28 नवंबर 2011

भटकती आत्माओं का रहस्य

अक्सर लोगों के मुख से यह सुनने में आया है कि - चुङैल के पैर उलटे होते है । क्या ये सच है ? इसका सिद्धांत मुझे समझ नहीं आता । क्या ये इसलिए कहा जाता है कि सृष्टि कृमानुसार उनकी गति नहीं होती ।
ans - जैसा कि नीचे के प्रश्नों में कुछ बात स्पष्ट हो चुकी है । सूक्ष्म शरीर ठीक ऐसा ही शरीर होता है । बस उसका स्थूल आवरण उतर जाता है । और सामान्यतः वह अदृश्य होता है । और वह पूर्णत नग्न होता है । यदि मेरी तरह आप प्रेतों को देख पाये । तो वो आपको ठीक वैसे ही नजर आयेंगे । जैसे वे अपने जीवन में थे । बस फ़र्क नग्नता का होगा । लेकिन यहाँ दो अलग स्थितियाँ बहुत सी नयी बातों को जन्म देती हैं । एक तो विभिन्न लोगों का निज भावना अनुसार दृष्टि दोष हो जाना । यानी जैसी सुनी हुयी या अपनी कल्पना अनुसार वे भावना जोङ देते हैं । वह प्रेत उन्हें वैसा ही दिखायी देता है । जैसे अंधेरे में अजीव आकृतियाँ दिखती है । पर होता कुछ भी नहीं । ये लोगों की तरफ़ से बात हुयी । दूसरी हुयी बन्दर घुङकी । यानी प्रेतत्व की असहाय स्थिति में प्रेत को भी मजा आता है कि लोगों को मौका मिलने पर थोङा

हैरान कर ले । तब वह उसे भासित शरीर छाया दिखाता है । यानी जब वह किसी को खुद से भयभीत या प्रभावित या आकर्षित देखता है । तो उसके कमजोर दिमाग को एक सम्मोहित टायप कर देता है । और तब वह खुद को जैसा दिखाना चाहता है । प्रभावित इंसान को वह वैसा ही नजर आता है । लेकिन इनकी आँखे स्थिर होती है । सम्विद विध्या को जानने वाले । और भासित शरीर को प्रकट कर लेने वाली विभिन्न आत्मायें मनचाहा शरीर प्रकट कर सकती हैं । अब इसमें प्रेत से लेकर बहुत किस्म की योनियाँ आ जाती हैं ।
तिर्यक योनि के अंतर्गत कौन आते हैं ?
ans - तिर्यक योनि के अंतर्गत तमाम निकृष्ट योनियाँ आती हैं । जिनमें कीट पतंगे भी शामिल हैं ।
जीव जब निद्रावस्था में होता है । तो बुद्धि कहां चली जाती है ?
ans - जीव की तीन ज्ञात अवस्थायें होती है । जागृत । स्वपन । सुषुप्ति । जागृत अवस्था में यह ह्रदय पर स्थिति  होता है । और सांसारिक कार्य करता है । स्वपन अवस्था में यह कण्ठ पर होता है । और चित्रा नाङी से सपने देखता है । सुषुप्ति यानी निद्रावस्था में यह " कारण " में चला जाता है । ये तीनों अवस्थायें तुरिया अवस्था कहलाती हैं । चौथी अवस्था तुरियातीत अवस्था है । जिसमें गहरी नींद आती है । इसमें यह एक तरह से अपने में स्थिति होता है । तीन अवस्थायें इंसान को भली प्रकार ज्ञात होती है । बाकी सभी रहस्य चौथी अवस्था तुरियातीत 


में छिपे होते हैं । इसी में जागना अलौकिक ज्ञान या योग है । यानी तब हम कहाँ होते हैं । हमारी स्थिति क्या होती है । वहाँ क्या होता है आदि ।
क्या भटकती आत्माओं का निर्धारित क्षेत्रफल भी होता है ? या फ़िर वे स्वतंत्र ही विचरण करती हैं ।
ans - दुनियाँ को देखकर कभी कभी ऐसा लगता है । भगवान नाम की कोई चीज ही नहीं है । पर मैंने कई बार कहा है । सिर्फ़ भूत प्रेत ही नहीं । देवी देवताओं तक में एक ही खेल । एक ही  नियम चलता है । अमीरी गरीबी । सबल निर्बल । यानी धन और शक्ति का ही बोलबाला है । तब स्थूल शरीर छूट जाने के बाद इंसान असहाय ही हो जाता है । लेकिन सूक्ष्म शरीर अंतकरण से ही निर्मित होता है । अतः पूरी ताकत बुद्धि उसी अनुसार होती है । जैसी जीवित होने पर थी । तो अब ये इस बात पर निर्भर है कि अपने उस जीवन में जीव क्या स्थिति को प्राप्त कर पाता है । क्योंकि दादागीरी वहाँ भी है । इसलिये ठीक मनुष्य की तरह ही प्रेत जीवन के अनेकानेक ऊँच नीच स्तर बनते हैं । कोई अकाल मरा भिखारी टायप जीव प्लेटफ़ार्म या उसके आसपास भी भटकता रह सकता है । या फ़िर स्वेच्छा होने पर किसी प्रेत क्षेत्र में भी जा सकता है । कोई दाता दयावान मिल गया । तो उसे अच्छा मुकाम भी दिलवा सकता है । जो इस जीवन की कहानी है । वही उस जीवन की भी । बस स्थूल और सूक्ष्म शरीर का अंतर है ।
जिस व्यक्ति की सडक दुर्घटना में मौत हो जाती है । तो कुछ आत्मा भटकती रहती हैं । क्या वे वही चौराहे आदि वृक्ष पर अपना डेरा डाल देती हैं ?
ans - भोजन । उचित आवास । और स्वभाव अनुसार जीवन की आकांक्षा मोक्ष की स्थिति से पहले हरेक की होती

है । ये बात चीटीं जैसे तुच्छ जीव से महाशक्तियों पर भी लागू होती है । लेकिन इच्छा होने से ही तो सब कुछ नहीं हो जाता है । मुख्य बात तो स्व स्थिति पर निर्भर है । तब ये सैटलमेंट होता है । रिफ़्यूजी ( शरीर छूटने के बाद ) होने पर कहाँ जगह मिलती है । ये उस वक्त की स्थिति पर निर्भर करता है । मौत चाहे कैसे भी हो । जैसे किरायेदार अपना निजी मकान न होने तक । निजी आर्थिक स्थिति अनुसार डेरा तम्बू लगाते उखाङते रहते हैं । वही बात प्रेतों पर भी लागू होती है । मुख्य बात वही है । उस वक्त क्या है । उसकी निज स्थिति ।
भटकती आत्माओं का भोजन क्या होता है ? उनका दैनिक क्रियाकलाप कैसे होता है ?
ans  - पहले तो यही समझें कि भटकती आत्मायें क्या होती हैं । भटकती आत्माओं का नाम सुनते ही अक्सर खतरनाक भूत प्रेत हा हा हू हू टायप हँसते विचित्र शरीर धारी का ख्याल बनता है । ये बात पूरी तरह सच भी है । और पूरी तरह झूठ भी । भूत का नाम आते ही जेहन में हउआ अपने आप बन जाता है । पर वास्तविकता ये है कि छोटे बच्चे से लेकर हर इंसान ने भूत प्रेत खूब देखे होते हैं । आप स्वपन आदि स्थिति में जो सूक्ष्म शरीर और उसके तमाम व्यवहार देखते हैं । वह सब भूत प्रेत ही हैं । पर बात ये होती है कि तब आप भी सूक्ष्म हुये भूत प्रेत ही होते हैं । और वासना शरीर में होते हैं । अगर उन स्थितियों को आप ठीक से समझ लें । तो बस यही भूतिया जीवन होता है । इसमें भूख प्यास डर निडरता कामवासना मरना मारना आदि सब होता है । अब इसी धारणा पर आप खाने पीने का विचार कर सकते हैं । आपने भी स्वपनवत बहुत बार खाया पिया होगा ।
ये तो थी । परिस्थितिजन्य अचानक बात । पर प्रेत हो चुके इंसान की तो ये दिन रात स्थिति हो जाती है । तब ये सार गृहण करते हैं । जैसे किसी भी प्रकार के भोजन की खुशबू । अब इसको आप जीवन में भी सिद्ध करें । जैसे आपने देखा होगा । कोई गृहणी या हलवाई आदि जब कोई मिष्ठान या खुशबूदार भोजन काफ़ी देर तक बनायें । या कोई अन्य इंसान उस समय वहाँ मौजूद रहे । तो उसकी निरन्तर खुशबू से वे एक तरह से तृप्त हो जाते हैं । और यकायक तुरन्त वही चीज खाने से उन्हें अरुचि सी महसूस होती है । कारण यही है कि अंतकरण ने बहुत देर तक उससे जुङे रहने के कारण एक वासनात्मक भूख मिटा ली है । अब बताईये । भोजन का एक तिनका भी नहीं खाया । पर उससे अधिकतम जुङे रहने से वासना पेट के स्तर पर तृप्त हो गयी । ठीक यही बात । सूक्ष्म शरीरी प्रेतों पर लागू होती है । उनकी शरीर की भूख नहीं होती । बल्कि अंतकरण की वासना भूख होती है । जैसे रोटी आदि का स्थूल भाग पेट शरीर को तृप्ति दे रहा है । और उसका स्वाद महक आदि अंतकरण को । भोजन के सार का भी सार अंतकरण गृहण करता है । यही प्रेतों का भोजन है । जो उन्हें आसानी से प्राप्त हो जाता है । बाकी नहाना धोना मल मूत्र आदि की उन्हें आवश्यकता नहीं होती । सूक्ष्म शरीर के तकनीकी ज्ञान रहस्य पर मैं स्वतः एक लेख लिखने वाला था । उसमें और भी विस्तार से आ जायेगा ।

1 टिप्पणी:

mangalmurthi ने कहा…

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