04 जनवरी 2012

मन को शान्ति कैसे मिलेगी ?

8 प्रश्न - संसार में किस प्रकार रहना होगा ? निष्काम भाव से रहना चाहिये न ?
उत्तर - देखो । निष्काम फ़िस्काम यह सब बहुत ऊंची बाते हैं । संसार में रहकर वह सब नहीं हो सकता । लोग चाहे जितना भी सोचें कि मैं निष्काम भाव से काम कर रहा हूं । परन्तु वास्तव में थोडी सी गहराई से देखने पर मालूम होता है कि किसी कामना से प्रेरित होकर काम कर रहा हूं । इसी से दिखाई देता है कि निष्काम कर्म नहीं हो पाता । फ़िर भी संसार का कर्म करते करते उसके निकट जाकर प्रार्थना करनी चाहिये कि प्रभु मेरे शरीर और मन का दुष्ट कर्म समाप्त कर दो ।
निष्काम और सकाम कर्म की गुत्थी को सुलझाने के लिये देवर्षी नारद का यह वचन सदा स्मरण रखना चाहिये - किं कर्म हरितोषं यत सा विघा तन्मतिर्यया ।
भाव यह है कि कर्म वही है । जिससे गुरू को प्रसन्न किया जा सके । और विधा वही है । जिससे गुरू में चित्त लगे । इस प्रकार अपने अपने आराध्य की प्रसन्नता के लिये किया गया कर्म ही वास्तविक निष्काम कर्म है ।
9 प्रश्न - आपने कहा था कि मालिक के विरह में छटपटाने से कुछ नहीं होता । समय न होने से किसी भी हालत में नहीं होगा । तो क्या भगवान की प्राप्ति व लाभ के लिये व्याकुलता छोड देनी चाहिये ।

उत्तर - हो सकता है कि यह बात मैंने किसी अन्य प्रसंग में कही होगी । छटपटाने का मतलब यह है कि एक दो दिन भावुकता के वश होकर छटपटाना । रोना । भीतर के भाव को प्रगट करना । दो दिन बाद ही उसको भूल जाना । और निराशा एवं अवसाद के कारण वह भाव व मालिक के विरह का भाव बिलकुल ही छोड देना । तथा भीतर का भाव दूसरे से कहना । या प्रगट करना । बहुत खतरनाक व खराब है । इससे अनुराग की तीव्रता कम हो जाती है । एक शिष्य मन्दिर में पूजा करते समय भावावेष में अधीर होकर नाचने लगा । तब एक सन्त ने कहा कि तुमने अपने स्वार्थ के लिये प्रभु की सेवा में त्रुटि की । उस पर उन्होंने नाराजगी जाहिर की । फ़िर स्वामी जी ने उन्हें समझाया । और दर्शन देकर शिष्य को समझा बुझाकर उसे सही मार्ग पर लाने को कहा । श्री सदगुरू देव जी महाराज की कृपा से मैं जानता हूं कि शिष्य को किस प्रकार मार्गदर्शन देना चाहिये । जिससे उस मार्ग पर चलकर साधक अपनी साधना में पूर्णता प्राप्त करे ।
एक बार यहां । और एक बार वहां । कुंआ खोदने से कहीं भी पानी नहीं मिलता । एक ही जगह पर पूरी खोदाई कर देने से पर्याप्त पानी मिल जाता है । ठीक उसी प्रकार साधना पथ में एक मालिक के निर्देशानुसार रहना चाहिये ।
10 प्रश्न - साधना पथ में क्या सही नियम है ?
उत्तर - हां । ठीक इसी प्रकार एक मालिक पर विश्वास करते रहकर बराबर भजन । ध्यान सदा करते रहना चाहिये । श्री सदगुरू भगवान के अन्दर में दर्शन पाने के लिये सदा भजन । सुमिरन । ध्यान का बराबर प्रयत्न करते रहना चाहिये । यदि श्री सदगुरू का अन्दर में दर्शन न मिले । तो घबरा कर कदापि छोड नहीं देना चाहिये । उसमें और पूरी श्रद्धा के साथ मन को एकाग्र करके भजन । सुमिरन । ध्यान अधिक से अधिक समय तक करते रहना चाहिये । एक न एक दिन अवश्य दर्शन मिलेगा । और धीरे धीरे 


दर्शन मिलते मिलते भीतर में आनन्द की लहर दौडने लगेगी । जानते हो । मनुष्य ठीक ढंग से मालिक को नहीं पुकार पाता । क्योंकि उसके भीतर कुछ न कुछ स्वार्थ की बात अवश्य छिपी होती है । इसलिये शिष्य को चाहिये कि थोडा पुकारने या प्रार्थना करने के बाद । शिष्य को दर्शन न मिले । तो हताश नहीं होना चाहिये । अपने प्रयत्न को बराबर जारी रखना चाहिये ।
11 प्रश्न - बहुतों का विश्वास है कि श्री सदगुरू का एक बार दर्शन हो जाने के बाद फ़िर मन में किसी भी प्रकार की चिन्ता शेष नहीं रह जाती है ।
उत्तर - उनकी बात अलग है । क्योंकि भक्ति भाव अटूट श्रद्धा व प्रेम से भरा है । उन्होंने उसी भक्ति भाव के बल पर व मालिक की दया के सहारे सारे सांसारिक बन्धनों को तोडकर एकमात्र श्री सदगुरू देव जी महाराज से नाता जोड 


रखा है । दूसरे लोग बस मुंह से ही कहते हैं । क्योंकि मालिक के प्रति उन्हें पूर्ण विश्वास नहीं है । विश्वास खूब कर भजन । पूजन । सेवा । दर्शन । ध्यान की साधना खूब श्रद्धा से करने पर साधक सभी आध्यात्मिक ऊंचाइयों को छू लेता है ।
12 प्रश्न - बहुतों का कहना है कि मैं श्री सदगुरू देव जी महाराज से कई बार मिल चुका हूं । तथा उनके दर्शन कर चुका हूं ।
उत्तर - श्री सदगुरू देव जी महाराज से मिलने तथा उनके दर्शन करने तथा साधुओं की सेवा करने से ही सब काम पूरा नहीं हो जाता है । श्री सदगुरू के बतलाये हुए नाम मंत्र का भजन । सुमिरन । सेवा । पूजा । दर्शन । ध्यान की साधना नियमित नियमानुसार पूर्ण श्रद्धा भाव से साथ करते रहने से आध्यात्मिक कार्य होगा । यानी भक्ति मुक्ति की प्राप्ति होगी ।
13 प्रश्न - श्री स्वामी जी महाराज ! गुरू के प्रति व्याकुलता कैसे आती है । या कैसे होती है ?
उत्तर - श्री सदगुरू देव  जी महाराज की महिमा को तथा उनके गुणानुवाद को बराबर सुनते रहना चाहिये । तथा

उनके अमृतमयी वाणी को सुने । उस पर अमल करे । उनक बतलाये हुए नाम के मंत्र का भजन । सुमिरन । सेवा । पूजा । दर्शन । ध्यान की साधना सदा करते करते मन जब शुद्ध हो जायेगा । तब श्री सदगुरू से मिलने की । दर्शन करने की । सेवा । पूजा करने की मन में व्याकुलता आयेगी ।
14 प्रश्न - स्वामी जी मन को शान्ति कैसे मिलेगी ?
उत्तर - श्री सदगुरू के प्रति पूर्ण श्रद्धा । प्रेम । भाव । निष्ठा होने से ही शान्ति मिलती है । ठीक ठीक शान्ति क्या एकदम मिल जाती है ? उनकी सेवा । उनके भजन । पूजन । दर्शन के लिये व्याकुल होकर रोना पडेगा । उनका भजन । सुमिरन । उनकी शारीरिक सेवा न होने पर सोच सोचकर व्याकुलता से छटपटाना पडेगा । तब कहीं शान्ति मिलेगा । सांसारिक सुख भोग से लोगों को जब शान्ति नहीं मिलती । तब विरक्ति का अनुभव होता है । तब जाकर श्री सदगुरू देव जी महाराज के प्रति आकर्षण होता है । मन में जितनी सांसारिक अशान्ति होगी । उतनी ही अधिक श्री सदगुरू देव जी महाराज के दर्शन । सेवा । भजन से शान्ति मिलेगी । प्यास जितनी ज्यादा लगती है । पानी उतना ही अधिक अच्छा लगता है । इसलिये महापुरूषों का कहना

है कि मन में जितनी शान्ति चाहिये । उतनी ही सांसारिक अशान्ति को छोडना । या त्याग करना पडेगा ।
15 प्रश्न - प्रेम कैसे होता है ?
उत्तर - श्री सदगुरू देव जी महाराज का भजन । सुमिरन । ध्यान की साधना करने तथा विनय प्रार्थना सदा करने से प्रेम बढता है ।
16 प्रश्न - संसार में रहने से प्रेम हो पायेगा ?
उत्तर - संसार के बाहर क्या कोई है । संसार में रहते हुए मालिक के नाम का भजन करने से प्रेम । श्रद्धा और भाव बढता जाता है ।
17  प्रश्न - स्वजन कुटुंब के बीच रहने से प्रेम हो पाता है । या नहीं ?
उत्तर - प्रेम तो होता है । मगर बडी कठिनाई से होता है । मोह । माया । कुटुंब । इज्जत । सम्मान । तथा स्वाभिमान से बहुत लडाई करके मन को एकाग्र कर भजन । पूजन । सेवा । दर्शन । ध्यान की साधना कर करके गुरू भक्ति में सदा तत्पर रहने से प्रेम हो जाता है ।


18 प्रश्न - संसर से वैराग्य होने पर  संसार को छोडूं । या नहीं ?
उत्तर - संसार को छोडना उचित है । इसी का नाम वैराग्य है । ठीक ठीक वैराग्य एक बार होने पर धधकती अग्नि के समान वह वैराग्य अधिकाधिक बढता जाता है । सन्तों का कहना है कि जिस प्रकार मछली को छोटे गड्ढे से निकाल कर बडे तालाब में डाल देने से वह बडे आनन्द से तैरती है । और आनन्द से रहने लगती है । उसी प्रकार जिसने संसार का त्याग किया है । उसे भी आनन्द होता है । वह फ़िर से संसार में जाना नहीं चाहता है ।
19 प्रश्न - क्या गुरू के बिना कोई अध्यात्मिक काम नहीं होता है ?
उत्तर - मैं तो समझता हूं नहीं । किसी भी हालत में गुरू के बिना आध्यात्मिकता का सारा काम रूक जाता है । कोई काम नहीं होता है । गुरू वह शक्ति है । जो निर्दिष्ट मंत्र के द्वारा गुरू की प्राप्ति का मार्ग दिखा देता है । गुरू एक 


होते हैं । उपगुरू अनेक होते हैं । इस बात को श्री सदगुरू समझा देते हैं कि इस तरह से साधना भजन । सुमिरन । ध्यान । और सत्संग करो । पहले नियम था कि लोग गुरूकुल में जाकर पढते थे । और गुरू की सेवा करते थे । गुरू शिष्य पर नजर रखते थे । शिष्य को गलत मार्ग पर जाने से गुरू उसे रोककर सही मार्ग पर ले आते थे । इसलिये बृह्मवित या सिद्ध महापुरूष के सिवाय दूसरे को गुरू बनाना ठीक नहीं ।
20 प्रश्न - सिद्ध गुरू को कैसे पहचाना जाय ?
उत्तर - कुछ दिन उनके संग में रहने से ही पहचाना जा सकता है । जो सिद्ध गुरू होता है । वह नाम के भजन । सुमिरन । सेवा । पूजा । दर्शन । ध्यान । तथा सतसंग में बराबर जाने को समझाते रहते हैं । और शिष्य पर बराबर निगाह रखे हुए रहते हैं कि शिष्य कहीं मार्ग न भटक जाय । उसे सदा बचते रहने का उपाय बताते रहते हैं । उसे विवेक । वैराग्य की बात समझा समझाकर अपने पास रखते हैं । और साधना के मार्ग पर धीरे धीरे अग्रसर करा देते हैं ।
21 प्रश्न - स्वामी जी महाराज ! मन कैसे एकाग्र हो ?
उत्तर - मन को एकाग्र करने का उपाय है - भजन । सुमिरन । गुरू की सेवा । गुरू की पूजा । गुरू का दर्शन । गुरू

का ध्यान । उनकी धारणा इत्यादि । प्राणायाम भी एक उपाय है । परन्तु प्राणायाम में यदि संयम न बरता जायेगा । तो रोगी हो जायेगा । जैसे बृह्मचर्य का पालन । और खान पान का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है । परन्तु भजन । सुमिरन । ध्यान में ये बातें नहीं है । इसमें शर्त नहीं रहती है । एकान्त स्थान में बैठकर भजन । सुमिरन । ध्यान करने से मन एकाग्र हो जाता है । रोज दो घण्टे । चार घण्टे । ध्यान करने से ही यानी जितना अधिक से अधिक करोगे । उतने ही जल्दी मन एकाग्र होगा । और श्री सदगुरू भगवान की ओर अग्रसर होगा । प्रतिदिन नियमित रूप से अभ्यास करना होगा । जहां भी जाओ । सुन्दर एकान्त स्थान का चुनाव कर भजन । सुमिरन । ध्यान नियमित करते रहो ।
- ये शिष्य जिज्ञासा से सम्बन्धित प्रश्नोत्तरी श्री राजू मल्होत्रा द्वारा भेजी गयी है । आपका बहुत बहुत आभार ।

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