20 नवंबर 2012

क्या है ये - ILLUMINATI


1 बार भगवान नारायण लक्ष्मी से बोले - लोगों में कितनी भक्ति बढ़ गयी है । सब “ नारायण नारायण ” करते हैं । लक्ष्मी बोली - आपको पाने के लिए नहीं । मुझको पाने के लिए भक्ति बढ़ गयी है । भगवान बोले - लोग “ लक्ष्मी लक्ष्मी ” ऐसा जप थोड़े ही न करते हैं । लक्ष्मी बोली - विश्वास न हो । तो परीक्षा हो जाए । भगवान नारायण 1 गाँव में ब्राह्मण का रूप लेकर गए । 1 घर का दरवाजा खटखटाया । घर के यजमान ने दरवाजा खोलकर पूछा - कहाँ के हैं ? भगवान बोले - हम तुम्हारे नगर में भगवान का कथा कीर्तन करना चाहते हैं । यजमान बोला - ठीक है । महाराज ! जब तक कथा होगी । आप मेरे घर में रहना । गाँव के कुछ लोगों ने इकठ्ठा होकर सब तैयारी कर दी । पहले दिन कुछ लोग आये । अब भगवान स्वयं कथा करते । तो गर्दी बढ़ी । दूसरे तीसरे दिन और भी भीड़ हो गयी । भगवान खुश हो गए कि कितनी भक्ति है लोगो में । लक्ष्मी ने सोचा । अब जाने जैसा है । लक्ष्मी ने बुढ्ढी माता का रूप लिया । और उस नगर में पहुंची । 1 महिला ताला बंद करके कथा में जा रही थी कि लक्ष्मी पहुंची । बोली - बेटी ! ज़रा पानी पिला दे । वो महिला बोली - माताजी ! साढ़े 3 बजे है । मेरे को प्रवचन में जाना है । लक्ष्मी बोली - पिला दे बेटी ! थोडा पानी । बहुत प्यास लगी है । वो महिला लोटा भरकर पानी लायी । लक्ष्मी ने पिया । और लोटा लौटाया । तो सोने का हो गया । महिला अचंभित हो गयी कि लोटा दिया था । तो स्टील का । और वापस लिया । तो सोने का ।

कैसे चमत्कारिक माता जी है ? अब तो वो महिला हाथा जोड़ी करने लगे कि - माताजी आपको भूख भी लगी होगी । खाना भी खा लीजिये । ये सोचकर खाना खाएगी । तो थाली कटोरी भी सोने की हो जाए । लक्ष्मी बोली - तुम जाओ बेटी ! तेरा टाइम हो गया । वो महिला प्रवचन में आई तो सही । लेकिन आसपास की महिलाओं को सारी बात बतायी । महिलायें वो बात सुनकर चालू सतसंग में से उठकर गयीं । दुसरे दिन कथा में लोगो की संख्या कम हो गयी । तो भगवान ने पूछा - लोगों की संख्या कैसे कम हो गयी ? किसी ने कहा - 1 चमत्कारिक माताजी आई है नगर में । जिसके घर दूध पीती है । तो गिलास सोने का हो जाता है । थाली में रोटी सब्जी खाती हैं । तो थाली सोने की हो जाती है । उसके कारण लोग प्रवचन में नहीं आते । भगवान नारायण समझ गए कि लक्ष्मी का आगमन हो चुका है । इतनी बात सुनते ही देखा कि जो यजमान सेठ जी थे । वो भी उठ खड़े हो गए । खिसक गए । पहुंचे 

माता लक्ष्मी जी के पास । और बोले - माता मैं तो भगवान की कथा का आयोजन करता हूँ । और लक्ष्मी माता आपने मेरे घर को छोड़ दिया । लक्ष्मी बोली - तुम्हारे घर तो मैं सबसे पहले आने वाली थी । लेकिन तुम्हारे घर में जिस कथावाचक को ठहराया है ना । वो चला जाए । तो मैं अभी आऊं । सेठ बोला - बस इतनी सी बात । अभी उनको धरमशाला में कमरा दिलवा देता हूँ । जैसे ही महाराज कथा करके घर आये । तो सेठ बोला - महाराज ! बिस्तरा बांधो । आपकी व्यवस्था धरमशाला में कर दी है । महाराज बोले - अभी 2-3 दिन बचे हैं । कथा के । यही रहने दो । सेठ बोला - नहीं नहीं । जल्दी जाओ । मैं कुछ नहीं सुनने वाला । इतने में लक्ष्मी आईं । कहा - सेठ जी ! आप थोड़ा बाहर जाओ । मैं इनसे निबट लूँ । लक्ष्मी बोली - प्रभु ! अब तो मान गए ?
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I am enough . Just me alone . With no one’s approval . Only my own . I am complete With no need for more . Containing within me . An infinite store .I am abundance . I am magic and light . I am creation . I am joy and delight .I am source of it all . I am boundless, and yet Being still human . Sometimes I forget  ~ Dan Coppersmith
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लकड़ी का कटोरा - 1 वृद्ध व्यक्ति अपने बहु बेटे के यहाँ शहर रहने गया । उमृ के इस पड़ाव पर वह अत्यंत

कमजोर हो चुका था । उसके हाथ कांपते थे । और दिखाई भी कम देता था । वो 1 छोटे से घर में रहते थे । पूरा परिवार और उसका 4 वर्षीया पोता 1 साथ डिनर टेबल पर खाना खाते थे । लेकिन वृद्ध होने के कारण उस व्यक्ति को खाने में बड़ी दिक्कत होती थी । कभी मटर के दाने उसकी चम्मच से निकल कर फर्श पर बिखर जाते । तो कभी हाथ से दूध छलक कर मेजपोश पर गिर जाता । बहु बेटे 1-2 दिन ये सब सहन करते रहे । पर अब उन्हें अपने पिता के इस काम से चिढ होने लगी - हमें इनका कुछ करना पड़ेगा । लड़के ने कहा । बहु ने भी हाँ में हाँ मिलाई । और बोली - आखिर कब तक हम इनकी वजह से अपने खाने का मजा किरकिरा रहेंगे । और हम इस तरह चीजों का नुकसान होते हुए भी नहीं देख सकते । अगले दिन जब खाने का वक़्त हुआ । तो बेटे ने 1 पुरानी मेज को कमरे के कोने में 

लगा दिया । अब बूढ़े पिता को वहीं अकेले बैठ कर अपना भोजन करना था । यहाँ तक कि उनके खाने के बर्तनों की जगह 1 लकड़ी का कटोरा दे दिया गया । ताकि अब और बर्तन ना टूट फूट सकें । बाकी लोग पहले की तरह ही आराम से बैठकर खाते । और जब कभी कभार उस बुजुर्ग की तरफ देखते । तो उनकी आँखों में आंसू दिखाई देते । यह देखकर भी बहु बेटे का मन नहीं पिघलता । वो उनकी छोटी से छोटी गलती पर ढेरों बातें सुना देते । वहाँ बैठा बालक भी यह सब बड़े ध्यान से देखता रहता । और अपने में मस्त रहता । 1 रात खाने से पहले उस छोटे बालक को उसके माता पिता ने ज़मीन पर बैठकर कुछ करते हुए देखा - तुम क्या बना रहे हो ? पिता ने पूछा । बच्चे ने मासूमियत के साथ उत्तर दिया - अरे ! मैं तो आप लोगों के लिए 1 लकड़ी का कटोरा बना रहा हूँ । ताकि जब मैं बड़ा हो जाऊँ । तो आप लोग इसमें खाना खा सकें । और वह पुनः अपने काम में लग गया । पर इस बात का उसके माता पिता पर बहुत गहरा असर हुआ । उनके मुंह से 1 भी शब्द नहीं निकला । और आँखों से आंसू बहने लगे । वो दोनों बिना बोले ही समझ चुके थे कि - अब उन्हें क्या करना है । उस रात वो अपने बूढ़े पिता को वापस डिनर टेबल पर ले आये । और फिर कभी उनके साथ अभद्र व्यवहार नहीं किया ।
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Great health drinks 1 Strawberries - Researchers have found the strawberries can help protect the stomach from the effects of alcohol. This is highly important as it gives us hope of improved treatments of stomach ulcers. Researchers were studying the mucous membrane, which contains special cells that

produce acid and enzymes- helping the body to break down. It also excretes mucus; this protects the lining of the membrane from the acid. Inflammation of the stomach membrane is related to alcohol consumption but can also be caused by viral infections or anti-inflammatory medication ( like aspirin.)
Maurizio Battino, coordinator of the research group explained: ‘In these cases, the consumption of strawberries during or after pathology could lessen stomach mucous membrane damage. This study was not conceived as a way of mitigating the effects of getting drunk but rather as a way of discovering molecules in the stomach membrane that protect against the damaging effects of differing agents.’
If you’re looking to add a bit of punch to your diet or just want to add a little extra vitamins and minerals then why not have a look at adding some of these health drinks below:
2 Beetroot juice - Not a taste for everyone but it is exceptionally good for you, recent studies have

suggested beetroot can help lower the risk of heart disease by lowering blood pressure, beetroot juice is also very good for a hangover and if you can’t stomach it on its own try mixing it with other fruit juices.
3 Berry drinks - Smoothies are an ideal way to get topped up with berries such as strawberry’s, which contain vitamin C and both blueberries and raspberries both of which contain lutein for healthy vision. It’s thought that darker berries are good for your skin because they contain antioxidants and anthocyanidins which strengthen the bond between the collagen fibres which strengthen our skin.
4 Coconut water - This is the drink many slim celebrities swear by but it has had a bit of bad press about its qualities recently however there are some facts which can’t be disputed. Coconut water contains more potassium, less sodium, and less sugar than most energy drinks plus and contains fibre which is good for energy boosts.
5 Pomegranate juice - There are quite a few health benefits in pomegranates; these include reducing stress levels; people who drank pomegranate juice regularly had significantly lower levels of the stress hormone in their saliva and they are also good for your heart.
6 Aloe Vera juice - It may not be the best tasting but it is one of the most effective juice drinks out there, aloe vera is rich in a range of nutrients, including vitamins, minerals, amino acids and other trace elements. It is also good at reducing inflammation as well as good for your skin, dental health and immune system
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This sky where we live is no place to lose your wings. So love, love, love. Good Morning my sweet sweet friends  .Have a great day ahead .Loads of love and blessings ♥ latika
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क्या है ये - ILLUMINATI
illuminati-news.com
december2012thefacts.com
ILLUMINATI IN INDIA.mp4 - YouTube ► 2:53► 2:53
http://www.youtube.com/watch?v=KFuqedN2Ckk
Illuminati - Wikipedia, the free encyclopedia
en.wikipedia.org/wiki/Illuminati
The Illuminati ( plural of Latin illuminatus  " enlightened " ) is a name given to several groups, both real ( historical ) and fictitious. Historically the name refers to the ...
https://www.google.co.in/search?hl=en&tbo=d&sclient=psy-ab&q=aluminati&btnG=#hl=en&tbo=d&sclient=psy-ab&q=illuminati&oq=illuminati&gs_l=serp.12...0.0.1.5097.0.0.0.0.0.0.0.0..0.0.les%3B..0.0...1c.09KW1W6_vMM&pbx=1&bav=on.2,or.r_gc.r_pw.r_cp.r_qf.&fp=6c6ace88687a59e4&bpcl=38897761&biw=731&bih=373

18 नवंबर 2012

पहले मैं पिता था पर अब बादल हूँ ?


जीवन और मृत्यु की वास्तविकता क्या है ? इस संबंध में मि0 कीथ के विचार जो उन्होने अपनी पुस्तक “ Science The Universe And God में व्यक्त किए हैं । में उन्होंने कहा कि - सच /वास्तविकता यह है कि हम इस Universe के 1 हिस्से हैं । लाखों अरबों एटम । जिससे हम बने ? ये Atom  तब किसी और कृम/तरीके में थे । हमारे  वर्तमान अस्तित्व में किसी और तरह के कृम में हैं ? पर हैं - Atom ही से बने ? Object बस्तु का अंतर है । पहले  इन्ही एटमों से कोई अन्य Object बना था । जैसे पेड़ । चट्टान । धातु इत्यादि । अब इनसे हम बने हैं । हो सकता है ? कि हम जिस जमीन /चट्टान पर खड़े हैं /रहते हैं ।  पहले कभी इन्हीं एटमों से बनी हो । बाद में उनमे से कुछ एटमों से हम लोग बन गए ? हो सकता है कि उससे भी पहले बे ही एटम हवा में तैर रहे हों । बादल के रूप में । जब  तापकृम और बायु दाब अधिक रहा हो । तो कभी ये ही Atom  दैत्याकार तारे । नीहारिकाओं आदि के रूप में रहे होंगे । और जब तापकृम । दवाव आदि हद से ज्यादा बढ़ गया होगा । तो ये ही एटम इन तारों की मृत्यु भी बने होंगे । अर्थात तारे टूट बिखर  गए होंगे । यह जानना कितना रोमांचक है कि जिन एटमों से हम बने हैं । बे  हमारे जन्म से पूर्व न जाने

कितने रूपों में समाहित रहे होंगे । लगता है कि - हम मरते है । पर मरते नहीं । केवल एटमों की रिशफ़्लिंग है । यह जानना कितना अच्छा लगता है । जैसा कि दुनियाँ के ज्यादा से ज्यादा वैज्ञानिक इस पर अपनी सहमति रखते है कि जिस क्षण इस UNIVERSE की उत्पत्ति हुई । ठीक उस क्षण से पहले तक यह सम्पूर्ण यूनीवर्स / बृह्मांड केवल 1 एटम के अंदर समाहित था - ATOM । हाँ यदि कुछ और था । तो केवल ENERGY । आपस में जुड़ी हुई । उस समय कोई अन्य Atom नहीं था । था तो बस 1 केवल 1 - Atom ।
जैसे जैसे 1 मात्र एटम/ऊर्जा विस्तृत होती गयी । और ठंडी होती गयी । तो इसका स्थान इतना लंबा हो  गया कि प्रकाश को भी 1 छोर से दूसरे छोर तक जाने में बिलियन प्रकाश वर्ष लग जाए । फिर अरबों खरबों गुना सभी Atom जुडते गए । और इनका संबंध आपस में होता गया । होता गया । इस तरह से  हम सभी प्राणी ( चेतन ) ही नहीं । सभी जड़  बस्तुएँ 1 रहस्यमय ढंग से आपस में जुड़ी हैं । और इस प्रकार हम इस UNIVERSE के 1 अभिन्न अंग हैं । आखिर हम सब क्या हैं ? हम सब रिसाइकिल्ड एटमों का 1 समूह मात्र हैं । जो इस समय 1 विशेष रूप में इस तरह के कृम में प्रवंधित ( मेनेज्ड ) हैं  कि हम 1 चेतन एंटिटी के रूप/अस्तित्व में हैं । अब विचारणीय है कि - फिर मृत्यु किसकी होती है ? किसी की नहीं । केवल एटमों के समूहों का रूप बदलता

रहता है । क्योंकि एटमों की कभी मृत्यु नहीं होती है । इसी तरह पानी कभी समाप्त नहीं होता । केवल रूप बदलता रहता है । पानी अगर नदी / तालाब  में है । तो पानी । समुद्र में पहुंचा । तो पानी । वाष्पीकरण हुआ । तो बादल । फ्रिज में रख दिया गया । तो बर्फ । दूध में मिला दिया गया - तो दूध ? गीली मिट्टी में मिला दिया गया -  तो कीचड़ ? इंजेक्शन के लिए शीशी में भर दिया गया - तो डिस्ट्रिल्ड वाटर ? हो गया आदि आदि । किसी रूप में हमे स्व चेतना होती है । और किसी में नहीं ।  जब हम  मरेंगे । तो हमारे शरीर के एटम 1 बार फिर इसी UNIVERSE  में रिसाइकिल  होंगे । और हम किसी अन्य Object बस्तु के रूप में हो जाएँगे । हो सकता है कि भविष्य में हम बादल बनकर अपने बेटे या नाती या पोती के ही आँगन या बाग में पानी के रूप में बरसें । तब हम और हमारे ये बच्चे क्या यह जान पाएंगे कि हम पिता पुत्र या बाबा नाती /नातिन हैं ? नहीं । पर सच /वास्तविकता यही है कि पहले मैं पिता था । अब बादल हूँ ? बस रूप  बदल गए हैं । यही 1 तरह की अमरता है ?
http://myviews-krishnagopal.blogspot.in/2012/08/blog-post_9.html
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इस लेख के लेखक भारत सरकार के उच्च पद से रिटायर्ड ( 64 ) हैं । मैंने ये लेख सत्यकीखोज के पाठकों के चिंतन मनन व प्रश्नों के हेतु साझा किया है । आप चाहें । तो टिप्पणी द्वारा इस लेख में उठे प्रश्नों के उत्तर भी दे सकते हैं । या फ़िर ( मूल ) प्रश्न निकाल कर मुझसे उत्तर पूछ भी सकते हैं । इन सभी के सरल सहज प्रयोगात्मक स्तर पर उत्तर मेरे पास हैं ।

और अमेरिका में नरक नहीं स्वर्ग है ?


स्वर्ग नरक कैसे पैदा हुए ? How the concept of Heaven and  Hell took  place ?
स्वर्ग और नरक कैसे पैदा हुए ? इस संबंध में मैंने कई विद्वानो के विचार पढे । लेकिन ओशो के विचार ध्यान देने योग्य हैं । उनका कहना है कि - धर्मांधता अब तक जीवित है । तो केवल इसलिए कि हमारे अंदर यह भय और लालच उत्पन्न कर दिया गया । और हमने मान लिया है । भय किसका ? नरक का । लालच किसका ?  स्वर्ग का । जब भय सिर के बल खड़ा हो जाता है । तब लालच का जन्म होता है । धर्माधिकारियों ने और पुजारियों ने  बहुत पहले जान लिया था कि यदि मनुष्य को डरा दिया जाय । तो बहुत आसानी से कर्मकांडों का अपना सिक्का चलाया जा सकता है । और लगातार चलाया जा सकता है ।  क्योंकि बे जानते थे कि भय विन होय न प्रीति । कल्पना की गयी ? 1 ऐसी जगह की ? जहाँ मरने के बाद लोगों को तरह तरह की यातनायें दी जा रही हैं ? तेल की कढाही में डाला जा रहा है ? बाल और नाखून खींचें जा रहे हैं ?  ये बातें सुनाकर डरा दिया गया । तरह तरह की कहानिया गढ़कर कि दान नहीं करोगे । तो यह दंड मिलेगा । माता पिता का कहना नहीं मानोगे । तो यह दंड मिलेगा । क्योंकि ये सब कार्य पाप हैं । फिर सोचा कि केवल दंड बताकर अर्थात डराकर  लोगों को सही काम करने योग्य बनाकर हमारा ( पुजारियों और धर्माधिकारियों का ) काम चलना नहीं । क्योंकि पेट बातों से तो भरता नहीं है । पेट भरने के लिए पैसे चाहिए । तो फिर धन कमाने की बात सोची गयी । उसकी तरकीब भी सोच ली । और वह तरकीब थी “ स्वर्ग ” की कल्पना ? उन्होने बताया कि ऐसा नहीं कि पाप कर दिये । तो बे पोस्ट आफिस  की काली मुहर तो नहीं लग गयी । जो कि कभी छूटेगी ही नहीं । अरे भाई पापों से मुक्ति का रास्ता । तरकीब भी हमी बताएँगे । बस हम जैसा जैसा बताएं ? वैसा वैसा करो । तो पाप धुल जाएँगे । और स्वर्ग मिल जाएगा । ये पूजन हमसे कराओ । तो ये

पाप खत्म । और ये पुजा पाठ । हमसे कराओ तो ये पाप खत्म । ये कोई नहीं कहता है कि -  पूजा पाठ हम बता देते हैं । तुम चाहे किसी से करा लेना । नहीं पूजन हम करेंगे । तभी सफल होगा । और इतने पैसे खर्च होंगे । तुम सामान के लिए क्यों परेशान होगे । बस पैसे दे दो । पूजन हम अपने घर पर ही कर देंगे । थोड़े से पैसे में पाप धोने  की ऐसी  लोंडरी ( पाप धोने की मशीन ) खोल  दी कि सब आयेंगे । क्योंकि उनके द्वारा बनाई गयी पापों की सूची में ऐसे ऐसे काम शामिल है कि दुनियाँ का कोई भी व्यक्ति नहीं कह सकता है कि - मैं पापी नहीं हूँ । बस क्या था । पुजारी जी की लोंडरी चल निकली । और सब पुजारी मालामाल हो रहे हैं । और फ़ैक्टरी तो बंद भी हो सकती हैं । लेकिन लोग पाप करना बंद नहीं करेंगे । वे तो करते ही रहेंगे । और पूजा करबाते ही रहेंगे । क्यों ? हम सब सब SHORTCUT चाहते हैं । स्वर्ग पाने के लिए तो बहुत पापड़ बेलने पड़ेंगे । माँ बाप की ज़िंदगी भर सेवा करो । ज़िंदगी भर सच बोलो । और न जाने क्या क्या करो ?  फिर भी स्वर्ग मिला । या न मिला ? कोई गारंटी नहीं है । लेकिन पुजारी जी को  बस 5001 रुपये दो । बस सब झंझटों से मुक्ति मिल गयी ? यूँ कहो कि 5001 रुपये में विना पासपोर्ट आफिस जाये ही स्वर्ग का पासपोर्ट मिल गया । और हम निश्चिंत हो गए । और जीते जी स्वर्गवासी बन गये ? जिनके पास पैसे देने को नहीं हैं । या देने में कंजूसी करते हैं । बे लोग  बे सब कार्य कर रहे हैं । जो पुजारीजी ने पुण्य कार्यों की  सूची में रखे हैं । अर्थात माता पिता की सेवा कर रहे हैं । तो मन से नहीं ।
बल्कि इसलिए कि हमारे पास स्वर्ग के पासपोर्ट  बनबाने  के लिए पैसे नहीं है । या हमे नरक में जाने से  डर लगता है । अर्थात हम माँ बाप की सेवा किसी डर से कर रहे हैं । न कि अपना कर्तव्य समझकर । या माँ बाप के प्रति प्यार होने के कारण । यदि ऐसा न होता । तो किसी भी वृद्ध आश्रम में चले जाईए । वहाँ आपको गरीव ही नहीं । बल्कि ऐसे भी माँ या बाप । या दोनों मिल जाएँगे । जिनके  1 नहींकई लड़के हैं । और वो भी बड़े बड़े पदों पर । डिप्टी कलक्टर IAS भी  है । ऐसे माँ बाप के लड़कों को डर नही है । क्योंकि उन्होने नरक के दंडों और डंडों दोनों से ही बचने के उपाय 1001 की बजाय 5001 रुपये देकर पहले से ही निश्चिंत है ।
स्वर्ग और नरक कहाँ है ? Where  are Heaven and Hell ? 
हममें से जो थोड़ा बहुत भी भूगोल जानते है । बे समझ सकते है कि यदि हम अन्तरिक्ष में जा चुके हैं । चंद्रमा और मंगल पर अपनी मशीन भेजकर और चंद्रमा पर तो स्वयं पैर रखकर जानकारी ले चुके हैं । लेकिन 90 करोड़ 

Km तक की यात्रा में तो कहीं स्वर्ग  दिखा नहीं ?  इसी तरह प्रथ्वी में कई खोजों के लिए  न जाने कितने नीचे तक इंसान ने जानकारी प्राप्त कर ली है । लेकिन उसे नरक कहीं  नहीं दिखा ? ( हाँ नरक दिखाई  देता है । प्रथ्वी  के ऊपर ही । कोई भी शहर/ बस्ती नहीं है । जहाँ पोलिथीन~/गारवेज / सड़े फलों की बदबू/ सड़ता हुआ पानी के गड्ढे /सड़कों में सीबर के खुले मैनहोल जिनमे गिरकर लोग सीधे नरक में गिर पड़ते हैं । आदि आदि न हों ) फिर भी अगर हम प्रथ्वी पर भारत में कहीं भी खोदते जाएँ ।  खोदते जाएँ । तो हम नरक में तो नहीं । अमेरिका जरूर पहुँच जाएँगे । और अमेरिका में नरक नहीं । स्वर्ग है ? जब तक हम डर और लालच अर्थात नरक और स्वर्ग की कल्पनाओं में जीते रहेंगे । तब तक हमे भगवान कभी नहीं मिल पाएगा । क्योंकि भगवान की प्राप्ति में दोनों ही बाधक हैं । अतः हमे चाहिए कि स्वर्ग और नरक के चक्कर से बचें । और वर्तमान में ही जीयें ? और ऐसे अच्छे अच्छे  काम अपनी सोच से ( न कि पुजारी जी के बताए अनुसार ) करें कि हमारे इसी जीवन में हम स्वर्ग में होने जैसा महसूस करें । अगर हम बाग में घूम रहे हों । और फूल खिले हैं । परंतु फूलों की सुगंध और सुंदरता देखकर हमारा दिल नहीं खिल उठता है । तारे चमक रहे हैं ।  सबको ताजमहल चाँदनी में दूध से नहाया  मालूम पड़ता है । पर हमको  नहीं मालूम पड़ता है । आसमान में बादल उमड़ घुमड़ कर आ रहे है   इंद्रधनुष 7 रंग विखेर रहा है । परंतु  हमारे अंदर कोई रंग नहीं है । कोई उल्लास नहीं है । कोयल कू कू कर रही है । और हम बाग में भी दिमागी केलकुलेटर से बिजनेस के जोड़ बाकी गुणा भाग कर रहे  हैं । या IncomeTax से बचने के लिए घर में दबाकर रखे गए करोड़ों के Cash के चोरी चले जाने के डर ने हमको बहरा बना दिया है । तो समझो ।  हम नरक में हो । ये डर । ये बहरापन । किसी पुजारी/धर्माधिकारी ने नहीं पैदा किए हैं । बल्कि ये तो खुद  हमने ही पैदा किया है । नरक का संसार ।
मैं मेरे ही साथ काम किए एकाउंट आफ़ीसर के परिवार को जानता हूँ । जिनके घर में पत्नी है । 2 बच्चे हैं । बड़े लड़के की बहू है । मैंने पूछा कि - बहू बच्चों के साथ कैसे निभती है ? बे बोले कि मेरी बहू मेरी और मेरी पत्नी की बहुत सेवा करती है । और आत्मीयता से पैरों के दर्द में नमक डले गरम पानी में मेरे पैर रखा कर  अपने हाथ से सिकाई करती है । मेरी बहू मुझे डाँटती भी है । कहती है - आपको डायबिटीज है । आपको 2 कप से ज्यादा चाय नहीं मिलेगी । वह भी बिना शक्कर की । आप चीनी का परहेज नहीं करते हैं आदि आदि । मेरा साथी कहता था

कि जब मेरी बहू डाँटती है । तो मुझे बहुत अच्छा लगता है । मेरी कोई बेटी नहीं है । तो मुझे लगता है कि मेरी बेटी ही डांट  रही है । मेरे घर में मेरी बहू बेटी की तरह रहती है । कोई घूँघट नहीं कराता है । मेरी पत्नी भी नहीं कराती  है । मन की आँखों से देखो । तो यही स्वर्ग है । मैं जब कानपुर में था । तो वहाँ 1 परिवार मेरे पड़ोस में था । खुद तहसीलदार के पद से कुछ साल पहले रिटायर हुए थे । 2 बेटियाँ थीं । 3 बेटे थे । तीनों की शादी हो चुकी थी । 2 बहुए बाहर अपने पतियों के साथ रहती थी । और  रोज रोज की कहा सुनी  के कारण बे लोग  बहुत कम घर आते थे । परंतु हम लोग बहुत परेशान रहते थे । क्योंकि उनके यहाँ आए दिन इतनी कलह होती थी कि लोग आकर बीच बचाव करते थे । कारण यह था कि उनको और उनकी पत्नी को दिन भर अपनी सेहत की चिंता में हर चीज खाने के लिए उनके मन मुताबिक और उनके द्वारा निर्धारित समय पर मिलनी चाहिए । भले ही बहू बीमार हो । कोई मदद नहीं । केवल घमंड में चूर कि हम तहसीलदार थे । अफसर थे । घर में भी तहसीलदारी दिखाते थे । बहू ने  2-3 साल तक तो झेला - सब कुछ । बाद में जवाब देने लगी । जैसे ही जवाब देती । तो दोनों सास ससुर कलह करते । और गंदी गंदी गालियां देते थे । सब लोग पड़ोस के समझाते । लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा । 1 दिन तो बहू ने आत्महत्या का प्रयास भी किया । तो घबरा गए । लेकिन कुछ दिनों बाद । फिर वही हाल । बीमार पड़ने पर बड़ी बहुए  देखने भी नहीं आती थी । 1 बहू जिसे बहुत परेशान किया गया था ने तो 1 दिन  कह दिया था कि - आज आयी । सो आयी । अब मैं मरने की खबर पर ही आऊँगी । यह क्या है ? यही नरक है । नरक कहीं और जगह नहीं है ? हम  अपने अच्छे या खराब  व्यवहार से  इसी प्रथ्वी पर स्वर्ग और नरक बना लेते है । और कामना करते हैं । मोक्ष पा लेने की ।
अरे ! हम तो लालच और भय के दलदल में इतने धंस चुके है कि हमारे बनाए धर्मों ने तो यह तक मान लिया  है कि - जो मर जाय । उसे ताबूत में रखकर जमीन में गाढ़ दो । जब प्रथ्वी पर प्रलय ( लास्ट जजमेंट डे ) होगी । तब ईश्वर का दरबार लगेगा । जिसने पुण्य कार्य किए होंगे । उनको स्वर्ग मिलेगा । और जिन  लोगों ने पाप कर्म किए होंगे । जैसे चर्च न जाना ? भगवान की कथा न सुनना ? गंगा स्नान न करना आदि ? बे सब नरक /जहन्नुम  में जाएँगे । और वहाँ लगातार रहना होगा । वहाँ से निकलने/छुटकारा का कोई तरीका नहीं है । ये सब क्या है ?  डरा दिया गया न ? अब तो डर के कारण वे सब कार्य करोगे । जो पुजारी जी ने बताए । लेकिन पैसे खर्च न करने के कारण नहीं कर रहे हो । डर के कारण अब बे सब कार्य /कर्मकांड करने लगे । और पुजारीजी का धंधा चलने लगा । अपने को नरक में जाने से बचाने  के लिए हमने लास्ट जजमेंट डे बना लिया । चलो जब तक प्रलय नहीं होती  है । तब तक नरक में जाने से तो बचे । नरक से तो अच्छा है कि - कब्र में चुपचाप पड़े रहो । बरना  नरक में तो खौलते  तेल के कड़ाहे में पकौड़े की तरह सिक रहे होते । नरक में जाने से बचने का 1 तरीका और निकाल लिया है । वह है “ पाप कर्म करने की बात को खुद  स्वीकार कर लेंना  “ अर्थात कंफ़ेशन ।  यह स्वीकारोक्ति क्या है ? यह चीज यह है कि पाप करो । करते रहो । और जब भी चर्च/मंदिर आदि में जाओ । चर्च में  फादर / मंदिर में भगवान या पुजारी जी  के सामने बस SORRY बोल दो । और तुम माफ कर दिये जाओगे ? क्योंकि फादर ईसा मसीह का । और मंदिर में पुजारी जी भगवान के एजेंट है । क्योंकि इसी बहाने हम आप चर्च/मंदिर तो जाएँगे । जब मंदिर जाएँगे । नियमित रूप से ( क्योंकि हम पाप भी तो करते जा रहे हैं । नियमित रूप से ) तो पुजारी जी की  आमदनी भी होगी नियमित रूप से । क्योंकि कुछ तो दान/चढाबा कुछ तो ले जाओगे । बार बार आकर माफी मागने की कोई पाबंदी भी नहीं है । क्योंकि हर बार माफ कर दिये जाने पर ही तो बार बार जाएँगे । इस तरह 1 लाइसेंस दे दिया जाता है । आगे फिर पाप करते रहने पर पाप धुलवाने का । यही चलता चला आ रहा है । हजारों सालों से । किसके पास वक़्त है । चर्च में जाने का ? डर की बजह से जाते हैं ? कुछ लोगों के अलावा । कौन मन से जाता है ? लगता है कि हमको कह दिया गया है कि पाप खूब करो । कौन रोक रहा है तुमको ?  हम माफ करवा देगे । मजमा लगाने वाले भीड़ बुलाने के लिए कुछ खेल दिखाते है । उसी तरह लोगों से स्वीकारोक्ति कराना भी 1 तरीका है बुलाने का । बर्ट्रेन्ड रसल ने लिखा - और मैं यह हिसाब लगाऊँ कि - मैंने जो भी पाप किए । या पाप कर्म करने की सोची ( पर कर नहीं सका ) ऐसे सब पापों को मिलाकर भी कोई भी जज यहाँ प्रथ्वी पर 4 वर्ष से ज्यादा की सजा नहीं दे सकता है । तो मुझे नर्क में हमेशा हमेशा के लिए कैसे रखा जा सकता है ( अगर ये इतने गंभीर होते । तो प्रथ्वी के पैनल कोड में आजीवन कारावास की सजा  का प्रावधान होता । जो कि नही है । ) यह बात उसने अपनी पुस्तक - मैं क्यों क्रिश्चियन नहीं हूँ ? में लिखी ।
 http://myviews-krishnagopal.blogspot.in/2012/08/blog-post_9.html
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इस लेख के लेखक भारत सरकार के उच्च पद से रिटायर्ड ( 64 ) हैं । मैंने ये लेख सत्यकीखोज के पाठकों के चिंतन मनन व प्रश्नों के हेतु साझा किया है । आप चाहें । तो टिप्पणी द्वारा इस लेख में उठे प्रश्नों के उत्तर भी दे सकते हैं । या फ़िर ( मूल ) प्रश्न निकाल कर मुझसे उत्तर पूछ भी सकते हैं । इन सभी के सरल सहज प्रयोगात्मक स्तर पर उत्तर मेरे पास हैं ।

कुछ धर्मों में 2 दुकानें पर हिन्दू धर्म में तीसरी दुकान भी है - मोक्ष की


कर्म फल क्या है ? What is past life’s work’s result हम सबको बचपन में 1 घुट्टी पिलाई जाती है । ताकि जन्म के समय स्वास्थ्य सब तरह से अच्छा रहे । लेकिन इसके साथ ही 1 घुट्टी और पिलाई जाती है । पिलाई जाती रही है । वो यह है कि अच्छे काम ( पुण्य ) करोगे । तो स्वर्ग जाओगे । बुरे काम करोगे । तो नरक जाओगे । और अगर स्वर्ग नरक के चक्कर से बचना हो । तो मोक्ष पाने की तैयारी  करो । दुनियाँ के कुछ धर्मों में 2 दुकानें ही हैं - स्वर्ग और नरक । हिन्दू धर्म में तो 1 तीसरी दुकान भी है । वह है - मोक्ष की । अगर नरक के कष्टों से बचना है । तो मोक्ष की कामना करो । और हमारी दुकान में आओ । हम जो जो बताते जाये । बही करते जाओ । पंडितजी । पुजारी । और प्रवचन कर्ता कहते हैं कि - हम आपकी सीट स्वर्ग में हमेशा हमेशा  के लिए सुरक्षित  करा देंगे । लेकिन  मन में यह डर भी लिए रहते है कि इतना धन खर्च करके भी नहीं मिली मोक्ष ( पंडितजी कोई गारंटी कार्ड तो देते नहीं है ) फिर भी लोभ इतना है कि - शायद मिल ही जाये ? क्योंकि हम सब पैदा होने के समय से यही सब कुछ  देखते आ रहे हैं । हम अपने जीवन में अच्छा या बुरा । जो कुछ भी होता देखते रहे हैं । उस समय हमको बताया जाता रहा है कि - यह जो भी गड़बड़ हुआ । या हो रहा है । जैसे कि किसी का बच्चा मर गया । किसी स्त्री के लड़कियां ही लड़कियां हुईं । या हो रही हैं । लड़का नहीं । किसी का पति युवावस्था में ही मर गया । कोई बच्चा फेल हो गया । किसी  की  नौकरी छुट गई आदि आदि ।  तो कहा जाता है कि ये पूर्व जन्म के बुरे कर्मों का फल हैं । और अगर बहू सेवा करने वाली अच्छी है । तो सास को लोग कहेंगे कि पूर्व जन्म के अच्छे कर्मों का फल है । लड़का DM हो गया । तो बाप और माँ को कहा जाएगा कि पिछ्ले जन्म में गंगाजी में जौ बोये होंगे । तभी लड़का DM हो गया । हम अपने चारों ओर यही सुनते चले आए है । तो हमें भी लगता है कि - ये सब सही ही कह रहे हैं ? कर्मों का ही फल है । पूर्व जन्म में जो अपराध किए होंगे । उनके ही दंड भोगने  पड़ रहे हैं ।
केवल यही नहीं । इस तरह की हजारों कहानियाँ ? धर्म ग्रन्थों में भी लिखी गयी है । गढ़ दी गयी हैं ? उनको सुन सुनकर भी हमारे सोचने समझने की शक्ति /बुद्धि ही जाती रही है । परंतु क्या कोई यह दाबे के साथ कह सकता है कि - ये सब पिछले जन्मों का ही फल है ? क्या कोई प्रमाण है ? यह कोई नहीं देखता है कि ये सब इसी जन्म के

कर्मों के फल हैं । बच्चा मन लगाकर पढ़ा ही नहीं । तो फेल हो गया । पति ने  ट्रेफिक नियमों का पालन नहीं किया । तो एक्सीडेंट हुआ । और मर गया । लड़के ने कोचिंग मन लगाकर पढ़ी ।  दिन रात 1 कर दिये । तो कलक्टर हो गया । बहू के घर वालों अर्थात माँ बाप ने अच्छे संस्कार बचपन से ही दिये थे । अतः बहू सास की सेवा करती है । लड़का या लड़की का होना । भाग्य का नहीं । बल्कि बायोलोजी की XX और YY प्रोमोजोंस की THEORY के अनुसार लड़का लड़की होते हैं । हमारा अज्ञान ही हमसे कहलाता है कि - यह सब पूर्व जन्म के कर्मों का फल है । बचपन में बेटे ने पैन पेंसिल कापी किताबें चुराईं थी । तब माँ बहुत खुश होती थी कि बच्चा अच्छा करता है । चलो  खरीदने  नहीं पड़ेंगे । वही बड़ा होकर बड़ी चोरी करने लगा । जेल गया । तो आँसू लिए माँ कहती है कि - पिछले जन्म के फल भोग रही हूँ । इस जन्म को नहीं देखती है ।
हम सबको यह बताया जाता रहा है कि हमारे जीवन में जो बुरा समय आए । या आ रहे हैं । बे सब हमारे पूर्व जन्म के कर्मों का ही फल है । इसलिए जो पूर्व जन्म को । भाग्य को । और पूर्व जन्म के कर्मों के फल के अनुसार ही इस जन्म में सुख और दुख मिलने/होने की बात मानते हैं । बे किसी या किन्ही कार्य के परिणाम को पूर्व जन्म के कर्मों को ही दोष देते हैं । चाहे उन्होंने इस जन्म में कितनी ही ईमानदारी से और लगन से काम किया/किए हों । ऐसे लोग कहते हैं कि - इस जन्म में ईमानदारी से काम तो किया है । लेकिन पूर्व जन्म में जो बुरे कर्म/पाप किए थे । उनका फल भी तो मिलेगा ही । इसीलिए इस कार्य में सफलता नहीं मिली । बे यह समझने की कोशिश नहीं करते हैं कि - 10 प्रतियोगियों में केवल 1 ही तो FIRST POSITION  पर आ सकता है । बाकी अपनी कुशलता के अनुसार ही तो अपना स्थान  बना पाएंगे ? ऐसे लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं । जो सोचते ही नहीं । बल्कि कहते भी है कि हम इस जन्म में जो अच्छे कर्म कर लेंगे । तो अगले जन्म में अच्छा ही अच्छा ही मिलेगा । इसलिए बे अच्छे कार्य करते हैं । इसलिए नहीं कि अच्छे कार्यों का अच्छा फल इसी जन्म में मिलेगा । बे यह भूल जाते हैं कि कोई 

किसी अच्छे या बुरे काम  के पूर्ण होने में बहुत से लोगों का रोल हिस्सेदारी होती है । जैसे कि किसी लङके के MBA में फेल होने में  अकेले उस लड़के का ही हाथ नहीं है । बल्कि लड़के के साथ - माँ । बाप । कोच । घर का  बाताबरण । उस लड़के के साथी कैसे हैं ? आदि आदि । तो फिर उस अकेले लड़के के पूर्व जन्म के फल का क्या अर्थ ? 
तो हमें पूर्व जन्म के कर्म फल के हिसाब किताब लगाने  की बजाय । मोक्ष पाने के चक्कर में पड़ने की बजाय । अपने स्वभाव को अच्छा बनाने में । बच्चों को अच्छे संस्कार देने में ।  दूसरों के अबगुण देखने के बजाय अपने अबगुण देखने चाहिए । अच्छा यही होगा कि पिछले जन्म जिसे हम देख नहीं सकते हैं ? को देखने की बजाय ? इसी जन्म को देखें । इसी में सुख है । इसी में मन की शांति है । गीता में भी कहा गया है - कर्म करो । फल की इच्छा मत करो । क्योंकि कर्म करना । सुख प्रदान करता है । जबकि फल की इच्छा दुख प्रदान करता है । तो फिर पूर्व जन्म के कर्मों के  बारे में खाम खां दिमाग क्यों खराब करें ? क्योंकि जो कर्म हम कर चुके है । उनको  बदल पाना संभव नहीं है ? अगला जीवन और पिछला जीवन किसने देखा ? बस इसी जन्म को सुधारो । अच्छा करो । वह काम करो । जिसके करने पर आपका ही मन न धिक्कारे । तो आप भय रहित जिएंगे । और आप काल्पनिक नरक की ? काल्पनिक यातनाओं ? से भी बचेंगे ।
मोक्ष क्यों पाना चाहते हैं - सब लोग ?  इसलिए कि जहाँ आकांक्षा /इच्छा है । वहीं दुख है । अतः फल और मोक्ष की इच्छा /आकांक्षा न करें । हमें अपनी आदत ही बना लेनी चाहिए । अच्छे कर्मों को करने की । बस सुख ही सुख ही होगा । हमारी ज़िंदगी में ।
यहाँ प्रश्न यह उठता है कि - भाग्यशाली कौन है ? और दुर्भाग्य शाली कौन है ? 1 तरफ तो यह कहा जाता है कि - बड़े भाग मानुष तन पावा । अर्थात पिछले जन्म के कर्मों के फलस्वरूप यह मनुष्य जन्म मिला । अगर मान भी लें कि ऐसा हो सकता है । लेकिन उस मामले में क्या कहेंगे कि जिसने पिछले जन्म में अच्छे कार्य करके मनुष्य योनि ( स्त्री या पुरुष की ) पा ली । परंतु वह व्यक्ति ( बच्चा । लड़का या लड़की ) जन्म लेते ही/जन्म लेने

के कुछ दिनों । महीनों । वर्षों के बाद  मर जाता है । और वह यह समझने योग्य भी नहीं हो पाता है कि - अच्छे बुरे कर्म क्या हैं ? जीवन । मृत्यु । और मोक्ष क्या है ? और मर जाता है । जन्म लिया मनुष्य योनि में । क्योंकि वह बच्चा भाग्यशाली था ?? और कुछ ही दिन । माह । वर्ष जिंदा रहने के बाद बोरबेल में गिरकर मर जाता है ।  क्या केवल इसलिए कि वह दुर्भाग्यशाली था ? इतने कम समय में उसने ऐसा क्या कर दिया कि - वह भाग्यशाली से दुर्भाग्यशाली हो गया ? उसको बचाने के लिए माँ । बाप । पड़ोसियों । सेना के जवानों । सरकार सभी ने हर संभव कोशिश की । लेकिन निकला । तो मरा हुआ । क्यों ? क्या पाप कर लिए थे । इतनी छोटी सी उमृ में ?  उसके माँ बाप के आँखों का तारा चला गया । उनकी रो रोकर जान निकली जा रही है । लेकिन ईश्वर को तरस नहीं आ रहा है । क्योंकि ईश्वर  बड़ा ही दयालु और न्याय प्रिय है । यहाँ क्या कोई बताएगा कि - 1 उस बोरबेल में गिरे बच्चे ने कुछ ही समय में कौन कौन से पाप कर लिए थे ?
2 ज्ञानी लोग कहते आए हैं कि - बड़े भाग मानुष तन पावा । तो वह बच्चा जो " भाग्यशाली " होने का गोल्ड मैडल लेकर पैदा हुआ । तो ऐसा क्या हुआ कि वह " दुर्भाग्यशाली " होने  का मैडल पा गया ?
3 मैं मेरे जीवन में घटित बात बताता हूँ । मेरे 2 बेटियों के बाद बेटा हुआ । होने के अगले दिन टिटनिस हो गयी । इलाज चला । 8 दिन बाद मर गया । विचारणीय है कि - बड़े भाग उसने मानुष तन पाया । चलो मान लिया । लेकिन 1 दिन में ही वह या मैं दुर्भाग्यशाली कैसे हो गया ? या 1 दिन में ही उसने ऐसे क्या पाप कर डाले ? जो उसे मर जाना पड़ा ? 8 दिन के जीवन में न तो उसने पाप किए । न पुण्य  कार्य किए । तो उसको स्वर्ग या नर्क किस आधार पर मिला होगा ? अगर मोक्ष मिली ? तो इसका मतलब हुआ कि जितने भी शिशु जन्म के कुछ समय बाद मर जाते है । उन सबको मोक्ष मिल जाती है ?
4 अब चूंकि वह मोक्ष के लिए विना प्रयास किए ही मर गया । और कहा गया है कि विना गुरु विना  प्रयास । विना कामना के । विना पुण्य कार्य किए " मोक्ष " मिल ही नहीं सकता है । और ये सब कार्य करने से पहले ही वह  बच्चा मर गया । तो इसका अर्थ हुआ कि वह बच्चा 84 00 000 योनियों में हमेशा ही जीवन मृत्यु के चक्कर में फंसा रहेगा । जबकि उसका कोई दोष नहीं ?
मेरा इतना और केवल इतना निवेदन है कि - मैं किसी की धार्मिक । आध्यात्मिक भावनाओं को बिलकुल ठेस नहीं पहुंचाना चाहता हूँ । मेरे विचार से कृपया कुछ क्षण रुककर इस पर मनन करें कि इस जीवन के पार भी क्या कोई जीवन है ? शायद ? कोई जीवन नहीं है ? जो कुछ है । बस यही जीवन है ? जो कुछ होना था । हुआ ? जो कुछ होना है । वह होगा ? होकर रहेगा । इसमें किसी का न कोई हस्तक्षेप था ? न हो सकेगा । हस्त रेखाये दिखाकर । किसी विशेष धातु की अंगूठी पहनकर । कर्मकांड करके । नदियों में पैसे फेंककर । गंगा स्नान करके । आप  " होनी  " को बदल/टाल नहीं  सकते हैं ?  हाँ  हम ये सब करके अपना कीमती समय जरूर बर्बाद कर सकते हैं । कर रहे हैं ।
क्योंकि हमे वर्तमान में जीना चाहिए । हमें न तो भूत की चिंता करनी चाहिए । न भविष्य की ? हमें " चिंतन " करना चाहिए । न कि चिंता ? जो कुछ है । वो वर्तमान है । आगे - तू जाने ना । पीछे भी - तू जाने ना । जो कुछ भी है । बस यही 1 पल है ।  इसको तू गंवाना ना ।
बस 1 बात जो सबसे महत्वपूर्ण है । वो यह कि मोक्ष की चिंता किए विना हमें अच्छे कार्य करने चाहिए । दूसरों की मदद करनी चाहिए । प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भी किसी को दुख नहीं पहुंचाना चाहिए । ये सब कुछ किसी दबाव में नहीं । मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से नहीं । बल्कि जीवन की  नैतिकता के आधार पर करना चाहिए । यही सबसे बड़ा कर्म है ? यही सबसे बड़ा धर्म है ?? यह मत सोचो कि ईश्वर ने हमें किसी विशेष उद्देश्य से भेजा है ? बल्कि यह सोचो कि हमारा उद्देश्य हम खुद बनाएँ कि हम किसी और के जीवन को अच्छा बनाने में क्या क्या मदद कर सकते  हैं ? अगर हमें ईश्वर ने किसी विशेष उद्देश्य से भेजा होता । तो बोरबेल में गिरकर मर जाने वाला बच्चा मर नहीं जाता ? क्योंकि इतने कम समय में उसने तो यह भी नहीं जाना कि " उद्देश्य " का मतलब क्या होता है ? बिना उद्देश्य पूरा किए ही ईश्वर ने उसे क्यों " अपने पास " बुला लिया ? हमें तो बस यह करना चाहिए कि विना किसी इनाम की इच्छा के । बल्कि ईमानदारी । सच्चाई । अहिंसा । प्रेम की भावना से । दूसरों की सेवा  करें  ( सब ही या इनमें से जो भी आपके लिए संभव हो ) रास्ता पकड़  ले । और चलते  जाएँ ।  चलते  जाएँ । अपने से ये पूछे विना कि - मैं ये करूँ । या न करूँ ?  कभी सोचा है कि - क्या आपका दिल जो हमेशा 1 पल भी रुके विना लगातार जन्म से लेकर अब तक पूरे शरीर को खून और ऑक्सीज़न पहुंचाता रहता है । कभी आपसे पूछता है कि मैं अपना काम करता रहूँ । या नहीं ? उसने इस नेक काम करने के लिए जो वह  विना पूछे करता रहता है । वह यह  पूछने  के लिए 1 बार 1 क्षण के लिए भी रुक गया । तो क्या आपने सोचा है कि क्या आप या हम ज़िंदा भी रह पाएंगे ? नहीं । हम ये पूछ भी नहीं पाएंगे कि - यार ! मेरे दिल तूने धड़कना क्यों बंद कर दिया । जीवन का उद्देश्य कभी भी  " बुरा " तो हो ही नहीं सकता है ।
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मरना कोई नहीं चाहता पर स्वर्ग सब चाहते हैं


क्या ईश्वर है ? Does God Exit ? इससे पहले हम इस पर विचार करें कि - जीवन क्या है ? और मृत्यु क्या है ? 1 योगी पायलट बाबा हुए है । उनके विचार गंभीरता से समझने योग्य है । उन्होंने कहा कि - मरने के बाद हमें या हमारे प्रिय व्यक्ति को स्वर्ग में स्थान प्राप्त हो । तभी तो जो मर जाता है । उसके लिये यह जाने विना कि उसे स्वर्ग मिला या नहीं  ” स्वर्गवासी ” शब्द का प्रयोग करते हैं । हम केवल यही नहीं चाहते है । बल्कि ये भी चाहते हैं कि हमारा प्रिय व्यक्ति - बेटा । बेटी । पति । पत्नी । प्रेमिका । पहले तो मरे ही नहीं । और अगर मर जाय । तो स्वर्ग में स्थाई निवास करे । अर्थात वह नर्क में बिलकुल या कभी न जाय । नर्क कोई नही चाहता है क्यों ? क्योंकि हम जबसे थोड़े से समझदार हुये हैं । तबसे यही सुनते आए हैं कि स्वर्ग में बहुत आनंद ही आनंद है । और नर्क में घोर कष्ट ही कष्ट मिलते  हैं । और यह स्वर्ग और नर्क मरने के बाद ही मिलता है ।
विडम्बना यह है कि मरना कोई नहीं चाहता है । लेकिन स्वर्ग के आनंद सब लेना चाहते हैं । जब स्वर्ग  के  आनंद का अनुभव नहीं कर पाते हैं । तो हम लोग कल्पना लोक में चले जाते हैं । और ऐसी ऐसी कल्पनाएं करने लगते है । जो वास्तविकताओं से बहुत दूर हों ? बड़ा आश्चर्य भी होता है कि जो वातें/क्रिया कलाप समाज में रहते हुए करना बुरा/पाप माना जाता हैं । वे सब बातें/क्रिया कलाप स्वर्ग में मिलने की बातें कही जाती रही है । जैसे कि - सुरा और सुंदरी ।
मोक्ष moksh Salvation Deliverance मोक्ष पर वार्ता करने से पहले यह विचार करना चाहिए कि - मोक्ष क्या है ? धर्मग्रंथों में बताया गया है कि संसार में जितने भी प्राणी है ( जिनमें प्राण हैं । चेतना है । जीवन है ) वे सभी (

मनुष्य । जानवर । पक्षी । कीट । पतंगे । जीवाणु आदि ) जीवन धारण करते हैं । अर्थात जन्म लेते हैं । और जीवन छोड़ते है । अर्थात मर जाते है । सभी धर्म ग्रंथों में यह भी बताया गया है कि - सभी प्राणियों में आत्मा होती है । जो न कभी जलती है । न कभी मरती है । और न नष्ट होती है । यह 1 शरीर की मृत्यु होने पर शरीर को छोड़ जाती/निकल जाती है । और मरे हुए लोग किये गए कर्मों के फल के अनुसार अच्छी बुरी योनि अर्थात मानव । जानवर । पक्षी । कीट । पतंगे । जीवाणु । जो जन्म लेते हैं । उनके शरीर में प्रवेश कर जाती है । मनुष्य योनि सबसे अच्छी होती है । क्योंकि इसका स्तर उच्चतम है ? क्योंकि केवल मानव में ही बुद्धि होती है ? ज्ञान प्राप्त करने और ज्ञान देने की ? इसमें क्षमता होती है । अन्य प्राणियों में नहीं ? और चूँकि मनुष्य के अलावा अन्य योनियों में चूँकि बुद्धि का स्तर बहुत कम होता है ? इसलिए अन्य योनियों को अपने स्तर को सुधारने /विकसित करने के अवसर बहुत कम होते हैं । संभावना बहुत कम होती हैं । अपने जीवन को सुधारने हेतु । ये स्वयं कुछ नहीं कर सकते हैं । अतः बे सब हमेशा भय । कष्ट । पीड़ा का सामना करते हैं । इसलिए मनुष्य योनि के अलावा सभी योनियाँ कष्टकारी हैं । 1 नाली का कीड़ा गंदगी में रहने के लिए बाध्य होता है । वह अपनी बुद्धि से किसी साफ़ सुथरे स्थान पर नहीं जा सकता । 1 कुत्ता है । उसकी अगर् टांग टूट जाय । तो वह 

अपनी बुद्धि से अस्पताल नहीं जा सकता है । कष्ट सहता रहेगा ? चूँकि मानव ने अन्य योनियों के प्राणियों के कष्ट देखे हैं । तो वह चाहने लगा कि मरने के बाद कष्ट भोगी प्राणी न बनूँ । नहीं तो घोर कष्ट पाऊँगा । और उसने कल्पना कर ली । छुटकारा पाने की । काल्पनिक उपायों की । जिसका नाम दिया - मोक्ष । इस प्रकार मोक्ष असल में । मरने के बाद अन्य योनियों में जन्म लेने । और मरने के चक्र से बचना है । यह सब भय से उत्पन्न कल्पना है ? इस जीवन के बाद किसी अन्य जीवन में जाने की बात । तथा जीवन मरण  की प्रक्रिया से बचने के उपाय । ये दोनों ही बातें काल्पनिक हैं । न तो ईश्वर उस रूप में है ? जिस रूप में उसकी कल्पना करके उसके रूप दिए गए हैं ? इसी तरह आत्मा भी नहीं होती है ? सच पूछा जाय । तो GOD की कल्पना ने ही आत्मा को जन्म दिया

? और आत्मा की कल्पना ने मृत्यु के बाद जीवन को जन्म दिया । और मृत्यु के बाद जीवन ने मोक्ष की कल्पना को जन्म दिया । अर्थात मोक्ष प्राप्त कर सकता है । इसलिए आदि गुरु शंकराचार्य ने कहा है - प्रत्येक मनुष्य ( स्त्री या पुरुष ) बहुत ही भाग्यशाली हैं । क्योंकि मनुष्य योनि प्राप्त हुई है । क्योंकि मनुष्य का जीवन ही 1 ऐसी गाडी है । माध्यम है । जिसके द्वारा मनुष्य जीवन के आवागमन 84 00 000  योनियों में आने और छोड़ने और फिर आने और छोड़ने के बंधन । कष्ट से मुक्त हो सकता है । अर्थात मोक्ष प्राप्त कर सकता है । इसलिए मानव जीवन को यूँ ही धर्म विरोधी कार्यों को करते हुए जीकर बर्बाद नहीं करना चाहिए । सबसे ज्यादा भाग्यशाली वह मानव है । जिसको मोक्ष पाने की तीवृ इच्छा होती है ।
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1 मटर के दाने से बनी है पूरी दुनियां


यह सदियों से जिज्ञासा का बिषय रहा है कि - आखिर यह बृह्मांड ( दुनियाँ ) किसने बनाया ? कब बना ? कैसे बना ? इसका जबाब तलाश करने के लिए बहुत सारी कल्पनाएं की गयी ? ये कल्पनाएं ? 2 भागों में बांटी जा सकती हैं ।
1 धार्मिक क्षेत्र के विद्वानों द्वारा  2 विज्ञान के क्षेत्र के विद्वानों द्वारा ।
धार्मिक क्षेत्र में कहा गया कि इस UNIVERSE की रचना GOD ने की । कुछ धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भगवान के अलावा यह कार्य कोई और कर ही नहीं सकता है । GOD ने ही प्रथ्वी की रचना की । और  जीवों की । जिससे मानव । पशु । पक्षी  वनस्पति आदि बने । किसी कथा में आता है कि - यह प्रथ्वी गाय के सींगों पर टिकी हुई है ? और यह  माँ की तरह हमारा लालन पालन कर रही है । इसलिए हम सब इसे पृथ्वी माता कहते है । जब गौ माता अपने सींगों को हिलाती है । तभी  भूकंप । ज्वालामुखी । तूफान आदि आते हैं । इन आधारहीन बातों को लोग पहले तो मानते थे ? पर इनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं । बस आधार है । तो केवल आस्था का । और अंध भक्ति का ।
विज्ञान के क्षेत्र में विद्द्वानों के द्वारा प्रथ्वी और बृह्मांड की उत्पत्ति में भगवान का कोई हाथ/प्रयोजन नहीं माना जाता है ? बल्कि भगवान का अस्तित्व शरीर धारी के रूप में नहीं । 1 परम शक्ति जिसे हम प्रकृति NATURE कहते हैं ? के रूप में माना जाता है ?  NATURE बादल ( वर्षा ) वायु । गर्मी । मिट्टी के रूप में नियंत्रित करती रहती है । इस प्रकार UNIVERSE की उत्पति किसी शरीर धारी भगवान ने नहीं ? बल्कि प्रकृति में स्वयं ? 1 महा विस्फोट BIG BANG के रूप में हुई । वैज्ञानिकों के द्वारा जो कुछ विज्ञान के नियमों को ध्यान में रखते हुये जो परिकल्पनाएं की गयी । समय समय पर नये नियमों की खोज होने के बाद नए नियमों के आधार पर पुरानी कल्पनाओं के स्थान पर नई कल्पनाओं ने स्थान ले लिया । जो  सबसे अधिक तर्कपूर्ण परिकल्पना THEORY दुनियाँ के  सबसे अधिक वैज्ञानिकों द्वारा मान्य है । वह BIG BANG 

THEORY  है । वैज्ञानिकों के अनुसार लगभग 14 अरब वर्ष पहले 1 मटर के दाने ? जैसे अति सघन पिंड ? के महा विस्फोट हुआ ? और उसी के बाद UNIVERSE का जन्म हुआ । दृश्य अदृश्य अन्तरिक्ष के समस्त गृह नक्षत्र और अन्य तत्व और यौगिक आदि इसी पिंड में दृव्य रूप में समाहित रहे थे ।  और कुछ भी नहीं था । बस 1 बिन्दु था ।
वैज्ञानिकों ने इसके लिए बहुत शक्तिशाली दूरवीन TELESCOPE बनाये । सैकड़ों वर्षों तक अध्ययन किया । और कई बातें जो रहस्य बनी थी के बारे में विश्वास किए जाने योग्य कारण/स्पष्टीकरण दिये । यद्यपि वैज्ञानिक अभी तक जो ज्ञान  प्राप्त कर पाये हैं । वह बहुत थोड़ा है ? लेकिन आधार हीन ज्ञान से ? तो आधार पूर्ण कुछ ज्ञान ज्यादा अच्छा है ? इसलिए वैज्ञानिको ने अपनी इस जिज्ञासा के तहत कि " महा विस्फोट " के ठीक पहले पल या पलों में क्या हुआ होगा ? और गृह । नक्षत्र । तारे । आकाश गंगा आदि का निर्माण कैसे हुआ होगा ? ऐसे अनेकों प्रश्नों की सूची वैज्ञानिकों के पास थी । जिनके वे संतोषजनक कारण /व्याख्या जानना चाहते थे । और इस पर तमाम वर्षों से प्रयोग करके किसी निर्णय पर पहुँचना चाहते थे । यह सब किसी 1-2 या 4 वैज्ञानिकों के द्वारा मिलकर खोज करना अत्यंत कठिन था । THEORY के आधार पर परिकल्पनाएं बहुत थीं । लेकिन उनको प्रक्टीकल करके जानना । अति कठिन कार्य था । परंतु करना तो था ही ।
उक्त विषय में कारण जानने के लिए जहाँ स्विटजरलेंड और फ्रांस देशों की सीमा है । वहाँ जमीन के 100 मीटर नीचे 27 Km लम्बी प्रयोगशाला बनाई गयी । जिसमे लार्ज हेडरेंन कोलाइडर नामक महा मशीन  लगाई गयी । उसमें अनेकों देशों के सैकड़ों वैज्ञानिकों ने अपना योगदान दिया । और इस मशीन से जमीन के अंदर ही प्रयोग किए । इसमे 9300 चुंबक लगाए गए । जो प्रोटान बीम को निर्देशित करते थे । प्रत्येक चुम्बक का तापमान 271.30  से0 था । इनको ठंडा रखने के लिए तरल निट्रोजन और हीलियम का उपयोग किया गया ( इसे दुनियाँ का सबसे बड़ा फ्रिज मान सकते है ) प्रोटान प्रति सेकेण्ड 11245 खरब चक्कर सुरंग ( जो विशेष रूप से बनाई गयी थी ) में लगाते थे । और प्रति सेकिण्ड  4 करोड़ प्रोटान टकराते थे ।
इन टकराहटों से जो आंकड़े उत्पन्न हुए ( मिले ) बे इतनी अधिक संख्या में थे कि केवल 20% को ही प्रयोगशाला में विश्लेषित किया जा सकता था । बाकी 80% आंकड़ों को  दुनियाँ की अन्य प्रयोगशालायो में विश्लेषण हेतु भेजा गया ।
इस प्रयोग में करीब 450 अरब रुपये का खर्चा हुआ । यह प्रयोग 10 SEPT 2008 को शुरू हुआ । और JULY 2012 में पूरा हुआ । प्रयोगों में प्रोटानो की " महा भिड़ंत " कराई गयी । ताकि परिकल्पना के आधार पर प्रयोगशालाओं में कुछ कुछ वैसी ही परिस्थितियाँ पैदा हो जाय । जो परिकल्पना के अनुसार महाविस्फोट अर्थात BIG BANG के समय रही होंगी । अर्थात UNIVERSE के उदभव के समय रही होंगी । वैज्ञानिकों ने यह संभावना जताई कि इस प्रयोग से कई मूलभूत कण Fundamental Particle निकल सकते हैं । जिनमें से 1 

हिग्ग्स बोसोंन कण हो सकता है । जिसके बारे में हिग्ग्स और सत्येन्द्रनाथ बॉस वैज्ञानिकों ने बहुत वर्षों पहले कल्पना कर ली थी । और इनके ही नाम पर हिग्ग्स बोसोंन नाम रखा गया । तथा इसको GOD PARTICLE भी कहा गया । परंतु वैज्ञानिक अभी तक यह निश्चित रूप से नहीं कह सके हैं कि जो Particle उन्होने खोजा है । वह हिग्ग्स बोसोंन कण ही है । अतः इस पर कार्य जारी है ।
क्या है - हिग्ग्स बोसोंन कण ?  तथा इसका UNIVERSE की उत्पत्ति से क्या संबंध है ?
विज्ञान के अनुसार पदार्थ और कुछ नहीं । बल्कि ऊर्जा का ही दूसरा रूप है ? अर्थात पदार्थ और ऊर्जा 1 ही चीज हैं ? ऊर्जा का कोई दृवमान अर्थात भार नहीं होता । और इसी भार की बजह से यह UNIVERSE अस्तित्व में आया ? अब प्रश्न यह है कि - यह दृव्यमान ( भार ) कहाँ से आया ? कैसे आया ? आता है ? यह बात इस तरह सरलता से समझी जा सकती है कि - हिग्ग्स बोसान नाम की परिकल्पना इसी जबाब की खोज से संबन्धित है । माना जाता है कि लगभग 14 अरब  वर्ष पहले ऊर्जा के BIG BANG के बाद सेकिंड  के पहले अरब बे हिस्से ( सेकंड के 1 00 00 00 000 भाग के प्रथम भाग । अर्थात 1/ 1 00 00 00 000 भाग ) के दौरान भार रहित भौतिक कण प्रकाश की गति से अर्थात 3 लाख Km की गति से विखरने लगे । उसके बाद ये कण हिग्ग्स फील्ड के रूप संपर्क में आए । संपर्क में आने के बाद ये सभी कण भारी हो गए । और इनके आपस में मिलने से ही प्रथ्वी की उत्पत्ति हुई । हिग्ग्स बोसान इस हिग्ग्स फील्ड का भार युक्त  प्रतिनिधि कण है ।
इसका महत्व इस बात से है कि इस प्रयोग और हिग्ग्स बोसान से यह  समझने में  सहायता मिलेगी कि दृव्यमान की उत्पत्ति कैसे हुई ? अर्थात भार कैसे ? और कहाँ से आता है ?
इसका नाम GOD PARTICLE क्यों और कैसे पड़ा ? जो मूलभूत कण खोज लिये जाने की संभावना वैज्ञानिकों ने जताई है । उसका नाम हिग्ग्स बोसान रखा गया था । पहले तो यह समझें कि - इसका नाम हिग्ग्स बोसान क्यों रखा गया ? ब्रिटेन के वैज्ञानिक पीटर हिग्ग्स तथा भारतीय वैज्ञानिक सत्येन्द्रनाथ बॉस ने बहुत पहले ही इस कण की खोज के बारे में परिकल्पना कर ली थी । इन दोनों के नाम पर ( हिग्ग्स + बॉस ) हिग्ग्स बोसान रखा गया । इस कण को प्रायः लोग  GOD PARTICLE  अर्थात ईश्वरीय कण के नाम से संबोधित कर रहे हैं । क्योंकि GOD का अर्थ - ईश्वर और PARTICLE का अर्थ - कण  होता है । इस आधार पर कहा जा रहा है कि - ईश्वरीय कण की खोज हो गयी है । और यह बात यह बताती है कि - कण कण में भगवान है । और इसी आधार पर यह पुष्टि होती है कि यह बृह्मांड ईश्वर/भगवान ने ही बनाया है ।
परंतु यह स्थिति भृम की स्थिति है । क्योंकि यह GOD PARTICLE  है । और चूंकि इसी कण/पदार्थ से  दुनियाँ 

का निर्माण हुआ है ? जबकि इस कण/पदार्थ का ईश्वर/भगवान /धर्म आदि से कोई लेना देना नहीं है ? इसकी कहानी एकदम अलग है । जो ज़्यादातर लोगों को नहीं मालूम है । हुआ यह कि लियोन लेडरमेन 1 वैज्ञानिक । जिसने नोवल प्राइज़ जीता ने पीटर हिग्ग्स के इस कण ( हिग्ग्स बोसॉन ) के सिद्धान्त की कटु आलोचना 1 पुस्तक लिखकर की । उसने पीटर हिग्ग्स को गलत सवित करने के लिए अपनी पुस्तक का नाम रक्खा था  GOD DAM PARTICLE  प्रकाशक ने जब पुस्तक की पाण्डुलिपि पढ़ी । तो सोचा कि इसका नाम भडकाऊ है । लोग पढ़कर बौखला जाएंगे । बबाल मचेगा । इसलिये प्रकाशक ने पुस्तक का नाम DAM शब्द हटाकर केवल  GOD PARTICLE रख दिया । जिस पर हिग्ग्स ने कोई आपत्ति नहीं की । तबसे इस कण का नाम GOD PARTICLE कहा जाने लगा । स्पष्ट है कि इस कण का ताल्लुक GOD ईश्वर/धर्म आदि से बिलकुल नहीं है ? यह कई मूल कण में से 1 मूल कण Fundamental Particle  है ।
इस संबंध में भारत के IIT संस्थान के वैज्ञानिक  प्रो. डॉक्टर रूप राम चौधरी और प्रो पंकज जैन जो इस   कार्य से जुड़े हैं का कहना है कि - इस मूल कण से धर्म या आध्यात्म से कोई संबंध नहीं है ? यह मूल कण है । स्टेंडर्ड माडल पूरी तरह से सफल नहीं होते हैं । क्योंकि जो आज खोजा गया पदार्थ है । उसके गुण में बदलाव भी आ सकते हैं । इसी संस्थान के वैज्ञानिक प्रो एच सी वर्मा ने बताया - अभी तक जितने मूल  कणों की परिकल्पना की गयी है । उनमे हिग्ग्स बोसॉन नाम के कण की खोज शेष थी । उसी कमी को पूरा करने के लिए यह प्रयोग किया गया था । यह फिर भी निश्चित नहीं है कि यह वही कण है ? जिसकी परिकल्पना की गयी थी । अर्थात जिसकी खोज शेष थी । प्रो तपोव्रत सरकार ने भी यही कहा - यह मूल कण है । यह GOD का मामला नहीं है ?
इस सम्पूर्ण विवरण से स्पष्ट है कि इस खोज में जिस कण की खोज की गयी है । वह वास्तव में वही मूल कण है । जिसकी खोज की जा रही थी ? दूसरी बात यह कि अगर यह सिद्ध भी हो जाय कि यह वही कण अर्थात हिग्ग्स बोसॉन कण है ।  फिर भी इसका धर्म/आध्यात्म/ईश्वर/भगवान आदि से कोई संबंध नहीं है । और यह प्रयोग यह सिद्ध करता है कि बृह्मांड ( प्रथ्वी । और गृह । और नक्षत्र आदि ) ईश्वर ने नहीं बनाए थे । http://myviews-krishnagopal.blogspot.in/2012/08/blog-post_7.html
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इस लेख के लेखक भारत सरकार के उच्च पद से रिटायर्ड ( 64 ) हैं । मैंने ये लेख सत्यकीखोज के पाठकों के चिंतन मनन व प्रश्नों के हेतु साझा किया है । आप चाहें । तो टिप्पणी द्वारा इस लेख में उठे प्रश्नों के उत्तर भी दे सकते हैं । या फ़िर ( मूल ) प्रश्न निकाल कर मुझसे उत्तर पूछ भी सकते हैं । इन सभी के सरल सहज प्रयोगात्मक स्तर पर उत्तर मेरे पास हैं ।

भूत कैसे भी हों पर होते है डरावने ?


क्या अत्रप्त आत्मा । आत्माएँ । भूत । प्रेत आदि होते हैं ? अत्रप्त आत्मा । आत्मायें । भूत । प्रेत आदि के अस्तित्व जानने के लिए हमें जानना होगा कि - आत्मा क्या है ? क्या आत्मा होती है ? अत्यंत आश्चर्य की बात है कि कम पढे लिखे लोग कहें तो कहें कि - आत्मा होती है । मृत्यु के बाद जीवन होता है ? लेकिन मुझे विश्वास नहीं होता है कि अत्यंत पढे लिखे लोग यहाँ तक कि मैंने पढ़ा है कि न्याय बिभाग के उच्च पद पर काम करने वाले तथा विज्ञान बिषय को पढ़ चुके कुछ लोग और यहाँ तक कि डाक्टर भी कह सकते है कि " आत्मा " होती है  ? भूत होता है । इसी प्रकार के वर्ग के लोगों ने इस धारणा को फैलाया है । जानते है कि ऐसे लोग क्या कहते हैं ? उपरोक्त धारणा के लोगों का कहना है कि - प्रत्येक व्यक्ति में 2 तत्व ? होते हैं ? 1 नाशवान शरीर ( फिजीकल बॉडी )  2 सूक्ष्म शरीर - अर्थात आत्मा । जीवात्मा ?
उनका कहना है कि - जीवात्मा अदृश्य है ? मेटाफिजीकल है ? जिसे केवल महसूस किया जा सकता है ? जब व्यक्ति मरता है । तो यह फिजीकल Body ( देह । शरीर ) मर  जाती  है । और आत्मा निकल कर ? दूसरे शरीर में प्रवेश करने के लिए यात्रा करती है । देह का मरना । जीवन का समाप्त हो जाना नहीं है ? बल्कि यह तो 1 पंक्चुएशन ( अल्प विराम ) है । जीवात्मा कभी जलती नहीं । कभी  मरती नहीं । यह  समय और सीमा से परे है । इसका न आदि है । न अंत है । मृत्यु इसे छू भी नहीं सकती है । ये लोग यह भी कहते हैं कि - मृत्यु के समय सभी व्यक्तियों । जीबों की समान परिस्थितियाँ । समान उमृ नहीं होती है । यह भी कहा जाता है कि 1 व्यक्ति जिसने जीवन में पूर्णता पाई । जीवन में पूर्ण संतुष्ट था । कोई इच्छा अधूरी नहीं रही । कोई अपराध बोध नहीं था । जिसकी कोई इच्छा बाकी नहीं थी । ऐसा व्यक्ति जब मरता है । तो वह स्वर्ग में जाता है । और हमेशा स्वर्ग में ही रहता है । ऐसे लोगों का कहना है कि “ गरुड पुराण ” में लिखा है कि ऐसे व्यक्तियों को स्वर्ग मिलता है । ऐसे व्यक्ति जीवन मरण के चक्र से मुक्त होकर “ मोक्ष ” प्राप्त कर लेता है ? और ईश्वर में हमेशा हमेशा के लिए समा जाता है ? लेकिन जो आत्मायें स्वर्ग में पहुँचती है । वे हमेशा के लिए स्वर्ग में नहीं रहती हैं । स्वर्ग क्या है ? और कहाँ है ? है भी कि नहीं ?  इस पर चर्चा मैंने अपने लेख Does Soul exist  में की है । ऐसे लोगों का यह भी कहना है कि - ऐसी आत्माओं को उनके पूर्व जन्म के कर्मों के फल के अनुसार पुनः नए जीवन ( योनि ) में आना पड़ता 

है । अगर बहुत अच्छे कर्म किए । स्वर्ग में अनुशासित रहे ? तो मनुष्य योनि मिलती है ? और अगर स्वर्ग में रिकार्ड खराब रहा । तो जानवर । पक्षी । कीट । पतंगा आदि की ( 84 लाख योनियों में से कोई ) योनि  में जाना पड़ता है ।  और भी विचित्र बातें ?  बताई जाती हैं कि - जो व्यक्ति आत्म हत्या करते हैं । वे इस संसार छोडने के  लिए योग्य नहीं माने जाते है । अतः उनकी आत्मा भटकती रहती है । क्योंकि उनके जीवन का निर्धारित  समय पूरा नहीं हुआ होता है । अतः चूंकि उसे दूसरे का शरीर मिल नहीं सकता है । तो आत्मा ? जाय । तो कहाँ जाय ?  अतः इसे तब तक भटकना पड़ता है । जब तक कि उस व्यक्ति की निर्धारित समयावधि पूरी नहीं हो जाती है । या कोई दूसरा शरीर प्रवेश करने के लिए न मिल जाय । यह जो मध्य काल ( वह समय जिसमे आत्मा 1 मृत शरीर से निकल तो जाती है । लेकिन दूसरा शरीर प्रवेश के लिए न मिल पाय )  होता है । यही भूतों का जीवन काल होता है । इतना ही नहीं । बल्कि कुछ धार्मिक पुस्तकों में यहाँ तक कहा गया है कि भूत भी कई तरह के होते हैं । मित्र भूत ( मदद करने वाले ) और शत्रु भूत ( बुरा । हानि कर देने वाले ) लेकिन भूत कैसे भी हों । पर होते है डरावने ?
ऊपर तो बे बातें हुई । जो धर्म  ग्रंथ और उपदेशक कहते आये हैं । कह रहे हैं । अब हम सब खुद विचार करें । जैसा मैंने कहा कि धर्म के विभिन्न तत्व जैसे कि - ईश्वर का अस्तित्व । जन्म । मृत्यु । मृत्यु  के बाद जीवन । मोक्ष आदि सभी 1 ही धुरी के चारो ओर घूमते हैं । और वह धुरी है - SOUL । अगर आत्मा के बारे में सत्यार्थ जान ले । समझ लें । तो इन सभी के सत्यार्थ पा जाएँगे । कंप्यूटर में जब कोई मीनू SELECT किया जाता है । तो उसके तमाम OPTION की LIST आकर ACTIVE हो जाते है । उसी तरह " आत्मा " का MENU SELECT करते ही । ये तत्व एक्टिव हो जाते हैं । यहाँ  विस्तार में नहीं जाना चाहता हूँ ( डिटेल पढ़ने के लिए मेरा लेख - क्या आत्मा होती है ? पढें ) फिर भी यहाँ विचारणीय है कि - क्या आत्मा होती है ? मेरे विचार से तो नहीं होती है । यह काल्पनिक है ? तो इससे जुड़ी बाकी सब बातें काल्पनिक ही हैं ? क्या दुनियाँ में ऐसा व्यक्ति है । जो स्वेछा से मरना चाहता हो ? नहीं । यदि कोई ऐसा है । जो स्वेच्छा से मरना चाहता है । तो उस समय वह ऐसा खुद नहीं सोचता है । बल्कि मस्तिष्क का उस समय क्षण भर के लिए अपने नियंत्रण का SWITCH OFF हो जाता  है । हम देखते है कि 90 वर्ष के आसपास की उमृ में दिलीप कुमार । 80  में जितेंद्र । धर्मेंद्र । और न जाने कितने कलाकार । नेता । समाज

सेवक आदि बालों को खिजाब से काले करते रहते हैं । और मैं स्वयं भी करता हूँ । ताकि स्मार्ट दिखें । मरने की कौन सोचता है ? ऐसा क्यों ? कि जीने की चाहत सबको है  ? उनको भी जो बीमारी में विस्तर पर कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियों से जूझ रहे हैं ? पश्चिमी देशों में तो 80-85 वर्ष की उमृ में वैज्ञानिक नोवेल पूरस्कार के लिए प्रयास करते हैं । और जीतते भी हैं । तो मरना कौन चाहता है ? नाली का कीड़ा । जो गंदगी में बिलबिलाता है । मरना वह भी नहीं चाहता है । उसे पकड़ें । तो वह भी पकड़ छुड़ाकर गंदगी में छिप जाता है । तो आदमी मरने की कैसे सोच सकता है ? तो फिर धर्म ग्रंथों में ऐसा कैसे कह दिया गया  कि जिस व्यक्ति ने जीवन पूर्ण संतुष्टि का जी लिया हो । उसकी कोई इच्छा बाकी न रही हो ? वह सीधा स्वर्ग में जाकर भगवान में लीन हो जाता है ?  सदा सदा के लिए । अर्थात “ मोक्ष ” को  प्राप्त  हो जाता है । और जिसकी इच्छा अपूर्ण रही । या जिसने इच्छा  रहते हुए भी आत्महत्या कर ली थी । वह मरने पर भूत । प्रेतात्मा । अत्रप्त आत्मा बन जाता है । कौन ऐसा है । जो मरते समय भी कोई न कोई इच्छा न रखे ? पहली इच्छा तो उसकी यही रहती है कि वह मरे ही नहीं । इसके बाद भी तमाम इच्छायें होती हैं । जब सभी मरने बाले कोई न कोई या अनेक इच्छाओं को लेकर मरते हैं । तो इसका मतलब हुआ कि सबको ही मरने के बाद भूत । अत्रप्त आत्मा बनना चाहिए ? जहाँ तक बात आत्मा की है कि यदि आत्महत्या की गयी । तो आत्मा  ट्रांज़िट  ( मध्यकाल ) में ही विचरण करती रहेगी । क्योंकि 1 शरीर से तो निकल आयी । लेकिन दूसरा शरीर मिला नहीं ( क्योंकि हो सकता है कि मरने वाले ने कार्य ऐसे किए थे कि उसे पशु योनि मिले । लेकिन कोई पशु का शरीर उस समय उपलब्ध न था ? क्योंकि पशु ने पशु योनि में इतने खराब कर्म किए होंगे कि उसे पशु से भी खराब योनि मिलनी है ) यह तो ऐसे ही लगता है कि आत्मा को 1 ऐसे  रेलबे स्टेशन से किसी ऐसी जगह  जाना हो । जहाँ के लिए कोई डायरेक्ट ट्रेन न हो । इसलिए उसे अगले जंक्शन जहां से उस स्थान के लिए ट्रेन 10 घंटे बाद जाती हो । तो आत्मा उस जंक्शन पर जाकर 10 घंटे WAITING ROOM में प्रतीक्षा करे । और जब उसकी ट्रेन आए । तब ट्रेन में चढ़े । सवाल यह है कि यदि आत्मा होती है । तो वह भटके ही क्यों ? इस संसार में तो अरबों हजार अरब अर्थात अनगिनत जीव हैं । जबकि धर्म ग्रंथ

तो उनको ही जीब  मानते हैं ?  जो दिखायी पड़ते हैं ? क्या वे जीवाणु जो दिखाई नहीं देते । बे जीव नहीं है ? यदि उनमे जीवन नहीं है । तो बे शरीर में पहुँचकर अंगों को क्यों और कैसे खा जाते हैं ? जरा सोचें । मेरे  विचार से जीव वह है । जिसमें जीवन है ? जिसमें वृद्धि और गति के गुण हों । कितना आश्चर्यजनक है कि प्रेतात्माएँ मित्र भी होती हैं । और शत्रु भी ।  हानि भी पहुंचाती है । और लाभ भी । कोई आत्मा किसी को दुख क्यों दे ? अगर मरने वाले  से कोई दुश्मनी ही थी । तो जब वो ( आत्मा ) शरीर में थी । तब क्यों हिसाब किताब पूरा नहीं कर पायी ? क्यों हानि  नहीं पहुंचा पायी ? अब मरने के बाद आत्मा कैसे बदला ले लेगी ? शरीर तो मर गया । उसमें जो आत्मा थी । वह तो निकल आयी । तो अब बची तो आत्मा ही ? तो वह आत्मा क्या खुद से ही बदला लेगी ? वास्तविकता यह है कि जब बहुत से व्यक्ति पंडा । पुजारियों । धर्म के ठेकेदारों के चंगुल में फंसकर भी किसी तरह निकल जाते हैं । अर्थात पैसे नहीं देते हैं । तो उनको कहा जाता है कि -  तुम्हारी दोस्त /रिश्तेदार की आत्मा तुमसे बदला लेना चाह  रही है ( जबकि ध्यान से देखो । तो पता चलेगा कि बदला तो पुजारी/तांत्रिक तुमसे लेना चाह रहा है । क्योंकि मांगे थे 1001 रुपये । पर तुमने दिये 101 रुपये ? तो  डर दिखाकर ही तो बाकी 900 रुपए वह बसूल कर सकेगा । विना डर के तो 900 रुपये कोई देगा नहीं । )
कहा जाता है कि भगवान के यहाँ हर चीज का हिसाब किताब रखा जाता है । लेकिन यह सोचकर दिमाग चक्कर खा जाता है कि -  COMPUTER का आविष्कार तो अभी कुछ  समय पहले ही हुआ है । लेकिन क्या भगवान के एकाउंट आफ़ीसर श्री चित्रगुप्त जी महाराज ( जिन्हें जनम । मरण । पूर्व जन्म । मृत्यु के बाद जनम आदि का हिसाब किताब रखने के लिए APPOINT किया गया बताया जाता है )  ने अपने OFFICE के बड़े क्लिष्ट और पेचीदे कार्यों । जैसे कि बृह्मांड के अरबों खरबों जीवों में से किसको कब और कितने समय तक 84 लाख योनियों में से किस किस योनि में रखना है । किस किस प्राणी ने पूर्व जन्म में कितने अच्छे ( पुण्य के ) और कितने बुरे

( पाप के ) कर्म किए । गंगा नहाने  से जो पुण्य कमाए । उन कमाए गए पुण्यों के बाद किसके खाते में कितने पुण्य जोड़ने हैं । और पापों  की संख्या से कितने घटाने हैं । कितनी आत्माओं को मध्य काल ( ट्रांज़िट पीरियड ) में रखना है । कितनों को स्वर्ग में । कितने समय तक रखना है । कितनों को नर्क में रखना है । कितनों को अपने में लीन करके “ मोक्ष ” देना है ? आफ़िस में कितना स्टाफ है  ( यमराज । सहायक यमराज । कितने भैंसे हैं ) इनमें से कितने छुट्टी पर हैं ? कितने छुट्टी की दरखास्त दे रखे हैं ? कितने यमराज । सहायक यमराजों के TA बिल । बेतन पास हो चुके हैं । या बाकी ( पेंडिंग ) पड़े हैं आदि बातों का ( इतना रिकार्ड रखने के लिए तो गीगा और टेरा बाइट क्षमता की हार्ड डिस्क भी कम पड़ जाये ) रिकार्ड रखने बाले कमप्यूटर/सुपर कंप्यूटर/परम कंप्यूटर खोज करके रख रखे  होंगे । बरना यह काम Manually ( हाथ से लिखकर ) तो संभव  नहीं है ।
मेरे विचार से वास्तविकता क्या है ? उपरोक्त विवरण से मेरे विचार से तो स्पष्ट  हो जाता है कि जो कुछ है । वह वर्तमान ही है ? मरने के बाद कोई जीवन नहीं है ? न पूर्व जन्म के कर्मफल से हमारे इस जीवन के क्रियाकलाप निर्धारित होते हैं ? और न ही इस जन्म के अच्छे बुरे कर्मों का हिसाब मरने के बाद होगा ? जो कुछ होना है । बस इसी जीवन में होना है । और हमें देखना है । भोगना है । इस  संबंध में कुछ वास्तबिक घटनाएँ मेरे दिमाग में आ रहीं हैं । उरई ( जालौन जिला ) में मेरी पोस्टिंग थी । मैंने 1 परिवार में देखा कि बेटा बहू अपनी माँ को रोटी नहीं देते थे । माँ को आँखों से बहुत कम दीखता था । बे भारी वीमारी में भी इलाज नहीं कराते थे । तो पड़ोस का 1 व्यक्ति रोटी /इलाज में मदद कर देता था । तो बेटा बहू कहते थे कि तुम जानो । माँ की मदद के पैसे हम नहीं देंगे । तो वह पड़ोसी कहता था कि - आपसे कौन मांगता है ? क्या कभी मांगे है ? तुम्हारी माँ को मैं अपनी माँ समझ कर मदद करता हूँ । तुम दोनों के कीड़े पड़ेंगे । तो दोनों में झगड़ा होता था । मेरे ट्रांसफर पर मैं आगरा आ गया । मुझे बाद में सुनने को मिला कि उनका जवान बेटा फांसी लगाकर मर गया । सोचना चाहिए कि - क्या उन पति पत्नी के बुरे कर्म अगले जन्म के लिए पेंडिंग रहे ? नहीं । इसी जन्म में मिल गए । ऐसी बातें हम रोज अपने चारो ओर देखते है । फिर भी पूर्व जन्म के या अगले जन्म के फल को मानते हैं ।            
http://myviews-krishnagopal.blogspot.in/2012/08/blog-post_9.html
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इस लेख के लेखक भारत सरकार के उच्च पद से रिटायर्ड ( 64 ) हैं । मैंने ये लेख सत्यकीखोज के पाठकों के चिंतन मनन व प्रश्नों के हेतु साझा किया है । आप चाहें । तो टिप्पणी द्वारा इस लेख में उठे प्रश्नों के उत्तर भी दे सकते हैं । या फ़िर ( मूल ) प्रश्न निकाल कर मुझसे उत्तर पूछ भी सकते हैं । इन सभी के सरल सहज प्रयोगात्मक स्तर पर उत्तर मेरे पास हैं ।
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परमात्मा के भरोसे - योगी पतित हो सकता है । क्योंकि योगी को अपने बल का भरोसा होता है । 1 साधक पतित हो सकता है । क्योंकि उसे अपनी साधना पर भरोसा होता है । पर 1 शरणागत पतित कभी नहीं हो सकता है । क्योंकि उसे अपनी साधना और बल का भरोसा नहीं । प्रत्युत परमात्मा का भरोसा होता है । परमात्मा के भरोसे रहने वाले का कभी भी पतन हो ही नहीं सकता है । इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा कि - मेरा भक्त कभी भी गिर नहीं सकता ? मेरे भक्त का कभी भी पतन नहीं होता है ? सद्गुरु कबीर साहब भी यही कहते हैं -
मन की मनसा मिट गई । दुर्मति भई सब दूर । जन मन प्यारा राम का । नगर बसै भरपूर ।
अब तो प्रभु के नगर में बसा जाता है । अथवा अब इस दिल की नगरी में प्रभु भरपूर बसते हैं । प्रभु का प्यार बसता है । प्रभु की शरणागति बसती है । प्रभु समर्पण का तार छनकता है । ऐसे मैं मन की मनसा मिट गई दुर्मति भई सब दूर । श्रीकृष्ण कहते हैं - न मे भक्ता प्रणय स्मति । मेरा भक्त कभी नहीं गिरता ।
पाप । दुर्मति । दुख । दरिद्रता । लौकिक कष्ट । मानसिक परेशानी । सबका निदान प्रभु प्रेम है ।
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The bond that links your true family is not one of blood, but of respect and joy in each other's life. ~ Richard Bach

आप कहेंगे फिर मच्छर और अंग्रेजों को कैसे भगायें ?


मच्छर भगाने के लिए आप अक्सर घर में अलग अलग दवाएं इस्तेमाल करते हैं ! कोई तो liquid form में होती हैं ! और कोई कोई coil के रूप में । और कोई छोटी टिकिया के रूप में । और all out  good night  baygon hit जैसे अलग अलग नामो से बिकती हैं । इन सबमें जो कैमिकल इस्तेमाल किया जाता है । वो D एथलीन है । मेलफो क्वीन है । और फोस्टीन है । ये 3 खतरनाक कैमिकल हैं । और ये यूरोप में 56 देशों में पिछले 20-20 साल बैन हैं । और हम लोग घर में छोटे छोटे बच्चों के ऊपर ये लगाकर छोड़ देते हैं !  2-3 महीने का बच्चा सो रहा होता है ! और साथ में ये जहर जल रहा होता है । TV विज्ञापनो ने आम आदमी का दिमाग पूरा खराब कर दिया है ! वैज्ञानिकों का कहना है - ये मच्छर मारने वाली दवाए कई कोई बार तो आदमी को ही मार देती हैं । इनमें से निकलने वाली सुगंध में धीमा जहर है । जो धीरे धीरे शरीर में जाता रहता है । और कई बार आपने भी 

महसूस किया होगा । इसे सुघने से गले में हल्की हल्की जलन होने लगती है । ये जो 3 खतरनाक कैमिकल D एथलीन है । मेलफो क्वीन है । और फोस्टीन है । इन पर कंट्रोल विदेशी कंपनियों का है । जो आयात कर यहाँ लाकर बेच रहे हैं । और कुछ स्वदेशी कंपनियां भी इनके साथ इस व्यपार में शामिल हैं । तो आपसे निवेदन है - कभी भी इसका इस्तेमाल न करें ।
आप कहेंगे - फिर मच्छर कैसे भगायें ?
सबसे आसान उपाय है । आप मच्छरदानी का प्रयोग करें । सस्ती है । स्वदेशी है । पूर्व से पश्चिम । उत्तर से दक्षिण । सब जगह उपलब्ध है । और आजकल तो अलग अलग तरह की मिल रही है । 1 गोल प्रकार की है । 1 ऊपर ओढ़ कर सोने जैसी भी है । और इससे भी 1 बढ़िया उपाय है । नीम का तेल बाजार से ले आए । और उसको 

दीपक में डालकर बत्ती बनाकर जला दें । जब तक दीपक जलेगा । 1 भी मच्छर आसपास नहीं फड़केगा ।  40 -50 रुपए लीटर नीम का तेल मिल जाता है । और 2 से 3 महीने चल जाता है । 1 और काम आप कर सकते हैं । गाय के गोबर से बनी धूप या अगरबत्ती लें । उसको जलायें । सब मच्छर भाग जायेंगे । आजकल काफी गौ शाला वाले गोबर से बनी धूप अगरबत्ती आदि बना रहें हैं । आसानी से आपको उपलब्ध हो जायेगी । और आप अगर ये अगरबत्ती आदि खरीदेंगे । तो पैसा किसी न किसी गौ शाला को जाएगा । गौ शाला को पैसा जाएगा । तो गौ माता की रक्षा होगी । गौ माता की रक्षा होगी । तो भारत माता की रक्षा होगी । वो दूसरे जहर खरीदेंगे । तो 1 तो आपका - पैसा बर्बाद । और दूसरा आपका - अनमोल शरीर । पूरी post पढ़ी बहुत बहुत धन्यवाद । यहाँ जरूर click करे । वन्देमातरम !
http://www.youtube.com/watch?v=YU7YKw1c3v8&feature=plcp
http://www.facebook.com/photo.php?fbid=490892277618454&set=at.137060829668269.14827.100000930577658.1762562085&type=1&theater

क्या जर्मनी की तरह भारत में भी क्रिकेट पर प्रतिबंध लगना चाहिए ? जर्मनी के तनाशाह एडोल्फ हिटलर ने 

1937 में जर्मनी में क्रिकेट पर प्रतिबंध लगा दिया था ? क्रिकेट खेल में सबसे अधिक समय बर्बाद होता है । क्रिकेट मैचों के दौरान पूरा भारत देश काम धाम भूलकर क्रिकेट में मग्न हो जाता है । क्रिकेट खेल में ज्यादा समय बर्बाद होता है । भारत की युवा पीढ़ियों पर क्रिकेट का नशा इस कदर छाया है कि - उसके आगे सभी काम ठप ।
Do you know why Adolf Hitler banned cricket in Germany ? In 1937 Adolf Hitler was watching a Cricket match that went on and on. Adolf Hitler kept asking when it would be over, and his minster told him it would continue the next day for the entire day and well into the evening. Adolf Hitler said - By the time this stupid game is over, I could have conquered three countries.
आज जर्मनी दुनिया का सबसे धनी व औद्योगिकीकृत देश है । जर्मनी समूह 8 के सदस्य है । 8 का समूह । समूह 8 ( Group of Eight - G8 ) 1 अन्तर्राष्ट्रीय मंच है । इस मंच की स्थापना फ्रांस द्वारा 1975 में समूह 6 के

नाम से विश्व के 6 सबसे धनी राष्ट्रों की सरकारों के साथ मिलकर की थी । यह राष्ट्र थे - फ़्रांस । जर्मनी । इटली । जापान । ब्रिटेन । और संयुक्त राज्य अमेरिका । 1976 में इसमें कनाडा को शामिल कर लिया गया । और मंच का नाम बदलकर समूह 7 कर दिया गया । 1997 में इसमें रूस भी शामिल हो गया । और मंच का नाम समूह 8 हो गया । विश्व का कोई भी विकसित राष्ट्र क्रिकेट नहीं खेलता । अमेरिका । जापान । रुस । चीन । फ्रांस ।जर्मनी इत्यादि तमाम विकसित राष्ट्रों ने क्रिकेट को कभी नहीं अपनाया । इसका सीधा सा कारण यही है कि - इस खेल में सबसे अधिक समय लगता है । और आज के प्रतिस्पर्धा के युग में कोई भी देश अपना ज्यादा समय महज खेल देखने पर व्यय करने को राजी नहीं है । आज इस क्रिकेट की वजह से भारत की उत्पादक क्षमता आधी से भी कम बनी हुई है । देश की हालत यह है कि - भृष्टाचार और महंगाई की मार के बीच जनता पिस रही 

है । और कीमतें आसमान छू रहीं हैं । कांग्रेस घोटालों की सरकार के कई मंत्री घोटालों में फंसे हुए है । जिन्होंने देश की भोली भाली जनता का रुपया लूटकर अपनी अपनी तिजोरियां भरने का काम किया है । आजाद भारत देश में अंग्रेजों के खेल क्रिकेट खेलने की प्रासंगिकता क्या है ? भारत देश में अंग्रेजो के खेल क्रिकेट को खेलने वाले क्या हम इतनी जल्दी भूल गए कि - देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करने के लिए लाखों हिंदुस्तानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी । जेल की यातनाएं झेलीं । तब कहीं करीब 64 साल पहले 15 AUG 1947 को बड़ी मुश्किल से अंग्रेजों को यहाँ से भगाया जा सका ? भारत के महान नागरिको को 250 साल तक अपमानित करके लूटने वाले अंग्रेजों के खेल क्रिकेट को हम अपने राष्ट्रीय खेल हाकी के समक्ष वरीयता नहीं देनी चाहिए । भारत देश का राष्ट्रीय खेल हाकी है । न कि क्रिकेट । इसलिए हमें महत्त्व हाकी को देना है । और बढ़ावा भी हाकी को ही देना है ।
अंग्रेजों के खेल क्रिकेट ने भारत देश का बेड़ा गर्क कर दिया है । आजाद भारत में अंग्रेजों के खेल क्रिकेट को खेलने और TV में देखने से पहले जरा आप सोचिये । फिर निर्णय करें । हम भारतीय को राष्ट्र खेल हाकी खेलना चाहिए । क्रिकेट विदेशी गुलामी का प्रतीक खेल है । क्रिकेट सिर्फ वही देश खेलते हैं । जो कभी न कभी ब्रिटेन के 

गुलाम रहे हैं । यदि अंग्रेज के पूर्व गुलाम राष्ट्रों को छोड़ दें । तो दुनिया का कौन सा स्वतंत्र राष्ट्र है । जहाँ क्रिकेट का बोलबाला है ? यह हमारे इतिहास की विडम्बना है कि - सचिन । महेंद्र सिंह धोनी । विराट कोहली । युवराज सिंह । हरभजन सिंह के जन्म दिवस पर आजाद भारत देश भर में केक काटे जाते हैं । लेकिन - मंगल पांडे । चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह के जन्म दिनों की तारीखें हमारी युवा पीढ़ी को याद नहीं हैं । आज यदि हम स्वतंत्र हवा में सांस ले पा रहे हैं । तो यह उन अनेक वीर भारत वासियों की बदौलत है । जिन्होंने अपने वतन को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करने के लिए अपनी जान तक की बाजी लगा दी थी । आजा़दी के मतवालों और शहीदों को सलाम । उनकी कुर्बानी ने हमें आजा़दी की सांस मुहैय्या कराईं । लेकिन हिंदुस्तांन के आजा़द होने के तकरीबन 65 साल बाद भी अंग्रेजो के खेल क्रिकेट को खेलने और TV में देखने को मिल जाए । तो आम भारतीय के साथ साथ उन शहीदों की आत्मा तक शर्मिंदा हो जाएगी । जिन्होंने अपनी जिंदगी देश की आन बान और शान पर कुर्बान कर दी थी ।
भारत देश की आज़ादी से पहले भारत में अंग्रेजों के बंगलों के मुख्य द्वार और बाउण्ड्री वाल पर लिखा होता था - इण्डियन एण्ड डॉग्स आर नाट एलाउड  While reading history we often read - Indians and Dogs Not Allowed here मतलब यह - हिन्दुस्तानी और कुत्तों का प्रवेश वर्जित है । तो क्या समझा जाए कि - अंग्रेजों की राय में भारतीय आदमी और कुत्ते 1 समान होते थे । आखिर वे क्यों नहीं भेद करते थे । 1835 में थामस मैकाले ने बहुत बढ़िया ढंग से ब्रिटिश उपनिवेशिक साम्राज्यवाद के उद्देशों को स्पष्ट किया - हमें 1 ऐसे वर्ग को बनाने की भरसक कोशिश करना चाहिए । जो हमारे और जिन पर हम शासन करते हैं । उन लाखों लोगों के बीच दुभाषिया हो सके । 1 वर्ग । जो खून और रंग में भारतीय हो । परंतु स्वाद में । राय में । भाषा । और बुद्धिमानी में । अंग्रेज हो । Lord Macaulay - let us create a class of people, Indians in their origin and blood but English in their tastes and manners भारत में जो लोग अंग्रेजो के खेल क्रिकेट को खेलते हैं । और TV में देखते हैं ।  वे भारतीय लार्ड मैकाले अंग्रेज की कल्पना हैं ।  मैकाले ने 12 OCT 1836 को अपने पिता को लिखे पत्र में कहा - आगामी 100 साल बाद भारत के लोग । रूप और रंग में तो भारतीय दिखेंगे । किन्तु वाणी । विचार और व्यवहार में अंग्रेज हो जायेंगे । हम हिन्दुस्तानियों की गुलामी की मानसिकता ही है । जो अपने पूर्व ब्रिटिश मालिकों के खेल क्रिकेट को अपने सीने से लगाये हुए हैं । भारत को विकसित राष्ट्र बनाना है । तो क्रिकेट के भुत से छुटकारा पाना ही होगा । अँग्रेज चले गए । लार्ड मैकाले भी चले गए । लेकिन हमारे देश में अंग्रेज मानसिकता के अवैध बीजारोपण की फसल आज भी बखूबी लहलहा रही है । मैकाले प्रणीत शिक्षा पद्वति के ढ़ांचे में पले बढ़े ये काले अंग्रेज ? सदैव अंग्रेजो के खेल क्रिकेट खेलना और TV में देखना अपनी शान समझते हैं । क्रिकेट ने दूसरे अन्य बड़े बड़े खेलों को निगल लिया । चियर गर्ल्स के नाम पर क्रिकेट में सरेआम अश्लीलता परोसी जाने लगी । वैश्विक स्तर पर क्रिकेट खिलाड़ियों की बोली - किसी वस्तु । सामान । मकान या पशु की भांति लगाई जाने लगी । बड़ी बड़ी शख्सियतों को ब्राण्ड एम्बेसडर बनाकर और जोशीले विज्ञापन की चकाचौंध में फंसाकर क्रिकेट को जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाने की कोई भी कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी गई । क्रिकेट का रोमांच जन जन में इतनी चतुराई से भरा गया कि - 1 परीक्षार्थी भी अपनी परीक्षा को दांव पर लगाकर क्रिकेट देखने लगा । अंग्रेजो के खेल क्रिकेट ने भारत देश का बेड़ागर्क कर दिया है । अंग्रेजो के खेल - क्रिकेट हटाओ । देश बचाओ । जागो भारतीय जागो । जय हिन्द । जय भारत । वन्दे मातरम ।
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