क्या अत्रप्त आत्मा । आत्माएँ । भूत । प्रेत आदि होते हैं ? अत्रप्त आत्मा । आत्मायें । भूत । प्रेत आदि के अस्तित्व जानने के लिए हमें जानना होगा कि - आत्मा क्या है ? क्या आत्मा होती है ? अत्यंत आश्चर्य की बात है कि कम पढे लिखे लोग कहें तो कहें कि - आत्मा होती है । मृत्यु के बाद जीवन होता है ? लेकिन मुझे विश्वास नहीं होता है कि अत्यंत पढे लिखे लोग यहाँ तक कि मैंने पढ़ा है कि न्याय बिभाग के उच्च पद पर काम करने वाले तथा विज्ञान बिषय को पढ़ चुके कुछ लोग और यहाँ तक कि डाक्टर भी कह सकते है कि " आत्मा " होती है ? भूत होता है । इसी प्रकार के वर्ग के लोगों ने इस धारणा को फैलाया है । जानते है कि ऐसे लोग क्या कहते हैं ? उपरोक्त धारणा के लोगों का कहना है कि - प्रत्येक व्यक्ति में 2 तत्व ? होते हैं ? 1 नाशवान शरीर ( फिजीकल बॉडी ) 2 सूक्ष्म शरीर - अर्थात आत्मा । जीवात्मा ?
उनका कहना है कि - जीवात्मा अदृश्य है ? मेटाफिजीकल है ? जिसे केवल महसूस किया जा सकता है ? जब व्यक्ति मरता है । तो यह फिजीकल Body ( देह । शरीर ) मर जाती है । और आत्मा निकल कर ? दूसरे शरीर में प्रवेश करने के लिए यात्रा करती है । देह का मरना । जीवन का समाप्त हो जाना नहीं है ? बल्कि यह तो 1 पंक्चुएशन ( अल्प विराम ) है । जीवात्मा कभी जलती नहीं । कभी मरती नहीं । यह समय और सीमा से परे है । इसका न आदि है । न अंत है । मृत्यु इसे छू भी नहीं सकती है । ये लोग यह भी कहते हैं कि - मृत्यु के समय सभी व्यक्तियों । जीबों की समान परिस्थितियाँ । समान उमृ नहीं होती है । यह भी कहा जाता है कि 1 व्यक्ति जिसने जीवन में पूर्णता पाई । जीवन में पूर्ण संतुष्ट था । कोई इच्छा अधूरी नहीं रही । कोई अपराध बोध नहीं था । जिसकी कोई इच्छा बाकी नहीं थी । ऐसा व्यक्ति जब मरता है । तो वह स्वर्ग में जाता है । और हमेशा स्वर्ग में ही रहता है । ऐसे लोगों का कहना है कि “ गरुड पुराण ” में लिखा है कि ऐसे व्यक्तियों को स्वर्ग मिलता है । ऐसे व्यक्ति जीवन मरण के चक्र से मुक्त होकर “ मोक्ष ” प्राप्त कर लेता है ? और ईश्वर में हमेशा हमेशा के लिए समा जाता है ? लेकिन जो आत्मायें स्वर्ग में पहुँचती है । वे हमेशा के लिए स्वर्ग में नहीं रहती हैं । स्वर्ग क्या है ? और कहाँ है ? है भी कि नहीं ? इस पर चर्चा मैंने अपने लेख Does Soul exist में की है । ऐसे लोगों का यह भी कहना है कि - ऐसी आत्माओं को उनके पूर्व जन्म के कर्मों के फल के अनुसार पुनः नए जीवन ( योनि ) में आना पड़ता
है । अगर बहुत अच्छे कर्म किए । स्वर्ग में अनुशासित रहे ? तो मनुष्य योनि मिलती है ? और अगर स्वर्ग में रिकार्ड खराब रहा । तो जानवर । पक्षी । कीट । पतंगा आदि की ( 84 लाख योनियों में से कोई ) योनि में जाना पड़ता है । और भी विचित्र बातें ? बताई जाती हैं कि - जो व्यक्ति आत्म हत्या करते हैं । वे इस संसार छोडने के लिए योग्य नहीं माने जाते है । अतः उनकी आत्मा भटकती रहती है । क्योंकि उनके जीवन का निर्धारित समय पूरा नहीं हुआ होता है । अतः चूंकि उसे दूसरे का शरीर मिल नहीं सकता है । तो आत्मा ? जाय । तो कहाँ जाय ? अतः इसे तब तक भटकना पड़ता है । जब तक कि उस व्यक्ति की निर्धारित समयावधि पूरी नहीं हो जाती है । या कोई दूसरा शरीर प्रवेश करने के लिए न मिल जाय । यह जो मध्य काल ( वह समय जिसमे आत्मा 1 मृत शरीर से निकल तो जाती है । लेकिन दूसरा शरीर प्रवेश के लिए न मिल पाय ) होता है । यही भूतों का जीवन काल होता है । इतना ही नहीं । बल्कि कुछ धार्मिक पुस्तकों में यहाँ तक कहा गया है कि भूत भी कई तरह के होते हैं । मित्र भूत ( मदद करने वाले ) और शत्रु भूत ( बुरा । हानि कर देने वाले ) लेकिन भूत कैसे भी हों । पर होते है डरावने ?
ऊपर तो बे बातें हुई । जो धर्म ग्रंथ और उपदेशक कहते आये हैं । कह रहे हैं । अब हम सब खुद विचार करें । जैसा मैंने कहा कि धर्म के विभिन्न तत्व जैसे कि - ईश्वर का अस्तित्व । जन्म । मृत्यु । मृत्यु के बाद जीवन । मोक्ष आदि सभी 1 ही धुरी के चारो ओर घूमते हैं । और वह धुरी है - SOUL । अगर आत्मा के बारे में सत्यार्थ जान ले । समझ लें । तो इन सभी के सत्यार्थ पा जाएँगे । कंप्यूटर में जब कोई मीनू SELECT किया जाता है । तो उसके तमाम OPTION की LIST आकर ACTIVE हो जाते है । उसी तरह " आत्मा " का MENU SELECT करते ही । ये तत्व एक्टिव हो जाते हैं । यहाँ विस्तार में नहीं जाना चाहता हूँ ( डिटेल पढ़ने के लिए मेरा लेख - क्या आत्मा होती है ? पढें ) फिर भी यहाँ विचारणीय है कि - क्या आत्मा होती है ? मेरे विचार से तो नहीं होती है । यह काल्पनिक है ? तो इससे जुड़ी बाकी सब बातें काल्पनिक ही हैं ? क्या दुनियाँ में ऐसा व्यक्ति है । जो स्वेछा से मरना चाहता हो ? नहीं । यदि कोई ऐसा है । जो स्वेच्छा से मरना चाहता है । तो उस समय वह ऐसा खुद नहीं सोचता है । बल्कि मस्तिष्क का उस समय क्षण भर के लिए अपने नियंत्रण का SWITCH OFF हो जाता है । हम देखते है कि 90 वर्ष के आसपास की उमृ में दिलीप कुमार । 80 में जितेंद्र । धर्मेंद्र । और न जाने कितने कलाकार । नेता । समाज
सेवक आदि बालों को खिजाब से काले करते रहते हैं । और मैं स्वयं भी करता हूँ । ताकि स्मार्ट दिखें । मरने की कौन सोचता है ? ऐसा क्यों ? कि जीने की चाहत सबको है ? उनको भी जो बीमारी में विस्तर पर कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियों से जूझ रहे हैं ? पश्चिमी देशों में तो 80-85 वर्ष की उमृ में वैज्ञानिक नोवेल पूरस्कार के लिए प्रयास करते हैं । और जीतते भी हैं । तो मरना कौन चाहता है ? नाली का कीड़ा । जो गंदगी में बिलबिलाता है । मरना वह भी नहीं चाहता है । उसे पकड़ें । तो वह भी पकड़ छुड़ाकर गंदगी में छिप जाता है । तो आदमी मरने की कैसे सोच सकता है ? तो फिर धर्म ग्रंथों में ऐसा कैसे कह दिया गया कि जिस व्यक्ति ने जीवन पूर्ण संतुष्टि का जी लिया हो । उसकी कोई इच्छा बाकी न रही हो ? वह सीधा स्वर्ग में जाकर भगवान में लीन हो जाता है ? सदा सदा के लिए । अर्थात “ मोक्ष ” को प्राप्त हो जाता है । और जिसकी इच्छा अपूर्ण रही । या जिसने इच्छा रहते हुए भी आत्महत्या कर ली थी । वह मरने पर भूत । प्रेतात्मा । अत्रप्त आत्मा बन जाता है । कौन ऐसा है । जो मरते समय भी कोई न कोई इच्छा न रखे ? पहली इच्छा तो उसकी यही रहती है कि वह मरे ही नहीं । इसके बाद भी तमाम इच्छायें होती हैं । जब सभी मरने बाले कोई न कोई या अनेक इच्छाओं को लेकर मरते हैं । तो इसका मतलब हुआ कि सबको ही मरने के बाद भूत । अत्रप्त आत्मा बनना चाहिए ? जहाँ तक बात आत्मा की है कि यदि आत्महत्या की गयी । तो आत्मा ट्रांज़िट ( मध्यकाल ) में ही विचरण करती रहेगी । क्योंकि 1 शरीर से तो निकल आयी । लेकिन दूसरा शरीर मिला नहीं ( क्योंकि हो सकता है कि मरने वाले ने कार्य ऐसे किए थे कि उसे पशु योनि मिले । लेकिन कोई पशु का शरीर उस समय उपलब्ध न था ? क्योंकि पशु ने पशु योनि में इतने खराब कर्म किए होंगे कि उसे पशु से भी खराब योनि मिलनी है ) यह तो ऐसे ही लगता है कि आत्मा को 1 ऐसे रेलबे स्टेशन से किसी ऐसी जगह जाना हो । जहाँ के लिए कोई डायरेक्ट ट्रेन न हो । इसलिए उसे अगले जंक्शन जहां से उस स्थान के लिए ट्रेन 10 घंटे बाद जाती हो । तो आत्मा उस जंक्शन पर जाकर 10 घंटे WAITING ROOM में प्रतीक्षा करे । और जब उसकी ट्रेन आए । तब ट्रेन में चढ़े । सवाल यह है कि यदि आत्मा होती है । तो वह भटके ही क्यों ? इस संसार में तो अरबों हजार अरब अर्थात अनगिनत जीव हैं । जबकि धर्म ग्रंथ
तो उनको ही जीब मानते हैं ? जो दिखायी पड़ते हैं ? क्या वे जीवाणु जो दिखाई नहीं देते । बे जीव नहीं है ? यदि उनमे जीवन नहीं है । तो बे शरीर में पहुँचकर अंगों को क्यों और कैसे खा जाते हैं ? जरा सोचें । मेरे विचार से जीव वह है । जिसमें जीवन है ? जिसमें वृद्धि और गति के गुण हों । कितना आश्चर्यजनक है कि प्रेतात्माएँ मित्र भी होती हैं । और शत्रु भी । हानि भी पहुंचाती है । और लाभ भी । कोई आत्मा किसी को दुख क्यों दे ? अगर मरने वाले से कोई दुश्मनी ही थी । तो जब वो ( आत्मा ) शरीर में थी । तब क्यों हिसाब किताब पूरा नहीं कर पायी ? क्यों हानि नहीं पहुंचा पायी ? अब मरने के बाद आत्मा कैसे बदला ले लेगी ? शरीर तो मर गया । उसमें जो आत्मा थी । वह तो निकल आयी । तो अब बची तो आत्मा ही ? तो वह आत्मा क्या खुद से ही बदला लेगी ? वास्तविकता यह है कि जब बहुत से व्यक्ति पंडा । पुजारियों । धर्म के ठेकेदारों के चंगुल में फंसकर भी किसी तरह निकल जाते हैं । अर्थात पैसे नहीं देते हैं । तो उनको कहा जाता है कि - तुम्हारी दोस्त /रिश्तेदार की आत्मा तुमसे बदला लेना चाह रही है ( जबकि ध्यान से देखो । तो पता चलेगा कि बदला तो पुजारी/तांत्रिक तुमसे लेना चाह रहा है । क्योंकि मांगे थे 1001 रुपये । पर तुमने दिये 101 रुपये ? तो डर दिखाकर ही तो बाकी 900 रुपए वह बसूल कर सकेगा । विना डर के तो 900 रुपये कोई देगा नहीं । )
कहा जाता है कि भगवान के यहाँ हर चीज का हिसाब किताब रखा जाता है । लेकिन यह सोचकर दिमाग चक्कर खा जाता है कि - COMPUTER का आविष्कार तो अभी कुछ समय पहले ही हुआ है । लेकिन क्या भगवान के एकाउंट आफ़ीसर श्री चित्रगुप्त जी महाराज ( जिन्हें जनम । मरण । पूर्व जन्म । मृत्यु के बाद जनम आदि का हिसाब किताब रखने के लिए APPOINT किया गया बताया जाता है ) ने अपने OFFICE के बड़े क्लिष्ट और पेचीदे कार्यों । जैसे कि बृह्मांड के अरबों खरबों जीवों में से किसको कब और कितने समय तक 84 लाख योनियों में से किस किस योनि में रखना है । किस किस प्राणी ने पूर्व जन्म में कितने अच्छे ( पुण्य के ) और कितने बुरे
( पाप के ) कर्म किए । गंगा नहाने से जो पुण्य कमाए । उन कमाए गए पुण्यों के बाद किसके खाते में कितने पुण्य जोड़ने हैं । और पापों की संख्या से कितने घटाने हैं । कितनी आत्माओं को मध्य काल ( ट्रांज़िट पीरियड ) में रखना है । कितनों को स्वर्ग में । कितने समय तक रखना है । कितनों को नर्क में रखना है । कितनों को अपने में लीन करके “ मोक्ष ” देना है ? आफ़िस में कितना स्टाफ है ( यमराज । सहायक यमराज । कितने भैंसे हैं ) इनमें से कितने छुट्टी पर हैं ? कितने छुट्टी की दरखास्त दे रखे हैं ? कितने यमराज । सहायक यमराजों के TA बिल । बेतन पास हो चुके हैं । या बाकी ( पेंडिंग ) पड़े हैं आदि बातों का ( इतना रिकार्ड रखने के लिए तो गीगा और टेरा बाइट क्षमता की हार्ड डिस्क भी कम पड़ जाये ) रिकार्ड रखने बाले कमप्यूटर/सुपर कंप्यूटर/परम कंप्यूटर खोज करके रख रखे होंगे । बरना यह काम Manually ( हाथ से लिखकर ) तो संभव नहीं है ।
मेरे विचार से वास्तविकता क्या है ? उपरोक्त विवरण से मेरे विचार से तो स्पष्ट हो जाता है कि जो कुछ है । वह वर्तमान ही है ? मरने के बाद कोई जीवन नहीं है ? न पूर्व जन्म के कर्मफल से हमारे इस जीवन के क्रियाकलाप निर्धारित होते हैं ? और न ही इस जन्म के अच्छे बुरे कर्मों का हिसाब मरने के बाद होगा ? जो कुछ होना है । बस इसी जीवन में होना है । और हमें देखना है । भोगना है । इस संबंध में कुछ वास्तबिक घटनाएँ मेरे दिमाग में आ रहीं हैं । उरई ( जालौन जिला ) में मेरी पोस्टिंग थी । मैंने 1 परिवार में देखा कि बेटा बहू अपनी माँ को रोटी नहीं देते थे । माँ को आँखों से बहुत कम दीखता था । बे भारी वीमारी में भी इलाज नहीं कराते थे । तो पड़ोस का 1 व्यक्ति रोटी /इलाज में मदद कर देता था । तो बेटा बहू कहते थे कि तुम जानो । माँ की मदद के पैसे हम नहीं देंगे । तो वह पड़ोसी कहता था कि - आपसे कौन मांगता है ? क्या कभी मांगे है ? तुम्हारी माँ को मैं अपनी माँ समझ कर मदद करता हूँ । तुम दोनों के कीड़े पड़ेंगे । तो दोनों में झगड़ा होता था । मेरे ट्रांसफर पर मैं आगरा आ गया । मुझे बाद में सुनने को मिला कि उनका जवान बेटा फांसी लगाकर मर गया । सोचना चाहिए कि - क्या उन पति पत्नी के बुरे कर्म अगले जन्म के लिए पेंडिंग रहे ? नहीं । इसी जन्म में मिल गए । ऐसी बातें हम रोज अपने चारो ओर देखते है । फिर भी पूर्व जन्म के या अगले जन्म के फल को मानते हैं ।
http://myviews-krishnagopal.blogspot.in/2012/08/blog-post_9.html
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इस लेख के लेखक भारत सरकार के उच्च पद से रिटायर्ड ( 64 ) हैं । मैंने ये लेख सत्यकीखोज के पाठकों के चिंतन मनन व प्रश्नों के हेतु साझा किया है । आप चाहें । तो टिप्पणी द्वारा इस लेख में उठे प्रश्नों के उत्तर भी दे सकते हैं । या फ़िर ( मूल ) प्रश्न निकाल कर मुझसे उत्तर पूछ भी सकते हैं । इन सभी के सरल सहज प्रयोगात्मक स्तर पर उत्तर मेरे पास हैं ।
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परमात्मा के भरोसे - योगी पतित हो सकता है । क्योंकि योगी को अपने बल का भरोसा होता है । 1 साधक पतित हो सकता है । क्योंकि उसे अपनी साधना पर भरोसा होता है । पर 1 शरणागत पतित कभी नहीं हो सकता है । क्योंकि उसे अपनी साधना और बल का भरोसा नहीं । प्रत्युत परमात्मा का भरोसा होता है । परमात्मा के भरोसे रहने वाले का कभी भी पतन हो ही नहीं सकता है । इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा कि - मेरा भक्त कभी भी गिर नहीं सकता ? मेरे भक्त का कभी भी पतन नहीं होता है ? सद्गुरु कबीर साहब भी यही कहते हैं -
मन की मनसा मिट गई । दुर्मति भई सब दूर । जन मन प्यारा राम का । नगर बसै भरपूर ।
अब तो प्रभु के नगर में बसा जाता है । अथवा अब इस दिल की नगरी में प्रभु भरपूर बसते हैं । प्रभु का प्यार बसता है । प्रभु की शरणागति बसती है । प्रभु समर्पण का तार छनकता है । ऐसे मैं मन की मनसा मिट गई दुर्मति भई सब दूर । श्रीकृष्ण कहते हैं - न मे भक्ता प्रणय स्मति । मेरा भक्त कभी नहीं गिरता ।
पाप । दुर्मति । दुख । दरिद्रता । लौकिक कष्ट । मानसिक परेशानी । सबका निदान प्रभु प्रेम है ।
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The bond that links your true family is not one of blood, but of respect and joy in each other's life. ~ Richard Bach
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