02 अप्रैल 2011

किसी के दुनियाँ छोङ देने से कभी दुनियाँ के काम नहीं रुकते ।

राजीव जी । आपने मेरे इन प्रश्नों का उत्तर दिया । बहुत बहुत मेहरबानी । लेकिन मुझे माफ़ करें । आपने जो उत्तर दिये । उनसे मेरे मन में ४ प्रश्न और उत्पन्न हो गये । अब जो प्रश्न आपके उत्तरों से उत्पन्न हुए हैं । किरपा करके उनका भी समाधान अवश्य करें । मेरा पहला प्रश्न है कि निरंकार या ररंकार क्या ये सतपुरूष के नाम हैं ? क्या निरंकार और ररंकार का मतलब १ ही है ? गुरुवाणी में आता है कि " सचखन्ड वसे निरंकार " क्या ये वो ही सचखन्ड है । जिसको आप लोग सतलोक या अमरलोक बोलते हो । आपकी बतायी ॐकार की बात तो समझ आ गयी । अब इस ररंकार पर भी रोशनी डालिये । मेरा दूसरा प्रश्न आपने जिस अँधेरे की बात की थी कि यहाँ पर आकर साधक डर जाता है । या घबरा जाता है । क्या आपका ये इशारा उस भँवर गुफ़ा की तरफ़ तो नही । जिसका उल्लेख आपके १ पुराने लेख में आ चुका है । जिसमें आपने लिखा था । " उस गहर अन्धकार का वर्णन करना सम्भव नही " । अब मेरा तीसरा प्रश्न आप कहते हैं कि सबके अन्दर वो १ परमात्मा ही है । तो इसका मतलब गधे । कुत्ते । बन्दर । उल्लू । कीडे । मकोडे सबके अन्दर वो परमात्मा ही है । आप लोग कहते हो कि मन कालपुरुष का रूप है । यानी मन ही कालपुरुष है । इसका मतलब कालपुरुष और परमात्मा दोनों एक साथ १ ही शरीर में वास करते हैं । और जब सब कुछ परमात्मा ही है । कभी तो वो नरक भोगता है । तो कभी अनामी लोक में होता है । कभी ८४ लाख योनी भोगता है । कभी प्रेत बनकर भटकता है ( क्योंकि सबके अन्दर सिर्फ़ वो १ परमात्मा ही है ) ये परमात्मा कभी प्रकृति के अधीन हो जाता है । कभी कुछ । तो फ़िर कालपुरुष ताकतवर हुआ या परमात्मा ? शायद आपका ये कहना उचित होता कि सबमें आत्मा ही है । और वो १ सर्वशक्तिमान परमात्मा का अंश है । किरपा करके आप इस प्रश्न का सही उत्तर पेश करें । वैसे आप बेहतर जानते होंगे क्योंकि आप तो बाबा हैं । और मैं केवल १ कालेज सटूडेट । तो इस तीसरे प्रश्न का निचोड क्या है ? ये हमारा स्थूल शरीर तो स्थूल प्रकृति का हिस्सा है । ये मन । बु्द्धि । चित्त । अहम आदि सू्क्ष्म प्रकृति का हिस्सा है । तो हमारा असली स्वरूप क्या है ? क्या हमारा असली स्वरूप आत्मा है ? जो १ परमात्मा का अंश है । और अग्यानता वश इस सन्सार मे भट्क रहा है । इसके साथ ये भी बता दीजिये कि अगर आत्मा परमात्मा का ही अंश है । तो उनके प्रमुख गुण भी सामान्य ही होंगे । जैसे अगर परमात्मा नित्य, शाश्वत और अबिनाशी है । तो आत्मा के भी ये ही प्रमुख गुण होंगे । वो अलग बात है कि आत्मा और परमात्मा की ताकत मे अति अधिक अन्तर हो । अगर आप को पोइन्ट समझ आ गया हो । तो इस तीसरे प्रशन का स्पश्ट उत्तर दे । ( किरपा करके औरों की तरह मुझे टालने की कोशिश न करें ) अब अन्तिम प्रशन जैसे सतगुरु का भी महत्व शरीर रहने तक है । तो अगर हम किसी से दीक्षा ले लें । और कुछ समय बाद ( कुछ महीने या कुछ साल ) वो सतगुरु रूपी बाबाजी मर जायें । ( क्यु कि ये स्थूल शरीर तो १ दिन छूट जाता है । चाहे किसी का भी हो ) तो उस साधक की क्या गति होती है ? जरा ये भी बता दें । और १ बात और जैसे आपने कहा कि अब ओशो ( पुराने वाले ) को याद करने से कोई प्रैक्टिक्ल लाभ नहीं । तो क्या फ़िर कबीर जी को भी याद करने का आज के समय मे कोई अर्थ नही रखता ? मैने गुस्ताखी से ४ जरूरी प्रशन एक साथ पुछ लिये । इसके लिये मुझे माफ़ करे । लेकिन मैं तीवृ जिग्यासावश अपने आपको रोक नही पाया । आशा है कि आप मेरी बात का बुरा नही मानेंगे । और मुझे टालने की भी कोशिश नही करेंगे । आपके द्वारा सही उत्तरों का इंतजार रहेगा - इस बार सिर्फ़ सुभाष राजपुरा से ।

*** अब जो प्रश्न आपके उत्तरों से उत्पन्न हुए हैं । किरपा करके उनका भी समाधान अवश्य करें । मेरा पहला प्रश्न है कि निरंकार या ररंकार क्या ये सतपुरूष के नाम हैं ? क्या निरंकार और ररंकार का मतलब १ ही है
ANS - नहीं निरंकार ररंकार साधना की दो स्थितियाँ हैं । निरंकार ( आकाश तत्व ) ररंकार ( रमता स्थिति में - चेतन तत्व )
? गुरुवाणी में आता है कि " सचखन्ड वसे निरंकार " क्या ये वो ही सचखन्ड है । जिसको आप लोग सतलोक या अमरलोक बोलते हो ।
ANS - जी हाँ । सचखन्ड । सतलोक । अमरलोक एक ही बात है । निरंकार ( पाँचवें तत्व की स्थिति । आकाश तत्व को निरंकार कहते हैं । ) आकाश स्थिति को पाकर साधु सचखन्ड की ओर जाता है । इसलिये ऐसा कहा है ।
मेरा दूसरा प्रश्न आपने जिस अँधेरे की बात की थी कि यहाँ पर आकर साधक डर जाता है । या घबरा जाता है । क्या आपका ये इशारा उस भँवर गुफ़ा की तरफ़ तो नही । जिसका उल्लेख आपके १ पुराने लेख में आ चुका है । जिसमें आपने लिखा था । " उस गहर अन्धकार का वर्णन करना सम्भव नही " ।
ANS - साइंस में इसको डार्क मैटर कहा गया है । ऐसे स्थान एक नहीं कई जगह पर आते हैं । आपका इशारा ओशो वाले प्रसंग के लिये हैं । वो स्थान सबसे अंत में है । भँवर गुफ़ा काफ़ी पहले ही नीचे आ जाती है । इस रास्ते में अंधेरे विशाल मैदान कई बार आते हैं ।
अब मेरा तीसरा प्रश्न आप कहते हैं कि सबके अन्दर वो १ परमात्मा ही है । तो इसका मतलब गधे । कुत्ते । बन्दर । उल्लू । कीडे । मकोडे सबके अन्दर वो परमात्मा ही है ।
ANS - जी हाँ । सबके अन्दर वहीं परमात्मा ( लेकिन चेतन तत्व के रूप में ) है । क्योंकि चेतनता सिर्फ़ परमात्मा में ही है । लेकिन ये जीव परमात्मा नहीं हैं । एक इंसान..नौकर है । एक इंसान मालिक है । एक इंसान कुछ और है । तो क्या एक मजदूर ( बेलदार ) से प्रधानमन्त्री कह सकते हैं ? जबकि इंसान रूप में दोनों एक से हैं । यही परमात्मा । आत्मा । जीवात्मा और अनेक तरह के आत्मा में फ़र्क हो जाता है । आत्मा सबमें कामन है ।.. जो सब बातों से परे है । अपने शुद्ध शाश्वत रूप में है । वह परमात्मा है । ऐसा आसानी से समझाने के लिये कहा है । बात तो और भी जटिल है ।
आप लोग कहते हो कि मन कालपुरुष का रूप है । यानी मन ही कालपुरुष है । इसका मतलब कालपुरुष और परमात्मा दोनों एक साथ १ ही शरीर में वास करते हैं ।
ANS - मनुष्य शरीर की रचना और इस बृह्माण्ड की रचना एकदम समान है । इसलिये इसी शरीर में सब कुछ विधमान है । आपने सुना होगा कि गो में 33 करोङ देवता वास करते हैं । यहाँ गो का मतलब गाय नहीं गो का मतलब इन्द्रियाँ है । हमारा यह शरीर बृह्मान्ड का नक्शा है । जो किसी टीवी आदि के सर्किट बोर्ड के समान इन सभी से कनेक्टिड है । लेकिन वो टीवी या कम्प्यूटर ( यहाँ मतलब इंसान ) किस प्रकार की खासियत वाला है । उसी हिसाब से वो अपने इन रहस्यों को जान पाता है । जैसे योगी । सिद्ध । सन्त । विद्वान । अनपढ । गँवार । दयालु । क्रूर आदि । यह बात थोङी जटिल है । इसलिये गहराई से इसको बारबार समझने की कोशिश करें ।
और जब सब कुछ परमात्मा ही है । कभी तो वो नरक भोगता है । तो कभी अनामी लोक में होता है । कभी ८४ लाख योनी भोगता है । कभी प्रेत बनकर भटकता है ( क्योंकि सबके अन्दर सिर्फ़ वो १ परमात्मा ही है ) ये परमात्मा कभी प्रकृति के अधीन हो जाता है । कभी कुछ ।
ANS - इसका उत्तर मैंने ऊपर ही दे दिया । ये सब परमात्मा नहीं । बल्कि अनेक भाव उपाधियों से जुङा आत्मा । जैसे जीव भाव से जुङा तो जीवात्मा । प्रेत भाव से जुङा तो प्रेतात्मा । देव भाव से जुङा तो देवात्मा आदि । जैसे किसी एक पदार्थ को ले लें । उदाहरण - लकङी । अब लकङी से बने दरबाजे । खिङकियाँ । कुर्सी । मेज । पलंग आदि आदि सबको अलग अलग नाम से क्यों पुकारते हैं । है तो सब लकङी ही । लकङी के कमजोर मजबूत कितने प्रकार हो जाते हैं । उससे बनी चीजों में इतने गुण हो जाते हैं । वही लाठी किसी कमजोर या असमर्थ वृद्ध को चलने में सहारा देती है । वही किसी का सर भी फ़ोङ देती है । तो केवल लकङी कहकर सारी बात बन सकती है क्या । जब एक लकङी में इतने कमाल हैं । तो सोचो । परमात्मा की लीला तो अपरम्पार है ।
तो फ़िर कालपुरुष ताकतवर हुआ या परमात्मा ? शायद आपका ये कहना उचित होता कि सबमें आत्मा ही है । और वो १ सर्वशक्तिमान परमात्मा का अंश है । किरपा करके आप इस प्रश्न का सही उत्तर पेश करें ।
ANS - कालपुरुष जैसे परमात्मा के कितने कर्मचारी हैं । ये गिनती भी मुश्किल है । ये सिर्फ़ विषय वासना के लालच में फ़ँसे जीवों और देवताओं के लिये ताकतवर है । परमात्मा के एक मामूली कार्यकर्ता से भी ये भयभीत रहता है । आत्मग्यान के सन्तों से तो ये और महामाया बहुत घबराते हैं । क्योंकि वे करोङों जन्मों से इसके जाल में फ़ँसे जीव को सरलता से मुक्त करवा देते हैं ।
तो इस तीसरे प्रश्न का निचोड क्या है ? ये हमारा स्थूल शरीर तो स्थूल प्रकृति का हिस्सा है । ये मन । बु्द्धि । चित्त । अहम आदि सू्क्ष्म प्रकृति का हिस्सा है । तो हमारा असली स्वरूप क्या है ? क्या हमारा असली स्वरूप आत्मा है ? जो १ परमात्मा का अंश है । और अग्यानता वश इस सन्सार मे भट्क रहा है ।
ANS - जी हाँ । हमारा असली स्वरूप और पहचान शुद्ध चैतन्य आत्मा है । जिसमें किसी प्रकार का भाव न जुङा हो । ये अपनी पहचान भूलकर ही दुर्दशा को प्राप्त हुआ । वरना ये बहुत शक्तिशाली और धनी है ।
 इसके साथ ये भी बता दीजिये कि अगर आत्मा परमात्मा का ही अंश है । तो उनके प्रमुख गुण भी समान ही होंगे । जैसे अगर परमात्मा नित्य, शाश्वत और अबिनाशी है । तो आत्मा के भी ये ही प्रमुख गुण होंगे । वो अलग बात है कि आत्मा और परमात्मा की ताकत में अति अधिक अन्तर हो ।
ANS - आपका कहना बिल्कुल सही है । दोनों समान होते हैं । कैसे उदाहरण - समुद्र से एक बूंद ( आत्मा ) एक लोटा ( महा आत्मा ) एक झील के बराबर ( महानतम आत्मा स्थिति ) पानी निकालो । रासायनिक टेस्ट में प्रमुख गुण सभी में एक जैसे होंगे । लेकिन उनकी जगह की स्थिति और पानी की मात्रा से । उनकी ताकत और कुछ अतिरिक्त गुणों में बदलाव हो जायेगा ।
अब अन्तिम प्रशन जैसे सतगुरु का भी महत्व शरीर रहने तक है । तो अगर हम किसी से दीक्षा ले लें । और कुछ समय बाद ( कुछ महीने या कुछ साल ) वो सतगुरु रूपी बाबाजी मर जायें । ( क्यु कि ये स्थूल शरीर तो १ दिन छूट जाता है । चाहे किसी का भी हो ) तो उस साधक की क्या गति होती है ?
ANS - वह जितनी पढाई कर चुका होता है । उसका लाभ उसे मिलता है । अगर वह दूसरा गुरु बनाना चाहे । तो भी कोई हर्ज नहीं । किसी के दुनियाँ छोङ देने से कभी दुनियाँ  के काम नहीं रुकते । आखिर शरीर में मौजूद गुरु ही ग्यान दे पायेगा । बाकी कुछ लोग समझते हैं कि उनके दिवंगत गुरु अभी भी ग्यान दे रहे हैं । वे भृम  में हैं । हाँ । जब कोई शिष्य काफ़ी ऊँची स्थिति को प्राप्त कर लेता है । वो अशरीर हो चुके गुरु से भी जुङा रह सकता है । पर ऐसा लाखों में एकाध के साथ होता है । अतः सभी सामान्य लोगों पर यह बात लागू नहीं होती ।
और १ बात और जैसे आपने कहा कि अब ओशो ( पुराने वाले ) को याद करने से कोई प्रैक्टिक्ल लाभ नहीं । तो क्या फ़िर कबीर जी को भी याद करने का आज के समय मे कोई अर्थ नही रखता ?
ANS - जी हाँ । ओशो कबीर या कोई  और हो । उनके उपदेशों से ही लाभ प्राप्त कर सकते हैं । प्रक्टीकल लाभ के लिये शरीर गुरु या समय के गुरु या सतगुरु की निश्चय ही आवश्यकता होती है । नहीं तो संसार में बहुत से नाम रूप गुरु नहीं होते । एक ही गुरु से सबका काम चल रहा होता । हाँ लेकिन आंतरिक गुरु सबका एक ही है । शरीर गुरु या समय के गुरु उसी गुरु से आपको मिला देते हैं ।

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Great, Excellent, Best of the Best, very very very good RAJEEV ji keep it up.

Unknown ने कहा…

जी क्या ररंकार भी ओहगं सोहगं की तरह कोई मंत्र हैं ? अगर मंत्र हैं फिर किसका ? कृपया इसका विस्तार से खुलासा करें । धन्यवाद ।

बेनामी ने कहा…

हम भी जाना चाहते हैं कि सोहंम की तरह क्या ररंकार कोई मंत्र है एवं उसका स्वामी कौन है?