21 अक्तूबर 2013

वासना और जन्म का सम्बन्ध क्या है ?

पेन किलर यानी दर्द निवारक दवा - इबुप्रोफेन, डिक्लोफेनेक असेक्लोफेनेक आदि लगभग हर घर में मौजूद रहते हैं । जोड़ों के दर्द से लेकर कमर, दाँत दर्द तक सभी के लिए धडल्ले से उपयोग करते हैं । चलिए इस बात को यहीं छोड देते हैं । और आते हैं - गिद्धों की जनसंख्या पर । जी हाँ ! पिछले 15-20 सालों से गिद्ध भारत में लगभग खत्म हो गए हैं । और वन विभाग ने इन्हें ढूँढने पर 1 लाख रुपया इनाम रखा है ! पर इन सब बातों का पेन किलर से क्या सम्बन्ध है ? सुनकर आप चौंक जायेंगे । भारत में गिद्धों के खत्म होने का एकमात्र कारण है - डीक्लोफेनेक पेन किलर ( गूगल सर्च कीजिये ) पशुपालक  अपने लंगड़े जानवरों को डिक्लोफेनेक देते हैं । और वो भेड बकरियाँ जल्दी मर जाते हैं । किडनी फेल होने से । और

कत्लखानों में उन्ही के बचे हुए टुकडों को खाने से गिद्धों की संख्या लुप्त प्रायः हो गई । अब आते हैं इंसानों की ओर । आजकल हर छोटे से छोटे शहर में किडनी सेंटर खुल गए हैं । किडनी खरीदना और बेचना । लाखों करोडों का बिजनेस हो गया है । आज से 10-15 साल पहले 1 भी सेंटर नहीं थे । जी हाँ ! आप सही सोच रहे हैं । किडनी फेल होने का सबसे बड़ा मुख्य कारण है - पेन किलर । यदि इन पेन किलर पर प्रतिबन्ध लगाया जाए । तो भारत में सारे किडनी सेंटर की दुकान बन्द हो जायेंगी । और भारत 1 बहुत बड़े किडनी रोग से मुक्त हो जायेगा । 1 बहुत बड़े अंतर्राष्ट्रीय षडयंत्र का पर्दाफाश !
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यक्ष और धर्मराज युधिष्ठिर के बीच संवाद - महाकाव्य महाभारत में " यक्ष युधिष्ठिर संवाद " नाम से 1 पर्याप्त चर्चित प्रकरण है । संक्षेप में उसका विवरण यूं है । पांडव जन अपने 13 वर्षीय वनवास पर वनों में विचरण कर

रहे थे । तब उन्हें 1 बार प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश हुई । पानी का प्रबंध करने का जिम्मा प्रथमतः सहदेव को सौंपा गया । उसे पास में 1 जलाशय दिखा । जिससे पानी लेने वह वहाँ पहुँचा । जलाशय के स्वामी अदृश्य यक्ष ने आकाशवाणी के द्वारा उसे रोकते हुए पहले कुछ प्रश्नों का उत्तर देने की शर्त रखी । जिसकी सहदेव ने अवहेलना कर दी । यक्ष ने उसे निर्जीव ( संज्ञा शून्य ?) कर दिया । उसके न लौट पाने पर बारी बारी से क्रमशः नकुल, अर्जुन एवं भीम ने पानी लाने की जिम्मेदारी उठाई । वे उसी जलाशय पर पहुँचे । और यक्ष की शर्तों की अवज्ञा करने के कारण सभी का वही हश्र हुआ । अंत में युधिष्ठिर स्वयं उस जलाशय पर पहुँचे । यक्ष ने उन्हें आगाह किया । और अपने प्रश्नों के उत्तर देने के लिए कहा । युधिष्ठिर ने धैर्य दिखाया । यक्ष को संतुष्ट किया । 

और जल प्राप्ति के साथ यक्ष के वरदान से भाइयों का जीवन भी वापस पाया । यक्ष ने अंत में यह भी उन्हें बता दिया कि वे धर्मराज हैं । और उनकी परीक्षा लेना चाहते थे । उस समय संपन्न यक्ष युधिष्ठिर संवाद वस्तुतः काफी लंबा है । संवाद का विस्तृत वर्णन वन पर्व अध्याय 312 एवं 313 में दिया गया है । यक्ष ने सवालों की झङी लगाकर युधिष्ठिर की परीक्षा ली । अनेकों प्रकार के प्रश्न उनके सामने रखे । और उत्तरों से संतुष्ट हुए । यक्ष प्रश्न । यक्ष - कौन हूँ मैं ? युधिष्ठिर - तुम न यह शरीर हो । न इन्द्रियां । न मन । न बुद्धि । तुम शुद्ध चेतना हो । वह चेतना जो सर्व साक्षी है । यक्ष - जीवन का उद्देश्य क्या है ? युधिष्ठिर - जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है । जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है । उसे जानना ही मोक्ष है । यक्ष - जन्म का कारण क्या है ? युधिष्ठिर - अतृप्त वासनाएं, कामनाएं और कर्मफल । ये ही जन्म का कारण हैं । यक्ष - जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है ? युधिष्ठिर - जिसने स्वयं को, उस आत्मा को जान लिया । वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है । यक्ष - वासना और जन्म का सम्बन्ध क्या है ? युधिष्ठिर - जैसी वासनाएं वैसा जन्म । यदि वासनाएं पशु जैसी । तो पशु योनि में जन्म । यदि वासनाएं मनुष्य जैसी । तो मनुष्य योनि में जन्म । यक्ष - संसार में दुःख क्यों है ? युधिष्ठिर - लालच, स्वार्थ, भय संसार के दुःख का कारण हैं । यक्ष - तो फिर ईश्वर ने दुःख की रचना क्यों की ? युधिष्ठिर - ईश्वर ने संसार की रचना की । और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुःख और सुख की रचना की । यक्ष - क्या ईश्वर है ? कौन है वह ? क्या रुप है उसका ? क्या वह स्त्री है या पुरुष ? युधिष्ठिर - हे यक्ष ! कारण

के बिना कार्य नहीं । यह संसार उस कारण के अस्तित्व का प्रमाण है । तुम हो । इसलिए वह भी है । उस महान कारण को ही आध्यात्म में ईश्वर कहा गया है । वह न स्त्री है । न पुरुष । यक्ष - उसका स्वरूप क्या है ? युधिष्ठिर - वह सत चित आनन्द है । वह अनाकार ही सभी रूपों में अपने आपको स्वयं को व्यक्त करता है । यक्ष - वह अनाकार स्वयं करता क्या है ? युधिष्ठिर - वह ईश्वर संसार की रचना, पालन और संहार करता है । यक्ष - यदि ईश्वर ने संसार की रचना की । तो फिर ईश्वर की रचना किसने की ? युधिष्ठिर - वह अजन्मा अमृत और अकारण है ।  यक्ष - भाग्य क्या है ? युधिष्ठिर - हर क्रिया, हर कार्य का 1 परिणाम है । परिणाम

अच्छा भी हो सकता है । बुरा भी हो सकता है । यह परिणाम ही भाग्य है । आज का प्रयत्न । कल का भाग्य है । यक्ष - सुख और शान्ति का रहस्य क्या है ? युधिष्ठिर - सत्य, सदाचार, प्रेम और क्षमा सुख का कारण हैं । असत्य, अनाचार, घृणा और क्रोध का त्याग शान्ति का मार्ग है । यक्ष - चित्त पर नियंत्रण कैसे संभव है ? युधिष्ठिर - इच्छाएं, कामनाएं चित्त में उद्वेग उत्पन्न करती हैं । इच्छाओं पर विजय चित्त पर विजय है । यक्ष - सच्चा प्रेम क्या है ? युधिष्ठिर - स्वयं को सभी में देखना । सच्चा प्रेम है । स्वयं को सर्व व्याप्त देखना । सच्चा प्रेम है । स्वयं को सभी के साथ 1 देखना सच्चा प्रेम है । यक्ष - तो फिर मनुष्य सभी से प्रेम क्यों नहीं करता ? युधिष्ठिर - जो स्वयं को सभी में नहीं देख सकता । वह सभी से प्रेम नहीं कर सकता । यक्ष - आसक्ति क्या है ? युधिष्ठिर - प्रेम में मांग, अपेक्षा, अधिकार आसक्ति है । यक्ष - बुद्धिमान कौन है ? युधिष्ठिर - जिसके पास विवेक है । यक्ष - नशा क्या है ? युधिष्ठिर - आसक्ति । यक्ष - चोर कौन है ? युधिष्ठिर - इन्द्रियों के आकर्षण । जो इन्द्रियों को हर लेते हैं । चोर हैं । यक्ष - जागते हुए भी कौन सोया हुआ है ? युधिष्ठिर - जो आत्मा को नहीं जानता । वह जागते हुए भी सोया है । यक्ष - कमल के पत्ते में पड़े जल की तरह अस्थायी क्या है ? युधिष्ठिर -

यौवन, धन और जीवन । यक्ष - नरक क्या है ? युधिष्ठिर - इन्द्रियों की दासता नरक है । यक्ष - मुक्ति क्या है ? युधिष्ठिर - अनासक्ति ही मुक्ति है । यक्ष - दुर्भाग्य का कारण क्या है ? युधिष्ठिर - मद और अहंकार । यक्ष - सौभाग्य का कारण क्या है ? युधिष्ठिर - सतसंग । और सबके प्रति मैत्री भाव । यक्ष - सारे दुःखों का नाश कौन कर सकता है ? युधिष्ठिर - जो सब छोड़ने को तैयार हो । यक्ष - मृत्यु पर्यंन्त यातना कौन देता है ? युधिष्ठिर - गुप्त रूप से किया गया अपराध । यक्ष - दिन रात किस बात का विचार करना चाहिए ? युधिष्ठिर - सांसारिक सुखों की क्षण भंगुरता का । यक्ष - संसार को कौन जीतता है ? युधिष्ठिर - जिसमें सत्य और श्रद्धा है । यक्ष - भय से मुक्ति कैसे संभव है ? युधिष्ठिर - वैराग्य से । यक्ष - मुक्त कौन है ? युधिष्ठिर - जो अज्ञान से परे है । यक्ष - अज्ञान क्या है ? युधिष्ठिर - आत्मज्ञान का अभाव अज्ञान है । यक्ष - दुःखों से मुक्त कौन है ? युधिष्ठिर - जो 

कभी क्रोध नहीं करता । यक्ष - वह क्या है । जो अस्तित्व में है । और नहीं भी ? युधिष्ठिर - माया । यक्ष - माया क्या है ? युधिष्ठिर - नाम और रूपधारी नाशवान जगत । यक्ष - परम सत्य क्या है ? युधिष्ठिर - बृह्म । 
- सभी स्नेही मित्रों को ! नमो नारायण ! 1 छोटा सा निवेदन है कि ये पोस्ट अगर आपको पसंद आती है । तो इसे शेयर अवश्य करियेगा । तो मेरा भी हौसला बढ़ेगा । जय श्रीकृष्ण ! वंदे मातृसंस्कृतम ।
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लड़कों के 5 दुख ।
1 लड़की अगर दिल से अच्छी हो । तो अच्छी दिखती नहीं है ।
2 लड़की अगर अच्छी दिखे । तो दिल से अच्छी होती नहीं है ।
3 लड़की अगर सुंदर भी हो । और अच्छी भी । तो सिंगल नहीं होती ।
4 सुंदर और अच्छी लड़की । अगर सिंगल मिल भी जाए । तो उसका एक तगड़ा सा भाई होता है ।
5 सबसे दुख वाली बात । अगर सुंदर और अच्छी लड़की का तगड़ा भाई नहीं हुआ । तो दोस्तो ! वह हर लड़के से भाई जैसा ही बर्ताव करती है । M.S.D
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पुण्य व पाप कर्म भोग का विधान -  पुण्य कर्म भोग में मनुष्य की स्वतंत्रता रहती है । परंतु पाप कर्म भोग में मनुष्य की परतंत्रता रहती है । प्रारब्ध कर्मों के फलस्वरुप जो अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियॉ आती हैं । उन

दोनों में अनुकूल परिस्थिति ( पुण्य कर्म भोग ) का स्वरुप से त्याग करने में मनुष्य स्वतंत्र है । पर प्रतिकूल परिस्थिति ( पाप कर्म भोग ) का स्वरुप से त्याग करने में मनुष्य परतंत्र हैं ।
इसका कारण यह है कि अनुकूल परिस्थिति ( पुण्य कर्म भोग ) दूसरों के हित करने, उन्हें सुख देने के फलस्वरुप बनी हैं । और प्रतिकूल परिस्थिति ( पाप कर्म भोग ) दूसरो को दुःख देने के फलस्वरुप बनी हैं । मित्रो ! इसे हम 1 दृष्टांत के द्वारा समझने का प्रयास करते हैं । माना श्याम ने कन्हैया को 500 रुपये उधार दिये । कन्हैया ने वादा किया कि 1 महीने बाद मैं ब्याज सहित रुपये श्याम को लौटा दूंगा ।
महीना बीत गया । पर कन्हैया ने रुपये नहीं लौटाये । तो श्याम कन्हैया के घर पहुँचा । और बोला - तुमने वादे के अनुसार 1 महीने बाद रुपये वापस नहीं दिये । अब दो ।
कन्हैया ने कहा - अभी मेरे पास रुपये नहीं हैं । परसों वापस कर दूंगा ।
श्याम 3 दिन बाद कन्हैया के पास पहुंचा । और बोला - लाओ मेरे रुपये । कन्हैया ने कहा - अभी तक मैं आपके रुपये नहीं जुटा सका । परसों जरुर दे दूंगा ।  तीसरे दिन फिर श्याम अपने रुपये लेने पहुंचा । तो कन्हैया ने बोला कि आप कल आना । कल जरुर दे दूंगा । दूसरे दिन श्याम फिर पहुंचा । और तगादा किया - लाओ मेरे रुपये । तो कन्हैया ने कहा - रुपये जुटे नहीं । मेरे पास रुपये हैं ही नहीं । तो मै कहाँ से दूं ? परसों आना ।
कन्हैया की बाते सुनकर श्याम को क्रोध आ गया । और कल परसों कल परसों करता है । रुपये वापस करता नहीं । ऐसा कहकर आवेश में श्याम ने कन्हैया के 5 जूते मार ठोंके । कन्हैया ने पुलिस में शिकायत दर्ज कर दी । पुलिस ने केस बनाकर श्याम कोर्ट में बुलाया । और पूछा - तुमने इसके ( कन्हैया के ) घर पर जाकर जूते मारे हैं ? तो श्याम बोला - हाँ साहब ! मैंने इसके जूते मारे हैं । मजिस्ट्रेट ने पूछा - क्यों मारे ?
श्याम ने उत्तर दिया - इसको मैंने रुपये उधार दिये थे । और इसने मुझसे वायदा किया था । 1 महीने बाद रुपये ब्याज सहित लौटा दूंगा । महीना बीत जाने पर मैंने इसके घर पर जाकर रुपये माँगे । तो कल परसों कल परसों कहकर इसने मुझे इसने चक्कर कटा कटाकर बहुत तंग किया ।  इस पर मैंने क्रोध में आकर इसे 5 जूते मार दिये । तो सरकार ! 5 जूतों के 10-20 रुपये काटकर शेष रुपये मुझे दिला दीजिये ।
मजिस्ट्रेट ने हँसकर कहा - यह फौजदारी कोर्ट है । यहाँ रुपये वापस दिलाने का कानून ( नियम ) नहीं हैं । यहाँ दण्ड देने का कानून हैं । इसीलिए आपको जूते मारने के बदले कैद या जुर्माना भोगना ही पड़ेगा । आपको रुपये वापस लेने हों । तो दीवानी कोर्ट में जाकर शिकायत दर्ज करो । वहाँ रुपये दिलाने का कानून ( नियम ) है । क्योंकि दोनों विभाग अलग अलग हैं । अतः तुम्हारे कहने से नहीं नियम के अनुसार 10-20 रुपये काटकर जूता मारने की सजा माफ नहीं दी की जा सकती । इसे भोगना होगा ।
इस तरह अशुभ या धर्म विरुद्ध कर्म का फल जो प्रतिकूल परिस्थिति ( पाप कर्म भोग ) है । वह " फौजदारी " है । इसीलिए उसका स्वरुप से त्याग नहीं कर सकते । और शुभ या धर्म सम्मत कर्म का फल । जो अनुकूल परिस्थिति ( पुण्य कर्म भोग ) हैं । वह " दीवानी " होने से उसका स्वरुप से त्याग किया जा सकता हैं । अतः पाप कर्म भोग में मनुष्य परतंत्र होता है । जबकि पुण्य कर्म भोग में मनुष्य स्वतंत्र होता हैं । इससे यह भी सिद्ध हुआ कि मनुष्य के शुभ अशुभ कर्मों के विभाग अलग अलग हैं । इसीलिए शुभ ( पुण्य कर्मो ) और अशुभ ( पाप कर्मों ) का अलग अलग ही संग्रह होता है । स्वाभाविक रुप से यह एक दूसरे से नहीं कटते हैं । अर्थात पापों से पुण्य नहीं कटते । और पुण्यों से पाप नहीं कटते । हाँ ! अगर कोई मनुष्य पाप काटने के उद्देश्य से ( प्रायश्चित रुप से ) शुभ कर्म करता है । तो उसके पाप कर्म भोग कट सकते हैं | जय श्रीराम । - स्वामी रामसुख दास जी के प्रवचनों से संकलित । Chandra Shekhar Sharma
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प्रकृति के साथ छेड़छाड़ ! बहुत खतरनाक है । जानवर और मनुष्य के DNA को मिलाकर हाइब्रिड की उत्पत्ति । http://www.youtube.com/watch?v=gwGZEkW5n14&feature=youtu.be

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