12 जुलाई 2010

स्वांसों का रहस्य

आईये आज स्वांस के रहस्यों के बारे में बात करते हैं । वैसे स्वांस का रहस्य जानना मामूली बात नहीं है । क्या आप जानते हैं कि 24 घन्टे में हमें कितनी बार स्वांस आती हैं । नहीं ना जानते ? 24 घन्टे में हमें 21600 बार स्वांस आती है । अगर हम सामान्य अवस्था में हैं । यानी बीमार नहीं हैं ।
या भागने आदि की वजह से हाँफ़ नहीं रहे । या किसी बीमारी के चलते हमारी स्वांस काफ़ी मंदगति से नहीं चल रही । तो सामान्य अवस्था में चार सेकेंड में एक स्वांस का आना जाना होता है । यानी दो सेकेंड में स्वांस लेना और दो सेकेंड में छोङना । इस तरह एक मिनट में 15 बार स्वांस का आना
जाना होता है । इस तरह एक घन्टे में 900 बार । और 24 घन्टे में 21600 बार स्वांस का आना जाना होता है । जो आपने अक्सर महात्माओं के नाम के आगे 108 या 10008 लिखा देखा होगा । उसका भी सम्बन्ध स्वांस और भजन क्रिया से है । अब जैसा कि मैं हमेशा कहता हूँ कि शब्द पर ध्यान देने से ही अनेक रहस्य खुल जाते हैं । स्वांस को लें । यदि इसमें से बिंदी ( . ) हटा दी जाय और इस तरह लिखा
जाय । स्व । आस यानी स्वास । तो इसका सीधा सा अर्थ हो गया । स्व ( अपनी ) आस ( इच्छा ) यानी ये दुर्लभ शरीर आपको अपनी प्रबल इच्छा के चलते प्राप्त हुआ है । अब बिंदी का चक्कर रह गया । ये बिंदी बङी रहस्यमय चीज है । मैं अपने अन्य लेखों में भी बिंदी और र की चर्चा कर चुका हूँ । पूरा खेल तमाशा जो आप देख रहें हैं । इसी बिंदी और र का ही है । आप देखें । कि हिंदी भाषा जो संस्कृत से उत्पन्न हुयी है । र और बिंदी के बिना इसकी क्या हालत हो जाती है । र और आधे न का घोतक ये बिंदी इसकी चारों तरफ़ गति है । इसके अलावा किसी भी अक्षर को ये महत्ता प्राप्त नहीं हैं । इस बिंदी का पूरा और असली रहस्य ॐ में छिपा हुआ है । ॐ के पाँच अंग हैं ।ऊ के तीन ।अ । उ । म । अर्ध चन्द्र । चौथा । और बिंदी । पाँचवा । इसी ॐ से मनुष्य शरीर की रचना हुयी है । ॐ ते काया बनी । सोह्म ते बना मन ।
तो फ़िलहाल इसे छोङो । मैं स्वांस की बात कर रहा था । अगर आप की स्वांस से दोस्ती हो जाय । अगर आप स्वांस का संगीत सुनना सीख जायें । तो अनगिनत रहस्य आपके सामने प्रकट हो जायेंगे । दूसरे यह एक तरह का दिव्य योग भी होगा । जो आपके शरीर और मन को दिव्यता से भर देगा । यदि आपने किसी साधु संत के मार्गदर्शन में इस रहस्य को जाना । तो फ़िर कहने ही क्या । देखिये संत कबीर साहब ने यूँ ही नहीं कहा । स्वांस स्वांस पर हरि जपो । विरथा स्वांस न खोय । ना जाने । इस स्वांस का । आवन होय न होय । कहे हूँ । कहे जात हूँ । कहूँ बजाकर ढोल । स्वांसा खाली जात है । तीन लोक का मोल । आखिर इस स्वांस में क्या रहस्य है । जो तीन लोक का मोल बताया गया है ।
वैसे भी कोई कितना ही धनी हो । चक्रवर्ती राजा हो । एक बार मरने के बाद वो अपार सम्पदा का मूल्य देकर भी
एक स्वांस नहीं खरीद सकता । सहज योग या सुरती शब्द योग में स्वांस का बेहद महत्व है । पर इस योग का ग्यान रखने वाले क्योंकि दुर्लभ होते हैं । और ये योग हरेक के भाग्य में नहीं होता । इसलिये इस लेख में अभी वो चर्चा नहीं करूँगा । लेकिन " सुर साधना " सामान्य आदमी भी बङे आराम से सीख सकता है । अब सुर साधना का अर्थ संगीत साधना से मत लगा लेना । " सुर " नाक द्वार से जो पवन बहता है । उसे कहते हैं । इसे " दाँया सुर " और " बाँया सुर " कहा जाता है । इसे ही अन्य अर्थों में सूर्य । चन्द्र । और इङा । पिंगला भी कहते हैं । इस सुर को सम करना सिखाया जाता है । जो स्वांस बिग्यान के अन्तर्गत ही आता है । इस सुर को भली प्रकार से सम करना सीख जाने पर ह्रदय के तमाम रोग । डायबिटीज और त्वचा आदि तमाम रोग तो दूर होते ही हैं । अंतिम समय तक । यानी वृद्धावस्था तक युवाओं जैसा शरीर और ताकत प्राप्त होती है ।
सहज योग में सुर साधना या इस प्रकार की अन्य साधनाएं " लय योग " के अन्तर्गत स्वतः समाहित हो जाती हैं । वास्तव में इसीलिये सहज योग या सुरती शब्द योग को सभी योगों का राजा कहा गया है । अब स्वांस के सामान्य जीवन में फ़ायदे सुन लीजिये । अगर आप बैचेनी महसूस कर रहे हैं और अजीव सा लग रहा है । आठ दस गहरे गहरे स्वांस लें । फ़ौरन राहत मिलेगी । अगर आप लम्बे समय से किसी असाध्य बीमारी से पीङित हैं । और बिस्तर पर पङे रहना । आपकी मजबूरी है । तो आप स्वांस से दोस्ती कर लें । फ़िर देंखे । ये आपको कितना लाभ पहुँचाती है और अनजाने आनन्द से भी भर देती है । लेकिन एक बात समझ लें । आप अधिक कमजोरी या बेहद घबराहट जैसे किसी विशेष रोगों से पीङित हैं तो स्वांस पर प्रयोग करना आपके लिये फ़ायदे के बजाय नुकसान का सौदा ही होगा । उपरोक्त बातें सामान्य स्थिति और सामान्य बीमारी के लिये ही हैं । विशेष स्थिति में किसी जानकार के मार्गदर्शन में ही बढना उचित होता है । तो आप जिस तनहाई से घबराते हैं । आपकी जो रातें प्रियतम या प्रियतमा के बिना सूनी हैं । उनमें आप स्वांस से नाता जोङकर देखिये । फ़िर देखिये कैसा आनन्द आता है । किसी बिलकुल अकेले स्थान पर चले जाईये और शांत होकर स्वांस का संगीत सुनिये । निश्चय ही ऐसा आनन्दमय अनुभव आपको संसार की किसी भी वस्तु से नहीं होगा ?
" जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । "
" सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । "
विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु कोई साधना करना चाहते हैं । और आपको ऐसा लगता है कि यहाँ आपके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है । तो आप निसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं ।

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

PRANAM is vishay me ahhik jankari ke liye main aapse bat karna chahta hun,DHANYAWAD.

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

मुझसे आप सुबह सात से दस और दोपहर तीन से छह कभी भी बात कर सकते हैं । यदि इस विषय में पहले से जानकारी हो । कुछ ध्यान । किसी नाम जप का अभ्यास हो । तो श्री महाराज जी से बेझिझक सीधे ही बात कर सकते हैं । दोनों के ही नम्बर ब्लाग पर मौजूद है । टाइटिल देखिये ।