मैंने अपने लेखों में कई बार जिक्र किया है । होनी वो शक्ति है । जो बङी बङी महाशक्तियों को नचा देती है । इसके आगे किसी की नहीं चलती । यही वो शक्ति है । जो सिर्फ़ परमात्मा का आदेश मानती है । मुझे अन्य सच्चे अलौकिक अनुभवों के साथ साथ होनी से जुङी घटनाओं में भी बेहद दिलचस्पी रही है । होनी हो के रहती है । होनी टलती नहीं । होनी होनी थी । आदि सूत्र वाक्य प्रसिद्ध कहावतों की तरह सुनने में आते हैं । तुलसीदास भी होनी के आगे समर्पण करना ही उचित समझते हैं । इसलिये कहते हैं - तुलसी भरोसे राम के । निर्भय होकर सोय । अनहोनी होनी नहीं । होनी होय सो होय ।
क्योंकि ये बहुत बङी शक्ति है । मुझे इसकी घटनाओं के अध्ययन में हमेशा ही उत्सुकता रही । इत्तफ़ाकन अभी मेरी जानकारी में एक खास घटना आयी । जो होनी के साथ साथ प्रेतत्व से भी जुङी है । बात एक ग्रामीण युवक की है । जो लगभग 30 साल का था । और जीवन के प्रति बहुत आशान्वित था । मरना उसे कतई पसन्द नहीं था । और वह अपनी हालिया जिन्दगी को पूरे उल्लास से जीता था । कुछ ही वर्ष पूर्व विवाहित भी हुआ था ।
यह युवक एक दिन साइकिल पर बाजार आया हुआ था । भीङ बहुत थी । और एक स्थान पर जाम की स्थिति बनी हुयी थी । जाम में जहाँ ये फ़ँसा हुआ था । इसके ठीक आगे एक बङा ट्रक था । और आसपास भी तमाम तरह के छोटे बङे वाहन फ़ँसे हुये थे । कहने का मतलब । स्थिति ये नहीं थी कि कोई भी अपनी जगह से हिल सके ।
इसी समय घुर्र घुर्र करते वाहन अपने को आगे पीछे एडजस्ट करते हुये जाम खत्म होते ही निकलने को बेकरार थे
। ऐसे ही समय में जाम में जैसे ही दो तीन फ़ुट की सांस पैदा हुयी । ट्रक वाले ने ट्रक को थोङा सा पीछे लिया । और ये युवक एक टांग सहित लोड ट्रक के नीचे दब गया । साइकिल गिर गयी । और उसकी टांग उस भारी ट्रक के पहिये के नीचे दबी हुयी थी । बाकी शरीर सुरक्षित था । कमाल की बात थी । अपनी अपनी धुन और व्यस्तता में व्यस्त आसपास के बहुत कम लोग इस बात को जान पाये । क्योंकि शोर भी बहुत था । युवक बेतहाशा सहायता के लिये चिल्ला रहा था । तब एक सामने की दुकान वाले का ध्यान उस पर गया । ड्राइवर की खिङकी उसके सामने पङ रही थी । हङबङाहट में उसने कहा - तुम्हारे ट्रक के पहिये से आदमी दब गया । काफ़ी शोरगुल में ट्रक वाला अभी भी वस्तुस्थिति नहीं समझ पाया । पर दुकानदार के मुँह पर आते भावों और उसके इशारे से उसने स्थिति की गम्भीरता का अन्दाजा लगाया । और हङबङाहट में ही उसने बिना सोचे समझे ट्रक को और भी गुंजाइश भर पीछे कर दिया । दरअसल वह समझा । अगले पहिये से कोई दबा है । रहा सहा वह युवक पूरी तरह ट्रक के नीचे दब गया । गौर से समझें । ये सब अधिकतम दस मिनट से भी कम समय में हो गया ।
खैर..एक इंसान का मामला था । तुरन्त हल्ला मच गया । जगह आदि करके युवक को निकाला गया । ट्रक को
कोतवाली भेज दिया । ( ध्यान दें । इस मत्यु को कानूनन हत्या नहीं माना जाता । और एक ट्रक बस ड्राइवर से इस तरह के सात एक्सीडेंट उसके प्रारम्भिक समय में माफ़ होते हैं । सजा आदि नहीं होती ) युवक को अस्पताल भेजा गया । उसके परिजनों को तुरन्त सूचना दी गयी ।
जैसा कि मैंने ऊपर कहा । युवक हौसले मन्द था । जीवन के प्रति उल्लसित और आशा पूर्ण था । अतः डाक्टर और घरवाले उसे ठीक होने की कोई दिलासा देते । वह उल्टे उन्हें ही जोश से कहता रहा - तुम लोग फ़िक्र न करो । मुझे कुछ नहीं होगा । मैं एकदम ठीक हो जाऊँगा । वह फ़िर फ़िर बार बार इस बात को दोहराता । और तब मौत ने उस पर झपट्टा मारा । और उसके प्राण पखेरू अज्ञात को उङ गये ।
हम जाने थे खायेंगे । बहुत जिमि बहु माल । ज्यों का त्यों ही रह गया । पकर ले गया काल ।
काची काया मन अथिर । थिर थिर कर्म करन्त । ज्यों ज्यों नर निधड़क फिरे । त्यों त्यों काल हसन्त ।
निकल गयी । और वो हल्की सी स्याह उस आकृति को देख रही थी । जो मृतक की पत्नी के ठीक पीछे आभासित हो रही थी । दूसरी महिला के शरीर में मोबायल फ़ोन के वायव्रेशन के समान हल्का मगर आंतरिक रूप कंपन होने लगा ।
- मुझे ऐसा लगा । वह मुझसे बोली - यकायक मुझे सर्दी सी लगने लगी हो । मुझे ये भी पता था कि वहाँ कोई आकृति नहीं है । पर साफ़ साफ़ ऐसा लग रहा था । वहाँ आकृति जैसा कुछ है । और मेरे शरीर के सभी रोंगटे खङे हो चुके थे । निसंदेह वह एक्सीडेंट में मृतक हुआ उसका पति ही था । मेरी सारी सहानुभूति एकदम फ़ुर्र हो गयी । और मैं सचेत हो गयी । मृतक की पत्नी अपनी रौ में बोले जा रही थी । पर मैं प्रभु को एकाग्रता से याद करने लगी । और धीरे धीरे मेरी स्थिति सामान्य हुयी । फ़िर मैंने वहाँ रुकना उचित न समझा । और हाँ हूँ करती हुयी जल्दी का बहाना बनाकर विदा हो गयी ।
- लेकिन ये मेरा दूसरा भूतिया अनुभव था । महिला ने फ़िर कहा - इससे पहले भी अज्ञात अदृश्य बाधा से मेरा सामना हुआ था । मैं गाँव के ही एक रास्ते पर वृक्ष के नीचे किसी परिचित के इंतजार में खङी थी । उस वृक्ष से कुछ ही फ़ासले पर हिन्दू शमशान था । चिताओं के अक्सर जलते रहने से जमीन पर मनुष्याकार काले निशान मौजूद थे । और उस समय भी एक चिता अंतिम अवस्था में जलती हुयी सुलग रही थी । मुझे एक तेज झुरझुरी सी आयी । खबर नहीं पल की । तू बात करता कल की । मनुष्य जीवन का अन्त ये है - खाक हो जाना । कौन होगा ये इंसान ? जो कुछ ही घण्टों में राख के ढेर में बदल गया । एक दिन ऐसा होयगा । कोय काहु का नांहि । घर की नारी को कहे । तन की नारी जांहि ।
आप समझ सकते हैं । लाश शमशान और चिता मनुष्य में क्षणिक ही सही वैराग उत्पन्न कर देते हैं । गर्मियों की
लगभग दोपहर का समय था । स्वाभाविक ही मेरा जुङाव उस चिता में जल चुके मृतक से हो गया । मरने के बाद कहाँ गया होगा वह ? आगे क्या हुआ होगा ? आदि आदि ।
पर वहाँ से हटते ही मैं ये बात भूल गयी । लेकिन शाम को फ़ारिग होकर जब मैं लेटने लगी । मेरे पैरों ( पिण्डलियों ) में तेज ऐंठन शुरू हुयी । अजीव सी । और बहुत तेज ऐंठन । ऐसा लगा । देह टूट सी रही हो । मैंने उसका कारण जानना चाहा । पर मुझे कुछ समझ में नहीं आया । मुझे तो नहीं हुआ । पर दूसरे कुछ लोगों के अनुभव मुझे पता थे कि - यदि गधा घोङा खच्चर के जमीन पर लोटने के स्थान के ऊपर से कोई गुजर जाये । तो पैरों में ऐसी ही ऐंठन ऐसा ही दर्द होता है । और उसका टोटका ये होता है कि किसी विवाहित मगर सुहागिन स्त्री का चुटीला या फ़ीता मांगकर पैरों में बाँध दिया जाये । कुछ लोगों ने इस आजमाये हुये उपाय को सही भी बताया । मैंने ध्यान किया । क्या आज दिन में मेरे रास्ते में कोई ऐसा स्थान आया था ? लेकिन इससे पहले मैं किसी निष्कर्ष पर पहुँचती । मुझे स्वतः ही वह लगभग जल चुकी चिता याद हो आयी । और स्व स्फ़ूर्त प्रेरणा से ही मुझे लगने लगा कि - मेरी अचानक ऐंठन का उसी स्थान से कोई सम्बन्ध है । तब शान्त मनन से सारी तस्वीर साफ़ होने लगी । मैं आस्तिक हूँ । प्रभु में मेरी सच्ची आस्था है । मैं पूर्ण भाव से प्रभु से प्रार्थना करने लगी । और धीरे धीरे सामान्य हो गयी । लेकिन आज तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ । जब मुझे लगा । एक्सीडेंट में मृतक की छाया सी मुझे दिखायी दे रही है ।
- ये बातें किसी अखबार के लिये एक महत्वहीन समाचार की तरह है । मैंने सोचा - या फ़िर आम लोगों के लिये
रोजमर्रा के अनुभव । पर एक्सीडेंट की घटना ऐसी थी । जिस पर एक पूरी महत्वपूर्ण किताब ही लिखी जा सकती है ।
आस पास जोधा खड़े । सबे बजाबे गाल । मंझ महल से ले चला । ऐसा परबल काल ।
चहुं दिस ठाढ़े सूरमा । हाथ लिये हथियार । सबही यह तन देखता । काल ले गया मार ।
सब जग डरपे काल सों । बृह्मा विष्णु महेश । सुर नर मुनि ओ लोक सब । सात रसातल सेस ।
मौत कहाँ देखती है कि जो वह करने जा रही है । उससे इंसान पर क्या अच्छा बुरा होगा । शहनाई बज रही हो । मंगल गान होता हो । बारात आती हो । या अर्थी उठती हो । मरने लायक माहौल हो । या न हो । मौत को अपने काम से मतलब । वह 1 घण्टा क्या 1 मिनट भी नहीं बख्शती । ऊपर मैंने " होनी " की बात की । इसी को होनी कहते हैं । मरने की कोई वजह ही नहीं थी । कोई गलती ही नहीं थी । ट्रक और ड्राइवर के रूप में मौत ने उसे हथियार बनाया । ऐसा भी नहीं था कि कोई अनियन्त्रित स्थिति थी । सब कुछ शान्त सा ही था । मगर शतरंजी मोहरों की तरह विवश । बचाव के लिये कोई स्थान ही नहीं ।
- और मौत ने जैसे खिला खिलाकर ( खेल करते हुये ) मारा । मृतक की पत्नी महिला से बोली - यदि वह दोबारा में
ट्रक पीछे न लेता । तो शायद अधिक से अधिक एक टांग ही कट जाती । पर इंसान तो बच जाता । मौत ने एक सफ़ल बाजी की तरह इस खेल को खेला । उसने दुकानदार को भी मोहरा बना लिया । उससे बचाव की चाल चलवाते हुये भी कुशलता से बाजी को पलट दिया । सोचने वाली बात है । उसकी सहानुभूति ही घातक हुयी ।
- मैं विचार करती हूँ । वह महिला मुझसे बोली - अक्सर लोग कहते हैं । ऐसा था । वैसा था । कोई सहायता उपलब्ध न थी । रात थी । सुनसान था । जंगल था । शेर था । जहरीला नाग था । कातिल थे । ये गलती हुयी । वो गलती हुयी । पर यहाँ तो कुछ भी नहीं था । हाँ एक बात सोची जा सकती है । यदि जाम सघन न होता । तो साइकिल आगे पीछे लेकर बचा जा सकता था । पर दूसरे बहुत से अन्य उदाहरण इस संभावना को भी खत्म कर देते हैं । तव तरीका कोई और रूप ले लेता । इसलिये शायद होनी इसी को कहते हैं । होनी । जो हर हालत में हो के रहती है ।
क्योंकि ये बहुत बङी शक्ति है । मुझे इसकी घटनाओं के अध्ययन में हमेशा ही उत्सुकता रही । इत्तफ़ाकन अभी मेरी जानकारी में एक खास घटना आयी । जो होनी के साथ साथ प्रेतत्व से भी जुङी है । बात एक ग्रामीण युवक की है । जो लगभग 30 साल का था । और जीवन के प्रति बहुत आशान्वित था । मरना उसे कतई पसन्द नहीं था । और वह अपनी हालिया जिन्दगी को पूरे उल्लास से जीता था । कुछ ही वर्ष पूर्व विवाहित भी हुआ था ।
यह युवक एक दिन साइकिल पर बाजार आया हुआ था । भीङ बहुत थी । और एक स्थान पर जाम की स्थिति बनी हुयी थी । जाम में जहाँ ये फ़ँसा हुआ था । इसके ठीक आगे एक बङा ट्रक था । और आसपास भी तमाम तरह के छोटे बङे वाहन फ़ँसे हुये थे । कहने का मतलब । स्थिति ये नहीं थी कि कोई भी अपनी जगह से हिल सके ।
इसी समय घुर्र घुर्र करते वाहन अपने को आगे पीछे एडजस्ट करते हुये जाम खत्म होते ही निकलने को बेकरार थे
। ऐसे ही समय में जाम में जैसे ही दो तीन फ़ुट की सांस पैदा हुयी । ट्रक वाले ने ट्रक को थोङा सा पीछे लिया । और ये युवक एक टांग सहित लोड ट्रक के नीचे दब गया । साइकिल गिर गयी । और उसकी टांग उस भारी ट्रक के पहिये के नीचे दबी हुयी थी । बाकी शरीर सुरक्षित था । कमाल की बात थी । अपनी अपनी धुन और व्यस्तता में व्यस्त आसपास के बहुत कम लोग इस बात को जान पाये । क्योंकि शोर भी बहुत था । युवक बेतहाशा सहायता के लिये चिल्ला रहा था । तब एक सामने की दुकान वाले का ध्यान उस पर गया । ड्राइवर की खिङकी उसके सामने पङ रही थी । हङबङाहट में उसने कहा - तुम्हारे ट्रक के पहिये से आदमी दब गया । काफ़ी शोरगुल में ट्रक वाला अभी भी वस्तुस्थिति नहीं समझ पाया । पर दुकानदार के मुँह पर आते भावों और उसके इशारे से उसने स्थिति की गम्भीरता का अन्दाजा लगाया । और हङबङाहट में ही उसने बिना सोचे समझे ट्रक को और भी गुंजाइश भर पीछे कर दिया । दरअसल वह समझा । अगले पहिये से कोई दबा है । रहा सहा वह युवक पूरी तरह ट्रक के नीचे दब गया । गौर से समझें । ये सब अधिकतम दस मिनट से भी कम समय में हो गया ।
खैर..एक इंसान का मामला था । तुरन्त हल्ला मच गया । जगह आदि करके युवक को निकाला गया । ट्रक को
कोतवाली भेज दिया । ( ध्यान दें । इस मत्यु को कानूनन हत्या नहीं माना जाता । और एक ट्रक बस ड्राइवर से इस तरह के सात एक्सीडेंट उसके प्रारम्भिक समय में माफ़ होते हैं । सजा आदि नहीं होती ) युवक को अस्पताल भेजा गया । उसके परिजनों को तुरन्त सूचना दी गयी ।
जैसा कि मैंने ऊपर कहा । युवक हौसले मन्द था । जीवन के प्रति उल्लसित और आशा पूर्ण था । अतः डाक्टर और घरवाले उसे ठीक होने की कोई दिलासा देते । वह उल्टे उन्हें ही जोश से कहता रहा - तुम लोग फ़िक्र न करो । मुझे कुछ नहीं होगा । मैं एकदम ठीक हो जाऊँगा । वह फ़िर फ़िर बार बार इस बात को दोहराता । और तब मौत ने उस पर झपट्टा मारा । और उसके प्राण पखेरू अज्ञात को उङ गये ।
हम जाने थे खायेंगे । बहुत जिमि बहु माल । ज्यों का त्यों ही रह गया । पकर ले गया काल ।
काची काया मन अथिर । थिर थिर कर्म करन्त । ज्यों ज्यों नर निधड़क फिरे । त्यों त्यों काल हसन्त ।
- बार बार यही कहते रहे । उसकी पत्नी आँसू बहाते हुये बोली - तू चिंता न कर । मुझे कुछ नहीं होगा । कुछ नहीं होगा । मैं बिलकुल ठीक हो जाऊँगा ।
बङी सहानुभूति दुख अपनत्व आदि मिश्रित भावों से उसकी अब तक बात सुनती हुयी सामने बैठी महिला एकाएक चौंकी । उसके दिमाग से पूरी बातें निकल गयी । और वो हल्की सी स्याह उस आकृति को देख रही थी । जो मृतक की पत्नी के ठीक पीछे आभासित हो रही थी । दूसरी महिला के शरीर में मोबायल फ़ोन के वायव्रेशन के समान हल्का मगर आंतरिक रूप कंपन होने लगा ।
- मुझे ऐसा लगा । वह मुझसे बोली - यकायक मुझे सर्दी सी लगने लगी हो । मुझे ये भी पता था कि वहाँ कोई आकृति नहीं है । पर साफ़ साफ़ ऐसा लग रहा था । वहाँ आकृति जैसा कुछ है । और मेरे शरीर के सभी रोंगटे खङे हो चुके थे । निसंदेह वह एक्सीडेंट में मृतक हुआ उसका पति ही था । मेरी सारी सहानुभूति एकदम फ़ुर्र हो गयी । और मैं सचेत हो गयी । मृतक की पत्नी अपनी रौ में बोले जा रही थी । पर मैं प्रभु को एकाग्रता से याद करने लगी । और धीरे धीरे मेरी स्थिति सामान्य हुयी । फ़िर मैंने वहाँ रुकना उचित न समझा । और हाँ हूँ करती हुयी जल्दी का बहाना बनाकर विदा हो गयी ।
- लेकिन ये मेरा दूसरा भूतिया अनुभव था । महिला ने फ़िर कहा - इससे पहले भी अज्ञात अदृश्य बाधा से मेरा सामना हुआ था । मैं गाँव के ही एक रास्ते पर वृक्ष के नीचे किसी परिचित के इंतजार में खङी थी । उस वृक्ष से कुछ ही फ़ासले पर हिन्दू शमशान था । चिताओं के अक्सर जलते रहने से जमीन पर मनुष्याकार काले निशान मौजूद थे । और उस समय भी एक चिता अंतिम अवस्था में जलती हुयी सुलग रही थी । मुझे एक तेज झुरझुरी सी आयी । खबर नहीं पल की । तू बात करता कल की । मनुष्य जीवन का अन्त ये है - खाक हो जाना । कौन होगा ये इंसान ? जो कुछ ही घण्टों में राख के ढेर में बदल गया । एक दिन ऐसा होयगा । कोय काहु का नांहि । घर की नारी को कहे । तन की नारी जांहि ।
आप समझ सकते हैं । लाश शमशान और चिता मनुष्य में क्षणिक ही सही वैराग उत्पन्न कर देते हैं । गर्मियों की
लगभग दोपहर का समय था । स्वाभाविक ही मेरा जुङाव उस चिता में जल चुके मृतक से हो गया । मरने के बाद कहाँ गया होगा वह ? आगे क्या हुआ होगा ? आदि आदि ।
पर वहाँ से हटते ही मैं ये बात भूल गयी । लेकिन शाम को फ़ारिग होकर जब मैं लेटने लगी । मेरे पैरों ( पिण्डलियों ) में तेज ऐंठन शुरू हुयी । अजीव सी । और बहुत तेज ऐंठन । ऐसा लगा । देह टूट सी रही हो । मैंने उसका कारण जानना चाहा । पर मुझे कुछ समझ में नहीं आया । मुझे तो नहीं हुआ । पर दूसरे कुछ लोगों के अनुभव मुझे पता थे कि - यदि गधा घोङा खच्चर के जमीन पर लोटने के स्थान के ऊपर से कोई गुजर जाये । तो पैरों में ऐसी ही ऐंठन ऐसा ही दर्द होता है । और उसका टोटका ये होता है कि किसी विवाहित मगर सुहागिन स्त्री का चुटीला या फ़ीता मांगकर पैरों में बाँध दिया जाये । कुछ लोगों ने इस आजमाये हुये उपाय को सही भी बताया । मैंने ध्यान किया । क्या आज दिन में मेरे रास्ते में कोई ऐसा स्थान आया था ? लेकिन इससे पहले मैं किसी निष्कर्ष पर पहुँचती । मुझे स्वतः ही वह लगभग जल चुकी चिता याद हो आयी । और स्व स्फ़ूर्त प्रेरणा से ही मुझे लगने लगा कि - मेरी अचानक ऐंठन का उसी स्थान से कोई सम्बन्ध है । तब शान्त मनन से सारी तस्वीर साफ़ होने लगी । मैं आस्तिक हूँ । प्रभु में मेरी सच्ची आस्था है । मैं पूर्ण भाव से प्रभु से प्रार्थना करने लगी । और धीरे धीरे सामान्य हो गयी । लेकिन आज तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ । जब मुझे लगा । एक्सीडेंट में मृतक की छाया सी मुझे दिखायी दे रही है ।
- ये बातें किसी अखबार के लिये एक महत्वहीन समाचार की तरह है । मैंने सोचा - या फ़िर आम लोगों के लिये
रोजमर्रा के अनुभव । पर एक्सीडेंट की घटना ऐसी थी । जिस पर एक पूरी महत्वपूर्ण किताब ही लिखी जा सकती है ।
आस पास जोधा खड़े । सबे बजाबे गाल । मंझ महल से ले चला । ऐसा परबल काल ।
चहुं दिस ठाढ़े सूरमा । हाथ लिये हथियार । सबही यह तन देखता । काल ले गया मार ।
सब जग डरपे काल सों । बृह्मा विष्णु महेश । सुर नर मुनि ओ लोक सब । सात रसातल सेस ।
मौत कहाँ देखती है कि जो वह करने जा रही है । उससे इंसान पर क्या अच्छा बुरा होगा । शहनाई बज रही हो । मंगल गान होता हो । बारात आती हो । या अर्थी उठती हो । मरने लायक माहौल हो । या न हो । मौत को अपने काम से मतलब । वह 1 घण्टा क्या 1 मिनट भी नहीं बख्शती । ऊपर मैंने " होनी " की बात की । इसी को होनी कहते हैं । मरने की कोई वजह ही नहीं थी । कोई गलती ही नहीं थी । ट्रक और ड्राइवर के रूप में मौत ने उसे हथियार बनाया । ऐसा भी नहीं था कि कोई अनियन्त्रित स्थिति थी । सब कुछ शान्त सा ही था । मगर शतरंजी मोहरों की तरह विवश । बचाव के लिये कोई स्थान ही नहीं ।
- और मौत ने जैसे खिला खिलाकर ( खेल करते हुये ) मारा । मृतक की पत्नी महिला से बोली - यदि वह दोबारा में
ट्रक पीछे न लेता । तो शायद अधिक से अधिक एक टांग ही कट जाती । पर इंसान तो बच जाता । मौत ने एक सफ़ल बाजी की तरह इस खेल को खेला । उसने दुकानदार को भी मोहरा बना लिया । उससे बचाव की चाल चलवाते हुये भी कुशलता से बाजी को पलट दिया । सोचने वाली बात है । उसकी सहानुभूति ही घातक हुयी ।
- मैं विचार करती हूँ । वह महिला मुझसे बोली - अक्सर लोग कहते हैं । ऐसा था । वैसा था । कोई सहायता उपलब्ध न थी । रात थी । सुनसान था । जंगल था । शेर था । जहरीला नाग था । कातिल थे । ये गलती हुयी । वो गलती हुयी । पर यहाँ तो कुछ भी नहीं था । हाँ एक बात सोची जा सकती है । यदि जाम सघन न होता । तो साइकिल आगे पीछे लेकर बचा जा सकता था । पर दूसरे बहुत से अन्य उदाहरण इस संभावना को भी खत्म कर देते हैं । तव तरीका कोई और रूप ले लेता । इसलिये शायद होनी इसी को कहते हैं । होनी । जो हर हालत में हो के रहती है ।