1 हमारे माताजी और पिताजी ने एक बृह्मचारी महाराज जी से गुरु मंत्र लिया हुआ है । महाराज जी हनुमान जी के परम भक्त है । माताजी और पिताजी चाहते है कि घर के सभी लोग उन्ही को गुरु मानें । लेकिन मैने अपने बड़े भाई डॉ. संजय कुमार केशरी के द्वारा बताये जाने पर आपका ब्लॉग पढ़ा । जिससे मुझे सत्य जानने की चाह बढ़ गयी है । मैं भी सद्गुरु की शरण में आना चाहता हूँ । क्या मै ऐसा कर सकता हूँ ?
2 मेरी उमृ लगभग 30 की होगी । और मै C. A. फाइनल की पढ़ाई भी कर रहा हूँ । मैं इस समय गोरखपुर जिले में Indusind Bank में काम कर रहा हूँ । अभी शादी नहीं हुई है । इस साल शादी करने की बात घर में कर रहे है । शादी के बाद दीक्षा लिया जाय । या शादी के पहले ? दीक्षा के बाद शादी क्या विघ्न डालते है ?
3 आपका कुछ ब्लॉग पढ़ा । और इससे काफी जानकारी मिली । और अद्वैत की तरफ झुकाव हुआ । आपके विचार और मजाकिया अंदाज में रहस्यमई बाते बताना बहुत अच्छा लगता है । क्या - नौकरी । काम । पढाई । शादी । घर । परिवार । माता । पिता सबको देखते हुए । मै साहिब जी के शरण में जा सकता हूँ ।
उपरोक्त कही गयी बाते मेरी अपनी भाषा में है । किसी त्रुटि को माफ़ करियेगा । कृपया मेरे प्रश्नों का जवाब जरुर दें । मन में अभी प्रश्न बहुत हैं । बाद में फिर आपसे जरुर पूछूँगा । प्रणाम ।
आपका छोटा भाई - मनोज कुमार केशरी ।
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एक प्रश्न है । यदि उपयुक्त समझें तो उतर दें अन्यथा छोड़ दें । क्योंकि हर पश्न के प्रत्युतर में फिर से बहुत सारे प्रश्न मुह बाये खड़े हो जाते हैं । प्रश्न ये है कि जब मैं स्वयँ ( आत्मा रूप में ) ही चेतन हूँ । और इस मल विक्षेप के शरीर से मेरा कुछ समय का ही बंधन है और यह बंधन भी मुझ पर ही निर्भर करता है कि कब तक । अगर चाहूँ तो अभी बंधन से मुक्त हो जाऊँ ( मृत्यु का वरन कर के ) और मै हमेशा से था और रहूँगा भी । चाहे प्रलय आ जाये या महा प्रलय आ जाये । मेरा अस्तित्व तो हमेशा ही रहेगा । मै कर्ता नहीं हुँ भोक्ता भी नहीं हूँ । न ही कार्य और न ही कारण । और सबसे मुक्त हूँ ।( अद्वैत रूप में या आत्मा रूप में ) तो फिर कैसा बंधन ? बूंद हमेशा ही जल रूप रहेगी । चाहे वह वर्षा की एक बूंद हो । नदी हो । झील हो । या समुद्र हो । कैसा बंधन कैसी मुक्ति ? कैसा सुख ? कैसा दुख ? न इन सुखों में शांति । न दुखों मै अशांति । क्योंकि ये कभी मुझे ( आत्म ) छुते मात्र भी नहीं ( ये कैसा भाव है । जो यदा कदा सांसारिक नियमो के विरुद्ध मुझे खड़ा कर देता है ? )
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1 आपके माता पिता ने किन्हीं बृह्मचारी ? महाराज से गुरु मंत्र न लेकर 1 आम परम्परागत पुजारी टायप उद्देश्यहीन साधारण पुजारी इंसान ( इंसान शब्द पर गौर करें ) से अंधभक्ति ज्ञान ? लिया हुआ है । जिसका कोई मतलब नहीं । कभी कोई अर्थ फ़ल नहीं निकलना । सिवाय कुछ आचरण शुद्ध होने या भक्ति भावना में कुछ रुचि हो जाने के । ये बात मैं दावे से इसलिये कह सकता हूँ कि - यदि वो महाराज वाकई बृह्मचारी होते । तो आपके भाई डा. संजय हमारे पास आते ही क्यों ? उनके जीवन में भटकाव और तमाम प्रश्न होते ही क्यों ? जो हमारे पास आते ही 80% खत्म हो गये । और मनुष्य जीवन का लक्ष्य मिलने के प्रति पूरी तरह निश्चितता आ गयी ।
यदि वो महाराज वाकई बृह्मचारी होते तो आप मुझसे ये मामूली शंकाये लेकर न आये होते । बल्कि उच्च स्तर के गूढ प्रश्न कर रहे होते । विश्वास नहीं होता । आगरा आईये । हमारे 10 साल के शिष्य आपके इन प्रश्नों का जबाब 10 मिनट से भी कम समय में दे देंगे ।
बृह्मचारी का सही मतलब होता है । बृह्म का आचारी । आचरण करने वाला । यानी बृह्माण्ड और बृह्म गतिविधियों को प्रत्यक्ष जानने वाला । प्रत्यक्ष देखने वाला । प्रत्यक्ष दखल रखने वाला । और उससे जुङे लोग सामान्य मनुष्य की श्रेणी में नहीं आते । उनका आंतरिक बौद्धिक ज्ञान स्तर साधारण मनुष्यों से काफ़ी ऊपर होता है ।
2 सत्य यही है कि पुजारी सिर्फ़ स्थूल अर्थों में ही हनुमान को जानते हैं । हनुमान का सही - मतलब । स्थिति । सत्य । परिचय आदि विवरण उन्हें दूर दूर तक नहीं पता होगा ।
3 माताजी और पिताजी चाहते है कि घर के सभी लोग उन्ही को गुरु मानें - जीवन में 2 दिन का मेला जुङा । हँस जब भी उङा । तब अकेला उङा । जब आपके मरने का समय ( और बाद में ) आयेगा । तब न आपके माताजी । न पिताजी । न भाई । न बहन । न पत्नी । न बच्चे । न मित्र । न अन्य । ये सब ( मरने के बाद ) वहाँ कोई नहीं होगा । वहाँ होंगे - भयंकर यमदूत । और उनके हाथ में होगा । वह वारंट । जो आपके कर्मों और भक्ति के आधार पर लिखा गया होगा कि - इस बन्दे को मारते घसीटते हुये लाना है । या बाइज्जत सुख सुविधा से वाहन से - आया है सो जायेगा । राजा रंक फ़कीर । एक सिंहासन चढ चले । एक बंधे जंजीर । और ये सिर्फ़ मृत्यु के बाद यमपुरी में पेशी होने तक की स्थिति है । अभी तो आपको लाक अप में बन्द होना है । मुकद्दमा सुना जायेगा । फ़िर जजमेंट सुनाया जायेगा । ऐसा ही आपके पिताजी माताजी सबके साथ होगा ।
कौन होते हैं ये माताजी पिताजी - अपने माता पिता से यही प्रश्न पूछना । हनुमान के भक्त पुजारी के शिष्य हैं वो । इन्हीं हनुमान गाथा सम्बन्धित तुलसी रामायण में स्पष्ट लिखा है - मात पिता भगिनी सुत दारा । ये सब माया कर परिवारा । भगिनी - बहन को । सुत - पुत्र को । दारा - पत्नी को कहा जाता है । माता पिता आप जानते ही हैं । अब बताईये । कौन हुये ये सब ? माया के रचे हुये । असत्य । आप उनके लिये माया सम्बन्ध । वो आपके लिये । ये संस्कार और कर्म फ़ल रूपी कर्ज है । जो विभिन्न सृष्टि सम्बन्धों का सृजन करता है । जैसे ही ये कर्ज खत्म हुआ । लोग जीते जी भी घनिष्ट से घनिष्ट सम्बन्धों से अलग हो जाते हैं । मरना तो बहुत अलग चीज है ।
एक और बात है । आपके भाई डा. बने । आप C. A. फाइनल की पढ़ाई कर रहे हैं । ये सब सलाह भी क्या आपके माता पिता ने दी थी ? सच ये है कि - वो इन सबकी A B C D भी नहीं जानते होंगे । तब अधिक ज्ञानवान कौन हुआ ? आप या आपके माता पिता ? यहाँ उन्होंने लपक कर कह दिया होगा - बन जा बेटा C. A. और कर ले जीवन में मौज । और आप भी पूरी कोशिश से जुट गये होंगे । है ना लालच । आपके माता पिता को भी । और आपको भी । उन्होंने आपको ये सलाह क्यों नहीं दी । आप खेती करो । आप भी किसी पुजारी की तरह भक्ति में जीवन गुजारो । जिसका वो श्रद्धा से चरण स्पर्श करते हैं । जाहिर है । उसका स्तर आपसे और आपके माता पिता से ऊँचा है ना । मैं आपको स्पष्ट बताता हूँ । जब तक जीव को ज्ञान नहीं होता । वह सभी आपसी सम्बन्धों के प्रति कालदूत की भूमिका में होता है और वैसी ही सलाह देता है । यदि आपकी घर में चलती होती और आप ज्ञान में नहीं होते तो आप भी उन्हें तक ऐसी ही सलाह देते । जीव स्थिति में सभी सांसारिक सम्बन्ध यम सम्बन्ध हैं । लेकिन आत्मज्ञान का छात्र भी हो जाने पर यही सम्बन्ध प्रेम सम्बन्ध या आत्मिक सम्बन्ध कहलाते हैं या कहिये वास्तविकता के धरातल पर इनमें संरचनागत परिवर्तन ही हो जाता है । अनिरुद्ध रामकृष्ण आदि आत्मज्ञानियों के उदाहरण हैं । उन्होंने ज्ञान ( की ऊँची स्थिति ) के बाद अपनी पत्नी को बहन मानना व्यवहार करना शुरू कर दिया । इसलिये आप अपने अभिभावकों से पूछिये - उन्हें अभी तक अपने गुरु या गुरुमंत्र से क्या प्राप्त हुआ ? जो ऐसी अंधी सलाह देते हैं । और अपने भाई से पूछिये उन्हें ऐसा क्या प्राप्त हो गया जो अद्वैत की सलाह देते हैं ।
मैं भी सदगुरु की शरण में आना चाहता हूँ । क्या मै ऐसा कर सकता हूँ - जब जागो । तभी सवेरा । आप तो बहुत सही और शिक्षित स्थिति में हैं । मैं सिर्फ़ 1 साल के वालक को भी दीक्षा कराने की सलाह देता हूँ । क्योंकि मुझे पक्का पता है कि - असली हँस दीक्षा हो जाने पर अगला मनुष्य जन्म और भक्ति युक्त सार्थक जीवन निश्चित हो जाता है । ज्ञान किसी भी अवस्था स्थिति में लाभदायी ही होता है । शुकदेव और अभिमन्यु को गर्भ के ज्ञान से लाभ हुआ था । कोई गर्भवती स्त्री यदि दीक्षा लेती है । तो उसके गर्भस्थ बालक को भी लाभ प्राप्त होता है । एक तरह से उसका दीक्षा संस्कार उसी समय बन जाता है । इसलिये आप सदगुरु की शरण में आ सकते हैं । बुरे कार्य के लिये 100 बार सोचना चाहिये । अच्छे कार्य में क्षण की देर न करनी चाहिये ।
शादी के बाद दीक्षा लिया जाय या शादी के पहले ?
दीक्षा के बाद शादी क्या विघ्न डालते है - योगस्य कर्म कौशलम ।
योगी के कर्मों में कौशल आ जाता है । इसका सबसे बेहतर और प्रसिद्ध उदाहरण हैं । महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण पर आवेशित स्थिति में आत्मदेव द्वारा आत्म ज्ञान देना । और कहना - हे अर्जुन युद्ध कर और भजन कर । ये भजन ऐसा ही है जब अर्जुन युद्ध करते हुये कर सकता है तो साधारण गृहस्थ जीवन कोई ज्यादा बङा हौवा नहीं है । आप दीक्षा बाद में पहले कभी भी ले सकते हो । पर मेरा सुझाव हरेक को यही रहता है । ये दीक्षा यथा संभव तुरन्त लेनी चाहिये । क्योंकि - खबर नहीं पल की । तू बात करे कल की ।
हाँ आप - नौकरी । काम । पढाई । शादी । घर । परिवार । माता । पिता सबको देखते हुए भी साहिब जी के शरण में जा सकता हैं । और जो भी शेष प्रश्न हैं । पूछ सकते हैं ।
2 टिप्पणियां:
saral bhasha me margdarshan ke liye bahut bahut dhanyawad- manoj
saral bhasha me margdarshan ke liye bahut bahut dhanyawad- manoj
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