क्या भारत में नारी की " पुरूष की दासता " से मुक्ति संभव है ?
- स्त्री पुरूष की छाया से ज्यादा अस्तित्व नहीं जुटा पाई है । इसीलिए जहां पुरूष होता है । स्त्री वहां है । लेकिन जहां छाया होती है । वहां थोड़े ही पुरूष को होने की जरूरत है । स्त्री का विवाह हो । तो वह श्रीमती हो जाती हे । मिसेस हो जाती है । पुरूष के नाम की छाया रह जाती है । मिसेस फलानी हो जाती है । लेकिन इससे उल्टा नहीं होता कि स्त्री के नाम पर पुरूष जाता हो । अगर चंद्रकांत मेहता नाम है पुरूष का । तो स्त्री का कुछ भी नाम हो । वह श्रीमती चंद्रकांत मेहता हो जाती हे । लेकिन अगर स्त्री का नाम चंद्रकला मेहता है । तो ऐसा नहीं होता कि पति श्रीमान चंद्रकला मेहता हो जाते हों । ऐसा नहीं होता । ऐसा होने की जरूरत नहीं पड़ती है । क्योंकि स्त्री छाया है । उसकी कोई अपना अस्तित्व थोडे ही है । शास्त्र कहते हैं - जब स्त्री बालपन में हो । तो पिता उसकी रक्षा करे । जवान हो तो पति । बूढी हो जाए । तो बेटा रक्षा करे । सब पुरूष उसकी रक्षा करे । क्योंकि उसका कोई अपना अस्तित्व नहीं है । रक्षितत्व तो ही वह है । अन्यथा नहीं है । जैन धर्म के हिसाब से नारी मोक्ष की अधिकारी नहीं है । उसे पुरूष की तरह जन्म लेना पड़ेगा । जैनियों के चौबीस तीर्थंकर में 1 तीर्थक स्त्री है । नाम था मल्ली बाई - उन्होंने उसका नाम बदल कर मल्ली नाथ कर दिया । क्योंकि वे कहते है कि नारी मोक्ष की उत्तराधिकारी नहीं है । दुनियां में मुशिकल से कोई धर्म होगा । जिसने स्त्री को इज्जत दी हो । स्त्री मस्जिद में नहीं जा सकती । बस नारी का 1 ही उपयोग है । जिसे स्वर्ग जाना हो । वह नारी को छोड़कर भाग जाए । पहली क्रांति नारी को इन तथा कथित धर्मगुरूओं के खिलाफ करनी होगी । सारी मनुष्य जाति अधूरी है । इसके भीतर कुछ कमी है । जो पूरी नहीं हो पाती । जीवन भर दौड़कर भी प्रेम नहीं मिलता । प्रेम मिलता है समकक्ष से । और जब तक स्त्री पुरूष के समकक्ष नहीं होती । तब तक स्त्री को प्रेम नहीं मिल सकता । वह तो दासी है । पति परमात्मा है । पूरब की हालत है दासियों की । और पश्चिम की हालत तो और भी बदतर है । वहां औरत दिल बहलाने की वस्तु है । जब चाहे । स्त्री बदली जा सकती है । यह पुरूष की दुनिया है । जिसमें गणित से सारा हिसाब लगा रखा है । इस दुनिया में स्त्री का कोई हाथ नहीं । अन्यथा यह दुनिया बहुत दूसरी होती । यहां गणित कम महत्व पूर्ण होता । ह्रदय ज्यादा महत्वपूर्ण होता । यह गणित से ज्यादा प्रेम का हिसाब होता । लेकिन वह नहीं हो सका । क्योंकि स्त्री के पास को आत्मा नहीं है । इसलिए स्त्री का कोई कंट्रिब्यूशन भी नहीं है - इस संस्कृति के लिए । सभ्यता के लिए । और यह आदमी की बनाई हुई गणित की संस्कृति मरने के करीब पहुंच गई हे । अगर इस संस्कृति को बचाना है । तो स्त्री को व्यक्तित्व देना जरूरी है । और स्त्री को व्यक्तित्व देने का अर्थ है । उसे पुरूष जैसा नहीं । स्त्री के ही अनुकूल क्या उचित हो सकता है । उसकी शिक्षा । उसका प्रशिक्षण । उसके व्यक्तित्व का सारा उसका ही ढंग । ताकि 1 नारी उपलब्ध हो सके । और वह नारी अगर उपलब्ध हो सकती है । तो हम मनुष्य जाति के जीवन में बहुत आनंद जोड़ सकते है । क्योंकि वह नारी न मालूम कितने अर्थों में जीवन का केन्द्र हे ।
जोड़ ने लिखी है 1 किताब । और उस किताब में उसने लिखा है कि जब मैं पैदा हुआ । तो पश्चिम में होम थे । घर थे । और अब जब मैं मरने के करीब हूं । तो पश्चिम में सिर्फ हाउस रह गए हैं । होम बिलकुल नहीं । सिर्फ मकान रह गए है । घर कोई भी नहीं है । किसी ने जोड़ से पूछा कि - तुम्हारा मतलब क्या है ? होम और हाउस में फर्क क्या है ?
जोड ने कहा कि जिस हाउस में 1 नारी होती है । उसको मैं होम कहता हूं । और जिस हाउस में नारी नहीं होती । वह होटल हो जाता है । मकान हो जाता है । और पश्चिम में नारी खो गई है । पूरब में है ही नहीं । यह मत सोच लेना कि यहां है । यहां है ही नहीं । दासियों से घर नहीं बनते । लेकिन क्या किया जा सकता है ।
पहली बात । नारी को पुरूष से पृथक व्यक्तित्व उपलब्ध करना है । न उसे पुरूष का गुलाम रहना है । और न पुरूष का अनुकरण करना है । नारी को अपने व्यक्तित्व की खोज करनी है । और उसे स्पष्ट यह घोषणा कर देना है कि हम स्त्री है । और स्त्री ही रहेगी । और स्त्री ही होना चाहेंगी । क्योंकि ध्यान रहे । हम जो होने को पैदा हुए हैं । जब वहीं हो जाते हैं । तभी हम आनंदित होते हें । हम अन्यथा कुछ भी हो जाएं । आनंदित नहीं हो सकते । घास का फूल खिल जाए । और फूल बन जाए । तो आनंदित हो सकता है । अगर वह गुलाब को फूल बनाना चाहेगा । तो मुश्किल शुरू हो जाएगी । वह अपने स्वभाव से भटक जाएगा । आदमी अंतिम जगह आ गया है । पुरूष की सभ्यता कगार पर आ गई है । स्त्री का मुक्त होना जरूरी है । स्त्री के जीवन में क्रान्ति होनी जरूरी हे । ताकि स्त्री स्वयं को भी बचा सके । और सभ्यता भी बचा सके । अगर स्त्री अपनी पूरी हार्दिकता, अपने पूरे प्रेम अपने पूरे संगीत, अपने पूरे काव्य, अपने व्यक्तित्व के पूरे फूलों को लेकर छा जाए । तो इस जगत से युद्ध बंद हो सकते है । लेकिन जब तक पुरूष हावी है दुनिया पर । तब तक युद्ध बंद नहीं हो सकते । वह पुरूष के भीतर युद्ध छिपा हुआ है । मां के पेट में जैसे ही बच्चा निर्मित होता है । तो 24 सेल मां से मिलते हैं । और 24 सेल पिता से मिलते हैं । पिता के सेल्स में 2 तरह के सेल होते हैं । 1 में 24 । और 1 में 23 सेल होते हैं । अगर 23 सेल वाला अणु मां के 24 सेल वाले अणु से मिलता है । तो पुरूष का जन्म होता हे । पुरूष के हिस्से में 47 सेल होते है । और स्त्री के हिस्से में 48 सेल होते है । स्त्री की जो व्यक्तित्व है । यह सिमैट्रिकल है । पहली ही बुनियाद से । उसके दोनों तत्व बराबर है - 24-24 । बायोलाजी कहती है कि स्त्री में जो सुघडता, जो सौंदर्य, जो अनुपात, जो परफोरशन है । वह उन 24-24 के समान अनुपात होने के कारण है । और पुरूष में 1 इनर टेंशन है । उसमें 1 तरफ 24 अणु और दूसरी तरफ 23 अणु है । उसका तराजू थोड़ा उपर नीचे होता रहता है । उसके भीतर 1 बेचैनी जिंदगी भर उसे घेरे रहती है । वह कुछ उपद्रव करता ही रहेगा । इस टेंशन की वजह से वह कोई न कोई विवाद खड़े करता ही रहेगा । अगर पुरूष के हाथ में सभ्यता है पूरी की पूरी । तो युद्ध कभी बंद नहीं हो सकते । यह जानकर आपको हैरानी होगी कि महावीर, बुद्ध, राम और कृष्ण को आपने दाढ़ी मूंछ के नहीं देखा होगा । क्योंकि जैसे ही पुरूष को व्यक्तित्व धीरे धीरे स्त्री के करीब आता है । वह जैसे हार्दिक होते है । वे स्त्री के करीब आने लगते हैं । मूर्तिकारों ने बहुत सोचकर यह बात निर्मित की है । उनका सारा व्यक्तित्व स्त्री के इतने करीब ओ गया होगा कि दाढ़ी मूंछ बनानी उचित नहीं मालूम पड़ी होगी । व्यक्तित्व इतना समानुपात हो क्या होगा । ओशो
- स्त्री पुरूष की छाया से ज्यादा अस्तित्व नहीं जुटा पाई है । इसीलिए जहां पुरूष होता है । स्त्री वहां है । लेकिन जहां छाया होती है । वहां थोड़े ही पुरूष को होने की जरूरत है । स्त्री का विवाह हो । तो वह श्रीमती हो जाती हे । मिसेस हो जाती है । पुरूष के नाम की छाया रह जाती है । मिसेस फलानी हो जाती है । लेकिन इससे उल्टा नहीं होता कि स्त्री के नाम पर पुरूष जाता हो । अगर चंद्रकांत मेहता नाम है पुरूष का । तो स्त्री का कुछ भी नाम हो । वह श्रीमती चंद्रकांत मेहता हो जाती हे । लेकिन अगर स्त्री का नाम चंद्रकला मेहता है । तो ऐसा नहीं होता कि पति श्रीमान चंद्रकला मेहता हो जाते हों । ऐसा नहीं होता । ऐसा होने की जरूरत नहीं पड़ती है । क्योंकि स्त्री छाया है । उसकी कोई अपना अस्तित्व थोडे ही है । शास्त्र कहते हैं - जब स्त्री बालपन में हो । तो पिता उसकी रक्षा करे । जवान हो तो पति । बूढी हो जाए । तो बेटा रक्षा करे । सब पुरूष उसकी रक्षा करे । क्योंकि उसका कोई अपना अस्तित्व नहीं है । रक्षितत्व तो ही वह है । अन्यथा नहीं है । जैन धर्म के हिसाब से नारी मोक्ष की अधिकारी नहीं है । उसे पुरूष की तरह जन्म लेना पड़ेगा । जैनियों के चौबीस तीर्थंकर में 1 तीर्थक स्त्री है । नाम था मल्ली बाई - उन्होंने उसका नाम बदल कर मल्ली नाथ कर दिया । क्योंकि वे कहते है कि नारी मोक्ष की उत्तराधिकारी नहीं है । दुनियां में मुशिकल से कोई धर्म होगा । जिसने स्त्री को इज्जत दी हो । स्त्री मस्जिद में नहीं जा सकती । बस नारी का 1 ही उपयोग है । जिसे स्वर्ग जाना हो । वह नारी को छोड़कर भाग जाए । पहली क्रांति नारी को इन तथा कथित धर्मगुरूओं के खिलाफ करनी होगी । सारी मनुष्य जाति अधूरी है । इसके भीतर कुछ कमी है । जो पूरी नहीं हो पाती । जीवन भर दौड़कर भी प्रेम नहीं मिलता । प्रेम मिलता है समकक्ष से । और जब तक स्त्री पुरूष के समकक्ष नहीं होती । तब तक स्त्री को प्रेम नहीं मिल सकता । वह तो दासी है । पति परमात्मा है । पूरब की हालत है दासियों की । और पश्चिम की हालत तो और भी बदतर है । वहां औरत दिल बहलाने की वस्तु है । जब चाहे । स्त्री बदली जा सकती है । यह पुरूष की दुनिया है । जिसमें गणित से सारा हिसाब लगा रखा है । इस दुनिया में स्त्री का कोई हाथ नहीं । अन्यथा यह दुनिया बहुत दूसरी होती । यहां गणित कम महत्व पूर्ण होता । ह्रदय ज्यादा महत्वपूर्ण होता । यह गणित से ज्यादा प्रेम का हिसाब होता । लेकिन वह नहीं हो सका । क्योंकि स्त्री के पास को आत्मा नहीं है । इसलिए स्त्री का कोई कंट्रिब्यूशन भी नहीं है - इस संस्कृति के लिए । सभ्यता के लिए । और यह आदमी की बनाई हुई गणित की संस्कृति मरने के करीब पहुंच गई हे । अगर इस संस्कृति को बचाना है । तो स्त्री को व्यक्तित्व देना जरूरी है । और स्त्री को व्यक्तित्व देने का अर्थ है । उसे पुरूष जैसा नहीं । स्त्री के ही अनुकूल क्या उचित हो सकता है । उसकी शिक्षा । उसका प्रशिक्षण । उसके व्यक्तित्व का सारा उसका ही ढंग । ताकि 1 नारी उपलब्ध हो सके । और वह नारी अगर उपलब्ध हो सकती है । तो हम मनुष्य जाति के जीवन में बहुत आनंद जोड़ सकते है । क्योंकि वह नारी न मालूम कितने अर्थों में जीवन का केन्द्र हे ।
जोड़ ने लिखी है 1 किताब । और उस किताब में उसने लिखा है कि जब मैं पैदा हुआ । तो पश्चिम में होम थे । घर थे । और अब जब मैं मरने के करीब हूं । तो पश्चिम में सिर्फ हाउस रह गए हैं । होम बिलकुल नहीं । सिर्फ मकान रह गए है । घर कोई भी नहीं है । किसी ने जोड़ से पूछा कि - तुम्हारा मतलब क्या है ? होम और हाउस में फर्क क्या है ?
जोड ने कहा कि जिस हाउस में 1 नारी होती है । उसको मैं होम कहता हूं । और जिस हाउस में नारी नहीं होती । वह होटल हो जाता है । मकान हो जाता है । और पश्चिम में नारी खो गई है । पूरब में है ही नहीं । यह मत सोच लेना कि यहां है । यहां है ही नहीं । दासियों से घर नहीं बनते । लेकिन क्या किया जा सकता है ।
पहली बात । नारी को पुरूष से पृथक व्यक्तित्व उपलब्ध करना है । न उसे पुरूष का गुलाम रहना है । और न पुरूष का अनुकरण करना है । नारी को अपने व्यक्तित्व की खोज करनी है । और उसे स्पष्ट यह घोषणा कर देना है कि हम स्त्री है । और स्त्री ही रहेगी । और स्त्री ही होना चाहेंगी । क्योंकि ध्यान रहे । हम जो होने को पैदा हुए हैं । जब वहीं हो जाते हैं । तभी हम आनंदित होते हें । हम अन्यथा कुछ भी हो जाएं । आनंदित नहीं हो सकते । घास का फूल खिल जाए । और फूल बन जाए । तो आनंदित हो सकता है । अगर वह गुलाब को फूल बनाना चाहेगा । तो मुश्किल शुरू हो जाएगी । वह अपने स्वभाव से भटक जाएगा । आदमी अंतिम जगह आ गया है । पुरूष की सभ्यता कगार पर आ गई है । स्त्री का मुक्त होना जरूरी है । स्त्री के जीवन में क्रान्ति होनी जरूरी हे । ताकि स्त्री स्वयं को भी बचा सके । और सभ्यता भी बचा सके । अगर स्त्री अपनी पूरी हार्दिकता, अपने पूरे प्रेम अपने पूरे संगीत, अपने पूरे काव्य, अपने व्यक्तित्व के पूरे फूलों को लेकर छा जाए । तो इस जगत से युद्ध बंद हो सकते है । लेकिन जब तक पुरूष हावी है दुनिया पर । तब तक युद्ध बंद नहीं हो सकते । वह पुरूष के भीतर युद्ध छिपा हुआ है । मां के पेट में जैसे ही बच्चा निर्मित होता है । तो 24 सेल मां से मिलते हैं । और 24 सेल पिता से मिलते हैं । पिता के सेल्स में 2 तरह के सेल होते हैं । 1 में 24 । और 1 में 23 सेल होते हैं । अगर 23 सेल वाला अणु मां के 24 सेल वाले अणु से मिलता है । तो पुरूष का जन्म होता हे । पुरूष के हिस्से में 47 सेल होते है । और स्त्री के हिस्से में 48 सेल होते है । स्त्री की जो व्यक्तित्व है । यह सिमैट्रिकल है । पहली ही बुनियाद से । उसके दोनों तत्व बराबर है - 24-24 । बायोलाजी कहती है कि स्त्री में जो सुघडता, जो सौंदर्य, जो अनुपात, जो परफोरशन है । वह उन 24-24 के समान अनुपात होने के कारण है । और पुरूष में 1 इनर टेंशन है । उसमें 1 तरफ 24 अणु और दूसरी तरफ 23 अणु है । उसका तराजू थोड़ा उपर नीचे होता रहता है । उसके भीतर 1 बेचैनी जिंदगी भर उसे घेरे रहती है । वह कुछ उपद्रव करता ही रहेगा । इस टेंशन की वजह से वह कोई न कोई विवाद खड़े करता ही रहेगा । अगर पुरूष के हाथ में सभ्यता है पूरी की पूरी । तो युद्ध कभी बंद नहीं हो सकते । यह जानकर आपको हैरानी होगी कि महावीर, बुद्ध, राम और कृष्ण को आपने दाढ़ी मूंछ के नहीं देखा होगा । क्योंकि जैसे ही पुरूष को व्यक्तित्व धीरे धीरे स्त्री के करीब आता है । वह जैसे हार्दिक होते है । वे स्त्री के करीब आने लगते हैं । मूर्तिकारों ने बहुत सोचकर यह बात निर्मित की है । उनका सारा व्यक्तित्व स्त्री के इतने करीब ओ गया होगा कि दाढ़ी मूंछ बनानी उचित नहीं मालूम पड़ी होगी । व्यक्तित्व इतना समानुपात हो क्या होगा । ओशो
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