10 जून 2011

वहाँ से कोई खाली हाथ वापिस नहीं आता ।

नमस्कार महाराज ! मेरा नाम निर्मल पान्डे है । मैं आपके पाठक पप्पू पान्डे का बडा भाई हूँ । मुझे आपके ब्लाग के बारे में पता नहीं था । 2 हफ़्ते पहले जब मैं दिल्ली पप्पू के पास गया । तब उसने आपके ब्लाग के बारे में मुझे जानकारी दी । मैंने M B A किया है । और प्राइवेट नौकरी करता हूँ । पहले मैं लखनऊ में नौकरी करता था । लेकिन अब फ़रीदाबाद में हूँ ।
लखनऊ में मु्स्लिम लोग बहुत हैं । वहाँ मस्जिद मजारें भी बहुत हैं ।  मैं आपसे ये जानना चाहता हूँ कि - क्या ये मस्जिद मजारें आदि वाकई शक्तिशाली होती है ? लोग अक्सर इन मजारों पर आते है । कोई कहता है कि फ़लां मजार या मस्जिद से उसकी फ़लां इच्छा पूरी हुई । कोई कहता है कि फ़लां जगह पर फ़लां मजार या मस्जिद है । वहाँ से कोई खाली हाथ वापिस नहीं आता ।
कई जगह ऐसी होती हैं । जहाँ भूत प्रेत आदि का इलाज होता है । किसी मजार या मस्जिद में मरीज ( पता नहीं मानसिक रोगी होते हैं । या सचमुच में भूत घुसा होता है ? ) को छोड दिया जाता है ।
वहाँ मरीज ( औरत या मर्द ) अपने आप पागलों की तरह चिल्लाता है । महिला मरीज तो अपने बाल खोलकर दायें बायें घुमाती है । ऐसी और भी अजीब हरकतें मरीज करते हैं ।
समझ नहीं आया कि - ये सब क्या चक्कर है ? मैं आपसे ये भी जानना चाहता हूँ कि - ये पीर । औलिया । मौलाना । खलीफ़ा । मुल्ला । मियाँ । सैयद आदि क्या होते हैं ? क्या ये मुस्लिम लोगों में धार्मिक उपाधियाँ है ?
1 बात और । फ़रीदाबाद और दिल्ली में देखने को आयी । यहाँ पर बस अड्डों के आसपास पोस्टर लगे होते हैं ( वैसे आजकल केबल टीवी पर भी ऐसे प्रचार आने लगे हैं । लोकल चैनल्स पर )
उन पोस्टरों पर लिखा होता है - मिलिये ! काले इलम के माहिर फ़लां..जी से । मनचाही शादी करवा देंगे । बिछुडा हुआ प्यार वापिस पाईये । नौकरी । लाटरी सब कुछ पाईये । सौतन से छुटकारा । बच्चों का पढाई में मन लगना । घर में सुख शान्ति । सास या बहू को वश मे कीजिये । पति को वश में कीजिये.. आदि आदि । ऐसी बाते लिखी होती हैं । उन पोस्टरों पर ।

लेकिन ये भी लिखा होता है कि - फ़ीस एडवांस में ली जायेगी । लेकिन काम होने की गारन्टी पूरी ?
साथ में ऐसा कुछ भी लिखा होता है कि - खून के आँसू पीने नही दूँगा । दुखी किसी को रहने नहीं दूँगा ।
या - रोते हुए आईये । और नाचते हुय़े जाईये ।
मैं आपसे ये जानना चाहता हूँ कि ये लोग कौन होते हैं ? बाबा होते हैं ? जादूगर होते हैं ? ठग होते हैं ? मुजरिम होते हैं ? क्या होते हैं ? और इनका ठिकाना अक्सर बस अड्डों के आसपास या बहुत भीड भाड वाली जगह में होता है ।
शायद ये भी सुनने में आया है कि ये बहुत ज्यादा दिन 1 शहर में टिककर नहीं बैठते । कुछ दिनों बाद अपना ठिकाना बदल देते हैं । इनका पक्का ठिकाना कोई नहीं होता । बस जहाँ जाते हैं 1 छोटा सा कमरा किसी बेहद भीड भाड वाली जगह में किराये पर लिया होता है । जैसे बाजार में किसी बडी पुरानी बिल्डिंग के पीछे । या किसी तंग गली में । किसी मकान की दूसरी या तीसरी मंजिल पर ।
मैं चाहता हूँ । आप अपने आने वाले लेख में इस सच्चाई को सामने रखें । नहीं तो लोगों को पता नहीं क्या हो गया है ? वहाँ भागे जाते हैं । और दूसरों को भी जाने को कहते हैं ।

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नमस्कार निर्मल पांडेय जी ! सत्यकीखोज पर विद फ़ैमिली आपका बहुत बहुत स्वागत है । पप्पू पांडेय जी के बङे भाई से मिलकर यकीनन खुशी हुयी । दूसरे आपने पहला पत्र ही सार्थक और संदेश पूर्ण लिखा है । आज भारत को ऐसे ही लोगों की आवश्यकता है । शायद पप्पू जी ने आपको बताया हो । वो मेरा ब्लाग काम से लौटने के बाद रात में पढते हैं । वास्तव में सत्यकीखोज रात दिन जारी रहनी चाहिये ।

*** आईये आपसे बातचीत का सिलसिला आगे बङाते हैं ।
क्या ये मस्जिद मजारें आदि वाकई शक्तिशाली होती है ?
**** कोई मंदिर । मस्जिद । मजार । चर्च । गुरुद्वारा शक्तिशाली नहीं होता । शक्तिशाली होता है । वो सच्चा संत । 


पीर । फ़कीर । गुरु जिसने वहाँ इवादत की हो । उसी की इबादत के फ़ल से तमाम लोग उस स्थान पर शांति सुकून महसूस करते हैं । क्योंकि उस इबादत का असर ( किरणें ) वहाँ मौजूद होता है । ऐसे सन्त की साधना और पावर के अनुसार । नियम अनुसार उस स्थान को एक निश्चित समय के लिये " आन " लग जाती है । जिससे उसी लेवल के कार्य । उन्हीं लोगों के पूरे होते हैं । जिनके वहाँ से होना तय हैं । ऐसे लोग समय आने पर खुद ही वहाँ पहुँच जाते है । इसका सबसे सच्चा और सशक्त उदाहरण शिरडी के साईं बाबा हैं ।
लेकिन आप कहो । हरेक के लिये । और हरेक मामले में ऐसा हो जाय । इम्पासिबल ! ऐसी गारंटी तो भगवान भी नहीं दे सकता । फ़िर कर्म और उसके फ़ल का महत्व क्या रह जायेगा ? जिस नियम पर अखिल सृष्टि ही चल रही है ।
कोई कहता है कि फ़लां मजार या मस्जिद से उसकी फ़लां इच्छा पूरी हुई ।
*** मंदिर मस्जिद का सिर्फ़ नाम हो जाता है । असल में मंदिर मस्जिद के सहारे से इंसान अपनी बात को पूरे

विश्वास से भगवान से कहता है । और यही पूर्ण विश्वास कार्य के होने में सहायक होता है । इंसान का ऐसा ही भाव अपने घर पर भी बन जाय । तो वहाँ भी वही बात होगी । जो मंदिर में होगी । यदि भाव शुद्ध हों । तो मन से अच्छा मंदिर कोई नहीं । तेरे पूजन को भगवान । बना मन मंदिर आलीशान । कौन सा मंदिर ? मन मंदिर । लेकिन ऐसा कार्य भी पूर्व संस्कार होने पर ही होता है । अगर ऐसे ही आदमी की मंदिर मस्जिदों से इच्छायें पूरी होने लगें । तो फ़िर मौजा ही मौजा ।
कई जगह ऐसी होती हैं । वहाँ मरीज ( औरत या मर्द ) अपने आप पागलों की तरह चिल्लाता है ।
**** मैंने बताया कि ये " आन " का मामला होता है । दूसरे चिल्लाने की अन्य अप्रेतक वजह भी होती हैं । जो इस लेख में बताना सम्भव नहीं । अगर वास्तव में कोई सच्चा प्रेतबाधा केस हो । और आप उसे ऐसे घर में ले जायँ । जहाँ भक्ति का भरपूर माहौल हो । और लोगों के एकदम शुद्ध आचरण हो । तो वहाँ भी वह मरीज ऐसा ही व्यवहार करेगा ।
ये पीर । औलिया । मौलाना । खलीफ़ा । मुल्ला । मियाँ । सैयद आदि क्या होते हैं ?
*** आपने सही कहा । ये अलग अलग प्रकार ही हैं । जैसे हिन्दी में - सिद्ध । सन्त । महात्मा । ग्यानी । गुरु आदि होते हैं । इनमें ग्यान दृष्टि से पहले औलिया । फ़िर उससे बङा पीर । फ़िर उससे बङा फ़कीर होता है ।
हद टपे सो औलिया । बेहद टपे सो पीर । हद बेहद दोनों टपे । उसका नाम फ़कीर ।
औलिया सन्त सिर्फ़ एक सीमा तक प्रकृति आदि का निश्चित ग्यान ही जानते हैं । बेहद को हिन्दी में अपार कहा गया है । यानी परमात्मा के अपार ग्यान की जानकारी रखने वाला पीर कहलाता है । इससे बङा फ़कीर ( सच्चा ) हद ( सृष्टि ) और बेहद ( अपार ) दोनों जगह आसान पहुँच रखता है ।
सबहि सयाने एकमत । पहुँचे का मत एक । बीच में जो रहे । उनके मते अनेक ।

मिलिये ! काले इलम के माहिर - शैतान चन्द दुष्टात्मा से ।
**** कहते हैं - बिना आग के धुँआ नहीं होता । मैंने अपने लेखों में बताया है कि शाबर मन्त्र । गोरख सिद्धियाँ । कर्ण पिशाचिनी । जिन्न । पिशाच आदि छोटी नीच सिद्धियाँ और जल्दी सिद्ध हो जाने वाले और कुछ इस तरह के मन्त्र होते हैं । जो भला करने के बजाय बुरा करने के लिये दुष्ट सिद्धों द्वारा रचे गये हैं । लेकिन इन्हीं जैसे कुछ अन्य मन्त्रों में बिच्छू ततैया ( बर्र ) आदि का जहर उतारना । आधाशीशी दर्द दूर करना । प्रेतवायु या प्रेतबाधा का छोटा मोटा उपचार करने जैसे तमाम भलाई के कार्य भी होते हैं ।
इनमें से कुछ लोग इनको सिद्ध भी कर लेते हैं । पर सच्चा 1 ठग 100 होते हैं । वैसे ऐसे लोगों से अच्छा बुरा कोई भी कार्य नहीं कराना चाहिये । क्योंकि फ़िर उसका एक ही मतलब होता है - आ बैल मुझे मार !

लेकिन ये भी लिखा होता है कि - फ़ीस एडवांस में ली जायेगी ।
*** क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से मालूम है । काम तो होना नहीं है । भैया जब दूसरे के सट्टा लाटरी निकलवाते हो । तो अपने लिये ही जीत जाओ । दुकान काहे खोले बैठे हो । ये सास बहू को वश में करना । सौतन से छुटकारा । नौकरी..यदि दो तीन हजार में होने लगे । तो दुनियाँ के बहुत से कोर्ट और कोचिंग सेंटर ही बन्द हो जायँ ।

खून के आँसू पीने नही दूँगा । दुखी किसी को रहने नहीं दूँगा ।
***लगता है । बाबा रामदेव ने ये विग्यापन नहीं देखा । बेकार डंडे खाने न पङते । ऐसी गारंटी तो भगवान भी नहीं देता । इंसान के संचित कर्म प्रारब्ध रूप होकर उसको सुख दुख देते हैं । और ये भगवान का बनाया नियम है । तो ये काले इलम का कालू छाप कलुआ बाबा भगवान से बङा हो गया क्या ?

मैं आपसे ये जानना चाहता हूँ कि ये लोग कौन होते हैं ? बाबा होते हैं ? जादूगर होते हैं ? ठग होते हैं ?

*** ये छह सात बेरोजगार और अपराधी मानसिकता वाले लोगों का एक गिरोह होता है । जो किसी नयी जगह अपना जाल फ़ैला देते हैं । फ़िर उनमें से एक पहुँचा हुआ बाबा बन जाता है । और बाकी उसके चेले । इन्हीं चेलों में से एक दो घूम घूमकर खुद को पब्लिक शो करते हुये बाबा की तारीफ़ करते हैं कि - बाबा की कृपा से उनका ऐसा काम हो गया । और ग्राहक फ़ाँस फ़ाँसकर लाते हैं । उससे पैसा ऐंठ लेते हैं । ये अक्सर औरतों लङकियों और प्रेमिका आदि को वश में करने की चाह रखने वाले लङकों को फ़ँसाते हैं । जो ठगे जाने पर न तो किसी से कह पाते हैं । और न ही अपना पैसा बसूल कर पाते हैं । हाँ ये चांडाल चौकङी किसी दमदार आदमी के चक्कर में फ़ँस जाये । तो बहाना बनाकर रातोंरात भाग जाते हैं ।
ये बहुत जल्द अपना ठिकाना बदल देते हैं ।
*** अब ठिकाना नहीं बदलेंगे । तो जिन लोगों को ठग चुके हैं । वे आकर उनको जूते नहीं मारेंगे ।

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