%A7/199014486781871?comment_id=2725446&offset=0&total_comments=4
मडगाव धमाके में सनातन संस्था प्रमुख से पूछताछ Apr 11, 11:30 pm
पणजी । गोवा बम धमाके के करीब 6 महीने बाद मामले की जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी [ N I A ] ने हिंदू संगठन सनातन संस्था के प्रमुख डा. जयंत अठावले से पूछताछ की । और संस्था के आश्रम पर छापे मारे । पिछले साल 16 OCT को मडगाव में हुए इस धमाके में 2 लोग मारे गए थे ।
N I A के जांच दल ने अठावले से शनिवार को रामनाथी आश्रम में स्थित उनके घर पर पूछताछ की । संस्था के मुख पत्र 'सनातन प्रभात' में रविवार को इस बारे में जानकारी दी गई । हालांकि जांच एजेंसी के किसी अधिकारी का इस बारे में कोई बयान नहीं आया है । सूत्रों के मुताबिक जांच दल ने इस मामले में गिरफ्तार संस्था के प्रबंध ट्रस्टी धनंजय अस्तेकर से भी पूछताछ की है । पुलिस ने इस मामले में अस्तेकर समेत 4 लोगों को गिरफ्तार किया है । N I A टीम ने संस्था के आश्रम पर छापा मार कर वहां से कुछ सामान अपने कब्जे में लिया है ।
साभार जागरण  याहू . काम से । लिंक पर क्लिक करें ।
http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6329167.html
सभी जानकारी के स्रोत नेट लिंको से साभार ।

13 जुलाई 2012

हमारी प्रार्थनायें कौन सुनता है ?

राजीव जी ! क्या परमात्मा तीनों कालों को जानता है ? तो क्या इससे यह स्पष्ट नहीं कि सब कुछ पहले से फिक्स है ? फिर जीव का क्या रोल है ? ऐसा एक ही परिस्थिति में सही हो सकता है । अगर सब पहले से फिक्स है । और परमात्मा उसे जानता है । तो जीव जो भी करता है । वो हालांकि उसकी स्वतंत्र इच्छा होती है । पर वास्तव में वो उसकी नहीं । परमात्मा की ही इच्छा होती है । कुछ समझ न आ रहा । वैसे भक्ति प्रार्थना इन सबका या यूँ कहो । पूरे जीवन का महत्व है - जीव के लिए । पर कल का चक्कर समझ न आ रहा ? अगर अल्बर्ट आइंस्टीन की मानें । तो समय 1 पाइंट में इक्कठा हो सकता है । समय एक मेंटल प्रोडक्ट है । और आउट ऑफ़ टाइम आइंस्टीन के हिसाब से सोचें तो । या खुद का कुछ दिमाग उसे करे तो । सब कुछ एक ही समय हो रहा है । बस टाइम के कारण फरमे ऑफ़ रेफेरेंस अलग हो जाता है । और सब कुछ अलग अलग लगता है । आप इस सब पर इतना ध्यान दें । अपने हिसाब से आप मुझे बतायें कि चक्कर क्या सब ? रमन महर्षि कहते हैं - परमात्मा न कुछ जानता है । न ही कुछ करता है ? वो बस है ? और सब चीजों का आधार है ! और वो समय के पार है । फिर प्रार्थनायें कौन सुनता है हमारी ? अगर परमात्मा कुछ न करता तो ? कृपया सब बताने की कृपा करें ।
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आगे बात करने से पहले इनका कुछ समय पहले आया हुआ मेल भी देखें । जो उत्तर सहित प्रकाशित हो चुका है । और जिसका शीर्षक है - योगी घटना होने से पहले कैसे जान लेता है ?
- गुरूजी प्रणाम ! मैं यह जानना चाहता हूँ कि - क्या कोई सिद्ध पुरुष सटीक भविष्यवाणी कर सकता है ? और क्या भविष्य पहले से तय होता है । अगर कोई पहले ही भविष्य बता देता है । मतलब कि भविष्य पहले से तय है । और वैसे भी परमात्मा तो सब जानता ही है । भूत । वर्तमान और भविष्य । तो मैं आपसे जानना चाहता हूँ कि - क्या सब कुछ पहले से ही तय होता है क्या ? और योगी कैसे घटना के होने से पहले जान लेता है ? घटना के बारे में । कृपया मेल पर ही जवाब देने का कष्ट करें । धन्यवाद ।

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आगरा में 29 JUNE 2012 से अब तक तापमान 41 डिग्री सेल्सियस के बिन्दु पर ही अटक कर रह गया है । हालांकि आज 2 JULY 2012 की सुबह से हवाओं में कुछ ठंडक है । उस पर बिजली की आवाजाही का आँख मिचौली खेलना अलग से । गर्मी सर्दी इस प्रथ्वी का ऋतु चक्र है । उसे छोङ कर सतसंग करते हैं ।
- भक्ति में ऐसा बैज्ञानिक दृष्टिकोण लिये बैज्ञानिक तरीके से ही जब कोई प्रश्न करता है । तो मुझे भारी खुशी भी होती है । और फ़िर बहुत हद तक निराशा भी । क्योंकि भक्ति में बैज्ञानिकता पर सत्यकीखोज के चर्चा मंच पर बहुत कोणों से कई बार चर्चा हो चुकी है । हमारे बहुत से भक्ति बैज्ञानिक ( सिर्फ़ इसी नेट से बता रहा हूँ ) निरंतर परमानन्द के मार्ग पर चलते हुये सुरति शब्द साधना में अच्छी रिसर्च कर रहे हैं । स्पष्ट शब्दों में कहा जाये । तो प्राप्ति कर रहे हैं । अतः जब हम स्पष्ट कहते हैं - ये सिर्फ़ बातों का विषय नहीं । इसे क्रियात्मक स्तर पर जानिये । और वह क्रियात्मक सिद्ध बिज्ञान हमारे पास है । और आप सहज उसको पा सकते हो । फ़िर भी चलिये । आपकी जिज्ञासाओं पर बात करते हैं ।
( यहाँ तक  2 JULY 2012 को लिखा गया । फ़िर आज 11 july 2012 को )
क्या परमात्मा तीनों कालों को जानता है ? तीनों काल - भूत भविष्य और वर्तमान । वास्तव में आप थोङा गहरायी से सोचें । बारीकी से देखें । तो ये तीन काल की धारणा सिर्फ़ भृम मात्र है । क्योंकि सूर्य न कभी उदय होता है । और न कभी अस्त होता है । कोई तीन काल हैं ही नहीं । सिर्फ़ वर्तमान ही है । है और उसके द्वारा होना । भूतकाल आपकी क्रियाओं के स्मरण का संचित ( और विचार से बना ) पदार्थ है । वर्तमान आपके चेतन की चेतना का अजस्र प्रस्फ़ुटित होना है । इसी चेतन धारा में विचार ( कल्पनाओं ) से बहुरंगी सृष्टि हो रही है । और भविष्य ? क्योंकि जीव ( मनुष्य ) मन ( माना हुआ ) उपकरण द्वारा कार्य करता है । सुख दुख सही गलत की अवस्थाओं का भोक्ता है । अतः पिछली संचित सुख दुख स्मृतियों ( पदार्थ ) के आधार पर चेतन की वर्तमान धारा से ऊर्जा देता हुआ भविष्य का निर्माण करता है । पर यथार्थ में भूत भविष्य दोनों मिथ्या और भृम मात्र है । वर्तमान ही सत्य है । इसी को सन्त मत में कहते हैं - हो रहा है । आत्म ज्ञान में भूत भविष्य का ये भृम मिट जाता है । फ़िर भी अज्ञान स्थिति में द्वैत को भी सत्य मानना ही होता है । अतः परमात्मा सब कुछ जानता है । क्योंकि यह सब खेल सृष्टि प्रंपच उसी की सत्ता में संचालित है ।
सब कुछ पहले से फिक्स है - एक बङे सत्य के आधार पर तो प्रकृति में निरंतर परिवर्तन हो रहा है । अतः कुछ भी एकदम जङता जैसा निश्चित नहीं है । फ़िर भी पदार्थ की आयु गुण और क्रिया अनुसार कुछ कुछ और कुछ समय के लिये fix जैसा महसूस होता है । जैसे कि आपका शरीर । आपका घर और उसमें रखी वस्तुयें । ये कुछ समय के लिये निश्चित ( सा लगता ) है । अब आप कर्म आधार पर इसमें ( अच्छा बुरा ) बदलाव कर सकते हैं । घर ( और शरीर और जीवात्मा ) को परिवर्तित कर अपनी लगन मेहनत से आलीशान सुखदायी ( मोक्ष प्राप्ति ) भी बना सकते हैं । और बदबूदार ( कष्टदायक 84 लाख योनियां नरक आदि ) कबाङखाना भी । लेकिन यह सब मनुष्य योनि में ही संभव है । क्योंकि एकमात्र यही कर्म योनि है । बाकी सभी भोग योनियाँ हैं । उनमें तो जो प्राप्त हुआ । उसे भोगना ही होगा । अच्छा या बुरा भी ।
फिर जीव का क्या रोल है - अपने लिये शाश्वत और श्रेष्ठ को चुनना । उसकी प्राप्ति हेतु भक्ति या कर्म योग करना । जीव अपनी चेतना से जिस ओर ( भाव द्वारा ) प्रवाहित हो जायेगा । वैसे ही  रूप आकार पदार्थ आदि निर्मित होने लगेगें ।
पर वास्तव में वो उसकी नहीं । परमात्मा की ही इच्छा होती है - जिस तरह किसी देश राज्य का अपना संविधान होता है । और निवासी उसी के अनुसार संचालित होते हैं । लेकिन फ़िर भी सही गलत करते हुये दण्ड या पुरस्कार पाते हैं । इसलिये मैं और तू के इस खेल में उसका नियम आदेश सर्वोपरि है । इस नियम का पालन या अवहेलना या अनदेखा करने से ही अनगिनत ऊँच नीच परिणाम बनते हैं । जीवात्मा के स्तर पर सुख दुख रूपी ये जीवन सत्य है । और आत्मा के स्तर पर सिर्फ़ खेल । क्योंकि आत्मा सुख दुख सभी अवस्थाओं से परे है ।
भक्ति प्रार्थना इन सबका या यूँ कहो । पूरे जीवन का महत्व है - भक्ति प्रार्थना को अगर दूसरे शब्दों में जीवन ऊर्जा कहें । तो बात जल्दी समझ में आ सकती है । क्योंकि भक्ति प्रार्थना या योग इन सभी क्रियाओं का मतलब जुङना ही है । चेतन की सनातन चेतना से जुङकर ऊर्जा का संगृहण ( कुण्डलिनी या द्वैत के योग ) निश्चित मात्रा में करना । या फ़िर उस असीम सनातन स्रोत ( आत्मा ) से हमेशा के लिये जुङ ( एक होना ) जाना । और प्रकाश ( ज्ञान ) और ऊर्जा के बिना जीवन की एक क्षण के लिये भी कल्पना नहीं की जा सकती । जीवन के लिये प्रकाश और ऊर्जा का जो महत्व है । वही जीवों के लिये भक्ति प्रार्थना और योग का महत्व है ।
अल्बर्ट आइंस्टीन की मानें । तो समय 1 पाइंट में इकठ्ठा हो सकता है - मुझे इस बारें में कोई प्रमाणिक अधिकारिक जानकारी नहीं है कि आइंस्टीन के इस कथन का भाव क्या है । आधार क्या है ? पर आपके लिखित भाव के अनुसार मनुष्य स्तर पर और मनुष्य बिज्ञान के स्तर पर कभी नहीं । हाँ योग के विभिन्न स्तरों पर स्तर अनुसार ही ऐसा हो जाता है । लेकिन प्रश्न ये है कि यहाँ समय से तात्पर्य क्या है ? क्या प्रथ्वी का समय ? या बृह्माण्ड का समय ? या व्यक्ति का 1 जीवन समय । या अब तक हुये जीवन का समय ? या समय का भी समय ( महाकाल ) । इसको समझें । यदि सामान्य व्यक्ति अपना पूर्ण ( सभी जन्मों का ) समय जानना चाहे । तो वह सभी गतिविधियों सहित एक बहुत ही छोटी बिन्दी में स्टोर है ।
परमात्मा न कुछ जानता है । न ही कुछ करता है - परमात्मा कुछ जानता नहीं । ये बात एकदम गलत है । ओशो ने कहा है - वह चीटीं की भी पग ध्वनि सुनता है । योग शास्त्र में इसको इस तरह कहा गया है - जीव और ईश्वर ये दोनों एक ही वृक्ष की डाली पर दोनों बैठे है । ईश्वर निरंतर जीव को देख रहा है । वास्तव में     सबकी एक एक क्षण की बात जानता है । अन्यथा फ़िर उसकी सत्ता में उसके भय से थर थर कांपती हुयी ये महा शक्तियाँ अपना कार्य जिम्मेदारी से कैसे करती । सब कुछ अव्यवस्थित हो जाता ।
फिर प्रार्थनायें कौन सुनता है हमारी - श्रीकृष्ण ( के द्वारा आत्मदेव ) ने गीता में कहा है - तुम भूत प्रेत देवी देवता भगवान किसी की भी पूजा करो । वह ( अप्रत्यक्ष ) मेरी ही पूजा है । लेकिन तुम मुझे जिस भाव से भजते ( पूजा ) हो । उसी भाव से मैं तुम्हें प्राप्त होता हूँ । इसको बिजली ( ऊर्जा ) से समझो । आप बिजली के विभिन्न रूपों में से उसका जिस प्रकार का ऊर्जा रूपातंरित ( पेट्रोल । सूर्य किरणें । पानी से । हवा से । अन्य गति से । अणु परमाणु आदि से ) रूप प्रयोग करते हो । और जिस उपकरण में वह ऊर्जा प्रवाहित करते हो । तब बिजली की मात्रा । प्रकार ( A.C DC ) और उपकरण तथा उपकरण में प्रयुक्त घटक ये सभी मिलकर कार्य की कुशलता के आधार पर परिणाम ( नया पदार्थ ) देते हैं । अतः बात वही है - ज्ञान । आपने कौन से भाव से ? किस ज्ञान से ? किस व्यक्ति ( यहाँ उपाधि ) से प्रार्थना की ।
मान लीजिये । एक अनपढ गरीब ( यहाँ अज्ञानी व्यक्ति ) कानूनी गलतियों में फ़ँस जाता है । तो उसके लिये मामूली हवलदार से मजिस्ट्रेट तक सभी माई बाप भगवान हो जाते हैं । उसे सभी के आगे हाथ पैर जोङने होगे । लेकिन एक पुलिस वाले को कुछ सहूलियत हो जाती है । एक दरोगा को और भी अधिक । और एक मजिस्ट्रेट के लिये तो सब बात मामूली । आप गौर करें । तो सभी बात ज्ञान और उसके द्वारा प्राप्त पहुँच पर ही निर्भर करती है ।
बिजली के उदाहरण के आधार पर प्रार्थना या अन्य किसी भी भाव में विभिन्न घटकों द्वारा मिलकर क्रिया के बाद जो निचोङ निष्कर्ष परिणाम पदार्थ तैयार होता है । वही आपको प्राप्त होगा । और इसकी अनगिनत स्थितियाँ हैं । इसलिये प्रश्न यह नहीं है कि - हमारी प्रार्थनायें कौन सुनता है ? सवाल ये है कि हम अपनी प्रार्थनायें किसको और किस तरीके ( ज्ञान ) से सुना रहे हैं ? यह अति महत्वपूर्ण है ।

02 जुलाई 2012

अनुराग सागर PDF format डाउनलोड लिंक

हमारे बहुत से ज्ञात अज्ञात पाठक स्नेहीजन समय समय पर इस सत्य ज्ञान के प्रचार प्रसार में अपनी भूमिका निभाते रहे हैं । काल पुरुष एण्ड फ़ैमिली - काल पुरुष उर्फ़ निरंजन । उसकी पत्नी महामाया उर्फ़ आदि शक्ति उर्फ़ महादेवी आदि । इन दोनों के तीनों पुत्र - बृह्मा । विष्णु । महेश । और इनके चेले चमचे 33 करोङ देवी देवता । जिन्होंने छोटे बङे तीर्थों के नाम पर ढोंग की अनेक धार्मिक दुकानें सजा रखी हैं । इस पूरी अखिल सृष्टि की सही शुरूआत और इस त्रिलोकी सत्ता ( जिसमें आप रहते हो ) का निर्माण कैसे हुआ ? सृष्टि की पहली औरत कौन थी ? काल पुरुष घुमा फ़िरा कर अनजाने में जिसकी आप विभिन्न रूपों में पूजा करते हो । इसकी और इसके पूरे परिवार की धूर्तता कपट चालाकी क्या है ? आदि आदि सनसनीखेज रहस्यों के सम्पूर्ण  और प्रमाणिक उत्तर जिस एकमात्र किताब में मिलते हैं । उसका नाम है । कबीर वाणी में - अनुराग सागर । अनुराग सागर जैसी दुर्लभ अनमोल किताब का बाजार मूल्य सिर्फ़ 100 रुपये हैं । हमारे बहुत से पाठक समय समय पर इसके PDF डाउनलोड लिंक का बेव एड्रेस माँगते रहे हैं । जो कि उस समय तक मेरे पास नहीं था । पर अब विदेश में कहीं रहने वाले योगेन्द्र जी ने कल इसका लिंक उपलल्ब्ध कराया है । अतः आप निम्नलिखित लिंक पर क्लिक करके अनुराग सागर को PDF format में डाउनलोड कर सकते हैं । इसकी डाउनलोड की हुयी अटैचमेंट फ़ाइल भी योगेन्द्र जी ने मुझे भेजी है । जिसको मैंने मेल फ़ोल्डर में सेव कर लिया है । अतः आपको अनुराग सागर को PDF format में डाउनलोड करने में कोई दिक्कत आ रही हो । तो मुझे मेल में लिखें । मैं ये मेल आपको forward कर दूँगा । मेरी सलाह है - आप एक बार इस अनमोल किताब को अवश्य पढें । लिंक - अनुराग सागर PDF format डाउनलोड ( क्लिक करें )
http://xa.yimg.com/kq/groups/26166410/1543496589/name/19+Anuragsagar+Vaani.pdf
योगेन्द्र जी का मेल - राजीव जी ! कृपया नीचे दिया हुआ लिंक देखें । आपका बहुत बहुत धन्यवाद् । आपके द्वारा जो काम हो रहा है । उससे लाखों आत्माओं का उद्धार हो रहा है । मैं भी उनमें से ही एक हूँ । मुझे इंडिया आने के बाद गुरूजी से हंस दीक्षा जरूर लेना हैं । ताकि मैं भी अपने असली घर । मालिक को जानकर उनके पास जा सकूँ ।  पुनः आपका धन्यवाद् - योगेन्द्र ।
http://xa.yimg.com/kq/groups/26166410/1543496589/name/19+Anuragsagar+Vaani.pdf
नीचे अनुराग सागर का एक अंश -
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कबीर साहब बोले - हे धर्मदास ! जिस प्रकार कोई नट बंदर को नाच नचाता है । और उसे बंधन में रखता हुआ अनेक दुख देता है । इसी प्रकार ये मन रूपी काल निरंजन जीव को नचाता है । और उसे बहुत दुख देता है । यह मन जीव को भृमित कर पाप कर्मों में प्रवृत करता है । तथा सांसारिक बंधन में मजबूती से बाँधता है । मुक्ति उपदेश की तरफ़ जाते हुये किसी जीव को देखकर मन उसे रोक देता है । इसी प्रकार मनुष्य की कल्याणकारी कार्यों की इच्छा होने पर भी यह मन रोक देता है । मन की इस चाल को कोई बिरला पुरुष ही जान पाता है ।
यदि कहीं सत्य पुरुष का ज्ञान हो रहा हो । तो ये मन जलने लगता है । और जीव को अपनी तरफ़ मोङ कर विपरीत बहा ले जाता है । इस शरीर के भीतर और कोई नहीं है । केवल मन और जीव ये 2 ही रहते हैं । 5 तत्व और 5 तत्वों की 25 प्रकृतियाँ । सत रज तम ये 3 गुण और 10 इन्द्रियाँ ये सब मन निरंजन के ही चेले हैं ।
सत्य पुरुष का अंश जीव आकर शरीर में समाया है । और शरीर में आकर जीव अपने घर की पहचान भूल गया है । 5 तत्व । 25 प्रकृति 3 गुण और मन इन्द्रियों ने मिलकर जीव को घेर लिया है । जीव को इन सबका ज्ञान नहीं है । और अपना ये भी पता नहीं कि - मैं कौन हूँ ? इस प्रकार से बिना परिचय के

अविनाशी जीव काल निरंजन का दास बना हुआ है ।
जीव अज्ञान वश खुद को और इस बंधन को नहीं जानता । जैसे तोता लकङी के नलनी यंत्र में फ़ँसकर कैद हो जाता है । यही स्थिति मनुष्य की है । जैसे शेर ने अपनी परछाईं कुँए के जल में देखी । और अपनी छाया
को दूसरा शेर जानकर कूद पङा । और मर गया । ठीक ऐसे ही जीव काल माया का धोखा समझ नहीं पाता । और बंधन में फ़ँसा रहता है । जैसे काँच के महल के पास गया कुत्ता दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब देखकर भौंकता है । और अपनी ही आवाज और प्रतिबिम्ब से धोखा खाकर दूसरा कुत्ता समझकर

उसकी तरफ़ भागता है । ऐसे ही काल निरंजन ने जीव को फ़ँसाने के लिये माया मोह का जाल बना रखा है ।
काल निरंजन और उसकी शाखाओं ( कर्मचारी देवताओं आदि ने ) ने जो नाम रखे हैं । वे बनाबटी हैं । जो देखने सुनने में शुद्ध माया रहित और महान लगते हैं । पर बृह्म परा शक्ति आदि आदि । परन्तु सच्चा और मोक्षदायी केवल आदि पुरुष का आदि नाम ही है ।
अतः हे धर्मदास ! जीव इस काल की बनायी भूल भूलैया में पङकर सत्य पुरुष से बेगाना हो गये । और अपना भला बुरा भी नहीं विचार सकते । जितना भी पाप कर्म और मिथ्या विषय आचरण है । ये इसी मन निरंजन का ही है । यदि जीव इस दुष्ट मन निरंजन को पहचान कर इससे अलग हो जाये । तो निश्चित ही जीव का कल्याण हो जाय ।
यह मैंने मन और जीव की भिन्नता तुम्हें समझाई । जो जीव सावधान सचेत होकर ज्ञान दृष्टि से मन को देखेगा । समझेगा ।  तो वह इस काल निरंजन के धोखे में नहीं आयेगा । जैसे जब तक घर का मालिक सोता रहता है ।

तब तक चोर उसके घर में सेंध लगाकर चोरी करने की कोशिश करते रहते हैं । और उसका धन लूट ले जाते हैं ।
ऐसे ही जब तक शरीर रूपी घर का स्वामी ये जीव अज्ञान वश मन की चालों के प्रति सावधान नहीं रहता । तब तक मन रूपी चोर उसका भक्ति और ज्ञान रूपी धन चुराता रहता है । और जीव को नीच कर्मों की ओर प्रेरित करता रहता है । परन्तु जब जीव इसकी चाल को समझ कर सावधान हो जाता है । तब इसकी नहीं चलती ।
जो जीव मन को जानने लगता है । उसकी जागृत कला ( योग स्थिति ) अनुपम होती है । जीव के लिये अज्ञान अँधकार बहुत भयंकर अँध कूप के समान है । इसलिये ये मन ही भयंकर काल है । जो जीव को बेहाल करता है ।
स्त्री पुरुष मन द्वारा ही एक दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं । और मन उमङने से ही शरीर में कामदेव जीव को बहुत सताता है । इस प्रकार स्त्री पुरुष विषय भोग में आसक्त हो जाते है । इस विषय भोग का आनन्द रस काम इन्द्री और मन ने लिया । और उसका पाप जीव के ऊपर लगा दिया । इस प्रकार पाप कर्म और सब अनाचार कराने वाला ये मन होता है । और उसके फ़लस्वरूप अनेक नरक आदि कठोर दंड जीव भोगता है ।

दूसरों की निंदा करना । दूसरों का धन हङपना । यह सब मन की फ़ाँसी है । सन्तों से वैर मानना । गुरु की निन्दा करना । यह सब मन बुद्धि का कर्म काल जाल है । जिसमें भोला जीव फ़ँस जाता है ।
पर स्त्री पुरुष से कभी व्यभिचार न करे । अपने मन पर सयंम रखे । यह मन तो अँधा है । विषय विष रूपी कर्मों को बोता है । और प्रत्येक इन्द्री को उसके विषय में प्रवृत करता है । मन जीव को उमंग देकर मनुष्य से तरह तरह की जीव हत्या कराता है । और फ़िर जीव से नरक भुगतवाता है ।
यह मन जीव को अनेकानेक कामनाओं की पूर्ति का लालच देकर तीर्थ वृत तुच्छ देवी देवताओं की जङ मूर्तियों की सेवा पूजा में लगाकर धोखे में डालता है । लोगों को द्वारिका पुरी में यह मन दाग ( छाप ) लगवाता है । मुक्ति आदि की झूठी आशा देकर मन ही जीव को दाग देकर बिगाङता है ।
अपने पुण्य कर्म से यदि किसी का राजा का जन्म होता है । तो पुण्य फ़ल भोग लेने पर वही नरक भुगतता है । और राजा जीवन में विषय विकारी होने से नरक भुगतने के बाद फ़िर उसका सांड का जन्म होता है । और वह बहुत गायों का पति होता है ।


पाप और पुण्य 2 अलग अलग प्रकार के कर्म होते हैं । उनमें पाप से नरक और पुण्य से स्वर्ग प्राप्त होता है । पुण्य कर्म क्षीण हो जाने से फ़िर नरक भुगतना होता है । ऐसा विधान है । अतः कामना वश किये गये यह पुण्य का यह कर्म योग भी मन का जाल है । निष्काम भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ है । जिससे जीव का सब दुख द्वंद मिट जाता है ।
हे धर्मदास ! इस मन की कपट करामात कहाँ तक कहूँ । बृह्मा विष्णु महेश तीनों प्रधान देवता शेषनाग तथा 33 करोङ देवता सब इसके फ़ँदे में फ़ँसे और हार कर रहे । मन को वश में न कर सके । सदगुरु के बिना कोई मन को वश में नहीं कर पाता । सभी मन माया के बनाबटी जाल में फ़ँसे पङे हैं ।

01 जुलाई 2012

इन कथावाचकों की कोई कथा मत सुनो

। श्री अंधे शाह जी ।
भगतौं निकली वहाँ भगतैया । जियतै में मन किहयो न काबू करत फिरत धुरतैया ।
सतगुरु करो भजन बिधि जानो छूटे कपट खटैय्या । अमृत पियो सुनो घट अनहद बाजत बिमल बधैय्या ।
नागिनि जगै चक्र षट बेधैं सातों कमल खिलैय्या । सुर मुनि आय आय कर भेटैं जै जै कार करैय्या ।
ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि सनमुख जग पितु मय्या । अन्धे कहैं अन्त निज पुर हो छूटै जग दुख दैय्या ।
सन्त अंधे शाह कहते हैं - बिना सोचे समझे तोता की तरह राम राम रटने वाली ( अ ) क्रियात्मक भक्ति का फ़ल जब वहाँ ( परिणाम के समय ऊपर ) पता चलता है । तब हाथ मलते हुये पछताने के सिवाय कुछ नहीं रह जाता । जीते जी मन को काबू

में करके सही भक्ति में ( मन को ) नहीं लगाया । और फ़ालतू का नाच  गाना बजाना ढोल मजीरा कीर्तन ( परम्परागत प्रचलित आम पूजा पाठ ) आदि ढोंग करते रहे । तो फ़िर तो सिर्फ़ पछताना ही रह जायेगा । इसलिये सच्चे ? सतगुरु की शरण में जाओ । असली नाम जप ( से नाम कमाई ) की विधि जानो । तो यह संसार का कपट भृम सहज ही उस ( निर्वाणी अजपा स्वासों में स्वयं होता - सोहंग ) नाम के प्रताप से दूर हो जाता है । तात्पर्य है । असलियत का सत्य का स्वतः बोध होने लगता है । तब अंतर ( शरीर के अन्दर ) में प्रवेश करके हँस जीव का आहार अमृत पियो । और जो घट के अन्दर  अनहद ( लगातार ) संगीत की बधाई बज रही है । उसको सुन कर आनन्द  से मस्त हो जाओ । तब नागिन ( कुण्डलिनी ) जाग उठती है । और 6 चक्रों को बेधती ( निशाना बनाना या जागृत होना ) हुयी ( 


कृमशः ) 7 कमलों को खिला देती है ( जो अभी साधारण अवस्था में बन्द हैं ) तब अंतर जगत के देवता मुनि आकर मिलते भेंट करते हुये तुम्हारी जय जयकार करते हैं कि - आज एक पुण्यात्मा से भेंट हुयी ।  जिसने मनुष्य जीवन की कष्टकारक 84 लाख योनियों की भूल भुलैया से निकल कर दिव्यता हासिल की । अहो ! पुण्यात्मा आप धन्य हो । फ़िर ध्यान समाधि के अलौकिक दिव्य प्रकाश में सत नाम की मधुर ध्वनि के साथ जगत के पिता माता के साक्षात दर्शन होते हैं । अंधे शाह कहते हैं - आप चाहे । करोङों वर्ष क्यों न भटको । अन्त में जब कभी निज पुर  ( आत्मा के असली

घर सचखण्ड ) पहुँचते हो । तभी इस संसार की हाय दैय्या से मुक्ति मिलती है । वरना इसमें गन्दी नाली के कीङे की भांति वासनाओं के मल में मलीन रेंगते रहो ।
 । श्री अंधे शाह जी ।
सतगुरु से उपदेस लै छोड़ो सान औ मान । चारौं धाम के किहे का तब फल पावो जान ।
पर नारायन पास में तन तजि करो पयान । है चौथा बैकुंठ यह अन्धे कह हम जान ।
- सन्त अंधे शाह कहते हैं - सदगुरु से उपदेश लेकर झूठे शान मान की भावना को त्याग दो । तो चारों धाम का फ़ल यहीं पाया जानों । मैंने यही जाना है । अन्त समय जब शरीर त्याग कर जाओगे । तो स्वर्ग में नारायण को प्राप्त होओगे ।
तन मन प्रेम लगाय के तीरथ ब्रत जिन कीन । अन्धे कह बैकुँठ गे सिंहासन आसीन ।
पर स्वारथ औ दान करि गे बैकुँठ मँझार । अन्धे कह दोनों दिसा उनकी जै जै कार ।

- तन मन से पूरे प्रेम भाव से जिन्होंने तीर्थ वृत किये । वे स्वर्ग में सिंहासन पर जाकर आसीन हुये । निस्वार्थ दान भक्ति आदि से उन्होंने बैकुंठ प्राप्त किया । और दोनों जगह ( यहाँ भी वहाँ भी ) उनकी जय जयकार हुयी ।
। श्री अंधे शाह जी ।
सिय राम के दर्शन भये नहीं सो तो वक्ता अज्ञानी है ।
सुर मुनि सब कैसे मिलैं उसे पढ़ि सुनि बोलत मृदु बानी है ।


जब कथा बन्द करिकै बैठैं मन करत फिरत सैलानी है ।
अंधे कहैं कैसे गती होय आखिर होती हैरानी है ।
- जिसको आंतरिक रूप से तीसरे नेत्र से सिया ( सुरति ) राम ( अनहद ररंकार ध्वनि ) का दर्शन ( बोध ) नहीं हुआ । वह कथा वक्ता बङा अज्ञानी है । देवता मुनि सभी कैसे उससे मिलें । ऐसा पढा सुना मधुर वचनों से बताते हैं । यह कथा बन्द करके यदि बैठें । तो फ़िर मन सैलानी बना घूमता है । अंधे शाह कहते हैं - हैरानी है । फ़िर अन्दर गति कैसे होगी ?
मति सुनो कथा उस वक्ता की जिन सिया राम को नहि जाना ।
उसमें तो खाली वाक्य ज्ञान वह सान मान में है साना ।
मन अपना काबू किहे बिना कहीं खुलते हैं आँखी काना ।
कहें अंध शाह तन छोड़ि चलै नाना बिधि दुख नहि कल्याना ।
- सन्त अंधे शाह कितनी महत्वपूर्ण बात कहते हैं - उन कथावाचकों की कोई कथा मत सुनो । जिन्होंने सिया ( सुरति ) राम ( ररंकार शब्द ध्वनि ) को यथार्थ रूप तत्व ज्ञान रूप नहीं जाना । उसे तो खाली वाक्यों का ज्ञान है । और वह अपनी झूठी शान

मान ( अहंकार ) में रंगा हुआ है । क्योंकि अपना मन काबू किये बिना ( तीसरी ) आँख ( तीसरा ) कान नहीं खुलते । अर्थात सत्य को सुनना और देखना असंभव है । और अन्त समय जब शरीर छूटता है ।  तब 84 लाख योनियों और घोर नरकों के अपार दुख हैं । फ़िर कल्याण का कोई रास्ता ही नहीं बचता ।
जहाँ भाव तहँ प्रेम है जहाँ प्रेम तहँ भाव । अंधे कह सतगुरु बचन गहौ मगन ह्वै जाव ।
भजन क साधन प्रेम है भजन क साधन भाव । अंधे कह मानो सही न मानौ चकराव ।
- भक्ति का भाव ही शाश्वत प्रेम से जोङता है । मन के 8 भावों - काम क्रोध लोभ मोह मद मत्सर ज्ञान वैराग इनमें ही जीव बरतता है । 9 वां भाव सिर्फ़ प्रेम का है । इसलिये सतगुरु के वचन उपदेश द्वारा इस भाव को गृहण कर मगन हो जाओ । इस निर्वाणी भजन का साधन सिर्फ़ प्रेम ही है । सन्त अंध शाह का कहना मानों । नहीं तो जन्म मरण की इसी अथाह भूल भुलैया में बार बार चकराते भटकते रहोगे ।
। श्री रघुबर दास पासी जी । ( अपढ़ )
घुबर पासी सच कहैं षट झाँकी सब ठौर । मन काबू कीन्हें बिना दौरि रहे सब दौर ।

लखौ षट रूप की शोभा । जाकी माया जगत लोभा । सुरति जो शब्द में चोभा । टूट तब द्वेत के टोभा । खुले तब श्रवण औ नैना । साफ दिल का भया ऐना । भई तब दृष्टि सुखदाई । रूप सन्मुख रहे छाई ।
- सन्त रघुवर पासी कहते हैं - 6 चक्रों ( में होने वाले देव दर्शन ) की झांकी सब जगह ( हर मनुष्य शरीर )  है । इसके लिये किसी स्थान विशेष काशी मथुरा हरिद्वार आदि जाने की कोई आवश्यकता ही नहीं है । इसलिये मन को ( निर्वाणी मंत्र द्वारा ) काबू में किये बिना आपकी ये भाग दौङ ( तीर्थ आदि ) सब बेकार ही है । इसलिये इन 6 चक्रों की अदभुत झांकी को अंतर की आँखों ( 3rd eye ) से साक्षात देखो । जिसकी माया से यह जगत मुग्ध हो रहा है । उसको देखो । सुरति को जब शब्द ( मष्तिष्क में स्वयं गूँजती ररंकार ध्वनि ) से जोङा । तब ये द्वैत का भृम टूट गया । सब में वही 1 नजर आने लगा । तभी तीसरी आँख 3rd eye और तीसरा कान खुल गया । दिल का  दर्पण साफ़ होकर चमकने लगा । इस रूप अनुभव को देखते हुये दृष्टि सुखदाई हो उठी ।
। श्री महंगू धोबी जी । ( अपढ़ )
मन जब तक साधू नहीं तन साधू बेकार । मन जब साधू हवै गयो दोनों दिशि जैकार ।
मन को नाम के रंग रंगै तब होवै भव पार । केवल कपड़े के रंगे मिलत नहीं सुख सार ।
मन मानी जो कोइ करै वाको काम है फीक । सुर मुनि जो कहि लिखि गये उनकी वाक्य है ठीक ।
कामी क्रोधी तरत हैं लोभी नर्क को जाय । उनका मन हरदम मगन लोभ में रहा समाय ।


महँगू धोबी जाति का पढ़ा नहीं कछु जान । राम नाम सतगुरु दियो मुक्ति भक्ति भा ज्ञान ।
त्यागि तन चढ़ि सिंहासन पर । पहुँचिगे अपने आसन पर ।
- सन्त महंगू धोबी कहते हैं - जब तक मन से साधु नहीं हुआ । तब तक कपङे आदि रंग कर शरीर पर तिलक वन्दन चन्दन करने से कोई लाभ नहीं । लेकिन जब सही अर्थों में मन से साधु ( नाम जप से हुआ क्रियात्मक आंतरिक परिवर्तन ) हो गया । तब दोनों दिशाओं ( इस प्रथ्वी पर और अन्दर सूक्ष्म जगत ) में  जय जयकार होती है । मन को इस स्वांसों में गूँजते सत्य नाम ( सो-हंग ) के रंग में रंगो । तभी इस संसार सागर से पार हो सकते हैं । बाकी सिर्फ़ कपङे रंगने से कुछ हासिल नहीं होगा । इसलिये जो 


कोई मनमानी करता है । उसका काम फ़ीका है । देवता ऋषि मुनियों ने अपने उपदेश में ऐसा ठीक ही कहा है । कामी क्रोधी भी इस नाम के प्रताप से तर जाते हैं । लेकिन हर समय लोभ में ही डूवा रहने वाला नरक को जाता है । सन्त रैदास की तरह महंगू सन्त कहते हैं कि - मैं जाति का धोबी हूँ । पढा लिखा नहीं । कोई ज्ञान भी नहीं । लेकिन सतगुरु ने ये राम नाम ( ररंकार - प्रथम स्थिति सोहंग ) देकर मुझे असली मुक्ति भक्ति का अनमोल ज्ञान दिया । इसलिये मैं तो शरीर छूटने क्के बाद सिंहासन पर चढकर अपने पद को प्राप्त करूँगा ।
- विशेष गौर करें । ये अनपढ थे । और जाति के धोबी थे ।
। श्री कसनी साह जी । ( अपढ़ )
अहंकार की पिये शराब । लोभ क खाते सदा कबाब ।
जम पकड़ैं तब हो बेताब । तब किमि देवैं उन्हैं जवाब ।
नर्क में जायके उनको छोड़ैं । राम नाम ते जे मुख मोड़ैं ।
हाय हाय हरदम चिल्लावैं । फटकि फटकि के मुख को बावैं ।
सन्त कसनी भी अनपढ थे । कसनी कहते हैं - ये इंसान जिन्दगी भर लोभ रूपी कबाब खाता है । और अहंकार रूपी शराब के नशे में रहता है । फ़िर मृत्यु के बाद जब जम उसको पकङते हैं । तब फ़ङफ़ङाता है । अब क्या और कैसे अपने अपराधों का जबाब दे ? इसलिये इस शरीर के रहते जो राम नाम ( स्वांसों में गूँजता निर्वाणी नाम ) से मुख मोङे रहते हैं ।  फ़िर उनको नरक ही नसीब होता है । तब वे नरक में पछताते हुये हरदम हाय हाय  चिल्लाते हुये मुँह फ़ाङते रहते हैं ।
कामी क्रोधी तरि गये लोभी नर्क को जाँय । बार बार जनमैं मरैं चौरासी चकरांय ।
बहुत बड़ा बिस्तार है कहं लगि को लिखि पाय । यासे श्री रामै भजै अन्त में निज पुर जाय ।
- कसनी कहते हैं - इस नाम के प्रताप से कामी क्रोधी भी तर गये । लेकिन लोभी बार बार जनमते मरते हुये

84 लाख योनियों में भटकते रहते हैं । इस 84 लाख योनियों में दुसाध्य कष्टों का कोई पार नहीं है । कहाँ तक लिखा जाये । इसलिये राम का भजन करता हुआ आयु पूरी होने पर अपने असली घर सचखण्ड पहुँचने का इंतजाम कर ।
मान बड़ाई सुनि खुश होवैं । सो चलि अन्त नर्क में रोवैं ।
निंदा सुनि के क्रोध जो करहीं । सो भी जाय नर्क में परहीं ।
अस्तुति निंदा सम करि मानै । सो बसि पावै ठीक ठेकानै ।
कसनी साह अपढ़ की बानी । सोधि लेहु मैं हौं अज्ञानी ।
मिला साकेत स्थाई । अचल पदवी जो कहलाई ।
बिना हरि के भजे भाई । कौन वहँ पर सकै जाई ।


दास रघुबर कहैं गाई । जौन जाना सो लिखवाई ।
- इस संसार में जो मान बङाई सुन कर खुश होते हैं । वे भी अन्त में नरक में जाकर रोते है । जो अपनी निंदा सुन कर क्रोध करते हैं । वो भी अन्त समय नरक में गिरते हैं । लेकिन जो प्रशंसा और निंदा को समान समझते हैं । वो सही स्थान पाते हैं । सन्त कसनी कहते हैं - मैं अनपढ अज्ञानी हूँ । फ़िर भी स्थाई स्थान और अचल पदवी जो मुझे मिली । बिना हरि ( स्वांस - शरीर को हरा भरा रखने के कारण असल अर्थों में स्वांस को ही हरि कहा जाता है ) को भजे हे भाई  ! वहाँ जाना मुमकिन ही नहीं है । इसलिये मुझे जो अनुभव में आया । वही मैंने लिखवाया ।