मैं - हेलो ..हेलो मैं कुलश्रेष्ठ आगरा से बोल रहा हूँ । आप भगवान जी ही बोल रहे हैं ? मैं आपका भक्त बोल रहा हूँ ।
भगवान - हेलो । हाँ मैं भगवान ही बोल रहा हूँ । परंतु अपना पूरा परिचय तो दो । मेरे मोबाइल मैं तुम्हारा फोन नंबर फीड नहीं है । बताओ तो । मेरे तो असंख्य भक्त हैं ।
मैं - अरे भूल गए क्या ? महाराज जी भगवान जी । ऐन वही भक्त जो आफिस आगरा में काम करता था । तब आपने ही मुझे फोन मिलाया था । और आपने तमाम शंकाओं का निवारण किया था । उस समय मैं रिटायरमेंट के करीब था । अब रिटायरमेंट हुए करीब 2 वर्ष हो गए हैं । अब मैं आफिस के तमाम कार्यों और टेंसनों से फ्री हूँ । मैंने 1 बार और भी आपको फोन मिलाया था । परंतु बार बार यही मैसेज आ रहा था - द फोन नंबर टू विच यू वांट टू टाक इज करंटली स्विच आफ । जिस वोडा फ़ोन से आप बात करना चाहते हैं । उनसे अभी बात नहीं हो सकती । आज बङी मुश्किल से मिला है । मैं रिटायरमेंट के बाद आगरा में ही रह रहा हूँ । मेरी पत्नी केंसर से बीमार हुई । और 1 साल बाद उसे आपने अपने पास बुला लिया । अर्थात उसका निधन हो गया । इसे दुर्घटना कहें । या घटना । कुछ समझ नहीं आता है । हाँ 1 खालीपन सा आ गया है । उसमें तमाम विचार आए गए । और आ भी रहें हैं ।
भगवान - ओह आई एम सॉरी फॉर योअर ट्रबुल । इतना समझ लो कि - जो भी मैंने संसार में भेजा है । उसे संसार छोडना तो पड़ता ही है । यह रीति है कि पति और पत्नी में से किसी को भी पहले छोडना पड़ता है । मैंने तो गीता मैं पहले ही अर्जुन के माध्यम से शंकाओं का सभी तरह से निबारण कर दिया है । तुम प्राप्त ही न करना चाहो । तो मैं क्या करूँ ?
मैं - भगवान गीता में जो कुछ भी ज्ञान अपने दिया है । वह तो बहुत कठिन है । मेरी समझ में तो क्या विद्वानों की भी समझ से परे है । यह बात अलग है कि अलग अलग विद्वानों ने अपने विचार से आपकी बात को अपनी अपनी तरह से कहा है ।
भगवान - अच्छा ! तो कहो । तुम्हें और क्या क्या पूछना है ? क्या घूम रहा है । तुम्हारे मन में ?
मैं - मैं तो इस दुनियाँ में देखता हूँ कि - 1 नहीं करोड़ों व्यक्ति कहते हैं कि आप 1 नहीं अनेकों हैं । यह कैसे संभव है ? अब देखो । उस दिन भी आप ही बात कर रहे थे । और आज भी आप ही बात कर रहे हैं । इस तरह मैं तो
भगवान - सच तो यह है कि मैं तो 1 ही हूँ । पृथ्वी पर अनेकों रूप अनेकों भगवान तो आप लोगो ने बना दिये । रखे हैं । तुम लोगों ने मेरे बारे में जितनी भी कल्पनाएं कर रखीं हैं । बे सब निराधार हैं ।
मैं - मैं ऐसा कैसे मान लूँ ? प्राचीन पुस्तकों पुराणों में लिखा है कि - देवता अनेकों हैं । यह सब क्या चक्कर है ? क्यों आपने हम सबको चक्कर में डाल रखा है ? कभी सोचता हूँ कि आप 1 ही हैं । तो कहीं और मंदिरों में जहाँ कई कई नाम के देवता विराजमान होना बताए जाते हैं । मैं क्यों जाऊँ ? क्यों भटकूँ ? और जब सोचता हूँ कि आप राम भी हैं । आप कृष्ण भी हैं । आप दुर्गाजी भी हैं । आप हनुमान भी है । आप जीसस क्रिष्ट भी हैं । तो सबको पूजने मनाने के लिए कभी मंदिर । कभी मस्जिद । कभी चर्च । कभी गुरु द्वारा जाता हूँ । और आपको देखने के लिए जाता हूँ । लेकिन मिलते कहीं भी नहीं हैं । हमारी तो बुद्धि ही चक्कर खा जाती है ।
भगवान - कोई चक्कर नहीं है । केवल भृम है । मति भृमित हो गए हो । सच बात जान लो कि मैं 1 हूँ । और केवल 1 हूँ । अनेक नहीं । पहले तो ईश्वर और देवता में अंतर समझो । भृम तो तुम लोगों ने खुद पैदा किए हैं । क्योंकि अपने को बहुत ज्यादा बुद्धिमान होशियार समझते हो । और लोगों को दिखाना चाहते हो कि - मैं बहुत होशियार हूँ । तभी तो सरल बात को भी क्लिष्ट बनाते रहे हो । और दोष मुझे देते हो कि मैं मिलता नहीं हूँ । क्या कभी सुबह सुबह बाग में गए हो । वहाँ - घास की ओस में । ठंडी हवा के झो्कों में । चिड़ियों के चहचहाने में ।
मैं - भगवान जी आप कहते है कि - आप सर्व व्यापक हैं । सर्व विधमान हैं । आप दुनियाँ के सैकड़ों देशों में 1 साथ कैसे विधमान रहते हैं ?
भगवान - हाँ मैं कह तो रहा हूँ कि - मैं व्यापक हूँ । मेरे लिए कोई देश परदेश नहीं है । महा द्वीप । देश । प्रदेश । जिले । तहसील । गली । मोहल्ले तुम लोगों ने बनाए है । मैंने नहीं । मैंने तो तुम सबको 1 दुनियाँ प्यार से रहने के लिए दी थी । नदियां दिये । पहाड़ दिये । झरने दिये थे । तुम लोगो ने धरती के टुकड़े टुकड़े करके उनके नाम रख लिए । और अभी भी नाम रखना बंद नहीं किया । रोज नए देश बना रहे हो । और इसके लिए खून खराबा भी करते हो । मेरे लिए दुनियाँ का हर प्राणी । चाहे वह इंसान हो । चाहे वह जानवर हों । पक्षी हो । कीट पतंगा हो । सभी 1 समान हैं । सभी मेरे हैं । और मैं सभी के अंदर हूँ । तुमको तो केवल इतना करना है कि मुझे अपने अंदर देखो । 1 शक्ति के रूप में । चूंकि मैं 1 शक्ति हूँ । इसलिए सर्व विधमान हूँ । सर्व व्यापक हूँ । कुछ समझे ?
मैं - क्या कहा । सभी आपको प्रिय हैं ? क्यों आडंबर पूर्ण बात करते हो । भगवान होकर ? मैं मानता हूँ कि आप सर्व शक्तिमान हैं । परंतु आपका यह कहना कि हम सब आपके हैं । सभी आपको प्रिय हैं । ऐसा तो नहीं हैं । आप ही देखिएगा । कोई बच्चा जन्म लेता है । नेत्र हीन के रूप में । कोई पैदा होते ही - लूला । लंगड़ा । ,कोई 2 सिर वाला । कोई 1 बच्चा चाहता है स्वस्थ । लेकिन पैदा होते हैं - दो । तीन । चार । पाँच । लेकिन अस्वस्थ । उनमें या तो सब मर जाते हैं । या 1-2 जिंदा रह पाते हैं । कोई उभय लिंगी पैदा होता है । जो जीवन भर न जीता है । न मरता है । अपमान की जिंदगी जीता है । मैं जब डाकघर का इंस्पेक्टर था । और 1 गाँव में इंस्पेक्सन करने गया । तो देखा कि एक दरबाजे पर 1 छोटी लड़की जिसकी गोद में उसका उससे छोटा भाई था को खि्ला रही थी । मुझे यह ख्याल आया कि यह लड़की अपने भाई को नहीं देख सकती है कि उसका भाई गोरा है । या काला है । कैसा है ? सुंदर है कि नहीं । वह खुद भी शीशे में नहीं देख सकती है कि वह खुद कैसी है ? सुंदर है । या नहीं ? कहीं देखने को मिलता है कि लड़की की शादी हुए महीने 2 महीने नहीं हुये । और उसका पति मर गया । लड़की अभिशाप का जीवन गुजार रही है । और समाज उसे ताने देता है । जो सास उसको घर की लक्ष्मी कहती थी । वही यह कहकर घर से निकाल देती है कि तूने मेरा बेटा खा लिया । डायन । निकल जा घर से ।,किसी बूढ़े माँ बाप का आँखों का तारा कैंसर से मर गया । जबकि वह स्कूल में पढ़ता था । कहाँ तक गिनाऊँ । दुखद मामले । फिर भी आप कहते हैं कि - आप दयालु हैं । आप न्याय प्रिय हैं । न्याय करते हैं । आपको सब प्रिय हैं । यह सब क्या है ? मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आता है ।
भगवान - मैं दयालु भी हूँ । और न्यायकारी भी हूँ ।
मैं - हद हो गयी भगवान जी । चोरी और सीना जोरी । नव विबाहिता का पति उठा लिया । बूढ़े माँ बाप का लाड़ला छीन लिया । किसी बच्चे को अंधा पैदा किया । कई गर्भवती औरतें एक्सीडेंट में मर जाती है । आपने 1 बच्चे के नए जीवन की शुरुआत की । लेकिन जीवन शुरू होने से पहले ही उसे पेट में ही मार दिया । आसाम में बृह्मपुत्र नदी में नाव पलटी । तो सैकङों लोग बच्चे डूव गए । उनमें 1 बालक के माँ बाप मर गए । और वह बच्चा जिसका कोई नहीं रहा । वह आकाश में निहार रहा था । यह तो कुछ उदाहरण हैं । फिर भी आप दयालु और न्यायकारी हैं ? लगता है । आपके ऊपर कोई नहीं है । अतः आप भी निरंकुश हो गए हैं । जबर मारे । और रोने भी न दे ।
भगवान - लगता है । नौकरी से रिटायर हो गए । इतना अनुभव पाया । लेकिन रिटायरमेंट के साथ ही ऑफिस का जो चार्ज सौंपा । उसी में अक्ल भी दे आए । इसीलिए तो अक्ल से सोच नहीं सकते हो । और जो चाहे । बोल देते हो । जो चाहे । कहे जा रहे हो । मत भूलो । आखिर मेरी भी बर्दाश्त करने की कोई सीमा है कि नहीं ? पहले सॉरी बोलो । तब बताऊँगा ।
मैं - अरे ! आपसे सॉरी बोलने में क्या जाता है । मैं अगर महसूस करूँ कि मेरी गलती है । तो मैं इंसान के सामने कान पकड़ कर सॉरी बोल देता हूँ । तो आपके सामने मुझे क्या शर्म ? लो बोल दिया - सॉरी । सॉरी । सॉरी । लेकिन बताना ऐसे । जो मेरे पल्ले पड़ जाये ।
भगवान - तो समझो । न्याय और दया में बहुत मामूली सा फर्क है । हालांकि दोनों से प्रयोजन तो 1 ही सिद्ध होता है । जिसे तुम मेरे द्वारा दी गयी तकलीफें गिना रहे हो । बे मेरे द्वारा दिये गए दंड हैं । समझो कैसे । दंड क्यों दिया जाता है ? इसलिए ताकि तुम लोग । जो तकलीफ़ें पाये हैं । बे दंड के डर से पुनः अमानवीय कर्म न करें । ये दण्ड अलार्म हैं कि अब आगे दूसरों को दुख देने से बचो । मैं अगर 1 को दण्ड देता हूँ । तो हजारों के लिए सबक होता है । यदि 1 को कठोरतम दण्ड देने से लाखों लोगों के कष्टों को बचाया जा सके । तो यह दया ही तो हुई । जिसने बुरे कार्य अपराध किए । उसको दंड न दिया जाय । तो दया का दुरुपयोग होगा । सैंकड़ों निरपराध लोग उस अपराधी से दुखी रहेंगे । जैसे कि - रावण । कंस । दादा ईदी अमीन उगांडा का । सद्दाम हुसैन ईराक का । पल पोत कंबोडिया का आदि । 1 डाकू के मार दिये जाने से लाखों लोग भय मुक्त हो जाते हैं । तो क्या यह न्याय नहीं है ? क्या ऐसों के साथ दया करनी चाहिए ?
मैं - आपकी बात कुछ समझ तो आई । परन्तु यह बात समझ नहीं आयी कि जिन्होंने इस संसार में आने के बाद जुल्म अपराध किए । तो उन्हें दंड दिया गया । लेकिन जो इस संसार में आए ही नहीं । जबकि आपकी मर्जी से ही उसे दुनियाँ में आना था । फिर दुनियाँ में आने से पहले ही मार दिया गया । क्यों ?
भगवान - तुम लोगों ने जो फिजिक्स । केमिस्ट्री । मैथ्स आदि विषय बना लिए हैं । मगर मेरे मैथ्स और अकाउंटेंसी तुम लोग नहीं जान सकते हो । क्योंकि मेरे यहाँ जो चित्रगुप्त जी जो हैं । वो कंप्यूटर सिस्टम मैंनेजर है । वह M C A और C A दोनों की मास्टर डिग्री होल्डर है । और दुनियां के सभी प्राणियों के अच्छे और बुरे कर्मों का लेजर रखते हैं । उनको यह निर्देश हैं कि अच्छे कार्यों और बुरे कार्यों के विवरण की टिप्पणी सहित ही पर्सनल फाइल मेरे सामने रखा करें । हर किसी को अच्छे कार्यों के लिए सुख के रूप में इनाम और बुरे कार्यों के लिए दंड का प्राबधान है । हमारे यहाँ समायोजन नहीं होता है । इस बात को ऐसे समझो कि - फूलन देवी । A राजा को ही ले लिया जाय । उन्होने जो अच्छे कार्य किए । उनके लिए उन्हें M P जैसा सम्मान जनक पद मिला । और जो उन्होने बुरे कार्य किए । उनके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा । जो कि अति असम्मान जनक जगह है । यहाँ रहना पड़ा । क्या अभी भी पल्ले नहीं पड़ा ?
मैं - हाँ ! पल्ले पड़ा तो है । पर आपने तो अपने को इतना उलझा कर रखा है कि आप तो बस ऊन की उलझी लच्छी की तरह हैं । जितना सुलझाओ । उतना ही उलझते जाते हैं । अच्छा ये बताईये कि आप साकार है ? या निराकार ? क्योंकि कोई कहता है कि - आप साकार हैं । बहुत से कहते हैं कि आप निराकार हैं । सही क्या है ? जब आप मुझसे मोबाइल पर बात कर रहे हैं । तो मुझे लगता है कि आप साकार हैं । पिछली बार भी आपने मोबाइल पर बात की थी । तो साकार हुये । लेकिन हर किसी ने खूब कोशिश कर ली । आपको देखने को पाने के लिए । परन्तु आज तक देखा किसी ने नहीं । तो फिर आप निराकार हुये । C ++ तथा जावा जैसी कठिन भाषाओं की तरह न समझाएँ । कृपया सरल भाषा में बतायें ।
भगवान - 1 बात समझ लो कि जहाँ तुम लोगों की सारी शक्ति मुझे समझने में समाप्त हो जाती है । सारे विश्लेषण सारे तर्क समाप्त हो जाते है । वहीं से मैं शुरू होता हूँ । तुम सबको लगता है कि मैं साकार हूँ । परन्तु सच यह है कि मेरा कोई आकार नहीं । मैं तो 1 परम शक्ति हूँ । क्या वायु को तुमने शरीर रूप में देखा है । क्या वर्षा को शरीर रूप में देखा है ? क्या गर्मी को शरीर रूप में देखा है ?
मैं - नहीं ।
भगवान - तो फिर तुम लोगों ने क्यों - वायु वर्षा गर्मी आदि को देवता मानकर । इनको मुझे मानकर और इनके पवनदेव सूर्यदेव इंद्रदेव आदि नाम देकर मुझे साकार मान लिया है और मान लेने में ही तो सब गडबङ है । आँख बंद कर सब कुछ मान लेने की बजाय तर्क से जानने की कोशिश करते नहीं हो तो मैं क्या करूँ । हरियाली बसंत में तरह तरह के फूल । शीतल वायु । पछियों के कलरव । अच्छे लगते हैं और आँधी । तूफान । वाढ आदि तुमको दुखी कर देते हैं । ये सब मेरी ही शक्तियाँ हैं । जो मेरे ही बनाए परम शाश्वत नियमों के आधार पर दिन रात कार्य करते रहते है । यह सोचे विना कि इनसे किसी का नुकसान होगा । या लाभ । ये सब उसी तरह होती हैं । जैसे 1 साकार व्यक्ति करता है । इसीलिए तुम सबको लगता है कि - मैं साकार हूँ । क्योंकि मेरे बारे में प्रथ्वी पर तमाम लोगों ने मेरे बारे में बहुत सी कल्पनाएं की । और उन कल्पनाओं को पत्थर । कागज । लकड़ी आदि पर चित्रों के माध्यम से शरीर रूप दे दिया ।
1 टिप्पणी:
दुसरे के मन उठे हुए प्रश्नों का उत्तर स्वयं के द्वारा उत्तर देना बहुत ही सार्थक है उन लोगों के लिए जो प्रश्न न कर सके ,बहुत बहुत धन्यवाद राजीव जी
भक्त की भगवान से बातचीत मोबाइल फोन पर - मुझे क्या शर्म लो बोल दिया - सॉरी सॉरी सॉरी कुलश्रेष्ठ भाग 1 देखें 24 june 2011 के ब्लॉग में (पाठकों के लिए )डॉ संजय केशरी
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