28 जनवरी 2016

शास्त्र और कुण्डलिनी

व्याख्यायास्ते शिवास्तन्वः काम भद्रायाभिः सत्यं भवित ।
यदवृषीणेताभिष्ट्वमस्मां अभिं सवंशास्वयान्यत्रपापी रपवेशयाधियः । - अथर्व
हे परमेश्वर ! तेरा कामरूप भी श्रेष्ठ और कल्याणकारक है । उसका चयन असत्य नहीं है । आप कामरूप से हमारे भीतर प्रवेश करें और पाप बुद्धि से छुड़ाकर हमें निष्पाप उल्लास की ओर ले चलें ।
कुण्डलिनी महाशक्ति को प्रकृति का निरूपण करते हुए शास्त्रकारों ने उसे 'कामबीज’ एवं ‘कामकला’
दोनों शब्दों का प्रयोग किया है । इन शब्दों का अर्थ कामुकता कामक्रीड़ा या कामशास्त्र जैसा तुच्छ
यहाँ नहीं लिया गया है । इस शक्ति को प्रकृति उत्साह एवं उल्लास उत्पन्न करना है ।
यह शरीर और मन की उभय-पक्षीय अग्रगामी स्फुरणाएं है । यह एक मूल प्रकृति हुई । दूसरी पूरक प्रकृति । मूलाधार को कामबीज कहा गया है । और सहस्रार को - ज्ञानबीज । दोनों के समन्वय से विवेक युक्त क्रिया बनती है । इसी पर जीवन का सर्वतोमुखी विकास निर्भर है ।
कुण्डलिनी साधना से इसी सुयोग संयोग की व्यवस्था बनाई जाती है ।
प्रत्येक शरीर में नर और मादा दोनों ही तत्व विद्यमान है । शरीर शास्त्रियों के अनुसार प्रत्येक
प्राणी में उभय-पक्षीय सत्ताएँ मौजूद है । इनमें से जो उभरी रहती है । उसी के अनुसार शरीर की लिंग प्रकृति बनती है । संकल्प पूर्वक इस प्रकृति को बदला भी जा सकता है । छोटे प्राणियों में उभयलिंगी क्षमता रहती है । वह एक ही शरीर से समयानुसार दोनों प्रकार की आवश्यकताएँ पूरी कर लेता है ।
मनुष्यों में ऐसे कितने ही पाये जाते हैं । जिनकी आकृति जिस वर्ग की है । प्रकृति उससे भिन्न वर्ग की होती है । नर को नारी की और नारी को नर की भूमिका निबाहते हुए बहुत बार देखा जाता है । इसके अतिरिक्त लिंग परिवर्तन की घटनाएँ भी होती रहती है । शल्य क्रिया के विकास के साथ साथ अब इस प्रकार के उलट पुलट होने के समाचार संसार के कोने कोने से मिलते रहते हैं । अमुक नर नारी बन गया । और नारी ने नर के रूप में अपना गृहस्थ नये ढंग से चलाना आरम्भ कर दिया ।
दोनों में एक तत्व प्रधान रहने से ढर्रा तो चलता रहता है, पर एकांगी पर बना रहता है ।
नारी कोमलता, सहृदयता, कलाकारिता जैसे भावात्मक तत्व का नर में जितना अभाव होगा । उतना ही वह कठोर, नीरस, निष्ठुर रहेगा । और अपनी बलिष्ठता, मनस्विता के पक्ष के सहारे क्रूर, कर्कश बन कर अपने और दूसरों के लिए अशान्ति ही उत्पन्न करता रहेगा ।
नारी में पौरुष का अभाव रहा । तो वह आत्महीनता की ग्रन्थियों से ग्रसित अनावश्यक संकोच में डूबी, कठपुतली या गुड़िया बनकर रह जायेगी । आवश्यकता इस बात की है कि दोनों ही पक्षों में सन्तुलित मात्रा रयि और प्राण के तत्व बने रहें । कोई पूर्णतः एकांगी बनकर न रह जाय । जिस प्रकार बाह्य जीवन में नर नारी सहयोगी की आवश्यकता रहती है । उसी प्रकार अन्तःक्षेत्र में भी दोनों तत्वों का समुचित विकास होना चाहिए । तभी एक पूर्ण व्यक्तित्व का विकास सम्भव हो सकेगा । 
कुण्डलिनी जागरण से उभय-पक्षीय विकास की पृष्ठभूमि बनती है । मूलाधार चक्र में कामशक्ति को स्फूर्ति, उमंग एवं सरसता का स्थान माना गया है । इसलिए उसे काम संस्थान कहते हैं । जहाँ तहाँ उसे योनि संज्ञा भी दी गई है । नामकरण जननेन्द्रिय के आकार के आधार पर नहीं । उस केन्द्र में सन्निहित रयि शक्ति को ध्यान में रखकर किया गया है ।
आधाराख्ये गुदास्थाने पंकजू च चतुर्दलम ।
तन्मध्ये प्रोच्यते योनिः कामाख्या सिद्धवंदिता । - गोरक्षा पद्धति
गुदा के समीप मूलाधार कमल के मध्य योनि है । उस कामाख्या पीठ कहते हैं । सिद्ध योगी इसकी उपासना करते हैं ।
अपाने मूल कन्दाख्यं कामरुपं च तज्जगुः ।
तदेव वहिन कुण्डंस्यात तत्व कुण्डलिनी तथा । - योग राजोपनिषद
मूलाधार चक्र में कन्द है । उसे कामरूप कामबीज अग्निकुण्ड कहते हैं । यही कुण्डलिनी का स्थान है ।
देवी हयेकाऽग्र आसीत । सैव जगदण्डमसृजत ।
कामकलेति विज्ञायते श्रृंगारकलेति विज्ञायतें । - वृहवृचोपनिषद 1
उसी दिव्यशक्ति से यह जगत मंडल सृजा । वह उस सृजन से पूर्व भी थी वही कामकला है । सौंदर्य
कला भी उसी को कहते हैं ।
यतद्गुहयामिति प्रोक्तं देवयोनिस्तु सोच्यतें ।
अस्याँ यो जायते वहिः स कल्याण प्रदुच्यतें । - कात्यान स्मृति
गुहम स्थान में देव योनि है । उससे जो अग्नि उत्पन्न होती है । उसे परम कल्याणकारिणी समझना चाहिए ।
आधारं प्रथम चक्रं स्वाधिष्ठानं द्वितीयकम ।
योनित स्थानं द्वयोर्मघ्ये काम रुपं निगद्यते । - गोरथ पद्धति
पहला चक्र मूलाधार है । दूसरा स्वाधिष्ठान । दोनों के मध्य योनि स्थान है । उसे कामरूप भी कहते हैं ।
कामी कलां काम रुपां चिक्रित्वा ।
नरो जायते काम रुपश्व कामः । - त्रिपुरोपनिषद
यह महाशक्ति कामरूप है । उसे कामकला भी कहते हैं । जो उसकी उपासना करता है । सो कामरूप हो जाता है । उसकी कामनाएँ फलवती होती है । सहस्रार को कुण्डलिनी विज्ञान में महालिंग की संज्ञा दी गई है । यहाँ भी जननेन्द्रिय आकार को नहीं वरन उस केन्द्र में सन्निहित प्राण पौरुष का ही संकेत है ।
तत्रस्थितो महालिंग स्वयं भुः सर्वदा सुखी ।
अधोमुखः क्रियावांक्ष्य काम बीजो न चलितः । - काली कुलामृत
ब्रह्मरंध्र में वह महालिंग अवस्थित है । वह स्वयं भू और स्वरूप है । इसका मुख नीचे की और है । वह निरन्तर क्रियाशील है । कामबीज द्वारा उत्तेजित होता है ।
स्वयंभु लिंग तन्मध्ये संरंध्र परिश्मावलम ।
ध्यायेश्व परमेशक्ति शिवं श्यामल सुन्दरम । - शाक्तानन्द तरंगिणी
ब्रह्मरंध्र के मध्य स्वयंभू महालिंग है । इसका मुख नीचे की ओर है । वह श्यामल और सुन्दर है । उसका ध्यान करें । कामबीज और ज्ञानबीज के मिलने से जो आनन्दमयी परम कल्याणकारी भूमिका बनती है । उसमें मूलाधार और सहस्रार का मिलन संयोग ही आधार माना गया है । इसी मिलाप को साधना की सिद्धि कहा गया है । इस स्थिति को दिव्य मैथुन की संज्ञा भी दी गई है ।
सहस्त्रो परिविन्दौ कुण्डल्यां मेलनं शिवे ।
मैथुनं शयनं दिव्यं यतीनां परिकीर्तितत । - योगिनी तन्त्र
पार्वती, सहस्रार में जो कुल और कुण्डलिनी का मिलन होता है । उसी को यतियों ने दिव्य मैथुन कहा है ।
पर शक्त्यात्म मिथुन संयोगानन्द निर्गराः ।
मुक्तात्म मिथुनंतत स्त्यादितर स्त्री निवेषकाः । - तन्त्रसार
आत्मा को परमात्मा को प्रगाढ़ आलिंगन में आबद्ध करके परम रस का आस्वादन करना ही यही यतियों का मैथुन है ।
सुषम्नाशक्ति सुदृष्टा जीवोऽयंतु परः शिवः ।
तयोस्तु संगमे देवैः सुरतं नाम कीतितम । - तन्त्रसार
सुषुम्ना शक्ति और ब्रह्मरंध्र शिव है । दोनों के समागम को मैथुन कहते हैं । यह संयोग आत्मा और परमात्मा के मिलन एकाकार की स्थिति भी उत्पन्न करता है । जीव को योनि और ब्रह्म को वीर्य संज्ञा देकर उनका संयोग भी परमानन्ददायक कहा गया है -
एष बीजी भवान वीज महंयोनिः सनातनः । - वायु पुराण
जीव ने ब्रह्म से कहा - आप बीज है । मैं योनि हूँ । यही क्रम सनातन से चला आ रहा है ।
शिव और शक्ति के संयोग का रूपक भी इस संदर्भ में दिया जाता है । शक्ति को रज और शिव को बिन्दु की उपमा दी गई है । दोनों के मिलन के महत्वपूर्ण सत्परिणाम बताये गये है ।
विन्दुः शिवो रजः शक्ति श्चन्द्रोविन्दु रजोरविः ।
अनयोः संगमा देव प्राप्यते परमं पदम । - गोरक्ष पद्धति
बिन्दु शिव और रज शक्ति । यही सूर्य, चन्द्र हैं । इनका संयोग होने पर परम पद प्राप्त होता है।
बिन्दुः शिवो रजः शक्तिभयोर्मिलनात स्वयम । - शिव संहिता 1।100
बिन्दु शिव रूप और रज शक्ति रूप है । दोनों का मिलन स्वयं महाशक्ति का सृजन है ।
योनि वेदी उमादेवी लिंग पीठ महेश्वर । - लिंग पुराण 
योनि वेदी उमा है और लिंग पीठ महेश्वर ।
जतवेदाः स्वयं रुद्रः स्वाहा शर्वार्धकायिनी ।
पुरुषाख्यो मुनः शभुः शतरुपा शिवप्रिया । - लिंग पुराण
जातवेदा अग्नि स्वयं रुद्र है । और स्वाहा अग्नि वे महाशक्ति हैं । उत्पादक परम पुरुष शिव है । और श्रेष्ठ उत्पादनकर्ती शतरूपा एवं शिवा है ।
अहं बिन्दू रजः शक्तिरुभयोर्मेलनं यदा ।
योगिनाँ साधनावस्था भवेदिव्यं व पुस्तदा । शिव संहिता 4। 87
शिवरूपी बिन्दु, शक्तिरूपी रज इन दोनों का मिलन होने से योग साधक को दिव्यता प्राप्त होती हैं ।
ब्रह्म का प्रत्यक्ष रूप प्रकृति और अप्रत्यक्ष भाग पुरुष है । दोनों के मिलने से ही द्वैत का अद्वैत में विलय होता है । शरीरगत दो चेतन धाराएँ रयि और प्राण कहलाती है । इनके मिलन संयोग से सामान्य प्राणियों को उस विषयानन्द की प्राप्ति होती है ।
जिसे प्रत्यक्ष जगत की सर्वोपरि सुखद अनुभूति कहा जाता है । ऋण और धन विद्युत घटकों के
मिलन से चिनगारियाँ निकलती और शक्तिधारा बहती है । पूरक घटकों की दूरी समाप्त होने पर सरसता और सशक्तता की अनुभूति प्रायः होती रहती है ।
चेतना के उच्चस्तरीय घटक मूलाधार और सहस्रार के रूप में विलग पड़े रहें । तभी तक अन्धकार की नीरस गतिहीनता की स्थिति रहेगी । मिलन का प्रतिफल सम्पदाओं और विभूतियों के ऋद्धि और सिद्धि के रूप में सहज ही देखा जा सकता है । इन उपलब्धियों की अनुभूति में आत्म परमात्मा का मिलन होता है । और उसकी सम्वेदना ब्रहमानन्द के रूप में होती है । इस आनन्द को विषयानन्द से असंख्य गुने उच्चस्तर का माना गया है ।
शिव पार्वती विवाह का प्रतिफल दो पुत्रों के रूप में उपस्थित हुआ था । एक का नाम गणेश, दूसरे
का कार्तिकेय । गणेश को प्रज्ञा का देवता माना गया हैं और स्कन्द को शक्ति का । दुर्दान्त, दस्यु, असुरों को निरस्त करने के लिए कार्तिकेय का अवतरण हुआ था । उनके इस पराक्रम ने संत्रस्त देव समाज का परित्राण किया ।
गणेश ने माँस पिण्ड मनुष्य को सदज्ञान, अनुदान देकर उसे सृष्टि का मुकुटमणि बनाया । दोनों ब्रह्मकुमार शिवशक्ति के समन्वय के प्रतिफल है । शक्ति कुण्डलिनी, शिव सहस्रार दोनों का संयोग कुण्डलिनी जागरण कहलाता है ।
***zero****
साभार ।

11 जनवरी 2016

एक गधे की कब्र

 एक फकीर किसी बंजारे की सेवा से बहुत प्रसन्‍न हो गया । और उस बंजारे को उसने एक गधा भेंट किया । बंजारा बड़ा प्रसन्‍न था । गधे के साथ, अब उसे पैदल यात्रा न करनी पड़ती थी । सामान भी अपने कंधे पर न ढोना पड़ता था ।
और गधा बड़ा स्‍वामीभक्‍त था । लेकिन एक यात्रा पर गधा अचानक बीमार पङा और मर गया ।
दुःख में उसने उसकी कब्र बनायी और कब्र के पास बैठकर रो रहा था कि एक राहगीर गुजरा ।
उस राहगीर ने सोचा कि जरूर किसी महान आत्‍मा की मृत्‍यु हो गयी है । तो वह भी झुका कब्र के पास । इसके पहले कि बंजारा कुछ कहे । उसने कुछ रूपये कब्र पर चढ़ाये ।
बंजारे को हंसी भी आई आयी । लेकिन तब तक भले आदमी की श्रद्धा को तोड़ना भी ठीक मालूम न पङा । और उसे यह भी समझ में आ गया कि यह बड़ा उपयोगी व्‍यवसाय है ।
फिर उसी कब्र के पास बैठकर रोता, यही उसका धंधा हो गया । लोग आते । गांव गांव खबर फैल गयी कि किसी महान आत्‍मा की मृत्‍यु हो गयी । और गधे की कब्र किसी पहुंचे हुए फकीर की समाधि बन गयी । 
ऐसे वर्ष बीते । वह बंजारा बहुत धनी हो गया ।
फिर एक दिन जिस सूफी साधु ने उसे यह गधा भेंट किया था । वह भी यात्रा पर था और उस गांव के करीब से गुजरा ।
उसे भी लोगों ने कहा - एक महान आत्‍मा की कब्र है यहाँ, दर्शन किये बिना मत चले जाना ।
वह गया । देखा उसने इस बंजारे को बैठा । तो उसने कहा - किसकी कब्र है यहाँ, और तू यहाँ बैठा क्‍यों रो रहा है ।
उस बंजारे ने कहा - अब आपसे क्‍या छिपाना । जो गधा आपने दिया था । उसी की कब्र है । जीते जी भी उसने बड़ा साथ दिया । और मर कर और ज्‍यादा साथ दे रहा है । 
सुनते ही फकीर खिलखिला कर हंसने लगा । 
उस बंजारे ने पूछा - आप हंसे क्‍यों ?
फकीर ने कहा - तुम्‍हें पता है । जिस गांव में मैं रहता हूँ । वहाँ भी एक पहुँचे हुये महात्‍मा की कब्र है । उसी से तो मेरा काम चलता है ।
बंजारे ने पूछा - वह किस महात्‍मा की कब्र है । तुम्‍हें मालूम है ?
उसने कहा - मुझे कैसे नहीं, पर क्‍या आपको मालूम है । नहीं मालूम हो सकता । वह इसी गधे की मां की कब्र है ।
धर्म के नाम पर अंधविश्‍वासों का बड़ा विस्‍तार है । धर्म के नाम पर थोथे, व्‍यर्थ के क्रियाकांडों, यज्ञों, हवनों का बड़ा विस्‍तार है । फिर जो चल पड़ी बात, उसे हटाना मुश्‍किल हो जाता है । 
जो बात लोगों के मन में बैठ गयी । उसे मिटाना मुश्‍किल हो जाता है । और इसे बिना मिटाये 
वास्‍तविक धर्म का जन्‍म नहीं हो सकता । अंधविश्‍वास उसे जलने ही न देगा ।
सभी बुद्धिमान व्‍यक्‍तियों के सामने यही सवाल थे । और दो ही विकल्‍प है ।
एक विकल्‍प है नास्‍तिकता का, जो अंधविश्‍वास को इंकार कर देता है । और अंधविश्‍वास के साथ साथ धर्म को भी इंकार कर देता है । क्‍योंकि नास्‍तिकता देखती है । इस धर्म के ही कारण तो अंधविश्‍वास खड़े होते हैं । तो वह कूड़े करकट को तो फेंक ही देती है । साथ में उस सोने को भी फेंक देती है । क्‍योंकि इसी सोने की वजह से तो कूड़ा करकट इकठ्ठा होता है ।
न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी । ओशो ।
( जिन सूत्र - भाग 2, प्रवचन 3 )

ब्रह्म को अन्य की भांति लेना उपनिषदों के लिए असत्य है । नहीं कि दूसरा ब्रह्म नहीं है । सभी कुछ ब्रह्म है । दूसरा भी ब्रह्म ही है । लेकिन उपनिषद कहते हैं कि यदि तुम उसे अपने भीतर अनुभव नहीं कर सकते । तो उसे बाहर अनुभव करना असंभव है । क्योंकि निकटतम स्रोत भीतर है । बाहर तो बहुत दूर है । और यदि निकटतम नहीं जाना गया । तो तुम दूर को कैसे जान सकते हो ? यदि तुम उसे अपने भीतर ही महसूस नहीं कर सकते । तो तुम उसे दूसरों के भीतर कैसे महसूस कर सकते हो ? यह असंभव है ।
इसलिए पहली बात - उपनिषदों के लिए कोई प्रार्थना नहीं है । केवल ध्यान है । प्रार्थना दो के बीच संबंध है । जैसे कि प्रेम । ध्यान संबंध नहीं है दो के बीच । यह समर्पण की भांति है । ध्यान भीतर जाना है । स्वयं का स्वयं के प्रति समर्पण है । परिधि को नहीं पकड़ना है । बल्कि भीतर गहरे में केंद्र पर उतरना है । और जब तुम अपने केंद्र पर हो । तो तुम उसी में हो - तत ब्रह्म ।
दूसरी बात - जब उपनिषद उसे ‘वह’ कह कर पुकारते हैं । तो इसका अर्थ है कि वह स्रष्टा नहीं है । बल्कि वह सृजन है । क्योंकि जैसे ही हम कहते हैं कि ईश्वर स्रष्टा है । हमने उसे व्यक्ति बना दिया । और न केवल हमने उसे व्यक्ति बना दिया । हमने अस्तित्व को दो में बांट दिया - स्रष्टा और सृजन । द्वैत आ गया । उपनिषद कहते हैं कि - वह सृजन है । अथवा अधिक ठीक होगा कहना कि वह सृजनात्मकता है । सृजन की शक्ति है ।

05 जनवरी 2016

सूचना का अधिकार -RTI

मुझे सूचना कौन देगा ? मैं आवेदन किसे जमा करूं ?
सभी सरकारी विभागों के एक या एक से अधिक अधिकारियों को लोक सूचना अधिकारी नियुक्त किया गया है । आपको अपना आवेदन उन्हें ही जमा करना है । यह उनकी ज़िम्मेदारी है कि वे आपके द्वारा मांगी गई सूचना विभाग की विभिन्न शाखाओं से इकट्ठा करके आप तक पहुंचाएं । इसके अलावा बहुत से अधिकारी सहायक लोक सूचना नियुक्त किए गए हैं । इनका काम सिर्फ जनता से आवेदन लेकर उसे सम्बंधित जन सूचना अधिकारी के पास पहुंचाना है ।

मुझे जन सूचना अधिकारी  के पते की जानकारी कैसे मिलेगी ?
यह पता लगाने के बाद कि आपको किस विभाग से सूचना मांगनी है । लोक सूचना अधिकारी के विषय में जानकारी उसी विभाग से मांगी जा सकती है । पर यदि आप उस विभाग में नहीं जा पा रहे हैं । या विभाग आपको जानकारी नहीं दे रहा । तो आप अपना आवेदन इस पते पर भेज सकते हैं - लोक सूचना अधिकारी, द्वारा - विभाग प्रमुख ( विभाग का नाम व पता । यह उस विभाग प्रमुख की ज़िम्मेदारी होगी कि इसे सम्बंधित लोक सूचना अधिकारी के पास पहुंचाए । आप विभिन्न सरकारी वेबसाइटों से भी लोक सूचना अधिकारी की सूची प्राप्त कर सकते हैं । जैसे -www.rti.gov.in.

क्या कोई जन सूचना अधिकारी मेरा आवेदन यह कह कर अस्वीकार कर सकता है कि आवेदन या उसका कोई हिस्सा उससे  सम्बंधित नहीं हैं ?
नहीं वह ऐसा नहीं कर सकता । अनुच्छेद 6 ( 3 )  के अनुसार वह सम्बंधित विभाग के पास आपके आवेदन को भेजने और इसके बारे में आपको सूचित करने के लिए बाध्य है ।

यदि किसी विभाग ने लोक सूचना की नियुक्ति न की हो । तो क्या करना चाहिए ?
अपना आवेदन लोक सूचना अधिकारी द्वारा विभाग प्रमुख के नाम से नियत शुल्क के साथ  सम्बंधित सरकारी अधिकारी को भेज दें । आप अनुच्छेद 18 के तहत राज्य के सूचना आयोग से भी शिकायत कर सकते हैं । सूचना आयुक्त के पास ऐसे अधिकारी पर 25 000 रूपये का जुर्माना लगाने का अधिकारी है । जिसने आपका आवेदन लेने से इंकार किया हैं । शिकायत करने के लिए आपको सिर्फ  सूचना आयोग को एक साधारण पत्र लिखकर यह बताना है कि फलां विभाग ने  अभी तक लोक सूचना अधिकारी की नियुक्ति नहीं की है । और उस पर जुर्माना लगना चाहिए ।

क्या लोक सूचना अधिकारी मुझे सूचना देने से मना कर सकता है ।
लोक सूचना अधिकारी सूचना के अधिकारी कानून के अनुच्छेद 8 में बताए गए विषयों से सम्बंधित  सूचनाएं देने से मना कर सकता है । इसमें विदेशी सरकारों से प्राप्त गोपनीय सूचनाएं, सुरक्षा अनुमानों से सम्बंधित सूचनाएं, रणनीतिक, वैज्ञानिक या देश के आर्थिक हितों से जुड़े मामले, विधान मण्डल के विशेषाधिकार हनन सम्बंधित मामले से जुड़ी सूचना शामिल हैं । अधिनियम की दूसरी अनुसूची में ऐसी 18 एजेंसियों की सूची दी गई है । जहाँ सूचना का अधिकार लागू नहीं होता है । फिर भी यदि सूचना भ्रष्टाचार के आरोपों या मानवाधिकारों के हनन से जुड़ी हुई है । तो इन विभागों को भी सूचना देनी पड़ेगी ।

क्या इसके लिए कोई शुल्क भी लगेगा ?
हाँ, इसके लिए शुल्क निम्नवत है - आवेदन शुल्क - 10 रूपये
सूचना देने का खर्च - 2 रू प्रति पृष्ठ
दस्तावेजों की जांच करने का शुल्क जांच के पहले घंटे का कोई शुल्क नहीं । पर उसके बाद हर घंटे का पांच रूपये शुल्क देना होगा । यह शुल्क केन्द्र व कई राज्यों के लिए ऊपर लिखे अनुसार है । लेकिन कुछ राज्यों में यह इससे अलग है । इस बारे में विस्तार से जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें ।

मैं शुल्क कैसे जमा कर सकता है ?
आवेदन शुल्क के लिए हर राज्य की अपनी अलग अलग व्यवस्थाएं हैं । आमतौर पर आप अपना शुल्क निम्नलिखित तरीकों से जमा करा सकते हैं -
स्वयं नकद जमा करा के ( इसकी रसीद लेना न भूलें )
डिमाण्ड ड्राफ़्ट
भारतीय पोस्टल आर्डर
मनीआर्डर से ( कुछ राज्यों में लागू )
बैंकर्स चैक से
केन्द्र सरकार से मामलों में इसे एकाउंट आफिसर्स Account Officer के नाम देय होने चाहिए ।
कुछ राज्य सरकारों ने इसके लिए निश्चित खाते खोले हैं । आपको उस खाते में शुल्क जमा करना होता है । इसके  लिए स्टेट बैंक की किसी भी शाखा में नकद जमाकर के उसकी  रसीद आवेदन के साथ नत्थी करनी होती है । या आप उस खाते के पक्ष में देय पोस्टल ऑर्डर या डीडी भी आवेदन के साथ संलग्न कर सकते हैं ।
कुछ राज्यों में आप आवेदन के साथ निर्धारित मूल्य का कोर्ट की स्टैम्प भी लगा सकते हैं ।
पूरी जानकारी के लिए कृपया सम्बंधित राज्यों के नियमों का अवलोकन करें ।

मैं अपना आवेदन कैसे जमा कर सकता हूँ ?
आप व्यक्तिगत रूप से, स्वयं लोक सूचना अधिकारी या सहायक लोक सूचना अधिकारी के पास जाकर या किसी को भेजकर आवेदन जमा करा सकते हैं । आप इसे लोक सूचना अधिकारी या सहायक लोक सूचना अधिकारी के पते पर डाक द्वारा भी भेज सकते हैं । केन्द्र सरकार के सभी विभागों के लिए 629 डाकघरों को केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी बनाया गया है । आप इनमें से किसी भी डाकघर में जाकर आवेदन और शुल्क जमा कर सकते हैं । वहाँ जाकर जब आप सूचना का अधिकारी काउंटर पर आवेदन जमा करेंगे । तो वे आपको रसीद और एक्नॉलेजमेंट देंगे । और यह उस डाकघर की ज़िम्मेदारी है कि तय समय सीमा में आपका आवेदन उपयुक्त लोक सूचना  अधिकारी तक पहुंचाया जाए । इन डाकघरों की सूची www.indiapost.gov.in/rtimanual116a html पर उपलब्ध है ।

यदि लोक सूचना अधिकारी या सम्बंधित विभाग मेरा आवेदन स्वीकार नहीं करता । तो मुझे क्या करना चाहिए ?
आप इसे पोस्ट द्वारा भेज सकते हैं । अधिनियम  की धारा 18 के अनुसार आपको सम्बंधित  सूचना आयोग में शिकायत भी करनी चाहिए । सूचना आयुक्त के पास उस अधिकारी के खिलाफ 25000  रु तक जुर्माना लगाने का अधिकारी है । जिसने आपका आवेदन लेने से मना किया है । शिकायत में आपको सूचना आयुक्त को सिर्फ एक पत्र लिखना होता है । जिसमें आप आवेदन जमा करते समय पेश आने वाली परेशानियों के विषय में बताते हुए लोक सूचना अधिकारी पर जुर्माना लगाने का निवेदन कर सकते हैं ।

क्या सूचना प्राप्त करने की कोई समय सीमा है ?
हाँ, यदि आपने जन सूचना अधिकारी के पास आवेदन जमा कर दिया है । तो आपको हर हाल में 30 दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए । यदि आपने आवेदन सहायक लोक सूचना अधिकारी के पास डाला है । तो यह सीमा 35 दिनों की है । यदि सूचना किसी व्यक्ति के जीवन और स्वतन्त्रता को प्रभावित कर सकती है । तो सूचना 48 घंटों में उपलब्ध करायी जाती है । द्वितीय अनुसूची में शामिल संगठनों के लिए यह सूचना 45 दिनों में तथा तृतीय पक्ष में 40 दिनों उपलब्ध कराने का प्रावधान है ।

क्या मुझे सूचना मांगने की वजह बतानी होगी ?
बिलकुल नहीं । आपको कोई कारण या अपने कुछ ब्योरों ( नाम, पता, फोन नं. के अलावा कोई भी अतिरिक्त जानकारी नहीं देनी पड़ती है । धारा 6 ( 2 ) में यह स्पष्ट उल्लेख है कि आवेदक से उसके संपर्क के लिए ज़रूरी जानकारी के अलावा कोई भी जानकारी नहीं मांगी जानी चाहिए ।

देश में बहुत से असरदार कानून हैं । पर उनमें से कोई काम नहीं करता ? आपको इतना विश्वास क्यों है कि यह कानून काम करेगा ?
यह कानून काम कर रहा है । ऐसा इसलिए है । क्योंकि स्वतन्त्र भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा कानून बना है । जो अधिकारियों की लापरवाही पर तुरन्त उनकी सीधी जवाबदेही तय कर देता है । यदि सम्बंधित अधिकारी आपको तय समय सीमा में सूचना उपलब्ध नहीं कराता । तो उसके बाद सूचना आयुक्त 250 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से उस पर जुर्माना लगा सकता है । यदि उपलब्ध कराई गई सूचना ग़लत है । तो अधिकतम  25000 का जुर्माना लगाया जा सकता है । आपके आवेदन को फालतू बताकर जमा करने और अधूरी सूचना उपलब्ध कराने के लिए भी जुर्माना लगाया जा सकता है । यह जुर्माना अधिकारी की तनख्वाह से काटा जाता है ।

क्या अभी तक किसी पर जुर्माना लगा है ?
हाँ, केन्द्र और राज्य सूचना आयुक्तों ने कुछ अधिकारियों पर जुर्माने लगाए हैं । महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश कर्नाटक, गुजरात और दिल्ली में कई अधिकारियों पर जुर्माना लगा है ।

क्या लोक सूचना अधिकारी पर लगा जुर्माना आवेदक को मिलता है ?
नहीं । जुर्माने की राशि सरकारी खजाने  में जमा होती है । हालांकि धारा 19 के अनुसार, आवेदक सूचना मिलने में हुई देरी के कारण हर्जाने की मांग कर सकता है ।

यदि मुझे सूचना नहीं मिलती । तो मुझे क्या करना चाहिए ?
यदि आपको सूचना नहीं मिली । या आप सूचना से असन्तुष्ट हैं । तो आप अधिनियम की धारा 19 के तहत प्रथम अपील अधिकारी के पास प्रथम अपील डाल सकते हैं ।

प्रथम अपील अधिकारी  कौन होता है ?
हर सरकारी विभाग में लोक सूचना अधिकारी से वरिष्ठ पद के एक अधिकारी को प्रथम अपील अधिकारी बनाया गया है । सूचना न मिलने या गलत मिलने पर पहली अपील इसी अधिकारी के पास की जाती है ।

क्या प्रथम अपील के लिए कोई फ़ार्म है ?
नहीं, प्रथम अपील के लिए कोई  फार्म नहीं है ( लेकिन कुछ राज्य सरकारों ने फ़ार्म निर्धारित किये हैं । प्रथम अपील अधिकारी के पते पर आप सादे काग़ज़ पर आवेदन कर सकते हैं । सूचना के अधिकारी के अपने आवेदन की एक प्रति तथा यदि लोक सूचना अधिकारी की ओर से आपको कोई जवाब मिला है । तो उसकी प्रति अवश्य संलग्न करें ।

क्या प्रथम अपील के लिए कोई शुल्क अदा करना पड़ता है ?
नहीं, प्रथम अपील के लिए आपको कोई शुल्क अदा नहीं करना है । हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने इसके लिए शुल्क निर्धारित किया है । अधिक जानकारी के लिए कृपया पुस्तक के अन्त दी गई सूची देखें ।

कितने दिनों में मैं प्रथम अपील दाखिल कर सकता हूं ?
अधूरी या गलत सूचना प्राप्ति के 30 दिन के भीतर अथवा यदि कोई सूचना नहीं प्राप्त हुई है । तो सूचना के अधिकार का आवेदन जमा करने के 60 दिन के भीतर आप प्रथम अपील दाखिल कर सकते हैं ।

यदि प्रथम अपील दाखिल करने के बाद भी सन्तुष्टिदायक सूचना न मिले ?
यदि पहली अपील दाखिल करने के पश्चात भी आपको सूचना नहीं मिली है । तो आप मामले को आगे बढाते हुए दूसरी अपील कर सकते हैं ।

दूसरी अपील क्या है ?
सूचना के अधिकारी कानून के अन्तर्गत सूचना प्राप्त करने के लिए दूसरी अपील करना, अन्तिम विकल्प है । दूसरी अपील आप सूचना आयोग में कर सकते हैं । केन्द्र सरकार के विभाग के खिलाफ अपील दाखिल करने के लिए केन्द्रीय सूचना आयोग है । सभी राज्य सरकारों के विभागों के लिए लिए राज्यों में ही सूचना आयोग हैं।

दूसरी अपील के लिए क्या कोई फार्म सुनिश्चित है ?
नहीं, दूसरी अपील दाखिल करने के लिए कोई फार्म सुनिश्चित नहीं है ( लेकिन दूसरी अपील के लिए कुछ राज्य सरकारों के अपने निर्धरित फार्म भी है । केन्द्रीय अथवा राज्य सूचना आयोग के पते पर आप साधारण  कागज पर अपील के लिए आवेदन कर सकते हैं । दूसरी अपील दाखिल करने से पूर्व अपील के नियमों को सावधानी पूर्वक पढ़ें । यदि यह अपील के नियमों के अनुरूप नहीं होगा । तो आपकी दूसरी अपील ख़ारिज़ की जा सकती है  । राज्य सूचना आयोग में अपील करने के  पूर्व राज्य के नियमों को ध्यान से पढें ।

दूसरी अपील के लिए मुझे कोई शुल्क अदा करना पड़ेगा ?
नहीं, आपको कोई शुल्क नहीं देना है ( हालांकि कुछ राज्यों ने इसके लिए शुल्क निर्धारित किये है ) अधिक  जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें

कितने दिनों में मैं दूसरी अपील दाखिल कर सकता हूँ ?
पहली अपील करने के 90 दिनों के अन्दर अथवा पहली अपील के निर्णय आने की तारीख के 90 दिन के अन्दर आप दूसरी अपील दाखिल कर सकते हैं ।

सूचना का अधिकार अधिनियम कब अस्तित्व में आया है । यदि आप कह रहे हैं कि केन्द्र सरकार ने इसे हाल ही में लागू किया है । तब आप कैसे कह सकते हैं कि बड़ी संख्या में लोगों ने इससे फायदा उठाया हैं ?
सूचना का अधिकार अधिनियम 12 अक्टूबर 2005 से अस्तित्व में आया । इससे पूर्व यह 9 राज्यों में लागू था । ये राज्य हैं - जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडू, आसाम तथा गोवा. इनमें से कई राज्यों में यह पिछले 5 वषों से लागू था । और बहुत अच्छा काम कर रहा था ।

सूचना के अधिकारों के दायरे में कौन कौन से विभाग आते हैं ?
केन्द्रीय सूचना का अधिकार अधिनियम जम्मू कश्मीर के अलावा पूरे देश में लागू है । ऐसे सभी निकाय जिनका गठन संविधान के तहत, या उसके अधीन  किसी नियम के तहत, या सरकार की किसी अधिसूचना  के तहत हुआ हो । इसके दायरे में आते हैं । साथ ही साथ वे सभी इकाईयां जो सरकार के स्वामित्व में हों । सरकार के द्वारा नियन्त्रित हों । अथवा सरकार के द्वारा पूर्ण या आंशिक रूप से वित्त पोषित हों ।

आंशिक वित्त पोषित से क्या तात्पर्य है ?
सूचना के अधिकार कानून या अन्य किसी कानून में ‘आंशिक रूप से वित्त पोषित’ की स्पष्ट व्याख्या नहीं की गई है । सम्भवत: यह इस कानून के इस्तेमाल से समय के साथ साथ स्वत: इससे सम्बंधित  मामलों में न्यायालय के फैसलों से स्पष्ट हो सकेगी ।

क्या निजी निकाय भी सूचना का अधिनियम अधिनियम के अन्तर्गत आते हैं ?
सभी निजी निकाय जो सरकार द्वारा शासित, नियन्त्रित अथवा आंशिक वित्त पोषित होते हैं । सीधे सीधे इसके दायरे में आते हैं । अन्य निजी निकाय अप्रत्यक्ष रूप से इसके दायरे में आते हैं । इसका मतलब है कि यदि कोई सरकारी विभाग किसी नियम कानून के तहत यदि निजी निकाय से कोई जानकारी ले सकता है । तो उस सरकारी विभाग में निजी निकाय से जानकारी लेने के लिए सूचना के अधिकार के तहत आवेदन किया जा सकता है ।

क्या सरकारी गोपनीयता कानून, 1923 सूचना के अधिकार के आड़े नहीं आता है । 
नहीं, सूचना का अधिकार अधिनियम  2005 की धारा 22 के अन्तर्गत सूचना का अधिकार अधिनियम, सरकारी गोपनीयता अधिनियम 1923 सहित किसी भी अधिनियम के ऊपर है । सूचना का अधिकार कानून बनने के बाद सिर्फ वही सूचना गोपनीय रखी जा सकती है । जिसकी व्यवस्था इस अधिनियम  की धारा 8 में की गई है । इसके अलावा किसी सूचना को किसी कानून के तहत गोपनीय नहीं कहा जा सकता ।

यदि किसी मामले में सूचना का कुछ हिस्सा गोपनीय हो । तो क्या शेष जानकारी प्राप्त की जा सकती है ?
हाँ, सूचना का अधिकार अधिनियम के धारा 10 के अन्तर्गत, सूचना के उस भाग की प्राप्ति हो सकती है । जिसे धारा 8 के मुताबिक गोपनीय न माना गया हो ।

क्या फाइल नोटिंग की प्राप्ति निषेध है ?
नहीं, फाइल नोटिंग सरकारी फाइलों का एक अहम भाग है । और सूचना के अधिकार में इसे उपलब्ध कराने की व्यवस्था है । यह केन्द्रीय सूचना आयोग द्वारा 31 जनवरी 2006 के एक आदेश में भी स्पष्ट किया गया है ।

सूचना प्राप्ति के पश्चात मुझे क्या करना चाहिए ?
इसका कोई एक जवाब नहीं हो सकता । यह इस बात पर निर्भर होगा कि आपने किस प्रकार की सूचना की मांग की है । और आपका मकसद क्या है । बहुत से मामलों में केवल सूचना मांगने भर से ही आपका मकसद हल हो जाता है । उदाहरण के लिए अपने आवेदन की स्थिति की जानकारी मांगने भर से ही आपका पासपोर्ट अथवा राशन कार्ड आपको मिल जाता है । बहुत से मामलों में सड़कों की मरम्मत पर पिछले कुछ महीनों में खर्च हुए पैसे का हिसाब मांगते ही सड़क की मरम्मत हो गई । इसलिए सूचना की मांग करना और सरकार से प्रश्न पूछना स्वयं एक महत्वपूर्ण कदम है । अनेक मामलों में यह स्वयं ही पूर्ण है । लेकिन अगर आपने सूचना का अधिकार का उपयोग करके भ्रष्टाचार तथा घपलों को उजागर किया है । तो आप सतर्कता विभाग, सीबीआई में सबूत के साथ शिकायत दर्ज कर सकते हैं । अथवा एफ आई आर दर्ज करा सकते हैं । कई बार देखा जाता है कि शिकायत दर्ज कराने के बाद भी दोषियों के खिलाफ कार्यवाही नहीं होती । सूचना के अधिकार के अन्तर्गत आप सतर्कता एजेंसियों पर भी उनके पास दर्ज शिकायतों की स्थितियों की जानकारी मांग कर दबाव डाल सकते हैं । घपलों को मीडिया द्वारा भी उजागर किया जा सकता है । लेकिन दोषियों को सजा मिलने का अनुभव बहुत उत्साहजनक नहीं रहा है । फ़िर भी एक बात निश्चित है, इस प्रकार सूचना मांगने और दोषियों को बेनका़ब करने से भविष्य में सुधार होगा । यह अधिकारियों को एक स्पष्ट संकेत है कि क्षेत्रों के लोग सतर्क हो गये हैं । और पहले की भांति किया गया कोई भी गलत कार्य अब छुपा नहीं रह सकेगा । इस प्रकार उनके पकड़े जाने का खतरा बढ़ गया है ।

क्या सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत सूचना मांगने और इसके माध्यम से भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने वालों को परेशान किए जाने की भी संभावना है ?
हाँ, कुछ ऐसे मामले सामने आये हैं । जिसमें सूचना मांगने वालों को शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया गया । ऐसा तब किया जाता है । जब सूचना मांगने से बड़े स्तर पर हो रहे भ्रष्टाचार का खुलासा होने वाला हो । लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि हर आवेदक को ऐसी धमकी का सामना करना पड़ेगा । सामान्यत: अपनी शिकायत की स्थिति जानने या फ़िर किसी दैनिक मामले के बारे में जानने के लिए आवेदन करने पर ऐसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है । ऐसा उन मामलों में हो सकता है । जिनके सूचना मांगने से नौकरशाही और ठेकेदारों के बीच साठगांठ का पर्दाफाश हो सकता है । या फ़िर किसी माफ़िया के गठजोड़ के बारे में पता चल सकता है ।

फिर मैं सूचना के अधिकार का प्रयोग क्यों करूं ?
पूरी व्यवस्था इतनी सड़ चुकी है कि यदि हम अकेले या साथ मिलकर इसे सुधरने की कोशिश नहीं करेंगें । तो यह कभी ठीक नहीं होगी । और अगर हम कोशिश नहीं करेंगे । तो और कौन करेगा । इसलिए हमें प्रयास तो करना ही होगा । लेकिन हमें एक योजना बनाकर इस दिशा में काम करना चाहिए । ताकि कम से कम खतरों  का सामना करना पड़े । अनुभव के साथ कुछ सुरक्षा और योजनाएं भी उपलब्ध हैं ।

ये योजनाएं क्या है ?
आप आगे आकर किसी भी मुद्दे पर सूचना के अधिकार के तहत सूचना मांगते हैं । तो आवेदन करते ही आप पर कोई हमला नहीं करेगा । पहले तो वो आपको बहलाने या जीतने का प्रयास करेंगे । इसलिए जैसे ही आप कोई असुविधाजनक आवेदन डालेंगे । कोई आपके पास आकर बड़ी विनम्रता से आवेदन वापस लेने के लिए कहेगा । आप उस आदमी की बातों से यह समझ सकते हैं कि वह कितना गम्भीर है । और वो क्या कर सकता है । अगर आपको मामला गम्भीर लगता है । तो अपने 10-15 परिचितों को उसी सार्वजनिक विभाग में वही सूचना मांगने के लिए तुरन्त आवेदन करने के लिए कहें । ये और भी अच्छा होगा । अगर आपके मित्र देश के अलग अलग हिस्सों में रहते हैं । अब किसी को पूरे देश में फैले आपके 10-15 परिचितों को एक साथ नुकसान पहुंचाना बहुत मुश्किल होगा । देश के दूसरे हिस्सों में रहने वाले आपके दोस्त डाक के माध्यम से भी आवेदन डाल सकते हैं । इसको ज्यादा से ज्यादा प्रचार देने का प्रयास करें । इससे आपको सही सूचना भी मिल जायेगी । और आपको कम से कम खतरों का सामना करना पड़ेगा ।

क्या सूचना पाकर लोग सरकारी कर्मचारियों को ब्लेकमेल भी कर सकते हैं ?
इसका जवाब जानने से पहले हम खुद से एक सवाल पूछें - सूचना का अधिकार क्या करता है ।
यह केवल सच्चाई को जनता के सामने लाता है । यह खुद  कोई सूचना नहीं बनाता । यह केवल पर्दा हटाता है । और सच्चाई को जनता के समक्ष लाता हू । क्या यह गलत है । इसका दुरूपयोग कब हो सकता है । तभी जब किसी अधिकारी ने कुछ गलत किया है । और उसकी सूचना जनता के सामने आने में पकड़े जाने का खतरा हो । सरकार के भीतर चल रही गड़बड़ी अगर जनता के सामने आती है । तो इसमें गलत ही क्या है । इसका सामने आना जरूरी है । या इसको छुपाया जाना ।
हाँ, जब ऐसी कोई सूचना किसी के द्वारा प्राप्त की जाती है । तो वह उस अधिकारी को ब्लैकमेल कर सकता है । पर हम गलत अधिकारियों की रक्षा क्यों करें । यदि किसी अधिकारी को ब्लैकमेल किया जा रहा है । तो वह भारतीय दण्ड संहिता के तहत ब्लैकमेल के खिलाफ एफ.आई.आर. कराने के लिए स्वतन्त्र है । अधिकारी को ऐसा करने दीजिए । फिर भी हम आवेदन द्वारा मांगी गई सारी सूचना को वेबसाइट पर डालकर किसी के द्वारा किसी को करने ब्लैकमेल की संभावना को दूर कर सकते हैं । आवेदक उस स्थिति में अधिकारी को ब्लैकमेल कर सकता है । जब सिर्फ आवेदक को ही सूचना मिली हो । और वह उसे आम करने की धमकी दे रहा हों । पर जब सभी जानकारियां वेबसाइट पर डाल दी जाएंगी । तो ब्लैकमेल करने की संभावना अपने आप खत्म हो जाएगी ।

क्या सरकार के पास सूचना के लिए आवेदनों का ढेर लग जाने से सामान्य सरकारी कामकाज प्रभावित नहीं होगा ?
ये डर निराधार है । दुनिया में 68 देशों में सूचना का अधिकार सफलता पूर्वक चल रहा है । संसद में इस कानून के पास होने से पहले ही देश के नौ राज्यों में यह कानून लागू था । इनमें से किसी राज्य सरकार के पास आवेदनों का ढेर नहीं लगा । ये निराधार बातें उन लोगों के दिमाग की उपज है । जिनके पास करने को कुछ नहीं है । और वे पूरी तरह निठल्ले हैं । आवेदन जमा करने की कार्यवाही में बहुत समय, ऊर्जा और कई तरह के संसाधन खर्च होते हैं । जब तक किसी को वाकई सूचना की जरूरत न हो । तब तक वह आवेदन नहीं करता ।
आईए, कुछ आंकड़ों पर गौर करें । दिल्ली में 60 से ज्यादा महीनों में 120 विभागों में 14 000 आवेदन किए गये हैं । इसका मतलब हर महीने हर विभाग में औसत 2 से भी कम आवेदन । क्या ऐसा लगता है कि दिल्ली सरकार के पास आवेदनों के ढेर लग गये होंगे । आपको यह सुनकर आश्चर्य होगा कि अमेरिकी सरकार ने 2003-04 के दौरान सूचना के अधिकार के तहत 3.2 मिलियन आवेदन स्वीकार किये हैं । यह स्थिति तब है । जब भारत के विपरीत वहाँ ज्यादातर सरकारी सूचनाएं इंटरनेट पर उपलब्ध हैं । और वहां लोगों को आवेदन करने की उतनी जरूरत नहीं है ।

कानून को लागू करने के लिए क्या बहुत ज्यादा धन की जरूरत नहीं होगी ?
अधिनियम को लागू करने के लिए जो भी पैसा लगेगा । वह एक फायदे का सौदा होगा । अमेरिका समेत बहुत से देशों ने इसे समझ लिया है । और वे अपनी सरकारों को पारदर्शी बनाने के लिए बहुत से संसाधन प्रयोग कर रहें हैं । पहली बात तो यह है कि अधिनियम में खर्च सारी राशि सरकार भ्रष्टाचार और दुव्र्यवस्था में कमी आने के कारण उसी साल वसूल कर लेती है । उदाहरण के लिए इस बात के ठोस सबूत मिले हैं कि राजस्थान में सूखा राहत कार्यक्रमों और दिल्ली में सार्वजनिक वितरण प्रणाली कार्यक्रमों में गड़बड़ी को सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रयोग से बहुत हद तक कम किया गया है । दूसरी बात यह है कि सूचना का अधिकार, लोकतन्त्र के लिए बहुत ज़रूरी है । यह हमारे मौलिक अधिकारों का हिस्सा है । सरकार में जनता की भागीदारी होने के लिए यह जरूरी है कि पहले जनता यह जाने कि क्या हो रहा है । तो जिस तरह हम अपनी संसद को चलने के लिए सारे खर्चों को ज़रूरी मानते हैं । सूचना का अधिकार अधिनयम को लागू करने के लिए भी सारे खर्चों को जरूरी मानना होगा ।

लोगों को बेतुके आवेदन करने से कैसे रोका जा सकता है ?
कोई भी आवेदन बेतुका नहीं होता । किसी के लिए पानी का कनेक्शन उसके लिए सबसे बडी समस्या हो सकती है । पर अधिकारी इसे बेतुका मान सकते हैं । नौकरशाही में कुछ निहित स्वार्थी तत्वों की ओर से बेतुके आवेदन का प्रश्न उठाया गया है । सूचना का अधिकार अधिनियम किसी भी आवेदन को निरर्थक मानकर अस्वीकृत करने का अधिकार नहीं देता । नौकरशाहों का एक वर्ग चाहता है कि लोक सूचना अधिकारी  को यह अधिकार दिया जाये कि यदि वह आवेदन को बेतुका समझे । तो उसे अस्वीकर कर दे । यदि ऐसा होता है । तो हर लोक सूचना अधिकारी हर आवेदन को बेतुका बता कर अस्वीकार कर देगा । यह अधिनियम के लिए बहुत बुरी स्थिति होगी ।

क्या फाइलों पर लिखी जाने  वाली टिप्पणियां सार्वजनिक करने से ईमानदार अधिकारी अपनी बेबाक राय लिखने से नहीं बचेंगे ?
यह गलत है । बल्कि सच तो यह है कि हर अधिकारी जब ये जानेगा कि वह जो भी फाइल में लिख रहा है । वह जनता द्वारा जांचा जा सकता है । तो उस पर जनहित से जुड़ी चीजें लिखने का दबाव होगा । कुछ ईमानदार अधिकारियों ने यह स्वीकार किया है कि सूचना का अधिकार अधिनियम ने उन्हें राजनीतिक और अन्य कई तरह के दबावों से मुक्त होने में मदद की है । अब वे सीधे कह सकते हैं कि वे गलत काम नहीं करेंगे । क्योंकि यदि किसी ने सूचना मांग ली । तो घपले का पर्दाफाश हो सकता है । अधिकारियो ने अपने वरिष्ठों से लिखित में आदेश मांगना शुरू भी कर दिया हैं । सरकार फाइल नोटिंग को अधिनियम के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखने की कोशिश करती रही है । इन कारणों को देखते हुए फाइल नोटिंग दिखाने को अधिनियम  के अधिकार क्षेत्र में बने रहना बहुत जरूरी है ।

प्रशासनिक अधिकारियों को बहुत से दबावों के अन्दर फैसले लेने पड़ते हैं । और जनता यह नहीं समझती ?
जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है । यह उनके दबावों को कम करेगा ।

क्या जटिल और वृहद जानकारियां मांगने वाले आवेदनों को अस्वीकार कर देना चाहिए ?
यदि किसी को कोई सूचना चाहिए । जो कि एक लाख पृष्ठों में समा रही है । तो वह सूचना तभी मांगेगा । जब उसे वाकई उसकी जरूरत होगी । क्योंकि 2 रूपये प्रति पृष्ठ के हिसाब से उसे 2 लाख रू का भुगतान करना होगा । यह एक पहले से ही मौजूद बाधा है । यदि आवेदन सिर्फ इस आधार  पर रद्द किए जाएंगे । तो आवेदक 100 पृष्ठों की सूचनाएं मांगने वाले 1000 आवेदन डाल सकता है । जिससे किसी को भी कोई फायदा नहीं पहुंचने वाला । इसलिए आवेदन इस आधार पर अस्वीकृत नहीं किए जा सकते ।

क्या लोगों को सिर्फ अपने से जुड़ी सूचना मांगनी चाहिए । उन्हें सरकार के उन विभागों से जुड़ी सूचनाएं नहीं मांगनी चाहिए । जिसका उनसे कोई सम्बंन्ध नहीं है ?
अधिनियम  की धारा 6 ( 2 ) में स्पष्ट कहा गया है कि आवेदक से सूचना मांगने का कारण नहीं पूछा जाएगा । सूचना का अधिकार अधिनियम इस तथ्य पर आधरित है कि जनता टैक्स देती है । और इसलिए उसे जानने का हक है कि उसका पैसा कहां खर्च हो रहा है । और उसका सरकारी तन्त्र कैसा चल रहा है । इसलिए जनता को सरकार के हर पक्ष से सब कुछ जानने का अधिकार है । चाहे मुद्दा उससे प्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा हो । या न जुड़ा हो । इसलिए दिल्ली में भी रहने वाला कोई व्यक्ति तमिलनाडु से जुड़ी कोई भी सूचना मांग सकता है ।
साभार - अज्ञात