27 अप्रैल 2012

राजीव जी ! इतना झूठ मत बोलो

राजीव जी ! आपने " वैवाहिक जीवन समस्या सहायता : के ब्लाग में एक बार फ़िर छींटाकशी रामकृष्ण जी के काली उपासना पर करके अपनी पंथ दुराग्रहता उजागर कर दी दादा ! इतना झूठ मत बोलो । रामकृष्ण जी का पूरा वांगमय साहित्य पढो । अपने जीवन के अन्त काल तक वे काली माँ के अनन्य उपासक थे । स्वामी विवेकानन्द जी को माँ काली से मानने को कहा । तब विवेकानन्द जी अपनी पर्सनल बात भूलकर शक्ति  भक्ति भटके लोगों को ज्ञान द्वारा सही रास्ते पर लाने का आशीर्वाद माँगा । काली माँ की कृपा से विवेकानन्द जी जगत वन्दनीय बन गये । तोता पुरी जी ने उन्हें वेदान्त ज्ञान दिया था । राजीव जी ! ऐसी बेहूदी छींटाकशी से आप हमारी नजरों से गिर जाओगे । रोमन में लिखा हमारे एक नियमित पाठक का पत्र ।
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इससे पहले कि मैं इस शंका का कोई जबाब दे पाता । आपने आचार्य ( शब्द पर विशेष ध्यान दें । इसके अर्थ पर भी विशेष गौर करें ) श्रीराम शर्मा के बारे में यह ( मगर एकदम झूठी ) जानकारी देकर मुझे बेहद हैरत में डाल दिया । आपसे किसने कहा । ये झूठ ? या उन्होंने खुद किसी पुस्तक में लिखा ऐसा झूठ । महा झूठ । या किसी प्रचार षडयंत्र के तहत फ़ैलाया गया ये झूठ ।

देखिये ये महा झूठ - मेरे गुरुदेव पं.श्रीराम शर्मा जी आगरा के आंवलखेङा के जाये जन्में  " Light of india " से नवाजे गये । और उनका अब से पहले तीसरा - जन्म सन्त कबीर । दूसरे में सन्त रामदास जी । और बाद में रामकृष्ण परमहँस के रूप में आये थे । जिन्होंने  3200 पुस्तकें बिज्ञान और अध्यात्म पर लिखी ।

पर क्या आप जानते हैं - कबीर का आज तक कभी जन्म ही नहीं हुआ । यह सचखण्ड की प्रतिनिधि आत्मा हमेशा प्रकट होती है । और कोई 1 खास आत्मा ही इस नाम से नहीं आती । इस उपाधि योग्य कोई भी आत्मा भेजी जा सकती है ।
रामदास और रामकृष्ण इसी 5 भूत के मल मूत्र शरीर के साथ जन्में थे । और बाद में अपने पूर्व जन्मों के पुण्य फ़ल आधार पर आत्म ज्ञान को प्राप्त हुये । इसके बाद इनका भी लिंग योनि संयोगी जन्म होना नियम अनुसार बन्द हो गया । फ़िर कैसे हो सकता है । इनका श्रीराम शर्मा जैसा ? demotion full जन्म ।
युग ऋषि । वेद मूर्ति । तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य । आप  खुद देखिये । इस परिचय में कहीं सन्त लिखा है ? आत्म ज्ञानी लिखा है ? और ये स्वीकार करने में मुझे कोई दिक्कत नहीं । ये परिचय एकदम सही लिखा है । अब देखिये । श्री राम शर्मा का एकमात्र ज्ञान आधार ।
- ॐ भूर्भुव स्वः । तत सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात ।
अर्थ - उस प्राण स्वरूप । दुख नाशक । सुख स्वरूप । श्रेष्ठ । तेजस्वी । पाप नाशक । देव स्वरूप ? परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें ? वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे ।

और ये भी देखें - गायत्री वेद माता हैं ( ध्यान दें ) एवं मानव मात्र का पाप नाश करने की शक्ति उनमें है । इससे अधिक पवित्र करने वाला ? और कोई मंत्र स्वर्ग और पृथ्वी पर नहीं है ??
और ये भी - 3 माला गायत्री मंत्र का जप ? आवश्यक माना गया है । शौच स्नान से निवृत्त होकर नियत स्थान । नियत समय पर । सुखासन में बैठकर नित्य गायत्री उपासना की जानी चाहिये ।
अब सुनिये । आपके गुरु श्रीराम शर्मा अपने पूर्व कबीर जन्म में क्या कहते हैं - माला फ़ेरत जुग भया । फ़िरा न मन का फ़ेर । कर का मनका डार दे । मन 


का मनका फ़ेर । और भी देखिये - माला तो कर में फ़िरे । जीभ फ़िरे मुख मांहि । मनुआँ तो चहुँ दिस फ़िरे । ये तो सुमिरन नाहिं । फ़िर ऐसा कैसे हो गया कि - ये कबीर ?? कर माला फ़ेरने की बात करने लगे । ये 3
माला तो मैंने सिर्फ़ उदाहरण के लिये लिखी हैं । नीचे का लिंक देखें । पूरी माला सिन्हा ही फ़ेरने की बात कही है । जबकि कबीर ढाई अक्षर ? मुश्किल से जानते थे । वो भी । कहते थे - परमात्मा को मालूम है । मनुष्य बङा आलसी है ।  ढाई अक्षर ? भी भक्ति के लिये नहीं बोलेगा । तो परमात्मा ने ये आडियो फ़ाइल कन्टीन्यू प्ले आपके स्वांस में कर दी । बस सुन लो भाई ।
गायत्री माला ? की विस्त्रत जानकारी कृपया यहाँ भी देखें । इसी लाइन पर या नीचे लिंक पर क्लिक करें ।
http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80
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अब आईये । इस लेख के बिन्दुओं पर । लेकिन इससे पहले संसार में फ़ैले कुछ और भी झूठ देखें ।
1 झूठ - रामकृष्ण परमहंस के विषय में कहा जाता है कि - वे जिस काली मंदिर के पुजारी थे । वहाँ की काली की मूर्ति साक्षात प्रकट होकर परमहंस के हाथों से भोजन ग्रहण करती थीं । और उनसे बातचीत भी करती थी । इस चमत्कार के पीछे अटूट श्रृद्धा थी ।


सत्य - इस तरह कोई देवी देवता प्रकट नहीं होता । बल्कि वह ध्यान अवस्था होती है । स्थूल रूप से शरीरी प्रकट होना । कुछ विशेष कारणों से होता है । जबकि उस शरीर द्वारा कोई कार्य करते हुये संसार को कोई संदेश देना हो । जैसे नर सिंह अवतार हुआ ।
2 झूठ - दशहरे का पर्व था । गाँव के मंदिर के साधु बृह्म मुहूर्त में ही स्नान करने के लिये घर से निकले । रैदास की झोंपड़ी से गुजरते समय उन्होंने रैदास से पूछा - आज दशहरा है । स्नान करने नहीं चलोगे क्या ? रैदास ने प्रणाम ? करते हुए कहा कि - गंगा स्नान करना शायद मेरी किस्मत में नहीं है ? क्योंकि मुझे आज ही ग्राहक के जूते बनाकर देना है भाई । साधु से प्रार्थना ? करते हुए रैदास बोले कि - महाराज यह सिक्का लेते जाईये । मेरी तरफ से इसे गंगा माँ ?? को भेंट चढ़ा देना ।
सिक्का लेकर साधु चल दिये । पूजा 


पाठ और स्नान करके वापस लौटने लगे । भक्ति भाव में ऐसे डूबे कि - यह भूल ही गए कि रैदास ने गंगा के लिये भेंट भेजी थी । साधु तो रैदास की बात भूल कर चल दिये । लेकिन पीछे से स्त्री की सी कोई दिव्य आवाज आई - रुको । पुत्र रैदास ? द्वारा मेरे लिये भेजा गया उपहार तो देते जाओ । और एक दिव्य स्त्री मूर्ति के रूप में गंगा प्रकट हो गईं ।
सत्य - ये गंगा माँ ?? दरअसल देव आदि लोकों में विचरने वाली एक चुलबुली देवताओं ऋषियों का मनोरंजन करने वाली देवी है । जो एक श्राप और और अन्य कारणों वश सिर्फ़ 5000 वर्ष के लिये प्रथ्वी पर आयी थी । और कुछ ही दिनों पहले इसका समय खत्म हो गया । और ये प्रथ्वी से चली गयी । क्योंकि ये आन लगी मान्यता लेकर आयी थी । इसलिये विभिन्न कर्मकाण्डों में इसके बारे में प्रचलित आंशिक बातें सत्य है ।
- रैदास जैसे उच्च स्तरीय सन्त गंगा जमुना से माँ कभी नहीं कहते । और गंगा की तो हिम्मत ही क्या । 


जो उन्हें - पुत्र कहे । लेकिन ये घटना बदले रूप में सत्य है । रैदास ने सिक्का प्रसाद के लिये दिया था । लेकिन स्पेशली उस साधु का अभिमान चूर चूर करने के लिये । उन्होंने कहा था कि - गंगा को बोलना । ये रैदास ने भेजा है । उस साधु ने ऐसा ही किया । तब गंगा की जलधार में गंगा का सिर्फ़ हाथ प्रकट हुआ । उसने प्रसाद को बेहद श्रद्धा से लिया । फ़िर एक दिव्य कंगन उस साधु को देकर बोली -  ये मेरी तरफ़ से प्रभु को भेंट देना । ये पूरी जानकारी विस्तार से जानने के लिये मेरा लेख - गंगा का दिव्य कंगन । गूगल में सर्च कर मेरे किसी ब्लाग में पढें । क्योंकि कहाँ पोस्ट है ? याद नहीं । इसी रोचक सत्य घटनाकृम से - मन चंगा तो कठौते में गंगा । कहावत प्रचलित हुयी ।
3 झूठ - हनुमान का लंका मुद्रिका द्वारा जाना - कहते हैं । हनुमान पहली बार लंका जाने हेतु समुद्र पर उङे थे । 


तो उन्होंने राम द्वारा दी अंगूठी मुँह में रख ली । उससे उङ गये । 
सत्य - चलो मान लिया । उसी अंगूठी से उङ गये । फ़िर वापस कैसे आये ? अंगूठी तो सीता को दे आये थे । और अंगूठी से उङकर जा सकते थे । तो फ़िर समुद्र पार करने के लिये जो चिंता युक्त विचार मंथन पूरी टीम में हुआ । उसकी क्या वजह थी ? बाद में भी उनकी फ़्लायट जगह जगह उङती ही रही । वो कैसे उङी ?
उत्तर - ज्ञान की सिद्ध मुद्रिका द्वारा । ये मुद्रिका मुख के अन्दर तालु वाले स्थान पर होती है । और वहाँ निरंतर जीभ लगाने और संबन्धित योग द्वारा सिद्ध होती है । सिर्फ़ हनुमान नहीं । बहुत लोगों को सिद्ध हो जाती है । हुयी है ।
4 झूठ - तुलसी क्या राम के भक्त थे ? 
सत्य - तुलसी के पहले गुरु द्वैत मार्गी थे । तब उन्होंने अवतार राम की भक्ति की । पर उन्हें शान्ति नहीं मिली । तब फ़िर उन्हें आत्म ज्ञान के दूसरे सन्त 


मिले । और उन्होंने सत्य नाम को जाना । प्रसिद्ध रामचरित मानस । 2 बातें कहता है । 1 अवतार राम की कथा । जो वास्तव में प्रतीक रूप भी है । 2 सत्य नाम महिमा । देखें - बालकाण्ड और उत्तरकाण्ड । खुद अवतार राम ने इसी नाम की चर्चा की है । और शंकर आदि सबने इसी को परम सत्य बताया है ।
5 झूठ - मीरा क्या श्रीकृष्ण की भक्त थी ?
सत्य - मीरा बिलकुल बालपन में माँ के कहने से श्रीकृष्ण को अपना पति मान बैठी थी । लेकिन लगभग 16 वर्ष की ही अवस्था में उन्होंने रैदास से सत्य नाम की हँस दीक्षा ले ली थी । और इसी नाम का सुमरन करती थी ।
6 झूठ - जङ भरत की बलि देते हुये काली प्रकट हो गयी । और उन्हें बचा लिया ।
सत्य - इस अदभुत घटनाकृम में अज्ञानी लोग काली को महिमा मण्डित करने के लिये इतनी ही बात कहकर छोङ देते हैं । काली की चापलूसी का 


और भी नमक मिर्च जोङ देते हैं । 
सत्य - ये है कि - राजा के ऐसा करते ही बलि की खास शौकीन काली थर थर कांपने लगी । और उसने बलि से पहले ही हाथ पकङ लिया । और बोली - मूर्ख राजा ! तू ये क्या कर रहा है ? ये महान आत्मा हैं । मैं सीधी रसातल ( सबसे खतरनाक सजा की जगह ) में फ़ेंक दी जाऊँगी । और तेरा तो सोच भी नहीं सकती । क्या अंजाम होगा । ये घटना भी मेरे लेख - मूर्ख राजा ! तू ये क्या कर रहा है ? को गूगल द्वारा सर्च कर मेरे किसी  ब्लाग में पढें ।
इस तरह झूठ बहुत से हैं । पर अब आपके मूल बिन्दु पर बात करते हैं । और आपको विवेकानन्द की असलियत बताते हैं । विवेकानन्द ने 


रामकृष्ण द्वारा बहुत जल्दी सहज समाधि को सीख लिया था । और वे जान गये कि - ये मूर्ति पूजा आदि ढोंग सब व्यर्थ है । रामकृष्ण का एक और शिष्य कालू मूर्ति पूजक था । विवेकानन्द अभी कच्चे खिलाङी ही थे कि - समाधि पावर का दुरुपयोग करने लगे । विवेकानन्द ने समाधि में संकल्प करते हुये कालू का मूर्ति पूजा से ध्यान हटाया । शक्ति के वशीभूत कालू शालिगराम आदि पत्थरों को नदी में फ़ेंकने लगा । संयोगवश रामकृष्ण उसे ऐसा करते हुये देख रहे थे । उन्होंने सोचा - क्या मामला है । ये तो घोर मूर्ति पूजक है । फ़िर आज विपरीत विरोधी कैसे हो गया ? उन्होंने ध्यान

किया । तो विवेकानन्द की हरकत पता लगी । उन्होंने विवेकानन्द की समाधि  उसी दिन से रोक दी । और कहा - अब समाधि तुम्हें जीवन के अन्तिम दिनों में आयेगी । तब तक तुम्हें प्रचारक की भूमिका निभानी होगी ।
अब आपके सबसे खास बिन्दु पर बात करते हैं । दरअसल आपको जो पता है । और लोगों को जो पता है । भले ही वह आधा ही सही । पर खास कारण वश सत्य ही है । क्या है । वह कारण ?
द्वैत भक्ति और देवी देवता और कर्मकाण्ड विभिन्न जाति धर्मों में पैदा होते ही हरेक बच्चे को घुट्टी की तरह पिलाना शुरू हो जाते हैं । जबकि आत्म ज्ञान के जानकार । या परिवार । या संस्कार नगण्य ही होते हैं । इसलिये चाहे वह मीरा हों । रामकृष्ण हों । तुलसी हों । विवेकानन्द हों । इन्होंने लोगों की दृढ आस्था को ध्यान में रखते हुये । उनके भी भावों को महत्व सम्मान दिया । और दूसरा एक महत्वपूर्ण कारण और भी था । उदाहरण - जैसे बंगाल में काली पूजा का

बहुत जोर है । अभी तक है । रामकृष्ण ये बात अच्छी तरह जानते थे । और उनकी शुरूआत ही काली से हुयी थी । तब बाद में यकायक वे ये कहने लगते कि - नहीं । अब मैं सत्य नाम का साधक भक्त हूँ ।  और काली  इस तुलना में कोई महत्व ही नहीं रखती । असली सत्य और मोक्ष दाता सिर्फ़ सतनाम ही है । तो हंगामा ही हो जाता । रामकृष्ण को जबाब देना मुश्किल हो जाता । इसलिये इन सभी लोगों ने बङी चालाकी से काम लिया । घोर द्वैत वालों को द्वैत द्वारा साधते रहे । और योग्य पात्रों को ही ये गूढ ज्ञान बताया । अतः दोनों बातों का प्रचलित होना कुछ गलत भी नहीं है । आत्म ज्ञान वाले आत्म ज्ञान पक्ष को जानते हैं । और द्वैत वाले द्वैत पक्ष को । लेकिन बढा चढा कर भृमित कर देने वाली बातें दोनों ही किस्म के लोगों ने प्रचारित की । क्योंकि बाद के लोग सच्चे नहीं होते । वे सिर्फ़ उस व्यापार ? से धन और ऐशो आराम जुटाते हैं । ठीक यही सिद्धांत सभी के लिये लागू होता है ।
क्या आप जानते हैं - बुद्ध के नाम पर आज जो दुनियाँ भर में बौद्ध धर्म के मानने वाले लोगों को बताया जा रहा है । बुद्ध ने वह सब दूर दूर तक नहीं कहा था । आज इतना ही । साहेब ।

4 टिप्‍पणियां:

Sacred ने कहा…

chunaram bishnoi ji aap theory bahut padte hai jyada padne se confusion bahut hota hai aap aise blog per hai jaha na padne ke raste bataye ja rahe hai

abracadabra ने कहा…

बड़के भैया "चुना राम बिश्नोई जी " हमरी कनोलेज के हिसाब से तो तोतापुरी जी महाराज अभी कुछ समय पहले तक मुक्ति के लिए भटक ही रहे थे | अब शायद कहीं की सीट अरक्षित हो गयी हो तो कह नहीं सकते .... आगे भैया छोटा मुह बड़ी बात बोल दिए , अगर बुरा लगे हो तो ... तो हमका माफ़ी दै दो

chunaram vishnoi ने कहा…

Rajivji!aapke sriram sarma ,vivekanand,kabir" labels ke dono blogs padhe; mujhe to itni baat pe sahmti hai ki sadhkki aastha hi padartho me jivant praan rupi chirsma paida karti hai.Raidaas , kabir,ramkrisnji, ne apni sadhna tapschrya, v krtritv se desh kaal, disa ko hila diya. fir Gaytri ki upaasna se visvamitr ji ne brahmrishitva prapt kar lia,svami dayaand ji ne pankhnd ko samapt kia,gayatri ki sadhna se vasisthji raajkul guru ban kar Raam,lxman ko bala atibala vidya sikhayi jisse sita savyambar me parsuramji ka parkhar kop sant kia, sitaji ko varn karne me sekron rajao ko pichhe hatna pada, Ravn ko oj,tej varchs se jita, ye sab tripda gaytri k i falsruti hai, 'acharyjine 24 yrs gaytri purschran karke Aarsh sahitya ka bhasya kia , deski ajaadi me durdhrs sanghrs kia, adyatm v vigyaan ko samnvit kia,jisse bhart ke rastrapatti sankrdyalji ne apni pustak "desmani" me 18 deshratno me unkaullekh kia, rajivji aapko to kahin yaad karte nhi dekha. nuktachinni karna sarl hai apni personality se desh ka lok netritva karna kathin hai Rajiv dada! '

स्वप्निल तिवारी (म.प्र.) ने कहा…

जय जय श्री गुरुदेव| बिश्नोई जी, आपके कथन से ऐसा लग रहा है जैसे आप बाहरी चीजों और दिखावे पर बहुत ज्यादा विश्वास करते हैं| आपके अनुसार जो व्यक्ति बहुत ज्यादा प्रचारित है वही महान है| पर इन सब से मात्र पांडित्य बढ़ता है, ज्ञान नहीं प्राप्त होता| आप कुछ समय के लिए क्यों कैसे और व्यर्थ के तर्कों को एक ओर करके ग्राह्य बनकर "है" पर ध्यान करिये आपको समझ में आ जायेगा जो ऊपरी रूप दिखाई देता है उसकी सत्यता क्या है और सनातन धर्म को छुपाने के लिए कितने ज्यादा प्रयास करे जा रहे हैं|