26 फ़रवरी 2011

ये मिथ्या बातें हैं । जो अग्यानता से फ़ैली है ।

राजीव कुमार जिन्दावाद । हमारा नेता कैसा हो ? राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ जैसा हो । तुम जैसे आदमी का ब्लाग पढकर मेरे जैसे ? आदमी के दिमाग में भी सवाल आने लगे हैं ।
Q 1 तन्त्र । मन्त्र । जन्त्र ( यन्त्र ) साधना में कौन सी पावरफ़ुल होती है ? सिर्फ़ जानकारी के लिये पूछा है । जबाब तुमको देना पङेगा । नहीं तो तुमने ब्लाग क्यूँ बनाया ?
ANS - सभी साधनाओं में बहुत प्रकार हो जाते हैं । इसलिये कौन सी पावरफ़ुल है । कैसे कहा जा सकता है । उदाहरण के लिये आप मन्त्र साधना में एक छोटे देवता और छोटी शक्ति के मन्त्र का जाप करते हो । तो उसकी तुलना में अनेक तन्त्र बङे होते हैं । कोई यन्त्र बङा होता है । अतः साधना के अलग अलग प्रकार हो जाते हैं । मन्त्र तन्त्र यन्त्र से मतलब ये नहीं हैं कि इन शीर्षकों से सिर्फ़ एक ही तरह की साधना होती है । एक एक शीर्षक की हजारों छोटी बङी साधनायें होती हैं । लेकिन जैसे बच्चा पहली क्लास से पढाई करता हुआ आगे बङता है । वैसा ही तरीका यहाँ भी है । फ़िर इसकी अनेकों शाखायें हैं ।
Q 2 मैं अगले जन्म में उस पूनम ( बोल्ड एन्ड ब्यूटीफ़ुल गर्ल ) जैसी लङकी से शादी करना चाहता हूँ । जो दिखने में पदमिनी हो । मेरी पत्नी तो सूखी दुबली पतली सी सेक्सलेस है । अगले जन्म में पूनम जैसी सुन्दर और भरे हुये बदन की औरत पाने के लिये मैं इस जन्म में कौन सी साधना करूँ ? कृपया मेरा मार्गदर्शन करें । मैं अपनी कल्पना में सिर्फ़ सुन्दर और सेक्सी औरतों का ही संग करता हूँ ।
ANS - कोई भी साधना । एज धन कमाना । शक्ति प्राप्त करना । और जब आपके पास धन और शक्ति है । तो आप कुछ भी खरीद सकते हो । लेकिन अच्छी औरत प्राप्ति के लिये इसी जन्म या अगले जन्मों के लिये भी उपाय होते हैं । मुख्य बात आपकी चाहत पर निर्भर है । वैसे सबसे सरल सहज परमात्मा की सुरति शब्द योग भक्ति ही है । और इसमें सब कुछ उसी पर छोङ दिया जाता है । छोङ दिया अब जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में । अब जीत तुम्हारे हाथों में । और हार तुम्हारे हाथों में । और वो सबका बाप है । तुम्हारे मन की हर बात जानता है । इसलिये वो हर बात पूरी भी करेगा । इसी भक्ति के लिये कहा गया है । एकहि साधे सब सधें । सब साधे सब जायँ । रहिमन सींचों मूल को । तो फ़ूलों फ़लो अघाय । मतलब उस एक बाप ( परमात्मा ) को बाप कहने से ही सब काम हो जाँय । तो फ़िर अनेक बाप ( देवता आदि की भक्ति ) बनाने की क्या आवश्यकता ?? ये सब तो उसके दासों के दास की भी हैसियत नहीं रखते ।
Q 3 ये दिव्य साधना तन्त्र मन्त्र एन्ड जन्त्र से पावरफ़ुल है क्या ? एन्ड लेकिन ये दिव्य साधना सुरति शब्द साधना से नीचे की है । तो क्या सुरति शब्द साधना दिव्य साधना वाला लाभ भी देगी ?
ANS - दिव्यता की ओर ले जाने वाली किसी भी साधना को दिव्य साधना ही कहते हैं । तन्त्र मन्त्र यन्त्र में भी दिव्यसाधना के पाठयकृम है । ये स्थान स्थान पर अलग अलग शब्दों का प्रयोग ही है । कोई उसी कालेज में पढकर चपरासी बनता है । और कोई प्रिन्सीपल । प्रधानमन्त्री राष्ट्रपति आदि । सुरति शब्द साधना सभी साधनाओं का एकीकरण है । और इससे हर वो लाभ मिलता है । जो विभिन्न कष्टदायी अति मेहनत के बाद कोई एक फ़ल किसी साधना से मिलता है । राम एक तापस तिय तारी । नाम कोटि खल उद्धारी । राम ने सिर्फ़ अहिल्या को तारा था । नाम ( महामन्त्र या परमात्मा का नाम ) से करोङों सुखी होकर तर गये ।
Q 4 यार तुमने बहुत टाइम से कोई प्रेतकथा नहीं पोस्ट की । प्लीज इस बार जल्दी करो । और अगर किसी ने नेक्स्ट जन्म में प्रेत बनना हो । तो उसको क्या करना चाहिये ?
ANS - प्रेतकथा समय मिलने पर ।.. प्रेत बनने के लिये । शमशान आदि में जाकर बैठना । उन्ही के बारे में सोचना । इसी तरह की निकृष्ट तांत्रिक क्रिया आदि करना । और भी बहुत तरीके हैं । कान से प्राण निकलने पर प्रेतयोनि मिलती है ।
Q 5 कोई कहता है । सटरडे को लोहे का सामान मत खरीदो । थर्सडे को बाल मत कटवाओ । या कपङे मत धोओ । कोई छींक आने को अशुभ समझता है । कोई बिल्ली रास्ता काटने को । क्या ये सब बेकार की बातें हैं ? मेरे फ़ैमिली मेम्बर्स साले ये सब अंधविश्वास बहुत मानते हैं । मैं नहीं मानता । इन सबका जबाब भी दे देना । लेकिन आराम से । कोई जल्दवाजी भी नहीं । लेकिन इतनी देर भी मत करना कि मेरी जिन्दगी मेरे से रूठ जाय । डू नाट वरी । बी हैप्पी ओ के । तुम्हारे आंसर का इंतजार रहेगा ।
ANS - ये मिथ्या बातें हैं । जो अग्यानता से फ़ैली है । दरअसल शास्त्र अनुसार कुछ शुभ या विशेष कार्यों में ऐसे ? कुछ नियमों का पालन किया जाता था । जो बाद में इंसान ने अपनी जिन्दगी से ही जोङ लिये ।
( मैंने आज शाम को तुम्हारा आर्टीकल पढा । मैं तो डर गया भाई । जिन लेडीज के बारे में मैं गलत सोचता हूँ । तुमने कहा कि कि )
Q 6 वो अगले जन्म में ?? मेरी बहन बेटी या माँ बनकर गलत आचरण से मेरे से बदला लेंगी । मतलब क्या है कि नेक्स्ट जन्मों में मेरी अश्लील सोच की वजह से मुझे करेक्टरलेस बहन बेटी या माँ मिल सकती है ।ANS - मेरा आशय ये नहीं था । बुरा आचरण किसी भी रूप में हो सकता है । वैसे भी कोई भी इंसान चरित्रहीन बने । या चरित्रवान । उसमें दूसरा कोई कुछ नहीं कर सकता ।
Q 7 दूसरी बात सबके अंदर एक परमात्मा ही है । क्या परमात्मा ही आत्मा बनकर सबके अन्दर बैठा है ? तो मैं कौन हूँ ?? मैं शरीर भी नहीं हूँ । मैं अंतःकरण भी नहीं हूँ । ये भी एक प्रकार का सूक्ष्म शरीर ही है । तो क्या मैं ही वो चेतन तत्व हूँ ? इस शरीर के अन्दर जिसको आत्मा कहा जाता है ।
ANS - इस प्रश्न का उत्तर कई रूपों में मेरे ब्लाग्स में हैं । फ़िर भी इसके लिये अलग से एक बङी पोस्ट बनेगी । जो आगे समय मिलने पर ।
( जहाँ इतना कुछ बता दिया । अब इस बात को बीच में मत छोङना । मैंने शाम को आज जो और क्वेश्चन भेजे थे । उनके साथ ही अब जो और मैसेज लिखा है । इसका भी खुलकर आंसर देकर मेरा भला कर दे बेटा । एक बात और भी आंसर में एड कर देना । वो ये कि )
Q 8 कुन्डलिनी साधना तन्त्र मन्त्र साधना से बङी है या स्माल ? एन्ड क्या कुन्डलिनी साधना दिव्य साधना से बङी है या छोटी ??
ANS - कुन्डलिनी महाशक्ति ही संसार को चला रही है । और ये सुरति शब्द साधना से छोटी लेकिन बाकी सभी साधनाओं से बङी है । सभी साधनायें किसी न किसी रूप में इसी से शक्ति लेती हैं । ये सभी साधनाओं का ट्रेजरी आफ़िस है ।

लेगा मजा । तो मिलेगी सजा ।


अरे वाह राजीव भैया । अरे भैया मैं सोच रहा था कि अगर तुम मेरे क्वेश्चन के आंसर नहीं दोगे । तो और देगा कौन ? तीसरा कौन ? सुनो राजीव कुमार अग्निहोत्री । मेरे मन में कुछ और सवाल भी आये हैं । लेकिन वो सवाल ऐसे ही नहीं आये । उसके जिम्मेदार भी तुम हो । क्योंकि वो सवाल तुम्हारा ब्लाग पढकर आये हैं । इसलिये उनका जबाब देना तुम्हारा फ़र्ज है ।
Q 1 कलियुग में जो कल्कि अवतार आयेंगे । क्या ये भी कालपुरुष का अवतार होंगे ? या विष्णु भगवान के ? या किसी और के ?
ANS - कल्कि अवतार बहुत छोटा अवतार होगा । ये न विष्णु का होगा । न कालपुरुष का । कालपुरुष बहुत शक्तिशाली है । ये सिर्फ़ दो अवतार राम और कृष्ण के लेता है । विष्णु भी बहुत छोटे अवतार नहीं लेते । बल्कि ऐसे छोटे अवतारों को अंश द्वारा कुछ शक्तियाँ दी जाती हैं । कल्कि अवतार कलियुग में बढ रही मलेच्छ प्रवृति के नाश के लिये होगा । और उङीसा के शम्भल गाँव में होगा । लेकिन..? ये अवतार अब शायद ही होगा । इसका कारण है । यहाँ तीनों लोक की हालत बहुत खराब होना । जिस प्रकार किसी भी देश में केन्द्रीय सत्ता और राज्यसत्ता ये दो होती हैं । राज्य केन्द्र के अधीन होता है । राज्य के हालात ज्यादा बिगङ जाने पर केन्द्रसत्ता राज्य सरकार को डिसमिस कर नियन्त्रण अपने हाथ में ले लेती है । यही सिस्टम सृष्टि में भी चलता है । कल्कि अवतार समयानुसार त्रिलोकी की पंचवर्षीय योजनाओं की तरह था । और कलियुग के अंत में होना था । जब हालात बहुत बिगङ जाने थे । पर कलियुग अपने प्रारम्भ ( अभी कलियुग के 5000 कुछ वर्ष ही हुये हैं । ) में ही भन्ना उठा । इसलिये इस त्राहित्राहि की पुकार से केन्द्रसत्ता ने कलियुग को लगभग 17000 वर्ष पूर्व ही समाप्त करने का निर्णय लिया है । इसलिये अभी से टुकङों में चल रही प्रलय 2017 - 18 तक 70% आवादी को समाप्त कर देगी । इसके बाद सतयुग की रूपरेखा प्रारम्भ हो जायेगी । जो अगले 50 सालों में प्रलय से हुये विनाश का पुनर्निर्माण करके सतयुग को स्थापित कर देगा ।
Q 2 किसी और झूठे बाबा के आर्टीकल में पढा था कि धार्मिक कर्म करने वाले भी काल के दूत हैं । सिर्फ़ कबीरपंथी वाले काल के दूत नहीं हैं । ये काल के दूत कौन होते हैं ??
ANS - वैसे उस बाबा ने लगभग सही बात ही कही है । साधारण पूजा पाठ कालपूजा के अंतर्गत ही आता है । क्योंकि इसमें मोक्ष ( मुक्त ) नहीं होता । बल्कि बेहद कठिनाई से मुक्ति होती है । आजकल कबीरपंथ में भी कालदूतों की भरमार हो गयी है । वैसे असली सुरति शब्द साधना के लिये पन्थ के बजाय मत शब्द का प्रयोग होता है । कालदूत को साधारण भाषा में " आस्तीन का साँप " कह सकते हैं । मतलब तुम्हें सही बात बताने को बोलते हुये बातों के जाल से बहका रहा हो । और इसकी वजह है । कालपुरुष स्वभाव से क्रूर है । आत्माओं को प्रताङित करना । अविनाशी आत्मा को स्वर्ग नरक के खेल में फ़ँसाना आदि इसके और इसकी पत्नी के प्रमुख कार्य हैं । कालपुरुष ने ही यहाँ की सृष्टि बनाई है । और कई युगों तक तपस्या करके इन आत्माओं को प्राप्त किया है । जो कि उसे सतलोक से खुशी खुशी इस बात पर दी गयीं कि ये अविनाशी हँस आत्मा को सुख आनन्द से रखेगा । और आत्मा की इच्छा होने पर उसके मूल घर सतलोक आने जाने देगा । पर बाद में स्वभाववश कालपुरुष ने जीवात्मा को विषय भोग और माया ( उसकी पत्नी ) द्वारा फ़ँसा लिया । और अपनी सत्ता के अनुसार दन्ड देने लगा । जैसा कि विश्वासघाती करते हैं । पहले मीठी बातों से फ़ँसाते है । फ़िर मजा लेते हैं । जीवात्माओं की करुण पुकार जब सतलोक पहुँची । तो केन्द्रसत्ता ने अपनी आत्माओं के उद्धार के लिये कबीर साहब को प्रतिनिधि के रूप में भेजा । जिनका सामना पहले कालपुरुष के तीनों पुत्रों बृह्मा विष्णु महेश से हुआ । इसके बाद कालपुरुष से काफ़ी झगङा हुआ । तब कबीर साहब ने कहा कि जीव परमात्मा के उस ढाई अक्षर के नाम को सुमिरते ही मोक्ष की तरफ़ जाने लगेगा । और तुम कुछ नहीं कर पाओगे । इस पर कालपुरुष ने कहा कि मैं तुम्हारे उस नाम में ही ऐसा मायाजाल अपने (काल ) दूतों द्वारा फ़ैलाऊँगा कि जीवात्मा कभी सच्चाई नहीं जान पायेगा । और मेरे जाल में उलझकर रह जायेगा । इसका सबसे बङा प्रमाण था कि कालपुरुष ने कबीर के जीवनदान दिये हुये पुत्र कमाल के रूप में ही अपना दूत उनके पीछे लगा दिया । कमाल कबीर का बेहद विरोध करता था ।..इसकी अधिक विस्तार से जानकारी के लिये । कबीर धर्मदास संवाद पर आधारित..हिन्दी पुस्तक..अनुराग सागर पढें । यदि मिलने में कठिनाई हो । तो मेरे लेख अनुराग सागर की संक्षिप्त कहानी में मथुरा के प्रकाशक का नाम पता टेलीफ़ोन नम्बर देखें । और बाई पोस्ट मंगायें । आपकी आंखें खुल जायेंगी ।
Q 3 कल मैंने सुबह अर्ली मार्निंग टी के साथ टीवी लगा लिया । मैंने इंगलिश चैनल इसलिये लगाया था कि कोई गोरी मेमसाब देखने को मिल जायेगी । लेकिन वहाँ वैम्पायर की फ़िल्म आ रही थी । वैम्पायर ( पिशाच ) जो रात को निकलते हैं । और खून पीते हैं । नेक में अपने टीथ डाल के । वेस्ट लाइफ़ में इन पर बहुत नावल लिखे गये हैं । एन्ड फ़िल्म बनी हैं । जिनका बास अक्सर ड्रेकुला नाम का वैम्पायर होता है । क्या ये वैम्पायर भी होते हैं ? क्या ये इंडिया में तो नहीं होते ?

ANS - अंग्रेजों के वैम्पायर नकली होते हैं । जिनका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं होता । उनकी वैम्पायर की धारणा भी भारतीय गृन्थों से ही ली गयी है । पिशाच कहलाने वाले ये प्रेत अत्यन्त शक्तिशाली होते हैं । प्रायः ये लोगों को परेशान नहीं करते । अघोर में निकृष्ट साधना करने वाले अघोरी और चमत्कार दिखाने वाले सिद्ध अधिकतर पिशाच को ही सिद्ध कर लेते हैं । पिशाच से पीङित व्यक्ति का खून तेजी से खत्म होता है । औरत से संभोग आदि में अधिक रुचि रखता है । इसी धारणा पर अंग्रेजी वैम्पायर का जन्म हुआ । इस सृष्टि में ऐसी कोई चीज नहीं है । जो हर जगह न पायी जाती हो । सिर्फ़ देशकाल आदि के आधार पर उसका नाम रूप नस्ल आदि अलग होते हैं ।
Q 4 सूर्यलोक क्या वास्तव में है ? क्या वहाँ भी दुनियाँ चलती है ? सूर्य वास्तव में तो बहुत गर्म हैं । लेकिन क्या अन्दर से ठन्डा है । किसी दुनियाँ की तरह ??
ANS - जी हाँ । करोङों सूर्य इस सृष्टि में हैं । और सबका लोक है । ये अखिल सृष्टि जल बेस पर है । और मायाबी है । इसलिये आपको सूर्य बेहद गर्म लगता है । पर सूक्ष्म के निवासियों की हकीकत अलग होती है । बिग्यान के अनुसार यदि आप जानकारी रखते हों । तो ज्वालामुखी के खौलते लावे में भी जीव रहते हैं । इसलिये ये सृष्टि बहुत विलक्षण हैं ।
Q 5 क्या वास्तव में मून पर भी सूक्ष्म जगत चल रहा है ?
ANS - जी हाँ । आप मेरे साथ एक दिन घूमने चलो । बातों से क्या फ़ायदा ?
Q 6 ये कोई न कोई बीमारी आदमी को लगी रहती है । एग्जाम्पल जैसे कोई एक बीमारी है । वो ठीक नहीं हो रही । उसकी लगातार मेडीसिन लेने से वो कंट्रोल में रहती है । लेकिन मेडीसिन छोङते ही बीमारी फ़िर से बङ जाती है । जैसे पाप का फ़ल दुख होता है । तो क्या ऐसे ही ये बीमारी का लगातार रहना । पाप का फ़ल भोगना है ? और जब उस पार्टीकुलर पाप का फ़ल पूरा भोग लिया गया । तो क्या वो पार्टीकुलर रोग भी खत्म हो जायेगा ?
ANS - आपकी बात एकदम सत्य है । अगर बीमारी का इलाज न भी करा के बस परहेज से रहो । तो भोग पूरा होते ही बीमारी ठीक हो जायेगी । बशर्ते वो लेने आयी वाली बीमारी न हो ।
Q 7 कई लोगों को लगातार कोई ना कोई मानसिक या शारीरिक रोग लगा ही रहता है । जैसे एक छोटी सी बीमारी ठीक हुयी । अभी कुछ दिन हुये नहीं कि दूसरी बीमारी आ गयी । इसी तरह कोई मानसिक परेशानी है । अभी उससे छुटकारा मिला नहीं कि एक और मुसीबत खङी हो गयी । क्या ये भी पाप का फ़ल ही है ??
ANS - जीवन में हमारे साथ जो भी हो रहा है । उसके जिम्मेदार हम खुद ही हैं । नाम भक्ति से रहित हो जाने के कारण जीवात्मा की यह दुर्दशा हुयी । ये हमारे पाप के फ़ल ही हैं ।
Q 8 क्या ये आत्मा उस पूर्ण परमात्मा की अंश है । जो मोस्ट पावरफ़ुल है । जिससे ऊपर कुछ नहीं है ?
ANS - जी हाँ ये एकदम सत्य है । आत्मा केवल चाहत के वशीभूत माया के झूठे बन्धन में आ गयी है ।
Q 9 अगर मेरी साली मेरे से आशिकी करना चाहे तो क्या वो पाप होगा ? नहीं तो बेचारी किसी पङोसी को उपलब्ध हो जायेगी । और हमारी बदनामी हो जायेगी ।
ANS -बुरा ना माने । प्रोफ़ेसर साहब । कोई आपके परिवारीजनों के सम्बन्ध में भी ऐसा ही सोचे । तब आपको कैसा लगेगा ? मेरा संकेत आप समझ गये होंगे । आपने माँ बहन बेटी आदि के करेक्टरलेस होने के बारे में लिखा था । साली भी किसी की माँ बहन बेटी होती ही है । आप भी किसी के बाप बेटे भाई आदि होंगे । अनैतिक सम्बन्ध हर हालत में पाप है । साली आधी घरवाली नहीं होती । साली क्या करती है ? ये उसकी सोच है । जो जैसा करेगा । वो वैसा भरेगा । लेगा मजा । तो मिलेगी सजा । काया से जो पातक होई । बिनु भुगते छूटे नहीं कोई ।
Q 10 और आपके ब्लाग में ये जो कालपुरुष का जिकर है । मैं उनसे बहुत डर गया हूँ । कहीं ये मुझे कुछ कहेंगे तो नहीं ??
ANS - कसाई जिस प्रकार बकरे को खिला पिलाकर मोटा देखकर खुश होता है । ठीक यही सम्बन्ध कालपुरुष और जीवात्मा के बीच होता है ।.. सार शब्द जब आवे हाथा । तब तब काल नवावे माथा ।.. जँह लगि मुख वाणी कहे । तँह लगि काल का ग्रास । वाणी परे जो शब्द है । सो सतगुरु के पास ।
ये मत समझना कि मैं तुम्हारा टेस्ट ले रहा हूँ । मुझे इन क्वेश्चन की खुजली थी । झन्डू बाम तुम्हारे पास है । लगाकर मेरी खुजली दूर करो । एक प्रोफ़ेसर का ई मेल । मध्यप्रदेश से ।
आपके शेष प्रश्नों के उत्तर शीघ्र देने की कोशिश रहेगी ।

25 फ़रवरी 2011

मेरी तरफ से तुम मुक्त हो

क्या यह संभव है कि मैं बगैर संन्यास लिए आपका शिष्य रह सकूं । और जिस मौन साधना का जन्म मेरे भीतर हुआ है । उसे आगे बढ़ाता जाऊं ? है तो सब आपका ही दिया हुआ । पर यह मेरे अंतस से जानी हुई प्रणाली है । और मुझे लगता है । इसी का अनुगमन करने में ज्यादा फायदा है । मैं यह भी सोचता हूं कि आपकी साधना में 1 शाखा ऐसी भी रहे । जिसमें बिना संन्यास वगैरह लिए भी उस सत्ता तक पहुंचा जाए । कृपाकर बताएं कि मैं कहाँ तक सही सोचता हूं ?
- जब तक तुम सोचते हो । गलत ही सोचोगे । सोचना मात्र गलत है । जब तक तुम ? सोचोगे । तब तक गलत सोचोगे । क्योंकि मैं की अवधारणा ही गलत है ।
तुम जोखम भी नहीं लेना चाहते । तुम पाने को भी आतुर हो । और तुम कोई खतरा नहीं उठाना चाहते । तुम कहते हो । क्या यह संभव है कि मैं बगैर संन्यास लिए आपका शिष्य रह सकूं ? मेरी तरफ से कोई
अड़चन नहीं है । अड़चनें तुम्हारी तरफ से आएंगी । मेरी तरफ से क्या अड़चन है । तुम मजे से शिष्य रहो । विद्यार्थी रहो । कोई भी न रहो । मेरी तरफ से कोई अड़चन नहीं है । मेरी तरफ से तुम मुक्त हो । अड़चन तुम्हारी तरफ से आएगी । तुम बिना संन्यासी हुए शिष्य रहना चाहते हो । अड़चन शुरू हो गयी । इसका मतलब यह हुआ कि मेरे बिना पास आए पास आना चाहते हो । कैसे यह होगा ? पास आओगे । तो संन्यास फलित होगा । संन्यास से बचना है । तो दूर दूर रहना होगा । थोड़े फासले पर बैठना होगा । थोड़ी गुंजाइश रखनी होगी । कहीं ज्यादा पास आ जाओ । और मेरे रंग में रंग जाओ । यह डर तो बना ही रहेगा न ? मेरी बात भी सुनोगे । तो भी दूर खड़े होकर सुनोगे कि कितनी लेनी । और कितनी नहीं लेनी । चुनाव करने वाले तुम ही रहोगे । और काश ! तुम्हें पता होता कि - सत्य क्या है ? तब तो मेरी बात भी सुनने की क्या जरूरत थी ? तुम्हे सत्य का कुछ पता नहीं । तुम चुनाव करोगे । तुम्हारे असत्य ही उस चुनाव में आधारभूत होंगे ।
वही तुम्हारी तराजू होगी । उसी पर तुम तौलोगे । और सदा तुम डरे भी रहोगे कि कहीं ज्यादा पास न आ जाऊं ।
कहीं इन और दूसरे गैरिक वस्त्रधारियों की तरह मैं भी सम्मोहित न हो जाऊं । मुझे तो संन्यासी नहीं होना है । मुझे तो सिर्फ शिष्य रहना है ।
शिष्य का मतलब समझते हो ?
शिष्य का मतलब होता है । जो सीखने के लिए परिपूर्ण रूप से तैयार है । परिपूर्ण रूप से तैयार है । फिर संन्यास घटे कि मौत घटे । फिर शर्त
नहीं बांधता । वह कहता है - जब सीखने ही चले । तो कोई शर्त न
बांधेगे । फिर जो हो । अगर सीखने के पहले ही निर्णय कर लिया है
कि इतना ही सीखेंगे । इससे आगे कदम न बढ़ा सके । तो तुम अपने अतीत से छुटकारा कैसे पाओगे ? तुम अपने व्यतीत से मुक्त कैसे होओगे ? तो तुम्हारा अतीत तुम्हे अवरुद्ध रखेगा । मेरी तरफ से कोई अड़चन
नहीं है । मैं किसी को भी नहीं कह रहा हूं कि तुम संन्यासी हो जाओ ।
जल्दी ही मैं लोगों को समझाने भी लगूंगा कि अब मत होना । क्योंकि आखिर मुझे भी कितनी झंझट लेनी है ।
उसकी सीमा है ।
जल्दी ही मैं लोगो को हताश भी करने लगूंगा कि नहीं । कोई जरूरत नहीं है संन्यास की । मैं किसी को कह भी नहीं रहा हूं कि तुम संन्यास ले लो । और अगर कभी किसी को कहता हूं । तो उसी को कहता हूं । जिसे मैं पाता हूं । जो कि ले ही चुका है । जो सिर्फ प्रतीक्षा कर रहा है । प्रतीक्षा भी इसलिए कर रहा है कि संकोच लगता है । कैसे कहूं कि मुझे संन्यास दे दें । उसको ही मैं कहता हूं । मांगूं कैसे ? पता नहीं । पात्र हूं । या अपात्र हूं ? ऐसा जब मैं कोई व्यक्ति पाता हूं । जो यह
सोचता है कि मांगूं कैसे । पता नहीं । अपात्र होऊं । यह दुविधा मेरे सामने नहीं खड़ी करना चाहता कि मुझे न कहना पड़े । तो चुपचाप
प्रतीक्षा करता है । जब मैं किसी को ऐसे चुपचाप प्रतीक्षा करते देखता हूं ? तभी उसे पुकार कर कहता हूं कि - तू संन्यास ले । अन्यथा मैं नहीं कहता ।
यह प्रश्न पूछा है - विजय ने । विजय परसों दर्शन को आया था । बारबार माला की तरफ देखता था । मगर मैंने नहीं कहा ।
नहीं कहा इसीलिए कि यह सब भाव भीतर बैठे हैं । और विजय मुझसे
परिचित है । कम से कम 20 साल से परिचित है । लेकिन उसके भीतर 1 तरह की अस्मिता है । जिसका मुझे पता है । कठोर
अस्मिता है । वही बाधा है । वही अस्मिता नए नए रूप लेती है । अब
वही अस्मिता कहती है कि - क्या आपके पास शिष्य बनकर नहीं रह सकता ? संन्यास लेना क्या आवश्यक है ? मेरी तरफ से कोई भी बात आवश्यक नहीं है । तुम्हें जितने देर तक चलना हो । चलो । शिष्य
रहना है । शिष्य रहो । विद्यार्थी रहना हो । विद्यार्थी रहो । दर्शक
की भांति आना है । दर्शक की भांति आओ । तुम जितना पी सको । उतना पिओ । मेरी तरफ से बाधा नहीं है कि अगर तुम आगे बढ़ना चाहो । तो मेरी तरफ से उसमें भी बाधा नहीं है । तुम पूछते हो कि - जिस मौन साधना का जन्म मेरे भीतर हुआ है । उसे आगे बढ़ाता जाऊं ? है तो सब आपका ही दिया हुआ । यह भी तुम बड़ी मुश्किल से कह रहे होओगे । यह भी मन मारकर कहा होगा कि - है तो सब आपका ही दिया हुआ । यह भी तुम्हें कहना पड़ा है । नहीं तो प्रसन्नता तुम्हारे
यही कहने में है कि मेरे भीतर जिस मौन साधना का जन्म हुआ है ।
उसे मैं आगे बढ़ाता जाऊं ? क्योंकि वह मेरे अंतस से जागी हुई प्रणाली है । और मुझे लगता है कि इसी का अनुगमन करने में ज्यादा फायदा है । जब तुम जानते ही हो । फायदा किस बात में है ? तो चुपचाप अपने फायदे की बात को माने चलो । जिस दिन फायदा न दिखे । उस दिन पूछना । अभी वक्त नही आया । अभी पूछने का क्षण नहीं आया । जिस दिन हार जाओ । उस दिन पूछना । पूछते क्यों हो । अगर फायदा पता है ? कहीं संदेह होगा । कहीं संदेह होगा कि फायदा हो रहा है कि नहीं हो रहा है ? कि मैं माने जा रहा हूं ? अक्सर ऐसा हो जाता है । 
1 वृद्ध सज्जन कुछ दिन पहले आए । कहा कि 30 साल से ध्यान कर रहा हूं । मंत्र जप करता हूं । मैंने पूछा - कुछ हुआ ? कहा - हुआ क्यों नहीं । मगर चेहरे पर मुझे दूसरा भाव दिखायी पड़ रहा है कि कुछ नहीं हुआ । वह कहते हैं - हुआ क्यों नहीं । तो मैंने कहा - सच कह रहे हैं । थोड़ा सोचकर कहें । आंख बंद कर लें । 1 क्षण सोच लें । कुछ हुआ ? सोचा होगा । एकदम मूढ़ नहीं थे । नहीं तो जिद बांधकर बैठ जाते कि जरूर हुआ है । आंख खोली । और कहा - आपने ठीक
पकड़ा । हुआ तो कुछ भी नहीं है । तो फिर मैंने कहा - आप इतनी जल्दी कह क्यों दिए कि हुआ क्यों नहीं । कहा - वह भी मुश्किल मालूम होता है । 30 साल से मंत्र जाप करो । और कुछ न हो ? तो कैसी अपात्रता मालूम होती है । तो कैसा पापी हूं मैं । फिर 30 साल बेकार गए ? तो 30 साल का अहंकार खंडित होता है । तो अक्सर लोग, जब कुछ भी नहीं होता । तो भी किए चले जाते हैं । क्योंकि अब कैसे छोड़े ? 30 साल नियोजित कर दिए । किसी ने 50 साल किसी विधि मे लगा दिए । अब कैसे छोड़े ?
अभी 1 वृद्ध सज्जन सी. एस. लेविश लंदन से आए । वह गुर्जिएफ के शिष्य । कोई 50 साल । 80 साल उनकी उस । 50 साल गुर्जिएफ की धारा के अनुसार चले । मुझे वहाँ से पत्र लिखते थे कि आना है । दर्शन करना है । गुर्जिएफ के साथ तो नहीं हो पाया । चूक गया । आपको नहीं चूकना है । यहाँ आए । लेकिन वह 50 साल का जो गुर्जिएफ की प्रणाली के साथ चलने का अहंकार है । वह भारी था । कहने लगे कि अब इस उम्र में क्या संन्यास लेना । 80 साल का हो गया । अब इस उम्र में क्या नाव बदलनी ? मैंने कहा - पुरानी नाव ले
जाती हो । तो मैं भी नहीं कहूंगा कि - नाव बदलो । मेरी नाव में वैसे
ही भीड़ है । तुम पुरानी नाव से जा सकते हो । इस नाव में वैसे भी गुंजाइश नहीं है । नाव को रोज बड़ा करने की कोशिश चल रही है । मगर अगर पुरानी नाव कहीं न ले जाती हो । तो 1 दफा सोच लो । वह इतने घबड़ा गए कि भाग गए । यह बात ही सोचकर घबड़ा गए
कि पुरानी नाव से न हुआ हो । फिर उन्होंने आश्रम में दूसरे दिन प्रवेश
ही नहीं किया । आए थे यहां 2-3  महीने रुकने को । सिर्फ 1 चिट्ठी लिखकर छोड़ गए कि मैं जाता हूं । वह 50 साल का भाव कि 50 साल मैंने 1 साधना में लगाए । आदमी का अहंकार न मालूम किस किस तरकीबों से अपने को भरता है ।
मार्ग मिला हो । मजे से चलो । लाभ हो रहा हो । छोड़ना ही मत । फिर क्या मेरे साथ और हानि उठानी है । जब लाभ हो रहा है । फायदा हो रहा है । और तुम्हें पता है कि फायदा किस बात में होगा । तुम
निश्चितमना उसी मार्ग पर चलते रहो । और मुझे यह भी सलाह दी है कि मैं यह भी सोचता हूं कि आपको साधना में 1 शाखा ऐसी भी रहे । जिसमें बिना संन्यास वगैरह लिए भी उस सत्ता तक पहुंचा जाए । क्यों ? जिनकी इतनी हिम्मत नहीं । जो मुझसे पूरे जुड़ सकें । वे कहीं और ही रहें । यहां भीड़ उनकी क्यों मचाना ? यहां मुझे उन पर काम करने दो । जिन्होंने साहस किया है - अपने को पूरा छोड़ने का । इन कमजोरों को यहां क्यों इकट्ठा करना ? इन अपाहिजों को यहां क्यों इकट्ठा करना ? लगड़े लूलों को क्यों इकट्ठा करना ? जिन लोगों ने समर्पण किया है ।
उनको पहुंचा पाऊं । उनकी मंजिल तक । सारी शक्ति उन्हीं पर लगा देनी है । इसलिए चुनूंगा । जल्दी ही उनको चुनता रहूंगा ।
धीरे धीरे उनको छांट दूंगा बिलकुल । जिनसे मुझे लगे कि जिनका साथ कुछ अर्थ का नहीं । जो साथ हैं ही नहीं । जो नाहक ही भीड़भाड़ किए हैं । ताकि मेरी सारी शक्ति और मेरी सारी सुविधा उनके लिए उपलब्ध हो सके । जिन्होंने जोखम उठायी है । उनके प्रति मेरा कुछ दायित्व है ।
उनने जोखम उठायी है । उनके प्रति मेरा कुछ कर्तव्य है । और जिनने कुछ दाव पर नहीं लगाया है । उनसे मेरा क्या लेना देना ? तुम उतनी ही मात्रा में पाओगे । जितना तुम दाव पर लगाओगे । उससे ज्यादा नहीं मिल सकता है । उससे ज्यादा मिलना संभव ही नहीं है ।
आज कुछ नहीं दिया मुझे पूर्व ने । यों रोज कितना देता था ।
छंद छंद हवा के झोंके । प्रकाश गान गंध ।
आज उसने मुझे कुछ नहीं दिया । शायद मेरे भीतर नहीं उभरा ।
मेरा सूरज खोले नहीं मेरे कमल ने । अपने दल । रात बीत जाने पर ।
सूरज तभी दे सकता है । जब तुम अपने कमलदल खोलो । तुम जब अपना हृदय कमल खोलो । तुम अपना हृदय कमल बंद रखो । फिर शिकायत सूरज की मत करना । फिर यह मत कहना कि सूरज ने मुझे कुछ नहीं दिया । तुम लेने के लिए झोली तो फैलाओ । संन्यास वही झोली फैलाना है । तुम कहते हो - मेरी झोली खाली है ।
तुम कहते हो छुपाऊंगा नहीं । सच सच कहे देता हूं - मेरी झोली खाली । यह मेरे हाथ खाली । यह मेरा भिक्षापात्र है । मुझे भर दो । संन्यास का इतना अर्थ है कि मैं निवेदन करता हूं कि मैं खाली रह गया हूं । और मैं खाली नहीं रह जाना चाहता । मैं इस जीवन से भरकर विदा होना चाहता हूं । संन्यास का अर्थ है कि मैं कहता हूं कि मैं अज्ञानी हूं । मुझे किरण चाहिए । लोग हैं । जो कहना चाहते हैं कि - जानता तो मैं भी हूं । लेकिन थोड़ा बहुत आपसे भी मिल जाए । तो कोई हर्जा नहीं । उसको भी सम्हाल लूंगा । उसको भी रख लूंगा । ऐसे तो मैंने पा ही लिया है । कुछ आपसे भी मिल जाए । तो चलो और । थोड़े से ज्यादा भला । जिन्हें पता है । उन्हें मुझसे कुछ भी नहीं मिलेगा । जो ज्ञानी हैं । उन्हें मेरे पास से 1 किरण भी नहीं मिलेगी । इसलिए नहीं कि मैं उन्हें देने में कोई कंजूसी करूंगा । नहीं मिल सकती । क्योंकि वे अपने कमल हृदय को ही नहीं खोलेंगे ।
संन्यास निमंत्रण है अपने को मिटाने का ।
विराट किसी, तरल रूप सिंधु की लहर । आत्मा के मेरे तट तोड़ रही है । तकलीफ हो रही है मगर ।
आश्वासन मिल रहा है एक कि लहर रूप से अरूप को जोड़ रही है ।
पीड़ा तो होती है । जब तुम टूटोगे । तो दुख भी होगा । हृदय क्षार क्षार
होगा । खंड खंड होगा । टूटोगे । तो कोई सुख से कोई नहीं टूटता । यह बात सच है । टूटो तो पीड़ा होती ही है । लेकिन इतना ही आश्वासन बना रहे - तकलीफ हो रही है मगर । आश्वासन मिल रहा है एक कि लहर रूप से अरूप को जोड़ रही है ।
आने दो मुझे । 1 लहर की तरह । खोलो अपना हृदय । तो मैं तुम्हें तोडूं । तोडूं । तो तुम्हें बनाऊं । मारूं । तो तुम्हें जिलाऊं । सूली पर
लटको । तो तुम्हारा पुनरुज्जीवन है । संन्यास सूली है । और पुनरुज्जीवन । ओशो 20 जनवरी 1978 श्री रजनीश आश्रम पूना

23 फ़रवरी 2011

प्रारब्ध से सब कुछ होता है ? या पुरुषार्थ से ।


राजीव कुमार जी । प्रारब्ध से सब कुछ होता है ? या पुरुषार्थ से । कृपया बताये । ये छोटा सा लेकिन महत्वपूर्ण कमेंट किसी सज्जन ने किया था । प्रारब्ध यानी भाग्य और पुरुषार्थ यानी मेहनत आदि कर्म से सब हासिल करना ।..इसके उत्तर के लिये हमें पुरुषार्थ से पहले के बिंदुओं पर विचार करना होगा । पुरुषार्थ को मैंने पहले इसीलिये लिया है कि मेहनत से ही सब हासिल होता है । यह सर्वमान्य सिद्धांत है । तो आईये पुरुषार्थ से ही बात शुरू करते हैं । अब सवाल ये है कि पुरुषार्थ कौन करेगा ? और कैसे करेगा ? इसके दो उत्तर हैं । या तो शरीर से मेहनत करके धन कमायें । और व्यापार आदि में लगाकर उन्नति करे । या धन उसे विरासत में मिला हो । उससे आगे बल बुद्धि से विकास करे । या शरीर से मेहनत करता हुआ दैनिक । साप्ताहिक या मासिक आमदनी से खुद और अपना परिवार आदि पाले । मेरी नजर में तो पुरुषार्थ यही हुआ ।
यानी अर्जित धन । विरासत में मिला धन । या स्व स्वस्थ शरीर का उपयोग करना ।..अब यहीं पर विचार करें । विरासत में मिला धन । और स्वस्थ शरीर । ये हरेक किसी को नहीं मिलते । यदि ये एक समान नियम से सबको मिले होते । तो निसंदेह उत्तर यही था कि पुरुषार्थ से सब कुछ होता है । इसलिये सवाल तो यहीं पर खङा हो जाता है कि किसी को स्वस्थ और किसी को रोगी या कष्टदायी शरीर किस नियम से मिला है ? जाहिर है । पूर्वजन्मों के कर्मों से बने कर्मफ़ल रूपी भाग्य से । अभी आपने शरीर से पुरुषार्थ शुरू भी नहीं किया कि पिछला भाग्य यानी स्वस्थ शरीर आगे आगे चलने लगा । अभी आपने व्यापार शुरू भी नहीं किया कि विरासत में मिला भाग्य रूपी धन आगे है । चलिये कोई इंसान कमाकर शुरू करता है । लेकिन कमाने में सफ़लता भी भाग्य से ही मिलती है । करोङों लोग जी तोङ मेहनत करते है । पर पेट भर के निश्चिंताई की रोटी नहीं खा पाते । और कुछ लोग मामूली सी चहलकदमी जैसा काम करके मक्खन मलाई से खाते हैं । तो ये क्या है ? ये इंसान का अर्जित भाग्य ही तो है । कहाबत है । भाग्य फ़ले । तो सब फ़ले । भीख बनज व्यापार । भीख भी भाग्य से ही मिलती है । नहीं तो ..आगे देखो बाबा ।
अब इस पर बात करते हैं कि भाग्य आखिर क्या बला होती है ?
बङी सरल बात है । कोई भी आसानी से समझ ही लेगा । हमारे कर्म तीन प्रकार के हो जाते हैं ।
1 संचित कर्म 2 प्रारब्ध यानी कर्मफ़ल रूपी भाग्य 3 क्रियमाण ।
1 संचित कर्म - सीधी सी बात है । जो कर्म हम पूर्वजन्म या अतीत में कर चुके हैं । वे ही एकत्र होकर संचित कर्म कहलाते हैं । 3 क्रियमाण ..जो कर्म हमारे द्वारा वर्तमान में होते हैं । वे क्रियमाण कहलाते हैं । आगे की बात महत्वपूर्ण है । हमारा अच्छा या बुरा 2 प्रारब्ध यानी भाग्य पहले के संचित कर्मों से बनता है । जाहिर है कि प्रारब्ध तो पका हुआ कर्मफ़ल रूपी भाग्य ही है । और क्रियमाण तो हमने अभी किये भी नहीं । क्रियमाण करने के बाद उनका बीज भाग्य की जमीन पर बोया जायेगा । बीज समय पर अंकुरित होगा । पौधा बनेगा । वृक्ष बनेगा । तब कर्म अनुसार अच्छा या बुरा भाग्यफ़ल उसमें लगेगा । तब वो आपके जीवन में घटित होगा । इसलिये अभी के पुरुषार्थ से आगे का भाग्य बनता है । और पिछले पुरुषार्थ से अभी का भाग्य है ।
अब जबसे ये सृष्टि बनी है । हर जीव के करोङों से भी अधिक जन्मों के कर्म संचित हो चुके हैं । अतः इस क्षणभंगुर जीवन के लिये उसकी गति के अनुसार उन्हीं संचित कर्मों से थोङा सा अच्छा और बुरा भाग्य उसको दे दिया जाता है ।
अब यहीं पर बात बेहद महत्वपूर्ण हैं । इसको आप जीवन के उदाहरण से समझें । मान लीजिये । एक बाप के पाँच पुत्र अलग अलग अच्छे बुरे स्वभाव वाले हैं । अब बाप यानी भगवान पुत्र यानी जीव और बाप द्वारा दिया जाने वाला धन यानी भाग्य । जाहिर है । बाप देगा तो सभी को । पर स्वभाव अनुसार ही देगा । अच्छे को अधिक महत्व देगा । बुरे को कम महत्व देगा । उदासीन निष्क्रिय को भी कम महत्व देगा ।
लेकिन चलो । बाप ने भाग्य धन का बंटवारा कर दिया । अब आगे आपको इसे क्रियमाण करना है । इसी क्रियमाण या पुरुषार्थ से अच्छा और भी अच्छा बन सकता है । पतनशील होकर खुद का विनाश भी कर सकता है । साधारण बने रहकर भी जिंदगी काट सकता है । यह सब उसी पर निर्भर है । वहीं बुरे को भले ही अपने पहले के इतिहास की वजह से कम मिला है । पर वह अपने को सुधारकर अरबपति बन सकता है ।
तो संचित से मिले हुये प्रारब्ध के द्वारा ही क्रियमाण कर्म यानी पुरुषार्थ आदि द्वारा इंसान अपने आगे का अच्छा भला तय करता है । जैसा कि उसका अभी का जीवन अतीत की फ़सल पर चल रहा है । अभी बोई गयी फ़सल तो समय पूरा होने पर । पकने । कटने आदि के बाद ही लाभ देगी ।
इसलिये बन्धु ये तीनों प्रकार के कर्म अपना असर इंसान पर दिखाते हैं । संचित में सुधार या पापकर्मों को नष्ट करना । सच्ची भक्ति से होता है । साधारण जीवन में इसको नहीं कर सकते । साधारण जीवन में आप प्राप्त प्रारब्ध और स्वयँ के पुरुषार्थ से ही बदलाव कर सकते हैं । इसीलिये कहा गया है कि मेहनत ( पुरुषार्थ या क्रियमाण ) भाग्य ( पूर्वकर्मों का फ़ल ) और प्रभुकृपा ( संचित कर्म के बुरे असर से बचना या अच्छे से लाभ ) इन तीनों के संयोग से ही इंसान राजाओं की तरह जी सकता है । वरना कीङे मकोङों की सी जिंदगी तो इंसान बिना प्रयत्न के सदियों से जी ही रहा है ।

20 फ़रवरी 2011

राधास्वामी वाला पंचनामा कालपूजा नहीं है ।

राजीव कुमार जी नमस्ते । मैंने सिर्फ़ एक बार आपसे ई मेल द्वारा बात की थी । मैं हरि....? से हूँ । आपका रेगुलर रीडर हूँ । पहले भी एक बार आपने मेरी शंका दूर की थी । जब मैंने राधास्वामी के पंचनामा एन्ड आपके महामन्त्र ( कबीर जी वाले । ढाई अक्षर वाले नाम ) के बारे में पूछा था । अब फ़िर मेरी प्राब्लम साल्व करिये । असल में ये प्राब्लम मेरी अकेले की नहीं है । और भी बहुत से लोगों की है । अब मैं सीधा प्राब्लम पर आता हूँ ।........? में एक संस्था है । गपोढी आश्रम । जिसे चलाने वाले बाबा का नाम है । ठगत गुरु झूठालाल जी महाराज । ( आप बेशक अपने आर्टीकल में इस आश्रम या बाबा का नाम मत लिखना । ) मैंने इनके आश्रम की बुक पढी थी । किसी से लेकर । Q 1 उसमें ये दो नामों की बात करते हैं । 1 पहला सतनाम और दूसरा 2 सारनाम । इनके अकार्डिंग दोनों अलग हैं ? पहले सतनाम की दीक्षा लेनी पङती है । फ़िर सारनाम की दीक्षा लेनी पङती है । Q 2 सारनाम के बिना सतनाम बेकार है । Q 3 ये ॐ सोहंग को सतनाम बता रहें हैं । ये बात इनकी ही बुक में लिखी है । Q 4 इनके मुताबिक इसको लेकर फ़िर योगयात्रा अनुसार सारनाम दिया जाता है । Q 5 इनके मुताबिक राधास्वामी वाला पंचनामा कालपुरुष की पूजा है । वैसे इनकी बुक में हिस्ट्री आफ़ क्रियेशन..मीन्स सृष्टि रचना का जिक्र वैसा ही है । जैसा राधास्वामी बताते हैं । मीन्स पहले अनामी पुरुष था । फ़िर कैसे सतलोक बना । फ़िर कैसे क्या हुआ । ( आप सब जानते ही होंगे । ) Q 6 ये बाबाजी जो बाकी कबीरपंथ चल रहे हैं । उनको फ़ेक ( जाली ) बता रहे हैं । Q 7 इनके मुताबिक मोक्ष देने वाला नाम सिर्फ़ इनके पास है ??? Q 8 इनके मुताबिक कबीर जी ने मार्च 1997 में खुद दिन में 10 बजे इनको दर्शन दिये । और अंतर्ध्यान हो गये । Q 9 इनके मुताबिक अनामी पुरुष ही कबीर हैं ? अनामी पुरुष का नाम कबीर देव या कबीर साहिब है ? इनके मुताबिक कबीर ही सतपुरुष या निरंकार हैं ? इनके मुताबिक सतलोक पहुँचकर कबीर के साक्षात दर्शन होते हैं ? Q 10 इनके मुताबिक कबीर वाले नाम के अलावा बाकी सब पूजा नरक ले जाती है । आप बतायें । Q 11 क्या अगर मैं इस बाबा के पास ना जाऊँ । तो क्या मैं नरक में जाऊँगा ? एन्ड फ़िर 84 लाख में । एन्ड क्या फ़िर जाकर मुझे मानव शरीर मिलेगा ?.. मैंने इत्तफ़ाक से आज दोपहर आपके ब्लाग का न्यू आर्टीकल पढा । ( जब मैं दोपहर को घर लंच करने आया । ) उसमें आपने लिखा था कि वेद कुछ और बात करते हैं । एन्ड गीता कुछ और बात करती है । आपने ये भी लिखा था कि कृष्ण जी कालपुरुष के अवतार थे । इन दो बातों से मुझे ये भी याद आ गया कि जिस बाबा की मैं बात कर रहा हूँ । उसकी बुक में गीता को 4 वेदों का सार बताया जा रहा है ?? Q 12 एन्ड कृष्ण जी को विष्णु जी का अवतार ? एन्ड ये भी लिखा था कि Q 13 कालपुरुष किसी प्रेतात्मा की तरह कृष्ण जी में घुसकर गीता का ग्यान दे गया ? इनकी बुक में ये भी लिखा था कि Q 14 कृष्ण जी ने अर्जुन के सामने शरीर त्यागा । तब अर्जुन के मन में ये विचार थे कि " कृष्ण पापी और कपटी है । " Q 15 इनके अनुसार जो गीता आजकल पढने को मिलती है । उसको महर्षि वेदव्यास से कालपुरुष ने बाद में ( कृष्ण जी के बाद ) आकर लिखवाया । Q 16 इनके अनुसार महाभारत युद्ध के बाद गोपियों को जंगली लोग उठाकर ले गये ??.. राजीव जी मुझे ये सब पढकर हैरानी बहुत हुयी । कभी कभी तो मुझे ये भी लगता है कि आजकल सब साले कबीर का नाम लेकर " हिन्दूधर्म " के खिलाफ़ लिख रहे हैं । हर कोई नया कबीर बना बैठा है ? आजकल हर कोई कबीर कबीर कर रहा है । Q 17 सोसाइटी का कोई वर्ग कबीर को कवि ( पोइट ) बोलता है । कोई कबीर को भगत बोलता है । कोई कबीर को संत बोलता है । कई कबीर को डायरेक्ट परमात्मा या अनामी पुरुष बोलता है । आखिर ये कबीर चीज क्या हैं ? मैंने Q क्वेश्चन किसी और को पूछने की बजाय सिर्फ़ आपसे पूछा । क्योंकि मुझे आपकी बातों पर विश्वास है । एन्ड आपकी बातों से मुझे सोल्यूशन मिलता है । इसलिये इस पूरे मैसेज को मैंने ई मेल द्वारा भेजा है । इसको ध्यान से पढकर इसको नेक्स्ट आर्टीकल द्वारा साल्व करें । ये कनफ़्यूजन सिर्फ़ मेरी नहीं । ये शायद उन सब लोगों की है । जो मेरी तरह आम इंसान हैं । एन्ड अपने परिवार की जिम्मेदारी के साथ साथ किसी सही रास्ते की तलाश में हैं । जो आत्मकल्याणकारी हो । मुझे आपसे आशा है कि आप इस बात को बेहतर से बेहतर तरीके से समझाने का प्रयास करेंगे । धन्यवाद । ( एक नियमित पाठक । ई मेल से )
* अपरिहार्य कारणों से आजकल मैं ब्लाग्स के लिये बहुत कम समय दे पा रहा हूँ । मेरे नये लेखों का प्रकाशन भी ना के बराबर है । इसलिये आपके प्रश्नों का उत्तर भी समय से नहीं दे पा रहा । आपकी इस असुविधा के लिये मुझे दिली खेद है ।
ANS 1..A नाम तो वास्तव में सिर्फ़ एक ही है । जो निर्वाणी है । और ध्वनि रूप है । पर अलग अलग गुरु के अनुसार इसकी मंजिल अलग अलग हो जाती है । गुरु से मिले नाम की मंजिल उस गुरु की पहुँच के अनुसार ही होगी । पर सतगुरु से मिला नाम अंत तक ले जायेगा । भले ही ये साधना साधक की परिस्थिति के अनुसार दो या तीन जन्म की हो जाय । अगर साधक सच्चाई और लगन से भक्ति में समर्पित रहा । तो परम लक्ष्य को प्राप्त कर लेगा ।..ग्यान बीज बिनसे नहीं । होवें जन्म अनन्त । ऊँच नीच घर ऊपजे । होये संत का संत । B आत्मग्यान में पहली दीक्षा हँसदीक्षा होती है । इसको ही बहुत कम साधक पास कर पाते हैं । हँस से उठ जाने के बाद परमहँस दीक्षा होती है । इसके ऊपर की बात अनुभव से पता चलती है । इसको मौखिक रूप से बताना नियम विरुद्ध है । हँस पास कर लेने का प्रमाण या चिहन ये है कि साधक की शरीर से निकलने की स्थिति बनने लगती है । जिसको सच्चे गुरु साधक द्वारा बताये बिना ही जान जाते हैं ।
ANS 2 इस सृष्टि की कोई भी चीज । कोई भी कार्य । कोई भी क्रिया बेकार नहीं है । कबीर की पुस्तकों को थोङा अधिक गहनता से अध्ययन करने से लोग सारनाम की बात करने लगते हैं । पर सारनाम बातों का खेल नहीं है । सारनाम क्या है ? यह इस अखिल सृष्टि का परम गोपनीय रहस्य है । जो सिर्फ़ सतगुरु की कृपा से ही जाना जा सकता है ।
ANS 3 ॐ शरीर को ( अध्यात्म की टेक्नीकल भाषा में ) कहा जाता है । सोहंग को भी जिस प्रकार आजकल तमाम मंडल प्रचलित कर रहे हैं । उसे देखकर सिर्फ़ हँसी आती है । जिस तरह ॐ से शरीर बना है । उसी तरह सोहंग से मन बना है । सोहंग की रगङ से मन समाप्त हो जाता है । ओहम से काया बनी । सोहम से मन होय । ओहम सोहम से परे । बूझे विरला कोय । वैसे सोहंग भी निर्वाणी है ।
ANS 4 मैं फ़िर कहूँगा । सारनाम तो बहुत बङी बात है । परम लक्ष्य ही है । निरंकार ररंकार को भी ठीक से ?? बताने वाले गुरु । शिष्य को वहाँ तक पहुँचाने वाले गुरु भी ( जो फ़ेमस हैं ) मेरी नजर में नहीं आये । मौखिक बातें और प्रक्टीकल ग्यान में जमीन आसमान का अंतर है भाई ।
ANS 5 जैसी उन्होंने बतायी । उस अनुसार तो राधास्वामी वाला पंचनामा कालपूजा नहीं है । इसमें ऊँचाई प्राप्त कर लेने के बाद साधक काफ़ी कुछ प्राप्त कर लेता है । लेकिन एक बहुत बङे रहस्य के तहत ये बात कुछ ठीक भी है । कैसे..अद्वैत वैराग कठिन है भाई । अटके मुनिवर जोगी । अक्षर ही को सत्य बताबें । वे हैं मुक्त वियोगी । अक्षरतीत शब्द इक बांका । अजपा हू से । है जो नाका । जो जब जाहिर होई । जाहि लखे जो जोगी । फ़ेरि जन्म नहीं होई ।..अक्षर ज्योति को कहते हैं । इसी ज्योति पर समस्त योनियों के शरीर बनते हैं । अक्षरतीत यानी इससे परे जाने पर जो स्थिति है । वही आवागमन से मुक्ति दिलाती है । और ये भी सच है । पंचनामा वहाँ नहीं ले जा पाता । फ़िर भी पंचनामा को अच्छा रमण करने पर यह कालपूजा नहीं है । पंचनामा के सच्चे गुरू भी शुरूआत में ही थे । ये भी सत्य है ।
ANS 6 अगर आप कबीर धर्मदास संवाद की 100 रुपये मूल्य की पुस्तक । अनुराग सागर । एक बार पढ लो । तो ये बाबा ? और वो बाबा ? सबकी असलियत पता चल जायेगी । पर ये सच है कि तमाम कबीरपँथियों में भारी मतभेद है । और वे तमाम ऐसी बात करते हैं । जिनका कबीर साहेब ही विरोध करते थे । ऐसा क्यों है ? और आपके पत्र वाले बाबा की सभी बातों का रहस्य ? कबीर ने अनुराग सागर । में स्पष्ट कर दिया है ।
ANS 7 बङे बङाई ना करें । बङे न बोले बोल । हीरा मुख से ना कहे । लाख टका मेरो मोल ।..सच्चाई छिप नहीं सकती । झूठे उसूलों से । खुशबू आ नहीं सकती । कभी कागज के फ़ूलों से । ऐसा तो कभी कबीर ने भी नहीं कहा था । जबकि उन्होंने कितने चमत्कार किये । उनका जन्म न होकर वे प्रकट हुये थे । और जीवों के मोक्ष के लिये ही भेजे गये थे । उन्होंने कहा । परमात्मा की सच्चे नाम की भक्ति करो । उससे मोक्ष मिलेगा । उनके कहने में कहीं मैं भाव नहीं था ।
ANS 8 हा हा हा । कबीर ने मुझे भी दर्शन देकर कहा था कि ये क्या ऊल जुलूल बोलता रहता है । तू इसको समझाता क्यों नहीं । मैंने जबाब दिया । भैंस के आगे बीन बजाये । भैंस खङी पगुराय । अन्धे के आगे रोये । अपने नैना खोये ।
ANS 9 इनसे पूछो । जब वो अनामी ( जिसका नाम न हो ) ही हैं । तो कबीर कैसे हुये ? एन्ड आल इज ऊटपटांग इन दिस क्वेश्चन ।
ANS 10 ये बात बिल्कुल ही गलत है । स्वर्ग नरक इंसान के कर्मों । दान । पुण्य । तीर्थ । आचरण । द्वैत भक्ति के सही गलत के आधार पर मिलते हैं ।
QNS 11 आप नरक जाओ । या न जाओ ? ये आगे आपके कर्मफ़ल आदि ही फ़ैसला करेंगे । पर ऐसे बाबा ? झूठ ग्यान से इंसान को भृमित करने के कारण वहाँ अवश्य जायेंगे । किसी को गुमराह करना बहुत बङा अपराध है । भला किसी का कर न सको । तो बुरा किसी का मत करना । जबकि लोग आप पर विश्वास करते हों ।.. हाँ एक बात है । कहने वाला अगर वह करके भी दिखाता है । जो वह कह रहा है । फ़िर तो बात सत्य है । मेरी जानकारी के अनुसार । एक चकृ पर का भी । पहुँचा हुआ गुरू । दीक्षा की छह महीने में ही अंतर्यात्रा में इतने स्थान अवश्य दिखा देता है । जितने एक किमी के बीच आते हैं । ये आँख बन्द होने पर भी रंगीन टीवी की तरह दिखते हैं । सबसे बङी बात । आप वहाँ के किसी पुराने और अच्छे शिष्य से पूछना कि आपको अब तक ध्यान के क्या अनुभव हुये ? बस दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा ।
ANS 12 विष्णु का चाय नाश्ता ही देवताओं के साथ अक्सर होता है । और इतना तो सभी जानते हैं कि राम का अगला अवतार ही कृष्ण का हुआ था । तो फ़िर प्रथ्वी जब रावण जैसे असुरों के भार से व्याकुल होकर देवताओं के पास रक्षा के लिये गयी । तो सभी देवता इसके लिये बृह्मा शंकर आदि के पास इकठ्ठे हुये । तो क्या ये देवता विष्णु को भी नहीं जानते थे ?? जहाँ नारद जी नारायण नारायण करते अक्सर पहुँच जाते थे । सबूत के लिये आगे पढिये ।
बाढ़े खल बहु चोर जुआरा । जे लंपट परधन परदारा । मानहिं मातु पिता नहिं देवा । साधुन्ह सन करवावहिं सेवा । जिन्ह के यह आचरन भवानी । ते जानेहु निसिचर सब प्रानी । अतिसय देखि धर्म कै ग्लानी । परम सभीत धरा अकुलानी । गिरि सरि सिंधु भार नहिं मोही । जस मोहि गरुअ एक परद्रोही । सकल धर्म देखइ बिपरीता । कहि न सकइ रावन भय भीता । धेनु रूप धरि हृदय बिचारी । गई तहाँ जहँ सुर मुनि झारी ।
निज संताप सुनाएसि रोई । काहू तें कछु काज न होई ?? सुर मुनि गंधर्बा मिलि करि । सर्बा गे बिरंचि के लोका । संग गोतनुधारी भूमि बिचारी । परम बिकल भय सोका । बृह्मा सब जाना मन अनुमाना । मोर कछू न बसाई ?? जा करि तैं दासी सो अबिनासी । हमरेउ तोर सहाई ?? बैठे सुर सब करहिं बिचारा । कह पाइअ प्रभु करिअ पुकारा ? पुर बैकुंठ जान कह कोई ? कोउ कह पयनिधि बस प्रभु सोई ? जाके हृदय भगति जसि प्रीति । प्रभु तहँ प्रगट सदा तेहिं रीती । तेहि समाज गिरिजा मैं रहेऊ । अवसर पाइ बचन एक कहेऊ ।
हरि ब्यापक सर्बत्र समाना ? प्रेम ते प्रगट होहिं मैं जाना ? देस काल दिसि बिदिसिहु माहीं ? कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाहीं ? अग जगमय सब रहित बिरागी । प्रेम तें प्रभु प्रगटइ जिमि आगी । मोर बचन सब के मन माना । साधु साधु करि बृह्म बखाना ।
तब सभी देवता शंकर के कहे अनुसार स्तुति करने लगे । उस स्तुति में उन्होंने बहुत सी अन्य बातों के अलावा ये भी कहा । सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा । जा कहु कोउ नहिं जाना ??? ये भगवान कौन से हैं ? जिन्हें सरस्वती । वेद । शेषनाग । रिषी आदि भी नहीं जानते थे । विष्णु को तो सब देवता अच्छी तरह जानते थे । तब कालपुरुष ने प्रकट होने के बजाय आकाशवाणी से यह बात कही ।
नारद बचन सत्य सब करिहउ । परम सक्ति ? समेत अवतरिहउ ??? अधिक विस्तार से लिखना संभव नहीं है । यह बात रामचरितमानस के बालकाण्ड में अर्थ द्वारा पढ लें ।
ANS 13 जब कालपुरुष ही अपने दूसरी भूमिका में राम और तीसरी भूमिका में श्रीकृष्ण होता है । तो उसे प्रेतात्मा की तरह कृष्ण के शरीर में घुसने की क्या आवश्यकता है ? ये इन ग्यानी जी से कोई पूछे ।
ANS 14 ये अफ़वाह और किवदंती ही है । जिसका सत्य से कोई वास्ता नहीं । दरअसल किसी भी ग्यान में आजकल सत्य के स्थान पर झूठ अधिक प्रचलित है ।
ANS 15 गीता वेदव्यास ने ही लिखी है । प्रश्न की तरह की बात अफ़वाह है । कालपुरुष ही अवतार रूप में श्रीकृष्ण होता है । उसे ये छोटे मोटे नाटक की जरूरत नहीं होती । सात दीप । नौ खन्ड का मालिक या राष्ट्रपति कालपुरुष ही इस त्रिलोकी का सर्वाधिक बलबान है । उसे ऐसे टटपुंजुए काम की आवश्यकता नहीं होती । आदिशक्ति । सीता या राधा उसकी पत्नी है । कालपुरुष के बाद त्रिलोकी में इससे ( आदिशक्ति से ) भी बङी कोई शक्ति नहीं है । वेदव्यास भी साधारण पुरुष नहीं थे ।
ANS 16 लगभग सभी को मालूम । ये बात एकदम सत्य है । भीलन लूटी गोपिका । वही अर्जुन वही बाण । दरअसल अर्जुन को महाभारत युद्ध जीतने के बाद अपनी ताकत और सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने का घमन्ड हो गया था ।.. महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण के अर्जुन के रथ से नीचे उतरते ही रथ एक विस्फ़ोट के साथ उङकर नष्ट हो गया । अर्जुन ने आश्चर्य से श्रीकृष्ण की तरफ़ देखा । तब श्रीकृष्ण ने कहा । ये रथ तो जाने कितने पहले ही भीष्म पितामह । कर्ण । द्रोणाचार्य..आदि महाबलियों के प्रहार से नष्ट हो चुका था । ये सिर्फ़ मेरे बैठने से अब तक बचा हुआ था । फ़िर भी अर्जुन का गर्व पूरी तरह दूर नहीं हुआ । उसी गर्वहरण की भीलों द्वारा गोपिकाओं का हरण । बूढे हनुमान जी द्वारा पूँछ हटाने की कहना आदि कई बातें हुयी ।
ANS 17 कबीर ये सब तो थे ही । परम सत्य को जानने वाले भी थे । अंतिम लक्ष्य तक पहुँचे । पहुँचे हुये सतगुरु थे । कबीर के बारे में ये सब बातें स्थूल रूप में । आपके प्रश्न के अनुसार सत्य ही है । पर परमात्मा की ये लीला अति गोपनीय और विलक्षण है ।..क्योंकि कबीर जब यहाँ थे । तब उन्होंने स्वयँ एक बार कहा था ।.. कबीर कबीर कौन कबीर ? काया में जो रमता वीर । कहते उसका नाम कबीर । अतः इसके सीक्रेट प्वाइंट को सरल शब्दों में क्लियर करना संभव नहीं है ।

12 फ़रवरी 2011

मेरे जीवन का लक्ष्य कुछ और ही है ??



1 - ZEAL । पोस्ट । क्या आपने भगवान को देखा है ? पर ।
राजीव जी । बहुत बार ईश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन कर चुकी हूँ । सिर्फ कहती नहीं हूँ । किसी से । लोग यकीन नहीं करेंगे । अक्सर अपने बगल में बैठा पाती हूँ ईश्वर को ।
RAJEEV - दिव्या जी आपकी बात पर मैं सिर्फ़ हसूँगा । क्योंकि इस ब्लाग जगत में । और इस तमाम जगत में । ऐसे भी तमाम लोग हैं ।..जो हम आप जैसे आस्तिक लोगों को मानसिक रोगी कहते हैं । और डाक्टर को दिखाने की । इलाज कराने की सलाह देते हैं । पर आप तो स्वयँ ही डाक्टर हैं । और इंशाअल्लाह स्वस्थ भी हैं । मेरा मतलब । जहनी तौर पर । हा हा हा । तो आप किस डाक्टर को दिखायेंगी ??.. क्योंकि आपकी ये कमेंट साधारण बात नहीं कह रही । इसलिये मैंने इसे लेख में शामिल कर लिया । मेरे ब्लाग्स का पूरा मैटर ही यह कहता है कि ईश्वर के दर्शन सहज हो सकते हैं । पर आप में इसकी लगन हो । और आप सहज हों ??.. मम दर्शन फ़ल परम अनूपा । जीव पाय जब सहज ?? सरूपा ।.. शंकर सहज ?? सरूप संभारा । लागि समाधि अखंड अपारा ।
2 - नमस्कार राजीव जी । आपसे बात करके बहुत अच्छा लगा । जैसा कि मैंने कहा कि आपके नये ब्लाग्स पर नीचे कुछ कन्याओं की फ़ोटो आ रही हैं । ( शायद एडवर्टिजमेंट है । ) वो आपके ब्लाग्स के प्रति लोगों के आदर भाव को आहत करेंगी । ऐसा मेरा सोचना है । क्योंकि मेरी नजरों में तो बहुत इज्जत है । आपके सभी ब्लाग्स की । कुछ बुरा लगा । तो माफ़ कीजियेगा । आपसे और भी बात करनी थी । फ़ोन से । पर संकोचवश कह नहीं पाया । इसलिये मेल में लिख रहा हूँ ।
मैं यहाँ चंडीगढ में एक प्राइवेट जाब करता हूँ । मेरी फ़ैमिली में 6 मेम्बर है । जिनकी सारी जिम्मेबारी मेरे ऊपर ही है । मेरी उमर इस 6 अप्रेल को 30 पूरी हो जायेगी । और 31 वां साल शुरू हो जायेगा । लेकिन मैं अभी तक कुँवारा ही हूँ । और ना ही भविष्य में विवाह करने का कोई इरादा है मेरा । क्योंकि पता नहीं मेरा मन आजकल के लङकों की तरह इधर उधर नहीं भटकता । ना मैं किसी प्रकार का नशा करता हूँ । ना कोई शौक है । बस भूख है । तो एक ही चीज की कि खुद को जानना । उस परमात्मा को जानना ।
ऐसा मैं नहीं सोचता । बस मेरे अन्दर से आवाज आती है कि मैं सांसारिक भोग के लिये नहीं आया हूँ । कुछ अलग है ?? जो मुझे पूरा करना है । मेरे जीवन का लक्ष्य कुछ और ही है ?? जो मुझे नहीं पता ?? पर मुझे लगता है कि कुछ अलग है । अब वो क्या अलग है ?? वही जानना है मुझे ।

आपके सभी ब्लाग्स मैंने अच्छी तरह से अध्ययन किये हैं । और आखिर में मैं इसी निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि आपको मैं अपने मार्गदर्शक के रूप में देखता हूँ । जो मुझे सही मार्ग बताकर मेरा भला कर सकते हैं ।
क्योंकि मुझे आज तक कोई ऐसे सच्चे संत नहीं मिले । जिन्हे मैं अपना गुरु कह सकूँ ।
अब आप सोच रहे होंगे कि इतनी छोटी उमर में ये कैसे विचार हैं ? ( शायद मुझे पागल समझें । ) पर यकीन मानिये । ये मेरे शरीर में मौजूद आत्मा के विचार हैं । जो मुझे प्रेरित कराती है । सही दिशा में जाने के लिये ।
मेरे साथ कई बातें अजीव हुयीं हैं । जिनके होने का मतलब मुझे समझ नहीं आया कि मेरे साथ ही क्यों हुयी .....??? किसी अजीव सी शक्ति का आभास होता है । अपने आसपास । जो मुझे समय समय पर चेताती रहती है कि सही क्या है । और गलत क्या है । और कई प्रकार से मुझे संदेश दे देती है । ( पूरा विवरण मैं अपनी नेक्स्ट मेल में दे पाऊँगा । )
अभी आफ़िस में हूँ । और समय के अभाव के कारण सब लिख पाना मुश्किल है । इसलिये क्षमा कीजियेगा ।
धन्यवाद । ( एक नियमित पाठक । चन्डीगढ से । ई मेल से । )
RAJEEV - आपके विचार जानकर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ । और न ही मैंने आपको पागल समझा । दरअसल ये दोनों प्रतिक्रियायें साधारण लोगों की हो सकती हैं ।.. हमारा तो मिलना जुलना ही ऐसे लोगों से होता है । जो शाश्वत सत्य की तलाश में हैं । आत्मा को जानना चाहते हैं । परमात्मा को जानना चाहते हैं । कई संत अपने बचपन की अवस्था से ही वैरागी थे । जिनमें विवेकानन्द जी । रामकृष्ण परमहँस । श्री स्वरूपानन्द जी । श्री अद्वैतानन्द जी । श्री शिवानन्द जी । आदि शंकराचार्य जी आदि बहुत से हैं ।.. सनक । सनन्दन । सनत । कुमार.. आदि तो बृह्म मन्डल के वैरागी रहे ।.. वास्तव मैं ये जीवन । नाटक के उस परदे की तरह है । जिसमें परदे के इस पार । स्टेज पर आते ही हम जीवन का रोल अदा करते हैं । और परदे के उस पार । पीछे जाते ही हमें किरदार का मेकअप आदि भारी और उबाऊ लगता है । तब उसे उतारकर हम निजत्व में सुख महसूस करते हैं । और आपको इस निजत्व का कुछ कुछ बोध होता है । वास्तव में सभी के जीवन का लक्ष्य खुद को जानना ही है । पर वे इस संसार रूपी चार दिन के मेले की चकाचौंध से चौंधिया कर भृमित हो गये हैं ।