10 दिसंबर 2010

क्षुद्र को ही उत्तेजित किया जा सकता है

1 यूरोप का विचारशील नास्तिक हुआ - बर्क । वह 1 विवाद में उतरा था 1 पादरी के साथ । तो पहला ही तर्क बर्क ने उपस्थित किया । उसने अपनी घड़ी हाथ से निकाली । और कहा कि - मैं तुम्हारे परमात्मा बताना चाहता हूं कि अगर वह सर्वशक्तिमान है । तो इतना ही करे कि मेरी घड़ी को रोक दे । इसी वक्त । इतना भी तुम्हारा परमात्मा कर दे । तो भी मैं समझ लूंगा कि वह है । लेकिन घड़ी चलती रही । परमात्मा ने इतना भी न किया । सर्वशक्तिमान । इतनी छोटी सी शक्ति भी न दिखा सका । जो कि 1 छोटा बच्चा भी पटककर कर सकता था । बर्क ने कहा कि - प्रमाण जाहिर है । कोई परमात्मा नहीं है । लेकिन बर्क कर क्या रहा था ? वह सिर्फ अहंकार को चोट पहुंचा रहा था । वह यह कह रहा है कि - अगर हो । तो इतना सा करके दिखा दो । बर्क समझ ही नहीं पा रहा । मुद्दे की बात ही उसकी चूक गई । परमात्मा के पास कोई अहंकार नहीं है । आप इसलिए उसे उत्तेजित नहीं कर सकते । उत्तेजित उसे किया जा सकता है - जहाँ अस्मिता हो । असल में क्षुद्र को ही उत्तेजित किया जा सकता है । विराट को उत्तेजित करने का कोई उपाय नहीं है ।
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चांद का भारी प्रभाव है । आपके रोएं रोएं पर प्रभाव है । आपके शरीर में 75%  पानी है । और उस पानी का वही गुणधर्म है । जो सागर के पानी का है । तो चांद आपको आपके 75%  व्यक्तित्व को खींचता है । और आंदोलित करता है । आपको पता है । पूर्णिमा की रात दुनिया में सर्वाधिक लोग पागल होते हैं । पूर्णिमा की रात दुनिया में सबसे ज्यादा पाप होते हैं । पूर्णिमा की रात दुनिया में सबसे ज्यादा हत्याएं होती हैं । आत्महत्याएं होती हैं । क्योंकि पूरा चांद आदमी के मन को उसी तरह खींचता है । जैसे सागर में लहरों को । इसलिए पुराना शब्द है पागल के लिए - चांदमारा । अंग्रेजी में शब्द है - लूनाटिक । इसका दूसरा पक्ष भी है कि पूर्णिमा को बुद्धत्व भी प्राप्त होता है ।
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यह ॐ सृजन की शक्ति का सूत्र है । यह महासृजन की शक्ति का सूत्र है । इससे हम जीवन के मूल केंद्र पर पहुंच जाते हैं । जहाँ से सारी सृष्टि विकसित हुई है । उस गंगोत्री पर । जहाँ से जीवन की सारी गंगा बहती है । लेकिन उसके पहले सारी वासनाएं जड़ मूल से खो जानी चाहिए । नहीं तो उसका प्रतिफलन विनाश होगा । ॐकार वैसा ही सूत्र है । जैसा किं एटामिक फिजिक्स का सूत्र है कि हाथ में पड़ते ही विनाश का महा मंत्र मिल गया । आइंस्टीन ने कहा है मरने के कुछ दिन पहले कि - अगर मुझे दुबारा जन्म मिले । तो मैं किसी गांव में प्लंबर होना पसंद करूंगा । लेकिन अब दुबारा आइंस्टीन होने की इच्छा नहीं है । क्योंकि मुझे पता नहीं था कि मेरे हाथ से विनाश की शक्ति का सूत्र निकल रहा है । इस ॐकार की ध्वनि के साथ 1 होते ही, जो भी इच्छा है । वह तत्क्षण पूरी हो जाती है । इसलिए शर्त है कि वासनाएं छोड्कर ही ॐकार की साधना करनी है । नहीं तो आप क्षुद्र से भर जाएंगे । और विराट की ऊर्जा क्षुद्र में खो जाएगी ।
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1 मुसलमान बादशाह हुआ । उसका नौकर उसे बड़ा प्रिय था - 1 नौकर । इतना प्रिय था कि रात उसके कमरे में भी वह नौकर सोता ही था । उससे बड़ी निकटता थी । बड़ी आत्मीयता थी । दोनों जंगल जा रहे थे । शिकार पर निकले थे । 1 वृक्ष के नीचे खड़े हुए । सम्राट ने हाथ बढ़ाया । और फल तोड़ा । जैसे उसकी सदा आदत थी । कुछ भी उसे मिले । तो वह नौकर को भी देता था । वह मित्र जैसा था नौकर । उसने उसे काटा । 1 कली नौकर को दी । उसने खाई । और उसने कहा - अहो भाग्य ! 1 और दें । दूसरी भी ले ली । वह भी खा ली । बड़ा प्रसन्न हुआ । कहा - 1 और दें । 1 ही बची । 1 टुकड़ा ही बचा सम्राट के हाथ में । 3 उसे दे दिए । सम्राट ने कहा - यह तो तू हद कर रखा है । अब 1 मुझे भी चखने दे । और तेरा भाव देखकर । तेरी प्रसन्नता देखकर ऐसा लगता है । कोई अनूठा फल है । उसने कहा कि - नहीं मालिक । फल निश्चित अनूठा है । मगर खाऊंगा मैं ही । आप नहीं । छीन झपट करने लगा । सम्राट नाराज हुआ । उसने कहा - यह भी सीमा के बाहर की बात हो गई । दूसरा फल भी नहीं है वृक्ष पर । सम्राट ने छीन झपटी में ही अपने मुंह में फल का टुकड़ा रख लिया - जहर था । थूक दिया । उसने कहा कि - नासमझ ! और तू मुस्करा रहा है ? तूने कहा क्यों नहीं ? उस नौकर ने कहा - जिन हाथों से बहुत मीठे फल खाए । 1 जहरीले फल के लिए क्या बात उठानी । क्या चर्चा करनी ? जिन हाथों से बहुत मिष्ठान्न मिले । जिस प्रसाद से जीवन भरा है । उसके हाथ से 1 अगर कड़वा फल भी मिल गया । तो उसकी बात ही क्यों उठानी ? उसको कहां रखना तराजू पर ? इसलिए जिद कर रहा था कि 1 टुकड़ा और दे दें कि आपको पता न चल जाए । क्योंकि वह पता चल जाए आपको । तो भी जाने अनजाने शिकायत हो गई । अगर आपके हाथ में 1 टुकड़ा छोड़ दिया मैंने । कुछ न कहा कि कड़वा है । सिर्फ छोड़ दिया । और आप जान गए कि कड़वा है । तो मैंने कह ही दिया । बिना कहे कह दिया । इसलिए छीन झपट कर रहा था मालिक । माफ कर दें । चाहता था । यह पता न चले । अनुग्रह अखंड रहे । शिकायत की बात न उठे । इसलिए छुड़ाने की कोशिश कर रहा था । आप माफ कर दें । 
भक्त का यही भाव है - परमात्मा के प्रति । जिस हाथ से इतना मिला है । जिसके दान का कोई अंत नहीं है । जिसका प्रसाद प्रतिपल बरस रहा है । स्वांस स्वांस में जिसकी सुवास है । धड़कन धड़कन में जिसका गीत है । क्या शिकायत करनी उसकी ? क्या दुख की बात उठानी ? छोड़ो । दुख की चर्चा बंद करो । अन्यथा दुख बढ़ेगा । दुख की उपेक्षा करो । दुख में रस मत लो । घाव में उंगली डालकर मत चलाओ । नहीं तो घाव हरा है । हरा ही बना रहेगा । वह कभी भरेगा कैसे ? यह खुजलाहट बंद करो । ओशो
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जन्मों जन्मों से हमने दुख का अनुभव जाना । लेकिन किस कारण ? हमें हमारी भूल नहीं दिख पाती ।
- नहीं । न तो जन्मों जन्मों से कुछ जाना है । न तुमने दुख जाना है । अन्यथा भूल दिख जाती । यही भूल है कि तुम समझ रहे हो कि तुमने जाना है । और जाना नहीं । अब यह भूल छोड़ो । अब फिर से अ ब स से शुरू करो । अभी तक तुम्हारा जाना हुआ किसी काम का नहीं । अब फिर से आंख खोलो । और देखो । हर जगह, जहां तुम्हें सुख की पुकार आए । रुक जाना । वह दुख का धोखा है । मत जाना । कहना - सुख हमें चाहिए ही नहीं । शांति को लक्ष्य बनाओ । सुख को लक्ष्य बनाकर अब तक रहे हो । और दुख पाया है । अब शांति को लक्ष्य बनाओ । 
शांति का अर्थ है - न सुख चाहिए । न दुख चाहिए । क्योंकि सुख दुख दोनों उत्तेजनाएं हैं । और शांति अनुत्तेजना की अवस्था है । और जो व्यक्ति शांत होने को राजी है । उसके जीवन में आनंद की वर्षा हो जाती है । जैसा मैंने कहा - सुख दुख का द्वार है । ऐसा शांति आनंद का द्वार है । साधो शांति । आनंद फलित होता है । आनंद को तुम साध नहीं सकते । साधोगे तो शांति को । और शांति का कुल इतना ही अर्थ है कि अब मुझे सुख दुख में कोई रस नहीं । क्योंकि मैंने जान लिया । दोनों 1 ही सिक्के के 2 पहलू हैं । अब मैं सुख दुख दोनों को छोड़ता हूं । जो दुख को छोड़ता हैं । सुख को चाहता है । वह संसारी है । जो सुख को मांगता है । दुख से बचना चाहता है । वह संसारी है । जो सुख दुख दोनों को छोड़ने को राजी है । वह - संन्यासी है । संन्यासी पहले शांत हो जाता है । लेकिन संन्यासी की शांति संसारी को बड़ी उदास लगेगी । मंदिर का सन्नाटा मालूम होगा । वह कहेगा - यह तुम क्या कर रहे हो ? जी लो । जीवन थोड़े दिन का है । यह राग रंग सदा न रहेगा । कर लो भोग लो । उसे पता ही नहीं । शांति का जिसे स्वाद आ गया । उसे सुख दुख दोनों ही तिक्त और कड़वे हो जाते हैं । और शांति में जो थिर होता गया । शांति यानी - ध्यान । शांति में जो थिर होता गया । बैठ गई जिसकी ज्योति शांति में । तार जुड़ता गया । 1 दिन अचानक पाएगा । आनंद बरस गया । शांति है साज का बिठाना । और आनंद है । जब साज बैठ जाता है । तो परमात्मा की उंगलियां तुम्हारे साज पर खेलनी शुरू हो जाती है । शांति है स्वयं को तैयार करना । जिस दिन तुम तैयार हो जाते हो । उस दिन परमात्मा से मिलन हो जाता है । इसलिए हमने परमात्मा को सच्चिदानंद कहा है । वह सत है । वह चित है । वह आनंद है । उसकी गहनतम आंतरिक अवस्था आनंद है । ओशो
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1 साहब ने 1 आलसी और कामचोर आदमी को नौकर रख लिया । वह नौकर कोई और नहीं । चुनाव में हारा हुआ 1 नेता ही था । 1 दिन उन्होंने नौकर से कहा - जाओ, बाजार से सब्जी ले आओ । नौकर ने कहा - साहब, मैं इस शहर में नया आया हूं । कहीं गुम हो जाऊंगा । यह सुनकर मालिक ने खुद ही बाजार से जाकर सब्जी खरीदी । और नौकर से कहा - लो, अब इसे पकाओ । इस पर नौकर ने कहा - साहब, इस गैस के चूल्हे की मुझे आदत नहीं है । कहीं सब्जी जल गयी तो ? यह सुनकर मालिक ने खुद ही सब्जी पकाकर नौकर से कहा - अब खाना खा लो । नौकर ने बड़े सहज भाव से कहा - हुजूर, हर बात पर न कहना अच्छा नहीं लगता । आप कहते हैं । तो खा लेता हूं । तुम पूछते हो । राजनीति क्या है ? जरा चारों तरफ आंख खोलो । जहां धोखा देखो । समझना वहीं राजनीति हैं । जहां बेईमानी देखो । वहीं समझना राजनीति है । जहां जेब कटती देखो । समझना वहीं राजनीति है । जहां तुम्हारी गर्दन को कोई दबाये । और कहे कि मैं सेवक हूं । जन सेवक हूं । समझना कि वहीं राजनीति है ।
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जब तक गांव नहीं मिटेगा । वह गुलामी नहीं मिटेगी । छोटे छोटे गांव की गुलामी तुम्हें दिखायी नहीं पड़ती । तुम कवियों की कहानियों और कविताएं पढ़ लेते हो । सोचते हो कि अहा, गावों में कैसा रामराज्य । कैसा पंचायत राज्य । और गांव में कैसे लोग मजा कर रहे हैं - कैसी स्वभाविकता । प्राकृतिकता । तुम्हें गांव की स्थिति का कोई अंदाज नहीं है । इस देश का गांव 1 तरह का कारागृह है । इस गांव में जितना शोषण हो सकता है । शहर में नहीं हो सकता । गांव में हरिजन है । उसको कुएं पर पानी नहीं भरने दिया जा सकता । सह सबके साथ पांत में बैठकर भोजन भी नहीं कर सकता । पांत में बैठकर भोजन करने की तो बात दूर । उसकी छाया किसी पर पड़ जाए । तो गांव के लोग मिलकर उसकी हत्या कर दें । गांव इतनी छोटी जगह है कि वहां कोई आदमी व्यक्तिगत जीवन तो जी ही नहीं सकता । वहां कोई निजी जीवन नहीं है और । जहां निजता नहीं है । वहां स्वतंत्रता नहीं हो सकती । शहरों ने निजता दी है । शहरों में व्यक्ति स्वतंत्र हो गये हैं ।
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मैंने सुना है कि नादिरशाह किसी स्त्री के प्रति लोलुप था । लेकिन वह स्त्री उसके प्रति बिलकुल ही अनासक्त थी । पर नादिरशाह के 1 सैनिक के प्रति पागल है । स्वभावत: नादिर के लिए बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया । पकड़वा भिजवाया दोनों को । पूछा अपने वजीरों से कि कोई नई सजा खोजो । जो कभी न दी गई हो । ऐसी कोई सजा है । जो कभी न दी गई हो । सब सजाएं चुक गई हैं । वजीर बड़ी मुश्किल में पड़े । नई नई सजाएं खोजकर लाते । लेकिन नादिर कहता कि यह हो चुका । यह कई बार दी जा चुकी है । हम ही दे चुके हैं । दूसरे दे चुके हैं । नई चाहिए । और सच में ही 1 बूढ़े वजीर ने नई सजा खोज ली । आप भी न सोच सकेंगे कि नई सजा क्या हो सकती थी ? नई सजा यह थी कि दोनों को नग्न करके । एक दूसरे के चेहरों को आमने सामने करके । दोनों को 1 खंभे से बांध दिया गया । कभी सोचा भी नहीं होगा किसी ने । 1 दिन 2  दिन, एक दूसरे के शरीर से बास आने लगी । मलमूत्र छूटने लगा । 3 दिन - एक दूसरे के चेहरे को देखने की भी इच्छा न रही । 4 दिन - एक दूसरे पर भारी घृणा पैदा होने लगी । 5 दिन - नींद नहीं । मलमूत्र, गंदगी, और बंधे हैं दोनों एक साथ । यही चाहते थे । 15 दिन - दोनों पागल हो गए कि एक दूसरे की गर्दन काट दें । और नादिर रोज आकर देखता कि कहो प्रेमियो, इच्छा पूरी कर दी न । मिला दिया न दोनों को । और ऐसा मिलाया है कि छूट भी नहीं सकते । जंजीरें बंधी हैं । 15 दिन बाद - जब उन दोनों को छोड़ा । तो कथा है कि उन्होंने लौटकर एक दूसरे को जिंदगी में न दुबारा देखा । और न बोले । जो भागे एक दूसरे से । तो फिर लौटकर कभी नहीं देखा । क्या हुआ ? मोह पैदा होने का उपाय न रहा । अमोह पैदा हो गया । करीब करीब जिसको हम विवाह कहते हैं । वह भी नादिरशाह का बहुत छोटे पैमाने पर प्रयोग है । बड़े छोटे पैमाने पर । किसी बहुत होशियार आदमी ने कोई गहरी ईजाद की है ।
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पहले की स्त्रियां घूंघट में छुपी होती थी । पति भी नहीं देख पाता था सूरज की रोशनी में । कभी खुले में बात भी नहीं कर पाता था । अपनी पत्नी से भी बात चोरी से ही होती थी । रात के अंधेरे में । वह भी खुसुर फुसुर । क्योंकि सारा बड़ा परिवार होता था । कोई सुन न ले । आकर्षण गहरा था । मोह जिंदगी भर चलता था । स्त्री उघड़ी । परदा गया । लेकिन साथ ही मोह क्षीण हुआ । स्त्री और पुरुष आज कम मोह ग्रस्त हैं । आज स्त्री उतनी आकर्षक नहीं है । जितनी सदा थी । और यूरोप और अमेरिका में और भी अनाकर्षक हो गई है । क्योंकि चेहरा ही नहीं उघड़ा । पूरा शरीर भी उघड़ा । आज यूरोप और अमेरिका के समुद्र तट पर स्त्री करीब करीब नग्न है । पास से चलने वाला रुककर भी तो नहीं देखता । पास से गुजरने वाला ठहरकर भी तो नहीं देखता कि - नग्न स्त्री है ।
कभी आपने देखा । बुरके में ढकी औरत जाती हो । तो पूरी सड़क उत्सुक हो जाती है । ढके का आकर्षण है । क्योंकि ढके में बाधा है । जहां बाधा है । वहां मोह है । जितना ज्यादा काम से पैदा हुआ है । उतना काम में डाली गई सामाजिक बाधाओं से पैदा हुआ है । अब मैं मानता हूं कि आज नहीं कल । 50 साल के भीतर । सारी दुनिया में घूंघट वापस लौट सकता है । आज कहना बहुत मुश्किल मालूम पड़ता है । यह भविष्यवाणी करता हूं - 50 साल में घूंघट वापस लौट आएगा । क्योंकि स्त्री पुरुष इतनी अनाकर्षक हालत में जी न सकेंगे । वे आकर्षण फिर पैदा करना चाहेंगे । आने वाले 50 वर्षों में स्त्रियों के वस्त्र फिर बड़े होंगे । फिर उनका शरीर ढकेगा ।
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जैसे ही सदगुरु विदा होता है । वैसे ही 1 जाल इकट्ठा हो जाता है वहां । जो उस सदगुरु के नाम का शोषण शुरू कर देते हैं । इसे रोका नहीं जा सकता । इसे रोकना असंभव है । कौन रोके ? कैसे रोके ? वह होता ही रहेगा । चालबाज आदमी । होशियार आदमी सदगुरु के नाम का लाभ उठायेंगे । उसकी जिंदगी में तो नहीं ले सकते । उसकी मौजूदगी में तो मुश्किल पड़ती है । लेकिन जब वह मौजूद नहीं रहेगा । तो उसकी कब्र बनाकर बैठ जायेंगे । चमत्कारों की चर्चाएं चलायेंगे । कहानियां फैलायेंगे । बाजार लगायेंगे । दुकान खोल लेंगे ।
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सुंदर और असुंदर देखने वाले की व्याख्या है । सुंदर असुंदर उसमें कुछ भी नहीं है । व्याख्याएं बदलती हैं । तो सौंदर्य बदल जाते हैं । चीन में चपटी नाक सुंदर हो सकती है । भारत में नहीं हो सकती । चीन में उठे हुए गाल की हड्डियां सुंदर हैं । भारत में नहीं हैं । अफ्रीका में चौड़े ओंठ सुंदर हैं । और स्त्रिया पत्थर लटकाकर अपने ओंठों को चौड़ा करती हैं । सारी दुनिया में कहीं चौड़े ओंठ सुंदर नहीं हैं । पतले ओंठ सुंदर हैं । अफ्रीका में जो स्त्री पागल कर सकती है पुरुषों को । वही भारत में सिर्फ पागलों को आकर्षित कर सकती है । क्या हो गया ? वे हमारी सांस्कृतिक व्याख्याएं हैं । 1 समाज ने क्या व्याख्या पकड़ी है ? इस पर निर्भर करता है । फिर फैशन बदल जाते है । सौंदर्य बदल जाता है । तथ्य वही के वही रहते हैं ।

4 टिप्‍पणियां:

pappu ने कहा…

thanx rajeev ji, main apki baaton se sahmat hun. college time tak to mujhe kuch bhi nahi pata tha. lekin shaadi ke baad mere pati australia mein hain and main apne 1 bache and saas ke saath akeli rehti hun. is akelepan and 1 dharmik padosan ke saath ke kaaran mera dhyaan religion ki taraf hua.

pappu ने कहा…

rajeev ji, 1 zaroori baat ye hai ki jab tak main college mein thi tab sirf physical body ko hi sab kuch samajhati thi. lekin kuch time pehle jab wo padosan mili tab mujhe pata laga ki physical body hi sab kuch nahi iske andar aatma bhi hoti hai. lekin ab is time meri soch ye hai ki wo aatma(soul) main hi hun. main ye physical body nahi hun, ye body meri hai lekin main iske andar jo aatma hai (main wo hun). aur suna hai ki aatma ya soul ya rooh ye 1 bahut hi suksham prakash jaisi hoti hai. aur ye aatma Anaadi, Ajanma, Ajar, Amar aur Abinashi hone ke kaaran sada se hi iska astitav hai and hamesha hi rahega. it means ye aatma jo meri asli pehchaan hai ya jo mera asli savroop hai ye Anadi aur Anant hai. please mujhe is baare mein aap khud kuch batayie apne next article mein. i shall be very thankful to you.

बेनामी ने कहा…

Feelings := covered, separatness, pleasure,decency and all good feelings.
Spread feelings and feel happiness.

बेनामी ने कहा…

Feelings :- covered, separatness, pleasure, reality,decency and all good feelings.
Feel, spread all these feelings and feel happiness.