09 अप्रैल 2012

अकबर बीरबल प्रथम मिलन

इलाहाबाद के संगम तट पर बना अकबर का किला सम्राट अकबर और बीरबल के प्रथम मिलन की याद को सहज ही ताजा कर देता है । ये इतिहास प्रसिद्ध घटना है । जब अकबर बंगाल की क्रांति को बल पूर्वक कुचल कर आगरा लौट रहा था । तो वह कुछ समय इलाहाबाद में रुका ।
सर्दियों का खुशहाल मौसम था । विस्त्रत नीले आकाश में चमकीले मोतियों से झिलमिलाते चाँद सितारे मानों खूबसूरत रजनी के आंचल पर टंके हुये चमक बिखेर रहे थे । ये झिलमिलाते चमकीले तारे यमुना के शान्त जल में प्रतिबिम्बित होते हुये अदभुत आभा बिखेर रहे थे । प्रकृति की इस उज्जवल अलौकिक छटा को देख कर अकबर ठगा सा खङा रह गया । और विस्मित भाव से रात भर उस अनुपम सौन्दर्य को निहारता रहा । सुबह तङके ही वह उठा । और गंगा यमुना के संगम तट पर जा पहुँचा ।


राजे । महाराजे । अमीर । उमराव । सूबेदार । सरदार । ताल्लुकेदार । जागीरदार । और फ़ौज के सिपहसालार सभी ने अकबर को घेर रखा था । पर अकबर चुपचाप शान्त कहीं खोया हुआ सा उस अलौकिक सी प्राकृतिक छटा को अपलक देख रहा था । दरबारियों ने समझा । जहाँपनाह इस प्राकृतिक छटा पर रीझ गये हैं । तब किसी ने बादशाह को खुश करने के लिये काव्यमय भाषा में उस सौन्दर्य का वर्णन करने के लिये अभी कहा ही था कि अकबर ने हाथ उठाकर सबको शान्त रहने का इशारा किया । सभी आलिम उलमा अमीर उमरा सिटपिटा कर शान्त हो गये ।
बहुत देर तक अपलक निहारने के बाद अकबर अचानक बोला - नादर ।
- बन्दा हाजिर है जहाँपनाह ! जागीरों का हाकिम झुक कर सलाम करते हुये बोला ।
- यहाँ आसपास की । अकबर बोला - मिलकियत का जिम्मा किसके पास है ?
- आलीजाह ! नादर कोर्निश बजाते हुये बोला - झूसी का राजा । शिवकरन सिंह ।
उसने फ़िर पूछा - झूसी कहाँ है ? क्या वो राजा यहाँ हैं ?


- जहाँपनाह ! नादर फ़िर बोला - सामने ही गंगा पार है झूसी । पर आलमपनाह का हुक्म था । इलाहाबाद पङाव की किसी  को खबर न हो । इसलिये झूसी का राजा इस्तकबाल के लिये हाजिर न हुआ आलीजाह ।
- कल सुबह झूसी के राजा को इसी जगह हाजिर किया जाये । कहकर अकबर पङाव लौट गया ।
अचानक अकबर बादशाह का ये पैगाम पाकर झूसी का राजा शिवकरन घबरा कर पसीना पसीना हो गया । सन्देशवाहक से बार बार पूछने पर भी जब कोई बात मालूम न पङी । तब बैचेन होकर उसने अपने दीवान बीरबल को बुलवाया । बीरबल उस समय अपनी लङकी के साथ शतरंज खेल रहा था ।
बार बार बुलाने पर बीरबल चिढकर बोला - क्या काम है ?
दूत ने कहा - शहंशाह अकबर का पैगाम आया है । राजा साहब को तुरन्त हाजिर होने का हुक्म हुआ है ।
बीरबल लापरवाही से बोले - राजा साहब हजूर में चले जायें । और दो चार नावों में चूना ईंट ले जाये ।
कहकर बीरबल फ़िर शतरंज खेलने में मस्त हो गया ।


झूसी के राजा शिवकरन को बीरबल की सलाह पर पूरा  विश्वास था । उसने यही सोचा । शायद बीरबल को कुछ पहले से मालूम होगा । नावों में ईंट चूना भर कर किनारे पहुँचा । नाव किनारे से लग गयी । तब अज्ञात भय से थरथर कांपता हुआ राजा शिवकरन अकबर के सामने पेश हुआ । और हाथ जोङ कर खङा हो गया । अकबर ने एक उङती सी नजर राजा पर डाली । फ़िर गौर से नावों में भरे ईंट चूने को देखने लगा ।
उसे कुछ हैरानी सी हुयी । और वह कङक कर बोला - इन नावों में भरे ईंट चूने का क्या मतलब ?
राजा शिवकरन एकदम घबरा गया । और गिङगिङाता हुआ कांपते स्वर में बोला - आलमपनाह गुलाम बेगुनाह है । यह कहकर वह अकबर के पैरों में गिर गया ।
तब अकबर कुछ नरम होकर बोला - नहीं नहीं गुनाह का सवाल नहीं । मैं ये जानना चाहता हूँ । ये नावों में ईंट चूना वगैरह क्यों लाया गया ।
राजा उठा । और सलाम करता हुआ बोला - आलीजाह ! ये कसूर मेरा नहीं है । ये सब तो मैं अपने दीवान बीरबल के कहने पर लाया हूँ ।
अकबर मुस्करा कर बोला - कौन बीरबल ? उसे अभी हाजिर करो तनहा ।
राजा की जान छूटी । वह बङा खुश हुआ । अब बीरबल को आटा दाल का भाव मालूम होगा । उसने झूसी जाकर बीरबल को सब बताया ।
बीरबल शहंशाह अकबर के दरबार में पेश हुआ । उसे देखकर अकबर बोला - तो तुम्ही हो बीरबल ? फ़िर उसने भौंहें तानकर कहा - इन नावों में ईंट चूने का क्या मतलब ? नावों में ईंट चूना भेजने की सलाह राजा को तुम्हीं ने दी थी ?
बीरबल अदब से बोला - हाँ जहाँपनाह ।
- इसकी वजह ? अकबर फ़िर बोला ।


- जहाँपनाह ! बीरबल फ़िर बोला - हर समझदार जो आलमगीर के इकवाल से वाकिफ़ है । उसे ये समझते देर न लगेगी कि किस मकसद से शहंशाह दरिया के किनारे देखते हुये चारों ओर नजर दौङा रहे हैं । गुलाम ने यही समझा कि हजूर यहाँ किला बनबाने का इरादा रखते हैं । इसलिये आपके पाक इरादे को मजबूत बनाने और मददगार बनने का इजहार करते हुये ईंट चूना ले जाने की सलाह दी ।
यह सुनते ही बादशाह अकबर प्रसन्नता से खङा हो गया । और बीरबल के कँधे पर दाहिना हाथ रखकर बोला - गजब की अक्ल पायी है तुमने बीरबल ! आज से तुम्हें पंचहजारी मनसबदार का ओहदा और राजा का खिताब अता किया गया । और तुम्हें अपने नौ रत्नों में एक रत्न भी बनाया ।
तुरन्त दरबार बुलाया गया । बीरबल को सिरो पांव देकर अकबर ने उसे ताजीम बख्शी । हाथी घोङे रथ के साथ सुखपाल में बैठकर राजा बीरबल जब झूसी पहुँचे । तो झूसी का राजा शिवकरन ये देखकर दंग रह गया । कुछ ही दिनों बाद संगम तट पर यह किला बनकर तैयार हो गया । जो बीरबल की अति सूझबूझ और अकलमन्दी की दास्तां कहता है ।

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