इतनी जल्दी ये सब होगा । ऐसा मुझे भी बोध नहीं था । मात्र दो महींने के " ब्लाग सफ़र " में देश विदेश के अनेक लोगों से मेरी पहचान हुयी । ई मेल , फ़ोन काल्स और व्यक्तिगत रूप से
मुझसे और श्री महाराज जी से आत्मग्यान के जिग्यासु और " प्रेमीजन " निरंतर सम्पर्क कर रहे हैं । और कुछ लोग साधना मार्ग पर चलने भी लगे । अब हालत ये है । कि मुझे लेख अपने readers की डिमांड पर लिखने पङ रहे हैं । उनकी ढेरों जिग्यासाएं हैं । बहुत से पाठकों ने जिन्हें हिन्दी का अच्छा अभ्यास नहीं है । मुझे english में भी लिखने को कहा है । पर वास्तव में न तो मैं इंगलिश में इतना अच्छा लिख सकता हूँ । और न ही मेरे पास इतना समय है । इस हेतु मेरा निवेदन है कि कोई ऐसा पाठक जिसकी हिंदी और इंगलिश दोनों पर अच्छी पकङ है ।कृपया इस धर्म कार्य में लेख के अनुवाद में मेरा सहयोग करे । मैंने सूक्ष्म जगत या प्रेतलोक के बारे में पाँच लेख लिखे । जिन्हें सर्वत्र पाठकों ने बेहद पसन्द किया । इस विषय पर और लिखने के लिये मुझसे काफ़ी लोगों ने आग्रह किया है । मैं उनकी इस माँग को समय मिलने पर अवश्य पूरा करूँगा । पर साथ ही एक स्पष्टीकरण भी देना चाहूँगा । भूत प्रेत जगत हमें रोचक और आकर्षित करने
वाला अवश्य लगता है । पर साधना मार्ग में प्रेतलोक.तान्त्रिक मान्त्रिक लोक बेहद निकृष्ट और वाहियात चीज हैं । यह सत्य है । कि साधना मार्ग में यह लोक मिलते अवश्य हैं । पर इनमें किसी प्रकार की दिलचस्पी मेरे अनुसार उचित नहीं हैं । तमाम तरह के सिद्ध तान्त्रिक मान्त्रिक शक्तियों का दुरुपयोग करने वाले ..और निकृष्ट अघोर साधना करने वाले ..विभिन्न प्रकार की शमशान साधनायें करने बाले..नरबलि या पशुबलि का उपयोग साधना में करने वाले अंत में दुर्गति को प्राप्त होकर ऐसे लोकों के वासी होते हैं । इनकी सहायता करने वाले ग्रहस्थ या अन्य लोगों का भी यही हश्र होता है । यह दीर्घकाल तक इन अंधेरे लोकों में पङे रहते हैं ।
इसलिये इन फ़िजूल की बातों को छोङकर आपको वास्तविक उपासना आराधना आदि से परिचय कराता हूँ । मुझे हँसी आती है । भगवान की स्तुति के जितने भी नाम है । वे female बोधक हैं । उपासना आराधना..आरती ज्योति..पूजा आदि । खैर मेरी तो भगवान से दोस्ती है । आप ऐसी हँसी मत बनाना । बहु प्रचलित तमिल शब्द पूजा या हिंदी शब्द आराधना से भक्ति के चार काण्डों की कृमशः यात्रा होती है । हमारे घरों में महिला पुरुषों द्वारा साधारण पूजा से शुरु हुयी ये भक्ति किस प्रकार आगे बङती है । आइये इस पर विचार करते हैं ।
1-- इसमें सबसे पहले " कर्म काण्ड " भक्ति आती है । जिसमें साधारण रूप से घरों में नित्य होने वाली पूजा अर्चना..इष्ट उपासना होती है । विभिन्न पर्वों या शादी विवाह में होने वाली पूजा भी इसी श्रेणी में आती है । यह उपासना भी आवश्यक होती है । और विधान के अनुसार ग्रहस्थ के लिये अनिवार्य होती है । इस पूजा से घर में शान्ति और आने वाली अद्रश्य दुर्घटनाओं से बचाव आदि कई लाभ होते हैं । पर अच्छे लाभ के लिये पूजा मन से और पूरे भाव से करना आवश्यक है ।
2-- दूसरा काण्ड " उपासना काण्ड " कहलाता है । इसका पुजारी किसी छोटे या सौभाग्यवश बङे साधु से पूजा की सही विधि या मन्त्र प्राप्त कर एक या दो घन्टा आसन आदि पर बैठकर नित्य भगवत आराधना करता है । ऐसी आराधना करने वाले पुजारियों की संख्या करोङो में होती है । उदाहरण के तौर पर हजार जनसंख्या वाली किसी कालोनी में ऐसी उपासना करने वाले पुरुष महिलाओं की संख्या 300 तक आराम से होती है । जो अपने घर में ही एक दो घन्टा मन से पूजा करते हैं । उपासना काण्ड एक तरह से अंतर काण्ड भी होता है । यह पुजारी या साधक की कृमशः आत्मोन्न्ति करता हुआ उसके अंतकरण को शुद्ध करता है । जो साधारण जीव की अपेक्षा काफ़ी अच्छी स्थिति होती है ।
3-- तीसरा काण्ड " ग्यान काण्ड " कहलाता है । उपासना काण्ड का पुजारी जब ये देखता है । कि पूजा से उसे वो संतुष्टि प्राप्त नहीं हो रही । जो दरअसल वो प्राप्त करना चाहता है । तब ऐसा पुजारी विभिन्न धर्म ग्रन्थों आदि का अध्ययन करके ..साधु संतों की तलाश करता है । और " जहाँ चाह वहाँ राह " के सिद्धांत के अनुसार अपनी पूर्व भक्ति और भावना के आधार पर अंत में प्रभु की कृपा से किसी सच्चे साधु या संत की शरण में पहुँच जाता है । और दीक्षा आदि के बाद संत के बताये मार्ग पर चलता है । यह परीक्षा भली प्रकार से उत्तीर्ण कर लेने पर ग्यान काण्ड
के फ़लस्वरूप वह साधक अपने " निजस्वरूप " का बोध करता है । यानी अपनी आत्मा को स्वयं जानने वाला देखने वाला हो जाता है । हालाँकि इस स्थिति को प्राप्त करने में काफ़ी परिश्रम करना पङता है । पर इस उपलब्धि के सामने राजाओं के समान लाखों जन्म और सम्पूर्ण प्रथ्वी का राज्य भी अत्यंत तुच्छ चीज है । देवता भी इस स्थिति को प्राप्त करने हेतु तरसते हैं ।
4-- चौथा काण्ड " विग्यान काण्ड " कहलाता है । साफ़ सी बात है । कि यह ग्यान काण्ड के बाद ही प्राप्त होता है । यह साधना की काफ़ी ऊँची स्थिति है । इसमें प्रकृति का बिग्यान दृष्टिगोचर होने लगता पूरी सृष्टि के रहस्य समझ में आने लगते हैं । इसका जानने वाला तमाम अलौकिक कार्य करने में समर्थ होता है । यह स्थिति किसी सच्चे संत की सेवा और कृपा से प्राप्त होती है । इसकी उपलब्धियां भी अनेकों हैं । इसमें भविष्य में होने वाली घटनाओं और सृष्टि और प्रलय को भी आराम से देख सकते हैं ।
" गंग नहाये एक फ़ल । साधु मिले फ़ल चार । सतगुरु मिले अनेक फ़ल । कहे कबीर विचार । "
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