27 जून 2010

मन और शरीर के दस वायु..

हमारे शरीर में दस प्रकार की वायु होती है । जिनमें पाँच प्रमुख होती हैं ।
1--प्राण वायु--इसका कार्य स्वांस को गति देना है । इसका स्थान दिल है । इसका देवता सूर्य है । इसकी गति बारह अंगुल बाहर तक है ।इसका स्वभाव गर्म है । और इसका स्वरूप लाल है ।
2--अपान वायु--इसका कार्य मल त्याग करना है । इसका स्थान गुदा है ।इसका देवता गणपति है । इसकी गति बाहर से अन्दर है । इसका स्वभाव ठंडा है । और इसका स्वरूप शीतल है ।
3--समान वायु--इसका कार्य शरीर में रस पहुँचाना है । इसका स्थान नाभि है । इसका देवता सम्पति है ।
4--उदान वायु--इसके द्वारा ब्रह्मकुन्ड से अमृत प्राप्त करके । समान वायु तक पहुँचाता है ।इसका स्थान गले से चोटी तक है । और इसका देवता इन्द्र है ।
5--व्यान वायु--इसका काम रस को निर्मल करके पहुँचाना और हरकत करना है ।पूरा शरीर इसका स्थान है ।और दिग्पाल इसका देवता है ।
6--करकल वायु--इसका काम भोजन को हजम करना है ।शरीर में इसका स्थान पेट है । और इसका देवता मन्द या जठराग्नि होता है ।
7--कूरम वायु--इसके द्वारा आँख की पलकें खुलती और बन्द होती हैं । शरीर में इसका स्थान आँख है। और इसका देवता ज्योति अथवा प्रकाश है ।
8---नाग वायु--इसका कार्य डकार लाना है । इसका स्थान गला है । तथा इसका देवता शेष है ।
9---देवदत्त वायु--इसके द्वारा जम्हाई आती है । स्तन में दूध पैदा होता है । शरीर में इसका स्थान छाती के नीचे है । और इसका देवता कामदेव है ।
10---धनंजय वायु--मृत्यु के पश्चात शरीर को फ़ुलाना इसका कार्य है । और शरीर की शोभा आदि इसके अन्य कार्य है ।
इस प्रकार ये दस वायु होते हैं । जिनके बारे में संक्षेप में लिखा गया है । आईये थोङा सा मन के बारे में भी जानें । मन इस शरीर का राजा और सामान्य जीव अवस्था में नियंत्रणकर्ता है । यह अष्टदल कमल पर चक्कर काटता रहता है । और विषय विकारों में फ़ँसा होने के कारण एकाग्र नहीं होता । विकारों में प्रवृति होने के कारण यह जीव को भक्ति मार्ग की और मुङने नहीं देता । और नाना प्रकार के पाप कर्मों में उलझाये रखता है । अष्टदल कमल की जिस पत्ती पर ये होता है । जीव को उसी के अनुसार कर्म में प्रवृत्त करता है । अष्टदल कमल की ये आठ पत्तिंया कृमशः1- काम 2- क्रोध 3- लोभ 4-मोह 5- मद (घमंड ) 6-मत्सर (जलन) 7-ग्यान 8- वैराग हैं । मन की शेप लगभग इतनी बङी o बिंदी जैसी होती है । इसमें मन , बुद्धि , चित्त , अहम चार छिद्र होते हैं । जिनसे हम संसार को जानते और कार्य करते हैं । मन शब्द प्रचलन में अवश्य है । पर इसका वास्तविक नाम " अंतकरण " है । ये चारों छिद्र कुन्डलिनी क्रिया द्वारा जब एक हो जाते हैं तब उसको सुरती कहते है । इसी " एकीकरण " द्वारा प्रभु को जाना जा सकता है । अन्य कोई दूसरा मार्ग नहीं हैं । मन को बिना चीर फ़ाङ के ध्यान अवस्था में देखा जा सकता है । नियन्त्रित किया जा सकता है । इसका स्थान भोंहों के मध्य एक डेढ इंच पीछे है । जीवात्मा का वास इससे " एक इंच " दूर बांयी तरफ़ है । हमारे शरीर के अंदर पाँच तत्वों की पच्चीस प्रकृतियाँ ( एक तत्व की पाँच ) हैं । तो
25 प्रकृति + 5 ग्यानेन्द्रिया + 5 कर्मेंन्द्रियां + 5 तत्वों के शरीर का नियंत्रणकर्ता और राजा मन है । इसी आधार पर 40 kg weight को एक मन कहने का रिवाज हुआ था ।
विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु कोई साधना करना चाहते हैं । और आपको ऐसा लगता है कि यहाँ आपके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है । तो आप निसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं ।

19 जून 2010

वास्तविक उपासना..?

इतनी जल्दी ये सब होगा । ऐसा मुझे भी बोध नहीं था । मात्र दो महींने के " ब्लाग सफ़र " में देश विदेश के अनेक लोगों से मेरी पहचान हुयी । ई मेल , फ़ोन काल्स और व्यक्तिगत रूप से
मुझसे और श्री महाराज जी से आत्मग्यान के जिग्यासु और " प्रेमीजन " निरंतर सम्पर्क कर रहे हैं । और कुछ लोग साधना मार्ग पर चलने भी लगे । अब हालत ये है । कि मुझे लेख अपने readers की डिमांड पर लिखने पङ रहे हैं । उनकी ढेरों जिग्यासाएं हैं । बहुत से पाठकों ने जिन्हें हिन्दी का अच्छा अभ्यास नहीं है । मुझे english में भी लिखने को कहा है । पर वास्तव में न तो मैं इंगलिश में इतना अच्छा लिख सकता हूँ । और न ही मेरे पास इतना समय है । इस हेतु मेरा निवेदन है कि कोई ऐसा पाठक जिसकी हिंदी और इंगलिश दोनों पर अच्छी पकङ है ।कृपया इस धर्म कार्य में लेख के अनुवाद में मेरा सहयोग करे । मैंने सूक्ष्म जगत या प्रेतलोक के बारे में पाँच लेख लिखे । जिन्हें सर्वत्र पाठकों ने बेहद पसन्द किया । इस विषय पर और लिखने के लिये मुझसे काफ़ी लोगों ने आग्रह किया है । मैं उनकी इस माँग को समय मिलने पर अवश्य पूरा करूँगा । पर साथ ही एक स्पष्टीकरण भी देना चाहूँगा । भूत प्रेत जगत हमें रोचक और आकर्षित करने
वाला अवश्य लगता है । पर साधना मार्ग में प्रेतलोक.तान्त्रिक मान्त्रिक लोक बेहद निकृष्ट और वाहियात चीज हैं । यह सत्य है । कि साधना मार्ग में यह लोक मिलते अवश्य हैं । पर इनमें किसी प्रकार की दिलचस्पी मेरे अनुसार उचित नहीं हैं । तमाम तरह के सिद्ध तान्त्रिक मान्त्रिक शक्तियों का दुरुपयोग करने वाले ..और निकृष्ट अघोर साधना करने वाले ..विभिन्न प्रकार की शमशान साधनायें करने बाले..नरबलि या पशुबलि का उपयोग साधना में करने वाले अंत में दुर्गति को प्राप्त होकर ऐसे लोकों के वासी होते हैं । इनकी सहायता करने वाले ग्रहस्थ या अन्य लोगों का भी यही हश्र होता है । यह दीर्घकाल तक इन अंधेरे लोकों में पङे रहते हैं ।
इसलिये इन फ़िजूल की बातों को छोङकर आपको वास्तविक उपासना आराधना आदि से परिचय कराता हूँ । मुझे हँसी आती है । भगवान की स्तुति के जितने भी नाम है । वे female बोधक हैं । उपासना आराधना..आरती ज्योति..पूजा आदि । खैर मेरी तो भगवान से दोस्ती है । आप ऐसी हँसी मत बनाना । बहु प्रचलित तमिल शब्द पूजा या हिंदी शब्द आराधना से भक्ति के चार काण्डों की कृमशः यात्रा होती है । हमारे घरों में महिला पुरुषों द्वारा साधारण पूजा से शुरु हुयी ये भक्ति किस प्रकार आगे बङती है । आइये इस पर विचार करते हैं ।
1-- इसमें सबसे पहले " कर्म काण्ड " भक्ति आती है । जिसमें साधारण रूप से घरों में नित्य होने वाली पूजा अर्चना..इष्ट उपासना होती है । विभिन्न पर्वों या शादी विवाह में होने वाली पूजा भी इसी श्रेणी में आती है । यह उपासना भी आवश्यक होती है । और विधान के अनुसार ग्रहस्थ के लिये अनिवार्य होती है । इस पूजा से घर में शान्ति और आने वाली अद्रश्य दुर्घटनाओं से बचाव आदि कई लाभ होते हैं । पर अच्छे लाभ के लिये पूजा मन से और पूरे भाव से करना आवश्यक है ।
2-- दूसरा काण्ड " उपासना काण्ड " कहलाता है । इसका पुजारी किसी छोटे या सौभाग्यवश बङे साधु से पूजा की सही विधि या मन्त्र प्राप्त कर एक या दो घन्टा आसन आदि पर बैठकर नित्य भगवत आराधना करता है । ऐसी आराधना करने वाले पुजारियों की संख्या करोङो में होती है । उदाहरण के तौर पर हजार जनसंख्या वाली किसी कालोनी में ऐसी उपासना करने वाले पुरुष महिलाओं की संख्या 300 तक आराम से होती है । जो अपने घर में ही एक दो घन्टा मन से पूजा करते हैं । उपासना काण्ड एक तरह से अंतर काण्ड भी होता है । यह पुजारी या साधक की कृमशः आत्मोन्न्ति करता हुआ उसके अंतकरण को शुद्ध करता है । जो साधारण जीव की अपेक्षा काफ़ी अच्छी स्थिति होती है ।
3-- तीसरा काण्ड " ग्यान काण्ड " कहलाता है । उपासना काण्ड का पुजारी जब ये देखता है । कि पूजा से उसे वो संतुष्टि प्राप्त नहीं हो रही । जो दरअसल वो प्राप्त करना चाहता है । तब ऐसा पुजारी विभिन्न धर्म ग्रन्थों आदि का अध्ययन करके ..साधु संतों की तलाश करता है । और " जहाँ चाह वहाँ राह " के सिद्धांत के अनुसार अपनी पूर्व भक्ति और भावना के आधार पर अंत में प्रभु की कृपा से किसी सच्चे साधु या संत की शरण में पहुँच जाता है । और दीक्षा आदि के बाद संत के बताये मार्ग पर चलता है । यह परीक्षा भली प्रकार से उत्तीर्ण कर लेने पर ग्यान काण्ड
के फ़लस्वरूप वह साधक अपने " निजस्वरूप " का बोध करता है । यानी अपनी आत्मा को स्वयं जानने वाला देखने वाला हो जाता है । हालाँकि इस स्थिति को प्राप्त करने में काफ़ी परिश्रम करना पङता है । पर इस उपलब्धि के सामने राजाओं के समान लाखों जन्म और सम्पूर्ण प्रथ्वी का राज्य भी अत्यंत तुच्छ चीज है । देवता भी इस स्थिति को प्राप्त करने हेतु तरसते हैं ।
4-- चौथा काण्ड " विग्यान काण्ड " कहलाता है । साफ़ सी बात है । कि यह ग्यान काण्ड के बाद ही प्राप्त होता है । यह साधना की काफ़ी ऊँची स्थिति है । इसमें प्रकृति का बिग्यान दृष्टिगोचर होने लगता पूरी सृष्टि के रहस्य समझ में आने लगते हैं । इसका जानने वाला तमाम अलौकिक कार्य करने में समर्थ होता है । यह स्थिति किसी सच्चे संत की सेवा और कृपा से प्राप्त होती है । इसकी उपलब्धियां भी अनेकों हैं । इसमें भविष्य में होने वाली घटनाओं और सृष्टि और प्रलय को भी आराम से देख सकते हैं ।
" गंग नहाये एक फ़ल । साधु मिले फ़ल चार । सतगुरु मिले अनेक फ़ल । कहे कबीर विचार । "

17 जून 2010

श्री महाराज जी " अद्वैत ग्यान " के संत है

मेरे ब्लाग्स के बहुत से पाठकों ने यह इच्छा जतायी है कि मेरे गुरुदेव कौन है । और मैंने उनका कोई चित्र क्यों नहीं एड किया है । इसलिये मैं अपनी इस कमी को दूर कर रहा हूँ । श्री महाराज जी " अद्वैत ग्यान " के संत है । इनके सम्पर्क में मैं पिछले सात वर्षों से हूँ । इससे पूर्व मैंने अनेकों प्रकार की साधनाएं की । पर मेरी जिग्यासा और शंकाओं का समुचित समाधान नहीं हुआ । पर श्री महाराज जी के सम्पर्क में आते ही मेरा समस्त अग्यान नष्ट हो गया । मैं इस बात के लिये जोर नहीं देता कि आप मेरी बात को ही सत्य मान लें । पर आत्मा या आत्म ग्यान को लेकर
यदि आपके भी मन में कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको नहीं मिला है । या मेरी तरह आप भी जीवन के रहस्य और अनगिनत समस्यायों को लेकर परेशान हैं ( जैसे मैं कभी था ) तो " निज अनुभव तोहि कहूँ खगेशा । विनु हरि भजन न मिटे कलेशा । " वो कौन सा हरि का भजन है । जिससे जीवन के सभी कलेश मिट जाते है । " सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू व्याधा । " वो कौन सी हरि की शरण है । या आप आत्मा परमात्मा की असली भक्ति या असली ग्यान के बारे में कोई भी प्रश्न रखते हैं । तो महाराज जी से बात कर
सकते हैं । महाराज जी का सेलफ़ोन न . 0 9639892934
विशेष- महाराज का कहीं कोई आश्रम नहीं है । वे अक्सर भ्रमण पर रहते हैं । और किसी किसी समय एक गाँव के बाहर बम्बा के पास कुटिया में रहते हैं ।

महाराज जी का संक्षिप्त परिचय और तस्वीर

मेरे ब्लाग्स के बहुत से पाठकों ने यह इच्छा जतायी है कि मेरे गुरुदेव कौन है । और मैंने उनका कोई चित्र क्यों नहीं एड किया है । इसलिये मैं अपनी इस कमी को दूर कर रहा हूँ । श्री महाराज जी " अद्वैत ग्यान " के संत है । इनके सम्पर्क में
मैं पिछले सात वर्षों से हूँ । इससे पूर्व मैंने अनेकों प्रकार की साधनाएं की । पर मेरी जिग्यासा और शंकाओं का समुचित समाधान नहीं हुआ । पर श्री महाराज जी के सम्पर्क में आते ही मेरा समस्त अग्यान नष्ट हो गया । मैं इस बात के लिये जोर नहीं देता कि आप मेरी बात को ही सत्य मान लें । पर आत्मा या आत्म ग्यान को लेकर यदि आपके भी मन में कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको नहीं मिला है । या मेरी
तरह आप भी जीवन के रहस्य और अनगिनत समस्यायों को लेकर परेशान हैं ( जैसे मैं कभी था ) तो " निज अनुभव तोहि कहूँ खगेशा । विनु हरि भजन न मिटे कलेशा । " वो कौन सा हरि का भजन है । जिससे जीवन के सभी कलेश मिट जाते है । " सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू व्याधा । " वो कौन सी हरि की शरण है । या आप आत्मा परमात्मा की असली भक्ति या असली ग्यान के बारे में कोई भी प्रश्न रखते हैं । तो महाराज जी से बात कर सकते हैं । महाराज जी का सेलफ़ोन न . 0 9639892934
विशेष- महाराज का कहीं कोई आश्रम नहीं है । वे अक्सर भ्रमण पर रहते हैं । और किसी किसी समय एक गाँव के बाहर बम्बा के पास कुटिया में रहते हैं ।

16 जून 2010

end of the world.. 2012

भारत में तो मैंने इतना नहीं देखा । पर 2012 को लेकर अमेरिका आदि कुछ विकसित देशों मे हल्ला मचा हुआ है । हाल ही में हुये मेरे एक परिचित स्नेहीजन त्रयम्बक उपाध्याय साफ़्टवेयर इंजीनियर ने अमेरिका ( से ) में 2012 को लेकर मची खलबली के बारे में बताया । उन्होनें इस सम्बन्ध में मेरे एक अन्य मित्र श्री विनोद दीक्षित द्वारा लिखी पोस्ट end of the world.. 2012 को भी पढा था ।
इस तरह की बातों में मेरा नजरिया थोङा अलग रहता है । मेरे द्रष्टिकोण के हिसाब से यह पोस्ट भ्रामक थी । लिहाजा इस ज्वलन्त मुद्दे को लेकर मेरे पास जब अधिक फ़ोन आने लगे ।तो मैंने वह पोस्ट ही हटा दी । पहले तो मेरे अनुसार यह उस तरह सच नहीं है । जैसा कि लोग या विनोद जी कह रहे हैं । दूसरे यदि इसमें कुछ सच्चाई है भी तो " डाक्टर भी मरणासन्न मरीज से ये कभी नहीं कहता कि तुम कुछ ही देर ( या दिनों ) के मेहमान हो " यदि हमारे पास किसी चीज का उपाय नहीं है । तो " कल " की चिन्ता में " आज "को क्यों खराब करें । यदि प्रलय होगी भी । तो होगी ही ।
उसको कौन रोक सकता है । जब हम " लैला " सुनामी " हैती " के आगे हाथ जोङ देते है । तो प्रलय तो बहुत बङी " चीज " है । लेकिन तीन दिन पहले जब मैं इस इंद्रजाल ( अंतर्जाल ) internet पर घूम रहा था । तो किसी passions साइट पर मैंने लगभग 40 साइट इसी विषय पर देखी । जिनमें " एलियन " द्वारा तीसरे विश्व युद्ध द्वारा आतंकवाद , प्राकृतिक आपदा ..आदि किसके द्वारा " प्रथ्वी " का अंत होगा । ऐसे प्रश्न सुझाव आदि थे । जो लोग मेरे बारे में जानते हैं और जिन्हें लगता है कि मैं " इस प्रश्न " का कोई संतुष्टि पूर्ण उत्तर दे सकता हूँ । ऐसे विभिन्न स्थानों से लगभग 90
फ़ोन काल मेरे पास आये । और मैंने उनका गोलमाल..टालमटोल..उत्तर दिया । इसकी वजह वे लोग बेहतर ढंग से समझ सकते हैं । जो किसी भी प्रकार की कुन्डलिनी या अलौकिक साधना में लगे हुये हैं । मान लीजिये कि किसी साधक ने इस प्रकार की साधना कर ली हो कि वह भविष्य के बारे में बता सके । और वह पहले से ही सबको सचेत करने लगे । तो ये साधना का दुरुपयोग और ईश्वरीय नियमों का उलंघन होगा । परिणामस्वरूप वह ग्यान साधक से अलौकिक शक्तियों द्वारा छीन लिया जायेगा । क्योंकि ये सीधा सीधा ईश्वरीय विधान और प्रकृति के कार्य में हस्तक्षेप होगा ।
हाँ इस या इन आपदाओं से बचने के उपाय अवश्य है । और वे किसी को भी सहर्ष बताये जा सकते हैं । पर यदि कोई माने तो ? क्योंकि जगत एक अग्यात नशे में चूर है । " झूठे सुख से सुखी हैं , मानत है मन मोद । जगत चबेना काल का कछू मुख में कछु गोद । " जीव वैसे ही काल के गाल में है । उसकी कौन सी उसे परवाह है । तो खबर नहीं पल की और बात करे कल की । वाला रवैया चारों तरफ़ नजर आता है । खैर..जगत व्यवहार और विचार से साधुओं को अधिक मतलब नहीं होता । फ़िर भी एक अति आग्रह रूपी दबाब में जब बार बार ये प्रश्न मुझसे किया गया । तो मुझे संकेत में इसका जबाब देना पङा ।
ये जबाब मैंने " श्री महाराज जी " और कुछ गुप्त संतो से प्राप्त किया था । अलौकिकता के " ग्यान काण्ड " और " बिग्यान काण्ड " में जिन साधुओं या साधकों की पहुँच होती है । वे इस चीज को देख सकते हैं । 2012 में प्रलय की वास्तविकता क्या है । आइये इसको जानें ।
" संवत 2000 के ऊपर ऐसा योग परे । के अति वर्षा के अति सूखा प्रजा बहुत मरे ।
अकाल मृत्यु व्यापे जग माहीं । हाहाकार नित काल करे । अकाल मृत्यु से वही बचेगा ।
जो नित " हँस " का ध्यान धरे । पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण । चहुँ दिस काल फ़िरे ।
ये हरि की लीला टारे नाहिं टरे ।
अब क्योंकि संवत 2000 चल ही रहा है । इसलिये प्रलय ( मगर आंशिक ) का काउंटडाउन शुरू हो चुका है । मैंने किसी पोस्ट में लिखा है कि गंगा यमुना कुछ ही सालों की मेहमान और है । 2010 to 2020 के बाद जो लोग इस प्रथ्वी पर रहने के " अधिकारी " होंगे । वो प्रकृति और प्रथ्वी को एक नये श्रंगार में देखने वाले गिने चुने भाग्यशाली लोग होंगे । और ये घटना डेढ साल बाद यानी 2012 में एकदम नहीं होने जा रही । बल्कि इसका असली प्रभाव 2014 to 2015 में देखने को मिलेगा । इस प्रथ्वी पर रहने का " हक " किसका है । ये रिजल्ट सन 2020 में घोषित किया जायेगा । यानी आपने सलामत 2020 को happy new year किया । तो आप 65 % का विनाश करने वाली इस प्रलय से बचने वालों में से एक होंगे । ऊपर जो " संतवाणी " मैंने लिखी है । उसमें ऐसी कोई कठिन बात नहीं है । जिसका अर्थ करना आवश्यक हो । सिवाय इस एक बात " अकाल मृत्यु से वही बचेगा । जो नित " हँस " का ध्यान धरे । " के । " हँस " ग्यान या ध्यान या भक्ति वही है । जो शंकर जी , हनुमान , राम , कृष्ण , कबीर , नानक रैदास , दादू , पलटू ..आदि ने की । यही एकमात्र " सनातन भक्ति " है । इसके बारे में मेरे सभी " ब्लाग्स " में बेहद विस्तार से लिखा है । अतः नये reader और जिग्यासु उसको आराम से देख सकते हैं । और कोई उलझन होने पर मुझे फ़ोन या ई मेल कर सकते हैं ।
लेकिन अभी भी बहुत से प्रश्न बाकी है । ऊपर का दोहा कोई विशेष संकेत नहीं कर रहा । ये सब तो अक्सर प्रथ्वी पर लगभग होता ही रहा है । तो खास क्या होगा और क्यों होगा ? ये अब भी एक बङा प्रश्न था । तो आप लोगों के अति आग्रह और दबाब पर मैंने " श्री महाराज जी " से विनम्रता पूर्वक निवेदन किया । और उत्तर में जो कुछ मेरी मोटी बुद्धि में फ़िट हुआ । वो आपको बता रहा हूँ ।
बाढ , सूखा , बीमारी , महामारी और कुछ प्राकृतिक आपदायें रौद्र रूप दिखलायेंगी । और जनमानस का झाङू लगाने के स्टायल में सफ़ाया करेंगी । लेकिन...? इससे भी प्रलय जैसा दृष्य नजर नहीं आयेगा । प्रलय लायेगा धुँआ..धुँआ..हाहाकारी...विनाशकारी..धुँआ..चारों दिशाओं से उठता हुआ घनघोर काला गाढा धुँआ..। और ये धुँआ मानवीय अत्याचारों से क्रुद्ध देवी प्रथ्वी के गर्भ से लगभग जहरीली गैस के रूप में बाहर आयेगा । यही नहीं प्रथ्वी के गर्भ में होने वाली ये विनाशकारी हलचल तमाम देशों को लीलकर उनका नामोंनिशान मिटा देगी । प्रथ्वी पर संचित तमाम तेल भंडार इसमें कोढ में खाज का काम करेंगे । और 9 / 11 को जैसा एक छोटा ट्रेलर हमने देखा था । वो जगह जगह नजर आयेगा । प्रथ्वी में आंतरिक विस्फ़ोटों से विकसित देशों की बहुमंजिला इमारते तिनकों की तरह ढह जायेगी । हाहाकार के साथ त्राहि त्राहि का दृष्य होगा । समुद्र में बनने वाले भवन और अन्य महत्वाकांक्षी परियोजनायें इस भयंकर जलजले में मानों " बरमूडा ट्रायएंगल " में जाकर गायब हो जायेगीं । nasa के सभी राकेट बिना लांच किये । विना तेल लिये । बिना बटन दबाये " अंतरिक्ष " में उङ जायेंगे । और वापस नहीं आयेंगे ।
और बेहद हैरत की बात ये है । कि इस विनाशकारी मंजर को देखने वाले भी होंगे । और इस से बच जाने वाले भी लाखों (हाँलाकि कुछ ही ) की तादाद में होंगे । और प्रथ्वी की आगे की व्यवस्था भी उन्हीं के हाथों होगी । इस भयानक महालीला के बाद प्रथ्वी के वायुमंडल में सुखदायी परिवर्तन होंगे । और आश्चर्य इस बात का कि जिन घटकों से ये तबाही आयेगी । वे ही घटक प्रथ्वी से बाहर आकर तबाही का खेल खेलने के बाद परिवर्तित होकर नये सृजन की रूप रेखा तैयार करेंगे ।
अब अंतिम सवाल । ये सब आखिर क्यों होगा ?
तो इसका उत्तर है । डिसबैलेंस । यानी प्राकृतिक संतुलन का बिगङ जाना । ये बैलेंस बिगङा कैसे ? इसका आध्यात्मिक उत्तर और कारण बेहद अलग है । वो मैं न समझा पाऊँगा । और न आप इतनी आसानी से समझ पायेंगे । सबसे बङा जो मुख्य कारण है । वो है कई पशु पक्षियों की प्रजाति का लुप्त हो जाना । मनुष्य का अधिकाधिक प्राकृतिक स्रोतों का दोहन । और मनुष्य के द्वारा अपनी सीमा छोङकर प्रकृति के कार्यों में हस्तक्षेप करना आदि ..?
अब एक आखिरी बात..पशु पक्षियों के लुप्त होने से प्रलय का क्या सम्बन्ध ?
जो लोग अमेरिका आदि देशो के बारे में जानकारी रखते हैं । उन्हें एक बात पता होगी । कि एक बार जहरीले सांपो के काटने से आदमियों की मृत्यु हो जाने पर वहाँ सामूहिक रूप से सांपो की हत्या कर दी गयी । ताकि " आदमी " निर्विघ्न रूप से रात दिन विचरण कर सके । और कुछ स्थान एकदम सर्प हीन हो गये...कुछ ही समय बाद । वहाँ एक अग्यात रहस्यमय बीमारी फ़ैलने लगी । तब बेग्यानिकों को ये बात पता चली कि सर्प हमारे आसपास के वातावरण से जहरीले तत्वों को खींच लेते है । और वातावरण स्वच्छ रहता है । सर्प हीनता की स्थिति में वह विष वातावरण में ही रहा । और जनता उस अदृष्य विष की चपेट में आ गयी । ये सिर्फ़ एक घटित उदाहरण भर था । आज प्रथ्वी के वायुमंडल और वातावरण से जरूरत की तमाम चीजें गायब हो चुकी हैं ? इसलिये प्रथ्वी पर मूव होने वाली इस साक्षात " मूवी " का मजा लेने के लिये तैयार हो जाये । और घबरा रहें हैं तो अभी भी मौज लेने
enjoy करने के लिये आपके पास तीन साल तो हैं ही । तो डू मौज । डू एन्जोय । गाड ब्लेस यू ।