15 मार्च 2010

एक संत और राजा में फ़र्क ?

एक राजा की किसी भी प्रकार के धर्म कार्यों में रूचि नहीं थी । उसका ये मानना था कि जो लोग कमजोर होते हैं । और ऐशो आराम के साधन नहीं जुटा पाते । बे हारकर भक्ति नामक पाखंड में लग जाते है । वो ये मानने को तयार नहीं था कि भोगविलास के साधन मौजूद होने पर भी किसी की उनमें रूचि ही न हो । लेकिन इसके विपरीत उसकी प्रजा भक्ति भाव वाली थी । 
कुछ लोगों ने राजा से कहा - राजन यहाँ से कुछ दूर जंगल के पास एक संत रहते हैं । उन्हें जरा भी किसी चीज का लोभ आदि नहीं है ।
राजा ने कहा - अरे पागल लोगो ! इस संसार में ऐसा कोई नहीं होता । जिसको सुख साधनों की.. सुख भोगने की इच्छा नहीं होती है ।
इस पर प्रजा ने बड़े ही दृढ भाव से कहा - महाराज वो संत इस प्रकार के नहीं हैं ।
लेकिन राजा को विश्वास ही नहीं हुआ । उसने कहा कि मैं अपनी भोली प्रजा को ये दिखाकर रहूँगा कि संत हो या कोई अन्य । सुख भोगने की कामना सभी के अन्दर होती है ।
ये सोचकर राजा संत के पास गया । और बोला - चलिए महाराज ! मैं आपको राजमहल ले जाने के लिये आया हूँ ।
संत उसके मन की बात समझ चुके थे ।
उन्होंने कमंडल उठाते हुए कहा - चलो । 
राजा का विश्वास और भी पक्का हो गया कि देखो ये संत महलों के लिए कितनी जल्दी तैयार हो गये । अब मेरी प्रजा को संतों की असलियत मालूम हो जायेगी । उसने संत को बहुत बढ़िया तरीके से महल में ठहरा दिया । उनके लिए सुन्दर दासियों पकवानों भोगविलास के सब साधनों की व्यवस्था भी कर दी । लेकिन इसके अलावा उसने संत से कुछ नहीं कहा ।
इस प्रकार 6 महीने गुजर गए । तब एक दिन राजा संत के पास पहुंचा । 
और बोला - मुझे आपसे कुछ नहीं पूछना । लेकिन मैं एक बात कहना चाहता हूँ । अब मुझमें और आपमें क्या फर्क है ?

संत ने कहा - ओ..हो राजा ! तुमने इस बात के लिए 6 महीने खराव कर दिये । तुम पहले ही पूछ लेते कि मुझमें और तुम में क्या फर्क है । लेकिन इसका उत्तर थोड़ी दूर जंगल में है । 
राजा उत्तर की जिज्ञासा में जंगल जाने के लिये तैयार हो गया ।
संत ने कहा - लेकिन राजन उत्तर जानने के लिये । तुम्हें मेरे साथ अकेले जंगल की तरफ चलना होगा । वो भी पैदल । राजा तैयार हो गया । इस तरह आगे आगे संत । और पीछे पीछे राजा चलते हुए काफी दूर निकल आये ।
घने जंगल में एक जगह रूककर राजा ने कहा - अब आप मुझे उत्तर बतायें ।
 संत ने कहा - उत्तर बस थोड़ी ही आगे है । इस तरह राजा बार बार उत्तर पूछता । और संत कह देते कि बस थोड़ी दूर और चलना होगा । 
वे दोनों लोग जंगल में बहुत आगे तक निकल आये थे । अँधेरा बड़ने लगा था । और जंगल भी घना होता जा रहा था । संत अपनी मस्ती में आगे चले जा रहे थे । तब एक जगह राजा रुक गया ।
और बोला - आपको उत्तर बताना हो । तो बताओ । अब मैं आगे नहीं जाऊँगा । 
संत मुस्कराकर बोले - राजन मुझमें और तुममें यही फर्क है । तुमने मुझे 6 महीने भोगविलास में उलझाकर ये समझा कि मैं उनका आदी हो गया । देखो तुमको अपना राज्य छोड़े अभी कुछ ही घंटे हुये है । और तुम राज्य के लिए किस कदर परेशान हो गये । और मुझ पर तुम्हारे राज्य छोड़ने का कोई प्रभाव नहीं है । मैं जंगल और राज्य में एक समान ही रहता हूँ ।
अब बात राजा की समझ में आ गई । और वो संत के पैरों में गिर पड़ा ।

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