08 अप्रैल 2011

मौत 1 ही कदम उठाती है

जीवन प्रतिपल बीत रहा है । ऐसा लगता है । सदगुरु भी मिल गए । फिर भी अगला कदम अस्पष्ट क्यों है ?
- अगला कदम है ही नहीं । अगले कदम की सोच क्यों रहे हो ? अगले कदम की सोचने का अर्थ है कि यह कदम आनंद पूर्ण नहीं है । अगला चाहिए । यह क्षण काफी नहीं है । अगला चाहिए । आज पर्याप्त नहीं है । कल चाहिए । वर्तमान में कहीं पीड़ा है । भविष्य चाहिए । अगला कदम दुखी आदमी के मन की चिंतना है । सुखी आदमी के लिए यही कदम आखिरी कदम है । सुखी आदमी के लिए मार्ग ही मंजिल है । अगर तुम प्रसन्न हो मेरे साथ । बात बंद कर दो अगले कदम की । अगला कदम होता ही नहीं । अगला कदम रुग्ण चित्त की दशा से पैदा होता है । जब तुम आज सुखी नहीं हो । तब तुम कल का विचार करते हो । आज के दुख को भुलाने के लिए कल का विचार करते हो । कल की आशा बांधते हो । कल का सपना संजोते हो । कल में तल्लीन हो जाते हो । ताकि आज का दुख भूल जाए ।
ऐसे ही तो तुमने जन्म जन्म गंवाए हैं अगले कदम के पीछे । अब तुम कृपा करो । अब तुम अगले कदम की बात मत उठाओ । यह कदम काफी नहीं है ? यह क्षण पर्याप्त नहीं है ? कमी क्या है ? इस क्षण क्या है कमी ? सब पूरा है । बस इस क्षण की मौज में उतर जाने की जरूरत है । तो मैं तुमसे कहता हूं - 1 ही कदम है । और वह यही कदम है । दूसरा कोई कदम नहीं है । दूसरे की बात ही मन का जाल है ।
मन या तो सोचता है - अतीत की । जो जा चुका । या सोचता है भविष्य की । जो आया नहीं । मन कभी यहां और अभी नहीं होता । और यही अस्तित्व है । अभी और यहां । जो बीत गया । वह जा चुका । जो आया नहीं । आया नहीं । यह छोटा सा संधि का क्षण है । संध्या का काल है । जहां अतीत और वर्तमान मिलते हैं । जहां वर्तमान और भविष्य मिलते हैं । इस बीच के मिलन बिंदु पर ही अस्तित्व है । यहीं से तुम अगर डूब सको । तो डूब जाओ । द्वार खुला है परमात्मा का । लेकिन अगर तुमने भविष्य की बात की । तुम चूक गए । फिर चूक गए । तुम कहते हो - जीवन पल पल बीत रहा है । नहीं तुमने सुन लिया होगा किसी को कहते हुए । अगर सच में तुम्हें ही लग गया है कि जीवन पल पल बीत रहा है । तुम फिर पलों का उपयोग करना शुरू कर दोगे । तुम फिर इस पल को पूरा का पूरा आत्मसात कर लेना चाहोगे । तुम इस पल को इस तरह निचोड़ लेना चाहोगे । इस तरह जी लेना चाहोगे । जैसे कोई आम को चूस लेता है । फिर गुठली को फेंक देता है । फिर तुम फिक्र करते हो गुठली की । कहां गई ?
अतीत की तुम्हें याद आती है । क्योंकि तुम आम ठीक से चूस नहीं पाए । गुठली में रस लगा रह गया । अन्यथा कोई याद करता अतीत की । कल जा चुका है । अगर तुमने जी लिया था तो बात खतम हो गई । लेकिन वह तुमने जीया नहीं । जब वह चल रहा था । तब तुम आज की सोच रहे थे । और जब आज आ गया । तो वह जो कल बीत गया । जो अब हाथ में नहीं है । जिसके संबंध में अब कुछ भी नहीं किया जा सकता । अब तुम उसकी सोच रहे हो । तुम्हारी मूढ़ता की कोई सीमा है ? संसार में 2 ही चीजें अनंत हैं । 1 - परमात्मा । और 1 - मूढ़ता । उनका कोई अंत नहीं आता मालूम पड़ता । जो भूल तुमने कल की थी । वही तुम आज कर रहे हो । फिर कल जब " आज ' आ जाएगा । जब आने वाला कल आज बन जाएगा । तब तुम फिर पछताओगे । क्योंकि फिर गुठली में रस लगा रह गया । ऐसे कब तक चूकते चले जाओगे ? आज ही है । जो कुछ है । 
जीसस ने अपने शिष्यों को कहा है - 1 जंगल के मार्ग में गुजरते हुए, कि देखो लिली के फूलों को । ये कल की चिंता नहीं करते । इनका सौंदर्य कैसा अपरंपार है । सोलोमन सम्राट भी अपनी महामहिम अवस्था में इतना सुंदर न था । तुम भी कल की चिंता मत करो । कल कल की फिक्र कर लेगा । तुम लिली के फूलों की भांति इसी क्षण जी लो । और मैं तुमसे कहता हूं - जीने के लिए और कोई योग्यता नहीं चाहिए । सिर्फ इतनी ही योग्यता चाहिए कि तुम इसी क्षण में डूबने की क्षमता जुटा लो, बस । यही ध्यान है । यही पूजा है । इसी को दादू कहते हैं - सुख सुरति सहजे सहजे आव । इस क्षण में ही डूब जाना सहज स्मरण है । अगर तुम इस क्षण में ठीक से डूब जाओ । तो तुम इतने सिक्त हो जाओगे आनंद से कि परमात्मा के लिए धन्यवाद का स्वर अपने आप उठने लगेगा । वही प्रार्थना है । प्रार्थना के लिए कोई मंदिर की जरूरत थोड़ी है । उसके लिए क्षण में प्रवेश पाने की जरूरत है । उसके भीतर समय की धारा में डुबकी लगाने की जरूरत है । वहीं से उठता है अहोभाव । और तब तुम्हारे सारे जीवन के दिग दिगंत को घेर लेता है ।
नहीं तुम यह पूछो ही मत कि अगला कदम क्या है ? अगला कदम है ही नहीं । 1 ही कदम है । अभी उठाओ यही कदम । कल भी उठाओगे । यही कदम परसों भी उठाओगे । कल की राह मत देखो । आज ही दिल खोलकर उठा लो । अगर आज का कदम ठीक उठ गया । तो इसी कदम से कल का कदम भी निकलेगा । और कहां से आएगा ?
तुमसे ही तुम्हारा भविष्य निकलता है । जैसे बीज से वृक्ष निकलता है । ऐसे तुमसे तुम्हारा भविष्य निकलता है । अगर इस क्षण में तुम आनंदित हो । तो आने वाला कल भी आनंदित होगा । फिक्र छोड़ो उसकी । उसकी बात ही मत उठाओ । उसकी बात क्या करनी । उसकी बात में भी समय मत गंवाओ । क्योंकि उतना समय गंवाया । उतना ही आम अनचूसा रह जाएगा । फिर कल तुम पछताओगे । 
पीते हो जल । पूरा पी लो । भोजन करते हो । पूरा कर लो । सोते हो । दिल खोलकर सो लो । सुनते हो । मन भर के सुन लो । क्षण से यहां वहां मत डांवाडोल होओ । घड़ी के पेंडुलम मत बनो । रुको । उस रुकने का नाम ही ध्यान है ।
क्या कमी है इस क्षण में । मैं पूछता हूं ? पक्षी गीत गा रहे हैं । तुम नहीं गा पाते । क्योंकि पक्षियों को अगले कदम की चिंता नहीं है । फूल खिल रहे हैं । तुम नहीं खिल पाते । क्योंकि फूलों को अगले कदम की चिंता नहीं है । आदमी को छोड़कर सब प्रसन्न मालूम पड़ता है । आदमी विषाद में है । अगला कदम जान ले रहा है ।
भविष्य से मुक्त जो हो जाए । वही संसार से मुक्त हो जाता है । वर्तमान में है - संन्यास । भविष्य में है - संसार ।
तो मैं तुमसे नहीं कहता - घर द्वार छोड़कर भाग जाओ । मैं तुमसे कहता हूं - घर द्वार में । यह छोड़कर भागने की बात ही फिर भविष्य को बीच में ले आना है । तुम जहां हो । घर में हो । द्वार में हो । बाजार में हो । वहीं तुम उस क्षण को पूरा जीना सीख जाओ । तुम तत्क्षण पाओगे घर भी गया । द्वार भी गया । संसार दूर रह गया । तुम परमात्मा में उतर गए । संन्यास संसार से भागना नहीं है - संन्यास । संसार में परमात्मा को खोज लेना है । तुम समय की धार पर ऐसे ही बहते रहते हो । डुबकी नहीं लेते । और फिर धीरे धीरे यह बहने की आदत मजबूत हो जाती है । फिर तुम कभी भी डुबकी न ले पाओगे । फिर तुम हमेशा कल पर टालते रहोगे । और 1 दिन कल आएगा । और मौत लाएगा । और कुछ भी न लाएगा । मौत से आदमी इसीलिए इतना डरता है । मौत के डरने का और कोई कारण नहीं है ।
पहली तो बात । मौत को तुम जानते नहीं । डरोगे कैसे ? डर उससे पैदा होता है । जिसका कोई अनुभव हो । मौत से तुम्हारा कोई अनुभव नहीं है । याद भी नहीं है । कभी अनुभव हुआ हो । हुआ भी हो । तो भी स्मृति नहीं है । तुम डरोगे कैसे ? और कौन कह सकता है निर्णीत रूप से कि मौत के बाद जीवन इससे बेहतर न होगा ? कोई भी लौटकर तो खबर देता नहीं कि जीवन मौत के बाद बुरा हो जाता है । भय का कोई कारण नहीं है । 
लेकिन कारण कहीं दूसरा है । और वह दूसरा यह है कि तुम कल पर स्थगित करके जीने की आदत बना लिए हो । मौत कल को मिटा देगी । जिस दिन मौत आती है । उसके बाद फिर कोई कल नहीं है । और तुम पूरे जीवन कल पर ही आधार बनाकर जीए हो । तुम्हारा जीवन सदा 1 पोस्टपोनमेंट था । और मौत सब पोस्टपोनमेंट तोड़ देती है । मौत कहती है - आ गई । और मौत हमेशा आज आती है । कल नहीं । मौत जब आएगी । तब इस क्षण में आएगी । फिर उसके बाद 1 क्षण भी नहीं रहेगा । मौत 1 ही कदम उठाती है । 2 नहीं उठाती । उसका कोई अगला कदम नहीं है ।
और जो मौत के संबंध में सही है । वही जीवन के संबंध में सही है । जीवन भी 1 ही कदम उठाता है - यही क्षण । तुम अगर टालते रहे कल पर । तो तुम मौत से डरोगे । क्योंकि मौत कहती है - अब कोई कल नहीं है । और तुम जिंदगी भर टालते आए । तुम जीए ही नहीं । तुमने हमेशा सोचा । कल जीएंगे । बंद करो यह आदत । यह आदत ही संसार है । यह क्षण सब कुछ है । इस क्षण में सारी शाश्वतता है । इस कदम में ही छिपी है मंजिल । 
और अगर तुम इसे समझ लो । तो तुम जिसे खोजने जा रहे हो । तुम उसे अपने भीतर पा लोगे । खोजने वाले में ही छिपा है गंतव्य । फिर वह मिलता उसे है । जो अतीत और भविष्य की बात छोड़कर क्षण में खड़ा हो जाता है । क्योंकि फिर अपने को देखने के सिवाय कोई उपाय नहीं रहता । न तो भविष्य है सोचने को । न अतीत है सोचने को । न कोई स्मृति है अतीत की । न कोई कल्पना है भविष्य की । तब तुम अपना साक्षात्कार करते हो । वह आत्म साक्षात्कार ही मुक्ति है । 1 ही कदम है । मत पूछो कि अगला कदम स्पष्ट क्यों नहीं है ? है ही नहीं । स्पष्ट होगा कैसे ? ओशो 

कोई टिप्पणी नहीं: