31 अगस्त 2011

परम धाम किसे कहते हैं ? नबदीप

हैलो राजीव जी ! कैसे हैं आप ? आज सिर्फ़ 1 ही सवाल लेकर आयी हूँ । लेकिन इसका उत्तर आप थोडा विस्तार से और क्लीयर्ली दे देना । ताकि मुझे और सभी पाठकों को बात सही रूप में और पूरी तरह समझ आ जाये । सवाल ये है कि - सबसे पहले जब सिर्फ़ आत्मा ही थी ( क्या इसको ही अनादि अवस्था कहते हैं ) वो अपने संकल्प से 1 से अनेक हो गयी । इस तरह वो 1 आत्मा ही अब हर घट यानि हर जिन्दा शरीर में है । जो सबसे परे है ( अभी तक अपनी सबसे पहले वाली अनादि अवस्था में वो ही परमात्मा है )
तो क्या इस तरह से हम अपने वास्तविक स्वरूप को अगर अनादि कहें । तो क्या ये 100% सही ही है ? बाकी आप इस - 1 से अनेक हो जाऊँ । वाली बात को जरा गहराई से समझा दीजिये । 1 बात और अगर हम ये न कहकर कि इस सृष्टि के कण कण में परमात्मा समाया हुआ है । अगर ये कहें कि पूरी अखिल सृष्टि ही परमात्मा में समायी हुई है । क्या ये अधिक बेहतर नहीं रहेगा ।
1 बात और । मैंने कही पढा था कि श्रीकृष्ण अध्यात्म की गहराई और ऊँचाई पर पूरी तरह से पहुँचे होने पर भी उदास नहीं थे । जबकि छोटे मोटे और नकली अधूरे किस्म के साधु भी उदास और निराश घूमते नजर आते हैं । इसके बारे में भी कुछ कहें ।
आपने अपने किसी थोडा ही पुराने लेख में कहा था कि - वास्तव में परमात्मा का कोई नाम नहीं है । इस बात को आप प्लीज जरा सरल ढंग से समझा दें । वैसे 1 से अनेक

हो जाऊँ । वाली बात को गुरवाणी में अकथ कथा ही कहा गया है । यानि जिसके बारे में कहना । सुनना । लिखना । पढना । असम्भव जैसा ही है । इसके बारे में भी कुछ कहें ।
1 बात और । ये बतायें कि - परम धाम किसे कहते हैं ? सतलोक को । या अनामी लोक को । या इसके अलावा भी कुछ और बात है । आपने कहा था कि श्रीकृष्ण ( काल पुरुष ) त्रिलोकी में सबसे बलवान हैं । ये बतायें कि इस अखिल सृष्टि में कितने त्रिलोक होंगे ? क्या त्रिलोक से भी बडे संसार इस अखिल सृष्टि में होंगे । अन्त में 1 बात और । ये बतायें कि - स्वधर्म का क्या अर्थ है ? स्व + धर्म । 1 बात और । ये भी बतायें कि - स्वतन्त्र का क्या अर्थ है ? आत्मा के रुप में स्व + तन्त्र । ये भी बतायें कि - प्रभु का अर्थ क्या है ? क्या ये भी कोई उपाधि है ?
आप आजकल अपने हर लेख के नीचे ये लिखते हैं - आप सभी के अन्तर में विराजमान सर्वात्मा प्रभु आत्मदेव को मेरा सादर प्रणाम । ये बतायें कि - यहाँ आप आत्मदेव किसे कहते हैं ? आप किसे प्रणाम करते हैं ? परमात्मा को । या हम सबके आत्म स्वरूप को ? जाते जाते ये भी बता ही दें कि " विश्वात्मा " का शाब्दिक अर्थ क्या है ? मेरे इन सभी प्रश्नों के उत्तर जल्दी से दे दीजिये । क्यूँ कि अब आपसे मुलाकात का समय नजदीक आता जा रहा है ।
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ओ नवदीप जी ! आप सिर्फ़ 1 सवाल लेकर मत आया करो । कम से कम चार पाँच सवाल तो लाया ही करो । चलिये आपके 1 सवाल का जबाब देते हैं ।
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सबसे पहले जब सिर्फ़ आत्मा ही थी ( क्या इसको ही अनादि अवस्था कहते हैं ) वो अपने संकल्प से 1 से अनेक हो गयी । इस तरह वो 1 आत्मा ही अब हर घट यानि हर जिन्दा शरीर में है । जो सबसे परे है ( अभी तक अपनी सबसे पहले वाली अनादि अवस्था में वो ही परमात्मा है ) तो क्या इस तरह से हम अपने वास्तविक स्वरूप को अगर अनादि कहें । तो क्या ये 100% सही ही है ?
- आप दर्पण ( यहाँ अंतकरण ) के सामने खङी हो । अब यहाँ 4 हो गये । एक जो दर्पण में प्रतिबिम्ब दिख रहा ( वह जीव - यही अभी आप हो ) है । एक जिसका दर्पण में प्रतिबिम्ब ( यह आत्मा - निर्विकारी और निर्लेप ) आ रहा है । एक जो देखने वाला ( साक्षी भाव ) है । और एक तो दर्पण है ही ।
ठीक इसी प्रकार आत्मा का फ़ोकस अंतकरण पर पङ रहा है । और अंतकरण के विचारों द्वारा उसे ये संसार और 


उसकी वासनायें प्रतीत हो रही है । अब जैसे मैं बच्चा था । तब दर्पण में जीभ निकालता था । खुद को चिढाना आदि क्रियायें करता था । वैसा ही दर्पण में दिख रहा दूसरा राजीव भी करता था । जब मैं शान्त हो जाता था । तब वह भी शान्त हो जाता है । इसी प्रकार आत्मा अंतकरण द्वारा खेल रही है । वास्तव में वह हर समय ही अनादि अवस्था में थी । और रहती है ।  फ़ँसा हुआ सिर्फ़ जीव ( अहम भाव ) है । और वह क्योंकि इसको मायावश सत्य मानता है । अतः उसको फ़िर सत्य ही लगता है । इस तरह आपकी बात 100% सही है ?
1 से अनेक हो जाऊँ । वाली बात को जरा गहराई से समझा दीजिये । 1 बात और अगर हम ये न कहकर कि इस सृष्टि के कण कण में परमात्मा समाया हुआ है । अगर ये कहें कि पूरी अखिल सृष्टि ही परमात्मा में समायी हुई है । क्या ये अधिक बेहतर नहीं रहेगा ।

- वास्तव में आपने जो दूसरी तरह कहा । वह ही असली सत्य है । बाकी पहली बात को बात के चलन के आधार पर कहा जाता है । 1 से अनेक वाली बात कम शब्दों में समझाना सम्भव नहीं है । आपकी श्री महाराज जी से कुछ ही समय बाद भेंट होने वाली है । ये बात तथा अन्य बहुत सी बात वे बहुत सरलता से समझायेंगे । बस आप अपने प्रश्न कहीं नोट कर लेना ।
1 बात और । मैंने कही पढा था कि श्रीकृष्ण अध्यात्म की गहराई और ऊँचाई पर पूरी तरह से पहुँचे होने पर भी उदास नहीं थे । जबकि छोटे मोटे और नकली अधूरे किस्म के साधु भी उदास और निराश घूमते नजर आते हैं । इसके बारे में भी कुछ कहें ।
- आज नबदीप जी ! किसी ने मेरे मन की बात कही है । इसी बात पर मुँह मीठा कीजिये । यही तो..यही तो मैं आपको बारबार समझाना चाहता हूँ कि भक्ति और योग - उमंग । नयी ऊर्जा । जीवन में एक नया उल्लास । आगामी निश्चिन्तता । ये सब देते हैं । न कि बुझा बुझा सङा हुआ सा मुँह । पागल सी स्थिति । ये सब देते हैं । आपने देखा नहीं कि - मैं कैसी मस्ती में हँसी मजाक करता रहता हूँ ।
जबकि आपने इससे पहले सुना होगा । ये मत करो । वो मत करो । लव मत करो । शादी मत करो । सेक्स मत करो etc मैं आपको सच बता रहा हूँ । शुरू शुरू में जब मैं ध्यान लगाता था । और पार जाने पर जैसे ही कोई ब्यूटी नजर आयी । राजीव जी वहीं रम जाते थे । तब अक्सर मेरे गुरुदेव कान पकङकर लाते थे ।
बुद्ध ने कहा है - हसिवा खेलिवा धरिवा ध्यानम ।


बाकी - दुविधा में दोनों गये माया मिली न राम..यानी संसार का मजा भी न ले पाये । और बाबागीरी का भी फ़ायदा ( कुछ हासिल न होना ) न हुआ । इसलिये बेचारे हताश ही घूमते हैं ।
आपने अपने किसी थोडा ही पुराने लेख में कहा था कि - वास्तव में परमात्मा का कोई नाम नहीं है । इस बात को आप प्लीज जरा सरल ढंग से समझा दें । वैसे 1 से अनेक हो जाऊँ । वाली बात को गुरवाणी में अकथ कथा ही कहा गया है । यानि जिसके बारे में कहना । सुनना । लिखना । पढना । असम्भव जैसा ही है । इसके बारे में भी कुछ कहें ।
- आत्मा को " सारतत्व " भी कहा जाता है । यही सबका मूल है । यही सबका सार है । और यही इसकी असली स्थिति है । जो सबसे ऊपर " सार शब्द " के भी पार है । इसी सार शब्द को परमात्मा का नाम कहा गया है । यह आदि सृष्टि के समय आत्मा का प्रथम शब्द था । और इसके भी पार की पूर्व स्थिति को आत्मा या परमात्मा कहा जाता है । अतः जाहिर है । उसका कोई नाम नहीं है । 1 से अनेक वाली बात को सिर्फ़ समझने की कोशिश की जा सकती है । पूरी तरह समझना और समझाना दोनों ही असम्भव है । हाँ उस स्थिति में पहुँचकर अपने आप समझ में आ जाता है । इसके दो उदाहरण ।
1 - किसी बङे मैदान में लाखों करोंङो दर्पण ( यहाँ अंतकरण ) रख दें । तो हरेक में सूर्य नजर आने लगेगा ।
2 - जैसे सागर का जल बरसात के द्वारा अनेक स्थानों और अनेक रूपों में बिखर गया । और फ़िर घूम फ़िरकर विभिन्न तरीकों से दोबारा सागर में पहुँच गया ।
1 बात और । ये बतायें कि - परम धाम किसे कहते हैं ? सतलोक को । या अनामी लोक को । या इसके अलावा भी कुछ और बात है ।
- बृह्माण्ड की चोटी से ऊपर सतलोक आते ही यह सृष्टि से परे होने के कारण परम स्थान कहा गया है । यहाँ भी बहुत बङा खेल है । 88000 तो दीप ही हैं । और अनेक भव्य देश हैं । लेकिन परम धाम इनमें नियुक्त होने वाली गिनी चुनी आत्माओं जिन्हें पुरुष कहा गया है । उन्हें ही प्राप्त होता हैं । इसका अन्तर इसी तरह समझ सकते हैं कि राजा और फ़िर उसके बङे कर्मचारी । फ़िर छोटे कर्मचारी । अब जीते जी जो जितनी मेहनत कर ले । उसी हिसाब से प्राप्त करेगा । अतः परम धाम कोई एक स्थान नहीं है । किसका परमधाम है । इस पर निर्भर है । शास्त्रों में कृष्ण और विष्णु के लोक को भी परम धाम कहा गया है । जो मृत्युलोक और स्वर्गलोक आदि लोकों की तुलना में श्रेष्ठ होने के कारण और उनसे परे होने के कारण एक दृष्टि से उचित भी है ।
आपने कहा था कि श्रीकृष्ण ( काल पुरुष ) त्रिलोकी में सबसे बलवान हैं । ये बतायें कि इस अखिल सृष्टि में कितने त्रिलोक होंगे ? क्या त्रिलोक से भी बडे संसार इस अखिल सृष्टि में होंगे ।
- श्रीकृष्ण काल पुरुष का एक लीला रूप हैं । सन्तों ने जहाँ काल पुरुष को इसके क्रूर स्वभाव की वजह से आदर की दृष्टि से नहीं देखा । वहीं श्रीकृष्ण के योगी रूप आदि सभी बातों की सराहना की है । काल पुरुष के ही दूसरे रूप राम को भी यथोचित मान मिला है । प्रारम्भ में काल पुरुष का नाम धर्मराय था । जो इसके स्वभाव के कारण बदलकर यमराय हो गया । और इसकी सबसे बङी आलोचना सिर्फ़ इस बात को लेकर ही है कि ये नहीं चाहता कि जीव को उसकी खुद की सत्यता पता चल जाये । त्रिलोक अब की बार गिनती करके बताऊँगा । अखिल सृष्टि बहुत ही विलक्षण है ।
स्वधर्म का क्या अर्थ है ? स्व + धर्म ।
- स्व - अपना । धर्म - धारण किया हुआ । अब स्वधर्म बहुत हो जाते हैं । जो जाति है । वह भी स्वधर्म है । शरीर का कामन रूप से स्वधर्म अलग है कि वह शरीरधारी शरीर से क्या व्यवहार करता है । जबकि आत्मा का स्वधर्म सनातन है । और शाश्वत है । यही सबका एक है ।
स्वतन्त्र का क्या अर्थ है ? आत्मा के रुप में स्व + तन्त्र ।
- स्व - अपना । तन्त्र - सिस्टम । लेकिन यहाँ थोङा अलग हो जाता है । तन - शरीर यानी ॐ । और त्र - यानी तीन गुण - सत । रज । तम । अब अपना यानी आत्मा तन यानी शरीर और त्र यानी तीन गुणों से ये सब संयुक्त होकर विभिन्न योनि रूप होकर कार्य करते हैं ।
आत्मा का तन्त्र - प्रकृति 5 महाभूत आदि बहुत गहन विषय है । वह आसानी से समझ नहीं पाओगी ।
प्रभु का अर्थ क्या है ? क्या ये भी कोई उपाधि है ?
- प्रभु और स्वामी या मालिक होना एक ही बात है । इसका अर्थ है । किसी अधिकार या सम्पदा को प्राप्त कर लेना । जिससे आत्मा प्रभुता को प्राप्त होता है । अब इसमें भी विभिन्नता आ जाती हैं । जैसे श्रीराम को प्रभु कहा गया । तो वो राम की प्रभुता हुयी । और कृष्ण को । तो वो कृष्ण की । अतः महत्वपूर्ण है कि वो प्रभु कौन है ? प्रभुत्व और प्रभाव शब्द से भी यही ध्वनि निकलती है ।
ये बतायें कि - यहाँ आप आत्मदेव किसे कहते हैं ? आप किसे प्रणाम करते हैं ? परमात्मा को । या हम सबके आत्म स्वरूप को ? 
- आप सबके आत्मस्वरूप को । इसीलिये मैं आप सबको आत्मीयजन भी कहता हूँ । सांसारिक नाता संस्कारी और देही नाता होता है । जो संस्कार खत्म हो जाने और देह छूट जाने पर समाप्त हो जाता है । यह सम्बन्ध के अनुसार स्वार्थ पूर्ति से भी जुङा होता है । इसका सम्बन्ध देह से किसी न किसी रूप में भाई बहन माँ बाप पति पत्नी आदि के रूप में होता है । जबकि आत्मा निर्मल और निर्विकारी और सदैव होता है ।
विश्वात्मा का शाब्दिक अर्थ क्या है ? 
- सात समन्दर पार मैं तेरे पीछे पीछे आ गयी । ओ जुल्मी तेरे प्यार के खातिर सब कुछ छोङ के आ गयी । 
कसम से सच्ची ! बहुत बोर करते हो आप लोग । 
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सीताराम सीताराम । जय सीता जी ।

30 अगस्त 2011

हँस दीक्षा वाले भगवान जैसे पद को प्राप्त कर सकते हैं - मीनू

राजीव जी ! हैलो ! आपने अपने किसी ताजा लेख में लिखा है कि - जैसे 1 अति गरीब आदमी और अति सम्पन्न आदमी के बीच करोडों किस्म के स्तर के आदमी होते हैं । उसी तरह भक्ति में भी इस तरह करोंडो स्तर हो जाते हैं । जो जितना कमायेगा । उतना ही सुख पायेगा ।
राजीव जी ! मैं अब ये पूछना चाहती हूँ कि - क्या अगर इस बात को गहराई और विस्तार से समझें । तो क्या इस तरह गति भी करोंडो किस्म की हो जाती हैं ? जो जितनी भी और जैसी भी भक्ति कमायेगा । वो उतने ही अच्छे लोक में अधिक समय के लिये जायेगा । जो थोडा कम कमायेगा । वो थोडा कम अच्छे लोक में जायेगा । और कम समय के लिये जायेगा ।
ये बतायें कि - अब जैसे प्रसून जी नीलेश से अधिक निपुण हैं । तो क्या प्रसून जी की नीलेश से बेहतर गति होगी । उन दोनों के गुरु जी की पहुँच तो उन दोनों से अधिक है । तो क्या गुरु जी की गति उनसे भी बेहतर होगी ।
ये बतायें कि क्या वाकई प्रसून जैसे लोग आजकल के गुप्त माडर्न ऋषि मुनि हैं ? आप ऋषि और मुनि के शाब्दिक अर्थ भी समझा दें । ये भी बतायें कि प्रसून जी और उनके गुरु जी आदि को किस उपाधि से पुकारा जाता है । महात्मा । योगी । ऋषि । मुनि । महर्षि । साधु । तान्त्रिक । सिद्ध । मान्त्रिक । यन्त्र माहिर आदि में से क्या उपाधि है ?

इन जैसे लोग अक्सर किस तरह के लोकों में जाते हैं ? और कितनी देर के लिये जाते हैं ? फ़िर समय पूरा होने पर इन्हें अच्छी जगह मानव जन्म मिल जाता है । या ये लोग अपनी इच्छा अनुसार भी किसी अच्छे संस्कारों वाले घर में जन्म ले सकते हैं । प्रसून और नीलेश जैसे लोग 84 लाख योनियों में तो नहीं जाते । क्या प्रसून जी और उनके गुरु जी की पहुँच दसवें द्वार तक होती है ?
साथ साथ ये भी बता दें कि जिनकी भी पहुँच दसवें द्वार तक हो जाती है । क्या वो लोग 84 लाख योनियों में तो नहीं भटकते । उन्हें बार बार मानव जन्म मिल जाता है । क्या प्रसून और नीलेश जैसे लोग अपने गुरु जी के ही लोक में जाते हैं । या फ़िर वे अपनी अपनी योग्यता और गति अनुसार अलग अलग लोकों में जाते हैं । अगर ये अपनी स्व-इच्छा से इस धरती पर ही कहीं रहना चाहें । तो क्या अदृश्य रुप से भी कहीं भी रह सकते हैं । बेशक किसी जंगल या किसी अच्छे घर में ( वो बात अलग है कि घर के सदस्यों को इस बारे में पता न लगे )

ये भी बतायें कि हँस दीक्षा वाले अपनी भक्ति अनुसार ( बेशक अनेक जन्म लग जाये भक्ति में ही ) भगवान जैसे पद को भी प्राप्त हो जाते हैं । आपने अपने किसी ताजा लेख में ये भी कहा है कि - परमात्मा और ईश्वर में फ़र्क होता है ? तो फ़िर समझा दीजिये । क्या फ़र्क होता है ।
ये भी बतायें कि भगवान और ईश्वर में क्या फ़र्क होता है ? क्या अखिल सृष्टि में भगवान और ईश्वर से भी बडी गुप्त । अलौकिक । रहस्यमयी । सूक्ष्म शक्तियाँ होती हैं । जैसे महाकाल स्थिति में । अन्त में ये भी बता दें कि पण्डित । पुजारी । विद्वान । पण्डा । पण्डी । ब्राह्मण । बृह्म इन जैसे शब्दों के शाब्दिक अर्थ क्या हैं ? कृपया मुझे मेरे इन सभी सवालों के खुलकर जवाब देकर आप मेरी अच्छी तरह तसल्ली करवा दीजिये । कोई कसर मत छोडना । प्लीज ।
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बहुत दिनों से एक ही बात बारबार सोच रहा हूँ कि - वे आजकल कहाँ हैं ? जो आप सभी को यहाँ लाये थे । आप सभी के कितने मेल कितने ही फ़ोटो ब्लाग पर छप गये । पर उनका दूसरा फ़ोटो भी फ़िर से नहीं छपा । क्या उनके सभी प्रश्न खत्म हो गये ? उनके क्या हाल हैं ? वे आजकल कहाँ हैं ?
खैर..चलिये बातचीत आरम्भ करते हैं ।

तो क्या इस तरह गति भी करोंडो किस्म की हो जाती हैं ? जो जितनी भी और जैसी भी भक्ति कमायेगा । वो उतने ही अच्छे लोक में अधिक समय के लिये जायेगा । जो थोडा कम कमायेगा । वो थोडा कम अच्छे लोक में जायेगा । और कम समय के लिये जायेगा ।

- ये भी एक पढाई और उसके बाद उससे हुयी प्राप्ति है । जिस प्रकार एक ही कालेज से निकले छात्रों की आगे जाकर बहुत ही अलग अलग किस्म की गतियाँ होती हैं । ठीक वैसा ही यहाँ भी होता है । सिर्फ़ उनके स्थान विशेष हैं । जैसे व्यापार में रुचि रखने वाला मार्केट में ही जायेगा । चाहे उसने कैसी ही पढाई की हो । कुछ भी बना हो । नौकरी की रुचि वाला नौकरी करेगा । जहाँ आशा तहाँ वासा ..इसी को कहते हैं । सोच के अनुसार गति पहले से ही बनने लगती है ।
जैसे प्रसून जी नीलेश से अधिक निपुण हैं । तो क्या प्रसून जी की नीलेश से बेहतर गति होगी । उन दोनों के गुरु जी की पहुँच तो उन दोनों से अधिक है । तो क्या गुरु जी की गति उनसे भी बेहतर होगी ।
- गति के लिये वही कमाई वाला और क्या प्राप्ति हुयी ? सिद्धांत लागू होता है । विराट माडल में जो दिमाग के तीसरे दाँये टुकङे ( शब्द पर ध्यान दें ) वाला सिद्ध क्षेत्र है । वहाँ द्वैत के सिद्ध जाते हैं । परन्तु सिद्धियों का दुरुपयोग करने वाले निश्चय ही नरक में जाते हैं । फ़िर वे नीलेश प्रसून या उनके गुरु जी या अन्य कोई लाटसाहब ही क्यों न हों । योगियों की भी लगभग यही गति होती है । भक्त योगियों की और सिर्फ़ समर्पण भक्त इनसे ऊँची स्थिति को प्राप्त होते हैं । भक्ति को सबसे बङा स्थान प्राप्त है ।

क्या वाकई प्रसून जैसे लोग आजकल के गुप्त माडर्न ऋषि मुनि हैं ? आप ऋषि और मुनि के शाब्दिक अर्थ भी समझा दें । प्रसून जी और उनके गुरु जी आदि को किस उपाधि से पुकारा जाता है । महात्मा । योगी । ऋषि । मुनि । महर्षि । साधु । तान्त्रिक । सिद्ध । मान्त्रिक । यन्त्र माहिर आदि में से क्या उपाधि है ?
- ऋषि का अर्थ प्रायोगिक शोधकर्ता । खोज करने वाला । और मुनि का अर्थ - उपलब्ध ज्ञान या स्थितियों पर मनन चिंतन करने वाला । आपने जितनी उपाधि बतायीं हैं । इन्हें सभी ही कहा जाता है । लेकिन खास इनके लिये एक शब्द प्रयुक्त होता है - सिद्ध । यानी जिसने ज्ञान विशेष को प्रयोगात्मक स्तर पर सिद्ध कर लिया हो
गुप्त और खुले क्या । आधुनिक और प्राचीन क्या । ज्ञान अलग बात है । और व्यक्ति की लाइफ़ स्टायल अलग बात है कि वह किस तरह रहना पसन्द करता है । पुराने समय में भी अर्जुन कर्ण भीम और श्रीकृष्ण आदि वही तपस्या वही योग करते थे । जो उस समय जंगलों में कुटी में रहने वाले साधु महात्मा करते थे । इनको अपने तरह का जीवन पसन्द था । उनको बाबागीरी वाला । मौज अपनी अपनी । मियाँ बीबी राजी । फ़िर क्या करे काजी । आज भी बहुत से महात्मा पुराने समय की तरह जंगल गुफ़ाओं आदि में रहते हैं ।
अब पुराने साधु बाबा etc भोजपत्र ( भोज वृक्ष की क्षाल ) पर ज्ञान को लिखते थे । राजीव बाबा ब्लाग पर लिख रहे हैं । बताईये । आजकल भोजपत्र पर । या कलम दवात से कागज पर । या कपङे पर । या दीवालों पर ज्ञान लिखने की कोई तुक है ?

इन जैसे लोग अक्सर किस तरह के लोकों में जाते हैं ? और कितनी देर के लिये जाते हैं ? फ़िर समय पूरा होने पर इन्हें अच्छी जगह मानव जन्म मिल जाता है । या ये लोग अपनी इच्छा अनुसार भी किसी अच्छे संस्कारों वाले घर में जन्म ले सकते हैं । प्रसून और नीलेश जैसे लोग 84 लाख योनियों में तो नहीं जाते । क्या प्रसून जी और उनके गुरु जी की पहुँच दसवें द्वार तक होती है ?
- दसवें द्वार का मार्ग मध्य मार्ग है । जबकि सिद्ध ज्ञान का मार्ग दाँयी तरफ़ है । सफ़ल और परोपकारी सिद्ध 84 लाख योनियों में नहीं जाते । लेकिन ये अपनी इच्छानुसार मनुष्य जन्म नहीं ले सकते । ये सिर्फ़ सच्चे सतगुरु से हँसदीक्षा या 84 भोगने के बाद ही मिलता है । इसीलिये दुर्लभ है ।
जिनकी भी पहुँच दसवें द्वार तक हो जाती है । क्या वो लोग 84 लाख योनियों में तो नहीं भटकते । उन्हें बार बार मानव जन्म मिल जाता है ।
- दशम द्वार यानी 10वाँ द्वार तो बहुत बङी बात है । बहुत ऊँची स्थिति है । द्वैत या अद्वैत के सच्चे गुरु द्वारा दीक्षा के समय सिर्फ़ बृ्ह्माण्डी लाक ( आई ब्रो के बीच में ) के खुल जाने से ही मनुष्य फ़िर 84 लाख योनियों में नहीं जाता ।
क्या है ये 10वाँ द्वार - मनुष्य के सिर में जो ऊपर माथे से लेकर हिन्दू चोटी वाला घूमा हुआ भँवर सा स्थान है ।

इसके लगभग बीच में । या माथे से दो इंच सिर की तरफ़ एक सूराख हो । और उस सूराख में एक इंच नीचे ही - ये ध्वनि शब्द रूपी 10वाँ द्वार है । संसार में ये ध्वनि सिर्फ़ झींगुर की ध्वनि से मिलती है । ये ध्वनि जब गुरु कृपा से अंतर में प्रकट हो जाती है । तो इसको सुनने से जमा संस्कारों का नाश होने लगता है । नये भी नहीं बनते । इस द्वार में अन्दर प्रविष्ट तभी होती है । जब मनुष्य वासना रहित हो जाता है । ये द्वार बेहद सूक्ष्म सुई के नोक जैसा है । कबीर ने इसी को प्रेम गली कहा है - प्रेम गली अति सांकरी ।
इसको जानने वाले का बारबार मनुष्य जन्म ही होता है । जब तक वह मुक्त नहीं हो जाता ।
अगर ये अपनी स्व-इच्छा से इस धरती पर ही कहीं रहना चाहें । तो क्या अदृश्य रुप से भी कहीं भी रह सकते हैं । बेशक किसी जंगल या किसी अच्छे घर में ।
- रहते ही हैं । रह रहे हैं । हिमालय आदि क्षेत्र में अमेरिका आदि के जंगली क्षेत्र में आपके नये फ़्लैट जैसे स्थान पर ऐसे बहुत से लोग रहते हैं । वैसे बर्फ़ीले सुनसान क्षेत्र या ध्रुवों जैसे सुनसान क्षेत्र पर ऐसे लोग अधिक रहते हैं ।
हँस दीक्षा वाले अपनी भक्ति अनुसार ( बेशक अनेक जन्म लग जाये भक्ति में ही ) भगवान जैसे पद को भी प्राप्त हो जाते हैं ।
- हँस दीक्षा तो बहुत बङी और दुर्लभ दीक्षा है । भगवान बनना तो द्वैत भक्ति से ही सम्भव है । केवल इसीलिये तो मनुष्य जीवन मिलने को दुर्लभ कहा गया है । यदि इंसान चाहे । तो इसमें भगवान और उससे भी बहुत बङा बन सकता है । जिस प्रकार अब्राहम लिंकन जैसा गरीब बालक राष्ट्रपति बन जाता है । स्व धीरू भाई अम्बानी जैसा धनपति बन जाता है । प्रहलाद इन्द्र बन जाता है । ध्रुब ऐश्वर्य पूर्ण लोक को प्राप्त करता है । उसी प्रकार भक्ति द्वारा कल्पनातीत प्राप्ति होती है ।
भक्ति स्वतन्त्र सकल गुन खानी । बिनु सतसंग न पावहि प्रानी ।
अर्थात कर्मगति परतन्त्र ( दूसरे के वश में ) है । परन्तु भक्ति स्वतन्त्र है । और सभी गुणों की खान है । लेकिन बिना सतसंग के इसको नहीं पा सकते ।
आपने किसी लेख में कहा है कि - परमात्मा और ईश्वर में फ़र्क होता है ?  क्या फ़र्क होता है ।
- ईश्वर का अर्थ प्रथ्वी पर केन्द्रीय वित्त मंत्री के जैसा है । या विश्व बैंक के चीफ़ जैसा । जो इस ऐश्वर्य का मालिक हो । ये भी एक उपाधि है । कुबेर इस खजाने का जरूरत अनुसार वितरण करता है । परमात्मा वास्तव में आत्मा की अनादि स्थिति  से कहते हैं । वह इन सबसे ही परे है । सबका ही मालिक है । साहेब है । और सबसे बङी खास बात वह हर उपाधि से रहित है ।
उस पर कभी कोई भी कैसा भी नियम लागू नहीं होता । पर अखिल सृष्टि की सभी महाशक्तियाँ भी उसके अधीन उसके नियम पर कार्य करती हैं । प्रथ्वी पर शरीरधारी परमात्मा का रूप वास्तविक परमहँस हुआ " फ़क्कङ सन्त " होता है । इसकी मौज निराली होती है । इससे बङा कहीं भी कोई भी नहीं होता । इनके बाद सृष्टि की सबसे बङी शक्ति " होनी " और फ़िर दूसरी सबसे बङी शक्ति " प्रकृति देवी " भी इनके समक्ष खङे होने में थरथर कांपती है ।
एक बार को आपको विराट ( जैसा अर्जुन आदि को दिखाया था ) के दर्शन हो जायँ । सभी महाशक्तियों के एक साथ ही दर्शन हो जायँ । ये तो सम्भव हो भी सकता है । पर एक " फ़क्कङ सन्त " के दर्शन अति से अति दुर्लभ हैं । इनकी एक कृपादृष्टि ही जीव का तुरन्त उसी समय ही उद्धार कर देती है ।
भगवान और ईश्वर में क्या फ़र्क होता है ? क्या अखिल सृष्टि में भगवान और ईश्वर से भी बडी गुप्त । अलौकिक । रहस्यमयी । सूक्ष्म शक्तियाँ होती हैं ।
- भगवान और ईश्वर से भी बहुत बडी बङी शक्तियाँ होती है । ईश्वर के बारे में बता ही चुका । विष्णु । शंकर । राम । श्रीकृष्ण । वामन । नरसिंह आदि बहुत से कार्यों को भेजे गये । या ऐसे ही कार्यों के लिये नियुक्त की गयी आत्मा को भगवान कहा जाता है । ये भी आत्मा की एक उपाधि ही है ।
अन्त में ये भी बता दें कि पण्डित । पुजारी । विद्वान । पण्डा । पण्डी । ब्राह्मण । बृह्म इन जैसे शब्दों के शाब्दिक अर्थ क्या हैं ?
- पण्डित - सही अर्थ ज्ञानी । और एक जाति । पुजारी - पूजा करने वाला । मन्दिर में नियुक्त  । विद्वान - विषय विशेष का ज्ञाता । शास्त्र ज्ञानी । थ्योरी को जानने वाला  । पण्डा - गंगा तट तथा मन्दिरों आदि पर कर्मकाण्ड कराने वाले । पण्डी - पण्डा की घरवाली ( वैसे वाहर बाली भी हो सकती है । सब चलता है । आय लव माय इण्डिया ) । ब्राह्मण - बृह्म में स्थिति योगी । बृह्म को अनुभूत स्तर पर जीते जी जानने वाला  । वहाँ पहुँच रखने वाला । बृह्म - आत्मा की एक उपाधि । सृष्टि का कर्ता पुरुष । अहम बृह्मास्मि - योग में एक स्थिति पर पहुँच जाने पर होने वाला बोध ।
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चलते चलते - उस समय मेरे दोनों भांजे छोटे थे । करीब 4-5 साल के । दोनों मम्मी के बजाय पापा को अधिक प्यार करते थे । क्योंकि मम्मी पिटाई लगाती थी । वे अपनी मम्मी पापा के साथ जम्मू वैष्णों देवी देखने गये । और जब सीङियाँ चढकर ऊपर जा रहे थे । तब अन्य दर्शनार्थी - जय माता दी..कहते हुये ऊपर जा रहे थे । इन्होंने बालमन से सोचा - सभी बारबार माताजी की ही जय बोल रहे हैं । पिताजी की जय कोई नहीं बोलता । अतः जैसे ही अगली बार दर्शनार्थियों ने - जय माता दी..बोला । इन्होंने तुरन्त - जय पिताजी बोला । फ़िर उनके - जय माता दी..पर बराबर जय पिताजी..कहते हुये उन्होंने पूरी सीङियाँ चङी । तमाम लोग इन नन्हें बच्चों के साथ मुस्कराते हुये कब सीङियाँ चढ गये । पता ही नहीं लगा ।
जय सीता जी ।

28 अगस्त 2011

मेरे पसन्दीदा 3 सीरियल

मेरे तीन बेहद पसन्दीदा सीरियल इत्तफ़ाक से तीनों ही विदेशी हैं । किशोर अवस्था पर आधारित सीरियल " हाना मोन्टाना " मुझे बेहद पसन्द है । प्रसिद्ध पाप सिंगर मायली सायरस की किशोरावस्था जिन्दगी के खट्टे मीठे अनुभवों पर आधारित इस सीरियल को देखने में मुझे बहुत मजा आता था । इसके सभी पात्र बङे मजेदार ही हैं । मुझे जितनी अच्छी अच्छी हाना लगती थी । उतनी ही अच्छी उसकी एकमात्र सहेली । हाना का भाई । और हाना के डैड । और हाना की मादक आवाज । उसकी दोहरी जिन्दगी । ये सब मिलाकर एक रोमांचक अनुभव देते हैं । हाना मोन्टाना पर अभी 2 साल पहले एक फ़िल्म भी बनी है । ये सीरियल डिज्नी चैनल पर आता था । शायद अभी भी आता हो । ये हिन्दी अंग्रेजी दोनों भाषाओं में उपलब्ध है ।

                                 
एक फ़ाइव स्टार होटेल में काम करने वाली एक तलाकशुदा माँ के दो बच्चे जैक एण्ड कोडी की शरारतें बरबस ही अपने बचपन की याद दिलाती हैं । " द सुईट लाइफ़ जैक एण्ड कोडी " मेरा पसन्दीदा दूसरा सीरियल है । सुईट में रहते हुये ये बच्चे क्या हंगामा करते हैं । देखकर ही जाना जा सकता है । इस सीरियल के भी सभी पात्र एक से बङकर एक ही हैं । होटेल के मालिक की कम अक्ल लङकी । होटेल में ही काम करने वाली एक अन्य लङकी पात्र । होटेल मैंनेजर सभी का अपना ही निराला अन्दाज है । ये सीरियल भी डिज्नी चैनल पर ही आता था ।  ये भी हिन्दी अंग्रेजी दोनों भाषाओं में उपलब्ध है ।




स्टार प्लस पर हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में प्रसारित हो चुका सीरियल " स्माल वंडर " भी खासा दिलचस्प है । एक साफ़्टवेयर इंजीनियर । उसकी पत्नी । और उनका एक प्यारा सा बच्चा । तथा एक रोबोट गुङिया । ये एक दिलचस्प परिवार है । इनके पङोसी भी खासे दिलचस्प हैं । पङोसी की लङकी इस लङके को प्रेम करती है । इस सीरियल की खासियत है कि इस परिवार को छोङकर किसी को नहीं पता कि ये गुङिया सी लङकी रोबोट है । यहाँ तक कि स्वयँ यह परिवार भी इसके रोबोट होने को भूल जाता है । और इंसान ही समझने लगता है । उससे भी बङकर इसका निर्माता साफ़्टवेयर इंजीनियर भी यह भूल जाता है । और तब ये गुङिया एक दिन गिरकर मर जाती है । और परिवार एकदम रोने लगता है । फ़िर उन्हें याद आता है कि...? हैरत की बात । इसके सभी एपिसोड देख चुका मैं भी एकदम धक्क सा रह गया था । ऐसा ये प्यारा सीरियल है ।

26 अगस्त 2011

वाकई ये इण्डिया की लेडी न.1 हैं - विनोद त्रिपाठी

गब्बर - ये बोतल हमका दे ठाकुर ।
ठाकुर - नहीं ।
गब्बर - ठाकुर ये बोतल हमका दे दे ।
ठाकुर - नहींह्ह्ह्ह ।
गब्बर - ये बोतल हमका दे दे ठाकुरर्र्रर्र ।
ठाकुर - नहींह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ।
खैर.. गब्बर ने बोतल ठाकुर से छीन ली । और बेचारा ठाकुर कुछ नहीं कर सका ।
पप्पू बादशाह ! कल मेरे को मेरा मित्र पी के सिंगला बोला - त्रिपाठी जी ! आपको पता है । देश में अनशन हो रहा है ।
तो मैंने कहा - सिंगला जी ! मेरे ख्याल से संसार में जितने भी गरीब देश हैं । उनमें बेचारी जो गरीब औरतें हैं । उनके गर्भ में जो बच्चे हैं । उन बेचारों का तो गर्भ में ही अनशन शुरु हो जाता होगा ।
मेरी बात सुनकर सिंगला जी खिसक लिये ।

राजीव राजा ! कल टी वी पर 1 बाबा कह रहा था - आज देश में देश की माँ बहन बेटियाँ सुरक्षित नहीं हैं । आजकल के दुष्ट लोग रावण के भी बाप हैं । रावण तो अंहकारी था । रावण चाहता । तो बलात्कार कर सकता था । लेकिन उसने 1 साल तक सीता को छुआ तक नहीं । लेकिन आजकल के लोग तो बलात्कारी हैं ।
उस बाबा की बात सुनकर मैंने सोचा कि क्या आज से कुछ समय पहले या बहुत समय पहले महिलायें सुरक्षित थी । मैंने ये भी सोचा कि मेरा फ़ूफ़ा रावण तो बडा बलशाली था । ये आजकल की खस्सी जनता उसकी बाप कैसे हो गयी ?
खैर.. कल शाम मैंने शराब पीकर अपने बाप को भी जोरदार भाषण दिया ।
मैंने कहा - तुम नानसेंस आदमी हो । अपनी जवानी के काले कारनामे पाण्डु को सुना सुनाकर उसकी जवानी को

बरबादी के रास्ते पर ले जा रहे हो । पाण्डु भी तुम्हें गोरी गोरी धोबन और दूधवाली और कामवाली के झूठे सच्चे किस्से सुना सुनाकर । तुमसे 10-20 रूपये ऐंठ लेता है ।
मेरा बाप ही..ही..ही करके हँसता रहा ।
मैंने फ़िर कहा - अन्ना हजारे जी को देखो । कितनी तरक्की की उन्होंने । आज सारे देश में उनकी पहचान है । किसी जमाने में अन्ना जी महाराष्ट्र में सिर्फ़ 1 ड्राइवर थे । लोगों के अनुसार अन्ना जी की कुल जायदाद सिर्फ़ 1 टोपी । कुर्ता । धोती । 1 पुराना अटैची । और 1 पुरानी चारपाई है । उनके पास अपने रहने के लिये जगह भी नहीं थी । सिर्फ़ किसी आश्रम

या मन्दिर टायप जगह में रहते थे । अन्ना जी ने शादी भी नहीं की । तुम कुछ सीखो उनसे ।
मेरी बात सुनकर मेरा बाप ताली मार कर हँसने लगा । और बोला - घोडे की पाँचवी टांग को तलाश मत कर । मुझे डी वी डी पर फ़िल्म लाकर दिखा - मर्डर 2 ।
खैर.. राजीव राजा ! कल हमारे कालेज के सामने 1 शर्मनाक हरकत हुई । दोपहर को छुट्टी टाइम कालेज के गेट से थोडा ही दूर कोने में 1 कुत्ता और कुत्ती सेक्स कर रहे थे । जब लडकियाँ गेट से बाहर आ रही थी । तो शर्म से उनके गाल लाल हो गये थे । इतने में मैं भी अपना स्कूटर निकाल कर बाहर आ रहा था । मुझे भी कुत्ते वाला सीन दिखाई दिया । मैंने ये भी नोट किया कि लडकियाँ चोरी चोरी देख भी रही हैं । और शर्मा भी रही हैं ।
मैंने गेटमैन को कहा - इनको भगा । तू आराम से खडा है ।
मेरी बात सुनकर गेटमैन ने उनकी तरफ़ 1 छोटा सा पत्थर फ़ेंका । कुत्ते ने घबरा कर अपनी टांग कुछ इस तरह घुमाई कि कुत्ता और कुत्ती दोनों विपरीत दिशा में हो गये । कुत्ता घबरा कर उधर को भागा । जिधर लडकियों का झु्ण्ड था । पीछे पीछे गेटमैन भी दौड लिया । लडकियों के झुण्ड में दबी हुई हँसी के चटाके फ़ूट लिये ।

मैंने अपना स्कूटर स्टार्ट किया । और घर को निकल लिया । मैं रास्ते में सोच रहा था कि साला कुत्ता भी लडकियों के कालेज के सामने ही लुत्फ़ ले रहा था । मैंने ये भी सोचा कि पता नहीं जवान लडकियों पर इस सीन का क्या प्रभाव पडा होगा ? वैसे ऐसे सीन अक्सर हमारे देश में सडकों पर दिख ही जाते हैं । लेकिन शर्म की बात तब महसूस होती है । जब कोई पूरा परिवार खडा हो । और आस पास कही कोई कुत्ता बिल्कुल ऐसी हरकत कर रहा हो ।
खैर.. मैं दोपहर को खाना खाकर टी वी देखने लगा । 1975 मे बनी फ़िल्म " धर्मात्मा " आ रही थी । जिसमें प्रेमनाथ फ़िरोज खान को बोल रहा था - देश भक्ति सिर्फ़ 1 नारा है । जिसने जितना ऊँचा लगाया । वो उतनी बडी कुर्सी लेकर बैठ गया ।
मैंने सोचा - बिलकुल ठीक ।
फ़िर मुझे सोनिया गाँधी की याद आयी । मैंने सोचा । वाकई ये इण्डिया की लेडी न.1 है ।

पहनावा कितना सिम्पल और हैसियत समाज में कितनी बडी । मेरे ख्याल से हिन्दुस्तान के समाज में सोनिया गाँधी से अधिक पावरफ़ुल कोई नहीं है । मेरे हिसाब से क्या पुरानी पीढी और क्या नयी पीढी दोनों ही फ़ुददू है । पुरानी पीढी हेमा मालिनी के सपने देखती रही । नयी पीढी करीना कपूर के सपने देखती है ।
अब राजीव राजा ! हेमा मालिनी या करीना कपूर की हैसियत सोनिया गाँधी के सामने क्या है ? सोनिया गाँधी तो बडे बडे वी आई पी लोगों की पार्टीज में भी नहीं जाती । आखिर उनका भी तो 1 स्टेण्डर्ड है । आजकल के मुस्टण्डे सोचते होंगे कि पता नहीं ये फ़िल्मी हीरो हीरोईन कितनी बडी हस्तियाँ है । राजनीति फ़िल्म में कैटरीना कैफ़ ने रोल किया है ।

लेकिन फ़िल्मी रोल नकली होता है । असली हैसियत सडक पर आकर ही पता लगती है कि वास्तव में सोनिया गाँधी की हैसियत क्या है ? और कैटरीना कैफ़ क्या है । वैसे इन नाचने गाने वाले फ़िल्मी लोगों को मैं बडा आदमी नहीं मानता । इनका धन्धा ही ऐसा है कि ये लोग अक्सर टी वी स्क्रीन पर नजर आते रहते हैं ।
इस धन्धे में शो बाजी अधिक है । जनता ( खासकर युवा लोग ) प्रभावित हुये बिना नहीं रहते । बेशक कोई कहे कि अमिताभ बच्चन बहुत बडा आदमी है । लेकिन साल 2008 में राज ठाकरे ने अमिताभ का क्या तमाशा बनाया था । ये सब जानते ही हैं । जनता बेवकूफ़ है । इनको तो बेवकूफ़ बनाने वाले चाहिये ।
खैर.. मैंने कल ये भी सोचा कि अगर इन्दिरा गाँधी जिन्दा होती । अन्ना जी और हमारी जनता इन्दिरा गान्धी से पंगा ले लेती । तो फ़िर भगवान ही जानता कि क्या होता ।
शायद कुछ गरम मिजाज पढी लिखी महिलायें भी मद में आकर सोचती होंगी कि हम पता नहीं क्या है ? उनसे कोई कहे कि - बहन जी ! बस बहुत ड्रामा हो गया । शान्त हो जाईये । और लिम्का पीजिये । आप तो कुछ घण्टों की ही मास्टरनी । जज । डाक्टर । प्रिन्सिपल आदि हैं । लेकिन सोनिया जी तो 24 घण्टे पावर में है ।
राजीव राजा ! आज तुम भी थोडी देर के लिये बाबा गिरी छोडकर नेताओं की तरह मेरे इस छोटे से भाषण पर कोई बडा भाषण अपने देशी और विदेशी पाठको को दे डालो ।

अगर ज्यादा न सही । तो वी आई पी लोगों की तरह 2 शब्द तो कह ही डालो । क्यूँ कि तुम अब आम बाबा नहीं रहे । अब तुम वी आई पी बाबा हो गये हो ।
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सभी चित्र और लेख के प्रस्तुतकर्ता - श्री विनोद त्रिपाठी । प्रोफ़ेसर । लाला लाजपत राय नगर । भोपाल । मध्य प्रदेश । ई मेल से । त्रिपाठी जी ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
- अभी कुछ दिन पहले से मुझे इस बात पर बङी  हैरत हुयी कि महज 4-5 कहानी से प्रसून के चाहने वाले कितने अधिक हो गये । फ़िर दोबारा हैरत इस बात की हुयी कि महज कुछ ही लेखों में त्रिपाठी जी के न सिर्फ़ लगभग मेरे सभी स्थायी पाठक बल्कि बाहर के लोग भी फ़ैन हो गये । जबकि मैंने सब कुल 600 के लगभग लेख आदि तो लिखे ही होंगे ।
खैर..त्रिपाठी जी ने राजनीति पर मेरे विचार जानने चाहे हैं । जैसा कि आप लोगों को मालूम ही होगा कि मेरे परिवार में मृत्यु के बाद से सम्बन्धित कार्य चल रहे हैं । मेरे गुरुजी भी आये हुये हैं । और मुझे बङा आश्चर्य इस बात का हुआ कि इस मृत्यु जैसे कार्यकृम में अन्ना की ही चर्चा हो रही थी । शोक संवेदना के लिये आने वाले । घर वाले । बाबा लोग अन्ना ही अन्ना । बस अन्ना । हाँ मेरे गुरुजी इस तरह की बातों में कोई दिलचस्पी नहीं लेते । और न हीं मैं ।
तब हम लोग अपने दूसरे घर में सिस्टर के यहाँ बैठे थे । जब अचानक लोग बोले - TV चलाओ । देखें नये 


समाचार क्या हैं । जैसे ही TV आन हुआ । मैं वहाँ से चला आया ।
वास्तव में चाहे वे बाबा रामदेव जी हों । अन्ना जी हों । या अन्य । ये सब मोहरे हैं । मीडिया की शतरंज के । मीडिया की भूमिका क्या हो ? ये बङा विचारणीय विषय है । एक तरफ़ जब प्रिंस जैसा बच्चा कुँयें में गिर जाता है । तब मीडिया की भूमिका अति प्रसंशनीय हो जाती है । लेकिन कुछ ही दिनों बाद ऐसी मूर्खता की खबरें देश के हिस्सों से आती हैं कि कई लोगों ने जान बूझ कर बच्चे गिरा दिये । ताकि वे भी रातोंरात मालामाल हो जायें । तब रोना आता है । इसी मीडिया के प्रभाव से कुछ ही समय में रामदेव इंटरनेशनल हो जाते हैं । और इसी मीडिया

की वजह से उनकी इंटरनेशल भद्द भी होती है । तब ऐसे घटनाकृमों से यह बात स्वतः उठती है कि किसी बात पर मीडिया का क्या और कैसा रुख होना चाहिये ।
मान लीजिये । जैसे सरकार ने रामदेव का तोङ निकाल लिया । किसी दूसरी युक्ति से अन्ना का निकाल ले । अभी मान लो ऐसा लगे भी कि अन्ना मुद्दे पर सरकार राजी हो गयी । फ़िर किसी किन्तु परन्तु के साथ भृष्टाचार के दूसरे तरीके विकसित हो जायँ । तब ऐसी किसी लीडरशिप ऐसे किसी आन्दोलन से भी जनता का विश्वास उठ जायेगा । मैं क्योंकि दो साल से कुछ कम समय से TV अखबार आदि बिलकुल नहीं पढता । अतः मुझे मालूम नहीं कि - ये मामला असल में क्या है ? लेकिन फ़िजा में जब भी ऐसी कोई आवाज गूँजती है । मैं आदतन हमेशा पीछे ( इतिहास को ) देखता हूँ । जब मैं पढता था । तब स्कूल में एक गीत अक्सर स्टेज आदि पर सुनाने के लिये बताया जाता था - दे दी हमें आजादी बिना खङग बिना ढाल । साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल । मुझे इस गाने से बेहद चिङ थी । आज कोई बच्चा इस गीत को सुने । तो यही

सोचेगा कि - कमाल के सन्त थे । बिना तोप तलवार के ही देश को आजाद करा दिया । और अकेले ही करा दिया ? पर क्या ये सच था ? ये मूढमति हिन्दुस्तानियों द्वारा स्वीकारा गया सच था ।
आईये आपको उसी समय की एक सत्य घटना बताते हैं । जिसके पात्रों के नाम और स्थान तो अब मुझे ध्यान नहीं हैं । पर घटना ज्यों की त्यों याद हैं । क्योंकि उस छोटी उमृ में भी मुझे ये बङी दिलचस्प घटना लगी । और मेरे स्वभाव से मेल खाती थी ।
घटना ये थी कि उसी समय किसी क्रांतिकारी टुकङी ने अपने किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये एक प्रभावशाली अंग्रेज महिला का अपहरण कर लिया । और उसे लेकर जंगल में छुप गये । अपहरण की चिठ्ठी अंग्रेजों को भिजवा दी गयी । अब अंग्रेज इतने सीधे भी नहीं थे कि खत पढकर ही मान जाते । उन्होंने तुरन्त उस जंगल को घेर लिया । और एक हेलीकाप्टर या हवाई जहाज वगैरह

जंगल के ऊपर चक्कर लगाने लगा । साथ ही एक लाउडस्पीकर पर अनाउंस होने लगा - वह महिला हमारे लिये जरा भी महत्वपूर्ण नहीं हैं । हम इस जंगल पर बम गिरा रहे हैं । जान की सलामती चाहते हो । तो बाहर आ जाओ ।
बस कुछ ही मिनटों में वे क्रांतिकारी भाई - लो जी लो जी..करते हुये महिला के साथ बाहर आ गये । और खुद भी धर लिये गये ।
अब ये क्या था ? ये एक सशक्त सिस्टम था । जिसने थोङी ही देर में समस्या हल कर दी । अतः मेरा हमेशा ही यही मानना है कि - जब तक सिस्टम नहीं सुधरेगा । जनता अपने स्तर पर जागरूक नहीं होगी । तब तक भारत के रामलीला मैदानों में इस तरह की रामलीला होती ही रहेगी । क्योंकि 90% जनता सिर्फ़ मजा लेती है । टाइम पास करती है । सिर्फ़ टाइम पास । शो चालू आहे - हाउस फ़ुल । फ़िल्म का नाम - मीडिया पावर ।
अक्ल बिगर गयी तेरी लाला झरे में कर रओ है कूरो । घर में नाय एक रुपैया तू खाय वे जाय रओ बूरो ।

25 अगस्त 2011

औरत के दाङी..औरत के दाङी - विनोद त्रिपाठी

इंटरनेशनल राजा ! उस दिन तुमने जब मुझे अकेले में वो बात समझाई थी । समझ गये न वो वाली । तो मैं तुम्हारा प्वाइंट समझ गया था । अब जैसा तुमने समझाया था । वैसे ही होगा । तुम बिल्कुल निश्चिन्त रहो ।
खैर.. अब जरा आज की बात करें । आज मैंने तुमसे 1 जरुरी बात पूछनी थी । तुम भी 1 बात पर बहुत जोर देते हो । मैं भी अब उस बात पर 100% विश्वास करने लगा हूँ । वो बात ये है कि - कोई भी सुख और दुख सिर्फ़ हमारे किये कर्मों के आधार पर हमें मिलता है । कोई व्यक्ति या कैसी भी व्यवस्था सिर्फ़ निमित्त मात्र होते हैं । और ये कर्म गति का सिद्धांत ये सब 1 बहुत बडे लेवल पर गुप्त रूप से अपने आप बडे ही अति कडे अनुशासन की तरह आदिकाल से चल रहा है ।


कल शाम की बात है । मैं, मेरा बाप और नौकर पाण्डु बैठे शराब पी रहे थे । मेरे बापू ने 1 पैग लगाकर अपनी 1 टांग टेबल के उपर रखकर । अपनी 1 आँख बन्द करके गुनगुनाने लगा ।
मैंने उसे कहा - ये जो टेबल पर बोतल शराब की पडी है । ये 250 रुपये की है । अगर तुम्हारी टांग लगने से ये टूट गयी । तो मैं तेरे को तोड दूँगा रे ।
मेरे बाप ने ही.. ही.. ही करते हुये अपनी टांग नीचे कर ली । उधर साला पाण्डु 15 मिनट से रेडियो की .. में उंगली डालकर पता नहीं क्या कर रहा था ।
मैंने उसे भी कहा - या तो कोई बढिया सा गाना लगा ले । नहीं तो फ़ेंक दे इस भैण च.. को गेट से बाहर । पाण्डु भी साला पता नहीं इंसान की कौन सी प्रजाति की नस्ल है । साले का मुँह बिल्कुल गोल है । रंग काला । बाल बिलकुल छोटे । पीछे 1 चुटिया । हमेशा सफ़ेद कुर्ता पजामा पहनता है ।
लेकिन उसके कुर्ते पजामे का स्टायल मेरे को समझ में नहीं आया । साले का कुर्ता न तो बंगाली स्टायल है । और न ही पंजाबी स्टायल । कुर्ते का कालर भी अलग ही स्टायल का है । अचकन टाइप । साला नेताओं जैसा कुर्ता पजामा पहनता है । लेकिन देखने में साला रिक्शावालों का नेता लगता है ।


खैर.. कल शाम जब मैंने देखा कि बापू और पाण्डु के पास आज बैठने का कोई फ़ायदा नहीं । तो मैं अन्दर आकर टी वी देखने लगा । टी वी पर 1 बाबा बैठकर कुछ बोल रहा था । वैसे हिन्दुस्तान में बाबा बनने की खुली छूट है । किसी के पास काम नहीं । तो बाबा बन जाओ । कोई निकम्मा है । तो चलो बाबागिरी कर लेते हैं । अगर जनता को लूटना है । तो बाबा बन जाओ । औरतों से ठरक भोरनी है । तो चलो बाबा बन जाओ । अगर बुढापे में घर वालों ने घर से निकाल दिया । तो चलो बाबा बन जाओ । अगर किस्मत ने च.. दिया । और किसी काम के न रहे । तो बाबा बन जाओ ।
इसी तरह 1 बार 1 पागल सा बाबा आकर किसी रेलगाडी में बैठ गया । टी टी ने उससे टिकट के बारे में पूछा । तो वो साला पागल बाबा बोला - लल्ला हमने टिकटों से क्या लेना है ?
तो टी टी बोला - बाकी लोगो ने टिकट ली है । वो क्या चोर हैं ।


तब वो साला पागल बाबा बोला - हे हे हे लल्ला ! ये सब भी हमारे हैं । तुम भी हमारे हो । ये रेल भी हमारी है । ये जहान जो दिख रहा है । ये भी हमारा है । जो नही दिख रहा । वो भी हमारा है । सब में मैं हूँ । और सब हम में है । सिर्फ़ मैं ही मैं हूँ । और कुछ है ही नहीं । बस सब हमारा है ।
टी टी को गुस्सा आया । और पकड कर उस साले म..च.. को लगा बाहर ले जाने ।
तब वो साला पागल बाबा बोला - लल्ला कहाँ ले जा रहे हो ?
टी टी बोला - पुलिस स्टेशन ।
तब वो साला नकली पागल बाबा घबरा कर बोला - क्यूँ क्यूँ ?
तब टी टी मुस्करा कर बोला - वो कौन सा हमारे बाप का है । वो भी तो तुम्हारा है ।
खैर अपनी म....ने दो । उस नकली पागल बाबा को । अब जरा उस बाबा की बात करें । जिसके बारे में बात करनी थी । तो कल रात टी वी पर 1 बाबा आ रहा था । वो कह रहा था कि - अगर कोई भी दरिद्र है । तो दरिद्र होने में उस बेचारे दरिद्र का कोई दोष नहीं । सब दोष समाज के उच्च वर्ग, सरकार और कानून का है ।
मैंने सोचा कि राजीव बेटे की थ्योरी तो जरा हट के है ।
खैर.. फ़िर उस बाबा का 1 असिस्टेन्ट बोला - हमारे बाबा जी परम तपस्वी और परम योगी हैं ।
राजीव राजा ! ये दो शब्द मैं अपनी तरफ़ से नही लिख रहा । ये कहे थे टी वी पर ।
फ़िर उस आदमी ने कहा कि - शराब और सिगरेट पीने वाले लोगों को दण्ड मिलना चाहिये । उन्हें बेचने वालों को फ़ाँसी पर चढाना चाहिये । हमने आज तक किसी भी शराब या सिगरेट बेचने वाले या इन चीजों का सेवन करने वाले व्यक्तियों से चन्दा या दान कभी नहीं लिया ।
लेकिन बेचारे बाबा को अग्यान शब्द बोलना नहीं आता था । वो अग्यान को अज्यान बोलता था ।
फ़िर उस बाबा का असिस्टेन्ट बोला - ये बाबा जागे हुये हैं ।

मैंने मन में सोचा । हमारा राजीव राजा कौन सा सोया हुआ है ?
फ़िर उसका असिस्टेन्ट बोला - इन बाबा को भगवान ने स्पेशली इस दुनिया में भेजा है । फ़िर वो बाबा खुद ही बोला - मैं राम और कृष्ण का वंशज हूँ ।
मैंने मन में कहा - साले कम से कम इन इतने उत्तम नामों के पीछे " जी " तो लगा दे । सीधा ही नाम लिये जा रहा है ।
मैंने उस बाबा का नाम जान बूझकर नहीं लिखा । क्यूँ कि लिखने की जरुरत नहीं । तुम उसे मेरे से अधिक जानते हो । समझ गये न । वो वाला । हाँ है न । हाँ वही वाला ।
फ़िर उस बाबा ने कहा कि - आने वाला समय सुनहरी आने वाला है ।
मैंने सोचा । मेरा भतीजा राजीव कुमार चतुर्वेदी तो बोलता है कि समय अब आगे ठीक नहीं आने वाला । इसलिये भक्ति करो ।
अब राजीव राजा ! जरा ये बता दो कि तुम्हारी वो वाली बात सही है न कि दुख और सुख कोई दूसरा देने वाला नहीं । सब अपने ही किये कर्मों का नतीजा होते हैं । साथ में ये भी बता दो कि आने वाला समय ठीक है या नहीं ? इसलिये भक्ति की ही इस समय अधिक आवश्यकता है न । लगे हाथ ये भी समझा दो कि परम तपस्वी और परम योगी के क्या मायने हैं ? इस जैसी उपाधि की असल पहुँच कहाँ तक होती है ?


साले अलग अलग किस्म के बाबे कनफ़्यूज कर देते हैं । अपने जो बाबा रामदेव जी हैं । वो अक्सर कहते हैं कि - सरकार बलात्कारी भी है । अब अगर कोई एम. पी आकर कहे - बाबा ! बता मैंने किसका बलात्कार किया है ? कब किया है ? और कैसे किया है ?
ये बार बार बलात्कार बोलकर क्या साबित करना चाहते हो ? तब पता नहीं । बाबा रामदेव जी क्या जवाब दें ।
खैर.. तुम्हारी नयी लिखी प्रेत कहानी मैंने पढी थी । उतनी हारर नहीं थी । लेकिन मुझे मजा आया । उस कहानी की नायिका का इलाज तो तुम जैसा ही कर सकता है । लेकिन मुझे अगली बार मालती से जरुर मिलवाना । मुझे जरा उससे कुछ काम है ।
अब मैं और क्या कहूँ । राजीव राजा ! तुम तो अंतरयामी हो ।
1 बार 1 छोटा सा लडका ( बिलकुल तेरे जैसा । जैसे तुम अपने बचपन में थे ) गाँव से पहली बार किसी छोटे शहर में आया । उस बेचारे ने न तो कभी कोई साधु टायप व्यक्ति देखा था । और न ही कभी किसी सरदार आदमी को देखा था । 1 दिन वो लडका अपने नये निवास स्थान पर दोपहर को छ्त पर पतंग उडा रहा था । सामने थोडा दूर छ्त पर कोई व्यक्ति अपने बाबा रामदेव जी ( जो रामलीला मैदान से भाग लिये थे ) जैसा उस लडके की तरफ़ पीठ करके अपने लम्बे बाल सुखा रहा था । अचानक उस आदमी ने वहाँ से उठकर जाते हुये उस लडके की तरफ़ अपना 


चेहरा घुमा लिया । उसे देख लडका भय से जोर जोर से रोने लगा । और चिल्लाने लगा - औरत के दाङी ....औरत के दाङी...।
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अब राजीव राजा ! जरा ये बता दो कि तुम्हारी वो वाली बात सही है न कि दुख और सुख कोई दूसरा देने वाला नहीं । सब अपने ही किये कर्मों का नतीजा होते हैं । 
- यही महा प्रश्न लक्ष्मण जी और उनके भाई श्री राम के बीच सीताहरण के बाद और बालि वध के बाद सुग्रीव द्वारा राज्य में पहुँच जाने के बाद लक्ष्मण की निराशा और क्षोभ के बाद उठा था । जिसमें लक्ष्मण अब तक की कष्टदायी स्थितियों के लिये कभी कैकयी कभी दशरथ आदि को दोषी ठहरा रहे थे ।
तब भगवान राम ने कहा था - कोऊ न काहू सुख दुख कर दाता । निज कर कर्म भोग सब भ्राता ।
वास्तव में अगर द्वैत से हटकर थोङी देर के लिये बात करें । तो कहीं कोई भगवान etc नहीं बैठा । जो आपको सुख या दुख दे रहा हो । या आपका भाग्य लिख रहा हो । ये सब ऊर्जा ( आत्मा - के प्रभाव से )  के द्वारा पदार्थ matter में घटना घट रही हैं । बहुत ही संक्षिप्त में जिस तरह किसी के इस जीवन से जुङी तमाम बातें तमाम दृश्य AV फ़ाइल्स के रूप में उसकी अंतकरण रूपी मेमोरी में रिकार्ड हैं । उसी तरह तमाम जन्मों का AV Data कारण शरीर रूपी स्टोर रूम में जमा है । जो आपको चेतना की लाइट से प्रतिबिम्बित चित्र दिखाता है ।


अब सुख दुख क्या है ? जो आपको अच्छा लगता है । उसे सुख कह दिया गया है । बुरा प्रतीत होने को दुख नाम दिया गया है । इसको समझना बहुत आसान है । आपने डण्ड पहलवानी बहुत पहले से की । सैर आदि करते हैं । तो उसका फ़ल क्या सिर्फ़ उसी दिन के लिये थोङे ही था । अपनी उस कसरत का फ़ल आपको तब तक मिलेगा । जब तक उसके द्वारा हुआ आंतरिक रासायनिक बदलाव आपके शरीर में रहेगा । इसमें निरंतर योगदान करते रहने से उस क्रियाफ़ल के अनुसार आगे भी लाभ लेंगे । इसके विपरीत विभिन्न व्यसनों से या अस्वास्थय कारी रहन सहन से जिसने शरीर को नुकसान पहुँचाया है । वह स्वयँ को कमजोर हताश ही अनुभव करेगा । कोई इंसान मेहनत से जितना कमा लेता है । उसी अनुपात में सुख उठाता है ।

अब उलझन बस इसलिये हो जाती है कि आपको अपना पिछले जन्मों का किया माया के प्रभाव से याद नहीं रहता । जबकि जीवनधारा निरन्तर प्रवाहित है । उसमें कहीं अवरोध नहीं हैं । बस आत्मा के प्रभाव से अंतकरण में feed हो गया तरह तरह का matter ही समय आने पर अलग अलग रंग दिखाता है । जिसको आप सुख दुख कहते हो । विभिन्न जन्मों की यह यात्रा - एक माँ के पेट में गर्भ धारण से लेकर बच्चे के जन्म तक की परिस्थितियों । और एक बच्चे के जन्म जवानी बुढापा और मृत्यु तक हुये बहुत से बदलाव को देखने पर स्पष्ट समझ में आता है । जैसा इस 1 जन्म का माडल है । वैसा ही आपके लाखों या अब तक हुये जन्मों का खेल है । और ये निरन्तर है । मृत्यु एक आवश्यक परिवर्तन क्रिया ही है । 
साथ में ये भी बता दो कि आने वाला समय ठीक है या नहीं ? इसलिये भक्ति की ही इस समय अधिक आवश्यकता है न । 

- इसका बहुत कुछ उत्तर ऊपर वाले उत्तर में आ जाता है । जिस प्रकार एक शिशु । बालक । किशोर । युवा । अधेङ । वृद्ध । जर्जर और फ़िर मृत्यु । और फ़िर नया जन्म । फ़िर वही चक्र । यह जीवन यात्रा एक घूमते चक्र पर कृमशः हो रही है । जिस प्रकार आपने बच्चों के चाबी वाले खिलौने में कई गरारियाँ एक दूसरे से दाँतों द्वारा जुङी हुयी घूमते हुये देखी होंगी । इसी प्रकार आपका जीवन चक्र यहाँ के कालचक्र ( सूर्य ) से घूमता है । सूर्य का काल चक्र समय के कालचक्र से घूमता है । समय का कालचक्र महाकाल के कालचक्र से घूमता है । अब इसमें एक विलक्षण सिस्टम से चाबी खत्म होते ही खिलौना आटोमेटिक रुक ( मृत्यु ) जाता है । अब जैसे बच्चा जन्म के समय अच्छा लुभावना मनोहारी होता है । फ़िर ज्यों ज्यों करके वह उमृ को प्राप्त होता हुआ विकारी ( मतलव उसमें बच्चे जैसी बात नहीं रहती ) होता जाता है । और जर्जर बुङापा आते आते घृणित सा हो जाता है । फ़िर मृत्यु के बाद तो बदबू ही देने लगता है ।
वैसे ही एक इंसान के जीवन की तरह युग भी जन्म ( शुरू की अवस्था ) शिशु ( सतयुग ) किशोर ( त्रेता ) जवान ( द्वापर ) और बुङापा ( कलियुग ) खण्ड प्रलय ( मृत्यु ) और फ़िर से जन्म । फ़िर से सतयुग ।
अब वैसे तो कलियुग के 22000 वर्ष और शेष हैं । और अभी सिर्फ़ 5000 ही हुये हैं । लेकिन इस सबके लिये नियुक्त प्रमुख शक्ति प्रकृति और उसके विभिन्न अंग किसी शासन प्रशासन की तरह कार्य करते हैं । अतः आपको हर तरफ़ जो असंतुलन दिखाई दे रहा है । उसे संतुलन करने के लिये ये शासन प्रशासन जरूरी कदम उठायेगा । क्योंकि सर्वशक्तिमान आत्मा एक तिनका भर रियायत नहीं करता । अतः पूरी सरकार ही गिर जायेगी । इसलिये बैलेंस के लिये खण्ड प्रलय होगी ही ।

क्यों और कैसे ? ये डिटेल में लिख ही चुका है ।

रही बात विभिन्न बाबाओं द्वारा धरती पर स्वर्ग लाने की । एकदम निराधार है । पब्लिक की याददाश्त बहुत कमजोर है । वरना गाय थ्री परिवार ने कभी दीवालें रंग दी थी । हम बदलेंगे युग बदलेगा । धरती पर यग्य हवन द्वारा स्वर्ग आयेगा । न हम ( लोग ) बदले । न युग बदला । हाँ वे मालामाल होकर इसी प्रथ्वी पर स्वर्ग वासी हो गये । भृम की मारी बहनों ने भी ऐसी ही घोषणा की । बाबा जी ये करेंगे । वो करेंगे । जीवन बगिया में फ़ूल खिलेंगे । उनके आश्रमों में फ़ूल खिल गये । लोगों के गमले ही सूख गये । फ़ाँसाराम बापू आदि ने उनके पुत्र ने भी जाने कितनों का जीते जी ही उद्धार कर दिया । अभी ताजा ताजा दामदेव बाबा ने गाँव गाँव घर घर तक योग पहुँचाने की बात कही । योग तो शायद 10% भी नहीं पहुँचा । उनका धन योग 100% अवश्य हो गया ।
गौर करें । कभी भी कोई कथा भागवत वक्ता । कोई भी आश्रम संचालक । कोई भी साधु कबीर तुलसी आदि आत्मग्यानी सन्तों की वाणी के बिना अभी भी बात नहीं कह पाता । फ़िर इन महान सन्तों ने आज से 500 साल पहले भी ऐसी बात नहीं कही । ओशो के ये पास भी नहीं फ़टक पायेंगे ।
याद करें । ओशो कहते थे - मैं तुम्हें ( दूसरे बाबाओं ) सुख देने नहीं । तुम्हारा सुख छीनने आया हूँ । कबीर कहते थे - अभी भी चेत जा जीव ! तू प्रति क्षण काल के गाल में जा रहा है ।
हाँ ये ठीक है । अच्छा समय 2020 के बाद से ही शुरू हो जायेगा । पर तब ये कहने वाले बाबा भी नहीं होंगे । सुनने वाले भक्त भी नहीं होंगे । फ़िर क्या फ़ायदा ? खण्ड प्रलय में ऊँची भक्ति वाले या हँस जीव ही आगे के निर्माण हेतु बचते हैं ।
लगे हाथ ये भी समझा दो कि परम तपस्वी और परम योगी के क्या मायने हैं ? इस जैसी उपाधि की असल पहुँच कहाँ तक होती है ? 
- ये परम आदि शब्द लोगों ने मनमर्जी से इधर उधर जोङ दिये हैं । वास्तव में एक निर्धन और रोगी कमजोर इंसान से लेकर हाईएस्ट पावरफ़ुल और अत्यन्त धनी इंसान के बीच में इंसान के जो विभिन्न करोंङों लेवल करोंङों स्थितियाँ बनती हैं । वैसी ही भक्ति में करोंङों लेवल करोंङों स्थितियाँ बनती हैं । जो जितना कमायेगा । उतना अच्छा खायेगा । जो सिस्टम यहाँ का है । ठीक वही सिस्टम वहाँ का है । ये स्कूल है । वो नियुक्ति और आफ़िस है । बस गौर से समझने की जरूरत है ।
प्रस्तुतकर्ता - श्री विनोद त्रिपाठी । प्रोफ़ेसर । लाला लाजपत राय नगर । भोपाल । मध्य प्रदेश । ई मेल से ।
- त्रिपाठी जी ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।

23 अगस्त 2011

असल जिन्दगी की डायन

उन्हीं दिनों की बात है । जिन दिनों डायन लिख रहा था । वैसे डायन और अंगिया वेताल तो मानों आपने पिस्तोल की नोक पर लिखवायी हो । एक अदृश्य दवाव सा बन गया । खैर.जैसे भी और जैसी भी लिख ही गयी । अब कुछ दिन राहत महसूस कर सकता हूँ ।
दरअसल अभी बीच में बहुत कुछ उलझनें सी रही । 15 aug 2011 को 11.30 am पर हमारे परिवार में ही एक लेडी का देहान्त हो गया । अभी उससे निबटे भी नहीं थे कि 20 aug 2011 को  2.15 pm पर हमारी सगी चाची का देहान्त हो गया । मेरे जिन चाचा जी ने - एक भक्त की भगवान से बातचीत .. परमात्मा ब्लाग पर लेख लिखा था । वो उनकी पत्नी थीं ।
तब मैंने 5 को दर्शाने वाले शब्द " पंचकें " को लोगों से बातचीत में सुना था । इसका अर्थ यह होता है कि किसी व्यक्ति को अपने परिचय के लोगों में से किसी के मरने की खबर इन दिनों मिलती हैं । तो उसे निश्चय ही 5 अन्य परिचितों की मृत्यु का समाचार भी कुछ ही दिनों में पंचकें रहने तक मिल जायेगा । जो भी हो । मैंने पंचकों के बारे में सिर्फ़ सुना है ।
खैर..महत्वपूर्ण यह था । जब डायन लिख रहा था । मैंने असल जिन्दगी में डायन को जाना । जिस प्रकार एक ही चीज के अलग अलग जगहों की बोली के अनुसार पचासों नाम हो जाते हैं । उसी प्रकार मेरे वर्तमान निवास के पास एक प्रेत वायु का अजीव सा स्थानीय नाम मैंने सुना था । जो इस वक्त मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा । ये बात एक बूङी औरत और 50 की आयु के लगभग जीवन भर निठल्ले घूमते रहे आदमी ने बङी दिलचस्पी और बङे विस्तार से बतायी । जो बहुत लम्बे समय से यहाँ के निवासी थे ।

उनके अनुसार बहुत पहले ये प्रेत एक बहुत बङी नीलगाय के समान रात को अचानक बस्ती में आता था । और छलाबे की तरह भाग भी जाता था । उन दोनों के अनुसार इसकी एक छलांग 100 फ़ुट की होती थी । उस आदमी ने बताया कि इसी गाँव के एक आदमी ने जो जाति से नाई था । दबंगई के चलते कुँये में कूदकर आत्महत्या कर ली थी । और प्रेत बन गया था । मरने से पहले वह बीङी पीने का शौकीन था । इसलिये रात को उस कुँये के पास से गुजरने वालों से अक्सर बीङी माँगता था । और उस प्रेत ने स्वयँ उस आदमी से कई बार बीङी माँगी थी । लेकिन ये काफ़ी पुरानी बात है । जब इस स्थान पर गाँव के गिने चुने घर थे । और चारों तरफ़ खेत ही खेत थे ।
ये सूखा और अँधा कुँआ मेरे मेन गेट से ठीक 300 फ़ुट दूरी पर था । जिसे अब कूङा आदि डालकर बन्द कर दिया गया है । सच्चाई कुछ भी हो । मैंने ऐसी कोई बात अभी तक महसूस नहीं की ।
इसी जगह का ताजा किस्सा एक प्रसव के दौरान लगभग 8 साल पहले पति से उपेक्षित होकर मरी विवाहिता का था । जो गाँव वालों के अनुसार कोई चुङैल आदि बन गयी थी । क्योंकि " नगर कालका " शब्द से वे दूर दूर तक परिचित नहीं थे । इसका प्रत्यक्ष प्रभाव तो वाकई कई लोगों ने स्पष्ट देखा । जब एक एक कर कई रहस्यमय मौतें हुयी । और लोगों में भय की लहर फ़ैल गयी । लेकिन मेरे यहाँ स्थायी रूप से आने के बाद मुझे नगर कालका के होने का भी कोई अहसास नहीं हुआ । संभवत उसने स्थान त्याग दिया था ।
खैर..अब मुख्य बात पर आते हैं । उस दिन मैं डायन लिख रहा था । जब गाँव का ही एक 60 आयु का आदमी मेरे पास आया । तब माहौल से प्रभावित मैंने जिग्यासावश उससे उसी कुँये के प्रेत के बारे में बात की । वह भी इस गाँव का जन्म से निवासी था ।
तब वह बोला - आपको ये सब किसने बताया ?

फ़िर मेरे द्वारा विवरण बताने पर वह बोला - वो निठल्ला आदमी तो कुछ भी कहे । उसकी बात और गधे की लात एक समान है । यानी उसके पास ऐसी फ़ालतू बातें ही अधिक हैं । और यही उसका काम है । लेकिन मैं आपको उस बूङी औरत के बारे में सच बताता हूँ । जो काकी के नाम से प्रसिद्ध है । वास्तव में जिस प्रेत के बारे में उन दोनों ने बताया । वैसा प्रेत मेरे या अन्य गाँव वालों के अनुभव में एक बार भी नहीं आया । हाँ वह औरत जिन्दा डायन है । ये सब गाँव वाले दबी जवान से कहते थे ।
लेकिन महाराज ! जानत सब सबकी कहे को किन की ( यानी समाज में सभी एक दूसरे की न कहने योग्य बात जानते हैं । लेकिन खुलकर कोई किसी के बारे में नहीं कहता ) ऐसा ही इस समाज का दस्तूर हमेशा से रहा है ।
वो बूङी औरत आज से लगभग 49 साल पहले जब इस गाँव में व्याह कर आयी थी । तब पेट से थी । वो भी कम समय की नहीं । विवाह के सवा महीने बाद ही उसने बच्चे को अकेले ही जन्म दिया । उसने घर का दरबाजा बन्द कर लिया । और अकेले ही नाजायज बच्चे को जन्म देती रही । इसके बाद नाल वगैरह खुद ही हँसिया से काटकर उसने नवजात बच्चे को भुस में दबा दिया
इत्तफ़ाकन इसी समय एक पङोसन उसको किसी काम से बारबार दरबाजा खोलने हेतु आवाज देती रही । जिसको वह - मेरे पेट में दर्द हो रहा है । कहकर बारबार मना करती रही । और उसने दरवाजा नहीं खोला । फ़िर उसने रक्त आदि के कपङे वगैरह सब ठीक करके तब दरवाजा खोला । और उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे की तरह उल्टे उस औरत पर ही चङ बैठी । मतलब डाँट दिया ।
लेकिन वह दूसरी औरत भी तेज थी । और काकी तब बहू थी । इसलिये उसने एक जासूस की तरह घर को चेक किया । और भुस में दबा बच्चा बरामद कर लिया । अब आप सोचिये । वह किसी झूठे मूठे प्रेत की बात करती है । जबकि ऐसा काम एक जिन्दा डायन ही कर सकती है

मैंने उसके समर्थन में सिर हिलाया । पर अभी भी मेरे सामने कुछ प्रश्न थे । जिनके उत्तर में उसने कहा ।
- हाँ विवाह के समय 9 मायनस सवा महीना पेट काफ़ी उभरा होता है । पर महाराज ! उस समय लङकियों के छोटी उमर में विवाह हो जाते थे । और दूसरे नयी बहुओं को शाल आदि डालकर बङा सा घूँघट निकाल कर रहना पङता था । इस तरह लम्बे चौङे तम्बू जैसे पहनावे के चलन से वह चतुराई से अपना बङा पेट छुपाये रही ।
- उसके घर में सास आदि बङी उमृ की औरतें नहीं थी । और घर की दूसरी लङकियाँ छोटी थी । आदमी बहुत सीधा था । और अन्य पुरुष घर के अन्दर उन हिस्सों में नहीं जाते थे । जहाँ बहुयें बेटियाँ होती थी । इस तरह उसे कोई खास दिक्कत नहीं आयी ।
- सवा महीने बाद बच्चे को जन्म देकर वह खाली हो गयी थी । इसलिये किसी चतुराई से बहाना बनाते हुये इस दौरान या तो उसने पति को सम्भोग करने ही नहीं दिया । और यदि उसने किया भी होगा । तो पहले रात के अँधेरे में पशु व्यवहारित ( यानी जिस तरह आज पति पत्नी विभिन्न क्रीङायें करते हुये आनन्द दायक सम्भोग करते हैं । वैसा न होकर सिर्फ़ जननांगों के व्यवहार की सीमित सम्भोग क्रिया ) सम्भोग होता था । जिसमें वह चतुराई से अपने को बचा गयी होगी । अर्थात पहले अधिकतर स्त्रियाँ पूर्ण रूप से इस समय वस्त्र विहीन नहीं होती थी । और सौ की एक बात मैं कह ही चुका । उसका आदमी बेहद सीधा और वह बहुत चालाक थी ।
- जब उसके बच्चे की पोल खुली होगी । तब ये कोई बङी बात नहीं है । आज भी समाज में बहुत से ऐसे प्रकरण होते रहते हैं । जिनको बदनामी के डर से दबा दिया जाता है ।
कहने का मतलब जब इस अजीव सी घटना पर मैंने अनेक पहलुओं से विचार किया । तो मुझे वह पूरी बात सही लगी । मैंने उस औरत को जो अभी 65 के करीव है । कई बार देखा है । बात की है । मुझे हमेशा ही उसमे एक खासियत सी लगी । वो ये कि उसके पूरे चेहरे पर तो बूङों जैसी झुर्रियाँ है । उसका गहरी लाइनों से भरा चेहरा उसके बूङे होने को साफ़ बताता है । पर उसका वाकी शरीर 40 आयु का लगता है । इस औरत के नाजायज वाले बच्चे के अलावा 10 अन्य बच्चे हुये । जिनमें 1 को छोङकर वाकी सभी लङकियाँ ही थी । वो बीङी भी पीती है । 

पहले मैं सोचता था कि किसानी के कार्य की वजह से वह इस तरह की होगी । जो भी हो । उसके पुरुषों से भी बङकर दिलेरी के किस्से सभी जानते हैं । जिनमें रात के दो दो बजे यमुना पार के खेतों में से काम से वापस आना भी शामिल है । मैं उसको डायन सिद्ध नहीं कर रहा । पर वह तमाम आम औरतों से बहुत हटकर थी ।
यह उस दिन की बात थी । इसके तीसरे ही दिन मेरे एक मित्र का फ़ोन आया । जिसमें उसने अन्य हालचाल के साथ मेरे पुराने शहर की एक बेहद चर्चित घटना का जिक्र किया था । जिसमें एक विवाहित लङके ने सुसाइड कर लिया था । इसका पूरा पिछला घटनाकृम और इसके सभी पात्र मेरे लिये एकदम परिचित थे ।
अतः मेरे मुँह से तुरन्त ही निकला - डायन ! और इसमें मुझे कोई शक भी नहीं था । इसकी बहुत सी बातें मैं पहले से ही जानता था । ऊपर वाली बूङी औरत डायन ( प्रभावित ) थी या नहीं ? इसमें गुँजायश हो सकती है । पर ये निसंदेह डायन थी । और इसकी एक एक बात मेरे सामने हुयी थी ।
पहले वह एक बेहद सुखी परिवार था । उसमें सिर्फ़ एक लङका एक लङकी और मियाँ बीबी थे । पति सरकारी नौकरी से ताजा रिटायर हुआ था । उन्होंने कुछ ही समय पहले बङिया मकान बनवाया था । पति ने रिटायर होने के बाद एक अच्छी दुकान भी खोल ली थी । इसके कुछ ही दिनों बाद उन्होंने अपनी लङकी की एक अच्छे घर वर से शादी कर दी थी । और दोनों पति पत्नी अब एक सुन्दर सजीली अच्छी पुत्रवधू का अरमान लिये बाकी की जिन्दगी सुख चैन से गुजारने के ख्वाहिश मन्द थे । पैसा और शिक्षा सभी सुख देने की ताकत रखता है । ये उनकी प्रबल मान्यता थी । और ये दोनों उस घर में भरपूर थे ।
फ़िर उनका ये बहु प्रतीक्षित अरमान भी पूरा हुआ । और उनके घर में मोहिनी ( काल्पनिक नाम ) के रूप में सुन्दर पुत्रवधू आयी । लगभग एक महीने से भी कम समय में ये लङकी पूरी कालोनी में चर्चित हो गयी । और छोटे से लेकर बूङों तक ने मजे ले लेकर उसे देखा । नयन सुख से चैन पाने वाले लोगों ने उसका नाम चलता फ़िरता ftv और इसी तरह के अन्य नाम भी रखे । इस इकलौती पुत्रवधू को अति आधुनिक समझते हुये उसके घर के सभी फ़ूले न समाते थे । और बहू के आधुनिक विचार होने पर गर्वित होते थे ।

ठीक इसी समय मैंने भी इसे पहली बार देखा था । और जाने क्यों मेरे मुँह से खुद ही निकला था - डायन !
मुझे ये हर तरह से ही अजीव लगती थी । हिन्दू होने पर भी ये विवाह के बाद भी कुर्ता शलवार पहनती थी । और शुरू शुरू में नाममात्र का दुपट्टा ( ओङनी ) कुछ इस तरह डालती थी कि दाँये वक्ष से लटकता हुआ एक सिरा इसके कँधे पर होकर गले में घूमता हुआ फ़िर पीठ पर लटकता था । ये विवाह के सिर्फ़ बीस दिन बाद की बात है । जबकि हिन्दुओं में 6-6 महीनों तक नयी बहू को बाहरी लोग देख भी नही पाते । इसके कुछ ही दिन बाद दुपट्टा जहाँ होना चाहिये । वहाँ न होकर सिर्फ़ गले से लिपटा हुआ दोनों छोरों से पीछे पीठ पर लटकता था ।  इसके कुछ ही दिन बाद इसने दुपट्टा डालना ही छोङ दिया ।
यहाँ तक होता । फ़िर भी गनीमत थी । इसकी सभी पोशाकों के गले इतने गहरे होते थे कि उस वजह से इसका एक नाम " खुली किताब " ही पङ गया । लाल काले नीले पीले डार्क कलर वाला इसका पहनावा अजीव से फ़ूहङ टायप का था । लेकिन इस पहनाबे की एक खासियत जो मैंने नोट की । ये हजारों की भीङ में अलग ही दिखती थी । इसके केश संवारने के तरीके । जूङा बाँधने का स्टायल । काजल । बिन्दी । लिपस्टिक । बङाये गये लम्बे लम्बे नाखून आदि इसे एक अजीव सा फ़ूहङ लुक प्रदान करते थे ।
ये और बात थी कि ये स्वयँ खुद को और इसके घर वाले इसे अल्ट्रा माडर्न समझते थे ।
अनावश्यक से लगने वाले इस आवश्यक विवरण के बाद इसके डायनी खेल की बात करते हैं । सबसे पहले इसने कुछ ही साल पहले विवाहित अपनी इकलौती ननद के कुछ ही बार मायके आने पर रो रोकर कुछ इस तरह की कलेश मचाई कि उसने तमाम लोगों के सामने कसम खाई कि इसके बाद वह सिर्फ़ अपने माँ बाप की मृत्यु पर ही इस घर में थोङे समय के लिये कदम रखेगी । और जीवन में कभी नहीं आयेगी । इस तरह इसने एक सदस्य का पत्ता हमेशा के लिये साफ़ कर दिया ।

इसके बाद इसने अपनी सास पर निशाना साधा । बहू के हाथों की चाय और गर्म गर्म रोटी खाने की इच्छा वाली इसकी सास का ये अरमान कभी पूरा नहीं हुआ । वह सोचती थी कि बहू घर में रहेगी । काम काज आदि करेगी । और वह सतसंग या सोसायटी में घूम फ़िर कर शेष जीवन का आनन्द लेंगी ।
लेकिन इसका ठीक उल्टा हुआ । सास पर अतिरिक्त काम और बढ गया । क्योंकि काम के वक्त मोहिनी के अक्सर सर में दर्द ( बहानेवाजी ) होता रहता था । लेकिन खाते समय । शाम को घूमते समय । और रात को पति के साथ वह आश्चर्यजनक रूप से ठीक हो जाती थी । सुनने में ये भी आया कि इसका पति उल्टे इसके पैर दवाता था ( बेबकूफ़ इंसान एक बार गला ही दबा देता )
खैर..साहब इसने एक पुत्र को जन्म दिया । और सिर्फ़ जन्म ही दिया । उस नवजात शिशु के सभी कार्य अतिरिक्त रूप से सासु माँ को सौंप दिये । इसके भी अलावा गली मोहल्लों से इसके page3 पर्सन जैसी खबरें आने लगीं । और सास ससुर हाई बी पी घबराहट जैसी बीमारियों के चंगुल में आ गये ।
अब ज्यादा क्या लिखूँ । इसके स्वभाव आदतों से आप खुद ही अन्दाजा लगा लें । इसके शुभ आगमन के करीब 3 साल बाद ही इसकी सासु दुनियाँ को अलविदा कह गयीं । क्योंकि उन्हें जीने से अधिक मरने में सुख नजर आया । इस तरह इसने सास रूपी काँटे को हमेशा के लिये बङी आसानी से खत्म कर दिया । परिचितों में इसकी बेहद थू थू हुयी । पर इसके चेहरे पर शिकन तक नहीं आयी ।

इसके ससुर अपनी पत्नी के मरने पर फ़ूट फ़ूटकर रोये । और बहुत दिन तक गलियों में भी रोते घूमते रहे । और इसके बाद एक दिन चुपचाप घर को लाक कर कहीं गायब हो गये । करीब महीने भर ऐसा रहा । मगर लङका तो उनका अपना था । उसका मोह फ़िर उन्हें खीच लाया । और वे घर आ गये । पीछे इन लोगों ने घर के ताले तोङ दिये । और आराम से रहते रहे ।
बाप बेटे दोनों को इस औरत से नफ़रत थी । पर वे मजबूर थे । और कुछ कर नहीं सकते थे । ये आउट आफ़ कंट्रोल थी । वे दोनों दुकान पर जाते थे । और ये आजादी से जो जी में आये करती थी । ये ऐसा चरित्र थी कि उस कालोनी के ऐसी औरतों से फ़ायदा उठाने की प्रवृति वाले लोग और लङके भी इससे नफ़रत करते थे । और इसके सामने से निकलते ही घृणा से थूककर अपनी नफ़रत का इजहार करते थे ।
लेकिन संसार में सब तरह के लोग हैं । ऐसे ही कुछ लोगों से इसके अनैतिक सम्बन्ध बन ही गये ।
बस इसके बाद मैंने वह शहर छोङ दिया था । और लगभग 3 साल बाद मेरा मित्र फ़ोन पर बता रहा था कि उसने ( उसके पति ने ) आत्महत्या कर ली । और तब वह पूरी रील ही मेरी आँखों के सामने घूम गयी । - क्यों कर ली ? मैंने पूछा ।
उसका पति एक दिन उसे तलाश करता हुआ जब किसी घर में गया । तो वह आपत्तिजनक अवस्था में मिली । और ये कोई खास बात नहीं थी । ये तो वह पहले भी जानता था । देख भी चुका था ।
खास बात ये थी । दोनों ने उसे बहुत मारा । और कहा - तुझे इतनी अक्ल नहीं । गलत समय पर डिस्टर्ब करने आ गया ।
इस तरह उसने पति को भी साफ़ कर दिया । हमारे U.P में ऐसी औरतों के लिये कहा जाता है - डायन एक एक करके सबको खा गयी ।