22 दिसंबर 2011

भूख भूख भोजन भोजन..हमें भूख लगी है

18 डायन का वास्तविक स्वरूप क्या है ? क्या वो इंसान शरीर में चलती फ़िरती प्रेतनी है ? या फ़िर एक औरत का दिमागी फ़ितूर । चरित्रहीन । संस्कार हीन होना है ? दरअसल मैं ठीक से समझ नहीं पा रहा हूं कि आखिर डायन बनने की स्थिति क्या है ? लोग डायन ही क्यों कहते है ? इस नाम का क्या अर्थ है ?
*********************
आजकल अधिकतर बच्चे नर्सिंग होम में पैदा होने लगे हैं । और साफ़ स्वच्छ कीटाणु रहित वातावरण में पैदा होते हैं । पर कुछ ही दशक पहले ये बात नहीं थी । बल्कि आज भी पिछङे क्षेत्रों और गरीबी की स्थिति में बच्चे बङी अजीबोगरीव परिस्थितियों में पैदा होते हैं । मैंने खुद देखा था । प्रसूता औरत को एक उपेक्षित सा गन्दा कक्ष । और फ़टे पुराने गन्दे बिस्तर पर सोअर कक्ष दिया जाता था । जगह के अभाव में अक्सर बाहर बरामदा या कण्डा लकङी ईंधन आदि रखने के कमरे तक में स्थान बनाकर प्रसव कराया जाता था । और कई दिनों तक पूजा वगैरह होने तक उसी में रखा जाता था । उस स्थिति में प्रसूता के सिरहाने तकिया बिस्तर आदि के नीचे चाकू हँसिया किसी बाधा से बचाने हेतु रखा जाता था । तथा सोअर कक्ष के बाहर निरन्तर कण्डा जलाकर उसमें गन्धक डालकर उसका धुँआ किया जाता था । खास बात यह थी कि पूजा न होने तक प्रसूता स्त्री को अशुद्ध माना जाता है । यही बात मासिक धर्म से रजस्वला होने वाली लङकियों स्त्रियों पर लागू होती है । उन्हें पूजा स्थल और रसोई घर के लिये पूरी तरह अशुद्ध माना जाता है । सोचिये आज के समय में यह सम्भव है ।

आज रजस्वला स्त्रियाँ धङल्ले से खाना बनाती हैं । विवाहित स्त्री पुरुष बताते हैं । मासिक धर्म के समय संभोग करने से अलग तृप्ति और अनुभव होता है । इन सभी बातों का सम्बन्ध आपके प्रश्न से है ।
बृह्मा के द्वारा जब मृत्युकन्या देवी के विशाल परिवार की प्रथम समय सृष्टि हुयी । तो वे लाखों समस्त आकार वृतियाँ अपने अपने नाम कार्य अनुसार चित्र विचित्र और भयानक थी । वे काले रंग की थी । नग्न थी । उनके केश उलझे रूखे और बिखरे हुये थे । अजीबोगरीव विलाप कर रही थीं । हँस रही थी । और अजीब से स्वर में - भूख..भूख..भोजन..भोजन..हमें भूख लगी है । हमें भोजन दो । पुकार रही थीं । मतलब अन्य सृष्टि से विपरीत - वे भूख लिये पैदा हुयी थी । तब उनके भोजन का स्थान और स्थितियाँ तय की गयीं कि वे किस तरह सीमित परिस्थितियों में अपनी क्षुधा पूर्ति करेंगी । और ये परिस्थितियाँ बहुत कम भोजन देने वाली थीं ।
अब फ़िर से लौटते हुये एक रहस्यमय बात पर आते हैं । एक छोटा शिशु जो बिस्तर पर लौट पलट होने लगता है । अक्सर कभी कभी बहुत बार बिस्तर से नीचे पक्के फ़र्श पर गिर जाता है । सोचिये उसका सुकोमल अति नाजुक शरीर । और यूँ गिरना । लेकिन उसे कोई क्षति नहीं होती ।
पुराने जानकार कहते हैं - वैमाता देवी उसकी रक्षा करती हैं । एक निश्चित समय तक उसे खिलाना हँसाना गिरने पर गोद में उठा लेना आदि ये संभालती है । तभी इसके नाम में " माता " शब्द जुङा है । और भी गहराई में जायें । तो बच्चे के 


जन्म में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है । और यहाँ तक कहा जाता है । कुछ सीमा तक यही भाग्य भी लिखती हैं ।
अब आपके प्रश्न पर आते हैं । दरअसल सात्विक तामसिक वृतियों का खेल जीवात्मा के जन्म के साथ ही शुरू हो जाता है । जन्म । मरण । एक बचाने वाला । एक मारने वाला । एक ऊर्जा देने वाला । एक ऊर्जा छीनने वाला ।
वैमाता के बाद मुझे खुद से ही जुङी दो घटनायें याद आती हैं । और ऐसे प्रसंग अन्य से भी मैंने सुने । मेरी जानकारी के ही दो बच्चे । उमृ 4 साल । और 2 साल । पास के ही एक घर से दूध लेने जाते थे । उनके यहाँ हाल ही में कुछ महीने पहले पैदा हुआ बच्चा था । वे अक्सर उसी के पास बैठ जाते थे । और एक दिन छोटे वाले बच्चे ने अक्समात उस  नवजात शिशु का टेंटुआ ( गला ) दबा सा दिया । काफ़ी देर में मामला सही हुआ । वह तो लगभग 2 साल का छोटा बच्चा था । खुद मैं लगभग 12 साल से ऊपर था । मेरी रिश्तेदारी में एक नवजात बच्चा हुआ था । मैं माँ और बच्चे के पास ही बैठा था कि अचानक जाने किस अदृश्य ताकत से मैंने बच्चे के मुँह पर भारी तकिया रख दिया । उसकी माँ तो हङबङा कर चीख ही उठी । और आश्चर्य से मुझे देखने लगी । ऐसी ही घटनायें मैंने और भी सुनी । अगर ये घटना खुद मेरे साथ नहीं हुयी होती । तो शायद आज मैं इसकी बारीक व्याख्या न कर पाता ।  2 साल के बच्चे ने किस भावावेश में गला दबाया होगा । रहस्य कभी न जान पाता ।
पर बात खुद मेरे साथ भी हुयी थी । और मैं भौंचक्का था । बाद में बहुत ग्लानि भी अनुभव कर रहा था । मैं उस 


बच्चे को संभालता था । उसकी मल मूत्र से सनी तिकोनी ( डायपर जैसा वस्त्र ) धुलाने हेतु पानी आदि भी डालता था । मेरी रिश्तेदार भी आश्चर्यचकित थी । मैं बताना चाहता था कि - मैंने जानबूझ कर नहीं किया । अचानक जाने किस अदृश्य प्रभाव में मैंने तकिया रखकर दबा दिया । मेरे अंतर्मन में यकायक उस बच्चे को मार डालने की लहर बनी ।
पर ये कोई बङा रहस्य नहीं था । मेरी कोई गलती नहीं थी ।  2 साल के बच्चे की कोई गलती नहीं थी । कोई वजह । कोई स्वभाव न था । ऐसा करने का । इसका उत्तर बङे बूङों के पास मौजूद था । और वह वही था । भोजन के लिये - भूख भूख चिल्लाती वृतियाँ । उन्हीं वृतियों ने मुझे । उन्हीं वृतियों ने 2 साल के बच्चे को माध्यम बना लिया था । और अस्वच्छता । तथा ऐसी बाधा हेतु माकूल इंतजाम न होने के कारण उन्हें मौका मिल गया । मारने वाले ने घात किया । बचाने वाले ने बचाया ।
तो डायनों के खेल की भूमिका जन्म से ही शुरू हो जाती है । एक नवजीवन लाखों संभावनाओं ऊँच नीच भरे जीवन के उतार चढाव के साथ शुरू होता है । इसका सटीक सचित्र प्रमाण हमें श्रीकृष्ण के जीवन से मिलता है । 


उनके जन्म से पूर्व ही उन्हें मारने का खेल शुरू हो गया । पूतना । तृणाबृत । तामसिक तांत्रिक । वकासुर आदि तमाम वृतियों ने अपनी क्षुधा पूर्ति हेतु उन पर घात किया ।
नवजात बच्चा सरल है । दुष्ट वृतियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता भी अभी उसके पास नहीं है । वह आपकी हर अच्छी बुरी भावना से प्रभावित हो जाता है । अब उस बच्चे के जन्म पर देखने आने वाले विभिन्न लोगों की वृतियाँ भी जानियें । कोई खुश हुआ है । उसके ह्रदय में प्यार है । स्नेह है । वह प्रेम और ममता बच्चे पर उङेल देता है । दुआ देता है । पर संसार में ऐसे लोग बहुत कम होते हैं ।
इसलिये कोई जलन लेकर आता है । किसी के बच्चा नहीं हुआ । हुआ तो बहुत कष्ट से हुआ । खर्च करके हुआ । इसका आसानी से हो गया । हष्ट पुष्ट हुआ । गोरा चिट्टा हुआ । कैसा सुन्दर है । इसके हो क्यों गया । देखो कितनी भाग्यशाली है । लङके का ही जन्म होता है । और हमारे लङकियों की लाइन लगी है । डाह । जलन । डासना । डासन । ऐसे विभिन्न विरोधी भाव वाले लोग अधिक होते हैं । हजारों भावों वाली जलन । और ये वही होते हैं । जिनसे आपका प्रेम व्यवहार होता है । जो ऊपर ऊपर से बधाई देते हुये फ़ल फ़ूल मिठाई लेकर आते हैं ।
मैंने अक्सर देखा है । अच्छे खाते पीते अमीर लोग गरीबों के हष्ट पुष्ट बच्चों को देखकर जलते हैं । हम कितना केयर करते हैं । कितना अच्छा खाना देते हैं । फ़िर भी हमारा कमजोर और भिनकता सा है । ये सूखी रोटी खाकर भी मुस्टण्डा सा कैसा मस्त कुलांचे मार रहा है । बताओ इसकी भी जलन । और जलन केवल अमीर में नहीं । इसके उलट

गरीब में भी है । हमारे बच्चे के पास अच्छे कपङे और अच्छा भोजन दूध मिठाई चाकलेट आदि नहीं है । इन सबके लिये वह अमीरों से जलता है ।
इसलिये आदमी औरत तो वही हैं । किसी न किसी बात पर उनमें दूसरे से जलन हैं । उस चीज का उन पर अभाव है । तो भी । नहीं है । तो भी । जलन बरकरार है - ये साला सुखी क्यों हैं ?
यही है । डायनी वृतियों का भोजन । उनके निवास का स्थान । ऐसा भाव ज्यों ही जागा । मनुष्य उनके प्रभाव में आ गया । और अनजाने में उनका माध्यम बन गया । पाप का भागी बन गया । स्त्री जाति को प्रभावित करने वाले मृत्युकन्या परिवार के ये गण स्त्री रूप होते हैं । और पुरुष को प्रभावित करने वाले पुरुष रूप । इसलिये डायनी वृतियाँ दोनों के माध्यम से आक्रामक होती हैं ।
मुख्यतयाः अस्वच्छता अशौच स्थिति वाले स्थान इनके नियम में आते हैं । उदाहरण के लिये मासिक धर्म के दिनों आपस में विवाहित स्त्री पुरुष संभोग करें । तो समझो । उन्होंने क्षीण अँश रूप ही सही डायनों चुङैलों को आमंत्रित कर दिया । उनके अस्तित्व में एक तिनका एक बार में जुङ गया । इसी स्थिति में पर स्त्री पर पुरुष संभोग करें । तो इकठ्ठे 10 तिनके जुङ गये । इसी स्थिति में विधवा संभोग करे । तो 100 कण । यही संभोग पूजा स्थल । शमशान स्थल आदि पर हो । तो 1000 कण । और यही संभोग कोई कुँवारी लङकी करें । तो 10 हजार कण । भूख..भूख..भोजन..भोजन..हमें भूख लगी है । क्या आप जानते हैं । रजस्वला स्त्री के मासिक धर्म का गन्दा रक्त इनका भोजन है । उसका रक्त सना इस्तेमाल किया गया वस्त्र इन्हीं को पोषण देता हैं । और ये सब आज के जीवन में घुल 


मिल गया है । इसलिये आपको आज भारतीय नारी पुरुष कहीं नजर नहीं आयेंगे । काम पिपासु डायन चुङैल प्रेत पि्शाच आवेशित स्त्री पुरुषों की भीङ नजर आयेगी ।
बुजुर्गों के अपमान और घोर उपेक्षा के चलते ये ज्ञान लुप्त प्रायः हो गया है । ये बात मुझे एक बुजुर्ग ने ही बतायी थी । यू पी में वृद्ध स्त्री पुरुषों के लिये - डोकर । डोकरी । शब्द अधिकांश प्रयोग किया जाता है । और वे इस शब्द से बहुत चिढते थे । उन्होंने मुझे बताया - डोकर डोकरी ऐसे बूङों को कहा जाता हैं । जो खुद तो जीते बचे हों । लेकिन उनके परिवार के अधिकतर लोग काल कवलित हो गये हों । " ढोक " शब्द खाने या पानी या अन्य कुछ पीने को कहा जाता है । मतलब किसी चीज को खाने पीने की जिद सी बन गयी हो । व्याकुलता सी होती हो । इसलिये जिनके परिवार के लोग समाप्त हो जाते थे । उन पर ढोक लेने का दोषारोपण आ जाता था कि इसने सबको ढोक लिया । और खुद तना बैठा है । इसी ढोक से ढोकरा बना होगा । जो बाद में डोकरा डोकरी हो गया । इसके विपरीत सपरिवार वृद्धों को काका दादा बाबा काकी आदि स्थानीय बोली अनुसार कहते थे ।
अब आप गौर करें । कोई बच्चा पैदा हो । किसी लङके लङकी की शादी हो । और उसके आगमन के साथ ही इस तरह के मृत्यु उपदृव लगातार होने लगें । तो सीधा कहा जाता है - आते ही खा गयी । सबको एक एक कर खा गयी । डायन ने ऐसा पैर घर में रखा । दामाद ऐसा होने पर पुरुष के लिये राक्षस कहा जाता है । इन तीनों के अतिरिक्त भी कोई इंसान आकर जुङ जाये । साथ रहने लगे । और ऐसा कुछ हो । तब भी ऐसा ही कहा जाता है । ऐसे ही आकस्मिक परिणामों से डायन को समाज ने जाना । जानता आया है ।

जाहिर है । कभी शुरूआत में ये शब्द और परिभाषा लक्षण गुण आदि रहस्य किसी आंतरिक जगत के जानकार ने बताये होंगे । और फ़िर परम्परा से चले आ रहे हैं । मृत्युकन्या के विशाल परिवार के ये दो सदस्य डायन और चुङैल काफ़ी लोकप्रिय हैं । और ये किसी भी गलतफ़हमी से भी नहीं हैं । बल्कि सच्चाई के करीव हैं ।
काम । क्रोध । लोभ । मोह । मद में सबसे बङा क्रोध काल रूप है । कबीर ने कहा - जहाँ क्रोध तहाँ काल है । इसलिये बात मृत्यु की ही नहीं हैं । सास बहू की गम्भीर टशन । जलन । ननद भाभी । देवरानी जेठानी । सौतनें । जलने वाली सहेलियाँ । पङोसी आदि आदि सम्बन्ध अतृप्त काम ( कोई भी कामना ) की चपेट में आकर क्रोध ( काल ) से गृसित हो जाते हैं । तब ये वृतियाँ अधिकाधिक पोषण पाती हैं । प्रकट होती हैं । यदि प्रभावित कामवासना से गृसित है । फ़िर तो सोने पर सुहागा ।
आप कभी भी एक प्रयोग करके देखना । एक शालीन परिवार की लङकी बहू औरत कोई भी दमित भावनाओं से अति कुण्ठा की स्थिति में आ जाये । और वो ये शब्द जानती भी न हो । फ़िर सास बहू आदि किन्हीं दो पात्रों के बीच ये तकरार चरम पर पहुँच
जाये । दोनों को लगे कि - उसकी वजह से उनका जीना हराम हो गया है । तब डायन चुङैल हरामजादी शब्द उसके

मुँह से स्वतः ही निकलेंगे । भले ही उसने आज तक इनका प्रयोग न किया हो । और पुरुष के लिये - राक्षस । हरामजादा । इसकी चिता जले..आदि ।
अब यहाँ निकलने वाला हरामजादा शब्द भी बङा ही अर्थपूर्ण है । और वो सामान्य स्थिति वाला । अवैध सन्तान वाला नहीं है । क्योंकि ये गाली देते समय कहीं भी उसकी अवैधता के प्रति भाव आता ही नहीं है । बल्कि दो जीवात्माओं के बीच कटुता कलह पैदा करने वाली नाजायज अज्ञात उत्पन्न वृति के लिये है । अवैध रूप से जन्मा ।
आज इस बात को यहीं समाप्त करता हूँ । दरअसल बात को ठीक तरह से समझाने के लिये ये सब भूमिका आवश्यक थी । और लेख काफ़ी बङा हो गया । कैसे करती हैं - ये काम वृतियाँ अपना खेल । कैसे बनाती है शिकार भोले जीव को । इस पर चर्चा अगले दिनों में ।

कोई टिप्पणी नहीं: