04 नवंबर 2012

मतलब सा़फ अर्थव्यवस्था की चिंता कम चुनाव जीतने ज़्यादा


सरकार का नया कारनामा । किसान कर्ज माफी घोटाला । आने वाले दिनों में UPA सरकार की फिर किरकिरी होने वाली है । 52 000 करोड़ का नया घोटाला सामने आया है । इस घोटाले में ग़रीब किसानों के नाम पर पैसों की बंदरबांट हुई है । किसाऩों के ऋण मा़फ करने वाली स्कीम में गड़बड़ी पाई गई है । स्कीम का फायदा उन लोगों ने उठाया । जो पात्र नहीं थे । इस स्कीम से ग़रीब किसानों को फायदा नहीं मिला । आश्चर्य है कि इस स्कीम का सबसे ज़्यादा फायदा उन राज्यों को हुआ । जहाँ कांग्रेस को लोकसभा चुनाव  2009 में ज़्यादा सीटें मिली । इस स्कीम में सबसे ज़्यादा खर्च उन राज्यों में हुआ । जहाँ कांग्रेस या UPA की सरकार है । CAG ने किसानों के ऋण मा़फ करने वाली स्कीम में गड़बड़ियां पाई हैं । बड़ा सवाल यह है । क्या कृषि ऋण के नाम पर राजनीतिक फायदा उठाया गया ? क्या इस स्कीम का रिश्ता चुनाव से है ? क्या इस स्कीम का फायदा ग़रीब किसानों की जगह राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने उठाया ? अगर गड़बड़ियां हुई हैं । तो क्या CAG फिर 1 ऐसी रिपोर्ट पेश करेगी । जिसमें मनमोहन सिंह सरकार की करतूतों का पर्दाफाश होगा । खबर यह भी है कि CAG रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ मिलकर इस स्कीम से फायदा उठाने वाले लोगों की तहक़ीक़ात कर रही है । FEB 2008 में चुनाव से पहले UPA सरकार ने किसानों के ऋण मा़फ करने की नीति का ऐलान किया । इसके तहत किसानों के 70 000 करोड़ रुपये के ऋण मा़फ किए जाने थे । सरकार ने जैसे ही इस नीति की घोषणा की । किसानों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई । कुछ लोगों ने

इस फैसले को ऐतिहासिक बताया । इस स्कीम का फायदा उन किसानों को होता । जिन्होंने बैंकों से खेती के लिए ऋण लिए थे । यह फैसला अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के अर्थशास्त्र के तर्कों से ज़्यादा 1 राजनीतिक चालबाज़ी थी ।  2009 में चुनाव होने थे । जबसे UPA की सरकार बनी । तबसे किसान परेशान थे । क्योंकि कृषि क्षेत्र में दी जाने वाली सब्सिडी में मनमोहन सिंह लगातार कटौती कर रहे थे । और उन पर उद्योग जगत को ज़्यादा से ज़्यादा फायदा पहुँचाने की धुन सवार थी । चुनाव में वोट तो किसान ही देते हैं । इसलिए उनकी नाराज़गी मिटाने के लिए मनमोहन सरकार ने यह मास्टर स्ट्रोक खेला । पहले 2G घोटाले ने देश के 

लोगों के होश उड़ाए । फिर कॉमन वेल्थ गेम्स से पूरी दुनिया को पता चला कि बिना भृष्टाचार के इस देश में कोई काम नहीं होता । 1 के बाद 1 कई घोटाले उजागर होते गए । 1 ऐसा सिलसिला शुरू हुआ । जिससे लोगों ने सरकारी घोटालों को नियति मान लिया । मनमोहन सिंह भृष्टाचार रोकने की झूठी तसल्ली देते रहे । लेकिन कोई ठोस क़दम नहीं उठाया । राजनीति में नैतिक पतन इस स्तर पर पहुंच गया कि मंत्री नेता घोटाले में फंसने के बावजूद तर्क देते हैं । और जब तर्क काम नहीं करता । तो धमकियां देने लगते हैं । इस स्कीम के तहत क़रीब 3 करोड़ 70 लाख किसानों के ऋण सरकार ने मा़फ कर दिए । मजेदार बात यह कि इससे कांग्रेस को जमकर फायदा हुआ । आंध्र प्रदेश में कुल संवितरण 11 000 करोड़ का हुआ । लोक सभा चुनाव में कांग्रेस के 33 उम्मीदवार सांसद बने । मतलब यह कि आंध्र प्रदेश में कांग्रेस को भारी बहुमत मिला । इसी तरह जहाँ जहाँ इस स्कीम को सफलता पूर्वक लागू किया गया । वहाँ चुनाव में कांग्रेस पार्टी की जीत हुई । हैरान करने वाला परिणाम उत्तर प्रदेश में दिखा ।  2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हैसियत U.P में SP और BSP के बराबर हो गई । जबकि कांग्रेस के पास न तो नेता थे । और न समर्थन । महाराष्ट्र में भी स्कीम का फायदा कांग्रेस पार्टी को हुआ । स़िर्फ इन 3 राज्यों से कांग्रेस ने 69 सीटों पर क़ब्ज़ा किया । सवाल यह है कि इन राज्यों 

में इस स्कीम का फायदा उठाने वाले लोग कौन हैं ? जिन ग़रीब किसानों के लिए यह योजना बनाई गई । क्या उन्हें इसका फायदा मिला ? क्या इसका फायदा उठाने वाले लोग राजनीतिक कार्यकर्ता हैं ?
जब स्कीम का ऐलान किया गया । तब कई लोगों ने संशय व्यक्त किया था कि इस नीति का फायदा स़िर्फ अमीर किसानों को होगा । क्योंकि ग़रीब किसानों को बैंक वैसे भी ऋण नहीं देते । बैंक अधिकारी ग़रीब किसानों को आसानी से ऋण नहीं देते । इसलिए ग़रीब किसान स्थानीय महाजनों से ही पैसे उधार लेते हैं । यह सच्चाई हर उस शख्स को पता है । जो गांवों के बारे में थोड़ी भी जानकारी रखता है । सरकार और उसके अधिकारियों को इस सच्चाई का पता न हो । इस पर यक़ीन नहीं होता ।  इसके बावजूद 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले ऋण मा़फ करने

की नीति लागू करने का मतलब सा़फ है कि सरकार की मंशा कुछ और थी । ग़रीबों को फायदा पहुंचाना । तो स़िर्फ 1 बहाना था । असल मक़सद इस नीति का राजनीतिक इस्तेमाल करना था । यहीं से शुरू होती है । UPA सरकार के 1 और घोटाले की दास्तां । 1 ऐसा घोटाला । जिसमें पहली बार सरकारी खजाने के पैसों की राजनीतिक कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच बंदरबांट हुई । पहले अधिकारी । मंत्री । नेता । एवं बड़े बिजनेस मैन या फिर उनके गठजोड़ से घोटालों को अंजाम दिया जाता था । UPA सरकार के कार्यकाल के दौरान ऐसी कई योजनाएं लागू की गईं । जिनसे आम आदमी भृष्टाचार और घोटालों में शामिल हुआ । किसानों के ऋण मा़फ करने की स्कीम में जो घोटाला हुआ है । उसमें कई लोग शामिल हैं । CAG ने किसानों के ऋण मा़फ 

करने वाली स्कीम में गड़बड़ियां पाई हैं । सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कृषि ऋण के नाम पर राजनीतिक फायदा उठाया गया ? क्या इस स्कीम का रिश्ता चुनाव से है ? क्या इस स्कीम का फायदा ग़रीब किसानों की जगह राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने उठाया ? अगर गड़बड़ियां हुई हैं । तो क्या CAG फिर 1 ऐसी रिपोर्ट पेश करेगी । जिसमें मनमोहन सरकार की करतूतों का पर्दाफाश होगा । थोड़ी गहराई में जाते ही पता चलता है कि इस स्कीम का राजनीतिक इस्तेमाल हुआ है । सबसे ज़्यादा तमिलनाडु में ऋण मा़फ किए गए । यहाँ पर DMK और कांग्रेस की गठबंधन सरकार थी । इसके बाद आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में इस स्कीम के तहत सबसे ज़्यादा ख़र्च हुआ । इस

स्कीम के तहत ख़र्च हुई कुल रकम का 52% हिस्सा 6 राज्यों एवं केंद्र शासित राज्यों पर ख़र्च हुआ । जहाँ कांग्रेस या UPA गठबंधन की सरकार थी । ये राज्य हैं - आंध्र प्रदेश । महाराष्ट्र । दिल्ली । हरियाणा । तमिलनाडु एवं चंडीगढ़ । मजेदार बात यह है कि लोकसभा चुनावों में इन राज्यों से सबसे ज़्यादा सीटें कांग्रेस ने जीतीं । क्या इस स्कीम का राजनीति से कोई रिश्ता है ? मनमोहन सिंह विश्वविख्यात अर्थशास्त्री हैं । लेकिन लगता है कि वह अपने ज्ञान का इस्तेमाल योजनाएं बनाने में नहीं करते हैं । भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक़  2000 से लेकर 2010 के बीच कृषि ऋण का कुल संवितरण 775% बढ़ा है । लेकिन न तो उपज में वृद्धि हुई है । और न कृषि से जुड़े बाज़ार में इज़ा़फा हुआ । सबसे हैरानी की बात यह है कि किसानों द्वारा साहूकारों से ऋण लेने में भी कोई कमी नहीं देखी गई । दूसरी तऱफ योजना आयोग यह जानकारी देता है कि भारत के 12.8 करोड़ ज़मीन मालिक किसानों में से क़रीब 8 करोड़ किसान अब भी ऋण की संस्थागत प्रणाली से बाहर हैं । इसका मतलब सा़फ है कि छोटे एवं

भूमिहीन किसान । जिन्हें पैसे की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है । वह ऐसी नीतियों का इस्तेमाल नहीं कर पाते । इसके अलावा यह बात भी सामने आ चुकी है कि बड़े किसान । जिनकी पहुँच बैंकों तक है । वे कृषि ऋण तो लेते हैं । लेकिन उस पैसे का उपयोग ग़ैर कृषि उद्देश्यों में करते हैं । मतलब यह कि इस अत्यधिक सब्सिडी वाले ऋण का दुरुपयोग कर रहे हैं । वे कम ब्याज पर बैंक से ऋण लेते हैं । लेकिन दूसरे बैंकों में उसी पैसे को फिक्सड डिपोजिट कर देते हैं । और घर बैठे 4.5% ब्याज उठाते हैं । या फिर वह पैसा दूसरी आकर्षक वित्तीय योजनाओं में लगा देते हैं । जहाँ उन्हें अधिक फायदा होता है । उन्हें लगता है कि चुनाव के समय सरकार ऋण मा़फ कर 

देगी । इसलिए वे भुगतान नहीं करते । इन सच्चाइयों से केंद्र सरकार अवगत है । लेकिन इसके बावजूद उसने 2008 में कृषि ऋण मा़फ करने की घोषणा करके ऋण भुगतान पर गलत असर डाला । UPA सरकार यहीं नहीं रुकी । जो लोग समय पर ऋण का भुगतान करते हैं । उन्हें 2% ब्याज की भी छूट दे दी । इसका भी उल्टा असर देखने को मिला । किसानों को ऋण देने का संपूर्ण दृश्य यह है कि बैंकों से मिलने वाले कृषि ऋण का फायदा बड़े एवं अमीर किसान उठाते हैं । और जो छोटे ग़रीब किसान हैं । वे इन योजनाओं का फायदा नहीं उठा पाते । इस मामले में 1 और महत्वपूर्ण बात है कि किसानों को ऋण देने वाले बैंकों के पास उन लोगों की 1 लिस्ट है । जिन्हें वे बार बार ऋण देते हैं । उस लिस्ट की जांच होनी चाहिए । ताकि यह पता चल सके कि इस बंदरबांट में कहीं बैंक

भी तो हिस्सेदार नहीं हैं । अगर भूमिहीन छोटे ग़रीब किसानों के ऋण मा़फ करने की नीति बनती है । तब भी सरकार की दलील को समझा जा सकता है । लेकिन अगर वह ग़रीब किसानों के नाम पर योजनाएं बनाए । और अमीर किसानों को फायदा पहुँचाए । तो यह स़िर्फ धोखा ही नहीं । बल्कि यह 1 घोटाला है । यह घोटाला 2G और कोयला घोटाले से ज़्यादा खतरनाक है । बड़े घोटालों में तो किसी नेता या मंत्री की साख ख़राब होती है । लेकिन जब घोटाला ज़मीनी स्तर पर फैल जाता है । जब ग़रीबों के नाम पर योजनाबद्ध तरीक़े से घोटालों को अंजाम दिया जाता है । तो आम आदमी का सरकार और प्रजातंत्र से विश्वास 

उठ जाता है । अगर ग़रीब किसानों को राहत देने की कोई स्कीम बनती है । तो उस पर किसे आपत्ति हो सकती है । लेकिन अगर जनता के पैसों का इस्तेमाल ग़रीबों के नाम पर सरकार अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में करे । तो उसका विरोध होना चाहिए । इस मामले पर जांच होनी चाहिए । CAG को इस स्कीम पर 1  विस्तृत रिपोर्ट पेश करनी चाहिए । जिससे यह पता चल सके कि इस स्कीम का फायदा उठाने वाले लोग कौन हैं ? यह ज़रूरी है कि देश की जनता को पता चले कि ग़रीबों के नाम पर ख़र्च किए जाने वाले पैसों की किस तरह बंदरबांट की जाती है । चुनाव से ठीक पहले घोषणाएं किस तरह आम लोगों की जगह पार्टी के कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों को आर्थिक लाभ पहुंचाने के लिए की जाती हैं । CAG की रिपोर्ट का क्या निष्कर्ष निकलेगा ? वह शायद अब लोगों को पता है । क्योंकि CAG अगर सरकार को कठघरे में खड़ा करती है । तो सबसे पहले UPA के मंत्री यह दलील देंगे कि CAG को सरकार की नीतियों पर कुछ बोलने का अधिकार नहीं है । दूसरे यह कि MEDIA के ज़रिए सरकार CAG की रिपोर्ट की कमियों को उजागर करने में लग जाएगी । बहस होगी कि CAG के अधिकार की सीमा क्या है ? केंद्र सरकार ने फिर से यही राजनीतिक खेल शुरू किया है । बैंक चंडीगढ़ और नई दिल्ली में मोटी रकम कृषि ऋण के रूप में बांट रहे हैं । जबकि बिहार जैसे पिछड़े राज्यों में वे ज़रूरत के हिसाब से काफी कम ऋण दे रहे हैं ।  2011 की जनगणना के मुताबिक़ । 

दिल्ली की कुल आबादी 1.66 करोड़ है । जिसमें महज़ 4.19 लाख लोग गांवों में रहते हैं । वहीं चंडीगढ़ की क़रीब 11 लाख की आबादी में भी महज़ 29 000 लोग गांवों में रहते हैं । इसके बावजूद 2009-10 में इन दोनों केंद्र शासित क्षेत्रों में बैंकों ने 32 400 करोड़ रुपये से ज़्यादा के ऋण दिए । वहीं इसी अवधि में बिहार । उत्तर प्रदेश । पश्चिम बंगाल । एवं झारखंड के किसानों को संयुक्त रूप से महज़ 31 000 करोड़ रुपये के ऋण दिए गए । केंद्र सरकार भले ही कहती रहे कि उसने बैंकों को इस साल 5.75 लाख करोड़ रुपये के कृषि ऋण देने का आदेश दिया है । लेकिन दिल्ली और चंडीगढ़ जैसे शहरों में कृषि ऋण देने का कोई फायदा नहीं होगा । समझने वाली बात तो यह है कि ये दोनों शहर हैं । यहाँ किसान कहां हैं ? जहाँ ग़रीब किसान हैं । जहाँ के किसान आत्महत्या कर रहे हैं । वहाँ ऋण सबसे कम दिया गया । जैसे - बिहार । पश्चिम बंगाल । एवं झारखंड । मतलब यह कि जहाँ किसानों की

संख्या ज़्यादा । क्षेत्रफल ज़्यादा । जो सबसे ग़रीब राज्य हैं । वहाँ के किसानों को कोई फायदा नहीं । और जो शहर हैं । जहाँ खेती नहीं होती । किसान बहुत ही कम हैं । वहाँ किसानों के नाम पर ऋण ज़्यादा है । इसका मतलब यह है कि दाल में कुछ काला है । सरकार अगर फिर चुनाव से पहले किसानों के ऋण मा़फ करने का खेल खेलती है । तो इसका मतलब सा़फ है कि उसे देश की अर्थव्यवस्था की चिंता कम है । और चुनाव जीतने की चिंता ज़्यादा है । CAG की रिपोर्ट का क्या निष्कर्ष निकलेगा । वह शायद अब लोगों को पता है । क्योंकि CAG अगर सरकार को कठघरे में खड़ा करती है । तो सबसे पहले UPA के मंत्री यह दलील देंगे कि CAG को सरकार की नीतियों पर कुछ बोलने का अधिकार नहीं है । दूसरे यह कि मीडिया के ज़रिए सरकार CAG की रिपोर्ट की कमियों को उजागर करने में लग जाएगी । बहस होगी कि CAG के अधिकार की सीमा क्या है ? इसलिए देश के प्रजातंत्र को बचाने के लिए चुनाव आयोग को आगे आना होगा । चुनाव से पहले घोषित सभी लोक लुभावन योजनाएं खत्म करनी होंगी । और सरकार पर अंकुश लगाना होगा । वरना 2014 के पहले जो हालात हैं । उनसे यही लगता है कि सरकार अगले बजट में किसानों के ऋण मा़फ करने । सब्सिडी खत्म कर सीधे नगद राशि देने जैसी योजनाओं की घोषणा करके चुनाव कराएगी । देश के सर्वोच्च न्यायालय । CAG । और चुनाव आयोग । अगर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे । तो देश में जनता के पैसों से राजनीतिक भृष्टाचार करने का नया अध्याय शुरू हो जाएगा । साभारः- चौथी दुनियां
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9 वर्षीय भारतीय बालक ने अमेरिका को आश्चर्य में डाल दिया है । तनिष्क ने अपनी बुद्धि से पूरे भारत को गौरवांवित किया जब असाधारण बुद्धि के लिए परीक्षण किया गया था । तो उसके 99.9% अंक प्राप्त किए । 7 साल की उमृ से ही ये बालक अपने से दोगुना उमृ के बच्चो की क्लास लेता है ।
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Cigarettes are ridiculously bad for your health. I realize you already know this, but if you do currently smoke then I encourage you to please find a way to quit! Sending love & strength to you all ♥
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ऋतावानं महिषं विश्वदर्शतमग्नि सुम्नाय दधिरे पुरो जना: ।
श्रुतकर्ण सप्रथस्तमं त्वा गिरा दैव्यं मानुषा युगा । यजु । 12.111
जो सतपुरुष हो चुके हों । उन्हीं का अनुकरण मनुष्य लोग करें । अन्य अधर्मियों का नहीं ।
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The first stage in this mudra is raising one’s hands in prayer with the thumbs gently touching the mid-brow region or the Adnya-chakra 

( the spiritual energy centre at the mid-brow region ) It is best to begin praying after we are in this position. When we bow our head in this prayer position, it awakens the spiritual emotion of surrender in us. This in turn, activates the appropriate subtle frequencies of deities from the Universe. These Divine frequencies come in through our fingertips, which act as receptors. These Divine frequencies are then channelised into our body through the thumb to the Adnya-chakra ( the spiritual energy centre at the mid-brow region ) The result is an increase in the positive spiritual energy in us, which makes us feel lighter or gives relief from symptoms of physical or mental distress.
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कसाब को डेंगु होने की खबर सुनकर सोनिया जी फूट फूट कर रोने लगी - सलमान खुर्शीद ।
श्री सलमान खुर्शीद ने U.P चुनावों के दौरान आज़मगढ़ में कहा था कि - बटाला हाउस एन काउंटर में मारे गए आतंकवादियों के शव देखकर कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाँधी के आँखों में आँसू आ गए थे । फिर तो इस बार सोनिया जी को कईं कांग्रेसियो ने पकड़ कर रखा होगा कि - कहीं कसाब को डेंगु हो जाने की खबर सुनकर सोनिया जी विलाप में छाती पीटती पीटती सड़क पर पागलों की तरह न दौड़ने लगे । इस कठिन घडी में हमारा भी कर्तव्य बनता है कि हम राजमाता सोनिया जी को सांत्वना दें । और ईश्वर से प्रार्थना करें कि - इस महा दुखद क्षण को सहन करने की उन्हें शक्ति प्रदान करे ।
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Witness the Space Station from your backyard - FREE Opportunity from NASA.. Content Rating Suitable for ALL - Tech Category
Did you know you can see the International Space Station from your house? As the third brightest object in the sky, after the sun and moon, the space station is easy to see if you know where and when to look for it. NASA’s Spot the Station service sends you an email or text message a few hours before the space station passes over your house. The space station looks like a fast-moving plane in the sky, though one with people living and working aboard it more than 200 miles above the ground. It is best viewed on clear nights. For more information on the International Space Station and its mission, visit the space station mission pages. Spot the Station is available worldwide to anyone with an email account or SMS-enabled phone. Several times a week, Mission Control at NASA’s Johnson Space Center in Houston, TX, determines sighting opportunities for 4,600 locations worldwide. If your specific city or town isn’t listed, pick one that is fairly close to you. The

space station is visible for a long distance around each of the listed locations. This service will only notify you of “ good ” sighting opportunities - that is, sightings that are high enough in the sky ( 40 degrees or more) and last long enough to give you the best view of the orbiting laboratory. This will be anywhere from once or twice a week to once or twice a month, depending on the space station’s orbit. Don’t worry if there are big gaps in between sightings! A complete list of all possible space station sightings is available from Johnson Space Center. Please LOGIN for more details at - http://spotthestation.nasa.gov/
SHARE THE RARE ONE ..CREDITS : Mr. Ravi Nag
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बिजली के बिल नहीं भर सकते । तो कनेक्शन कटवा लो - शीला दीक्षित
http://www.youtube.com/watch?v=mXTfhZh7BBs
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