19 सितंबर 2011

ये ऊर्जा असल में क्या होती है ? कामिनी

आप सभी लोगों को बता दूँ । नयी प्रेत कहानी " प्रसून का इंसाफ़ " स्वरूप दर्शन ब्लाग पर कल शाम ही प्रकाशित हो चुकी है । जो अभी ब्लाग आईकान में शो नहीं हो रही । अतः आप लोग स्वरूप दर्शन ब्लाग पर " प्रसून का इंसाफ़ " पढ सकते हैं - राजीब कुलश्रेष्ठ ।
अब कामिनी जी के शेष रह गये 4 प्रश्नों पर चर्चा करते हैं ।
मैं ये तो समझ गयी कि चेतन गुण ( गति ) सिर्फ़ आत्मा में है । लेकिन ये जो आदमी द्वारा बनायी गयी चीजें हैं । जैसे गाडी आदि ये भी बहुत भागती हैं । इनकी गति भी बहुत होती है । इनमें गति यानि स्पीड कैसे आती है । इनमें तो आत्मा होती नहीं ।
- वास्तव में गौर से देखने पर सभी जगह । सभी चीजों में 1 ही सिस्टम काम कर रहा है । जिस प्रकार कोई वाहन एक यन्त्र की तरह है । उसी प्रकार तमाम योनियों के शरीर एक यन्त्र की तरह है । वाहनों में ऊर्जा स्रोत फ़्यूल टेंक यानी फ़्यूल द्वारा होता है । उसका इंजन उसका मेन उपकरण है । और बाडी उसका शरीर । इसी प्रकार मनुष्य शरीर में प्राणधारा या स्वाँस उसकी ऊर्जा देती है । मन अंतकरण उसका संचालित करने वाला मेन उपकरण है । और शरीर उसका बाडी हुआ ।

अब जैसे आप बिजली को जानने समझने की कोशिश करो  कि - बिजली आखिर है क्या ? उसका रूप रंग क्या है ? आकार क्या है ? गति क्या है ? अगर आप बिज्ञान के आधार पर ही बिजली क्या ? और उसका निर्माण और फ़िर भण्डारण को समझ लोगी । तो बहुत कुछ सिस्टम वही है । बिजली स्थूल रूपा है । और चेतन ऊर्जा सूक्ष्म या अदृश्य रूपा है ।
ये सब आत्मा की चेतना के ऊर्जा में बदले हुये विभिन्न रूप ही हैं । और ये इतने रूप हैं कि गिनना मुश्किल है । इस तरह हर चीज एक निर्धारित कानून या साइंस के तहत यन्त्रवत कार्य कर रही है । बाकी गाङियों आदि की गति को समझाना । आपको चेतना का ऊर्जा में रूपानतरण । और फ़िर उसका किसी ऊर्जा पदार्थ में बदलना । और उसके बाद किसी यन्त्र की कार्यप्रणाली या गति सिद्धान्त । ये सब बहुत विस्त्रत मैटर होगा ।
ये भी बतायें कि - ये ऊर्जा असल में क्या होती है ? ये जितने बिजली के यन्त्र ( कोई भी मशीन आदि ) हैं । ये सब बिजली से चलते हैं । इनमें भी आत्मा नहीं होती । लेकिन फ़िर ये सब यन्त्र कार्य कैसे करते हैं ? उर्जा को गति कहाँ से प्राप्त होती है ?
- समस्त प्रकार की ऊर्जा के विभिन्न रूप असल में चेतन के अन्दर होने वाली स्फ़ुरणा से उत्पन्न होते हैं । स्फ़ुरणा एक कठिन शब्द है । अतः आप शायद इसको समझ न पाओ । इसलिये ये क्या होती है । कैसे होती है ।

मैं बताता हूँ । एक बाल्टी या  टब को पानी से भर लीजिये । फ़िर इसमें एक पतला पाइप डालकर मुँह या किसी भी तरीके से फ़ूँक सी मारते रहिये । तो टब के पानी में ढेरों बुलबुले उठना शुरू हो जायेंगे । ये जो फ़ूँक से बुलबुला तक बनने के बीच की लाइन है । ये ही स्फ़ुरणा है । बना हुआ बुलबुला भी स्फ़ुरणा का ही रूप है । अंतकरण के चार छिद्रों में इसी प्रकार की स्फ़ुरणा द्वारा विभिन्न वासनाओं के बुलबुले निरन्तर उठते बनते रहते हैं । जिनसे मनुष्य की अनेकानेक वासनात्मक वृतियों का निर्माण होता है । और वह चेतन द्वारा उन्हें आकार देता है ।
इस तरह चेतन की इसी मुख्य स्फ़ुरणा से ऊर्जा के विभिन्न रूप बन रहे हैं । और ये ऊर्जा अखिल बृह्माण्ड में व्याप्त हो रही है ।
और ये जो कुछ भी आपको दिख रहा है । आत्मा के विराट में ही घटित हो रहा है । क्योंकि उसके अलावा तो दूसरा कोई है ही नहीं । अतः बिजली के यन्त्र या दूसरी अन्य बहुत सी चीजें भी उससे अलग नहीं हैं । इसको और भी सरलता से समझने के लिये आप कागज के बहुत छोटे छोटे ढेरों टुकङे कमरे के फ़ैला दें । और

फ़िर फ़ुल स्पीड से पंखा चला दें । तो सभी टुकङे निरन्तर उङते रहेंगे । अब बताईये । कागज कैसे उङ रहा है । उसमें तो आत्मा नहीं है । कोई मशीन यन्त्र भी नहीं है । जबकि कमरे में रखा सोफ़ा क्यों नहीं उङ रहा । क्योंकि वे प्रकृति के नियमानुसार उङ रहे हैं । ऐसे ही सभी चीजें सत्ता के निश्चित नियम में बँधी कार्य कर रही हैं । इसको गौर से चिन्तन करते हुये समझने की कोशिश करें ।
इसलिये तो बेचारे सभी सूरज चाँद तारे बिना किसी बेस के हवा में लटके हुये युगों से कार्य कर रहे हैं । और कब से बैठने को एक चेयर माँग रहे हैं । पर सत्ता का आदेश है । चुपचाप ऐसे ही लटके कार्य करो । चेयर मिल गयी । तो आलसी हो जाओगे । भृष्ट हो जाओगे ।


ये भी बतायें कि ये अणु परमाणु क्या होते हैं ? क्या ये सूक्ष्म प्रकृति के तत्व होते हैं ? इनका क्या कार्य होता है ? क्या ओमियो तारा के उस योगी ( जो प्रसून को किडनेप करना चाहता था ) को इन अणु परमाणु का ज्ञान था ?
- ओमियो तारा को अणु परमाणु का ज्ञान था । पर उसे इसको देही आवरण के खोल में संयुक्त करना नहीं आता था । इंसान के मरने के बाद । चाहे उसे जलाओ । दफ़नाओ । या जल प्रवाह करो । या उसे यूँ ही जीव जन्तु खा जाय । उसके स्थूल देह के सभी अणु परमाणु वापस प्रकृति में चले जाते हैं । जो उसे प्रकृति से ही सिर्फ़ यूज करने के लिये मिले थे । ये ही अणु परमाणु संगठित होकर फ़िर से स्थूल शरीर का निर्माण करते हैं ।
अब इसको ज्ञान के आधार पर जानिये । दो प्रकृतियाँ होती है । अपरा प्रकृति । और परा प्रकूति । अपरा प्रकृति इन्ही प्रकृति के सूक्ष्म तत्वों का एकीकरण होकर घनीभूत होना है । जैसे मनुष्य शरीर में जल वायु अग्नि आकाश प्रथ्वी के विभिन्न सूक्ष्म तत्वों का चेतन केन्द्रक द्वारा एकीकरण होकर घनीभूत हो जाना स्थूल शरीर का निर्माण कर देता है । और आकार रचना हो जाती है । संगठित होने की इसी प्रक्रिया को अपरा प्रकृति कहते है । और इसी के विघटित रूप यानी यानी शरीर के अणु परमाणुओं के चेतन के केन्द्रक से  अलग हो जाने पर सूक्ष्म और फ़िर अति सूक्ष्म होकर बिखर जाना परा प्रकृति कहा जाता है ।

अब सीधी सी बात है । ये दोनों प्रकृतियाँ संयुक्त होकर ही कार्य करती हैं । जैसे एक मनुष्य शरीर या वृक्ष खङा है । तो वह विभिन्न सूक्ष्म तत्वों के एकीकरण से ही तो बना है । यानी परा तत्वों का घनीभूत होकर अपरा रूप ले लेना । अपरा ही विघटित होकर परा हो जाती है ।
ये तो साइंस द्वारा ज्ञात हो ही चुका है कि कृमशः अणु परमाणु  इलेक्ट्रान प्रोटान न्यूट्रान आदि टूटकर सूक्ष्म से सूक्ष्मतम होकर सूक्ष्म चेतन तत्वों में बदलते चले जाते हैं । जिनमें से अभी कुछ को साइंस जान गया है ।  और भौतिक रूप से सिद्ध कर चुका है । यानी उनसे कार्य ले रहा है । पर अभी आगे बहुत कुछ बाकी है । तब तक - नो वेट प्लीज ।
ये भी बतायें कि - प्राण क्या होते हैं ? जब कोई मरता है । तो लोग ये नहीं कहते कि - इस शरीर में से आत्मा निकल गयी । बल्कि लोग ये कहते हैं कि - फ़लाँ आदमी के तो प्राण निकल गये ।
- प्राण वास्तव में वायु होते हैं । हमारे शरीर में 5 मुख्य प्राण है ।  प्राण या अजपा  या स्वाँस । ये सबसे मुख्य है । इसके अलावा - अपान ( पादना ) व्यान । उदान । समान । ये चार उससे तुलनात्मक कम महत्व वाले होते हैं । इनका काम शरीर की विभिन्न गतिविधियों को संचालन करना है । हाथ

पैरों की गतियाँ ।  रक्त का बहाव । आदि इन्ही के द्वारा होता है । मुख्य प्राण वायु के तो अनेक रहस्य हैं । पूरा ज्ञान बिज्ञान ही इसी में रमण करने से ज्ञात होता है । यही अजपा है ।
इसके अतिरिक्त 5 अन्य वायु और हैं । जिनका विवरण मेरे ब्लाग्स में बहुत पहले ही प्रकाशित हो चुका है । उनमें नाग वायु से डकार आती है । और करकल मृत्यु के बाद शरीर को फ़ुलाता है । इनका एक एक  पुरुष या कहिये देवता भी नियुक्त होता है ।
ये सब कृमशः चेतन फ़िर अंतकरण या सूक्ष्म शरीर से संचालित होते हैं । जाहिर है । इनके निकल जाने पर शरीर की सभी क्रियायें बन्द हो जाती हैं । यानी आपके प्रश्न के अनुसार सबसे पहले चेतन शरीर से गया । उसके जाते ही । अंतकरण या सूक्ष्म शरीर निकल जाता है । उसके जाते ही ये वायु निकलते लगते हैं । फ़िर 33 करोङ वृतियों के सभी देवता इस शरीर को छोङ जाते हैं ।
क्योंकि आम बोली में प्राण पूर्व समय से ही स्वाँस को कहा गया है । अतः ये कहा जाने लगा कि - इस आदमी के प्राण निकल गये । राम राम सत्य हो गयी । अब घाट पर ले जाने की तैयारी करो ।

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