20 दिसंबर 2015

योगी भोगी

घर घर हम सबसों कही, शब्द न सुनै हमार ।
ते भवसागर डूबही, लख चौरासी धार ।
छन्द - 
पित्त अगुंली तीन जानो, पाँच अंगुल दिल कही ।
सात अंगुल फेफङा है, सिन्धु सात तहाँ रही ।
पवन दर निवार तन सो, साधु योगी गम लहै ।
यहि कर्म योग किये रहती नाही, भक्ति बिनु जोइन बहै ।
कबीर साहब धर्मदास से कहते हैं कि - 3 अंगुल का यकृत ‘पित्त का थैली’ है । तथा 5 अंगुल का हृदय है । 7 अंगुल के फेफङे हैं । जिनमें 7 समुद्र हैं कृमश: - क्षार, मदिरा, क्षीर, दधि, घृत दुर्गन्ध तथा इक्षु रस समुद्र हैं । इन पवनों का निराकरण शरीर में साधु योगी ही कर सकता है ।
परन्तु कर्मयोग, अष्टांग योग, आसन भेद प्राणायाम, कुम्भक साधना, पंचमुद्रां, समाधि, हठयोग, अष्टसिद्धि, 9 निधि, कल्प सिद्धि आदि से कोई जन्म मरण से नहीं छूट सकता है । बिना भक्ति के 84 लाख योनियों में ही बहना पङेगा ।
सोरठा -
ज्ञान योग सुख राशि, नाम लहै निज घर चले ।
अति प्रबल को नाश, जीवन मुकता होय रहे ।
कबीर साहब धर्मदास से कहते हैं कि - ज्ञान योग ही भरपूर ढेर सारा सुख देने वाला है । तथा सत्यनाम का स्मरण अपने निज घर सत्यलोक ले जाने वाला है । काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार रुपी शक्तिशाली दुश्मनों को मारकर ही जीवन मुक्त हो सकते हैं ।
योगियों का मत -
यह लेख कबीर मंसूर ( अर्थात स्वसं वेदार्थ प्रकाश ) पृष्ट संख्या ( 1152 ) द्वारा लिखा गया है ।
वेद ही से योग समाधि तथा षट दर्शन निकले माने जाते हैं । योगी योग से अपने को अमर समझते हैं । भ्रम में पडकर वे अपने को कृतार्थ समझते हैं । पर यह नहीं समझते कि - जैसा भोग वैसा ही योग भी है । दोनों निर्मूल और तुच्छ है ।
योगी नाद के द्वारा ऊपर को चढ़ता है । भोगी बिन्दु के द्वारा नीचे आता है । अतः -
आधार चक्र भेद - योगी अपान वायु के द्वारा गणेश क्रिया करता है । आधार चक्र को साधता है । अर्थात गुदा द्वार से जल खींचकर ऊपर चढाता है । फिर गिरा देता है । फिर चढ़ाता और गिराता है । ऐसे ही बारबार करने से आधार चक्र टूट जाता है । और उससे योगी ऊपर को चलता है । तब आधार चक्र सिद्ध कहलाता है । 6 चक्रों में यह प्रथम चक्र है ।
स्वाधिष्ठान चक्र भेद -- आधार चक्र के ऊपर स्वाधिष्ठान चक्र है । जब आधार चक्र सिद्ध हो जाता है । तब स्वाधिष्ठान चक्र भेदने की चिंता बढ़ती है । इसके लिये युक्ति करता है । 12 अंगुल की सलाका बनाकर लिंग द्वार में उसे बारबार चलता है । जिससे उपस्थेन्द्रीय का छिद्र शुद्ध और साफ हो जाता है । फिर उपस्थ इन्द्रिय से जल खींचकर चढ़ाता है । जल अच्छी तरह चढ़ाने और उतारने का अभ्यास पड़ जाता है । तब कृमश: दूध और मधु को चढ़ता है । जब मधु के चढ़ाने उतारने का अभ्यास पूरा हो जाता है । तो स्वाधिष्ठान चक्र सिद्ध होता है । फिर योगी आगे को बढ़ता है । यह क्रिया, प्रायः वाममार्गी और अघोरी तथा गौसाई ब्रह्मचारी नाम के भेषधारी अन्य विषयी लोग साधते हैं ।
मणिपूरक चक्र भेद - फिर योग अपान और समान वायु का सम्मिलन करके धातु क्रिया करने का समय आता है । 9 गज लम्बा ( कही कही 15 हाथ लिखा है ) 4 अंगुल चौड़ा बारीक और नरम वस्त्र लेता है । उसको मुख के राह से निगल कर बाहर निकालता है । पानी पीकर भीतर आंतों को साफ करता है । फिर कपड़े में लगे हुये कफ आदि को साफ करके फिर निगलता है । ऐसे ही बारबार करने से अभ्यास पड़ जाता है । तो गज 2 भर चौड़ा और 9 गज लम्बा भी निगलता और निकाल देता है । इस प्रकार जब यह क्रिया पूरी होती है । तो योगी नाभि से वायु को उठाकर मणिपूरक चक्र में भरता है ।
अनाहत चक्र - तब योगी अपान और प्राण को एक करता है । सवा हाथ की एक दातुन बनाकर कंठ के मार्ग से पेट में चलता है । पेट भर पानी पीकर बाहर निकलता है । जिससे अन्दर पेट, कलेजे और फेफड़ो के कफ आदि निकल जाते हैं । इस क्रिया को कुंजर क्रिया कहते हैं । इस क्रिया से बङा आनन्द और प्रकाश मिलता है । इसी क्रिया से योगी अनाहत शब्द सुनने लग जाता है । 
यद्यपि अनाहत शब्द में बहुत प्रकार के शब्द सुनाई देते हैं पर सब में 10 प्रकार के शब्द प्रधान हैं ।
1 घण्ट का शब्द  2 शंख का शब्द 3 छोटी 2 घंटियों का शब्द 4 भँवरे की गुंजार का शब्द
5 पहाड़ से पानी नीचे गिरने के समय जैसा शब्द होता है वैसा शब्द 6 बाँसुरी का शब्द  7 शहनाई का शब्द 8 छोटे 2 पक्षियों का शब्द 9 वेणु का शब्द 10 चंग ( सीटी का ) शब्द
यही 10 प्रकार के प्रधान अनाहत शब्द हैं । इनके अतिरिक्त नाना प्रकार के बाजे आदि के शब्द भी सुनाई देते हैं । जिससे मन को बड़ा आनन्द होता है । फिर इसको भी वेध के आगे को बढ़ता है ।
विशुद्ध चक्र भेद -- प्राण अपान और समान तीनों वायु को कण्ठ स्थान में योगी एकत्रित ( समान ) करता है । इस साधन को लम्बिका योग कहते है । इसके साधने के समय केवल दूध ही पीकर रहना होता है । अनाज नही खाना पड़ता ।
मक्खन और सेंधे नमक से जीभ को नित्य रगड़ के पतला करना और जीभ की जड़ की रगों को
शनै: शनै: काट के ( जीभ को ) इतना बढ़ाना पड़ता है कि 10वें द्वार तक पहुँच सके । जीभ को उलट कर ब्रम्हारंध्र के मार्ग को रोककर ऊपर से टपकते हुये अमृत को पीता है । इसके पीने में शरीर की कांति तेजोमय हो जाती है । इस प्रकार अमृत पीने का आनन्द प्राप्त हो जाता है । तो योगी को लम्बिका योग का साधन पूरा हो जाता है ।
अग्नि चक्र - इस विशुद्ध चक्र के आगे अग्नि चक्र है । इसे सिद्ध करने के लिये योगी को नेति क्रिया करने की आवश्यता होती है । सूत की एक वित्ते भर की बत्ती बनाकर नाक में चला, ब्रह्माण्ड को भली प्रकार साफ करके अपने कण्ठ की वायु को अग्नि चक्र में स्थापित करना होता है । योगी अग्नि चक्र में वायु को स्थापित करके बड़ा आनन्द प्राप्त करता है । वायु को ऊपर चढ़ा कर जीभ से मार्ग को रोक के कुम्भक कर समाधि को प्राप्त करता है । शरीर शक्तिहीन मृतक समान हो जाता है । दसवें द्वार में पहुँचकर योगी निर्विकल्प समाधि को प्राप्त हो जाता है । इस स्थान पर पहुँचकर योगी अष्ट सिद्धि और नव निधि को प्राप्त करता है ।
अष्ट सिद्धि - 1 अणिमा 2 महिमा 3 गरिमा 4 लघिमा 5 प्राप्ति  6 प्रकाशित । ( काम )  7 ईशता 8 वशीकरण ।
1 अणिमा - योगी जिस सिद्धि से अपने शरीर को जितना छोटा चाहे बना लेता है । 
2 महिमा के द्वारा योगी अपनी देह को जितना चाहे बड़ा कर सकता है । 
3 गरिमा के द्वारा जितना चाहे भारी हो जाता है । 
4 लघिमा के बल से अपने शरीर को हलके से हल्का बना सकता है । 
5 प्राप्ति से ही योगी जहाँ चाहता है । चला जाता है । 
6 प्रकाशिता से मनवांछित फल प्राप्त हो जाता है । 
7 ईशता से अपने को सबसे श्रेष्ठ प्रमाणित करा सकता है ।
8 वशीकरण के द्वारा विश्व को अपने वश मे कर सकता है ।
नवनिधि ।
1 महापद्ध 2 पद्ध 3 कच्छप 4 मकर 5 मुकुंद 6 खर्व 7 शंख 8 नील  9 कुंद ।
इन 9 के भिन्न 2 गुण हैं । प्रत्येक निधि पर देवताओं की चौकी रहती है । जब इन 9 निधियों के देवता वश में हो जाते हैं । तो योगी इनको प्राप्त कर लेता है । वह अपनी शक्ति से जिसको चाहे राजा बना सकता है । अथवा दरिद्र कर दे । उसमें सब ऐश्वर्य आ जाते हैं । इसी स्थान को सहस्त्रदल कमल कहते हैं । यहाँ निरंजन का वास है । इस स्थान पर पहुँचकर योगी, निरंजन से एकता कर परमानन्द का अनुभव करता है । इसी अवस्था में अपने आपको अजर, अमर, सर्व शक्तिमान समझता है । इसकी सब सिद्धियाँ दासी हो जाती है । अपनी विद्या के बल से त्रिकालज्ञ हो जाता है । ईश्वर के समान ऐश्वर्य को प्राप्त हो जीव से ईश्वर हो जाता है । संसार में ईश्वर के समान पूज्य हो जाता है । पर जब तक ब्रह्माण्ड स्थित है । तब तक ही तक योगी भी स्थित है । जब तक योगी का ज्ञान है । तब ही तक उसको सब कुछ प्राप्त है । उपरोक्त सब साधना गुरु के द्वारा प्राप्त होती है । 
गुरु की ही शरण प्राप्त कर सफल काम होता है ।
( नोट - नेति, धौति, वस्ति आदि क्रियाएं शरीर की शुद्धि के लिये हैं । चक्र भेद तो प्राण वायु से होता है । पाठक सतलोक वासी स्वामी परमानन्द जी के चक्र भेदन को इससे सुधार कर पढ़ लें । )
उपरोक्त योग क्रिया बाजीगर का कौतुक है । योगियों को अपनी योग क्रिया का बड़ा अभिमान होता है । सब भूल में पड़कर बन्धन में पड़े हैं ।
योग भोग दोनों ही भ्रम और अनित्य हैं । योग भोग दोनों क्रिया समान ही है । जिस प्रकार योगी 6 चक्र वेधता है । उसी प्रकार भोगी भी 6 चक्र तोड़कर ही आनंद को प्राप्त करता है । केवल उतना ही भेद है कि योगी नीचे से ऊपर को चढ़ता है । भोगी ऊपर से नीचे को आता है । पर दोनों ही परमानन्द को प्राप्त करते हैं ।
भोगियों का चक्र भेद ।
भोग का वर्णन लिखता हूँ । जिसके विचारने से जान पड़ेगा कि योगी और भोगी में कुछ भेद नही है । जिस प्रकार योगी षट चक्र को वेध कर योग सिद्ध हो अमर मानता है । उसी प्रकार भोगी भी षट चक्र वेधकर योग सिद्ध और अमर होता है । भोगी स्त्री पुरुष मिलकर सिद्धि प्राप्त करता है । यानी भोग करने के समय जब मत्था से मत्था मिलता है । तो पहला चक्र टूटता है ।
जब आंख से आँख मिलते ही द्वितीय चक्र विद्ध होता है । मुँह से मुँह मिलते ही तृतीय चक्र टूटता है । छाती से छाती मिलाते ही चतुर्थ चक्र टूटता है ।
नाभि से नाभि मिलते ही पंचम चक्र विद्ध होता है । भग और लिंग का संयोग होने से छठा चक्र वेधा जाता है । जब भोगी उपरोक्त रीति से 6 चक्रों को भेद चुकता है । तब वायु और अग्नि के बल से नीचे को वीर्य उतरता है । वह 6 चक्रों को वेधता हुआ सातवें स्थान गर्भाशय में जा स्थित होता है । भोगी अपने आपको अमर जानता है । क्योंकि जब तक भोगी की संतान पृथ्वी पर वर्तमान है । तब तक वह अमर ही है ।
समन्वय - जैसे योगी को ज्ञान और सिद्धि मिलती है । वैसे ही भोगी को सन्तान मिलती है ।
जो माता पिता थे । वही पुत्री और पुत्र रूप में वर्तमान रहते है । दोनों ( योगी और भोगी) सातवें चक्र में अपने को अमर अनुमान करते है ।
( योग भोग दोनों ही मिथ्या भ्रम है )
( सदगुरु कबीर साहब वचन )
जो नहीं माने शब्द हमारा, सो चले जइ है यम के द्वारा ।
जो कोई माने शब्द हमारा, सो चले अइ है लोक मंझारा ।


साभार - एक फ़ेसबुक पेज

19 दिसंबर 2015

Just An Illusion !

अन्तिम पदार्थ को खोजने की बेहतरीन कोशिश ।
साभार - विजय सिंह ठकराय On FaceBook
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ये दुनिया एक कंप्यूटर प्रोग्राम है - MATRIX RELOADED
LIGHT यानी प्रकाश की गति अदभुत है ।
इनफ़ेक्ट सिर्फ एक सेकंड में आपको पलक झपकाने में लगे समय के अंदर लाइट इस पृथ्वी के चक्कर लगा सकती है - 7 बार ।
Impressive, प्रकाश की गति 299792 Km/Sec ब्रह्माण्ड की सबसे तेज गति है । इससे तेज गति कर पाना ब्रह्माण्ड में किसी भी चीज के लिए संभव नहीं है ।
लेकिन मेरा सवाल है - WHY
लाइट की गति 5 लाख km/sec क्यों नहीं ?
या लाइट की स्पीड 10 लाख/sec क्यों नहीं है ?
Ok Now We Are Getting Somewhere !
ऐसा इसलिए नहीं है कि हमारे यन्त्र इस गति से तेज गति को नहीं नाप सकते । बल्कि ऐसा इसलिए है । क्योंकि ये ब्रह्माण्ड का ही फंडामेंटल स्ट्रक्चर है । जिस कारण प्रकाश से तेज गति की कल्पना करते ही ब्रह्माण्ड के सभी नियम टूट जाते हैं । और ब्रह्माण्ड Collapse हो जाता है ।
क्योंकि शायद इन नियमो में ही ब्रह्माण्ड का एक महान सत्य छुपा हुआ है ।
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अपने घर के बाहर पार्क में इस पोस्ट को लिखते हुए अक्सर पार्क में बने हुए खूबसूरत फाउंटेन यानी पानी के फव्वारे पे ध्यान चला जाता है । फाउंटेन को देखना बेहद खुशनुमा एहसास है । लेकिन एक मिनट के लिए मान लीजिये । अगर हम फव्वारे को किसी शक्तिशाली माइक्रोस्कोप की सहायता से देख रहे होते तो ?
तो शायद प्रकृति के इस खूबसूरत करिश्मे की जगह हम हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के अणुओं का प्रवाह देख रहे होते । जो शायद इतना खूबसूरत नहीं होता ।
कुछ चीजें हैं । जो मुझे हमेशा परेशान करती हैं - जैसे कि ये दुनिया अणुओं, परमाणुओं से क्यों बनी है ? हमारी आँखे परमाणुओं को क्यों नहीं देख पाती ? क्यों हमें लिमिटेड सेन्सस के साथ पैदा किया गया है । जिससे हम नंगी आँखों इस इस सृष्टि को इसके मूल स्वरुप में नहीं देख पाते ?
आपके चाय बनाने से लेकर सूर्य में संपन्न हो रही नाभिकीय प्रक्रिया तक एक ब्रेड टोस्ट बनाने से लेकर हाइड्रोजन एटम से आयरन बनने की प्रक्रिया तक ब्रह्मांड का हर कण हर क्रिया कणों की प्रकृति पूर्व निर्धारित क्यों है ?
Why So Much Physics & Chemistry In Life ?
well दुनिया बनाने वाला तो ‘आबरा का डाबरा’ बोल के भी दुनिया बना सकता था ।
तो उसने ऐसी दुनियाँ क्यों बनाई । जहाँ कण कण एक पूर्व निर्धारित प्रक्रिया अर्थात ‘प्रोग्राम’ का अनुसरण करता है । और ईश्वर का दिमाग समझने के लिए इस प्रोग्रामिंग को समझने के लिए हम अक्सर पदार्थ के अंदर झांकते हैं ।
Like. अणु, परमाणु, इलेक्ट्रॉन, प्रोटान, क्वार्क । और अंत में पदार्थ गायब हो जाता है
रह जाते है तो सिर्फ - कंप्यूटर कोडस !
जी हाँ, दुनिया के कण कण के मूल में और कुछ नहीं बाइनरी डिजिटस में एक्सप्रेस होने वाले अर्थात 0 और 1 की भाषा में कंप्यूटर कोडस मिलते हैं । जो साफ़ साफ़ कहते हैं कि - ये दुनिया. एक कंप्यूटर प्रोग्राम है ।
MATRIX | PROGRAMME | SIMULATION
सीट बेल्ट बाँध लीजिये । आज मैं आपको कुछ ऐसे तथ्य बताउगा कि अगर आप सामान्य भौतिकी का ज्ञान भी रखते हैं । तो आप खुद कहेगे कि - ये दुनिया कंप्यूटर प्रोग्राम है ।
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1 - FINITE SPEED OF LIGHT
प्रकाश से हम सब भलीभाँति परिचित हैं । लेकिन वास्तव में प्रकाश होता क्या है ?
देखा जाए तो प्रकाश ब्रह्माण्ड के दो कणों के बीच इनफार्मेशन पहुँचाने का कार्य करता है ।
चाहे देखने के लिए प्रकाश का इस्तेमाल हो । या इलेक्ट्रिसिटी या इलेक्ट्रो मैग्नेटिक फील्ड दुनिया के हर काम में दो चीजें आपस में फोटॉन का एक्सचेंज करती हैं ।
अर्थात लाइट ब्रह्माण्ड में ‘Information Processing’ का कार्य करती है ।
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अब आपके मोबाइल की स्क्रीन पर आते हैं ।
हर वर्चुअल रियलिटी अथवा डिजिटल प्रोजेक्शन पिक्सल से मिलकर बनी होती है । पिक्सल से छोटा कुछ नहीं हो सकता ।
Luckily हमारा ब्रह्माण्ड भी Pixelated है । और एक पिक्सल का साइज़ 1.616199*10^-35 होता है ।
अर्थात 0.00000000000000000000000000000000016 मीटर !
ब्रह्माण्ड की इस सबसे छोटी दूरी की यूनिट को हम ‘प्लांक डिस्टेंस’ के नाम से जानते हैं ।
किसी भी प्रोग्राम में एक पिक्सल को प्रोसेस करने के लिए मिनिमम टाइम लगता है ।
Luckily हमारे ब्रह्मांड में भी समय की सबसे छोटी इकाई होती है ।
यानी .00000000000000000000000000000000000000000005 सेकण्डस
या 5.39*10^-44 सेकण्डस, जिसे हम ‘प्लांक टाइम’ के नाम से जानते हैं ।
किसी भी सॉफ्टवेयर गेम में एक पिक्सल को प्रोसेस करने में लगा मिनिमम समय उस सॉफ्टवेयर की "मैक्सिमम प्रोसेसिंग स्पीड" कहलाती है ।
हमारे ब्रह्माण्ड में सबसे छोटे पिक्सल को प्रोसेस करने में लगे सबसे छोटे समय का अनुपात निकाल जाए ।
अर्थात. प्लांक डिस्टेंस/प्लांक टाइम
1.616199×10^−35/5.39106×10^−44
तो हमारे पास जवाब आता है - 299792 ! 
Whoaaa Speed Of Light !
अर्थात हमारे ब्रह्माण्ड में लाइट मैक्सिमम स्पीड इसलिए है । क्योंकि ये ब्रह्माण्ड के सॉफ्टवेयर प्रोग्राम के ट्रांसिस्टर्स की अधिकतम गति है ! 
HENCE PROVED ! 
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2 - TIME DILATION
हम सभी जानते हैं कि अधिक द्रव्यमान वाले पिंड, जैसे ब्लैक होल्स के आसपास समय की गति बहुत कम अथवा शून्य हो जाती है ।
लेकिन कैसे ?
पदार्थ विज्ञान इस बात का जवाब कभी नहीं दे सकता ।
लेकिन बहुत ज्यादा मैटर एक जगह एकत्रित होने के कारण अगर ब्लैक होल को एक हैवी फ़ाइल मान लिया जाए ।
तो इसकी आसानी से व्याख्या हो सकती है ।
Or To Be Simple
एक कंप्यूटर में.. हैवी फाइल्स के आसपास हमेशा प्रोसेसिंग स्लो अथवा लगभग शून्य हो जाती है ।
यही कारण है कि सदियो से ‘ग्रेविटी’ के स्त्रोत की तलाश में घूम रहे वैज्ञानिकों को ऐसा कोई स्त्रोत मिला ही नहीं । क्योंकि ग्रेविटी कोई फ़ोर्स है ही नहीं ।
बल्कि ग्रेविटी ब्रह्माण्ड के कणों की प्रोसेसिंग से उत्पन्न एक ‘यूज़फुल बाय प्रोडक्ट’ मात्र है ।
Gravity Is Simply Not Real
But An Illusion Only ! 
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3 - A UNIVERSE FROM NOTHING
चाहे प्राचीन ऋषियो का चिंतन हो । या आधुनिक वैज्ञानिकों के निष्कर्ष, एक बात पर दोनों सहमत है कि - ये ब्रह्माण्ड शून्य से उत्पन्न हुआ है - This Universe Came Out Of Nothing !
पर ऐसा कैसे संभव हो सकता है ? प्राचीन ऋषियो ने इसे परमेश्वर की इच्छा का परिणाम कहा ।
लेकिन 21वीं सदी में अवतरित एक महान संत विजय कुमार झकझकिया के अनुसार परमेश्वर की इच्छा और कुछ नहीं । ब्रह्माण्ड के सर्किट का पॉवर बटन ON होना था ।
Yeah किसी भी सॉफ्टवेयर में इलेक्ट्रॉन्स शून्य आयाम में ही होते हैं । जब तक प्रोग्राम चालू न किया जाए । और प्रोग्राम के on होते ही - You Have A Universe Which Popped Out Of "NOTHING" 
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4 - QUANTUM ENTANGLEMENT
ये दिमाग का दही करने के लिए पर्याप्त है । विज्ञान द्वारा सत्यापित है कि इस ब्रह्माण्ड का एक कण.. दूसरे कण को प्रभावित कर सकता है - Faster Than Light
भले ही दोनों कण ब्रह्माण्ड के दो अलग अलग कोनों पर हों ।
How This Is Possible Even ?
Well पॉसिबल है ।
अपनी कंप्यूटर स्क्रीन देखिए । स्क्रीन के सबसे टॉप पर मौजूद पिक्सल और सबसे नीचे मौजूद पिक्सल के बीच की दूरी "एक स्क्रीन" है । लेकिन दोनों पिक्सल्स की कंप्यूटर के कमांड सेंटर से दूरी समान है । इस तरह - ब्रह्मांड एक इकाई है ।
हमारे बीच दूरियां हो सकती है । लेकिन.. ब्रह्माण्ड की परम चेतना "UNIVERSAL CONSCIOUSNESS" हम सभी के समानांतर रहती है ।
एक हाइड्रोजन एटम के भी खरबवें के अरबवें हिस्से के बराबर दूर मौजूद "समानांतर आयाम"में
( इस विषय पर विस्तृत टॉपिक "ब्रह्माण्ड की परम चेतना" फिर कभी )
इसी कारण Quantum Entanglement जैसी घटनाएं इस ब्रह्माण्ड में संभव हैं ।
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5 - DEFORMED HUMANS 
कुछ बच्चे जन्म से विकृत क्यों हो जाते है ? क्या प्रकृति अपने आप में परिपूर्ण नहीं ?
बिलकुल.. ऐसा ही है । कोई भी प्रोग्राम परफ़ेक्ट नहीं होता ।
और प्रोग्रामिंग में किसी भी फाइल्स का करप्ट हो जाना है नार्मल बात है ।
तो दूसरे शब्दों में ये विकृत बच्चे और कुछ नहीं । नेचर की प्रोग्रामिंग एरर मात्र है ।
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और भी दर्जनों ऐसे कारण हैं । जिनके बल पर ब्रह्माण्ड को एक प्रोजेक्टेड रियलिटी सिद्ध किया जा सकता है । पर वे इतने टेक्निकल है कि उन्हें लिख कर मैं आपका दिमाग ही खराब करूँगा ।
इसलिए कुछ बिन्दुओं को मैं छोड़ रहा हूँ । जिन्हें मैं अपनी किताब ( अगर लिखता हूँ तो ) में इस्तेमाल करना चाहूँगा ।
अब सवाल ये उठता है कि पदार्थ तक तो ठीक है ।
पर.. क्या हमारी चेतना हमारे एहसास, सुख दुःख को प्रोग्राम किया जा सकता है ?
मेरी बीवी को किस करते वक़्त जिस सुख की अनुभूति मुझे होती है । वो प्रोग्राम नहीं हो सकता ।
Oh Really ?
आपकी चेतना आपके एहसास सुख दुःख आनंद.. भी और कुछ नहीं इलेक्ट्रो केमिकल रिएक्शन से बने सर्किट मात्र है ।
जब आपने अपनी बीवी को किस किया । तो आपको बेशक अच्छा एहसास हुआ हो । लेकिन उस वक़्त आपका दिमाग "डोपेमिन" नामक केमिकल आपके सर्किट में रिलीज कर रहा था । बेशक आप अपने दिल को अपने हर एहसास के लिए जिम्मेदार मानें । पर वास्तव में आपके सुख, दुःख, ख़ुशी, गम सब कुछ आपके दिमाग में चल रहे केमिकल लोचे मात्र हैं ।
आपके दिमाग की चेतना ब्रह्माण्ड से इतर कोई अलग ऊर्जा नहीं । बल्कि आपको भ्रम में डालने के लिए "लिमिटेड सेंस" के साथ डिज़ाइन किया एक प्रोग्राम मात्र है । इस प्रोग्राम को बिलकुल तैयार किया जा सकता है ।
Artificial Intelligence !
मैंने जैसा कि अपने पूर्व प्रकाशित टॉपिक "Matrix-1 "You Live In Simulation" में कहा था कि
हम आलरेडी एक सेकंड के लिए मानव चेतना को सिमुलेट करने में सफल रहे हैं । इनफ़ेक्ट अगर हम 10^16 ऑपरेशन्स प्रति सेकंड अंजाम दे पाये । तो हम आसानी से एक चेतनशील वर्चुअल ब्रेन बना सकते हैं । और अगर हम 10^36 ऑपरेशन्स प्रति सेकंड अंजाम दे पाये । तो हम पृथ्वी जैसा एक डिजिटल ग्रह तैयार कर सकते हैं ।
करना सिर्फ ये है कि हम एक वीडियो गेम तैयार करके उसमें मौजूद करैक्टर को लिमिटेड सेन्सस वाली चेतना के साथ डिज़ाइन करें । तो वीडियो गेम में मौजूद वो इंसान हमारी तरह सोचेगा ।
वीडियो गेम में मौजूद पृथ्वी को अपना घर समझेगा ।
और हमेशा अपने अस्तित्व को लेकर परेशान रहेगा ।
और कंप्यूटर्स की हर वर्ष बढ़ती गति को लेकर एस्टिमटेड है कि मिनिमम 2042 और मैक्सिमम सन 2192 वो वर्ष होगा । जब हम इंसान खुद के वर्चुअल ब्रह्माण्ड बनाने में सफल हो जायेंगे ।
अगर ऐसा कभी संभव हो पाया ।तो क्या ये सबसे बड़ा प्रमाण नहीं कि - हम खुद एक कंप्यूटर प्रोग्राम में है ?
हम इंसान भी और क्या है ?
फंडामेंटल लेवल पर आपका शरीर भी इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स से बना हुआ एक जाल मात्र है । जो अपने आसपास मौजूद बाइनरी डिजिटस को पढता है । उनसे इंटरैक्ट करता है । उन बाइनरी डिजिटस को खाता पीता और जीता है ।
For Example Water ! 
पानी इसलिए पानी प्रतीत होता है । क्योंकि हमारा दिमाग एक निश्चित फ्रीक्वेंसी को पढ़ के उसे हमें पानी रूप में दर्शाता है । लेकिन पानी और आपके पैर में पहने जूते में क्या अंतर है ?
आपके अनुसार काफी अंतर हो सकता है ।
लेकिन फंडामेंटल लेवल पर आपके जूते और पानी में सिर्फ इतना फर्क है कि आपके जूते को बनाने वाली एनर्जी स्ट्रिंग्स की वाइब्रेशन फ्रीक्वेंसी अर्थात बाइनरी डिजिट संख्या पानी से भिन्न है ।
अर्थात दुनिया की हर चीज में मूलभूत अंतर सिर्फ इतना है कि हर चीज में प्रति सेकंड वाइब्रेशन की संख्या अलग अलग होती है । जिन वाइब्रेशन को पढ़ के आपका वाइब्रेशन रीडर ब्रेन आपको अलग अलग चीजों का एहसास कराता है
Everything Around Us Are Vibrating Strings - Life Is So Digital !
क्या पता पूर्व में किसी एडवांस एलियन सभ्यता ने हमारे लिए इस ब्रह्मांड रुपी वीडियो गेम को डिज़ाइन किया हो । और क्या गारंटी है कि..जिस सभ्यता ने ये किया हो । वो खुद किसी वीडियो गेम का हिस्सा नहीं हो ? स्वपन के भीतर स्वपन की अनंत परतें हो सकती हैं । अंतिम परत परम सत्य तक पहुचना शायद संभव नहीं है । ( और शायद संभव हो भी सकता है )
खैर इस ब्रह्मांड के प्रोग्राम होने पे अधिकतर वैज्ञानिक सहमत हो सकते हैं । लेकिन एक चीज है । जो संभव नहीं दिखती कि किसी भी एडवांस एलियन सिविलाइज़ेशन के पास इतनी कंप्यूटिंग पॉवर नहीं हो सकती कि 8 अरब मानवों और 94 अरब प्रकाश वर्ष लंबे इस ब्रह्माण्ड को प्रोग्राम किया जा सके ।
ओके !
किसने कहा कि ये ब्रह्माण्ड 94 अरब प्रकाश वर्ष लंबा है ? हो सकता है कि इस आकाश गंगा के बाहर दिखाई देने वाला ब्रह्माण्ड फेक हो ।
Just An Illusion !
हो सकता है कि रात के आसमान में झिलमिलाते ये असंख्य तारे किसी फ़िल्म का प्रोजेक्शन मात्र हो । और किसने कहा कि दुनिया की पापुलेशन 8 अरब है ।
May Be All Of Them Are Not Real !
आप सभी ने एक बेहतरीन वीडियो गेम "VICE CITY" अवश्य खेला होगा । जिसमें एक शहर की सड़कों पर भटक रहे नायक का लक्ष्य अपनी मंजिल तक पहुँचना होता है । अपने इस सफ़र में नायक.. सड़कों पर आ जा रहे दर्जनों Fake लोगों को देखता था । पर नायक से इंटरेक्शन की सूरत में वे लोग रियल हो जाते थे ।
अब मैं जो कहने जा रहा हूँ । उसे कुर्सी पकड़ के पढ़िए । अपना मोबाइल सामने मेज पे रख दीजिये । और एक मिनट के लिए आँखे बन्द कर लीजिये । एक मिनट के बाद आँखे खोलिए ।
Done ?
तो साहेबान जब आपकी आँखे बन्द थी । तो आपका फोन कहाँ था ? क्या कहा ? सामने मेज पर ?
नहीं आपका फोन मेज पे नहीं था । बल्कि ऊर्जा बनकर अदृश्य हो गया था । जैसे ही आपने आँखे खोली । वैसे ही आपकी चेतना का संपर्क मोबाइल के अणुओं से होते ही मोबाइल स्थूल रूप प्रकट हो गया ।
I Know आप सोच रहें है कि मेरे दिमाग का कोई सर्किट हिल गया है । लेकिन Unfortunately आप गलत हैं ।
ब्रह्मांड में मौजूद सभी कण क्वांटम-ली वेव रूप में सुपर पोजीशन स्टेट में मौजूद रहते हैं । पदार्थ रूप में तभी प्रकट होते हैं । जब कोई इन्हें देख रहा हो । ये बात प्रयोगशाला में हजारो बार प्रमाणित है ।
Observer Effect
पर वेव फंक्शन collapse हो के पदार्थ के रूप में प्रकटीकरण इतने सूक्ष्म समय में होता है कि ये हमारी मानवीय इन्द्रियों के परे है । ( इस विषय पे अलग पोस्ट जल्द )
तो साहेबान हो सकता है कि किसी स्मार्ट एलियन सभ्यता ने आपको भ्रम में रखने के लिए फेक लोगों का भी निर्माण किया हो ।
Lets Say 999 Fake For Every Real Person !
सड़कों पर आते जाते जिन हजारों लोगों को आप देखते हैं । शायद वे सभी वास्तविक ना हों ।
पर जैसे ही आप किसी से इंटरेक्शन करते हैं । वैसे ही वो इंसान एक्टिवेट हो जाता है ।
एक जिंदगी की कहानी के साथ -
So Funny Enough
कल सुबह जब आप ऑफिस जाने के लिए सड़क पार कर रहे हों । तो सड़क पर गुजरती भीड़ को देख एक सवाल खुद से पूछियेगा कि - WHO ARE YOU ?
क्या आप वो एक इंसान हैं । जिसके लिए सड़क पर मौजूद 999 लोगों को बनाया गया है ।
Or May Be - You Are A Part Of Those 999
Who Think. They Are Real
BUT
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सिर्फ़ 2% सही तथ्य, वो इसलिये कि नजरिया सिर्फ़ पदार्थ ( और स्थूल ) विज्ञानी है । अगर.. 
आत्म > चेतन > कंप > इच्छा > वृति > गुण = प्राप्त ( कल्पित पदार्थ ) पद + अर्थ
इस शाश्वत सूत्र से गुत्थी हल करते तो कोई रहस्य ही नहीं बचता - राजीव कुलश्रेष्ठ ।