राजीव कुमार जी नमस्ते । मैंने सिर्फ़ एक बार आपसे ई मेल द्वारा बात की थी । मैं हरि....? से हूँ । आपका रेगुलर रीडर हूँ । पहले भी एक बार आपने मेरी शंका दूर की थी । जब मैंने राधास्वामी के पंचनामा एन्ड आपके महामन्त्र ( कबीर जी वाले । ढाई अक्षर वाले नाम ) के बारे में पूछा था । अब फ़िर मेरी प्राब्लम साल्व करिये । असल में ये प्राब्लम मेरी अकेले की नहीं है । और भी बहुत से लोगों की है । अब मैं सीधा प्राब्लम पर आता हूँ ।........? में एक संस्था है । गपोढी आश्रम । जिसे चलाने वाले बाबा का नाम है । ठगत गुरु झूठालाल जी महाराज । ( आप बेशक अपने आर्टीकल में इस आश्रम या बाबा का नाम मत लिखना । ) मैंने इनके आश्रम की बुक पढी थी । किसी से लेकर । Q 1 उसमें ये दो नामों की बात करते हैं । 1 पहला सतनाम और दूसरा 2 सारनाम । इनके अकार्डिंग दोनों अलग हैं ? पहले सतनाम की दीक्षा लेनी पङती है । फ़िर सारनाम की दीक्षा लेनी पङती है । Q 2 सारनाम के बिना सतनाम बेकार है । Q 3 ये ॐ सोहंग को सतनाम बता रहें हैं । ये बात इनकी ही बुक में लिखी है । Q 4 इनके मुताबिक इसको लेकर फ़िर योगयात्रा अनुसार सारनाम दिया जाता है । Q 5 इनके मुताबिक राधास्वामी वाला पंचनामा कालपुरुष की पूजा है । वैसे इनकी बुक में हिस्ट्री आफ़ क्रियेशन..मीन्स सृष्टि रचना का जिक्र वैसा ही है । जैसा राधास्वामी बताते हैं । मीन्स पहले अनामी पुरुष था । फ़िर कैसे सतलोक बना । फ़िर कैसे क्या हुआ । ( आप सब जानते ही होंगे । ) Q 6 ये बाबाजी जो बाकी कबीरपंथ चल रहे हैं । उनको फ़ेक ( जाली ) बता रहे हैं । Q 7 इनके मुताबिक मोक्ष देने वाला नाम सिर्फ़ इनके पास है ??? Q 8 इनके मुताबिक कबीर जी ने मार्च 1997 में खुद दिन में 10 बजे इनको दर्शन दिये । और अंतर्ध्यान हो गये । Q 9 इनके मुताबिक अनामी पुरुष ही कबीर हैं ? अनामी पुरुष का नाम कबीर देव या कबीर साहिब है ? इनके मुताबिक कबीर ही सतपुरुष या निरंकार हैं ? इनके मुताबिक सतलोक पहुँचकर कबीर के साक्षात दर्शन होते हैं ? Q 10 इनके मुताबिक कबीर वाले नाम के अलावा बाकी सब पूजा नरक ले जाती है । आप बतायें । Q 11 क्या अगर मैं इस बाबा के पास ना जाऊँ । तो क्या मैं नरक में जाऊँगा ? एन्ड फ़िर 84 लाख में । एन्ड क्या फ़िर जाकर मुझे मानव शरीर मिलेगा ?.. मैंने इत्तफ़ाक से आज दोपहर आपके ब्लाग का न्यू आर्टीकल पढा । ( जब मैं दोपहर को घर लंच करने आया । ) उसमें आपने लिखा था कि वेद कुछ और बात करते हैं । एन्ड गीता कुछ और बात करती है । आपने ये भी लिखा था कि कृष्ण जी कालपुरुष के अवतार थे । इन दो बातों से मुझे ये भी याद आ गया कि जिस बाबा की मैं बात कर रहा हूँ । उसकी बुक में गीता को 4 वेदों का सार बताया जा रहा है ?? Q 12 एन्ड कृष्ण जी को विष्णु जी का अवतार ? एन्ड ये भी लिखा था कि Q 13 कालपुरुष किसी प्रेतात्मा की तरह कृष्ण जी में घुसकर गीता का ग्यान दे गया ? इनकी बुक में ये भी लिखा था कि Q 14 कृष्ण जी ने अर्जुन के सामने शरीर त्यागा । तब अर्जुन के मन में ये विचार थे कि " कृष्ण पापी और कपटी है । " Q 15 इनके अनुसार जो गीता आजकल पढने को मिलती है । उसको महर्षि वेदव्यास से कालपुरुष ने बाद में ( कृष्ण जी के बाद ) आकर लिखवाया । Q 16 इनके अनुसार महाभारत युद्ध के बाद गोपियों को जंगली लोग उठाकर ले गये ??.. राजीव जी मुझे ये सब पढकर हैरानी बहुत हुयी । कभी कभी तो मुझे ये भी लगता है कि आजकल सब साले कबीर का नाम लेकर " हिन्दूधर्म " के खिलाफ़ लिख रहे हैं । हर कोई नया कबीर बना बैठा है ? आजकल हर कोई कबीर कबीर कर रहा है । Q 17 सोसाइटी का कोई वर्ग कबीर को कवि ( पोइट ) बोलता है । कोई कबीर को भगत बोलता है । कोई कबीर को संत बोलता है । कई कबीर को डायरेक्ट परमात्मा या अनामी पुरुष बोलता है । आखिर ये कबीर चीज क्या हैं ? मैंने Q क्वेश्चन किसी और को पूछने की बजाय सिर्फ़ आपसे पूछा । क्योंकि मुझे आपकी बातों पर विश्वास है । एन्ड आपकी बातों से मुझे सोल्यूशन मिलता है । इसलिये इस पूरे मैसेज को मैंने ई मेल द्वारा भेजा है । इसको ध्यान से पढकर इसको नेक्स्ट आर्टीकल द्वारा साल्व करें । ये कनफ़्यूजन सिर्फ़ मेरी नहीं । ये शायद उन सब लोगों की है । जो मेरी तरह आम इंसान हैं । एन्ड अपने परिवार की जिम्मेदारी के साथ साथ किसी सही रास्ते की तलाश में हैं । जो आत्मकल्याणकारी हो । मुझे आपसे आशा है कि आप इस बात को बेहतर से बेहतर तरीके से समझाने का प्रयास करेंगे । धन्यवाद । ( एक नियमित पाठक । ई मेल से )
* अपरिहार्य कारणों से आजकल मैं ब्लाग्स के लिये बहुत कम समय दे पा रहा हूँ । मेरे नये लेखों का प्रकाशन भी ना के बराबर है । इसलिये आपके प्रश्नों का उत्तर भी समय से नहीं दे पा रहा । आपकी इस असुविधा के लिये मुझे दिली खेद है ।
ANS 1..A नाम तो वास्तव में सिर्फ़ एक ही है । जो निर्वाणी है । और ध्वनि रूप है । पर अलग अलग गुरु के अनुसार इसकी मंजिल अलग अलग हो जाती है । गुरु से मिले नाम की मंजिल उस गुरु की पहुँच के अनुसार ही होगी । पर सतगुरु से मिला नाम अंत तक ले जायेगा । भले ही ये साधना साधक की परिस्थिति के अनुसार दो या तीन जन्म की हो जाय । अगर साधक सच्चाई और लगन से भक्ति में समर्पित रहा । तो परम लक्ष्य को प्राप्त कर लेगा ।..ग्यान बीज बिनसे नहीं । होवें जन्म अनन्त । ऊँच नीच घर ऊपजे । होये संत का संत । B आत्मग्यान में पहली दीक्षा हँसदीक्षा होती है । इसको ही बहुत कम साधक पास कर पाते हैं । हँस से उठ जाने के बाद परमहँस दीक्षा होती है । इसके ऊपर की बात अनुभव से पता चलती है । इसको मौखिक रूप से बताना नियम विरुद्ध है । हँस पास कर लेने का प्रमाण या चिहन ये है कि साधक की शरीर से निकलने की स्थिति बनने लगती है । जिसको सच्चे गुरु साधक द्वारा बताये बिना ही जान जाते हैं ।
ANS 2 इस सृष्टि की कोई भी चीज । कोई भी कार्य । कोई भी क्रिया बेकार नहीं है । कबीर की पुस्तकों को थोङा अधिक गहनता से अध्ययन करने से लोग सारनाम की बात करने लगते हैं । पर सारनाम बातों का खेल नहीं है । सारनाम क्या है ? यह इस अखिल सृष्टि का परम गोपनीय रहस्य है । जो सिर्फ़ सतगुरु की कृपा से ही जाना जा सकता है ।
ANS 3 ॐ शरीर को ( अध्यात्म की टेक्नीकल भाषा में ) कहा जाता है । सोहंग को भी जिस प्रकार आजकल तमाम मंडल प्रचलित कर रहे हैं । उसे देखकर सिर्फ़ हँसी आती है । जिस तरह ॐ से शरीर बना है । उसी तरह सोहंग से मन बना है । सोहंग की रगङ से मन समाप्त हो जाता है । ओहम से काया बनी । सोहम से मन होय । ओहम सोहम से परे । बूझे विरला कोय । वैसे सोहंग भी निर्वाणी है ।
ANS 4 मैं फ़िर कहूँगा । सारनाम तो बहुत बङी बात है । परम लक्ष्य ही है । निरंकार ररंकार को भी ठीक से ?? बताने वाले गुरु । शिष्य को वहाँ तक पहुँचाने वाले गुरु भी ( जो फ़ेमस हैं ) मेरी नजर में नहीं आये । मौखिक बातें और प्रक्टीकल ग्यान में जमीन आसमान का अंतर है भाई ।
ANS 5 जैसी उन्होंने बतायी । उस अनुसार तो राधास्वामी वाला पंचनामा कालपूजा नहीं है । इसमें ऊँचाई प्राप्त कर लेने के बाद साधक काफ़ी कुछ प्राप्त कर लेता है । लेकिन एक बहुत बङे रहस्य के तहत ये बात कुछ ठीक भी है । कैसे..अद्वैत वैराग कठिन है भाई । अटके मुनिवर जोगी । अक्षर ही को सत्य बताबें । वे हैं मुक्त वियोगी । अक्षरतीत शब्द इक बांका । अजपा हू से । है जो नाका । जो जब जाहिर होई । जाहि लखे जो जोगी । फ़ेरि जन्म नहीं होई ।..अक्षर ज्योति को कहते हैं । इसी ज्योति पर समस्त योनियों के शरीर बनते हैं । अक्षरतीत यानी इससे परे जाने पर जो स्थिति है । वही आवागमन से मुक्ति दिलाती है । और ये भी सच है । पंचनामा वहाँ नहीं ले जा पाता । फ़िर भी पंचनामा को अच्छा रमण करने पर यह कालपूजा नहीं है । पंचनामा के सच्चे गुरू भी शुरूआत में ही थे । ये भी सत्य है ।
ANS 6 अगर आप कबीर धर्मदास संवाद की 100 रुपये मूल्य की पुस्तक । अनुराग सागर । एक बार पढ लो । तो ये बाबा ? और वो बाबा ? सबकी असलियत पता चल जायेगी । पर ये सच है कि तमाम कबीरपँथियों में भारी मतभेद है । और वे तमाम ऐसी बात करते हैं । जिनका कबीर साहेब ही विरोध करते थे । ऐसा क्यों है ? और आपके पत्र वाले बाबा की सभी बातों का रहस्य ? कबीर ने अनुराग सागर । में स्पष्ट कर दिया है ।
ANS 7 बङे बङाई ना करें । बङे न बोले बोल । हीरा मुख से ना कहे । लाख टका मेरो मोल ।..सच्चाई छिप नहीं सकती । झूठे उसूलों से । खुशबू आ नहीं सकती । कभी कागज के फ़ूलों से । ऐसा तो कभी कबीर ने भी नहीं कहा था । जबकि उन्होंने कितने चमत्कार किये । उनका जन्म न होकर वे प्रकट हुये थे । और जीवों के मोक्ष के लिये ही भेजे गये थे । उन्होंने कहा । परमात्मा की सच्चे नाम की भक्ति करो । उससे मोक्ष मिलेगा । उनके कहने में कहीं मैं भाव नहीं था ।
ANS 8 हा हा हा । कबीर ने मुझे भी दर्शन देकर कहा था कि ये क्या ऊल जुलूल बोलता रहता है । तू इसको समझाता क्यों नहीं । मैंने जबाब दिया । भैंस के आगे बीन बजाये । भैंस खङी पगुराय । अन्धे के आगे रोये । अपने नैना खोये ।
ANS 9 इनसे पूछो । जब वो अनामी ( जिसका नाम न हो ) ही हैं । तो कबीर कैसे हुये ? एन्ड आल इज ऊटपटांग इन दिस क्वेश्चन ।
ANS 10 ये बात बिल्कुल ही गलत है । स्वर्ग नरक इंसान के कर्मों । दान । पुण्य । तीर्थ । आचरण । द्वैत भक्ति के सही गलत के आधार पर मिलते हैं ।
QNS 11 आप नरक जाओ । या न जाओ ? ये आगे आपके कर्मफ़ल आदि ही फ़ैसला करेंगे । पर ऐसे बाबा ? झूठ ग्यान से इंसान को भृमित करने के कारण वहाँ अवश्य जायेंगे । किसी को गुमराह करना बहुत बङा अपराध है । भला किसी का कर न सको । तो बुरा किसी का मत करना । जबकि लोग आप पर विश्वास करते हों ।.. हाँ एक बात है । कहने वाला अगर वह करके भी दिखाता है । जो वह कह रहा है । फ़िर तो बात सत्य है । मेरी जानकारी के अनुसार । एक चकृ पर का भी । पहुँचा हुआ गुरू । दीक्षा की छह महीने में ही अंतर्यात्रा में इतने स्थान अवश्य दिखा देता है । जितने एक किमी के बीच आते हैं । ये आँख बन्द होने पर भी रंगीन टीवी की तरह दिखते हैं । सबसे बङी बात । आप वहाँ के किसी पुराने और अच्छे शिष्य से पूछना कि आपको अब तक ध्यान के क्या अनुभव हुये ? बस दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा ।
ANS 12 विष्णु का चाय नाश्ता ही देवताओं के साथ अक्सर होता है । और इतना तो सभी जानते हैं कि राम का अगला अवतार ही कृष्ण का हुआ था । तो फ़िर प्रथ्वी जब रावण जैसे असुरों के भार से व्याकुल होकर देवताओं के पास रक्षा के लिये गयी । तो सभी देवता इसके लिये बृह्मा शंकर आदि के पास इकठ्ठे हुये । तो क्या ये देवता विष्णु को भी नहीं जानते थे ?? जहाँ नारद जी नारायण नारायण करते अक्सर पहुँच जाते थे । सबूत के लिये आगे पढिये ।
* अपरिहार्य कारणों से आजकल मैं ब्लाग्स के लिये बहुत कम समय दे पा रहा हूँ । मेरे नये लेखों का प्रकाशन भी ना के बराबर है । इसलिये आपके प्रश्नों का उत्तर भी समय से नहीं दे पा रहा । आपकी इस असुविधा के लिये मुझे दिली खेद है ।
ANS 1..A नाम तो वास्तव में सिर्फ़ एक ही है । जो निर्वाणी है । और ध्वनि रूप है । पर अलग अलग गुरु के अनुसार इसकी मंजिल अलग अलग हो जाती है । गुरु से मिले नाम की मंजिल उस गुरु की पहुँच के अनुसार ही होगी । पर सतगुरु से मिला नाम अंत तक ले जायेगा । भले ही ये साधना साधक की परिस्थिति के अनुसार दो या तीन जन्म की हो जाय । अगर साधक सच्चाई और लगन से भक्ति में समर्पित रहा । तो परम लक्ष्य को प्राप्त कर लेगा ।..ग्यान बीज बिनसे नहीं । होवें जन्म अनन्त । ऊँच नीच घर ऊपजे । होये संत का संत । B आत्मग्यान में पहली दीक्षा हँसदीक्षा होती है । इसको ही बहुत कम साधक पास कर पाते हैं । हँस से उठ जाने के बाद परमहँस दीक्षा होती है । इसके ऊपर की बात अनुभव से पता चलती है । इसको मौखिक रूप से बताना नियम विरुद्ध है । हँस पास कर लेने का प्रमाण या चिहन ये है कि साधक की शरीर से निकलने की स्थिति बनने लगती है । जिसको सच्चे गुरु साधक द्वारा बताये बिना ही जान जाते हैं ।
ANS 2 इस सृष्टि की कोई भी चीज । कोई भी कार्य । कोई भी क्रिया बेकार नहीं है । कबीर की पुस्तकों को थोङा अधिक गहनता से अध्ययन करने से लोग सारनाम की बात करने लगते हैं । पर सारनाम बातों का खेल नहीं है । सारनाम क्या है ? यह इस अखिल सृष्टि का परम गोपनीय रहस्य है । जो सिर्फ़ सतगुरु की कृपा से ही जाना जा सकता है ।
ANS 3 ॐ शरीर को ( अध्यात्म की टेक्नीकल भाषा में ) कहा जाता है । सोहंग को भी जिस प्रकार आजकल तमाम मंडल प्रचलित कर रहे हैं । उसे देखकर सिर्फ़ हँसी आती है । जिस तरह ॐ से शरीर बना है । उसी तरह सोहंग से मन बना है । सोहंग की रगङ से मन समाप्त हो जाता है । ओहम से काया बनी । सोहम से मन होय । ओहम सोहम से परे । बूझे विरला कोय । वैसे सोहंग भी निर्वाणी है ।
ANS 4 मैं फ़िर कहूँगा । सारनाम तो बहुत बङी बात है । परम लक्ष्य ही है । निरंकार ररंकार को भी ठीक से ?? बताने वाले गुरु । शिष्य को वहाँ तक पहुँचाने वाले गुरु भी ( जो फ़ेमस हैं ) मेरी नजर में नहीं आये । मौखिक बातें और प्रक्टीकल ग्यान में जमीन आसमान का अंतर है भाई ।
ANS 5 जैसी उन्होंने बतायी । उस अनुसार तो राधास्वामी वाला पंचनामा कालपूजा नहीं है । इसमें ऊँचाई प्राप्त कर लेने के बाद साधक काफ़ी कुछ प्राप्त कर लेता है । लेकिन एक बहुत बङे रहस्य के तहत ये बात कुछ ठीक भी है । कैसे..अद्वैत वैराग कठिन है भाई । अटके मुनिवर जोगी । अक्षर ही को सत्य बताबें । वे हैं मुक्त वियोगी । अक्षरतीत शब्द इक बांका । अजपा हू से । है जो नाका । जो जब जाहिर होई । जाहि लखे जो जोगी । फ़ेरि जन्म नहीं होई ।..अक्षर ज्योति को कहते हैं । इसी ज्योति पर समस्त योनियों के शरीर बनते हैं । अक्षरतीत यानी इससे परे जाने पर जो स्थिति है । वही आवागमन से मुक्ति दिलाती है । और ये भी सच है । पंचनामा वहाँ नहीं ले जा पाता । फ़िर भी पंचनामा को अच्छा रमण करने पर यह कालपूजा नहीं है । पंचनामा के सच्चे गुरू भी शुरूआत में ही थे । ये भी सत्य है ।
ANS 6 अगर आप कबीर धर्मदास संवाद की 100 रुपये मूल्य की पुस्तक । अनुराग सागर । एक बार पढ लो । तो ये बाबा ? और वो बाबा ? सबकी असलियत पता चल जायेगी । पर ये सच है कि तमाम कबीरपँथियों में भारी मतभेद है । और वे तमाम ऐसी बात करते हैं । जिनका कबीर साहेब ही विरोध करते थे । ऐसा क्यों है ? और आपके पत्र वाले बाबा की सभी बातों का रहस्य ? कबीर ने अनुराग सागर । में स्पष्ट कर दिया है ।
ANS 7 बङे बङाई ना करें । बङे न बोले बोल । हीरा मुख से ना कहे । लाख टका मेरो मोल ।..सच्चाई छिप नहीं सकती । झूठे उसूलों से । खुशबू आ नहीं सकती । कभी कागज के फ़ूलों से । ऐसा तो कभी कबीर ने भी नहीं कहा था । जबकि उन्होंने कितने चमत्कार किये । उनका जन्म न होकर वे प्रकट हुये थे । और जीवों के मोक्ष के लिये ही भेजे गये थे । उन्होंने कहा । परमात्मा की सच्चे नाम की भक्ति करो । उससे मोक्ष मिलेगा । उनके कहने में कहीं मैं भाव नहीं था ।
ANS 8 हा हा हा । कबीर ने मुझे भी दर्शन देकर कहा था कि ये क्या ऊल जुलूल बोलता रहता है । तू इसको समझाता क्यों नहीं । मैंने जबाब दिया । भैंस के आगे बीन बजाये । भैंस खङी पगुराय । अन्धे के आगे रोये । अपने नैना खोये ।
ANS 9 इनसे पूछो । जब वो अनामी ( जिसका नाम न हो ) ही हैं । तो कबीर कैसे हुये ? एन्ड आल इज ऊटपटांग इन दिस क्वेश्चन ।
ANS 10 ये बात बिल्कुल ही गलत है । स्वर्ग नरक इंसान के कर्मों । दान । पुण्य । तीर्थ । आचरण । द्वैत भक्ति के सही गलत के आधार पर मिलते हैं ।
QNS 11 आप नरक जाओ । या न जाओ ? ये आगे आपके कर्मफ़ल आदि ही फ़ैसला करेंगे । पर ऐसे बाबा ? झूठ ग्यान से इंसान को भृमित करने के कारण वहाँ अवश्य जायेंगे । किसी को गुमराह करना बहुत बङा अपराध है । भला किसी का कर न सको । तो बुरा किसी का मत करना । जबकि लोग आप पर विश्वास करते हों ।.. हाँ एक बात है । कहने वाला अगर वह करके भी दिखाता है । जो वह कह रहा है । फ़िर तो बात सत्य है । मेरी जानकारी के अनुसार । एक चकृ पर का भी । पहुँचा हुआ गुरू । दीक्षा की छह महीने में ही अंतर्यात्रा में इतने स्थान अवश्य दिखा देता है । जितने एक किमी के बीच आते हैं । ये आँख बन्द होने पर भी रंगीन टीवी की तरह दिखते हैं । सबसे बङी बात । आप वहाँ के किसी पुराने और अच्छे शिष्य से पूछना कि आपको अब तक ध्यान के क्या अनुभव हुये ? बस दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा ।
ANS 12 विष्णु का चाय नाश्ता ही देवताओं के साथ अक्सर होता है । और इतना तो सभी जानते हैं कि राम का अगला अवतार ही कृष्ण का हुआ था । तो फ़िर प्रथ्वी जब रावण जैसे असुरों के भार से व्याकुल होकर देवताओं के पास रक्षा के लिये गयी । तो सभी देवता इसके लिये बृह्मा शंकर आदि के पास इकठ्ठे हुये । तो क्या ये देवता विष्णु को भी नहीं जानते थे ?? जहाँ नारद जी नारायण नारायण करते अक्सर पहुँच जाते थे । सबूत के लिये आगे पढिये ।
बाढ़े खल बहु चोर जुआरा । जे लंपट परधन परदारा । मानहिं मातु पिता नहिं देवा । साधुन्ह सन करवावहिं सेवा । जिन्ह के यह आचरन भवानी । ते जानेहु निसिचर सब प्रानी । अतिसय देखि धर्म कै ग्लानी । परम सभीत धरा अकुलानी । गिरि सरि सिंधु भार नहिं मोही । जस मोहि गरुअ एक परद्रोही । सकल धर्म देखइ बिपरीता । कहि न सकइ रावन भय भीता । धेनु रूप धरि हृदय बिचारी । गई तहाँ जहँ सुर मुनि झारी ।
निज संताप सुनाएसि रोई । काहू तें कछु काज न होई ?? सुर मुनि गंधर्बा मिलि करि । सर्बा गे बिरंचि के लोका । संग गोतनुधारी भूमि बिचारी । परम बिकल भय सोका । बृह्मा सब जाना मन अनुमाना । मोर कछू न बसाई ?? जा करि तैं दासी सो अबिनासी । हमरेउ तोर सहाई ?? बैठे सुर सब करहिं बिचारा । कह पाइअ प्रभु करिअ पुकारा ? पुर बैकुंठ जान कह कोई ? कोउ कह पयनिधि बस प्रभु सोई ? जाके हृदय भगति जसि प्रीति । प्रभु तहँ प्रगट सदा तेहिं रीती । तेहि समाज गिरिजा मैं रहेऊ । अवसर पाइ बचन एक कहेऊ ।
हरि ब्यापक सर्बत्र समाना ? प्रेम ते प्रगट होहिं मैं जाना ? देस काल दिसि बिदिसिहु माहीं ? कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाहीं ? अग जगमय सब रहित बिरागी । प्रेम तें प्रभु प्रगटइ जिमि आगी । मोर बचन सब के मन माना । साधु साधु करि बृह्म बखाना ।
तब सभी देवता शंकर के कहे अनुसार स्तुति करने लगे । उस स्तुति में उन्होंने बहुत सी अन्य बातों के अलावा ये भी कहा । सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा । जा कहु कोउ नहिं जाना ??? ये भगवान कौन से हैं ? जिन्हें सरस्वती । वेद । शेषनाग । रिषी आदि भी नहीं जानते थे । विष्णु को तो सब देवता अच्छी तरह जानते थे । तब कालपुरुष ने प्रकट होने के बजाय आकाशवाणी से यह बात कही ।
नारद बचन सत्य सब करिहउ । परम सक्ति ? समेत अवतरिहउ ??? अधिक विस्तार से लिखना संभव नहीं है । यह बात रामचरितमानस के बालकाण्ड में अर्थ द्वारा पढ लें ।
ANS 13 जब कालपुरुष ही अपने दूसरी भूमिका में राम और तीसरी भूमिका में श्रीकृष्ण होता है । तो उसे प्रेतात्मा की तरह कृष्ण के शरीर में घुसने की क्या आवश्यकता है ? ये इन ग्यानी जी से कोई पूछे ।
ANS 14 ये अफ़वाह और किवदंती ही है । जिसका सत्य से कोई वास्ता नहीं । दरअसल किसी भी ग्यान में आजकल सत्य के स्थान पर झूठ अधिक प्रचलित है ।
ANS 15 गीता वेदव्यास ने ही लिखी है । प्रश्न की तरह की बात अफ़वाह है । कालपुरुष ही अवतार रूप में श्रीकृष्ण होता है । उसे ये छोटे मोटे नाटक की जरूरत नहीं होती । सात दीप । नौ खन्ड का मालिक या राष्ट्रपति कालपुरुष ही इस त्रिलोकी का सर्वाधिक बलबान है । उसे ऐसे टटपुंजुए काम की आवश्यकता नहीं होती । आदिशक्ति । सीता या राधा उसकी पत्नी है । कालपुरुष के बाद त्रिलोकी में इससे ( आदिशक्ति से ) भी बङी कोई शक्ति नहीं है । वेदव्यास भी साधारण पुरुष नहीं थे ।
ANS 16 लगभग सभी को मालूम । ये बात एकदम सत्य है । भीलन लूटी गोपिका । वही अर्जुन वही बाण । दरअसल अर्जुन को महाभारत युद्ध जीतने के बाद अपनी ताकत और सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने का घमन्ड हो गया था ।.. महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण के अर्जुन के रथ से नीचे उतरते ही रथ एक विस्फ़ोट के साथ उङकर नष्ट हो गया । अर्जुन ने आश्चर्य से श्रीकृष्ण की तरफ़ देखा । तब श्रीकृष्ण ने कहा । ये रथ तो जाने कितने पहले ही भीष्म पितामह । कर्ण । द्रोणाचार्य..आदि महाबलियों के प्रहार से नष्ट हो चुका था । ये सिर्फ़ मेरे बैठने से अब तक बचा हुआ था । फ़िर भी अर्जुन का गर्व पूरी तरह दूर नहीं हुआ । उसी गर्वहरण की भीलों द्वारा गोपिकाओं का हरण । बूढे हनुमान जी द्वारा पूँछ हटाने की कहना आदि कई बातें हुयी ।
ANS 17 कबीर ये सब तो थे ही । परम सत्य को जानने वाले भी थे । अंतिम लक्ष्य तक पहुँचे । पहुँचे हुये सतगुरु थे । कबीर के बारे में ये सब बातें स्थूल रूप में । आपके प्रश्न के अनुसार सत्य ही है । पर परमात्मा की ये लीला अति गोपनीय और विलक्षण है ।..क्योंकि कबीर जब यहाँ थे । तब उन्होंने स्वयँ एक बार कहा था ।.. कबीर कबीर कौन कबीर ? काया में जो रमता वीर । कहते उसका नाम कबीर । अतः इसके सीक्रेट प्वाइंट को सरल शब्दों में क्लियर करना संभव नहीं है ।
निज संताप सुनाएसि रोई । काहू तें कछु काज न होई ?? सुर मुनि गंधर्बा मिलि करि । सर्बा गे बिरंचि के लोका । संग गोतनुधारी भूमि बिचारी । परम बिकल भय सोका । बृह्मा सब जाना मन अनुमाना । मोर कछू न बसाई ?? जा करि तैं दासी सो अबिनासी । हमरेउ तोर सहाई ?? बैठे सुर सब करहिं बिचारा । कह पाइअ प्रभु करिअ पुकारा ? पुर बैकुंठ जान कह कोई ? कोउ कह पयनिधि बस प्रभु सोई ? जाके हृदय भगति जसि प्रीति । प्रभु तहँ प्रगट सदा तेहिं रीती । तेहि समाज गिरिजा मैं रहेऊ । अवसर पाइ बचन एक कहेऊ ।
हरि ब्यापक सर्बत्र समाना ? प्रेम ते प्रगट होहिं मैं जाना ? देस काल दिसि बिदिसिहु माहीं ? कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाहीं ? अग जगमय सब रहित बिरागी । प्रेम तें प्रभु प्रगटइ जिमि आगी । मोर बचन सब के मन माना । साधु साधु करि बृह्म बखाना ।
तब सभी देवता शंकर के कहे अनुसार स्तुति करने लगे । उस स्तुति में उन्होंने बहुत सी अन्य बातों के अलावा ये भी कहा । सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा । जा कहु कोउ नहिं जाना ??? ये भगवान कौन से हैं ? जिन्हें सरस्वती । वेद । शेषनाग । रिषी आदि भी नहीं जानते थे । विष्णु को तो सब देवता अच्छी तरह जानते थे । तब कालपुरुष ने प्रकट होने के बजाय आकाशवाणी से यह बात कही ।
नारद बचन सत्य सब करिहउ । परम सक्ति ? समेत अवतरिहउ ??? अधिक विस्तार से लिखना संभव नहीं है । यह बात रामचरितमानस के बालकाण्ड में अर्थ द्वारा पढ लें ।
ANS 13 जब कालपुरुष ही अपने दूसरी भूमिका में राम और तीसरी भूमिका में श्रीकृष्ण होता है । तो उसे प्रेतात्मा की तरह कृष्ण के शरीर में घुसने की क्या आवश्यकता है ? ये इन ग्यानी जी से कोई पूछे ।
ANS 14 ये अफ़वाह और किवदंती ही है । जिसका सत्य से कोई वास्ता नहीं । दरअसल किसी भी ग्यान में आजकल सत्य के स्थान पर झूठ अधिक प्रचलित है ।
ANS 15 गीता वेदव्यास ने ही लिखी है । प्रश्न की तरह की बात अफ़वाह है । कालपुरुष ही अवतार रूप में श्रीकृष्ण होता है । उसे ये छोटे मोटे नाटक की जरूरत नहीं होती । सात दीप । नौ खन्ड का मालिक या राष्ट्रपति कालपुरुष ही इस त्रिलोकी का सर्वाधिक बलबान है । उसे ऐसे टटपुंजुए काम की आवश्यकता नहीं होती । आदिशक्ति । सीता या राधा उसकी पत्नी है । कालपुरुष के बाद त्रिलोकी में इससे ( आदिशक्ति से ) भी बङी कोई शक्ति नहीं है । वेदव्यास भी साधारण पुरुष नहीं थे ।
ANS 16 लगभग सभी को मालूम । ये बात एकदम सत्य है । भीलन लूटी गोपिका । वही अर्जुन वही बाण । दरअसल अर्जुन को महाभारत युद्ध जीतने के बाद अपनी ताकत और सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने का घमन्ड हो गया था ।.. महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण के अर्जुन के रथ से नीचे उतरते ही रथ एक विस्फ़ोट के साथ उङकर नष्ट हो गया । अर्जुन ने आश्चर्य से श्रीकृष्ण की तरफ़ देखा । तब श्रीकृष्ण ने कहा । ये रथ तो जाने कितने पहले ही भीष्म पितामह । कर्ण । द्रोणाचार्य..आदि महाबलियों के प्रहार से नष्ट हो चुका था । ये सिर्फ़ मेरे बैठने से अब तक बचा हुआ था । फ़िर भी अर्जुन का गर्व पूरी तरह दूर नहीं हुआ । उसी गर्वहरण की भीलों द्वारा गोपिकाओं का हरण । बूढे हनुमान जी द्वारा पूँछ हटाने की कहना आदि कई बातें हुयी ।
ANS 17 कबीर ये सब तो थे ही । परम सत्य को जानने वाले भी थे । अंतिम लक्ष्य तक पहुँचे । पहुँचे हुये सतगुरु थे । कबीर के बारे में ये सब बातें स्थूल रूप में । आपके प्रश्न के अनुसार सत्य ही है । पर परमात्मा की ये लीला अति गोपनीय और विलक्षण है ।..क्योंकि कबीर जब यहाँ थे । तब उन्होंने स्वयँ एक बार कहा था ।.. कबीर कबीर कौन कबीर ? काया में जो रमता वीर । कहते उसका नाम कबीर । अतः इसके सीक्रेट प्वाइंट को सरल शब्दों में क्लियर करना संभव नहीं है ।
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