26 अप्रैल 2011

बुद्धओं ने बना लिये बहुत धर्म

1 गांव में 1 शराबी लड़खड़ाता लड़खड़ाता पादरी के पास पहुंचा । और उसने कहा - 1 बात मुझे पूछनी है । आदमी को गठिया कैसे हो जाता है ? पादरी को मौका मिला । इस तरह के लोग तो इसी मौके की तलाश में रहते हैं । पादरी को मौका मिला । उसने कहा - मैंने तुमसे हजार बार कहा कि शराब पीना बंद करो । नहीं तो गठिया हो जाएगा । यह अच्छा अवसर था । इस अवसर पर शिक्षा दे देनी चाहिए । ऐसे ही तो साधु संत शिक्षा दे देते हैं । कितनी बार मैंने कहा कि गठिया हो जाएगा । अगर शराब पीनी बंद न की । उसने कहा - मैं अपने बाबत नहीं कुछ पूछ रहा हूं । मैंने अखबार में पढ़ा है कि वैटिकन में पोप को गठिया हो गया है । तो मैं तो इसलिए पूछ रहा हूं कि गठिया कैसे हो गया ? मुझको हो जाए ठीक । मैं तो शराब पीता हूं जाहिर बात है । मगर पोप को कैसे गठिया हो गया ?
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मैं तुमसे कहता हूं कि ज्यादा भोजन मत करो । मैं कहता हूं । 48 बार चबाओ । और होश पूर्वक धीमे धीमे भोजन करो । अपने आप भोजन की मात्रा एक तिहाई हो जाएगी । उतनी ही हो जाएगी जितनी जरूरी है । और ज्यादा तृप्त करेगी । ज्यादा परितृप्त करेगी । क्योंकि उसका रस फैलेगा । ठीक पचेगा । ऐसी ही किसी भी प्रक्रिया को धीमा करो । अगर वह सार्थक प्रक्रिया है । तो टूटेगी नहीं । अगर व्यर्थ प्रक्रिया है । अपने आप टूट जाएगी । क्योंकि मूढ़ता स्पष्ट हो जाएगी । पाप को छोड़ना पड़ता है । मूढ़ता को छोडना नहीं पड़ता । जानना ही पड़ता है । मूढ़ता छूट जाती है ।
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दुनियां में सैनिकों की जरूरत नहीं है अब । बहुत हो चुके सैनिक । और बहुत हम कष्ट भोग चुके सैनिकों के कारण । अब यहां स्वतंत्र चेता संन्यासियों की जरूरत है । जो अपना दायित्व समझेंगे । और अपने ढंग से जीएंगे । और यह मेरी मान्यता है कि अगर कोई भी व्यक्ति अपने ढंग से जी रहा है । और किसी दूसरे को नुकसान नहीं पहुंचा रहा है । चोट नहीं कर रहा है । तो किसी दूसरे को हक नहीं है कि उसकी सीमा में बाधा डाले । तुम्हें क्या अड़चन है ? तुम्हारी धारणा होगी यह कि संन्यासी को नाचना नहीं चाहिए । लेकिन यह तुम्हारी धारणा है । तुम मत नाचो । कोई संन्यासी नाच रहा हो । इस कारण यह मान लेना कि वह संन्यासी नहीं है । जरा अपनी सीमा के बाहर जाना है ।
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मैं तुमसे नहीं कहता कि धूम्रपान छोड़ दो । कोई कहता है तुमसे कि धूम्रपान मत करो । क्षय रोग हो जाएगा । और अगर तुम किताब में पढ्ने जाओगे । तो वे कहते हैं कि 1 आदमी अगर 12 सिगरेट रोज पीए । तो 20 साल में जितनी सिगरेट पीए । तब कहीं उसे क्षय रोग हो सकता है । कौन फिक्र करता है 20 साल की । और 12 सिगरेट रोज और 20 साल तक । और फिर देखेंगे । और फिर यह भी पक्का नहीं है कि 20 साल में सभी को हो जाता है । क्योंकि सैकड़ों सिगरेट पीने वाले हैं । जो 12 नहीं 24 पीते हैं रोज । और जिंदगी भर से पी रहे हैं । और क्षय रोग नहीं हुआ । फिर ऐसे लोग हैं । सिगरेट तो दूर कहो । पानी भी छान छान कर पीते हैं । और क्षय रोग हो गया । और इधर शराब पीने वाले पडे हैं । जिन्हें क्षय रोग नहीं हुआ । सब तरह से सात्विकता से जीते थे । और कैंसर हो गया । और दूसरा है कि जिसने सात्विकता कभी जानी ही नहीं । जिन्होंने कसम खा ली थी कि सात्विकता से कभी न जीएंगे । जो कभी वक्त से न उठे । न सोए । न वक्त पर खाना खाया । न ढंग का खाना खाया । कुछ भी खाया । कुछ भी पीया । कहीं भी सोए । कहीं भी बैठे । कभी जागे । कोई हिसाब किताब न रखा । और अभी तक कैंसर नहीं हुआ । तो ये बातें सिर्फ डराने की हैं ।
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हम औपचारिक हैं । हम बैठते हैं पूजा का थाल सजाकर । 1 मूर्ति बनाकर । धूप दीप बालकर । संस्कृत का पाठ करते हैं । सब व्यर्थ हो जाता है । संस्कृत तुम्हारे हृदय से भी नहीं आती । उसका अर्थ भी तुम्हें मालूम नहीं है । कि मुसलमान है तो अरबी में पाठ कर रहा है । उसे कुछ पता भी नहीं कि वह क्या कह रहा है । पराई भाषा बोल रहे हो । मुर्दा भाषा बोल रहे हो । अपनी भाषा में बोलो । और हुए होंगे बड़े बड़े पंडित । और उन्होंने बड़े सुंदर प्रार्थना के पद रचे होंगे । मगर वे उधार हैं । तुम तुतलाओ सही । मगर अपनी ही भाषा में । तुम अपनी ही बात कहो । कम से कम परमात्मा के सामने तो तुम अपनी ही बात कहो । देखते हो । मां के सामने उसका बेटा तुतलाता भी है । तो खुश हो जाती है ! कम से कम तुतलाहट उसकी अपनी तो है । अपने हृदय से आती है । क्षणभंगुर कहकर संसार की निंदा मत करो । क्षण उस शाश्वत की अभिव्यक्ति है । वही बोला है । वही झलका है । वही झांका है । तुम देखो जरा आंख खोलकर चारों तरफ । कितना सौंदर्य है । कितना छंद है । और तुम पिटी पिटाई बातें लिए बैठे हो । तुम्हें कोई भी कहता रहा है कि - संसार क्षणभंगुर है । तुमने सीख लिया । तोते की तरह रट ली यह बात । संसार क्षणभंगुर है । क्षण क्या है ? क्षण शाश्वत की लहर है । शाश्वत में उठी तरंग है । तो क्षण में ही छिपा है शाश्वत । समय में ही छिपा है नित्य । भागो मत । डूबो । डुबकी मार दो क्षण में ।
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मैं कहता हूँ - नशा करना पाप नहीं मूढता है । मैं नहीं कहता कि इससे तुम्हें कुछ नुकसान है । पर इस मूर्खता पूर्ण कृत्य से कोई लाभ भी नहीं है । मैं नहीं कहता कि तुम सिर्फ नैतिकता या कथित धार्मिकता के लिये इसे छोड़ दो । बस इसे ध्यान से करो । तुम्हें इसकी मूढता स्पष्ट दिखाई देगी । और यह अपने आप छूट जायेगा ।
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बुद्धओं के धर्म - बुद्धों ने तो 1 ही बात कही है । इतनी बातें नहीं । 1 ही धर्म कहा है । इतने धर्म नहीं । मगर बुद्धओं ने बना लिये बहुत धर्म । और बुद्धओं की भीड़ है । ये जो इतने धर्म हैं । ये बुद्धों के कारण नहीं हैं । ईसाईयत के पीछे जीसस का हाथ नहीं है । और न ही बौद्ध धर्म के पीछे बुद्ध का हाथ है । यद्यपि बुद्ध में जो दीया जला था । उसके ही कारण सिलसिला शुरू हुआ । फिर भी बुद्ध उसके लिए जिम्मेवार नहीं । जिम्मेवार तो बुद्ध के पीछे आने वाले पंडितों का समूह है । बुद्ध बोले । जो कहा । वह सुना लोगों ने । पकड़ा लोगों ने । शास्त्र बने । व्याख्याएं हुईं । संप्रदाय बने ।

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